Tuesday, November 26, 2013

अमेठी का तथाकथित सामूहिक बलात्‍कार काण्‍ड

अनिल श्रीवास्‍तव

राहुल गांधी को बदनाम करने की साजिश में नरेंन्‍द्र मोदी के शामिल होने का जाल बुन रही है सीबीआई

समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव भयभीत हैं। उन्‍हें डर है कि अगर उन्‍होंने केंद्र की संप्रग सरकार से समर्थन वापस लिया तो केन्‍द्र सरकार उन्‍हें जेल में डाल सकती है। पिछले दिनों उन्‍होंने अपना यह डर सार्वजनिक रूप से व्‍यक्‍त भी किया था। उनका कहना था कि केन्‍द्र से लड़ना आसान नही है। केन्‍द्र सरकार के हजार हाथ होते हैं। वह सीबीआई लगा देती है। मुकदमा बना देती है। जेल में डाल सकती है। आय से अधिक संपत्त्‍िा मामले में केन्‍द्र सरकार के रवैये से हरदम किसी अनहोनी को लेकर आशंकित रहने वाले मुलायम सिंह का डर बेबुनियाद नही है। केन्‍द्रीय सत्‍ता के राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिये बदनाम सीबीआई एक अन्‍य मामले में मुलायम सिंह यादव, उनके मुख्‍यमंत्री पुत्र अखिलेश यादव व भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद के प्रत्‍याशी गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी को फंसाने के लिये अतिरिक्‍त प्रयास कर रही है।
 


सीबीआई के एक डीएसपी स्‍तर के अधिकारी जांच के नाम पर अखिल भारत हिन्‍दू महासभा के नेता डॉ0 संतोष राय पर मुलायम सिंह यादव, उनके पुत्र अखिलेश यादव तथा बाद में गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ बयान देने के लिये दबाव डाल रहे हैं। डीएसपी यह भी चाहते हैं कि डॉ0 राय अमेठी में वर्ष 2006 में हुये एक कथित सामूहिक बलात्‍कार काण्‍ड में राहुल गांधी को बदनाम करने की साजिश में इन तीनों के शामिल होने का बयान दें। डॉ0 संतोष राय ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिश और विभिन्‍न राजनीतिक दलों के शीर्ष नेतृत्‍व को पत्र लिखकर सीबीआई की इस गैर कानूनी कार्रवाई की जानकारी दी है तथा खुद व परिवार को सीबीआई से बचाने की गुहार लगाई है।

 


जिस मामले में सीबीआई दबाव डालकर डॉ0 संतोष राय से मुलायम-मोदी के खिलाफ बयान दिलवाना चाहती है, वह वर्ष 2006 का है। तब अपुष्‍ट रूप से खबरें आई थीं कि अमेठी में 3 दिसंबर, 2006 को एक युवती से तथाकथित सामूहिक बलात्‍कार हुआ था। इन अपुष्‍ट खबरों के मुताबिक वह युवती कांग्रेस पार्टी की कार्यकर्ता थी और अमेठी दौरे पर गये राहुल गांधी से मिलने आई थी। कहते हैं कि उस कथित सामूहिक बलात्‍कार की घटना के बाद उस युवती ने पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखाने का प्रयास किया, लेकिन उसकी रिपोर्ट नहीं लिखी गई। बाद में वह युवती और उसकी मां ने दिल्‍ली आकर कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी से मिलने का प्रयास किया, लेकिन उनसे उनकी मुलाकात नहीं हो सकी। प्रिंट मीडिया से गायब, लेकिन सोशल मीडिया पर बेहद चचित रहे इस कथित सामूहिक बलात्‍कार कांड में राहुल गांधी और उनके विदेशी मित्रों के नाम भी उछले थे। साइबर मीडिया में इस घटना की चर्चा के बाद कथित पीडि़ता और उसका परिवार घर छोड़ कर गायब हो गया था।

