Tuesday, January 15, 2013

मुसलमानों के अधिकार का औचित्य !


डॉ0 संतोष राय

विश्व के हरेक व्यक्ति को उसके मौलिक अधिकार मिलना चाहिए . सभी इस बात पर सहमत होंगे . परन्तु इस बात से भी सभी लोग सहमत होंगे अधिकारों का जन्म कर्तव्य से होता है .सिर्फ जनसख्या कम होने के आधार पर ही अधिकारों की मांग करना तर्कसंगत नहीं है . सब जानते कि मुसलमानों ने सैकड़ों साल तक इस देश को लूट लूट कर कंगाल कर दिया . लोगों की भलाई की जगह मकबरे , कबरिस्तान , मजार और मस्जिदें ही बनायी है . और जब हिदू देश की आजादी के लिए शहीद हो रहे थे ,तो इन्हीं मुसलमानों ने देश के टुकडे करवा दिए . फिर भी अल्पसंख्यक होने का बहाना लेकर अधिकारों की मांग कर रहे हैं . आप एक भी ऐसा मुस्लिम देश बता दीजिये जहाँ अल्पसंख्यक होने के आधार पर गैर मुस्लिमों को वह अधिकार मिलते हों ,जो मुसलमान यहाँ मांग रहे हैं . मुसलमान हमेशा दूसरों के अधिकार छीनते आये हैं और आपसी मित्रता ,सद्भाव , भाईचारे की आड़ में पीठ में छुरा भोंकते आये हैं यह इस्लाम के इतिहास से प्रमाणित होता है , मुसलमान अपनी कपट नीति नहीं छोड़ सकते , कैसे कुत्ते की पूंछ सीधी नहीं हो सकती ,

1-मुसलमानों की कपट नीति
अरब के लोग पैदायशी लुटेरे , और सतालोभी होते हैं .मुहम्मद की मौत के बाद ही उसके रिश्तेदार खलीफा बन कर तलवार के जोर पर इस्लाम फैलाने लगे . और जिहाद के बहाने लूटमार करने लगे , यह सातवीं शताब्दी की बात है , उस समय मुसलमानों का दूसरा खलीफा "उमर इब्ने खत्ताब " दमिश्क पर हमला करके उस पर कब्ज़ा कर चुका था . उम्र का जन्म सन 586और 590 ईस्वी के बीच हुआ था और मौत 7नवम्बर 644 ईस्वी में हुई थी . चूंकि यरूशलेम दमिश्क के पास था ,और वहां बहुसंख्यक ईसाई थे . यरूशलेम स्थानीय शासन "पेट्रीआर्क सोफ़्रोनिअसSophronius  " (Σωφρόνιος ) के हाथों में था . ईसाई उसे संत (Saint ) भी मानते थे .यरूशलेम यहूदियों ,ईसाइयों और मुसलमानों के लिए पवित्र शहर था . और उमर बिना खूनखराबा के यरूशलेम को हथियाना चाहता था . इसलिए उसने एक चाल चली . और यरूशलेम के पेट्रआर्क सन्देश भेजा कि इस्लाम तो शांति का धर्म है . यदि आप के लोग समर्पण कर देगे तो हम भरोसा देते है कि आपकी और आपके लोगों के अधिकारों की रक्षा करेंगे .और इसके साथ ही उमर एक संधिपरत्र का मसौदा ( Draft ) यरूशलेम भिजवा दिया . जिस पर यरूशलेम के पेर्ट्रीआर्क ने सही कर दिए . और उमर पर भरोसा करके यरूशलेम उमर के हवाले कर दिया .

2-उमर का सन्धिपत्र
इस्लामी इतिहास में इस संधिपत्र को " उमर का संधिपत्र ( Pact of Umar ) या " अहद अल उमरिया  العهدة العمرية " कहा जाता है .इसका काल लगभग सन 637 बताया जाता है . उमर ने यह संधिपत्र "अबूबक्र मुहम्मद इब्न अल वलीद तरतूशأبو بكر محمد بن الوليد الطرطوش"  " से बनवाया था .जिसने इस संधिपत्र का उल्लेख अपनी प्रसिद्ध किताब " सिराज अल मुल्क  سراج الملوك" के पेज संख्या 229 और 230 पर दिया है .इस संधिपत्र का पूरा प्रारूप " एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी University of Edinburgh  " ने सन 1979 में पकाशित किया है .इस संधिपत्र की शर्तों को पढ़ने के बाद पता चलेगा कि मित्रता के बहाने मुसलमान कैसा धोखा देते हैं . और अल्पसंख्यकों को अधिकार देने के बहाने उनके अधिकार छीन लेते है . यद्यपि उमर ने इस्लाम को शांति का धर्म बता कर लोगों गुमराह करने के लिए इस संधिपत्र बड़ा ही लुभावना शीर्षक दिया था

