अखिल भारत
हिन्दू महासभा
49वां अधिवेशन पाटलिपुत्र-भाग:20
(दिनांक 24 अप्रैल,1965)
अध्यक्ष बैरिस्टर
श्री नित्यनारायण बनर्जी का अध्यक्षीय भाषण
प्रस्तुति: बाबा पं0 नंद किशोर मिश्र
अतीत का इतिहास इस तथ्य की साक्षी प्रस्तुत करता है कि भारत की राजनीतिक समृद्धि की उपलब्धि, आध्यात्मिक नेताओं के आर्विभाव के
साथ ही साथ होती आई है। श्री शंकराचार्य के अद्वैतवाद की पृष्ठभूमि पर ही शुंग, आंध्र, गुप्त, केशरी तथा अन्य
अनेक शक्तिशाली हिंदू साम्राज्यों की स्थापना हुई थी। दक्षिण के पल्लवों, पौण्ड्रों, चौल तथा चालुक्यों को रामानुज
तिरूमंगल अथवा सायण, अपर स्वामी एवं अन्य संतों का ही
आशीर्वाद प्राप्त था। अशोक ने भी अपने महान साम्राज्य का विस्तार भगवान बुद्ध
की पावन पताका को हाथों में थामकर ही किया था। छत्रपति शिवाजी एवं गुरू गोविंद सिंह
भी अपने आध्यात्मिक गुरूओं- समर्थ स्वामी रामदास तथा गुरू नानक देव से ही प्रेरणा पाते थे।
मित्रों, यदि हमें राष्ट्र निर्माण करना है तो इसके लिये हमें आध्यात्मवाद का
भी पुनरूद्धार करना होगा। केवल हिंदू धर्म के माध्यम से ही भारत में प्रेम और ऐक्य
की भावना से परस्पर संवद्ध और चरित्र बल के धनी नर नारियों का उद्भव होगा।
धर्म ही इस हिंदू राष्ट्र को बद्रीनाथ से कन्या कुमारी तक
और नेफा से हिंगलाज तक एकता के सूत्र में आबद्ध करने वाला आधार है।
आज राष्ट्रों में विद्यमान पारस्परिक कलह तथा खुली घृणा
के प्रदर्शन और प्रकृति के रहस्यों पर पाई गई विजय के फलस्वरूप विश्व के समक्ष
जो भयावह और दिग्भ्रांत स्थिति निर्मित हो गई है हिंदू धर्म के सिद्धांत ही उसका
निराकरण कर विश्व को सच्ची शांति का सुअवसर प्रदान कर सकते है।
वीर और बलवान बनो
हमें यह स्मरण रखना है कि यद्यपि अहिंसा हमारे धर्म का
सर्वोच्च आदर्श है किन्तु वह सत्व गुण का ही सर्वश्रेष्ठ स्वरूप है। जब तक हम
उस स्थिति को प्राप्त न कर लें हमें ''रजोगुण'' का व्यवहार करना होगा अर्थात
हमें जीवन में सक्रिय होना होगा। स्वरक्षा और राष्ट्र रक्षार्थ हिंसा को भी
सार्वभौमिक दृष्टि से मान्यता प्राप्त है।
हमारे वेद, पुराण तथा अन्य सभी धर्म ग्रंथ हमें यह सिखाते हैं कि हम अग्रगामी बनें
सक्रिय हों तथा यदि आवश्यकता आ पड़े तो आसुरी शक्तियों के विरूद्ध संग्राम करने
हेतु हिंसा के भी मार्गका अवलंबन करें। हमारे अधिकांश देवताओं के हाथों में शांति
के प्रतीक कमल तथा अन्य चिह्नों के अतिरिक्त शस्त्रास्त्र भी हैं। आओ हम उनके
सच्चे अनुगामी बनें। कायरता का परित्याग कर वीरत्व को ग्रहण करें और शौर्यवान
हों। चरित्र ही सब शक्तियों की आधार शिला है। हमारे उपनिषद भी ''चरैवेति चरैवेति'' अर्थात अग्रगामी होने का ही आदेश
दे रहे हैं। सक्रियता ही जीवन है और निष्क्रियता ही मृत्यु।
