Wednesday, March 23, 2011

धर्मों की एकता के लिए निमंत्रण का हुक्म

प्रस्तुति : डॉ. संतोष राय
 
जो मुसलमान कहते हैं इस्लाम तो शांति का मजहब है वे यह बताए कि जब सारी दुनिया के मुसलमान इन बातों पर सहमत हैं कि इस्लाम ही एकमात्र सच्चा धर्म है http://www.islamhouse.com/p/289311 तो शांति कैसे आ सकती है ? अब वे यह बात क्यों कहते हैं या तो वे इस्लाम के मूल सिद्धान्त को नहीं जानते या फिर वे हिन्दुऒं को मूर्ख बनाने के लिए एसा कहते हैं । अन्य धर्मावलम्बयों को इस्लाम की शांति समझाने से पहले वे स्वयं आपस में एकमत हो जाएं । भारत के मुसलमानों को इस फतवे का जवाब देना होगा व यदि नहीं देते तो फतवे को ठीक मानकर हिन्दुऒं को जिहाद का जवाब देने के लिए तैयार हो जाना चाहिए । यह फतवा सभी सेक्यूलर कहलाने वाले नेताऒं के मुंह पर तमाचा है । इसे पढ़ने के बाद वे किस मुंह से इस्लाम की तरफदारी करेंगे? हिन्दुओं की मूल समस्या यह है कि वे जैसे स्वयं हैं इस्लाम व ईसाइयत को भी उसी श्रेणी में रखते हैं और इसी कारण वे आज तक इसलाम के हाथों मार खाते रहे हैं । : 
उक्त फतवे से यह स्पष्ट हो गया है कि मुसलमान किसी भी देश में अन्य धर्मावलम्बियों के साथ नहीं रह सकते हैं । सऊदी आरब की साइट इस्लाम हाउस में एक फत्वा इसी विषय पर लिया गया है । विषय है
‘‘ क्या अन्य धर्मों की इस्लाम के साथ एकता स्थापित की जा सकती है ।
इस फतवे को पढ़कर समस्त देशवासी जवाब दें कि क्या इस्लाम व मुसलमानों से कुरआन व शरीयत में एसी खतरनाक बातों के रहते विश्वास किया जा सकता है ? मुसलमान जवाब दें कि इनमें कौन सी बात वे भारत के मदरसों में नहीं पढ़ाते हैं ? क्या उन्होंने कुरआन व हदीस को संशोधित करके पढ़ाना शुरू कर दिया है ?यदि नहीं तो वे हिन्दुऒं के किसी भी प्रतिकार पर शोर मचाना बंद कर दें क्योंकि यह संविधान द्वारा दिया गया अधिकार है कि प्रत्येक को अपनी व अपने धर्म की रक्षा करने का अधिकार है ( इस तथ्य को जानते हुए कि मुसलमानों ने सभी गैर मुसलमानों के विरूद्घ कलिमा को सर्वोच्च सिद्घ करने के लिए जेहाद छेड़ रखा है )। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि इस्लाम में अन्य सभी धर्मों को समाप्त करने की शिक्षा दी जाती है । सरकार मदरसों को दी जाने वाली समस्त सहायता बंद करे व सरकार से मांग की जाती है कि वह विद्वानों से इस्लाम का पूर्ण अध्ययन करवा कर एसी समस्त घृणा देने वाली आयतों को कुरआन में से निकाले । : 
क्या अन्य धर्मों इस्लाम के साथ एकता स्थापित की जा सकती है के उत्तर में विद्वान मुल्ला का कहना है कि इस्लामी आस्था के मूल सिद्वान्तों में से एक यह है कि: 
‘‘ धरती पर इस्लाम के सिवाय कोई दूसरा धर्म नहीं पाया जाता है और यह अंतिम धर्म हैं इसने अपने से पूर्व के सभी धर्म निरस्त कर दिए हैं । अतः पृथ्वी पर इस्लाम के अलावा कोई धर्म बाकी नहीं जिससे अल्लाह की इबादत की जाए । : 
दूसरा यह कि कुरआन के आने के बाद सारी पूर्व पुस्तकें ( जैसे वेद रामायण इत्यादि ) कुरआन द्वारा खरिज कर दी गयी हैं । इसके बाद कहा गया है कि "उन लोगों के लिए हलाकत है, जो खुद अपने हाथों लिखी किताब को अल्लाह की किताब कहते हैं, और इस तरह दुनिया (धन) कमाते हैं, अपने हाथों लिखने की वजह से उन की बरबादी है, और अपनी इस कमाई की वजह से उन का विनाश है। व इसके बाद लिखी गयी सारी पुस्तकें जैसे रामचरितमानस, गुरू ग्रन्थ साहब इत्यादि बकवास हैं : 
तीसरा यह कि मौहम्मद के अतिरक्ति कोई अन्य रसूल नहीं जिसकी पैरवी अब अनिवार्य हो इस समय यदि ईसामसीह, राम कृष्ण या हजरत मूसा भी पैदा होते तो उनके लिए यह अनिवार्य होता की वो अल्लाह पर व मौहम्मद पर ईमान लांए अर्थात मुलसमान बन जाए । : 
पांचवी - यहूदियों और इन के अलावा अन्य लोगों में से जो जिसने भी इस्लाम स्वीकार नहीं किया है उसके कुफ्र का विश्वास रखना ( कुफ्र का अर्थ ) और जिस पर हुज्जत अर्थात जो मेरे बारे में सुने पर फिर भी शरीयत पर ईमान न लाए उसके काफिर नाम देना अनिवार्य है । छंटी बात यह है कि ये लोग जो सभी धर्मों की एकता का ढोंग करते हैं ये इस्लाम को समाप्त करने के लिए ऐसा करते हैं : 
सातंवी बात में यह स्पष्ट किया गया है कि इस एकता का उद्देश्य मुसलमानों और काफिरों के बीच घृणा के बंध को तोड़ देना है, फिर न तो (इस्लाम के लिए) दोस्ती और दुश्मनी बाक़ी रह जायेगी, और न धरती पर अल्लाह के कलिमा को सर्वोच्च करने के लिए युद्ध और जिहाद ही बाक़ी रह जायेगा । जो इस्लाम ग्रहण नही करते उनसे लड़ो जब तक कि वे जजिया न देने लगें । और अंत में कहा गया है कि अल्लाह का घर केवल मस्जिदें हैं । गिरजा घर और पूजा स्थल ( मंदिर, गुरूद्वारा इत्यादि ञ बल्कि ये ऐसे घर हैं जिनमें अल्लाह के साथ कुफ्र किया जाता है और उनके निवासी काफिर लोग हैं )। इसमें यह स्पष्ट किया है कि अल्लाह के कलिमा को सर्वोच्च करने के लिए जिहाद किया जा रहा है । : 
शांति चाहने वाले मुसलमानों से यह अपेक्षा की जाती है कि या तो वे इस फत्वे के संबंध में अपना स्पष्टीकरण दें अथवा यदि कोई स्पष्टीकरण न हो तो इस्लाम को छोड़कर हिन्दू धर्म स्वीकार करलें । 
 

1 comment:

Anonymous said...

in katuo ki ma chod dalo. tabhi sudhrenge!