प्रस्तुतिः डॉ0 संतोष राय
निम्न पाठ्यक्रमों से स्पश्ट है कि मुसलमान बच्चों को किस प्रकार की षिक्षा, मदरसों और मख्तबों में दी जाती है। उनके मस्तिश्क में काफिरों (हिन्दुओं) के विरुद्ध ज़हर भर दिया जाता है तथा उन्हें उनसे जिहाद करने के लिए प्रेरित किया जाता है। क्या मदरसों से निकले बच्चे सच्चे देषभक्त बन सकते हैं? क्या इन मदरसों से पढ़े मुसलमान हिन्दुओं के साथ सह-अस्तित्व की भावना रख सकते हैं ?
दारुल उलूम देवबंद तथा भारत में इससे जुड़े अन्य मदरसों में आज भी हनफी फिक (कानून) की शिक्षा दी जाती है। इसकी अधिकांश पुस्तकें पाँच सौ साल से अधिक पुरानी हैं, कुछ ऐसी भी हैं जो एक हजार साल पहले लिखी गईं। इनको मध्यकालीन हनफी उलेमाओं द्वारा विश्लेषण की गई तफसीर को आज तक इन मदरसों में पढ़ाया जाता है। हनफी फिक की विशेष पुस्तक जो देवबंद और अधिकांश दूसरे उच्च स्तरीय मदरसों में पढ़ायी जाती है, हिदाया के चार खण्ड हैं जो 12वीं शताब्दी में केन्द्रीय हनफी फिक ‘‘शेख बुरहानुद्दीन अबुल हसन अली अल मारगिनानी’’ ने लिखा था (जन्म 1117 ई.) इन हिदाया के खण्डों में अनेक विषय हैं जिनमें इस्लाम के अनुयायियों तथा काफिरों के साथ कानून लगाने का विस्तृत वर्णन है।
मदरसों की पुस्तकों में पढ़ाए जाने वाले कुछ अंश -
1. अल्लाह को पूज, वतन को ना पूज (पृ.68, मनुहाजू अलहरव्यातू-भाग-2)
2. ऐ खुदा हम तेरी इबादत करते हैं और शुक्र करते हैं, किसी दूसरे खुदा की इबादत नहीं करते। (पृ. 70, मनुहाजू अलहरव्यातू, भाग-2)
3. अरब के लोग अक्सर मिट्टी और पत्थर की मूर्तियां बनाकर उन्हें पूजते थे। लड़कियों को पैदा होते उन्हें मार डालते, हज़ारों गुनाह किया करते, धीरे-धीरे लोग इस्लाम को मानने लगे। उनको समझाया गया कि आप बुतों की पूजा क्यों करते हो। खुदा एक है उसकी इबादत करो (पृ. 16, बेदीनी)
4. हर एक मुसलमान को चाहिए कि वह खुदा के रास्ते पर ही चले। (पृ. 37, बेदीनी)
5. आपने फरमाया कि अगर तुम मुझे सच्चा समझते हो तो खुदा एक है। इसके सिवा कोई इबादत के लायक नहीं है। जो नहीं मानता वह जूतियों की पूजा करते हैं और सब काफिर हैं। तुम लोग अल्लाह पर ईमान लाओ वरना दोज़ख में जाओगे (पृ. 34, रसूल अरबी)
6. कुछ कौमें गाय के गोबर और पेशाब को पवित्र मानती हैं। गोबर से चैका देती हैं। हमारे नज़दीक इसका पेशाब और गोबर दोनों नापाक हैं। कपड़े या और चीज़ की दरमभर जगह पर पड़ जाए तो वह पलीद हो जाती है (पृ. 39, उर्दू की दूसरी किताब)
7. बाज़ लोग गाय की बहुत ताजीम (इज्जत) करते हैं। इसका नाम लेना हो तो अदब का लिहाज करके ‘गोमाता’ कहते हैं। इतना ही नहीं बल्कि उसके सामने माथा भी टेकते हैं और उसे पूजते हैं। हमारे मजहब में यह दुरुस्थ नहीं है क्योंकि यह चीज़ खुदा ने हमारे आराम के लिए बनायी हैं। इतना ही काफी है कि हम उसे अच्छी हाल में रखें। आराम पाएं, यह नहीं कि उसकी ऐसी इज्ज़त करें और पूजें। (पृ 41, उर्दू की दूसरी किताब)
8. हिन्दुस्तान में करोड़ों बुतों की पूजा होती थी - किस कदर शर्म की बात है। बदन के नापाक हिस्सों - लिंग को भी पूजा जाता था। हर शहर में अलग-अलग हुकूमत, लूटमार, झगड़े-फसाद थे। दुनिया को उस समय सच्चे रहबर की ज़रूरत थी। हुज़ूर हलिया वस्लम (पृ. 32, तारीख इस्लाम, प्रथम भाग)
9. शहर मक्का यहाँ तक कि खाना काबा के भी जो खास इबादत का मकाम है और बड़ा मुकद्दस घर है, मिट्टी और पत्थर की मूर्ति जिन्हें बुत कहते हैं, रखी गईं और उनकी पूजा होने लगी। इस हालत में अल्लाहताला ने अपने फजलवा कर्म से हजरत इस्माइल हलिया इस्लाम के घराने में हमारे रसूल करीम अल्लाह वलिया वस्लम को पैदा किया। जिनकी पाक तालीम की बदौलत दुनिया के बड़े हिस्से से बुतपरस्ती का नामोनिशान बिल्कुल मिट गया और सिर्फ खुदा की ही परस्ती होने लगी। (पृ. 4-5, बे-दीनी)
10. सवाल: जो लोग खुदाताला के सिवा और किसी की पूजा करते हैं या दो-तीन खुदा की पूजा करते हैं, उन्हें क्या कहते हैं ?