3-इस्लामी शासन में गैर मुस्लिमों का अधिकार !
यद्यपि उमर का संधिपत्र सातवीं सदी में लिखा गया था लेकिन सभी मुस्लिम देश इसे अपना आदर्श मानते है . और हरेक मुस्लिम देश के कानून में उमर के संधिपत्र की कुछ न कुछ धाराएँ जरुर मौजूद है ,उमर के संधिपत्र का हिंदी अनुवाद यहाँ दिया जा रहा है ,
1-हम अपने शहर में और उसके आसपास कोई नया चर्च ,मठ , उपासना स्थल , या सन्यासियों के रहने के लिए कमरे नहीं बनवायेंगे . और उनकी मरम्मत भी नहीं करवाएंगे . चाहे दिन हो या रात
2-हम अपने घर मुस्लिम यात्रियों के लिए हमेशा खुले रखेंगे , और उनके लिए खाने पीने का इंतजाम करेंगे
3-यदि कोई हमारा व्यक्ति मुसलमानों से बचने के लिए चर्च में शरण मांगेगा ,तो हम उसे शरण नहीं देंगे
4-हम अपने बच्चों को बाईबिल नहीं पढ़ाएंगे
5-हम सार्वजनिक रूप से अपने धर्म का प्रचार नहीं करेंगे , और न किसी का धर्म परिवर्तन करेंगे .
6-हम हरेक मुसलमान के प्रति आदर प्रकट करेंगे , और उसे देखते ही आसन से उठ कर खड़े हो जायेंगे . और जब तक वह अनुमति नहीं देता आसन पर नहीं बैठेंगे .
7-हम मुसलमानों से मिलते जुलते कपडे ,पगड़ी और जूते नहीं पहिनेंगे
8-हम किसी मुसलमान के बोलने ,और लहजे की नक़ल नहीं करेंगे और न मुसलमानों जैसे उपनाम (Surname ) रखेंगे
9-हम घोड़ों पर जीन लगाकर नहीं बैठेंगे , किसी प्रकार का हथियार नहीं रखेंगे , और न तलवार पर धार लगायेंगे
10-हम अपनी मुहरों और सीलों ( Stamp ) पर अरबी के आलावा की भाषा का प्रयोग नहीं करेंगे
11-हम अपने घरों में सिरका (vinegar ) नहीं बनायेंगे
12-हम अपने सिरों के आगे के बाल कटवाते रहेंगे
13-हम अपने रिवाज के मुताबिक कपडे पहिनेंगे ,लेकिन कमर पर "जुन्नार" ( एक प्रकार का मोटा धागा ) नहीं बांधेंगे
14-हम मुस्लिम मुहल्लों से होकर अपने जुलूस नहीं निकालेंगे , और न अपनी किताबें , और क्रूस प्रदर्शित करेंगे , और अपनी प्रार्थनाएं भी धीमी आवाज में पढेंगे
15-यदि कोई हमारा सम्बन्धी मर जाये तो हम जोर जोर से नहीं रोयेंगे , और उसके जनाजे को ऐसी गलियों से नहीं निकालेंगे जहाँ मुसलमान रहते हों . और न मुस्लिम मुहल्लों के पास अपने मुर्दे दफनायेंगे
16 -यदि कोई मुसलमान हमारे किसी पुरुष या स्त्री को गुलाम बनाना चाहे ,तो हम उसका विरोध नहीं करेंगे
17-हम अपने घर मुसलमानों से बड़े और ऊँचे नहीं बनायेंगे

" जुबैरिया बिन कदमा अत तमीमी ने कहा जब यह मसौदा तैयार हो गया तो उमर से पूछा गया , हे ईमान वालों के सरदार , क्या इस मसौदे से आप को संतोष हुआ , तो उमर बोले इसमें यह बातें भी जोड़ दो ,हम मुसलमानों द्वारा पकडे गए कैदियों की बनायीं गयी चीजें नहीं बेचेंगे . और हमारे ऊपर रसूल के द्वारा बनाया गया जजिया का नियम लागू होगा " बुखारी -जिल्द 4 किताब 53 हदीस 38

4-पाकिस्तान में हिन्दुओं के अधिकार

पाकिस्तान की मांग उन्हीं मुसलमानों ने की थी जो अविभाजित भारत के उसी भाग में रहते थे जो अज का वर्त्तमान भारत है .पाकिस्तान बनाते ही जिन्ना ने कहा था आज से पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के अधिकारों द्वार सील हो गया है "the fate of minorities in this country was sealed forever "
पाकिस्तान में इसी लिए अकसर आये दिन हिन्दू लड़कियों पर बलात्कार होता है , मंदिर तोड़े जाते हैं , बल पूर्वक धर्म परिवर्तन कराया जाता है .और हमारी हिजड़ा सेकुलर सरकार हिना रब्बानी के साथ मुहब्बत के तराने गाती रहती है . दिखने के लिए पाकिस्तान के संविधान की धारा 20 में अल्पसंख्यकों के अधिकारों का दावा किया गया है . लेकिन मुसलमान संविधान की जगह उमर की संधि पर अमल करते हैं .
हम लोगों से पूछते हैं , सरकार मुसलमानों को अधिकार किस खजाने से देगी ? क्या सोनिया इटली से खजाना लाएगी ?सीधी सी बात है कि मुसलमानों को अधिकार हिन्दुओं से छीन कर दिया जायेगा .
और अब समय आ गया है कि हिन्दू अपना अधिकार इन लुटेरों को देने की बजाये इन छीन लें . तभी देश की गरीबी दूर हो जाएगी औए आतंकवाद भी समाप्त हो जायेगा . क्योंकि हमारे ही पैसों से हमारा ही नाश हो रहा है .
हिन्दुओ अपनी अस्मिता बचाओ , अपने अधिकार छीन लो , अभी उठो !

http://www.bible.ca/islam/islam-kills-pact-of-umar.htm

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मुस्लिम कट्टरता को पाल-पोष रहे हैं तथाकथित सेकुलर