सपा नेता व पूर्व विधायक किशोर समरिते ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल कर पुलिस को उस युवती और उसके परिवार को प्रस्‍तुत करने का निर्देश देने का अनुरोध किया था। समरिते ने अपनी याचिका में कहा था कि युवती और उसके परिवार को बंधक बनाकर रखा गया है। इसी तरह की याचिका खुद को पीडि़ता का रिश्‍तेदार बताने वाले गजेन्‍द्र पाल सिंह की तरफ से भी दाखिल की गयी थी। कोर्ट के आदेश पर पुलिसे ने उस युवती और उसके परिवार को कोर्ट के सम्‍मुख प्रस्‍तुत किया तो उस युवती ने बताया कि उसका नाम कीर्ति सिंह और उसके माता-पिता का नाम सुशीला और बलराम सिंह है तथा न तो उसे और न ही उसके परिवार को किसी ने बंधक बना कर रखा था। उसके बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर पचास लाख का जुर्माना लगा दिया था और एक हाई प्रोफाईल व्‍यक्ति को बदनाम करने के प्रयास का स्‍वतंत्र संज्ञान लेते हुये मामले की सीबीआई जांच का निर्देश दिया था। सीबीआई ने समरीते के खिलाफ धारा 120 बी (आपराधिक साजिश), 181 (शपथ पूर्वक असत्‍य बयान देना), 211 ( असत्‍य आरोप लगाना) और 499-500 (बदनाम करना) के अंतर्गत मामला दर्ज किया था। समरीते ने हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में अपील दायर की थी। बकौल डॉ0 संतोष राय इस मामले की जांच के सिलसिले में ही सीबीआई ने मुलायम-मोदी का झूठा नाम लेने का दबाव बनाया था।



डॉ0 संतोष राय के मुताबिक वह इस मामले में न तो अभियुक्‍त हैं न ही पक्षकार। उन्‍हें इस मामले का सीबीआई से ही पता चला था। एक दिन अचानक सीबीआई ने उन्‍हें बुला लिया और तबसे वह उन पर लगातार दबाव बनाये हुये हैं। सीबीआई के डीएसपी अनिल कुमार यादव उन्‍हें अवैधानिक व गैर आधिकारिक रूप से फोन कर सीबीआई के दफ्तर बुलाते रहते हैं। डॉ0 राय के अनुसार कई बार सीबीआई दफ्तर का चक्‍कर लगाने के बाद उन्‍होंने डीएसपी से उन्‍हें गैर कानूनी ढंग से परेशान न करने को कहा तो डीएसपी ने धमकी दी कि अब व उन्‍हें कानूनी रूप से फंसा देगा, क्‍योंकि उनके पास ताकत है और वह कुछ भी झूठा केस बना सकता है। इसके बाद डीएसपी ने पूछताछ को कानूनी रूप देते हुये डॉ0 संतोष राय को भारतीय दण्‍ड संहिता प्रक्रिया की धारा 160 के अंतर्गत नोटिस भेजा, साथ ही यह परामर्श दिया कि प्रैक्टिकल बनो और सत्‍ता से मत टकराओ। सीबीआई के डीएसपी का कहना था कि उसके ऊपर इस बात का बहुत दबाव है कि वह (मुझसे डॉ0 राय से) यह बयान दिलवा दे कि मैंने मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव व कुछ अन्‍य नेताओं के कहने पर राहुल गांधी को फंसाने का प्रयास किया था। डीएसपी ने यह भी कहा था कि उस पर मुझसे अदालत में यह बयान दिलवाने की भी जिम्‍मेदारी थी। डॉ0 संतोष राय का कहना है कि 21 मार्च को जब वह सीबीआई के कार्यालय गये तो डीएसपी ने कहा कि यादवों को भूल जाओ, अब नरेंद्र मोदी का नाम लो और इकबालिया बयान दो कि मोदी के कहने पर राहुल जी को बदनाम करने की साजिश रची थी।


