प्रस्तुतिः डॉ0 संतोष राय
महाराष्ट्र राज्यके सातारा जिलें में एक तालुका है कराड, जिसके गाँव सिरम्बा गांव में ऐक गोभक्त रहते थे । नाम था गोविन्द दास जी महाराज । गायों की सेवा करने में उन्हें बड़ा आनन्द मिलता था । उनका मठ गायों से भरा हुआ था । हर गाय का उन्होने नाम रखा हुआ था । और वे उन्हें उसी नाम से पुकारते थे । एक सुबह जब वे उठे उन्होंने देखा कि उनकी गाएं चोरी हो गयी हैं । वे बड़े दुखी हो गए । खाना पीना सब छूट गया । उन्होंने तालुका के तहसीलदार से फरियाद की । थाने में रिपोर्ट भी लिखवाई । उन्होंने भाई गोविन्ददास को आश्वासन दिया कि उनकी गायें ढूंढी जांएगी मगर गोविन्द दास जी को संतोष नहीं हुआ । वे स्वयं गाँव गाँव भटकते रहे और लोगों से अपनी गाय के बारे में पूछते रहे मगर उनकी गायों का कुछ पता नहीं चला किन्तु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी । अचानक एक दिन वे बेलवड़ नामक गाँव के हाट में घूम रहे थे, तभी उन्हें एक जगह अपनी गायें दिखाई दी, जो खूंटे से बंधी थी । उनकी आंखो से आंसू निकलने लगे । गाय भी उन्हें देखकर रंभाने लगीं । वे दौड़े दौड़े तहसीलदार के पास पहुँचे और कहा मेरी गाये मिल गयी हैं पर वे चोरों के कब्जे में हैं । तहसीलदार ने तुरन्त पुलिस भेजकर गायों को मुक्त करवाया और चोरों को गिरफ्तार किया , मगर चोरों ने दावा किया कि ये गायें उन्हीं की हैं । उन्होंने कागज पुर्जे पेष किए । तहसीलदार ने गोविन्ददास जी से हा कि क्या इस बात का कोई प्रमाण है कि गायें उन्हीं की हैं ? अब गोविन्ददास जी के पास कोई कागज आदि तो थे नहीं सो उन्होंने कहा कि गाएँ स्वयं प्रमाण देंगी । उनका मुझ पर प्रेम और स्नेह देखकर आप स्वयं ही समझ जाएंगें । तहसीलदार ने इसे साबित करने के लिए कहा, तब गोविन्ददास जी ने अपनी गायों को पुकारा, अरे ओ गंगा, जमना, कृच्च्णा, सावित्री अनुसूया । अरे ओ मेरी गोमाताओं मेरे पास आओ । तभी सारी गाएं जो बाहर खड़ी थी दौड़कर कचहरी में घुस आयी और गोविन्ददास जी से चिपटकर उन्हें चाटने लगीं । यह देखकर सभी आष्चर्यचकित रह गए । तब गोविन्ददास जी ने कहा कि आप सब मेरे घर चलें और इन गायों का मुझपर मातृप्रेम देखें । तहसीदार, पुलिस और चोर वगैरह सभी उनके साथ घर की ओर चले । घर पहुँचते ही बाहर खड़े होकर गोविन्ददास जी ने फिर गायों को पुकारा अरे ओ मेरी माताओं सब अपनी जगह चली जाओ । तभी चामत्कारिक रूप से सभी गायें दौड़कर घर में घुस गयीं और अपने अपने घूंटे के पास जाकर खड़ी हो गयीं । यह देखकर चोर उनके चरणों में गिर पड़े और अपना अपराध स्वीकार करते हुए गोविन्ददास जी से क्षमा माँगने लगे । तहसीलदार महोदय यह दृष्य देखकर पुलकित हो उठे और अपने निर्णय में उन्होंने लिखा कि ऐसा स्वतः न्याय और गोमाता का अदभुत प्रमाण मैंने आजतक नहीं देखा । जिस बेलवड़ गाँव के हाट बाजार में गोविन्ददास जी को अपनी खोयी हुई गांये मिली थीं, वहाँ आज भी यह कथा प्रचलित है तथावहाँ के हाट पर गोविन्ददास जी और गोमाताओं की सतत कृपा दृष्टिहै ।
राष्ट्रधर्म मासिक अक्टूबर २००९ से साभार
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