बलबीर पुंज


भारतीय जवानों के साथ की गई बर्बरता के बाद पाकिस्तान की ओर से उकसाने वाली गतिविधियां निरंतर जारी हैं। जम्मू-कश्मीर स्थित भारत-पाक सीमा के मेंढर सेक्टर में दो भारतीय सैनिकों की जिस नृशंसता से हत्या की गई, वह जिहाद प्रेरित पाशविक मानसिकता को रेखांकित करती है। भारतीय जवानों के साथ हुई क्रूरता के बीच लश्करे-तैयबा के सरगना हाफिज सईद का पाक अधिकृत कश्मीर में उपस्थित होना महज संयोग नहीं है। अजमल कसाब को फांसी दिए जाने के बाद से ही पाक प्रायोजित आतंकी संगठनों की ओर से बदला लेने की धमकी दी जा रही थी। विडंबना यह है कि स्वयं अपने देश में भी एक वर्ग ऐसा है, जो इसी विषाक्त मानसिकता से ग्रस्त है। सेक्युलर राजनीतिक दल और सेक्युलर मीडिया का एक बड़ा भाग ऐसी देशघाती मानसिकता को अपना मौन समर्थन देते हैं।

24 दिसंबर को हैदराबाद के चंद्रायनगुट्टा निर्वाचन क्षेत्र से मजलिसे-इत्तेहादुल मुसलमीन पार्टी के विधायक अकबरूद्दीन ओवैसी ने हजारों लोगों की उन्मादी भीड़ को संबोधित करते हुए जैसी बातें कीं, वे एक समुदाय विशेष के बड़े वर्ग में मौजूद भारत की सनातन संस्कृति और अस्मिता के प्रति घृणा की ही पुष्टि करती हैं। ऐसे लोगों के पास पासपोर्ट तो भारत का है, परंतु निष्ठा सीमा पार है। 24 दिसंबर से 1 जनवरी तक किसी ने भी ओवैसी के विषवमन का संज्ञान तक नहीं लिया। ओवैसी ने एक घंटे से भी अधिक समय तक घृणा भरा भाषण दिया, जिसमें भारत की सनातन सभ्यता, हिंदू समाज और उनके मान बिंदुओं का सरेआम अपमान किया गया। यह किसी एक सिरफिरे व्यक्ति का प्रलाप मात्र नहीं है। यह हजारों लोगों की भीड़ के आगे एक चुना हुआ जनप्रतिनिधि बोल रहा था। उसके शब्दों के समर्थन में हजारों लोगों की भीड़ उन्माद में मजहबी नारे लगा रही थी। ओवैसी ने विवादित ढांचा ध्वंस को लेकर 1993 के मुंबई बम धमाकों को न्यायोचित ठहराते हुए अजमल कसाब को दी गई फांसी पर भी प्रश्न खड़ा किया। इसके अलावा उसने टाडा में जेल में बंद मुस्लिम युवकों के प्रश्न पर भारतीय व्यवस्था व न्याय प्रणाली पर गंभीर आरोप लगाए। मुंबई हमलों के लिए टाइगर मेमन आदि पर हुई कार्रवाई और कसाब की फांसी पर भी उसे आपत्ति है। इस देश की संप्रभुता पर हमला करने वाले आतंकियों के प्रति ओवैसी और उसके समर्थकों की हमदर्दी समझ से परे नहीं है। मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन की स्थापना ही हैदराबाद रियासत में निजामत को बनाए रखने के लिए हुई थी। भारत विभाजन के दौरान हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय से इनकार कर दिया था। तब भारतीय व्यवस्था और हिंदुओं के खिलाफ निजाम के संरक्षण में रजकरों ने युद्ध छेड़ा था, जिसका संचालन इसी संगठन ने किया था। देशद्रोही गतिविधियों के कारण ही इस संगठन को 1948 में प्रतिबंधित किया गया था। आज उस संगठन के लोग ऐसी विषैली भाषा में बात करें तो आश्चर्य कैसा?

भारतीय उपमहाद्वीप (भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश) में रहने वाले 99 प्रतिशत लोग या तो हिंदू हैं या मतांतरण से पूर्व हिंदू थे। फिर क्या कारण है कि अधिकांश मतांतरित अपनी ही भूमि से पुष्पित और पल्लवित सनातन संस्कृति से न केवल दूर हो गए, बल्कि उसे समूल नष्ट करने के लिए प्रतिबद्ध हैं? विभाजन से पूर्व पाकिस्तान वाले भूभाग में 22 प्रतिशत हिंदू-सिख थे, आज वहां उनकी आबादी एक प्रतिशत से भी कम है। बांग्लादेश में तब 30 प्रतिशत आबादी गैर मुस्लिम थी, जो अब आठ प्रतिशत से भी कम रह गई है। क्यों? क्यों इस्लामी देशों में गैर मुस्लिमों को मजहबी स्वतंत्रता नहीं है? क्यों गैर मुस्लिमों को मजहबी उत्पीड़न और अत्याचार के कारण पलायन कर भारत में शरण लेने या इस्लाम कबूल करने के लिए विवश होना पड़ रहा है? पाकिस्तान द्वारा भारत को हजार घाव देकर उसे नष्ट करने का घोषित एजेंडा, ओवैसी का भारत व हिंदू विरोधी विषवमन और मुंबई जैसे जघन्य कांड इसी बीमार मानसिकता की उपज हैं।