जवाब: ऐसे लोगों को काफिर मुशरफ कहते हैं।
सवाल: मुशरफ बख्शे जाएंगे कि नहीं ?
जवाब: मुशरफों की बक्शीश नहीं होगी। वह हमेशा तकलीफ (मुसीबत) में रहेंगे
सवाल: क्या यह कह सकते हैं कि हिन्दुओं के पेशवा जैसे कृष्ण जी, रामचन्द्र जी वगैरह खुदा के पैगम्बर थे ?
जवाब: नहीं कह सकते - क्योंकि पैगम्बरी का खास ओहदा है जो खुदा की तरफ से खास बंदों को अता फरमाया जाता था। हिन्दुओं या अन्य कौमों के पेशवाओं के मुतालिक हम ज़्यादा से ज़्यादा इस कदर कह सकते हैं कि अगर उनके अमान दुरुस्त हों और उसकी तालीम आसमानी तालीम के खिलाफ न हों तो मुमकिन हैं कि वे नबी हैं मगर ये कहना अटकल का तीर है। (पृ. 12, तालीम इस्लाम का हिस्सा - 4)
कुर्बानी
1. प्रश्न: क्या मुस्लिम गाय की इबादत करता है ?
उत्तर: नहीं। वह खुदा की इबादत करता है। गाय एक मख्लूक, अल्लाह इसका मालिक है। इबादत खालिक के लिए है कि ना कि मख्लूख के लिए। हर चीज़ में फायदा है। पानी में फायदा है, हवा में फायदा है, मिट्टी में फायदा है। क्या तुम इन सबकी इबादत करोगे ? नहीं - हम सिर्फ खुदा की इबादत करते हैं। (पृ. 78, मनुहाजू अलहरव्यातू, भाग-2)
2. मेरी वालदा ने एक मोटी गाय ज़बे करने के लिए खरीदी थी और कहा कि इसमें सात हिस्से हैं, एक मेरा, एक तुम्हारे वालदा का, एक तुम्हारा और चार हिस्से तुम्हारे दो-भाइयों और दो-बहनों के। (पृ. 37, अल्लकरात अलअषदत भाग-2)
3. कुर्बानी बच्चे, बालिक मुसलमान - मर्द व औरत, पर कुर्बानी वर्जित है। एक आदमी एक बकरा, सात बकरे,,सात आदमियों की तरफ से, एक गाय या एक और कुर्बानी चाहिए। बकरा एक साल, गाय दो साल की, और ऊँट पाँच साल का, सब ऐबों से पाक होकर इनकी कुर्बानी जायज़ है। कुर्बानी करने वाला इसका गोश्त खुद भी खाए और अजीज़ों और दोस्तांे को भी खिलाए, खैरात भी करे, बेहतर तो यह है कि एक तिहाई गोश्त खैरात करे। (पृ. 22-23, छत्तीसगढ़ मदरसा बोर्ड, रायपुर, दीनियात कक्षा-4)
खुदा सब चीज़ों को पैदा करने वाला अच्छी तरह से जान लो कि ‘‘अल्लाह’’ ने तुमको मिट्टी से बनाया, इसकी कुदरत बहुत बड़ी है, देखो अल्लाह ने कैसे बड़े पहाड़ पैदा किए और समुद्र भी कैसे पैदा किए। (पृ. 84, मनुहाजू अलहरव्यातू-भाग-2)
यह ज़मीन, आसमान, सूरज, चाँद-सितारों को अल्लाह ने बनाया। अल्लाहताला एक है, बहुत नहीं। अल्लाहताला मुसलमान होने और बुरी आदतों से बचने मंे राज़ी होता है। वह काफिरों से कभी राज़ी नहीं होता। इस्लाम मज़हब तमाम मज़हबों से पाक, अच्छा और सच्चा मज़हब है। (पृ. 4-7, नूरी तालीम) अल्लाह एक है, उसका कोई शरीक नहीं, उसने ज़मीन, आसमान, चाँद, सूरज, सितारे, दरिया, पहाड़, दरख्त, इंसान, हैवान, फरिश्ते और इसी प्रकार दूसरी तमाम चीज़ों को पैदा किया।
जिहाद
1. आखिर अल्लाहमियां ने हुजू़र को हुक्म दिया कि दुश्मनों से लड़ाई करो।
ऐसी लड़ाइयों को ‘जिहाद’ कहते हैं। (पृ. 69, रसूल अरबी)
