Thursday, March 31, 2011

आतंकवाद का कारण है इस्लाम

  • Ajay Singh          Rperesent: Dr. Santosh Rai
इस्लाम के संदेश को यदि ध्यानपूर्वक विशलेषण किया जाय तो यह विषय यौन-विज्ञान का नूतन सिद्धांत है जो कि दैहिक भोग और विवेकहीन हिंसा, इन दो स्तंभों पर आधारित है


यह सिद्धांत उस अल्लाह के नाम होता है जो सर्वाधिक दयालु और सर्वोत्तम निर्णायक होने का दावा करता है यद्यपि यह मजहब इन स्तंभों के बिना खड़ा नहीं हो सकता है, इन्हें बड़ी चतुराई से दैवीय आवरण में छिपा दिया गया है इस्लाम को बौद्धिक कि कसौटी पर कसते ही इसकी चमक-दमक समाप्त हो जाती है
इतिहाश साक्षी है कि मोहम्मद में जितना प्रभुत्व कि ललक थी उतनी और किसी भी व्यक्ति में नहीं थी यदि हम सम्पूर्ण मानव समाज को एक पिरामिड के रूप में देखे तो “अरबी पैगम्बर” को ही पायेंगे, उन्होंने मानव जाती के आचरण के लिए स्वयं को दैवीय मानव के रूप में प्रस्तुत किया, जिसका तात्पर्य यह है कि सभी को उसके अनुसार सोचना एवं अनुभव करना चाहिए, उसके अनुसार ही खाना-पीना चाहिए और सभी कानून जो उन्होंने अल्लाह के नाम पर बनाये है उनकी अपनी सुविधा के अनुकूल ही है
केवल अल्लाह में विश्वास ही का कोई महत्त्व नही है, इससे दैवीय कृपा और जन्नत तब तक नहीं मिलेगा जब तक मोहम्मद में विश्वास न व्यक्त किया जाय | वह एक ऐसे बिचौलिया है कि कयामत के दिन उसका शब्द ही इसका निर्णय करेगा कि कौन जन्नत में जायेगा और कौन दोखज में | इतना ही नहीं, अल्लाह और उसके फरिस्ते भी मुहम्मद के पूजा करते है
इसी से मोहम्मद कि प्रभुत्व कि ललक कि तीब्रता सिध्द होती है
यीशु मसीह भी यहोवा गाड कि पूजा करते हुए पाए गए थे “लेकिन अल्लाह और उसके फरिस्ते तो मोहम्मद कि पूजा करते है"
इस प्रकार कि स्थिति के जो कि मनुष्य और अल्लाह दोनों कि ही पकड़ से परे है, अर्जन के लिए धैर्य, आयोजन एवं शक्ति कि आवश्यकता है पैगम्बर को ये सभी मिले थे और उन्हें, इन सबको असामान्य सफलतापूर्वक संचालित करने कि योग्यता भी मिली थी
पैगम्बर ने यह सुनिश्चित कर लिया था कि उनका राष्ट्र एक अजेय सैन्य शक्ति बने ताकि एक ऐसी शक्तिशाली साम्राज्य बन जाए, जोकि उनकी व्यक्तिगत पवित्रता एवं शिक्षा कि पुनिताता पर टिका हो| यातना अत्याचार और उत्पीडन कि प्रचंड खुराक दे सकने में सिध्द एक अति शक्ति संपन्न एवं निडर सेना निर्माण द्वारा अरब साम्राज्य स्थापना के अपने उद्देश्य कि पूर्ति के लिए पैगम्बर ने पुरुषों को आकर्षित करने के हेतु कामोत्तेजना को सबसे आकर्षण बल के रूप में प्रयोग किया
तथापि यह समझ कर कि पुरुष सिर्फ शारीरिक भोग तक सिमित नहीं रहता, तो उन्होंने अपील के आकर्षण का क्षेत्र विस्तृत करके जिहाद का अन्वेषण किया जिससे पवित्र सैनिको (मुजाहिद) कि न सिर्फ स्त्री और लडको कि ही प्रभुत मात्र कि पूर्ति होती थी , बल्कि गैर मिस्लिमो को लुटाने और उनकी हत्या को भी क़ानूनी रूप दे दिया, जो इस प्रकार अल्लाह को प्रसन्न करने का एक सबसे अच्छा रास्ता बन गया
यह पैगम्बर की शतरंजी चाल थी जिसके द्वारा उनके अनुयायियों के मस्तिष्क एक जबरदस्त विश्वास हो गया कि लूटपाट, हत्या बलात्कार तथा वर्णनातीत दुःख दर्द फैलाना, बच्चो को अनाथ और स्त्रियों को बिधवा करना जिहाद ( पवित्र युध्द ) के रूप में इस्लाम का सर्वोच्च काम है जिसके द्वारा जन्नत के द्वार खुलने कि पूरी गारंटी है
माना कि मुहम्मद के पहले भी बड़े-बड़े विजेता हुए है परन्तु किसी ने भी इसे अतुअचारो कि पवित्रता का दर्जा नहीं दिया जिनके बदले में आशीष, मंगलकामनाए एवं आनंद मिले| मस्तिष्क की सफाई की यह शक्ति जो पैगम्बर मोहम्मद के पास थी, वह ना केवल भरी मात्रा में थी सदैव की रहने वाली थी क्योकि यह दोनों ही रूपों में चौदह शताब्दियान बीत जाने के बाद भी अभी भी उसी मजबूती से चल रही है