आदर्श के लिये ही जियो
हमें दूसरे राष्ट्रों का अंधानुकरण करने वाले समूह के रूप
में नहीं अपितु कतिपय आदर्शों के लिये निर्मित हुये एक राष्ट्र के रूप में जीवित
रहना होगा हमें एक ऐसे शासन की स्थापना करनी होगी जो जनता की अर्थात हिंदू राष्ट्र
की आकांक्षाओं की पूर्ति करे। हिंदुत्व पर आधारित समाजवाद ही इस शासन की आर्थिक
नीति का निर्देशक होगा। हमें अपने देश के उन भू-खण्डों को पुन: प्राप्त करने का
उद्योग करना होगा जो हमारे पूर्वजों की कायरता अथवा विश्वासघात के कारण शत्रुओं
द्वारा हड़प लिया गया है।
इसके साथ ही साथ हमें विश्व के हिंदू राज्यों का एक
सुदृढ़ संघ बनाने की दिशा में प्रवृत्त होना होगा जिसके द्वारा विश्व को प्रेम
और आध्यात्मिकता का संदेश प्राप्त हो सकेगा। यह भारत को प्राप्त हुआ पावन
दायित्व है और हम जो इस भारत माता के पुत्र हैं उन्हें इस कार्य के लिये सक्रिय
होना पड़ेगा। हम किसी राजनैतिक साम्राज्य की स्थापना के आकांक्षी नहीं हैं किंतु
उस दिन की हम निश्चित रूप से ही बाट जोह रहे हैं जब जापान, कंबोडिया, थाई
देश, वियतनाम(हिंदू-चीन), हिंदू
एशिया(इण्डो-नेशिया), मलय, ब्रह्मदेश, श्रीलंका, फिजी, मॉरिशस, तिब्बत, सिक्किम, भूटान आदि
सभी राज्यों का एक भ्रातृभावना पर आधारित संघ गठित होगा। जो उनमें से किसी भी एक पर इस्लाम, ईसाईयत
अथवा नास्तिकवाद किसी के द्वारा भी राजनैतिक अथवा धार्मिक या आर्थिक प्रहार होने
पर संगठित होकर उस आक्रमण का मुंह तोड़ उत्तर दे सकेगा।
हमारा यह सुदृढ़ हिंदू
संघ स्थापित होगा तो इन देशों के वे हिंदूजन तथा अन्य पड़ोसी देश भी अपने
पूर्वजों के पुनीत हिंदू धर्म को पुन: अंगीकार कर लेंगे जिन्होंने इस पावन धर्म
का परित्याग कर दिया है। वे सभी इस एक हिन्दू राष्ट्र मण्डल में सम्मिलित हो
जाएंगे ऐसी हमारी मान्यता है। हम भी उनके द्वारा हिंदुत्व की पुनीत गंगा में
अवगाहन करने के सुकृत्य का हार्दिक अभिनंदन करेंगे।
विश्व हिंदू धर्म सम्मेलन
इसी महान आदर्श को दृष्टिगत रखकर हिंदू महासभा ने विश्व
हिंदू धर्म सम्मेलन का आयोजन किया है, जो इसी वर्ष नई दिल्ली में संपन्न हो रहा है। सम्मेलन कोई
दलीय प्रश्न नही है। किसी भी राजनैतिक मतवाद के अनुगामी वे हिंदूजन इस सम्मेलन
में भाग ले सकेंगे जिनकी उपरोक्त आदर्श में आस्था है। मुझे आपको यह सूचित करते
हुये प्रसन्नता हो रही है कि उपरोक्त सभी
देशों तथा अफ्रीका,
त्रिनिदाद, जंजीबार, फिजी, अमरीका, फिलिपिंस, पाकिस्तान
और ब्रिटिश गियानाके हिंदुओं ने हमारे आह्वान पर इस सम्मेलन में भाग लेना स्वीकार
किया है। सम्मेलन की स्वागत समिति द्वारा इसकी निश्चित तिथियों की घोषणा निकट भविष्य में ही कर दी जायेगी।
No comments:
Post a Comment