वस्तुत: ओवैसी जैसे पाकिस्तानपरस्त समय-समय पर भारत और भारत की सनातनी संस्कृति के खिलाफ जो विषवमन करते हैं, वह सेक्युलरवाद के नाम पर पोषित किए गए इस्लामी कट्टरवाद की ही तार्किक परिणति है। कितना बड़ा विरोधाभास है कि भारत में सेक्युलरवाद के पुरोधा वामपंथी दलों के राजनीतिक और बौद्धिक समर्थन के कारण मजहबी अवधारणा पर आधारित कट्टरवादी पाकिस्तान का जन्म हुआ। इन्हीं वामपंथियों ने पूर्ववर्ती निजाम की छत्रछाया में भारत और हिंदू विरोधी रजाकारों को भी समर्थन दिया। स्वाधीनता के बाद देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने पूरे समाज की विकृतियों को निशाना नहीं बनाया। 1956 में हिंदू कोड बिल बनाकर सामाजिक सुधारों को केवल हिंदुओं तक ही सीमित रखा और इससे मुस्लिमों को वंचित रख उन्हें कट्टरपंथियों के रहमोकरम पर छोड़ दिया। क्यों? सन 1986 में जब सर्वोच्च न्यायालय ने शाहबानो मामले में एक आदेश देकर मुस्लिम समाज में सुधार का मार्ग खोला तब तात्कालिक प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसद में अपने बहुमत का दुरुपयोग करते हुए उस निर्णय को ही पलट दिया। चाहे बाटला हाउस मुठभेड़ का मामला हो या 1998 का कोयंबटूर बम विस्फोट, आज भी तथाकथित सेक्युलर नेता मुसलमानों के उदारवादी वर्ग के साथ खड़े होने में संकोच करते हैं और आतंकवादियों के साथ खड़े नजर आते हैं। इन विकृतियों पर मीडिया के एक बड़े वर्ग व तथाकथित सेक्युलर दलों की खामोशी इस कट्टरवादी मानसिकता को पुष्ट करने का काम करती है। कोई राष्ट्रवादी संगठन यदि सेक्युलरवाद के नाम पर पोषित इस्लामी कट्टरवाद का विरोध करे तो उसे बहुलतावाद, प्रजातंत्र और पंथनिरपेक्षता के मूल्य सिखाए जाते हैं, सड़कों पर सेक्युलरिस्टों-मानवाधिकारियों का कुनबा प्रदर्शन करता है। क्यों?

नवंबर, 2008 में मुंबई में पाकिस्तान प्रायोजित दहशतगर्दी, पाकिस्तान द्वारा हजार घाव देकर भारत को नेस्तनाबूद करने का इरादा, ओवैसी का हैदराबाद में विषाक्त भाषण, हाल ही में दो भारतीय सैनिकों के साथ बर्बरता, हाफिज सईद द्वारा भारत में रक्तपात की धमकियां; ये सब सतह पर अलग-अलग घटनाएं हैं, परंतु इन सबके पीछे एक साझी विषैली मानसिकता है, जिसने 1947 में भारत को खंडित होने के लिए विवश किया और जिसको तब से लेकर आज तक तथाकथित सेक्युलर दलों का सहयोग या मौन समर्थन प्राप्त है। तथाकथित सेक्युलरवादी दलों के खाद-पानी के बिना मुस्लिम कट्टरवाद की यह विषबेल इस देश में कभी इतनी लंबी नहीं पनप सकती थी।


Friday, January 11, 2013

पुराना है यह नफरत का नासूर


के  विक्रम राव



जरा मुलाहिजा हो उन सूक्तियों का जिन्हें हैदराबाद पुलिस ने अपनी प्राथमिकी (एफआईआर) में दर्ज कराया है और समाचार चैनलों तथा सोशल मीडिया ने मय वीडियों के रिकॉर्ड किया है.

उवाचक हैं आल इंडिया मजलिसे इत्तिहादे मुसलमीन के माननीय विधायक अकबरुद्दीन ओवेसीजिन पर सांप्रदायिक कटुता फैलाने व देश के खिलाफ जंग छेड़ने जैसे गंभीर आरोप लगे हैं. उनकी पार्टी सोनिया गांधी के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की गत नवम्बर तक घटक थी और आंध्रप्रदेश की कांग्रेस सरकार की समर्थक रही. कुछ लोगों ने सवाल उठाया कि ऐसे कथनों पर भी पुलिस ने अकबरुद्दीन को गिरफ्तार क्यों नहीं किया. मुकदमा कायम क्यों नहीं किया.

इतना सब होने के बाद भी शायद किरण रेड्डी की सरकार हरकत में न आती, यदि मीडिया का दबाव न पड़ता. इसका कारण भी है. मजलिस के सात विधायक कांग्रेस सरकार की विधानसभा में डांवाडोल स्थिति में मदद कर सकते हैं. तेलंगाना का विरोधी हाने के कारण मजलिस पृथक राज्य के आंदोलनकारियों के खिलाफ सरकार की संकटमोचक बन सकती हैं. आगामी राज्यसभा मतदान में मदद दे सकती है. सबसे ज्यादा यही कि वाईएसआर कांग्रेस के जगनमोहन रेड्डी का साथ देने से मजलिस को रोका भी जा सकता है. अर्थात प्रदेश कांग्रेस शासन अकबरुद्दीन से अधिक लाभान्वित होती. उसे नाराज करके किरन रेड्डी क्यों बैल को बुलायें?