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इस्लाम की आधुनिक समस्याएं

 
         Irsad Manji
इरशाद मांझी      Dr.Santosh Rai

                    यह एक खुली चिट्ठी है मुसलमान  बिरादरी के लिए जो उनका ध्यान तवज्जो उस अंध्विश्वास की तरफ दिला रही है जो उन्हें कुरान और हदीस के कट्टर उलेमा और मुल्ला मस्जिदों और इस्लामी स्कूलों में सिखा रहे हैं जिसका नतीजा है कि वे दूसरे मतों  वाले लोगों के साथ मिल-जुल कर स्वाधीनता पूर्वक अपने अपने जीवन को व्यतीत करने में असमर्थ हैं और समय-समय पर दिया गया कत्ल और गारत का जिहादी पेशा कबूल करके पूरे मुस्लिम समाज को दुनिया की नजरों में गिरा रहे हैं और स्वयं खुद पस्ती की ओर जा रहे हैं। 
 
मेरा परिवार १९७२ में ईदी अमीन के डर से युगाण्डा छोड़ने पर विवश हो गया था क्योंकि अमीन दादा की पुकार थी कि अफरीका केवल काली नसल के लोगों के लिए ही है। मेरे परिवार ने ब्रिटिश कोलम्बिया में आकर शरण ली और वहां के स्वतंत्रा व समानता के वातावरण में जा कर महसूस किया कि किस प्रकार वे युगाण्डा में काली नसल के लोगों को छोटा मानते थे और उन्हें लूटते भी थे। बाईबल में ईसाई मत की कहानियां पढ़ीं तो पता लगा कि इस्लाम में ऐसी छूट नहीं है और यह स्वीकार किया कि केवल स्वतंत्र समाज में ही अपनी खोज व धर्म की उन्नति हो सकती है क्योंकि वहां पर विचारधारा पर किसी प्रकार का अंकुश नहीं है मेरे पिता कठोर स्वभाव के और अपनी पत्नी व बच्चों के साथ सख्ती से पेश आते थे। मुसलमान शरणार्थियों ने जो मदरसे मस्जिदों में बनाए, उनमें लड़के-लड़कियों पर सख्ती से पेश आया जाता था और विभिन्न प्रकार की सीमाओं को सहना पड़ता था। वहां की सीखलायी थी कि यदि तुम वास्तव में मजहबी हो तो अपनी सोच को बन्द करके रखो और जो बताया जाए उसे निःसंकोच स्वीकार कर लो। इस्लाम की पहचान नामक पुस्तक का कहना था कि खुदा का हुक्म है कि दिन में पाँच बार नमाज पढ़ो। लेकिन स्त्रियों का मस्जिद में जाना वर्जित है। कुरान की भाषा अरबी है जिसे केवल बीस प्रतिशत मुसलमान ही जानते हैं। बिना समझे इसे तोते की तरह दोहराना ठीक नहीं। दूसरी भाषाओं में इसका अनुवाद अशुभ माना जाता है । मैं यह सोचती हूं कि उनके खुदा  ने खुशियों पर अंकुश क्यों लगा रखा है और रंगीन वस्त्र पहनने वाली महिलाओं को कैद किया जाता है और बलात्कार की सतायी महिलाओं को पत्थर मार-मार कर अपमानित किया जाता है। इस प्रकार का नीच व्यवहार केवल मुस्लिम समाज की ही धरोहर है। इस सबके बावजूद किसी को किसी प्रकार की कोई शिकायत करने की कोई स्वतंत्रता नहीं है। 

