Monday, April 30, 2012

जातिवाद

अखिल भारत  हिन्‍दू महासभा

49वां अधिवेशन पा‍टलिपुत्र-भाग:18  

(दिनांक 24 अप्रैल,1965)

अध्‍यक्ष बैरिस्‍टर श्री नित्‍यनारायण बनर्जी  का अध्‍यक्षीय भाषण 

प्रस्‍तुति: बाबा पं0 नंद किशोर मिश्र


कांग्रेस सरकार द्वारा ''परिगणित जातियों'' और ''पिछड़े वर्गों'' को विशेष सुविधाएं देने के आवरण  में हिंदू जनता में जांति-पांति  की भवनाओं को उभार कर उनमें फूट का बीजारोपड़  करने के घातक प्रयास के संबंध  में भी मैं हिंदू जाति को सचेत कर देना चाहता हूं। मेरा यह अभिमत है कि इस प्रकार संरक्षण अथवा सुविधाएं जो जातिगत आधार पर दी जाती हैं वे संविधान के विपरीत हैं। इस प्रकार की योजना से निश्चित रूप से ही शिक्षा तथा प्रशासन  के स्‍तर में गिरावट ही आयेगी। इस प्रकार की सुविधाएं प्रदान करने में केवल आर्थिक स्थिति को ही दृष्टिगत रखना अभीष्‍ट है। कांग्रेस तथा भारत की कम्‍युनिस्‍ट पार्टी ने देश में एक नवीन जातिवाद का सृजन कर दिया है और यह है रा‍जनीतिक जातिवाद। यह राजनीतिक जातिवाद देश को सामाजिक जातिवाद की अपेक्षा इस राजनीतिक जातिवाद से अधिक पिसती जा रही है। 

हिन्‍दू राष्‍ट्र 


बंधुओं, हिन्‍दू राष्‍ट्र में किसी भी व्‍यक्ति को ऐसा व्‍यवहार करने की अनुमति प्राप्‍त न होगी जो हिंदू मान्‍यताओं के विपरीत हो। जिस प्रकार कि यूरोप, अमरीका तथा एशिया के ईसाई अथवा इस्‍लामी राज्‍य में किसी  भी व्‍यक्ति को राज्‍य के धार्मिक सिद्धांतों के विरूद्ध कार्य करने की अनुमति नहीं है। हिंदुओं का इस देश में बहुमत है, अत: हिंदू हितों को ही राष्‍ट्र हित के रूप में मान्‍यता प्राप्‍त होगी। स्‍वामी विवकानंद ने भी कहा है कि ''भारत में उन्‍ही लोगों के संगठित रूप को राष्‍ट्र की संज्ञा दी जा सकती है जिनके हृदय एक ही आध्‍यात्मिक वीणा के तार के स्‍वरों से झंकृत है।''


अल्‍पसंख्‍यकों को संपूर्ण देश के राष्‍ट्रहित के साथ ही अपने हितों को समन्वित करना चाहिये। आज ''राष्‍ट्रीय एकता'' के लिये सबसे बड़ा संकट 10 प्रतिशत मुस्लिम अल्‍पसंखकों को 90 प्रतिशत हिंदुओं के बराबर करने का प्रयास ही है। विभाजन के पश्‍चात भी हिंदुस्‍तान की विभिन्‍न जातियों, वर्गों, भाषाओं और क्षेत्रीय इकाइयों में संयोग का सृजन ही वास्‍तविक राष्‍ट्रीय एकता के लिये आवश्‍यक है। अल्‍पसंख्‍यकों को अपने आपको पृथक तत्‍वों के रूप में न समझकर राष्‍ट्र जीवन की पुनीत गंगा में अवगाहन करना ही होगा। हिंदुओं की सद्भावना की प्राप्ति ही भारत के अल्‍पसंख्‍यकों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा की वास्‍तविक प्रतिश्रुति है।

No comments: