Wednesday, June 29, 2011

हिन्दुओं का पलायनवाद : आखिर कब तक


अनिल धनकर 
प्रस्‍तुति-डॉ0 संतोष राय
हिन्दू पलायनवादी क्यों है? हिन्दू कब तक सहेंगे और कब तक समझौतावादी बने रहेंगे। समझौतावाद ही हमारी कमजोरी बन गया है। और जब तक ये समझोतावाद बना रहेगा तब तक दुसरे लोग हमे ऐसे ही झुकाते रहेंगे। और ऐसे ही हम अपनी इस मात्रभूमि, जन्मभूमि, कर्मभूमि, पुण्यभूमि भ...ारत वर्ष का बटवारा होते देखते रहेंगे। सर्वपर्थम अरबों ने सिंध पर हमला किया, राजा दाहिर अकेले लड़े बाकि पूरा भारत देखता रहा। परिणाम, अरबों की जीत हुई, मुहम्मद बिन कासिम ने सिन्धी हिन्दुओ और बौद्धों का कत्लेआम किया, औरतों को गुलाम बनाकर फारस, बगदाद और दमिश्क के बाजारों में बेचा। जबरन धर्मांतरण करा कर मुस्लमान बनाया। सिंध भारत वर्ष से अलग हो गया। बाकि हिन्दुओं ने सोचा कि इस्लाम की आंधी उन तक नहीं आयेगी, वे चुप रहे। और सिंध से पलायन कर गए।
फिर बारी आई मुल्तान और गंधार की। मुल्तान जिसका वर्णन ऋग्वेद समेत लगभग सभी वैदिक ग्रंथो में है। मुल्तान का सूर्य मंदिर पुरे भारत वर्ष में काशी विश्‍वनाथ की तरह पूजनीय था। अरबों ने हमला किया सब तहस नहस कर दिया। सूर्य मंदिर तोड़ा, हिन्दुओं का कत्लेआम किया, तलवार की नोंक पर मुसलमान बनाया। पूरा भारत वर्ष चुप रहा। सोचा चलो मुल्तान गया बाकि भारत तो बचा। अब इस्लाम की आंधी और आगे नहीं बढ़ेगी। प्रतिकार नहीं किया।
मामा शकुनी का गंधार गया। राजा विजयपाल का साथ किसी ने नहीं दिया। हम फिर पलायन कर गए। सोचा बस इस्लाम की आंधी और आगे नहीं बढ़ेगी, बाकी भारत तो हमारे पास है। अगर सिंध, मुल्तान, गंधार के समय ही हिन्दुओं ने प्रतिकार किया होता तो इस्लाम की आंधी वही रुक जाती। परन्तु हमारा समझौतावादी और पलायनवादी रवैया जारी रहा। आज हम गांधीवाद का रोना रो रहे है, अरे तब तो गाँधी जी नहीं थे।
गजनी ने सोमनाथ तोड़ा। गुजरात को छोड़ कर सारा भारत चुप रहा। क्या सोमनाथ केवल गुजरात का था। सोमनाथ बारह ज्योतिर्लिंगों में से सर्वप्रथम है जिसका वर्णन ऋग्वेद में भी है। उस सोमनाथ के टूटने पर सारा भारत चुप रहा। गजनी यहीं नहीं रुका उसने मथुरा का श्रीकृषण जन्मभूमि मंदिर तोड़ा, मोहम्मद गोरी ने काशी विशाव्नाथ तोड़ा, बाबर ने श्रीराम जन्मभूमि का मंदिर तोड़ा और उस पर बाबरी मस्जिद बनवाई, औरंगजेब ने सोमनाथ, काशी विश्वनाथ और श्रीकृष्‍ण जन्मभूमि को पुनः तोड़कर पवित्र जगहों पर मस्जिदे बनवाई। मगर हम चुप रहे, सब कुछ सह गए। हमारे समझोतावादी और पलायनवादी रुख ने हमे फिर ठगा।
जब जब सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा और काशी पर किसी भी मुस्लिम शासक का राज हुआ उसने मंदिरों को तोड़ने के नए कीर्तिमान बनाये। इतिहासकार सीताराम गोयल, अरुण शौरी, रामस्वरुप के अनुसार मुस्लिमों ने इस देश में दो हजार मंदिरों को तोड़ कर उनके स्थान पर मस्जिदों का निर्माण कराया। क्या इतिहास में कभी किसी हिन्दू शासक ने कोई मस्जिद तुड़वाकर उसके स्थान पर मंदिर बनाया। क्या कोई हमें बताएगा। और तो और मुगलों के शासन के बाद जब अयोध्या, मथुरा, काशी पर हिन्दू मराठों का शासन आया तो भी उन्होंने पवित्र मंदिरों को तोड़ कर गर्भगृह की जगह पर बनाई गई मस्जिदों को नहीं हटाया। अयोध्या, मथुरा, काशी कोई गली नुक्कड़ पर बने हुए मंदिर नहीं थे। काशी विश्वनाथ, ऋग्वेद में वर्णित बारह ज्योतिर्लिंगों में से सर्वोच्च। अयोध्या का मंदिर जहा राम जी का जन्म हुआ। मथुरा का मंदिर जहाँ कृष्‍ण का जन्म हुआ ये पलायनवाद और समझौतावाद आज तक जारी है।
नेहरु, गाँधी और कांग्रेस ने देश का बंटवारा कराया हम चुप रहे। जिन्नाह और मुस्लिम लीग से ज्यादा देश के बटवारे के लिए यही लोग जिम्मेदार थे। ऋग्वेद की जन्मस्थली सिंध चला गया। वो सिंध जहाँ हमारी सभ्यता का जन्म हुआ। गुरुओं की धरती पंजाब चला गया। वो पंजाब जहाँ भगत सिंह का जन्म हुआ। पूर्वी बंगाल चला गया, जहाँ इक्यावन आदि शक्ति पीठों में से छ: शक्ति पीठ मौजूद है। जिनकी दुर्दशा आज वहां की सरकार और जनता ने बना दी है। मगर इस देश में मस्जिदें आज भी सीना ताने खड़ी है। हम फिर पलायन कर गए, नेहरु और गाँधी की बातों में आकर बंटवारा स्वीकार कर लिया। किसका बंटवारा भारत माँ का बंटवारा। भाग कर सेकुलर इंडियामें आ गए। आ गए या मारकर भगाए गए ये हम सब जानते है।
आधा कश्मीर गया हम तब भी चुप रहे। कश्मीर में मस्जिदों से नारे लगाये गए। हिन्दू मर्दों के बिना, हिन्दू औरतों के साथ, कश्मीर बनेगा पाकिस्तान। हम क्यों चुप रहे। क्या कश्मीर केवल कश्मीरी हिन्दुओं की समस्या है हमारी नहीं।
जरा याद करो कैसे फिलिस्तीन के मुसलमानों के लिए सारी दुनिया के मुसलमान एक हो जाते है। तो फिर कश्मीर के हिन्दुओं के लिए हम क्यों एक नहीं हुए।
वो कहते है हंस के लिया पाकिस्तान, लड़ के लेंगे हिंदुस्तानऔर हम अब भी कह रहे है कि पाकिस्तान के साथ बात करेंगे।
हम क्यों नहीं सोचते सिंध, पश्चिम पंजाब और पूर्वी बंगाल को वापस लेने की। आखिर वो भी तो हमारी भारत माँ के अंग है। जिस दिन हम ऐसा सोचने लगेंगे उस दिन से भारत वर्ष फिर बढ़ने लगेगा और अखंड भारत फिर साकार रूप लेगा।