इस्लाम में यहूदियों के प्रति भरी घृणा-वृत्ति है । जबकि इस्लाम ईसाई मत व यहूदी मत एक ही पैगम्बर इब्राहिम के परिवार की देन है फिर जिहाद  क्यों। कुरान में कई बातों पर हाँ भी है और ना भी है। दुर्भाग्यवश इस्लाम की शिक्षा जबर जुल्म गरीबी व अकेलेपन की ओर अपने अनुयायी लोगों को ले जा रही है। कट्टरपंथी मुसलमान तबाही की बन्द गली की तरफ जा रहे हैं। कुरान इस्लाम के सिवाए किसी दूसरे मत को स्वीकारने से इन्कार करती है। क्या बाकी सारी दुनिया व उनके मत गलत हैं यदि वे इस्लाम से दुश्मनी नहीं रखते, यदि इस्लाम को सुधार की आवश्यकता है तो आज ही है क्योंकि सारी दुनिया आतंकवाद को इस्लाम की देन कहती है। मुसलमान की समस्या यह है कि वे कुरान के हर अक्षर को पत्थर की लकीर मानते हैं। अक्खड़ जाहिल व कम सोच वाले उलेमा व मुल्लाओं ने मुख खोलने पर रुकावट लगा दी है और क्या सच है इसकी पहचा नहीं हो सकती। दूसरे मतों में भी समय-अनुसार त्रुटियां पाई जाती हैं जिसके विषय में विचार-विमर्श किया जाता है। लेकिन ऐसा कर पाना इस्लाम के विरुद्ध है। जब मैनें ने इस्लामी पाठशाला में पूछा कि क्या कारण था कि हजरत मुहम्मद ने सब यहूदियों को मारने का आदेश दिया और स्त्री वर्ग को बराबर का दर्जा नहीं दिया। उसका कोई उत्तर नहीं मिला। मन में यह प्रश्न उठा कि क्या इस्लाम अपने साथ रख सकेगा। सन्‌ १९८९ में जब खुमैनी ने शैतानिक वर्सेज नाम की पुस्तक के लेखक सलमान रुशदी को कत्ल करने का फतवा ऐलान किया तो मुझे अधिक आश्चर्य हुआ कि इस्लामी नेता कितने नादान हैं। तीनों मतों का एक ही मालिक है लेकिन उनके लोगों के जीवन कितने अलग-अलग हैं। पैगम्बर मुहम्मद अरब  के लोगों को इब्राहिम के कुनबे से जोड़ना चाहते थे जिनको पहली भविष्यवाणी हुई थी। उनकी सन्तान में ही यहूदी ईसाई मत शुरू किए। अरब के मुसलमानों ने कोई नया परवरदिगार नहीं ढूंढ निकाला। उसको केवल मात्र अल्लाह का नाम देकर विभिन्न मत बना दिया। इस्लामी शिक्षा के अनुसार पहल इस्लाम की थी। उससे पहले अज्ञानता का अंधकार था। अरब का इस्लाम वहां के कबीलों के रीति-रिवाजों पर आधारित हुआ। सभी स्वतंत्र देशों में मस्जिदें बनाने पर किसी प्रकार की कोई रोक-टोक नहीं है। लेकिन अरब देशों में दूसरे मत का कोई स्थान नहीं है। 
टी.वी व संवाददाताओं के नाते मुझे इस्लाम से जुड़े बहुत से नाजुक प्रश्नों का उत्तर देना पड़ता था। इजराइल व फलिस्तीन का भ्रमण करके मैंने दोनों पड़ोसी देशों की जनता के जीवन को बड़ी नजदीकी से देखा और उजाला व अन्धेरा पास-पास पाया। निजी जीवन में दाढ़ी मुंडवाने और महिलाओं को परदे में कैद रखने के विरुद्ध यदि कोई आवाज उठाता है तो वह अपनी मौत को पुकारता है। क्या यह एक अच्छे व्यक्ति की पहचान है कि वह आतंकवाद फैलाने में अपने अमूल्य जीवन की बलि दे देता है उनको मारने के लिए जिनसे उसकी कोई भी दुश्मनी नहीं। यदि हँसने पर भी रोक है तो कुरान की आयतों को ऊँची आवाज से क्यों पढ़ा जाता है। इस्लाम में नर का नर से और मादा का मादा से मिलाप एक अपराध माना जाता है। मनुष्यों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित रखना अनुचित है जबकि स्वर्ग  में सुन्दरियां और सुन्दर युवक उपलब्ध कराए जाते हैं । नाइजीरिया में एक युवती के साथ उसके पिता के तीन जानकारों ने बलात्कार किया। वहाँ की इस्लामी अदालत ने जबकि वह एक शिशु को जन्म देने वाली थी १८० कोड़े मारने की सजा दी। क्या यह इस्लाम का इन्साफ है जो मत और उसके नियम अरब के कबीली सभ्यता के लिए उचित थे क्या वे संसार भर के प्रगतिशील व मानवीय सिंद्धातों के अनुकूल हो सकते हैं 
जो मत दूसरे मतों के विरुद्ध घृणा का पाठ पढ़ाता हो और स्त्रियों को उच्च शिक्षा, सुन्दर वस्त्र पहनने, खेलकूद व मधुर संगीत से वंचित करे क्या वह परिवर्तन व विकास का मुहताज नहीं। मेरे इस्लाम के विद्वानो! इस पर गंभीरता से विचार करो और समय के अनुसार परिवर्तन लाओ। यह एक चेतावनी है, इस्लाम को मानने वालों के लिए जिससे वे नेक व सच्चे इन्सान बन कर स्वयं सुख से जिएं व दूसरों को भी जीने दें। मैं इस्लाम को प्रगति की राह पर चलते देखना चाहती हूं।  



Wednesday, March 30, 2011

कलकत्ता में मुसलमानोंके उकसानेपर पुलिसने शिव मंदिर तोडा

Prabal Pratap Singh               Represent: Dr.Santosh Rai

कोलकाता (पश्चिम बंगाल) - कोलकाता नगरके मध्यमें स्थित छतुबाबू गलीमें स्थित शिव मंदिर मुसलमानोंके उकसानेपर पुलिसने तोड दिया ।(हिंदुओ, मुसलमानोंके दबावके कारण आपके मंदिर तोडनेवाले पुलिसकर्मी औरंगजेबके वंशज हैं । ऐसे पुलिसकर्मियोंके नाम लिखकर रखिए ! आज मंदिरोंको तोडनेवाले पुलिसकर्मी कल आपके घरोंको तोडने और आपकी मां-बहनोंका शीलहरण करनेमें भी आगे-पीछे नहीं सोचेंगे, यह ध्यानमें रखिए ! यह स्थिति सुधारनेके लिए राष्ट्र और धर्म प्रेमी शासकोंको सत्ता सौंपनेके अतिरिक्त अन्य चारा नहीं ! - संपादक)


