Monday, April 30, 2012

अखिल भारत हिन्‍दू महासभा


भारत हिन्‍दू राष्‍ट्र क्‍यों नहीं 

49वां अधिवेशन पा‍टलिपुत्र-भाग:10  

(दिनांक 24 अप्रैल,1965)

अध्‍यक्ष बैरिस्‍टर श्री नित्‍यनारायण बनर्जी  का अध्‍यक्षीय भाषण 

प्रस्‍तुति: बाबा पं0 नंद किशोर मिश्र 

हिन्‍दू एक महान शक्ति

किंतु इन सब बातों से हमें भयभीत नहीं होना चाहिये। वास्‍तविकतावादियों के समान हमें तथ्‍यों का सामना करने के लिये सिद्ध होना पड़ेगा। 40 करोड़ हिंदू यदि संगठित रहें तो भले ही उनमें से कुछ लाख देशद्रोह ही क्‍यों न करें वे एक महान शक्ति के रूप में आविर्भूत हो सकेंगे। हमें ही प्रभु का पावन वरदान प्राप्‍त है कि हम एक भूखण्‍ड में ही एक राष्‍ट्र के रूप में समान धर्म और संस्‍कृति के सुदृढ़ बंधनों में बंध कर रह रहे हैं। इतनी प्रचण्‍ड जनसंख्‍या वाला कोई भी ऐसा राष्‍ट्र आज धरा धाम पर विद्यमान नहीं है, जो एक धर्म, एक भाषा(संस्‍कृत), एक इतिहास  और एक संस्‍कृति का अनुगमन करते हुये एक निश्चित भूखण्‍ड की सीमाओं में निवास करता हो। हमारी इस एकता की भित्ति मुख्‍यत: धर्म ही है। हिन्‍दू महासभा इसी महान राष्‍ट्र के पुनरूद्धार एकता और अखण्‍डता के लिये कटिबद्ध है।
स्‍वधर्म तथा स्‍वराज्‍य  
''स्‍वधर्म और स्‍वराज्‍य दोनों ही साथ-साथ चलते हैं।''
स्‍वराज्‍य के बिना स्‍वधर्म का रक्षण संभव नहीं और इसी भांति स्‍वधर्म के अभाव में स्‍वराज्‍य भी निरर्थक है। आज पाकिस्‍तान के इस्‍लामी राज्‍य में हिंदू का हिंदू के रूप में रहना संभव नही है। किंतु मुसलमान अपने धर्म और संस्‍कृति की सुरक्षार्थ एक पृथक भूखण्‍ड की मांग करते हैं। यहूदियों को भी एक राष्‍ट्र के रूप में जीवित रहने और  अपने धर्म की सुरक्षा हेतु ईजरायल के रूप में एक देश की रचना करनी पड़ी। आज यूनान और सीरिया में जो उपद्रव हुये हैं उनका मूल कारण भी यही है कि इन देशों में ईसाई और मुसलमान ये दो अलग-अलग धर्मावलम्‍बी निवास करते हैं।

हिन्‍दुत्‍व ही राज्‍य धर्म हो

हमें इतिहास से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये तथा यह आदर्श अपने समक्ष रखना चाहिये कि यह देश भारत हिन्‍दुस्‍थान ही रहे और इस हिन्‍दू  राज्‍य के राज्‍य धर्म के रूप में हिन्‍दू धर्म को मान्‍यता दी जाये। आज ब्रह्म देश, श्री लंका, नेपाल, मलेशिया, इंडो‍नेशिया ही नहीं अपितु साम्‍यवादी देशों और भारत को छोड़कर विश्‍व के सभी देशों का एक राजधर्म है। इन राज्‍यों में वहां की बहुसंख्‍यक जनता के धर्म को ही राज्‍य धर्म के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। तब फिर हमें ही भारत की बहुसंख्‍यक जनता के धर्म को भारत का राज्‍य-धर्म घोषित करने में संकोच क्‍यों करना चाहिये?
कोई राष्‍ट्र केवल इसलिये तो राज्‍य-धर्म से वंचित नहीं रह सकता कि एक प्रधानमंत्री  अथवा उसका दल ऐसा करने के लिये तैयार नहीं है। सम्राट अकबर ने भी हिंदुओं और मुसलमानों के एक साझे धर्म का दीने-इलाही के नाम से प्रचलन किया था। उसके जीवन-काल में उसके चाटुकारों नें उसे भगवान् (दिल्‍लीश्‍वरोवा जगदीश्‍वरोवा) कहकर संबोधित किया। किंतु उसका यह दीने-इलाही का दिवा स्‍वप्‍न  अपने निर्माता के जीवन काल में अकाल मृत्‍यु को ही प्राप्‍त हो गया। निश्‍चय ही हम यह आशा नही कर सकते कि आधुनिक लोकतंत्रवादी भारत में अकबर से भी बड़ा कोई एकतंत्रवादी सम्राट आविर्भूत हो सकता है। 

हिंदुओं का हिंदुकरण हो

धर्म के पुनरूद्धार हेतु, हमारा मुख्‍य कार्य यह होना चाहिये कि हम हिंदुओं का हिंदुकरण करें। जिससे सुप्‍त सिंह अपने वास्‍तविक पौरूष  की अनुभूति कर सकें।  जिससे हिंदू यह समझ सकें कि वे कायर नहीं अपितु अमृत पुत्र हैं, दास नहीं अपितु स्‍वामी हैं श्‍वान नहीं अपितु सिंह हैं। हिंदुओं के गौरवशाली स्‍वरूप की  पुर्नस्‍थापना हेतु हमें वेद प्रणीत आत्‍मानम् वृद्धि  के महान-दर्शन को राजनीति में साकार करना होगा। हम केवल उसी को हिंदू मानते हैं जिसे अपने आपको हिंदू कहलाने में गौरव का अनुभव होता है तथा जो आध्‍यात्मिक है।

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