दिग्विजय सिंह बेनकाब !


बी.एन.शर्मा

प्रस्‍तुति- डॉ0 संतोष राय

दिग्विजय सिंह उर्फ़ दिग्गी राजा अपने हिन्दू विरोधी विचारों ,और बेतुके बयानों के लिए जाने जाते हैं .सभी लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि दिग्गी को सभी हिन्दू संगठनों से घोर एलर्जी है .चाहे वह आर एस एस हो या बी जे पी .चाहे बाबा रामदेव हों या अन्ना हजारे .दिग्गी कि नजर में वे सब लोग आतंकवादी और भ्रष्ट हैं ,जो भ्रष्टाचार का विरोध करता हो .लोग यह भी जानते हैं कि दिग्गी ने मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री की कुर्सी फिर से हथियाने के लिए चापलूसी और खुशामदखोरी की हदें पर कर दी हैं . 
अपनी इसी स्वामीभक्ति के कारण वह पार्टी के महामंत्री और उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रभारी बनाये गए है .कान्ग्रेसिओं की नजर में दिग्गी एक वरिष्ठ .निष्ठावान ,और पार्टी के प्रति समर्पित नेता हैं . 
लेकिन यदि कोई यह कहे कि दस सालतक मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री रहते हुए ,दिग्गी ने खुद कांग्रस को चूना लगाया ,भोपाल स्थित कांग्रेस के कार्यालय "जवाहर भवन 'को फर्जी ट्रस्ट बनाकर अपने क़ब्जे में कर लिया ,भवन से लगी हुई दुकानों का किराया हड़प कर लिया ,अदालत में झूठा शपथ पत्र दिया ,अपने लोगों को फर्जी कंपनिया बना कर रुपयों का घोटाला किया ,पार्टी में अपराधियों को संरक्षण दिया .तो कांग्रेसी ऐसा कहने वाले को फ़ौरन आर एस एस का आदमी कह देंगे ,और अगर कोई यह कहे कि दिग्विजय सिंह सार्वजनिक रूप से इंदिरा गाँधी को "राजनीतिक वेश्या "और सोनिया को "फोरेन"यानी विदेशी कहता था ,तो कांग्रेसी उस व्यक्ति को बाबा रामदेव ,या अन्ना हजारे का चमचा कह देंगे . 
लेकिन यह सब आरोप किसी संघी या बाबा रामदेव के आदमी ने नहीं ,बल्कि मध्य प्रदेश कांगेस पार्टी के चेयर मेन Chairman ने लगाये हैं जो सन 1978 से 1993 तक पार्टी में बने रहे .और उनको Minister Status का दर्जा प्राप्त था .यही नहीं ,यह व्यक्ति राजीव गांधी के काफी निकट थे .इनके कार्यकाल में अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह एम् .पी में मुख्य मंत्री रहे .इन महोदय का नाम श्री आर. एम् .भटनागर है .आज इनकी आयु 76 के लगभग है .भटनागर जी ने दिग्विजय पर जो भी आरोप लगाये हैं .वह उन्होंने शपथ पूर्वक बताये हैं .जिनकी पुष्टि ,अखबारों ,विधानसभा के रिकार्ड ,और प्रमाणिक गुप्त दस्तावेजों से होती है .यही श्री भटनागर ने इसकी सूचना Top Secret पत्र दिनांक 9 अगस्त 1998 और दिनांक 29 सितम्बर 2001 को सोनिया को देदी थी .यह खबर इंदौर से साप्ताहिक "स्पुतनिक "ने अपने अंक 42 वर्ष 47 औरदिनांक 31 जनवरी -6 फरवरी के अखबार में विस्तार में छापी थी ., 
अब हम दिग्विजय के कुछ कारनामों का सप्रमाण एक एक करके भंडा फोड़ेंगे जैसे 1 .जवाहर भवन की संपत्ति हड़प करना ,2 .अपने लोगों को नाजायज फायदा पंहुचाना ,3 .अपराधियों को संरक्षण देना ,4 इंदिरा गाँधी के लिए वेश्या कहना . 
1 -जवाहर भवन की संपत्ति गबन करना 
दिग्विजय सिंह ने पहला घोटाला कांग्रेस की सम्पति को हड़प करने का किया था .सन 2006 से पूर्व म.प्र काग्रेस कमेटी का मुख्य कार्यालय लोक निर्माण विभाग के एक शेड में कहता था. बादमे मद्य प्रदेश कांग्रेस कमिटी को अपना भवन बनाने हेतु म.प्र. आवास और पर्यावरण विभाग ने आदेश क्र. 3308 /4239 दिनांक 30 /11 /74 और पुनर्स्थापित आदेश दिनांक 30 अगस्त 1980 तथा आदेश दिनांक 20 /11 81 द्वारा रोशन पूरा भोपाल के नुजूल शीट क्रमांक 3 प्लाट 7 में 5140 वर्ग फुट जमीं बिना प्रीमियम के एक रूपया वार्षिक भूभाट लेकर स्थायी पट्टे पर आवंटित कर दिया था .और उस भूखंड का विधिवत कब्ज़ा कांग्रस कमिटी को नुजूल से लेकर 23 /11 81 को सौप दिया .भवन निर्माण हेतु सदस्यों और किरायेदारों से जो रुपया जमा हुआ उस से तीन मंजली ईमारत बनायीं गयी .जिसमे दो बड़े हाल और साथ में 59 दुकानें भी थीं .इस भवन का नाम "जवाहर भवन शोपिंग कोम्प्लेक्स "रखा गया. इस भवन की भूमि पूजा तत्कालीन मुख्य मंत्री अर्जुन सिंह ने 16 अगस्त 1984 को की थी.और उद्घाटन राजीव गाँधी ने किया था. निर्माण हेतु सदस्यों के चंदे से 29 .84 लाख और किराये से 66 .78 लाख जमा हुए थे. और कराए की राशी से पार्टी का खर्च चलने की बात कही गयी थी . 
बबाद में दिग्विजय सिंह ने 19 /12 /85 को एक फर्जी ट्रस्ट बनाकर उस भवन पर कब्ज़ा कर लिया .यद्यपि उस ट्रस्ट का नाम "कांग्रेस कमिटी ट्रस्ट "था लेकिन उसका कांग्रेस से कोई सम्बन्ध नहीं था .दिग्विजय ने अनुभागीय अधिकारी (तहसीलदार )के समक्ष शपथपत्र देकर कहा की यह ट्रस्ट पुण्यार्थ है. और जवाहर भवन की सारी चल अचल सम्पति इसी ट्रस्ट की है .इस तरह कांग्रस दिग्विजय की किरायेदार बन गई .देखिये 
(देशबंधु दिनांक 6 दिसंबर 1998 ) दिग्विजय ने उस ट्रस्ट का खुद को अध्यक्ष बना दिया .उक्त ट्रस्ट में निम्न पदाधिकारी थे. 
अध्यक्ष -दिग्विजयसिंह पुत्र बलभद्र सिंह 2 .मोतीलाल वोरा ट्रस्टी 3 .जगत पाल सिंह मेनेजिंग ट्रस्टी . 
इस ट्रस्ट के विरुद्ध न्यायालय अनुभागीय अधिकारी तहसील हुजुर भोपाल में एक जनहित याचिका भी दर्ज कीगयी थी. जो प्रकरण संख्या 04 बी -113 /85 -86 दिनांक 12 जुलाई 88 में दर्ज हुआ था. बाद में यह मामला श्री आर .एम् .भटनागर ने विधान सभा में भी उठवाया.म.प्र. विधान सभा के प्रश्न संख्या 9 (क्रमांक 579 )दिनांक 23 फरवरी 96 को उक्त ट्रस्ट के बारे में श्री करण सिंह ने यह सवाल किया था .क्या राज्यमंत्री धार्मिक न्यास यह बताने का कष्ट करेंगे की इस ट्रस्ट के पंजीयन के समय तक कितनी बार ट्रस्टियों के नाम बदले गए हैं ?जैसा की भटनागर ने 24 दिसंबर 98 को प्रश्न किया था .और पंजीयक से शिकायत की थी ?
इस पर विधान सभा में राज्यमंत्री धार्मिक न्यास श्री धनेन्द्र साहू ने उत्तर दिया था कि अबतक उक्त ट्रस्ट के ट्रस्टी चार बार बदले गए हैं और ट्रस्ट के भवन कि दुकाने पट्टे पर नहीं बल्कि किराये पर दी गयीं है. और इसकी अनुमति भी नहीं ली गयी थी .यही नहीं उक्त ट्रस्ट कि औडिट रिपोर्ट भी 31 मार्च 2000 तक नहीं दी गयी है . 
इसके बाद दिग्विजय सिंह ने दुकानों से प्राप्त कराए क़ी पार्टी को न देकर अपने निजी काम में लगाना सुरु कर दिया .जिसकी खबर इंदौर से प्रकाशित "Free Press Journal "ने दिनांक 5 नवम्बर 1986 को इस हेडिंग से प्रकाशित की थी."Digvijay accused of misusing party funds " 
श्री भटनागर ने बताया कि जवाहर भवन की 59 दुकानों से मिलाने वाले किराये से प्रति माह दो तीन लाख रुपये कि जगह सिर्फ मुश्किल 65000 /- ही जमा होते थे .इस प्रकार अकेले 10 सालों में करोड़ों का घपला किया गया है. उक्त ट्रस्ट का खाता पंजाब नॅशनल बैंक की भोपाल टी .टी. नगर ब्रांच में थी .जिसका खता नुम्बर 19371 है. खाते से पता चला कि 1 अप्रेल 2001 से 26 मार्च 2003 तक ट्रस्ट से "एक करोड़ ,इक्कीस लाख ,एक हजार छे सौ उनचास "रुपये नकले गए थे. जिसमे सेल्फ के नाम से 162739 /- दिग्विजय ने निकला था .बैंक का लोकर भी थी .जिसमे कई मूल्यवान वस्तुएं भी थी जो भेंट में मिली थी .असके आलावा नकद राशी भी थी .भटनागर ने बताया कि उस समय खाते में ग्यारह करोड़ राशी थी .लोकर कि दो चाभियाँ थी .एक जगतपाल सिह के पास ,और दूसरी दिग्विजय के पास थी .जब जगतपाल कि मौत होजाने के बाद लोकर खोला गया तो उसकी कीमती चीजे गायब थी .और खाते से 9 करोड़ रुपयों का कोई हिसाब नहीं मिला,देखिये साप्ताहिक पत्र इंदौर से प्रकाशित"स्पुतनिक "दिनांक 31 जनवरी 2005 .
इसी पत्र में yah भी लिखा है कि दिग्विजय से ट्रस्ट से सेल्फ के नाम से 65000 /- निकाला था .और अपने मित्र राधा किशन मालवीय को स्कोर्पियो खरीदने को दिया था .बाद में उस गाड़ी को को शाजापुर में दुर्घटना ग्रस्त बता दिया था.आज भी जवाहर भवन दिग्विजय के कब्जे में है .श्री भटनागर ने इसकी शिकायत सोनिया को 31 जनवरी 2005 लिखित में शपथ पूर्वक कर दी थी .और मांग कि थी कि दिग्विजय से कांग्रेस की सम्पति वापस करवाई जाये .और उसे राजनीतिक सन्यास पर भेज दिया जाये .
वास्तव में दिग्विजय ऐसा व्यक्ति है जिसने खुद कांग्रेस को चूना लगाकर करोड़ों रुपये हड़प लिए .मेरे पास कई सबूत हैं .यदि कोई मित्र यह जानकारी बाबा राम देव या अन्ना हजारे तक पहुंचा दे तो यह दस्तावेज उनको भेजे जा सकते है . 
अगले एपिसोड में दिग्विजय के आर्थिक घोटालों का भंडा फोड़ किया जायेगा .आप अवश्य पढ़िए .!