 अबतक हिंदुओंके मंदिरोंको तोडनेकी घटनाएं बंगालके ग्रामीण भागोंमें अथवा नगरोंके बाहरी क्षेत्रोंमें हुआ करती थीं; किंतु अब तो नगरके मध्य भागोंमें भी ऐसी घटनाएं होने लगी हैं । मंदिरके समीप ही रहनेवाले मुसलमानोंके दबावमें आकर पुलिसकर्मियोंने यह कृत्य किया, ऐसा ज्ञात हुआ । इसके पूर्व भी मुसलमानोंने पुलिसकी सहायतासे पांच बार यह मंदिर तोडनेका प्रयत्न किया था ------------

पुणे महापालिकाने देर रात ६ मंदिर गिराकर किया हिंदुद्रोह !
    

पुणे (महाराष्ट्र) – अंधेरेका अनुचित लाभ उठाते हुए पुणे महापालिकाद्वारा केवल हिंदुओंके मंदिरोंको गिरानेका औरंगजेबी कृत्य जारी है । १६ मार्चकी मध्यरात्रिमें महापालिकाके अतिक्रमण विभागने सहकारनगरके क्षेत्रीय कार्यालयद्वारा गुलटेकडी परिसरमें स्थित दो गणेशके, तीन साईबाबाके और एक शिवजीके, कुल ६ मंदिरोंको गिरानेकी कार्यवाही की गई । महापालिकाने संबंधित व्यक्तियोंको पूर्वसूचना देनेका कष्ट भी नहीं उठाया । (हिंदुओ, सर्वोच्च न्यायालयने पुणेके रविवार पेठमें मार्गपर स्थित सुभानशाह दरगाह हटानेका आदेश दिया है । किंतु, मुसलमानोंके संगठन और आक्रमक स्वभावके कारण यह दरगाह गिरानेकी कार्यवाही पुणे महापालिकाने नहीं की है । इसके विपरीत, हिंदुओंकी असंगठितताका अनुचित लाभ उठाते हुए रात-बेरात महापालिका हिंदुओंके मंदिरोंको गिराते जा रही है । मुंबईके महापौरने इसी प्रकारकी कार्यवाहीके संदर्भमें मुख्यमंत्रीसे भेंट की थी । इस भेंटके पश्चात् वहांके धार्मिक स्थलोंको गिरानेके कार्यको स्थगित किया गया । पुणेके धर्माभिमानी भी पुणेकी सुव्यवस्थापर ध्यान दें !   - संपादक)
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१२ मंदिरोंको अधिगृहीत करनेका महाराष्ट्र शासनका षड्यंत्र !

    नागपुर (महाराष्ट्र) - पुरातन वास्तु संरक्षणके नामपर महाराष्ट्र शासनने हिंदुओंके १२ मंदिरोंको अपने नियंत्रणमें लेकर उन्हें पर्यटनस्थल बनानेका निर्णय लिया है । (हिंदुओ, विविध युक्तियां अपनाकर आपके मंदिरोंको अधिगृहीत करनेका महाराष्ट्र शासनका दांव समझकर उसका वैध मार्गसे प्रखर विरोध करें ! साथ ही, आपके मंदिर आपको चैतन्य देनेवाले स्रोत हैं; पर्यटनस्थल नहीं हैं, यह शासनको दृढतासे बताएं ! - संपादक)

    हिंदुओ, धर्मनिरपेक्ष शासनका अबतकका अनुभव देखते हुए शासक हिंदुओंके धनाढ्य देवस्थानोंका अधिग्रहण करते हैं । जीर्ण और उपेक्षित मंदिरोंको अधिगृहीत कर उनका जीर्णोद्धार नहीं करते । इससे स्पष्ट होता है कि सरकारकी आंखें हिंदुओंके मंदिरोंके धनपर ही हैं

Double Standards of Congress

Reperesent: Dr. Santosh Rai

कांग्रेस से ज्यादा घिनौनी पार्टी कोई और है?