डीएसपी ने डींग मारते हुये कहा कि उसे पुलिस अधिकारियों, विशेषकर गुजरात के आईपीएस अधिकारियों को फंसाने में मजा आता है और गुजरात में उसके नाम का आतंक है। डीएसपी ने जोर देकर कहा था कि वह तो (पपेट) है, उसे तो ऊपर वालों के आदेश मानने हैं और ऊपर वालों के कहे अनुसार ही कर रहा है। होली से एक दिन पहले 26 मार्च को डीएसपी ने सीआरपीसी की धारा 160 के अंतर्गत 11 बजे नोटिस सर्व करवाकर डॉ0 संतोष राय को 12 बजे सीबीआई कार्यालय में उपस्थित होने का आदेश दिया, इसके साथ ही सीबीआई की एक टीम डॉ0 राय के घर पहुंच गई। डॉ0 राय ने पैंथर पार्टी के चेयरमैन और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्‍ठ वकील प्रोफेसर भीम सिंह से संपर्क किया। उनके हस्‍तक्षेप के बाद सीबीआई ने डॉ0 राय को एक दिन की मोहलत दी और होली के बाद 28 मार्च को सीबीआई कार्यालय में उपस्थित होने को कहा। सीबीआई ने डॉ0 राय की कुछ जांचे भी करवाई हैं और उनकी आवाज के नमूने भी लिये हैं जिनसे उन्‍हें कुछ लाभ नही हुआ है। सीबीआई के नोटिस के मुताबिक उसे लगता है कि डॉ0 राय इस मामले से अवगत थे जबकि डॉ0 राय का कहना है कि किशोर समरीते ने उनसे फोन पर बात कर उनसे अदालती लड़ाई में मदद मांगी थी।

उन्‍होंने समरीते की अपने संगठन के अन्‍य अधिकारियों से मुलाकात करा दी थी जिन्‍होंने यह कहते हुये किसी मदद से इंकार कर दिया था कि समरीते का उनकी विचारधारा में विश्‍वास नही है। डॉ0 राय के अनुसार इसी आधार पर सीबीआई उन्‍हें एक बिलकुल ही झूठे मामले में फंसाने और उनके माध्‍यम से प्रखर हिन्‍दूवादी संगठनों को बदनाम करने की साजिश रच रही है। स्‍पष्ट है मुलायम सिंह, उनके पुत्र उ0 प्र0 के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सीबीआर्इ के रडार पर हैं। वह इन तीनों के खिलाफ विशेष रूचि दिखा रही है, अन्यथा सीबीआर्इ का एक अदना सा डीएसपी देश के तमाम दूसरे नेताओं को छोड़कर सिर्फ इन तीनों के ही नाम नही लेता। यह स्पष्ट भी है कि सीबीआर्इ का डीएसपी अपने स्तर पर इतने बड़े नेताओं के नाम झूठे मामले में शामिल करवाने का निर्णय नही ले सकता, जैसा कि वह खुद स्वीकार करता है कि वह ''पपेट'' है और उपर वालों के आदेशों का पालन कर रहा है। सीबीआर्इ के उच्च अधिकारी और उनके राजनीतिक आकाओं की पूरे मामले में संलिप्तता साफ नजर आती है। डा0 संतोष राय ने अपनी बातों की सत्यता जांचने के लिये अपना और डीएसपी का नार्को टेस्ट कराने का आग्रह सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस से किया है।