1991-92 के बजट भाषण में वित्तमंत्री ने इसक इस फ़ाउण्डेशन को अनुदान के रूप में 100 करोड़




ऐसा नहीं है कि किसी ने भी सोनिया गाँधी के मालिकाना हकवाले इन फ़ाउण्डेशनों और ट्रस्टों के हिसाब-किताब और सम्पत्ति के बारे में जानने की कोशिश नहीं की। सूचना का अधिकार से सम्बन्धित बहुत से स्वयंसेवी समूहों, कुछ असली खोजी पत्रकारोंएवं कुछ स्वतन्त्र पत्रकारों ने कोशिश की। परन्तु आपको यह जानकर हैरानी होगी कि पिछले 3-4 साल से माथाफ़ोड़ीकरने के बावजूद अभी तक कोई खास जानकारी नहीं मिल सकी, कारण केन्द्रीय सूचना आयुक्त ने यह निर्णय दिया है कि राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन (Rajiv Gandhi Foundation)तथा जवाहरलाल मेमोरियल फ़ण्ड (Jawaharlal Memorial Fund) जैसे संस्थान सूचना के अधिकारकानून के तहत अपनी सूचनाएं देने के लिये बाध्य नहीं हैं। मामला अभी भी हाइकोर्ट तक पहुँचा है और RTI के सक्रिय कार्यकर्ताओं ने सूचना आयुक्त के अड़ियल रवैयेके बावजूद हार नहीं मानी है। RGF के बारे में सूचना का अधिकार माँगने पर अधिकारी ने यह जवाब देकर आवेदनकर्ता को टरका दिया कि राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन सूचना देने के लिये बाध्य नहीं है। यह फ़ाउण्डेशन एक सार्वजनिक उपक्रमनहीं माना जा सकता, क्योंकि इस फ़ाउण्डेशन को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कोई सरकारी अनुदान नहीं मिलता है, न ही सरकार की इसमें कोई भागीदारी है और न ही इसके ट्रस्टी बोर्ड के चयन/नियुक्ति में सरकार का कोई दखल होता हैअतः इसे सूचना का अधिकार के कार्यक्षेत्र से बाहर रखा जाता है…”
उल्लेखनीय है कि 21 जून 1991 को पूर्व प्रधानमंत्री के आदर्शों एवं सपनों”(?) को साकार रूप देने तथा देशहित में इसका लाभ बच्चों, महिलाओं एवं समाज के वंचित वर्ग तक पहुँचाने के लिये राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन की स्थापना की गई थी।
RTI कार्यकर्ता श्री षन्मुगा पात्रो ने सिर्फ़ इतना जानना चाहा था कि RGF द्वारा वर्तमान में कितने प्रोजेक्ट्स और कहाँ-कहाँ पर जनोपयोगी कार्य किया जा रहा है? परन्तु श्री पात्रो को कोई जवाब नहीं मिला, तब उन्होंने सूचना आयुक्त के पैनल में अपील की। आवेदन पर विचार करने बैठी आयुक्तों की पूर्ण बेंच, जिसमें एमएम अंसारी, एमएल शर्मा और सत्यानन्द मिश्रा शामिल थे, ने इस बात को स्वीकार किया कि राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन (RGF) की कुल औसत आय में केन्द्र सरकार का हिस्सा 4% से कम है, लेकिन फ़िर भी इसे सरकारी अनुदान प्राप्तसंस्था नहीं माना जा सकता। इस निर्णय के जवाब में अन्य RTI कार्यकर्ताओं ने तर्क दिया कि राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन की स्थापना की घोषणा केन्द्र सरकार के वित्त मंत्री द्वारा बजट भाषण में की गई थी। सरकार ने इस फ़ाउण्डेशन के समाजसेवा कार्यों के लिये अपनी तरफ़ से एक फ़ण्ड भी स्थापित किया था। इसी प्रकार राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन जिस इमारत से अपना मुख्यालय संचालित करता है वह भूमि भी उसे सरकार द्वारा कौड़ियों के मोल भेंट की गई थी। शहरी विकास मंत्रालय ने 28 दिसम्बर 1995 को इस फ़ाउण्डेशन के सेवाकार्यों(?) को देखते हुए जमीन और पूरी बिल्डिंग मुफ़्त कर दी, जबकि आज की तारीख में इस इमारत के किराये का बाज़ार मूल्य ही काफ़ी ज्यादा है, क्या इसे सरकारी अनुदान नहीं माना जाना चाहिये? परन्तु यह तर्क और तथ्य भी खारिजकर दिया गया।
इस सम्बन्ध में यह सवाल भी उठता है कि राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन को तो सरकार से आर्थिक मदद, जमीन और इमारत मिली है, फ़िर भी उसे सूचना के अधिकार के तहत नहीं माना जा रहा, जबकि ग्रामीण एवं शहरी स्तर पर ऐसी कई सहकारी समितियाँ हैं जो सरकार से फ़ूटी कौड़ी भी नहीं पातीं, फ़िर भी उन्हें RTI के दायरे में रखा गया है। यहाँ तक कि कुछ पेढ़ियाँ और समितियाँ तो आम जनता से सीधा सम्बन्ध भी नहीं रखतीं फ़िर भी वे RTI के दायरे में हैं, लेकिन राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन नहीं है। क्या इसलिये कि यह फ़ाउण्डेशन देश के सबसे पवित्र परिवार”(???) से सम्बन्धित है?
1991 में राजीव गाँधी के निधन के पश्चात तत्कालीन उपराष्ट्रपति ने राजीव गाँधी के सपनों को साकार करने और लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये एक ट्रस्ट के गठन का प्रस्ताव दिया और जनता से इस ट्रस्ट को मुक्त-हस्त से दान देने की अपील की। 1991-92 के बजट भाषण में वित्तमंत्री ने इसकी घोषणा की और इस फ़ाउण्डेशन को अनुदान के रूप में 100 करोड़ रुपये दिये (1991 के समय के 100 करोड़, अब कितने हुए?)। इसी प्रकार के दो ट्रस्टों (फ़ण्ड) की स्थापना, एक बार आज़ादी के तुरन्त बाद 24 जनवरी 1948 को नेहरु ने नेशनल रिलीफ़ फ़ण्डका गठन किया था तथा दूसरी बार चीन युद्ध के समय 5 नवम्बर 1962 को नेशनल डिफ़ेंस फ़ण्डकी स्थापना भी संसद में बजट भाषण के दौरान ही की गई और इसमें भी सरकार ने अपनी तरफ़ से कुछ अंशदान मिलाया और बाकी का आम जनता से लिया गया। आश्चर्य की बात है कि उक्त दोनों फ़ण्ड, अर्थात नेशनल रिलीफ़ फ़ण्ड और नेशनल डिफ़ेंस फ़ण्ड को सार्वजनिक हितका मानकर RTI के दायरे में रखा गया है, परन्तु राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन को नहीं
राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन को सरकार द्वारा नाममात्र के शुल्क पर 9500 वर्ग फ़ीट की जगह पर एक बंगला, दिल्ली के राजेन्द्र प्रसाद रोड पर दिया गया है। इस बंगले की न तो लाइसेंस फ़ीस जमा की गई है, न ही इसका कोई प्रापर्टी टैक्स भरा गया है। RGF को 1991 से ही FCRA (विदेशी मुद्रा विनियमन कानून 1976) के तहत छूट मिली हुई है, एवं इस फ़ाउण्डेशन को दान देने वालों को भी आयकर की धारा 80G के तहत छूट मिलती है, इसी प्रकार इस फ़ाउण्डेशन के नाम तले जो भी उपकरण इत्यादि आयात किये जाते हैं उन्हें भी साइंस एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च संगठन (SIRO) के तहत 1997 से छूट मिलती है एवं उस सामान अथवा उपकरण की कीमत पर कस्टम्स एवं सेण्ट्रल एक्साइज़ ड्यूटी में छूट का प्रावधान किया गया है… आखिर इतनी मेहरबानियाँ क्यों?
हालांकि गत 4 वर्ष के संघर्ष के पश्चात अब 2 मई 2011 को दिल्ली हाइकोर्ट ने इस सिलसिले में केन्द्र सरकार को नोटिस भेजकर पूछा है कि राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन को RTI के दायरे में क्यों न लाया जाए? उल्लेखनीय है कि हाल ही में मुम्बई में रिलायंस एनर्जी को भी RTI के दायरे में लाया गया है, इसके पीछे याचिकाकर्ताओं और आवेदन लगाने वालों का तर्क भी वही था कि चूंकि रिलायंस एनर्जी (Reliance Energy), आम जनता से सम्बन्धित रोजमर्रा के काम (बिजली सप्लाय) देखती है, इसे सरकार से अनुदान भी मिलता है, इसे सस्ती दरों पर ज़मीन भी मिली हुई हैतो यह जनता के प्रति जवाबदेह होना चाहिये। अन्ततः महाराष्ट्र सरकार ने जनदबाव में रिलायंस एनर्जी को RTI के दायरे में लाया, अब देखना है कि राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन और इस जैसे तमाम ट्रस्ट, जिस पर गाँधी परिवार कुण्डली जमाए बैठा है, कब RTI के दायरे में आते हैं। जब राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन सारी सरकारी मेहरबानियाँ, छूट, कर-लाभ इत्यादि ले ही रहा है तो फ़िर सूचना के अधिकार कानून के तहत सारी सूचनाएं सार्वजनिक करने में हिचकिचाहट क्यों?