Double Standards of Congress
जरा इनके बयानों का विरोधाभास देखिये....
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हजारों सिखों का कत्लेआम एक गलती
कश्मीर में हिन्दुओं का नरसंहार एक राजनैतिक समस्या
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गुजरात में कुछ हजार लोगों द्वारा मुसलमानों की हत्या एक विध्वंस
बंगाल में गरीब प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी गलतफ़हमी
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गुजरात में परजानियापर प्रतिबन्ध साम्प्रदायिक
दा विंची कोडऔर जो बोले सो निहालपर प्रतिबन्ध धर्मनिरपेक्षता
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कारगिल हमला भाजपा सरकार की भूल
चीन का 1962 का हमला नेहरू को एक धोखा
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जातिगत आधार पर स्कूल-कालेजों में आरक्षण सेक्यूलर
अल्पसंख्यक संस्थाओं में भी आरक्षण की भाजपा की मांग साम्प्रदायिक
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सोहराबुद्दीन की फ़र्जी मुठभेड़ भाजपा का सांप्रदायिक चेहरा
ख्वाजा यूनुस का महाराष्ट्र में फ़र्जी मुठभेड़ पुलिसिया अत्याचार
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गोधरा के बाद के गुजरात दंगे - मोदी का शर्मनाक कांड
मेरठ, मलियाना, मुम्बई, मालेगाँव आदि-आदि-आदि दंगे - एक प्रशासनिक विफ़लता
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हिन्दुओं और हिन्दुत्व के बारे बातें करना सांप्रदायिक
इस्लाम और मुसलमानों के बारे में बातें करना सेक्यूलर
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संसद पर हमला भाजपा सरकार की कमजोरी
अफ़जल गुरु को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद फ़ाँसी न देना मानवीयता
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भाजपा के इस्लाम के बारे में सवाल सांप्रदायिकता
कांग्रेस के रामके बारे में सवाल नौकरशाही की गलती
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यदि कांग्रेस लोकसभा चुनाव जीती सोनिया को जनता ने स्वीकारा
मोदी गुजरात में चुनाव जीते फ़ासिस्टों की जीत
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सोनिया मोदी को कहती हैं मौत का सौदागर” – सेक्यूलरिज्म को बढ़ावा
जब मोदी अफ़जल गुरु के बारे में बोले मुस्लिम विरोधी