देश के तमाम नेताओं को छोड़कर सिर्फ तीन नेताओं को सीबीआर्इ द्वारा अपने ही हिट लिस्ट में लेने की वजह भी साफ है। संप्रग सरकार के संकट के समय 'स्टेंड बार्इ सपोर्टके रूप में हरदम तत्पर रहने वाले मुलायम सिंह अगले आम चुनाव के बाद केन्द्र में तीसरे मोर्चे की सरकार की संभावना को देखकर कांग्रेस से अलग और कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकने वाले रास्ते पर चल रहे हैं। वह संप्रग सरकार को समर्थन देते हुये भी कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर कांग्रेस का विरोध करने लगे हैं। उन्होंने अपने लिये उ0 प्र0 की कुल 80 लोकसभा सीटों में से 60 जीतने का लक्ष्य बना रखा है। इतनी सीटें यदि वह जीत गये तो केन्द्र की गद्दी पर उनके बैठने की संभावना काफी बढ़ सकती है। इसके परिणामस्वरूप कांग्रेस की सीटें कम होंगी। वह मुलायम को पीएम पद पर नही देखना चाहेगी। इसलिये कांग्रेस से कुछ अलग राह पर चलने की मुलायम की कसमकस के साथ ही वह और उनके पुत्र अखिलेश यादव सीबीआर्इ के हिट लिस्ट में आ गये हैं। मुलायम की वजह से ही राहुल के यूपी का मिशन-2012 फेल हुआ था और मुलायम का मौजूदा रवैया कायम रहा तो उनका मिशन-2014 भी फेल हो सकता है। कांग्रेस की बेचैनी बढ़ रही है और इसी के साथ मुलायम सिंह का डर भी। डीएमके के समर्थन वापस लेने क लगभग तुरंत बाद स्टालिन के घर पर सीबीआर्इ के छापे ने उनके डर को और बढ़ा दिया है।

जहां तक मोदी का सवाल है, वह हमेंशा से ही सीबीआर्इ के निशाने पर रहे हैं। फर्जी इनकाउण्टर के जांच के नाम पर मोदी को फंसाने की खूब कोशिशें हुयीं। उनके गृहराज्य मंत्री अमित शाह और कर्इ पुलिस अधिकारियों को जेल जाना पड़ा। लेकिन मोदी की संलिप्तता साबित नही की जा सकी। अब, जब मोदी भाजपा की तरफ प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में हैं और कांग्रेस नेतृत्व के लिये एक बड़े चुनौती बनते जा रहे हैं, तो सीबीआर्इ की उनमें नये सिरे से दिलचस्पी जगी है। उल्लेखनीय है कि डा0 संतोष राय पर अमेठी के कथित सामूहिक बलात्कार काण्ड में राहुल गांधी को बदनाम करने की साजिश में मोदी के शामिल होने का बयान दिलवाने का दबाव डालने वाला डीएसपी भी डींग मार रहा है कि गुजरात में उसके नाम का आतंक है और उसने वहां के कर्इ आर्इपीएस अधिकारियों को जेल की हवा खिला दी है। इस अधिकारी का यह भी दावा था कि वह अपने उच्च अधिकारियों को खुश करने के कारण 14 साल से सीबीआर्इ में डंटा हुआ है। स्पष्ट है कि ''कांग्रेस इन्वेस्टीगेशन एजेंसी’’ के रूप में बदनाम हो चुकी यह केन्द्रीय एजेंसी अब भी मोदी के खिलाफ कुछ न कुछ मामला बनाने की उधेड़-बुन में लगी है।