बाबा रामदेव के पीछे तो सारी सरकारी एजेंसियाँ हाथ-पाँव-मुँह धोकर पड़ गई थीं, क्या राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन, जवाहरलाल मेमोरियल ट्रस्ट इत्यादि की आज तक कभी किसी एजेंसी ने जाँच की है? स्वाभाविक है कि ऐसा सम्भव ही नहीं हैक्योंकि जहाँ एक ओर दूसरों की सम्पत्ति का हिसाब मांगने का अधिकार सिर्फ़ कांग्रेस को हैवहीं दूसरी ओर अपनी सम्पत्ति को कॉमनवेल्थ, आदर्श, 2G और KG गैस बेसिन जैसे पुण्य-कार्योंके जरिये ठिकाने लगाने का अधिकार भी उसी के पास सुरक्षित हैपिछले 60 वर्षों से
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नोट :-
1) यह बात भी देखने वाली है कि बाबा रामदेव ने अपने कितने रिश्तेदारों को अपने ट्रस्ट में जोड़ा और लाभान्वित किया और राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन जैसे ट्रस्टों से गाँधी परिवार के कितने रिश्तेदार जुड़े और लाभान्वित हुए
2) हाल ही में 8 जून से 11 जून 2011 तक गाँधी परिवार के सभी प्रमुख सदस्य, श्री सुमन दुबे एवं राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन के कुछ अन्य सदस्य स्विटज़रलैण्ड की यात्रा पर गये थे, जिनमें से कुछ ने खुद को फ़ाइनेंशियल एडवाइज़रघोषित किया थाहै ना मजेदार बात?
3) श्री सुमन दुबे के पारिवारिक समारोह में शामिल होने ही राहुल गाँधी केरल गये थे जहाँ उन्हें सबरीमाला मन्दिर में हुई भगदड़ की सूचना मिली थी, लेकिन घायलों/मृतकों को देखने जाने की बजाय युवराज छुट्टी मनाने का आनन्द लेते रहे थे

Friday, June 24, 2011

मीडिया हिंदुत्‍व विरोधी क्‍यों है

प्रताप सिंह

प्रस्‍तुतिः डॉ0 संतोष राय

पहले इन रिश्तेदारियों पर एक नज़र डालिये, तब आप खुद ही समझ जायेंगे कि कैसे और क्योंमीडिया का अधिकांश हिस्साहिन्दुओं और हिन्दुत्व का विरोधी है, किस प्रकार इन लोगों ने एक नापाक गठजोड़तैयार कर लिया है, किस तरह ये सब लोग मिलकर सत्ता संस्थान के शिखरों के करीब रहते हैं, किस तरह से इन प्रभावशाली(?) लोगों का सरकारी नीतियों में दखल होता हैआदि।
पेश हैं रिश्ते ही रिश्ते – (दिल्ली की दीवारों पर लिखा होता है वैसे वाले नहीं, ये हैं असली रिश्ते)