इन राजनीतिक हालात में कांग्रेस की विवशताओं को अकबरुद्दीन जानते हैं. इसीलिए तेवर चढ़ा रहे हैं. इसीलिए पुलिस को बाधित कर दिया गया. वर्ना पुलिसिया तहकीकात का भान होते ही अकबरुद्दीन लंदन जाकर आराम न फर्माते. हैदराबाद लौटकर वे मेडिकल कालेज मे भर्ती हो गए, जो हर संपन्न अपराधी का आम चलन हो गया हैं. आखिर आंध्रप्रदेश पुलिस की अपनी जवाबदेही भी है. पानी नाक तक पहुंचने के पूर्व उसने विधायक को कैद कर लिया. मुकदमा जब भी चले.

इस अकबरुद्दीन के प्रकरण से दो तथ्यों पर गौर करना होगा. पहला तो यही कि फिर एक बार चंद हिंदुओं का वैचारिक ढकोसला और व्यावहारिक चालाकी उजागर हो गई. इन सेक्युलरजनों ने अकबरुद्दीन की समता वरुण गांधी, प्रवीण तोगड़िया, मोहन भागवत के बयानों से किया. मानों दो बुरी बातें मिलकर एक अच्छाई बन जाती हों. गणित का फामरूला यही कहता हैं. लेकिन तर्क यही है कि इन हिंदू अग्रणियों की आलोचना, र्भत्सना और विरोध कई जाने-माने हिंदू लोगों ने खुलकर और जमकर की है.

बिना किसी हिचक अथवा लाग-लपेट के. मगर छह महीने हो गए, एक भी इस्लामी तंजीम या गणमान्य मुसलमान नेता ने अकबरुद्दीन की निंदा नहीं की. अलबत्ता जामिया मिलिया इस्लामिया के कुलपति नवाब जंग साहब ने जरूर उंगली उठाई कि इतने वीडियो मिलने के बाद भी हैदराबाद पुलिस को अकबरुद्दीन के खिलाफ कार्रवाई में इतना विलंब क्यों हुआ? हिंदू और मुसलमान की समता करने वाले लोग घूर्तता से अथवा फिर जानकर एक प्रभावी तथ्य को नजरअंदाज कर देते हैं. धर्म के झंझटों से औसत हिंदू दूर ही रहता है. उस पर न कोई फतवा लागू होता है और न कोई मजहबी दबिश ही.
स्पष्ट है कि जिस दिन भारत का बहुसंख्यक कट्टर हो जाएगा, उसी दिन लाल किले पर भगवा परचम लहराएगा. महात्मा गांधी का यही श्रेष्ठतम योगदान रहा है, समन्वित भारतीय सोच की रचना में. यह उदार मजहबी गुण अल्पसंख्यकों में जिस दिन प्रस्फुटित होगा, देश में सच्ची गंगा-जमुनी संस्कृति ईमानदारी से उभरेगी. इस त्रासद तथ्य को अकबरुद्दीन सरीखे खल पुरुष भलीभांति जानते हैं. और इसका लाभ उठाते हैं. वर्ना आदिलाबाद की सभा में इस विधायक ने राम जन्मभूमि पर संदेह व्यक्त करते हुए यह न कहा होता कि कौन जाने कौशल्या कहां-कहां घूमी है और किस जगह राम पैदा हुए? तुर्रा यह कि अकबरुद्दीन की इस घिनौनी तकरीर पर उसके चालीस हजार श्रोतागण ताली पीटते रहे थे.

इससे भी ज्यादा पीड़ादायक तथ्य यह है कि सोनिया कांग्रेस के नेताओं ने अपनी प्रदेश सरकार को समय रहते सचेत नहीं किया कि हिंदुओं का भी यदा-कदा आदर किया करें.

अब सवाल उठता है कि पुलिस हरकत में कब और कैसे आई? राज्य शासन ने कोई भी निर्देश नहीं दिया कि अकबरुद्दीन के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए. विगत छह महीनों से वह तेलंगाना के जिलों में हिंदुओं के खिलाफ विषवमन करता रहा. अंतत: के करुणासागर नामक वकील ने 28 दिसम्बर, 2012 के दिन नामपल्ली अदालत में इस मुस्लिम विधायक के घोर सांप्रदायिक बयानों का संज्ञान लेने और मुकदमा कायम करने की अर्जी लगाई. पंद्रह दिन हुए इस अदालती निर्देश के जिसका पालन पुलिस को करना पड़ा.

जांच अधिकारी ए रघु ने तब लिखा कि अकबरुद्दीन के कई भड़काऊ भाषण रिकॉर्ड पर हैं. वे सांप्रदायिक विग्रह बढ़ाते हैं, इसके प्रमाण पर्याप्त है. इस विधायक के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी किया जा सकता है. उसे गिरफ्तार कर मुकदमा चलाया जा सकता है. इतना सब होते हुए भी अकबरुद्दीन को काफी समय मिल गया कि वे हाईकोर्ट से राहत पाने की कोशिश कर लें. लंदन की सैर कर आएं.

यूं तो मियां अकबरुद्दीन ओवेसी खुद को हबीबे मिल्लत कहते हैं, मगर मासूम अनपढ़ मुसलमानों को नमाज, मजहब, कुरआन शरीफ की आड़ में बरगलाते खूब हैं. चारमीनार इलाके के पास चंद्रायन गुट्टा के झुग्गी-झोपड़ी में गुर्बत और बीमारी से ग्रसित पसमांदा मुसलमानों के वोट पर सियासत करने वाले अकबरुद्दीन हैदराबाद के सबसे आलीशान और महंगे इलाके बंजारा हिल्स की हवेली में वास करते हैं.
जायजाद और जमीन कब्जाने के मामले में अकबरुद्दीन पर बिल्डर मोहम्मद पहलवान ने मई, 2011 के दिन तीन गोलियां चलाई थीं. वे जान बचाकर भागे. उर्दूभाषी पत्रकार इस विधायक की बेजा हरकतों को उजागर करते रहे हैं. मगर सोनिया कांग्रेस की सरकार का वरदहस्त उसे मिला हुआ हैं. अकबरुद्दीन गुलबर्गा मेडिकल कॉलेज पढ़ने गए थे मगर दो साल में ही छोड़ आए. बजाय डॉक्टर बनकर मरीज का उपचार करने के, वे जहरीली फिरकापरस्ती वाली सियासत में जमकर समाज को बीमार बना रहे हैं. यह घिनौनी सांप्रदायिक विरासत अकबरुद्दीन को मजलिस की परंपरा के मुताबिक मिली.

मजलिस की स्थापना निजाम ओस्मान अली ने 1927 में की थी. तभी यह स्पष्ट हो गया था कि हैदराबाद की रियासत दक्षिण भारत में मुस्लिम कट्टरवादियों का केंद्र बनेगी. मोहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग की यह इकाई पाकिस्तान की रचना में सक्रिय रही. आजादी मिलने के चंद महीनों में ही हैदराबाद रियासत पाकिस्तान में शामिल होना चाहती थी. मगर सरदार वल्लभभाई पटेल ने निजाम का अलग राज्य का सपना खत्म कर हैदराबाद को भारतीय संघ का प्रदेश बना लिया. मजलिस को प्रतिबंधित कर दिया. मगर नेहरू कांग्रेस ने मजलिस को फिर मान्यता दे दी. आज वह फुंसी एक फोड़ा बन गई हैं. अकबरुद्दीन उसके नासूर बन गए हैं, जो सेक्युलर गणराज्य में रिसते रहे हैं. फिर भी कुछ लोग है जो इतना सब बर्दाश्त करते हैं, ताकि गंगा-जमनी तहजीब बनी रहे.

साभार: राष्‍ट्रीय सहारा

Thursday, January 10, 2013

पाकिस्‍तान से हर तरह के संबंध समाप्‍त हो


डॉ0 संतोष राय

अखिल भारत हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय कार्यवाहक अध्यक्ष बाबा पं0 नंद किशोर मिश्र की अध्यक्षता में वीरगति प्राप्त भारतीय सैनिकों के प्रति भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की व उनके परिजनों व समस्त भारतीय सेना परिवार के साथ अपनी संवेदना प्रकट की। इसके उपरांत इस विषय पर एक बैठक की गई जिसमें दो मिनट का मौन रखकर बलिदानी अमर हुतात्माओं की आत्मा की शांति के लिये प्रार्थना की गई। प्रतिक्रिया में मारे गये किसी भी पाकिस्तानी सैनिक के परिवार से भी सहानुभूति प्रकट की। इसके साथ भारत व पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों को खुला पत्र लिखा गया। खुले पत्र की कापी संलग्न है।

खुला पत्र

माननीय सरदार मनमोहन सिंह जी
प्रधानमंत्री, भारत
       व
जनाब राजा परवेज अशरफ
प्रधानमंत्री, पाकिस्तान

अखिल भारत हिन्दू महासभा सदा ही अखण्ड भारत की पक्षधर रही है। हम आज भी अखण्ड भारत की विचारधारा के समर्थक हैं। वर्तमान पाकिस्तान जो अखण्ड भारत का विखण्डित क्षेत्र है, वह भी हमारा है और वहां के नागरिक भी हमारे ही हैं। यह बड़े दुर्भाग्य का विषय है कि एक सांप्रदायिक विचारधारा का शिकार होकर राष्ट्र का विभाजन हुआ और उसी जेहादी मानसिकता के चलते शत्रुता चरमसीमा पर पहुंच गयी है।

आप दोनों महाअनुभवी ऐसे पद पर सुशोभित हैं कि इस शत्रुता को मित्रता व चिरकालीन अखण्डता में परिवर्तित कर सकते हैं। मीडिया इस संवेदनशील बिन्दु को समझे व मीडियाधर्म व राष्ट्रधर्म का निर्वाह करें।

कल 8/1/2013 को पुंछ एवं मढेर भारतीय सैनिकों के उपर हमला व उनके शवों से कायरतापूर्ण व लज्जाजनक व्यवहार की आप अधिकारिक तौरपर निंदा करें व आपसे यह आशा की जाती है कि मानवता के दोषी अपराधियों पर वियाना समझौते के तहत कार्यवाही करेंगे। यदि अविलंब कार्यवाही व दोषियों को सजा नही दी गयी तो दोनों राष्ट्रों के बीच संबंधों का कोई औचित्य नही रह जायेगा।
इस स्थिति में भारत व पाकिस्तान के बीच किसी भी प्रकार का राजनयिक, सैलानी, व्यापारिक, सांस्कृतिककर्मियों व खेल में किसी भी प्रकार का कोई आदान-प्रदान अखिल भारत हिन्दू महासभा सहन नही करेगी।