दिलचस्प यह है कि जिस समय सीबीआर्इ डा0 राय पर झूठा दबाव बयान देने का दबाव बना रही थी, लगभग उसी समय मोदी भाजपा की अंदरूनी बाधाओं को पार कर फिर से राष्ट्रीय क्षितिज पर अवतरित हो रहे थे। राजनाथ सिंह ने उन्हें भाजपा की सर्वोच्च डिसीजन मेंकिंग बाडी संसदीय बोर्ड में शामिल किया था। भाजपा संसदीय बोर्ड में मोदी को शामिल करने का सीधा अर्थ यह था कि वह पार्टी के शीर्ष स्तर पर होने वाले विचार-विमर्श और निर्णय लेने की प्रक्रिया में सीधे तौर पर भाग लेंगे। संसदीय बोर्ड में उनके समर्थकों की भरमार है, इसलिये यह निष्कर्ष भी निकाला जा सकता है कि पार्टी की राष्ट्रीय नीतियों पर मोदी की छाप देखने को मिलेगी, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उभरने के कारण उनकी और पार्टी की दुश्वारियां भी बढ़ने की आशंका है। सीबीआर्इ के अलावा कांग्रेस नेताओं की मोदी के खिलाफ घृणित भाषा में बयानबाजियां और उनकी उपलबिधयों को झुठलाने के अजीब-अजीब तर्क तो बस शुरूआत है। जैसे-जैसे राष्ट्रीय स्तर पर मोदी की सक्रियता बढ़ेगी, वैसे-वैसे उनका विरोध भी तीखा और तीव्रतर होता जायेगा। इसलिये केन्द्रीय स्तर पर उनकी सक्रियता का भाजपा और उनके नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के बृहत्तर हितों पर पड़ने वाले प्रभावों-दुष्प्रभावों का फूंक-फूंक कर आकलन किया जा रहा है।

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक यदि पार्टी के सामने यह विकल्प उपस्थित हुआ कि मोदी के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में एक बार फिर विपक्ष में बैठे या मोदी के बिना राजग के साथ सरकार बनाएं तो वह दूसरा विकल्प चुनेगी। मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने से सबसे बड़ा खतरा राजग के घटक दलों के विखरने का था, पार्टी का एक बड़ा तबका कह रहा था कि यदि राजग विखरता है, तो भी मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया जाना चाहिये और यह हुआ भी।


मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित कर चुनाव में उतारने वाले नेताओं का कहना है कि पूरे देश में इस समय स्पष्ट सत्ता विरोधी रूझान है। आम आदमी कांग्रेस से त्रस्त है। ऐसे में यदि एक स्पष्ट, सशक्त और सक्षम विकल्प प्रस्तुत नही किया गया तो सत्ता विरोधी वोट बंट जायेगा, जिससे न तो भाजपा को लाभ होगा न ही उसके सहयोगी दलों को। इन नेताओं के अनुसार मोदी तेजी से आम आदमी की पसंद बनते जा रहे हैं। संप्रग सरकार के कुशासन और ढेरों घपलों-घोटालों की तुलना में मोदी का सुशासन और भ्रष्टाचार से मुक्त छवि उन्हें मजबूत विकल्प बनाते हैं। इन नेताओं के मुताबिक मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने पर भाजपा अपने चुनावी इतिहास के सर्वश्रेष्ट प्रदर्शन 182 सीटों का आंकड़ा भी पार कर सकती है। उनके नेतृत्व के कारण यदि जदयू जैसे कुछ दल भाजपा का साथ छोड़ते भी हैं तो उनके जाने से जितनी सीटों का नुकसान होगा उससे कहीं ज्यादा सीटें भाजपा जीत लेगी। यदि समर्थक नेताओं के अनुसार 1998 और 1999 में सीटों को सबसे ज्यादा 182 सीटों पर जीत मिली थी। 1998 में इनको मिले वोटों का प्रतिशत सबसे ज्यादा 25.6 प्रतिशत था, जो क्रमश: घटते-घटते 2009 में 18.8 प्रतिशत रह गया। अनुकूल परिसिथतियों में भी पिछले चुनावों में भी भाजपा का प्रदर्शन चिंताजनक था।
भाजपा के खराब प्रदर्शन के कर्इ कारणों में से एक कारण लाल कृष्ण आडवाणी का नेतृत्व भी था जो मतदाताओं में मजबूत विकल्प के रूप में उत्साह का संचार नही कर सका था। आडवाणी की अपनी छवि निर्माण की कोशिशों और जिन्ना की मजार पर मत्था टेकने को भाजपा के कोर मतदाताओं ने पसंद नही किया था। मोदी को भाजपा के कोर मतदाताओं वृहत्तर भगवा परिवार का समर्थन तो मिल ही रहा है, मंहगार्इ और भ्रष्टाचार से त्रस्त आम जनता भी उन्हें पसंद कर रही है। मोदी समर्थकों का कहना है कि इतिहास के नाजुक मोड़ पर यदि भाजपा नेतृत्व ने दृढ़ता से ही सही निर्णय नहीं लिया होता तो वह फिर ''रिवर्स गियर’’ में चल सकती थी।