-सुज़ाना अरुंधती रॉय, प्रणव रॉय (एनडीटीवी) की भांजी हैं।(नेहरु डायनेस्टी टीवी- NDTV)
-प्रणव रॉय काउंसिल ऑन फ़ॉरेन रिलेशन्सके इंटरनेशनल सलाहकार बोर्ड के सदस्य हैं।
-इसी बोर्ड के एक अन्य सदस्य हैं मुकेश अम्बानी।
-प्रणव रॉय की पत्नी हैं राधिका रॉय।
-राधिका रॉय, बृन्दा करात की बहन हैं।
-बृन्दा करात, प्रकाश करात (CPI) की पत्नी हैं।

-प्रकाश करात चेन्नै के डिबेटिंग क्लबग्रुप के सदस्य थे।
-एन राम, पी चिदम्बरम और मैथिली शिवरामन भी इस ग्रुप के सदस्य थे।
-इस ग्रुप ने एक पत्रिका शुरु की थी रैडिकल रीव्यू

-CPI(M) के एक वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी की पत्नी हैं सीमा चिश्ती।
-सीमा चिश्ती इंडियन एक्सप्रेस की रेजिडेण्ट एडीटरहैं।
-बरखा दत्त NDTV में काम करती हैं।
-बरखा दत्त की माँ हैं श्रीमती प्रभा दत्त।
-प्रभा दत्त हिन्दुस्तान टाइम्स की मुख्य रिपोर्टर थीं।
-राजदीप सरदेसाई पहले NDTV में थे, अब CNN-IBN के हैं (दोनों ही मुस्लिम + ईसाई supporter  चैनल हैं)।
-राजदीप सरदेसाई की पत्नी हैं सागरिका घोष।
-सागरिका घोष के पिता हैं दूरदर्शन के पूर्व महानिदेशक भास्कर घोष।
-सागरिका घोष की आंटी रूमा पॉल हैं।
-रूमा पॉल उच्चतम न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश हैं।
-सागरिका घोष की दूसरी आंटी अरुंधती घोष हैं।
-अरुंधती घोष संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थाई प्रतिनिधि हैं।
-CNN-IBN का ग्लोबल बिजनेस नेटवर्क” (GBN) से व्यावसायिक समझौता है।
-GBN टर्नर इंटरनेशनल और नेटवर्क-18 की एक कम्पनी है।
-NDTV भारत का एकमात्र चैनल है को अधिकृत रूप सेपाकिस्तान में दिखाया जाता है।
-दिलीप डिसूज़ा PIPFD (Pakistan-India Peoples’ Forum for Peace and Democracy) के सदस्य हैं।
-दिलीप डिसूज़ा के पिता हैं जोसेफ़ बेन डिसूज़ा।
-जोसेफ़ बेन डिसूज़ा महाराष्ट्र सरकार के पूर्व सचिव रह चुके हैं।

-तीस्ता सीतलवाड भी PIPFD की सदस्य हैं।
-तीस्ता सीतलवाड के पति हैं जावेद आनन्द।
-जावेद आनन्द एक कम्पनी सबरंग कम्युनिकेशन और एक संस्था मुस्लिम फ़ॉर सेकुलर डेमोक्रेसीचलाते हैं।
-इस संस्था के प्रवक्ता हैं जावेद अख्तर।
-जावेद अख्तर की पत्नी हैं शबाना आज़मी।

-करण थापर ITV के मालिक हैं।
-ITV बीबीसी के लिये कार्यक्रमों का भी निर्माण करती है।
-करण थापर के पिता थे जनरल प्राणनाथ थापर (1962 का चीन युद्ध इन्हीं के नेतृत्व में हारा गया था)।
-करण थापर बेनज़ीर भुट्टो और ज़रदारी के बहुत अच्छे मित्र हैं।
-करण थापर के मामा की शादी नयनतारा सहगल से हुई है।
-नयनतारा सहगल, विजयलक्ष्मी पंडित की बेटी हैं।
-विजयलक्ष्मी पंडित, जवाहरलाल नेहरू की बहन हैं।

-मेधा पाटकर नर्मदा बचाओ आन्दोलन की मुख्य प्रवक्ता और कार्यकर्ता हैं।
-नबाआं को मदद मिलती है पैट्रिक मेकुल्ली से जो कि इंटरनेशनल रिवर्स नेटवर्क (IRN)” संगठन में हैं।
-अंगना चटर्जी IRN की बोर्ड सदस्या हैं।
-अंगना चटर्जी PROXSA (Progressive South Asian Exchange Network) की भी सदस्या हैं।
-PROXSA संस्था, FOIL (Friends of Indian Leftist) से पैसा पाती है।
-अंगना चटर्जी के पति हैं रिचर्ड शेपायरो।
-FOIL के सह-संस्थापक हैं अमेरिकी वामपंथी बिजू मैथ्यू।
-राहुल बोस (अभिनेता) खालिद अंसारी के रिश्ते में हैं।
-खालिद अंसारी मिड-डेपब्लिकेशन के अध्यक्ष हैं।
-खालिद अंसारी एमसी मीडिया लिमिटेड के भी अध्यक्ष हैं।
-खालिद अंसारी, अब्दुल हमीद अंसारी के पिता हैं।
-अब्दुल हमीद अंसारी कांग्रेसी हैं।
-एवेंजेलिस्ट ईसाई और हिन्दुओं के खास आलोचक जॉन दयाल मिड-डे के दिल्ली संस्करण के प्रभारी हैं।