2. बादशाहों के नाम हुज़ूर ने खत लिखे जिसमें लिखा था कि तुम मुसलमान हो जाओ और अपनी रियाया को भी मुसलमान बनाओ वरना तुम पर अज़ाब आएगा। जिन्होंने खत को फाड़ कर फेंक दिया और गुस्ताखी की तो सल्तनत ही बरबाद हो जाएगी। (पृ. 106, रसूल अरबी)
3. हमें अच्छी तरह से मालूम है कि सब बुराइयों की जड़ और हर किस्म के फितना, फसाद, जु़ल्म व ज़्यादती इंसानों की अल्लाह से बगावत के कारण है। हम यह जानते हैं कि यह ज़िम्मेदारी मुसलमानों पर आयद होती है। (पृ. 124, तारीख इस्लाम प्रथम भाग)
4. आप में से बहुत से लोग सोचते होंगे कि हम लोग मदरसे के छोटे लड़के हैं - हम क्या कर सकते हैं। खुद को करीम, सलीम, कली, हलिया, वसलम ने भी कमसिन (छोटी आयु) में दुनिया को संभाल लिया। हम भी बच्चे मिलकर बैठें। इंशाअल्लाह दुनिया की रहनुमाई ऐसे पाक हाथों मंे होगी जो तमाम खराबियों का नामोनिशां मिटा दे। (पृ. 125-126, तारीख इस्लाम, प्रथम भाग)
इस्लाम
1. जब इस्लामी हुकूमत हुआ करती थी और हिम्मतें बुलंद थीं तो नौजवान ‘जिहाद’ करने और मुल्क फतह करने का रियावतमंद हुआ करता था। कोई हुकूमत की बुनियाद कायम करता या शहादत की मौत हासिल करता (पृ. 51, अल्लकरात अलअशदत भाग-2)
2. जन्नत ऐसी जगह है जहाँ पानी, दूध और शहद के दरिया हैं। इनसे नहरें निकलती हैं। जन्नत की औरतें इतनी खूबसरत हैं यदि उनमें से कोई औरत ज़मीन पर झाँके तो सूरज की रोशनी मिट जाए। (पृ. 9, नूरी तालीम)
3. जो लोग जन्नत में जाएंगे, सदा तंदरुस्त रहेंगे और हमेशा जिंदा रहेंगे (पृ. 10, नूरी तालीम)
4. सब अपने अमाल (कर्म) के हिसाब से जन्नत और दोज़ख में भेज दिए जाएंगे, जो मुसलमान अपने गुनाहों की वजह से दोज़ख में गिर पड़ेंगे, हमारे पैगम्बर उनकी सिफारिश करेंगे और दूसरे पैगम्बर गुनाहगारों की सिफारिश करेंगे और सारे मुसलमान जन्नत में चले जाएंगे और सभी काफिर दोज़ख में जाएंगे (पृ. 12, तलकीन ज़दीद)
5. कब्र में भी सवाल-जवाब होंगे। मोमिन जवाब देगा - अल्लाह मेरा रब है, इस्लाम मेरा दीन है। काफिर जवाब नहीं दे सकेगा और इसलिए कब्र में काफिरों और गुनाहगारों का अंजाम होगा। (पृ. 13, तलकीन ज़दीद)
6. वह कयामत के दिन जिं़दा करके सबके अमाल का हिसाब दे देगा और नेकी व बदी का बदला लेगा। (पृ. 26, इस्लामी तालिमात, पंजम के लिए)
7. रसूल-ए-खुदा जब किसी के घर में बच्चा होता है तो सबसे पहले उसे आपकी खिदमत में पेश किया जाता है। आप बच्चे के सिर पर हाथ फेरते, खजूर चबाकर लुआब (थूक) बच्चे के मुंह में डालते और उसके लिए बरकत की दुआ फरमाते (पृ. 13, हमारी किताब, कक्षा-4)
8. तुममें बेहतर वह शख्स है जो कुरआन सीखे और दूसरों को सिखाए। (पृ. 18, हमारी किताब-2, कक्षा-3)
9. हमारे प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद सली अल्लाह हलिया वस्लम को जो लोग मानते गए वह मोमिन कहलाए। बाकी जो बात न मानने वाले काफिर कहलाए। अरब के सारे लोग मुसलमान हो गए। सबका दीन इस्लाम हो गया (पृ. 16-17, हमारी किताब-2, कक्षा-3)
10. सवाल: कुफ्र और शरीक किसे कहते हैं ?