भाजपा के अंदर और पूरे भगवा परिवार में मोदी समर्थकों की संख्या दिन-पर-दिन बढ़ती जा रही है लेकिन उनका विरोध करने वालों की संख्या भी कम नही है। मोदी विरोधी विभिन्न राजनीतिक दलों व राजग के घटक दलों के बीच उनकी स्वीकार्यता को लेकर सबसे ज्यादा सशंकित हैं। इसी आधार पर वे मोदी का सबसे ज्यादा मोदी का विरोध भी करते हैं। इस खेमें के नेताओं का कहना है यदि मोदी के बगैर राजग की सरकार बनती है तो भाजपा को यह विकल्प चुनना चाहिये। इन नेताओं का यह भी कहना है कि आज गठबंधन का युग है, इसमें सबको साथ लेकर चलने की जरूरत है। दूसरे दलों से सामंजस्य बनाये बिना चुनाव जीतना या सरकार चलाना मुशिकल है इसलिये भाजपा को हर हाल में राजग की एकता को बनाये रखने का प्रयास करना चाहिये। यदि राजग की एकता कायम रही तो कांग्रेस से नाराज होकर संप्रग से बाहर निकालने वाले दल तथा अभी किसी भी गठबंधन में शामिल नही छोटे-छोटे दल राजग के साथ आ सकते हैं। अभी जहां भाजपा मजबूत नही है या जहां उनका व्यापक आधार नही है, वहां ये दल महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। बोर्ड में शामिल किये जाने से मोदी का कद बढ़ा है। संसदीय बोर्ड में अब जब भी कोयी चर्चा होगी तो उसमें खुद मोदी शरीक होते हैं और चर्चा खुद उनके बारे में हो तो स्वाभिक रूप से अन्य नेता खुलकर अपने विचार रखने में हिचक महसूस करेंगे। संसदीय बोर्ड की जिन बैठकों में यह मौजूद नही रहेंगे, उनमें भी उनका विरोध करने का साहस शायद ही किसी अन्य नेता में हो। लेकिन अब भी उनके लिये दिल्ली का रास्ता पूरी तरह निष्कंटक नही हुआ है।


चिकित्सक से बने हिन्दूवादी नेता
डा0 संतोष राय कटटर हिन्दूवादी नेता हैं। वैसे वह 'एपिडेमिक डिजीजेज एण्ड पबिलक हेल्थ के डाक्टर हैं, एमबीबीएस करने के बाद एम्स से एमडी किया है। लेकिन हिन्दूवादी विचारों से प्रभावित होकर वह नाथूराम गोडसे के छोटे भार्इ गोपाल गोडसे के कहने पर 1996 में हिन्दू महासभा में शामिल हो गये थे। एक कटटर हिन्दूवादी होने के नाते वह भार्इ परमानंद, डा0 बीएस मुंजे, वीर सावरकर के सिद्धांतों में विश्वास करते हैं और संवैधानिक माध्यम से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना को अपना उददेश्य बताते हैं। डा0 राय की लेखन, गायन, अभिनय आदि में रूचि है। गोडसे पर एक फिल्म भी शीघ्र ही प्रदर्शित करने की उनकी एक योजना है। वह हिन्दूमहासभा के वरिष्ठ नेता हैं तथा सुप्रीमकोर्ट में राम जन्मभूमि मामले में वादी हैं।


साभार- लोकस्‍वामी, हिन्‍दी मैगजीन, पाक्षिक

Monday, November 25, 2013

अमेठी का तथाकथित सामूहिक बलात्‍कार काण्‍ड

अनिल श्रीवास्‍तव

राहुल गांधी को बदनाम करने की साजिश में नरेंन्‍द्र मोदी के शामिल होने का जाल बुन रही है सीबीआई


समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव भयभीत हैं। उन्‍हें डर है कि अगर उन्‍होंने केंद्र की संप्रग सरकार से समर्थन वापस लिया तो केन्‍द्र सरकार उन्‍हें जेल में डाल सकती है। पिछले दिनों उन्‍होंने अपना यह डर सार्वजनिक रूप से व्‍यक्‍त भी किया था। उनका कहना था कि केन्‍द्र से लड़ना आसान नही है। केन्‍द्र सरकार के हजार हाथ होते हैं। वह सीबीआई लगा देती है। मुकदमा बना देती है। जेल में डाल सकती है। आय से अधिक संपत्त्‍िा मामले में केन्‍द्र सरकार के रवैये से हरदम किसी अनहोनी को लेकर आशंकित रहने वाले मुलायम सिंह का डर बेबुनियाद नही है। केन्‍द्रीय सत्‍ता के राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिये बदनाम सीबीआई एक अन्‍य मामले में मुलायम सिंह यादव, उनके मुख्‍यमंत्री पुत्र अखिलेश यादव व भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद के प्रत्‍याशी गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी को फंसाने के लिये अतिरिक्‍त प्रयास कर रही है।



सीबीआई के एक डीएसपी स्‍तर के अधिकारी जांच के नाम पर अखिल भारत हिन्‍दू महासभा के नेता डॉ0 संतोष राय पर मुलायम सिंह यादव, उनके पुत्र अखिलेश यादव तथा बाद में गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ बयान देने के लिये दबाव डाल रहे हैं। डीएसपी यह भी चाहते हैं कि डॉ0 राय अमेठी में वर्ष 2006 में हुये एक कथित सामूहिक बलात्‍कार काण्‍ड में राहुल गांधी को बदनाम करने की साजिश में इन तीनों के शामिल होने का बयान दें। डॉ0 संतोष राय ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिश और विभिन्‍न राजनीतिक दलों के शीर्ष नेतृत्‍व को पत्र लिखकर सीबीआई की इस गैर कानूनी कार्रवाई की जानकारी दी है तथा खुद व परिवार को सीबीआई से बचाने की गुहार लगाई है।



जिस मामले में सीबीआई दबाव डालकर डॉ0 संतोष राय से मुलायम-मोदी के खिलाफ बयान दिलवाना चाहती है, वह वर्ष 2006 का है। तब अपुष्‍ट रूप से खबरें आई थीं कि अमेठी में 3 दिसंबर, 2006 को एक युवती से तथाकथित सामूहिक बलात्‍कार हुआ था। इन अपुष्‍ट खबरों के मुताबिक वह युवती कांग्रेस पार्टी की कार्यकर्ता थी और अमेठी दौरे पर गये राहुल गांधी से मिलने आई थी। कहते हैं कि उस कथित सामूहिक बलात्‍कार की घटना के बाद उस युवती ने पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखाने का प्रयास किया, लेकिन उसकी रिपोर्ट नहीं लिखी गई। बाद में वह युवती और उसकी मां ने दिल्‍ली आकर कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी से मिलने का प्रयास किया, लेकिन उनसे उनकी मुलाकात नहीं हो सकी। प्रिंट मीडिया से गायब, लेकिन सोशल मीडिया पर बेहद चचित रहे इस कथित सामूहिक बलात्‍कार कांड में राहुल गांधी और उनके विदेशी मित्रों के नाम भी उछले थे। साइबर मीडिया में इस घटना की चर्चा के बाद कथित पीडि़ता और उसका परिवार घर छोड़ कर गायब हो गया था।