-नरसिम्हन राम (यानी एन राम) दक्षिण के प्रसिद्ध अखबार द हिन्दूके मुख्य सम्पादक हैं।
-एन राम की पहली पत्नी का नाम है सूसन।
-सूसन एक आयरिश हैं जो भारत में ऑक्सफ़ोर्ड पब्लिकेशन की इंचार्ज हैं।
-विद्या राम, एन राम की पुत्री हैं, वे भी एक पत्रकार हैं।
-एन राम की हालिया पत्नी मरियम हैं।
-त्रिचूर में आयोजित कैथोलिक बिशपों की एक मीटिंग में एन राम, जेनिफ़र अरुल और केएम रॉय ने भाग लिया है।
-जेनिफ़र अरुल, NDTV की दक्षिण भारत की प्रभारी हैं।
-जबकि केएम रॉय द हिन्दूके संवाददाता हैं।
-केएम रॉय मंगलमपब्लिकेशन के सम्पादक मंडल सदस्य भी हैं।
-मंगलम ग्रुप पब्लिकेशन एमसी वर्गीज़ ने शुरु किया है।
-केएम रॉय को ऑल इंडिया कैथोलिक यूनियन लाइफ़टाइम अवार्डसे सम्मानित किया गया है।
-“ऑल इंडिया कैथोलिक यूनियनके राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं जॉन दयाल।
-जॉन दयाल ऑल इंडिया क्रिश्चियन काउंसिल”(AICC) के सचिव भी हैं।
-AICC के अध्यक्ष हैं डॉ जोसेफ़ डिसूज़ा।
-जोसेफ़ डिसूज़ा ने दलित फ़्रीडम नेटवर्ककी स्थापना की है।
-दलित फ़्रीडम नेटवर्क की सहयोगी संस्था है ऑपरेशन मोबिलाइज़ेशन इंडिया” (OM India)
-OM India के दक्षिण भारत प्रभारी हैं कुमार स्वामी।
-कुमार स्वामी कर्नाटक राज्य के मानवाधिकार आयोग के सदस्य भी हैं।
-OM India के उत्तर भारत प्रभारी हैं मोजेस परमार।
-OM India का लक्ष्य दुनिया के उन हिस्सों में चर्च को मजबूत करना है, जहाँ वे अब तक नहीं पहुँचे हैं।
-OMCC दलित फ़्रीडम नेटवर्क (DFN) के साथ काम करती है।
-DFN के सलाहकार मण्डल में विलियम आर्मस्ट्रांग शामिल हैं।
-विलियम आर्मस्ट्रांग, कोलोरेडो (अमेरिका) के पूर्व सीनेटर हैं और वर्तमान में कोलोरेडो क्रिश्चियन यूनिवर्सिटी के प्रेसीडेण्ट हैं। यह यूनिवर्सिटी विश्व भर में ईसा के प्रचार हेतु मुख्य रणनीतिकारों में शुमार की जाती है।
-DFN के सलाहकार मंडल में उदित राज भी शामिल हैं।
-उदित राज के जोसेफ़ पिट्स के अच्छे मित्र भी हैं।
-जोसेफ़ पिट्स ने ही नरेन्द्र मोदी को वीज़ा न देने के लिये कोंडोलीज़ा राइस से कहा था।
-जोसेफ़ पिट्स कश्मीर फ़ोरमके संस्थापक भी हैं।
-उदित राज भारत सरकार के नेशनल इंटीग्रेशन काउंसिल (राष्ट्रीय एकता परिषद) के सदस्य भी हैं।
-उदित राज कश्मीर पर बनी एक अन्तर्राष्ट्रीय समिति के सदस्य भी हैं।
-सुहासिनी हैदर, सुब्रह्मण्यम स्वामी की पुत्री हैं।
-सुहासिनी हैदर, सलमान हैदर की पुत्रवधू हैं।
-सलमान हैदर, भारत के पूर्व विदेश सचिव रह चुके हैं, चीन में राजदूत भी रह चुके हैं।

-रामोजी ग्रुप के मुखिया हैं रामोजी राव।
-रामोजी राव ईनाडु” (सर्वाधिक खपत वाला तेलुगू अखबार) के संस्थापक हैं।
-रामोजी राव ईटीवी के भी मालिक हैं।
-रामोजी राव चन्द्रबाबू नायडू के परम मित्रों में से हैं।

-डेक्कन क्रॉनिकल के चेयरमैन हैं टी वेंकटरमन रेड्डी।
-रेड्डी साहब कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सदस्य हैं।
-एमजे अकबर डेक्कन क्रॉनिकल और एशियन एज के सम्पादक हैं।
-एमजे अकबर कांग्रेस विधायक भी रह चुके हैं।
-एमजे अकबर की पत्नी हैं मल्लिका जोसेफ़।
-एम जे अकबर अब प्रभु चावला की जगह सीधी बात मे आते है ! 
-मल्लिका जोसेफ़, टाइम्स ऑफ़ इंडिया में कार्यरत हैं।

-वाय सेमुअल राजशेखर रेड्डी आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।
-सेमुअल रेड्डी के पिता राजा रेड्डी ने पुलिवेन्दुला में एक डिग्री कालेज व एक पोलीटेक्नीक कालेज की स्थापना की।
-सेमुअल रेड्डी ने कहा है कि आंध्रा लोयोला कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उक्त दोनों कॉलेज लोयोला समूह को दान में दे दिये।
-सेमुअल रेड्डी की बेटी हैं शर्मिला।
-शर्मिला की शादी हुई है अनिल कुमारसे। अनिल कुमार भी एक धर्म-परिवर्तित ईसाई हैं जिन्होंने अनिल वर्ल्ड एवेंजेलिज़्मनामक संस्था शुरु की और वे एक सक्रिय एवेंजेलिस्ट (कट्टर ईसाई धर्म प्रचारक) हैं।
-सेमुअल रेड्डी के पुत्र जगन रेड्डी युवा कांग्रेस नेता हैं।
-जगन रेड्डी जगति पब्लिकेशन प्रा. लि.के चेयरमैन हैं।
-भूमना करुणाकरा रेड्डी, सेमुअल रेड्डी की करीबी हैं।
-करुणाकरा रेड्डी, तिरुमला तिरुपति देवस्थानम की चेयरमैन हैं।
-चन्द्रबाबू नायडू ने आरोप लगाया था कि लैंको समूहको जगति पब्लिकेशन्स में निवेश करने हेतु दबाव डाला गया था।
-लैंको कम्पनी समूह, एल श्रीधर का है।
-एल श्रीधर, एल राजगोपाल के भाई हैं।
-एल राजगोपाल, पी उपेन्द्र के दामाद हैं।
-पी उपेन्द्र केन्द्र में कांग्रेस के मंत्री रह चुके हैं।
-सन टीवी चैनल समूह के मालिक हैं कलानिधि मारन
-कलानिधि मारन एक तमिल दैनिक दिनाकरनके भी मालिक हैं।
-कलानिधि के भाई हैं दयानिधि मारन।
-दयानिधि मारन केन्द्र में संचार मंत्री थे।
-कलानिधि मारन के पिता थे मुरासोली मारन।
-मुरासोली मारन के चाचा हैं एम करुणानिधि (तमिलनाडु के मुख्यमंत्री)।
-करुणानिधि ने कैलाग्नार टीवीका उदघाटन किया।
-कैलाग्नार टीवी के मालिक हैं एम के अझागिरी।
-एम के अझागिरी, करुणानिधि के पुत्र हैं।
-करुणानिधि के एक और पुत्र हैं एम के स्टालिन।
-स्टालिन का नामकरण रूस के नेता के नाम पर किया गया।
-कनिमोझि, करुणानिधि की पुत्री हैं, और केन्द्र में राज्यमंत्री हैं।
-कनिमोझी, “द हिन्दूअखबार में सह-सम्पादक भी हैं।
-कनिमोझी के दूसरे पति जी अरविन्दन सिंगापुर के एक जाने-माने व्यक्ति हैं।
-स्टार विजय एक तमिल चैनल है।
-विजय टीवी को स्टार टीवी ने खरीद लिया है।
-स्टार टीवी के मालिक हैं रूपर्ट मर्डोक।