भारत के मदरसों में क्या पढ़ाया जाता है

 
प्रस्‍तुतिः डॉ0 संतोष राय

निम्न पाठ्यक्रमों से स्पश्ट है कि मुसलमान बच्चों को किस प्रकार की षिक्षा, मदरसों और मख्तबों में दी जाती है। उनके मस्तिश्क में काफिरों (हिन्दुओं) के विरुद्ध ज़हर भर दिया जाता है तथा उन्हें उनसे जिहाद करने के लिए प्रेरित किया जाता है। क्या मदरसों से निकले बच्चे सच्चे देषभक्त बन सकते हैं? क्या इन मदरसों से पढ़े मुसलमान हिन्दुओं के साथ सह-अस्तित्व की भावना रख सकते हैं ?
दारुल उलूम देवबंद तथा भारत में इससे जुड़े अन्य मदरसों में आज भी हनफी फिक (कानून) की शिक्षा दी जाती है। इसकी अधिकांश पुस्तकें पाँच सौ साल से अधिक पुरानी हैं, कुछ ऐसी भी हैं जो एक हजार साल पहले लिखी गईं। इनको मध्यकालीन हनफी उलेमाओं द्वारा विश्लेषण की गई तफसीर को आज तक इन मदरसों में पढ़ाया जाता है। हनफी फिक की विशेष पुस्तक जो देवबंद और अधिकांश दूसरे उच्च स्तरीय मदरसों में पढ़ायी जाती है, हिदाया के चार खण्ड हैं जो 12वीं शताब्दी में केन्द्रीय हनफी फिक ‘‘शेख बुरहानुद्दीन अबुल हसन अली अल मारगिनानी’’ ने लिखा था (जन्म 1117 ई.) इन हिदाया के खण्डों में अनेक विषय हैं जिनमें इस्लाम के अनुयायियों तथा काफिरों के साथ कानून लगाने का विस्तृत वर्णन है।
मदरसों की पुस्तकों में पढ़ाए जाने वाले कुछ अंश -
1. अल्लाह को पूज, वतन को ना पूज (पृ.68, मनुहाजू अलहरव्यातू-भाग-2)
2. ऐ खुदा हम तेरी इबादत करते हैं और शुक्र करते हैं, किसी दूसरे खुदा की इबादत नहीं करते। (पृ. 70, मनुहाजू अलहरव्यातू, भाग-2)
3. अरब के लोग अक्सर मिट्टी और पत्थर की मूर्तियां बनाकर उन्हें पूजते थे। लड़कियों को पैदा होते उन्हें मार डालते, हज़ारों गुनाह किया करते, धीरे-धीरे लोग इस्लाम को मानने लगे। उनको समझाया गया कि आप बुतों की पूजा क्यों करते हो। खुदा एक है उसकी इबादत करो (पृ. 16, बेदीनी)
4. हर एक मुसलमान को चाहिए कि वह खुदा के रास्ते पर ही चले। (पृ. 37, बेदीनी)
5. आपने फरमाया कि अगर तुम मुझे सच्चा समझते हो तो खुदा एक है। इसके सिवा कोई इबादत के लायक नहीं है। जो नहीं मानता वह जूतियों की पूजा करते हैं और सब काफिर हैं। तुम लोग अल्लाह पर ईमान लाओ वरना दोज़ख में जाओगे (पृ. 34, रसूल अरबी)
6. कुछ कौमें गाय के गोबर और पेशाब को पवित्र मानती हैं। गोबर से चैका देती हैं। हमारे नज़दीक इसका पेशाब और गोबर दोनों नापाक हैं। कपड़े या और चीज़ की दरमभर जगह पर पड़ जाए तो वह पलीद हो जाती है (पृ. 39, उर्दू की दूसरी किताब)
7. बाज़ लोग गाय की बहुत ताजीम (इज्जत) करते हैं। इसका नाम लेना हो तो अदब का लिहाज करके गोमाताकहते हैं। इतना ही नहीं बल्कि उसके सामने माथा भी टेकते हैं और उसे पूजते हैं। हमारे मजहब में यह दुरुस्थ नहीं है क्योंकि यह चीज़ खुदा ने हमारे आराम के लिए बनायी हैं। इतना ही काफी है कि हम उसे अच्छी हाल में रखें। आराम पाएं, यह नहीं कि उसकी ऐसी इज्ज़त करें और पूजें। (पृ 41, उर्दू की दूसरी किताब)
8. हिन्दुस्तान में करोड़ों बुतों की पूजा होती थी - किस कदर शर्म की बात है। बदन के नापाक हिस्सों - लिंग को भी पूजा जाता था। हर शहर में अलग-अलग हुकूमत, लूटमार, झगड़े-फसाद थे। दुनिया को उस समय सच्चे रहबर की ज़रूरत थी। हुज़ूर हलिया वस्लम (पृ. 32, तारीख इस्लाम, प्रथम भाग)
9. शहर मक्का यहाँ तक कि खाना काबा के भी जो खास इबादत का मकाम है और बड़ा मुकद्दस घर है, मिट्टी और पत्थर की मूर्ति जिन्हें बुत कहते हैं, रखी गईं और उनकी पूजा होने लगी। इस हालत में अल्लाहताला ने अपने फजलवा कर्म से हजरत इस्माइल हलिया इस्लाम के घराने में हमारे रसूल करीम अल्लाह वलिया वस्लम को पैदा किया। जिनकी पाक तालीम की बदौलत दुनिया के बड़े हिस्से से बुतपरस्ती का नामोनिशान बिल्कुल मिट गया और सिर्फ खुदा की ही परस्ती होने लगी। (पृ. 4-5, बे-दीनी)
10. सवाल: जो लोग खुदाताला के सिवा और किसी की पूजा करते हैं या दो-तीन खुदा की पूजा करते हैं, उन्हें क्या कहते हैं ?
जवाब: ऐसे लोगों को काफिर मुशरफ कहते हैं।
सवाल: मुशरफ बख्शे जाएंगे कि नहीं ?
जवाब: मुशरफों की बक्शीश नहीं होगी। वह हमेशा तकलीफ (मुसीबत) में रहेंगे
सवाल: क्या यह कह सकते हैं कि हिन्दुओं के पेशवा जैसे कृष्ण जी, रामचन्द्र जी वगैरह खुदा के पैगम्बर थे ?