Monday, January 7, 2013

सोये शेर को मत जगाओ वर्ना टुकड़े-टुकड़े हो जाओगे


डॉ0 संतोष राय

अखिल भारत हिन्‍दू महासभा के राष्‍ट्रीय कार्यकारी अध्‍यक्ष बाबा पं0  नंद किशोर मिश्र ने कहा कि अखिल भारत हिन्‍दू महासभा भाग्‍यनगर  के  निजाम की निजामियत को तोड़कर निजाम की औकात बता दी थी और हिन्‍दुओं को अधिकार दिलाने  का श्रेय अखिल भारत हिन्‍दू महासभा का है। जब-जब  हिन्‍दुस्‍थान में साम्राज्‍यवादी इस्‍लामिक, जेहादी कट्टरपंथियों नें राष्‍ट्र को चुनौती दी तो हिन्‍दू महासभा ने उस चुनौती को स्‍वीकार की। अखिल भारत हिन्‍दू महासभा आन्‍ध्र प्रदेश  में अकबरुद्दीन ओवैसी के चुनौती को स्‍वीकार करते हुये भाग्‍य नगर में ही एक बड़े कार्यक्रम के आयोजन के माध्यम से कट्टरपंथी ओवैसी भाईयों का मुंहतोड़ जवाब देगी।



बाबा पं0  नंद किशोर मिश्र ने ओवैसी द्वारा मुसलमानों को भड़काने वाले जेहादी भाषण की तीव्र निंदा की है। ज्ञात रहे कि अकबरुद्दीन  हैदराबाद के सांसद असादुद्दीन ओवैसी का छोटे भाई है। अकबरूद्दीन ने  गत 24 दिसंबर को आदिलाबाद में एक जलसे में खुलेआम मुसलमानों को हिन्दुओं के खिलाफ उकसाया था। भारत जैसे देश में इस तरह अल्‍पसंख्‍यकों को इस तरह उकसाना भारी अपराध है।  अपने भाषण में उसने हिन्दू मंदिरों और प्रतीकों के प्रति आपत्तिजनक टिप्पणी किया था और सौ करोड़ हिन्‍दुओं को  15 मिनट के लिये पुलिस हटा लेने पर समाप्‍त करने की बात कही थी। अकबरूद्दीन के उपरोक्‍त  बयानों की निंदा करते हुये बाबा नंद किशोर मिश्र ने कहा कि यदि इस देश में यदि अल्‍पसंख्‍यक सुरक्षित हैं तो पुलिस व्‍यवस्‍था के कारण। ऐसे में यदि पुलिस हटा ली जाये तो इस  देश  में अल्‍पसंख्‍यकों  का जीना दूभर हो जायेगा। (See the His Video)

आगे हिन्‍दू महासभा के वरिष्‍ठ नेता श्री मिश्र ने कहा अकबरूद्दीन का बयान किसी भी तरह क्षम्‍य नही है। इस तरह के बयान मुसलमानों को आतंकवाद की ओर बढ़ने के लिये प्रेरित करते हैं जो आगे भयानक  दंगों का रूप ले लेते हैं। ऐसे मुस्लिम नेता इस्‍लामिक जेहाद से प्रेरणा लेकर  गोधरा करते हैं और बाद में जिसका  दुष्‍परिणाम गुजरात  होता  है। उन्‍होंने कहा कि यदि इस ओवैसी पर लगाम नही लगाया गया  तो देश को इसका बर्बर, भयानक  दुष्‍परिणाम झेलने के  लिये तैयार रहना चाहिये। ऐसे दुष्‍ट और कुटिल नेता ही हिन्‍दू-मुस्लिम के बीच घृणा के बीज बोते हैं, और उसी पर अपनी राजनीति चमकाने का प्रयास करते हैं। इसलिये ऐसे जेहादी मानसिकता वाले मुस्लिम नेता  को अविलंब  गिरफ्तार  करना चाहिये। बाबा  नंद किशोर  मिश्र ने कहा कि छोटी-छोटी बातों  पर आम जनता को गिरफ्तार  करने वाली पुलिस उसे गिरफ्तार करने से क्‍यों बचती है। यदि ओवैसी को अविलंब गिरफ्तार नही किया जाता  तो  उसका खामियाजा  उसके समर्थन करनें वाली तथाकथित  धर्म निरपेक्ष  पार्टियों को भी भुगतना होगा।

      वरिष्‍ठ नेता श्री बाबा पं0 नंद किशोर मिश्र ने कहा कि वरिष्‍ठ पत्रकार  एम जे अकबर ने कहा है कि भारत का डेढ़ प्रतिशत हिन्‍दू यदि सड़कों पर उतर आये तो पुलिस में वो दम नही कि उसे काबू कर सके।    बाबा पं0 नंद किशोर मिश्र ने आगे कहा कि देश का 100 करोड़ हिन्‍दू किसी भी हालत में अपने भगवान श्रीराम व उनकी माता कौशिल्‍या का अपमान व देवी-देवताओं का अपमान होते हुये नही सहेगा। ज्ञात हो कि अकबरूद्दीन ओवैशी ने सार्वजनिक रूप से एक जलसे में भगवान राम, माता कौशिल्‍या व हिन्‍दू देवी-देवी देवताओं का अपमान किया था, मजाक उड़ाते हुये उन्‍हें मनहूस कहा था। श्री मिश्र ने कहा  अगर ओवैशी इस तरह हरकतों से बाज नही आता है तो हिन्‍दू महासभा डायरेक्‍ट ऐक्‍शन में विश्‍वास रखती है, ओवैशी जैसे गीदड़ सोये हुये शेर को मत छेडे़  वर्ना तन्‍द्रा टूटने पर शेर ओवैसी जैसे लोगों की वो दुर्गति करेगा,  जिसे जेहादी मानसिकता  वाले कभी भूलाये  नही भूलेंगे।

      बाबा नंद किशोर  मिश्र ने अंत में  कहा कि हिन्‍दू महासभा के वरिष्‍ठ नेता चुनाव आयोग से  मिलेंगे व ओवैसी की विधानसभा सदस्‍यता व उसके पार्टी की मान्‍यता रद्द कराने की मांग करेंगे।