-Act Now for Harmony and Democracy (अनहद) की संस्थापक और ट्रस्टी हैं शबनम हाशमी।
-शबनम हाशमी, गौहर रज़ा की पत्नी हैं।
-“अनहदके एक और संस्थापक हैं के एम पणिक्कर।
-के एम पणिक्कर एक मार्क्सवादी इतिहासकार हैं, जो कई साल तक ICHR में काबिज रहे।
-पणिक्कर को पद्मभूषण भी मिला।
-हर्ष मन्दर भी अनहदके संस्थापक हैं।
-हर्ष मन्दर एक मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं।
-हर्ष मन्दर, अजीत जोगी के खास मित्र हैं।
-अजीत जोगी, सोनिया गाँधी के खास हैं क्योंकि वे ईसाई हैं और इन्हीं की अगुआई में छत्तीसगढ़ में जोरशोर से धर्म-परिवर्तन करवाया गया और बाद में दिलीपसिंह जूदेव ने परिवर्तित आदिवासियों की हिन्दू धर्म में वापसी करवाई।
-कमला भसीन भी अनहदकी संस्थापक सदस्य हैं।
-फ़िल्मकार सईद अख्तर मिर्ज़ा अनहदके ट्रस्टी हैं।

-मलयालम दैनिक मातृभूमिके मालिक हैं एमपी वीरेन्द्रकुमार
-वीरेन्द्रकुमार जद(से) के सांसद हैं (केरल से)
-केरल में देवेगौड़ा की पार्टी लेफ़्ट फ़्रण्ट की साझीदार है।
-शशि थरूर पूर्व राजनैयिक हैं।
-चन्द्रन थरूर, शशि थरूर के पिता हैं, जो कोलकाता की आनन्दबाज़ार पत्रिका में संवाददाता थे।
-चन्द्रन थरूर ने 1959 में द स्टेट्समैनकी अध्यक्षता की।
-शशि थरूर के दो जुड़वाँ लड़के ईशान और कनिष्क हैं, ईशान हांगकांग में टाइम्सपत्रिका के लिये काम करते हैं।
-कनिष्क लन्दन में ओपन डेमोक्रेसीनामक संस्था के लिये काम करते हैं।
-शशि थरूर की बहन शोभा थरूर की बेटी रागिनी (अमेरिकी पत्रिका) इंडिया करंट्सकी सम्पादक हैं।
-परमेश्वर थरूर, शशि थरूर के चाचा हैं और वे रीडर्स डाइजेस्टके भारत संस्करण के संस्थापक सदस्य हैं।

-शोभना भरतिया हिन्दुस्तान टाइम्स समूह की अध्यक्षा हैं।
-शोभना भरतिया केके बिरला की पुत्री और जीड़ी बिरला की पोती हैं
-शोभना राज्यसभा की सदस्या भी हैं जिन्हें सोनिया ने नामांकित किया था।
-शोभना को 2005 में पद्मश्री भी मिल चुकी है।
-शोभना भरतिया सिंधिया परिवार की भी नज़दीकी मित्र हैं।
-करण थापर भी हिन्दुस्तान टाइम्स में कालम लिखते हैं।
-पत्रकार एन राम की भतीजी की शादी दयानिधि मारन से हुई है।

यह बात साबित हो चुकी है कि मीडिया का एक खास वर्ग हिन्दुत्व का विरोधी है, इस वर्ग के लिये भाजपा-संघ के बारे में नकारात्मक प्रचार करना, हिन्दू धर्म, हिन्दू देवताओं, हिन्दू रीति-रिवाजों, हिन्दू साधु-सन्तों सभी की आलोचना करना एक धर्मके समान है। इसका कारण हैं, कम्युनिस्ट-चर्चपरस्त-मुस्लिमपरस्त-तथाकथित सेकुलरिज़्म परस्त लोगों की आपसी रिश्तेदारी, सत्ता और मीडिया पर पकड़ और उनके द्वारा एक गैंगबना लिया जाना। यदि कोई समूह या व्यक्ति इस गैंग के सदस्य बन जायें, प्रिय पात्र बन जायें तब उनके और उनकी बिरादरी के खिलाफ़ कोई खबर आसानी से नहीं छपती। जबकि हिन्दुत्व पर ये सब लोग मिलजुलकर हमला बोलते हैं।

(नोट यह जानकारियाँ नेट पर उपलब्ध विभिन्न वेबसाईट्स, फ़ोरम आदि पर आधारित हैं, इसमें मेरा कोई योगदान नहीं है। यदि इसमें कोई गलती दिखाई दे अथवा किसी नाम या रिश्ते में विसंगति अथवा गलती मिले तो टिप्पणी करें, तत्काल उसमें सुधार किया जायेगाअपनी तरफ़ से कोई और रिश्ता उजागर करना चाहते हों तो वह भी इसमें जोड़ें…)