जवाब: नहीं कह सकते - क्योंकि पैगम्बरी का खास ओहदा है जो खुदा की तरफ से खास बंदों को अता फरमाया जाता था। हिन्दुओं या अन्य कौमों के पेशवाओं के मुतालिक हम ज़्यादा से ज़्यादा इस कदर कह सकते हैं कि अगर उनके अमान दुरुस्त हों और उसकी तालीम आसमानी तालीम के खिलाफ न हों तो मुमकिन हैं कि वे नबी हैं मगर ये कहना अटकल का तीर है। (पृ. 12, तालीम इस्लाम का हिस्सा - 4)
कुर्बानी
1. प्रश्न: क्या मुस्लिम गाय की इबादत करता है ?
उत्तर: नहीं। वह खुदा की इबादत करता है। गाय एक मख्लूक, अल्लाह इसका मालिक है। इबादत खालिक के लिए है कि ना कि मख्लूख के लिए। हर चीज़ में फायदा है। पानी में फायदा है, हवा में फायदा है, मिट्टी में फायदा है। क्या तुम इन सबकी इबादत करोगे ? नहीं - हम सिर्फ खुदा की इबादत करते हैं। (पृ. 78, मनुहाजू अलहरव्यातू, भाग-2)
2. मेरी वालदा ने एक मोटी गाय ज़बे करने के लिए खरीदी थी और कहा कि इसमें सात हिस्से हैं, एक मेरा, एक तुम्हारे वालदा का, एक तुम्हारा और चार हिस्से तुम्हारे दो-भाइयों और दो-बहनों के। (पृ. 37, अल्लकरात अलअषदत भाग-2)
3. कुर्बानी बच्चे, बालिक मुसलमान - मर्द व औरत, पर कुर्बानी वर्जित है। एक आदमी एक बकरा, सात बकरे,,सात आदमियों की तरफ से, एक गाय या एक और कुर्बानी चाहिए। बकरा एक साल, गाय दो साल की, और ऊँट पाँच साल का, सब ऐबों से पाक होकर इनकी कुर्बानी जायज़ है। कुर्बानी करने वाला इसका गोश्त खुद भी खाए और अजीज़ों और दोस्तांे को भी खिलाए, खैरात भी करे, बेहतर तो यह है कि एक तिहाई गोश्त खैरात करे। (पृ. 22-23, छत्तीसगढ़ मदरसा बोर्ड, रायपुर, दीनियात कक्षा-4)
खुदा सब चीज़ों को पैदा करने वाला अच्छी तरह से जान लो कि ‘‘अल्लाह’’ ने तुमको मिट्टी से बनाया, इसकी कुदरत बहुत बड़ी है, देखो अल्लाह ने कैसे बड़े पहाड़ पैदा किए और समुद्र भी कैसे पैदा किए। (पृ. 84, मनुहाजू अलहरव्यातू-भाग-2)
यह ज़मीन, आसमान, सूरज, चाँद-सितारों को अल्लाह ने बनाया। अल्लाहताला एक है, बहुत नहीं। अल्लाहताला मुसलमान होने और बुरी आदतों से बचने मंे राज़ी होता है। वह काफिरों से कभी राज़ी नहीं होता। इस्लाम मज़हब तमाम मज़हबों से पाक, अच्छा और सच्चा मज़हब है। (पृ. 4-7, नूरी तालीम) अल्लाह एक है, उसका कोई शरीक नहीं, उसने ज़मीन, आसमान, चाँद, सूरज, सितारे, दरिया, पहाड़, दरख्त, इंसान, हैवान, फरिश्ते और इसी प्रकार दूसरी तमाम चीज़ों को पैदा किया।
जिहाद
1. आखिर अल्लाहमियां ने हुजू़र को हुक्म दिया कि दुश्मनों से लड़ाई करो।
ऐसी लड़ाइयों को जिहादकहते हैं। (पृ. 69, रसूल अरबी)
2. बादशाहों के नाम हुज़ूर ने खत लिखे जिसमें लिखा था कि तुम मुसलमान हो जाओ और अपनी रियाया को भी मुसलमान बनाओ वरना तुम पर अज़ाब आएगा। जिन्होंने खत को फाड़ कर फेंक दिया और गुस्ताखी की तो सल्तनत ही बरबाद हो जाएगी। (पृ. 106, रसूल अरबी)
3. हमें अच्छी तरह से मालूम है कि सब बुराइयों की जड़ और हर किस्म के फितना, फसाद, जु़ल्म व ज़्यादती इंसानों की अल्लाह से बगावत के कारण है। हम यह जानते हैं कि यह ज़िम्मेदारी मुसलमानों पर आयद होती है। (पृ. 124, तारीख इस्लाम प्रथम भाग)
4. आप में से बहुत से लोग सोचते होंगे कि हम लोग मदरसे के छोटे लड़के हैं - हम क्या कर सकते हैं। खुद को करीम, सलीम, कली, हलिया, वसलम ने भी कमसिन (छोटी आयु) में दुनिया को संभाल लिया। हम भी बच्चे मिलकर बैठें। इंशाअल्लाह दुनिया की रहनुमाई ऐसे पाक हाथों मंे होगी जो तमाम खराबियों का नामोनिशां मिटा दे। (पृ. 125-126, तारीख इस्लाम, प्रथम भाग)
इस्लाम
1. जब इस्लामी हुकूमत हुआ करती थी और हिम्मतें बुलंद थीं तो नौजवान जिहादकरने और मुल्क फतह करने का रियावतमंद हुआ करता था। कोई हुकूमत की बुनियाद कायम करता या शहादत की मौत हासिल करता (पृ. 51, अल्लकरात अलअशदत भाग-2)
2. जन्नत ऐसी जगह है जहाँ पानी, दूध और शहद के दरिया हैं। इनसे नहरें निकलती हैं। जन्नत की औरतें इतनी खूबसरत हैं यदि उनमें से कोई औरत ज़मीन पर झाँके तो सूरज की रोशनी मिट जाए। (पृ. 9, नूरी तालीम)
3. जो लोग जन्नत में जाएंगे, सदा तंदरुस्त रहेंगे और हमेशा जिंदा रहेंगे (पृ. 10, नूरी तालीम)