Friday, January 4, 2013

पुलिस आयुक्त के इस्तीफे की मांग पर हिन्दू महासभा ने किया पुलिस मुख्यालय पर प्रचण्ड प्रदर्शन


डॉ0 संतोष राय

पुलिस आयुक्त नीरज कुमार से इस्तीफा मांगते हुये अखिल भारत हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री बाबा पं0नंद किशोर मिश्र के सान्निध्य और दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष रविन्द्र द्विवेदी के नेतृत्व में सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने पुलिस मुख्यालय पर प्रचण्ड प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी दोपहर एक बजे पुलिस मुख्यालय पर एकत्र हुये और रविन्द्र द्विवेदी के नेतृत्व में जमकर नारेबाजी की।

प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुये रविन्द्र द्विवेदी ने कहा कि दामिनी बलात्कार काण्ड के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे छात्र-छात्राओं पर पुलिस का बर्बर अत्याचार और दिल्ली को देश का बलात्कार के मामले में अव्वल राज्य घोषित करना बेहद शर्मनाक है। दिल्ली में कानून व्यवस्था चरमरा गयी है जिसके लिये पुलिस प्रशासन जिम्मेदार है। इस जिम्मेदारी के आधार पर उन्होने पुलिस आयुक्त नीरज कुमार से इस्तीफा मांगा।

रविन्द्र द्विवेदी ने थाना सराय रोहिल्ला पर न्यायिक आदेश की अवमानना करने का आरोप लगया और दोषी पुलिसकर्मियों को दण्डित करने की मांग की। उन्होने कहा कि तीस हजारी न्यायालय और कड़कड़डूमा न्यायालय से तीन बार अभियुक्त दिनेश कुमार को गिरफ्तार करने का न्यायिक आदेश जारी हुआ जिसका पालन करने में स्थानीय पुलिस असफल रहीजो न्याय की हत्या है। उन्होने कहा कि पुलिस अभियुक्त दिनेश कुमार को बचाने में अपनी वर्दी की ताकत का इस्तेमाल कर रही है। उन्होने अभियुक्त दिनेश कुमार को तत्काल गिरफ्तार कर उसकी पत्नी सुधा कुमारी को न्याय दिलाने की मांग की।

हिन्दू महासभा विधि प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष सुशील मिश्र ने अपने संबोधन में बुराड़ी थाना का मामला उठाते हुये कहा कि जनवरी 2010 से लापता ममता और उसके परिवार का पता लगाने और एफआईआर दर्ज करने से संबंधित कई बार ज्ञापन दिया गया। पुलिस एफआईआर दर्ज नही कर रही और न ही लापता परिवार की तलाश करने में रूचि ले रही है। उन्होने तत्काल मामले की एफआईआर दर्ज कर ममता और उसके परिवार का पता लगाने की मांग की।

 प्रदर्शनकारियों को हिन्दू महासभा उत्तर भारत के विधि परामर्शदाता अधिवक्ता संजया शर्मादिल्ली प्रदेश के प्रभारी स्वामी जयनाथ औघड़वीरवरिष्ठ प्रदेश महामंत्री रोहित राघवप्रदेश महामंत्री दर्शन शेर सिंह भल्लाप्रदेश संगठन मंत्री अधिवक्ता संजय चौधरीहिन्दू स्वराज्य सेना के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष रविन्द्र भाटीऑल इण्डिया क्राइम हाई लाइटिंग एण्ड सोशल वेलफेयर आर्गनाइजेशन के अध्यक्ष अधिवक्ता शिव कुमार खिच्चीजनता की आवाज के अध्यक्ष कवि श्याम बनारसी सहित अनेंक वक्ताओं ने संबोधित किया और थाना सराय रोहिल्ला के प्रभारी को बर्खास्त करने और पुलिस आयुक्त से इस्तीफे की मांग की आवाज बुलंद की।

प्रदर्शनकारियों का पांच सदस्यीय प्रतिनिधि मण्डल हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री पं0 नंद किशोर मिश्र के नेतृत्व में पुलिस मुख्यालय को अपनी मांगों का ज्ञापन दिया। ज्ञापन में उपरोक्त मांगों के अलावा थाना तिमारपुर पर हिन्दू महासभा के कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न रोकने और महासभा नेता कन्हैया लाल राय और मदन लाल गुप्ता पर बनाये फर्जी मामले वापस लेने तथा थाना बिंदापुर के हेड कांस्टेबल  महेंद्र के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने की मांग की गयी। प्रतिनिधि मंडल में अधिवक्ता संजया शर्माजयनाथ औघड़ वीरअधिवक्ता संजय चौधरी और श्रीमती सुधा कुमारी शामिल थे। प्रतिनिधि मंडल ने पुलिस मुख्यालय को चेतावनी देते हुये कहा कि एक सप्ताह में समस्त मांगे नही मानी जाती तो हिन्दू महासभा अपनी मांगों के समर्थन में आंदोलन तेज करेगी।

प्रदर्शन में हिन्दू संत सभा के प्रचारक बाबा विजय बहादुर सिंह सेगररमेश बाल्मीकिश्रीमती गुरमीत कौरश्रीमती सुधा कुमारी0प्र0 हिन्दू महासभा के वरिष्ठ नेता ओंकार नाथ उपाध्याय सहित सैकड़ों कार्यकर्ताओं और महिलाओं ने हिस्सा लिया।