जवाब: जिन चीज़ों पर ईमान लाना ज़रूरी है उनमें से किसी एक बात को भी न मानना कुफ्र है। खुदाताला की किताबों को न मानना कुफ्र है। (पृ. 19, तालीम इस्लाम-4)
सवाल: यदि गुनहगार आदमी बगैर तौबा किए मर जाए तो जन्नत में जाएगा या नहीं?
जवाब: हाँ। सिवाए काफिर और मुशरक के बाकि तमाम गुनाहगार अपने गुनाहों की सज़ा पाकर जन्नत जाएंगे। काफिर कभी भी जन्नत नहीं जाएंगे (पृ. 25, तालीम, भाग-4) काफिर
1. पैगम्बर मोहम्मद ने उस्तनतुनिया के तरफ कूच किया और इसके लिए ज़बरदस्त तैयारी की क्योंकि यह खुदा का फरमान है। काफिरों से मुकाबला करने के लिए तुम जो भी ताकत जमा कर सकते हो, तैयार करो ( पृ. 62, अल्लकरात अलअशदत भाग-2)
2. इस्लाम को न मानने वाले को काफिर कहते हैं। मुसलमानों को अल्लाहताला मरने के बाद कब्र में आराम देगा और कयामत में हिसाब-किताब के बाद जन्नत में जगह इनायत फरमाएगा। काफिर अगरचे हर दुनिया में बड़े आराम से रहता है पर हकीकत में वह इज़्ज़त की जिन्दगी नहीं, और मरने के बाद उसे हमेशा दोज़ख की आग में जलाया जाएगा। (पृ-8, नूरी तालीम)
3. दोज़ख एक मकान है जिसमें काफिरों और गुनाहगारों के लिए आग भड़कायी गई है। हर तरफ आग ही आग होगी। गंदगी और कीचड़ होगी। (पृ. 11, नूरी तालीम)।
4. दीन इस्लाम को न मानना या दीन की जो बातें यकीन से साबित हैं इनमें से किसी एक का भी इंकार करना, ‘कुफ्र’ है। कुफ्र व शरक पर मरने वाले हमेशा दोज़ख में रहंेगे। जन्नत एक नुशानी, रूहानी और लतीफ जिस्मों का खूबसूरत आलम है, निहायत पाकिज़ा जहाँ आराम और राहत के जिस्म और जान के सारी लज्जतें हासिल जैसे बागात, महलात, नहरें, हूरंे (पृ. 5, तलकीन ज़दीद)
5. दोज़ख एक ऐसा जहान है जिसमें दुःख, दर्द, रंज व गम के सभी अश्वाब मोहिया होंगे और हर किस्म के अज़ाम मौजूद नहीं होंगे। खुदा ने उसको काफिरों और गुनाहगारों के लिए पैदा किया है और काफिर उसमें हमेशा रहेगा। (पृ. 6, तलकीन ज़दीद)
6. वह बड़ा गुनाह करता है जो हिन्दुओं और बड़ी बदऐतों के मेले में जाता है। काफिरों की दीवाली, दशहरा मनाना या इस मौके पर उनके साथ रहना यह सब गुनाह है। (पृ. 44, तलकीन ज़दीद)
7. जो खुदा के अंजाम से डरते हैं, वह काफिर हैं। जो खुदा को सज़दा करते हैं, वह खुदा की रहमत के उम्मीदवार हैं। (पृ. 144, छत्तीसगढ़ मदरसा बोर्ड, दीनीयात कक्षा-2)
8. सवाल: जो लोग खुदा ताला को नहीं मानते, उन्हें क्या कहते हैं ?
जवाब: उन्हें काफिर कहते हैं। (तालीम इस्लाम)
उपरिवर्णित पाठ्यक्रमों से स्पश्ट है कि मुसलमान बच्चों को किस प्रकार की षिक्षा, मदरसों और मख्तबों में दी जाती है। उनके मस्तिश्क में काफिरों (हिन्दुओं) के विरुद्ध ज़हर भर दिया जाता है तथा उन्हें उनसे जिहाद करने के लिए प्रेरित किया जाता है। क्या मदरसों से निकले बच्चे सच्चे देषभक्त बन सकते हैं? क्या इन मदरसों से पढ़े मुसलमान हिन्दुओं के साथ सह-अस्तित्व की भावना रख सकते हैं ?
साभार - हिन्दुस्थान में मदरसे पृष्ठ 69 से 74
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