4. सब अपने अमाल (कर्म) के हिसाब से जन्नत और दोज़ख में भेज दिए जाएंगे, जो मुसलमान अपने गुनाहों की वजह से दोज़ख में गिर पड़ेंगे, हमारे पैगम्बर उनकी सिफारिश करेंगे और दूसरे पैगम्बर गुनाहगारों की सिफारिश करेंगे और सारे मुसलमान जन्नत में चले जाएंगे और सभी काफिर दोज़ख में जाएंगे (पृ. 12, तलकीन ज़दीद)
5. कब्र में भी सवाल-जवाब होंगे। मोमिन जवाब देगा - अल्लाह मेरा रब है, इस्लाम मेरा दीन है। काफिर जवाब नहीं दे सकेगा और इसलिए कब्र में काफिरों और गुनाहगारों का अंजाम होगा। (पृ. 13, तलकीन ज़दीद)
6. वह कयामत के दिन जिं़दा करके सबके अमाल का हिसाब दे देगा और नेकी व बदी का बदला लेगा। (पृ. 26, इस्लामी तालिमात, पंजम के लिए)
7. रसूल-ए-खुदा जब किसी के घर में बच्चा होता है तो सबसे पहले उसे आपकी खिदमत में पेश किया जाता है। आप बच्चे के सिर पर हाथ फेरते, खजूर चबाकर लुआब (थूक) बच्चे के मुंह में डालते और उसके लिए बरकत की दुआ फरमाते (पृ. 13, हमारी किताब, कक्षा-4)
8. तुममें बेहतर वह शख्स है जो कुरआन सीखे और दूसरों को सिखाए। (पृ. 18, हमारी किताब-2, कक्षा-3)
9. हमारे प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद सली अल्लाह हलिया वस्लम को जो लोग मानते गए वह मोमिन कहलाए। बाकी जो बात न मानने वाले काफिर कहलाए। अरब के सारे लोग मुसलमान हो गए। सबका दीन इस्लाम हो गया (पृ. 16-17, हमारी किताब-2, कक्षा-3)
10. सवाल: कुफ्र और शरीक किसे कहते हैं ?
जवाब: जिन चीज़ों पर ईमान लाना ज़रूरी है उनमें से किसी एक बात को भी न मानना कुफ्र है। खुदाताला की किताबों को न मानना कुफ्र है। (पृ. 19, तालीम इस्लाम-4)
सवाल: यदि गुनहगार आदमी बगैर तौबा किए मर जाए तो जन्नत में जाएगा या नहीं?
जवाब: हाँ। सिवाए काफिर और मुशरक के बाकि तमाम गुनाहगार अपने गुनाहों की सज़ा पाकर जन्नत जाएंगे। काफिर कभी भी जन्नत नहीं जाएंगे (पृ. 25, तालीम, भाग-4) काफिर
1. पैगम्बर मोहम्मद ने उस्तनतुनिया के तरफ कूच किया और इसके लिए ज़बरदस्त तैयारी की क्योंकि यह खुदा का फरमान है। काफिरों से मुकाबला करने के लिए तुम जो भी ताकत जमा कर सकते हो, तैयार करो ( पृ. 62, अल्लकरात अलअशदत भाग-2)
2. इस्लाम को न मानने वाले को काफिर कहते हैं। मुसलमानों को अल्लाहताला मरने के बाद कब्र में आराम देगा और कयामत में हिसाब-किताब के बाद जन्नत में जगह इनायत फरमाएगा। काफिर अगरचे हर दुनिया में बड़े आराम से रहता है पर हकीकत में वह इज़्ज़त की जिन्दगी नहीं, और मरने के बाद उसे हमेशा दोज़ख की आग में जलाया जाएगा। (पृ-8, नूरी तालीम)
3. दोज़ख एक मकान है जिसमें काफिरों और गुनाहगारों के लिए आग भड़कायी गई है। हर तरफ आग ही आग होगी। गंदगी और कीचड़ होगी। (पृ. 11, नूरी तालीम)।
4. दीन इस्लाम को न मानना या दीन की जो बातें यकीन से साबित हैं इनमें से किसी एक का भी इंकार करना, ‘कुफ्रहै। कुफ्र व शरक पर मरने वाले हमेशा दोज़ख में रहंेगे। जन्नत एक नुशानी, रूहानी और लतीफ जिस्मों का खूबसूरत आलम है, निहायत पाकिज़ा जहाँ आराम और राहत के जिस्म और जान के सारी लज्जतें हासिल जैसे बागात, महलात, नहरें, हूरंे (पृ. 5, तलकीन ज़दीद)
5. दोज़ख एक ऐसा जहान है जिसमें दुःख, दर्द, रंज व गम के सभी अश्वाब मोहिया होंगे और हर किस्म के अज़ाम मौजूद नहीं होंगे। खुदा ने उसको काफिरों और गुनाहगारों के लिए पैदा किया है और काफिर उसमें हमेशा रहेगा। (पृ. 6, तलकीन ज़दीद)
6. वह बड़ा गुनाह करता है जो हिन्दुओं और बड़ी बदऐतों के मेले में जाता है। काफिरों की दीवाली, दशहरा मनाना या इस मौके पर उनके साथ रहना यह सब गुनाह है। (पृ. 44, तलकीन ज़दीद)
7. जो खुदा के अंजाम से डरते हैं, वह काफिर हैं। जो खुदा को सज़दा करते हैं, वह खुदा की रहमत के उम्मीदवार हैं। (पृ. 144, छत्तीसगढ़ मदरसा बोर्ड, दीनीयात कक्षा-2)
8. सवाल: जो लोग खुदा ताला को नहीं मानते, उन्हें क्या कहते हैं ?
जवाब: उन्हें काफिर कहते हैं। (तालीम इस्लाम)
उपरिवर्णित पाठ्यक्रमों से स्पश्ट है कि मुसलमान बच्चों को किस प्रकार की षिक्षा, मदरसों और मख्तबों में दी जाती है। उनके मस्तिश्क में काफिरों (हिन्दुओं) के विरुद्ध ज़हर भर दिया जाता है तथा उन्हें उनसे जिहाद करने के लिए प्रेरित किया जाता है। क्या मदरसों से निकले बच्चे सच्चे देषभक्त बन सकते हैं? क्या इन मदरसों से पढ़े मुसलमान हिन्दुओं के साथ सह-अस्तित्व की भावना रख सकते हैं ?
साभार - हिन्दुस्थान में मदरसे पृष्ठ 69 से 74