सपा नेता व पूर्व विधायक किशोर समरिते ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल कर पुलिस को उस युवती और उसके परिवार को प्रस्‍तुत करने का निर्देश देने का अनुरोध किया था। समरिते ने अपनी याचिका में कहा था कि युवती और उसके परिवार को बंधक बनाकर रखा गया है। इसी तरह की याचिका खुद को पीडि़ता का रिश्‍तेदार बताने वाले गजेन्‍द्र पाल सिंह की तरफ से भी दाखिल की गयी थी। कोर्ट के आदेश पर पुलिसे ने उस युवती और उसके परिवार को कोर्ट के सम्‍मुख प्रस्‍तुत किया तो उस युवती ने बताया कि उसका नाम कीर्ति सिंह और उसके माता-पिता का नाम सुशीला और बलराम सिंह है तथा न तो उसे और न ही उसके परिवार को किसी ने बंधक बना कर रखा था। उसके बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर पचास लाख का जुर्माना लगा दिया था और एक हाई प्रोफाईल व्‍यक्ति को बदनाम करने के प्रयास का स्‍वतंत्र संज्ञान लेते हुये मामले की सीबीआई जांच का निर्देश दिया था। सीबीआई ने समरीते के खिलाफ धारा 120 बी (आपराधिक साजिश), 181 (शपथ पूर्वक असत्‍य बयान देना), 211 ( असत्‍य आरोप लगाना) और 499-500 (बदनाम करना) के अंतर्गत मामला दर्ज किया था। समरीते ने हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में अपील दायर की थी। बकौल डॉ0 संतोष राय इस मामले की जांच के सिलसिले में ही सीबीआई ने मुलायम-मोदी का झूठा नाम लेने का दबाव बनाया था।



डॉ0 संतोष राय के मुताबिक वह इस मामले में न तो अभियुक्‍त हैं न ही पक्षकार। उन्‍हें इस मामले का सीबीआई से ही पता चला था। एक दिन अचानक सीबीआई ने उन्‍हें बुला लिया और तबसे वह उन पर लगातार दबाव बनाये हुये हैं। सीबीआई के डीएसपी अनिल कुमार यादव उन्‍हें अवैधानिक व गैर आधिकारिक रूप से फोन कर सीबीआई के दफ्तर बुलाते रहते हैं। डॉ0 राय के अनुसार कई बार सीबीआई दफ्तर का चक्‍कर लगाने के बाद उन्‍होंने डीएसपी से उन्‍हें गैर कानूनी ढंग से परेशान न करने को कहा तो डीएसपी ने धमकी दी कि अब व उन्‍हें कानूनी रूप से फंसा देगा, क्‍योंकि उनके पास ताकत है और वह कुछ भी झूठा केस बना सकता है। इसके बाद डीएसपी ने पूछताछ को कानूनी रूप देते हुये डॉ0 संतोष राय को भारतीय दण्‍ड संहिता प्रक्रिया की धारा 160 के अंतर्गत नोटिस भेजा, साथ ही यह परामर्श दिया कि प्रैक्टिकल बनो और सत्‍ता से मत टकराओ। सीबीआई के डीएसपी का कहना था कि उसके ऊपर इस बात का बहुत दबाव है कि वह (मुझसे डॉ0 राय से) यह बयान दिलवा दे कि मैंने मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव व कुछ अन्‍य नेताओं के कहने पर राहुल गांधी को फंसाने का प्रयास किया था। डीएसपी ने यह भी कहा था कि उस पर मुझसे अदालत में यह बयान दिलवाने की भी जिम्‍मेदारी थी। डॉ0 संतोष राय का कहना है कि 21 मार्च को जब वह सीबीआई के कार्यालय गये तो डीएसपी ने कहा कि यादवों को भूल जाओ, अब नरेंद्र मोदी का नाम लो और इकबालिया बयान दो कि मोदी के कहने पर राहुल जी को बदनाम करने की साजिश रची थी।


डीएसपी ने डींग मारते हुये कहा कि उसे पुलिस अधिकारियों, विशेषकर गुजरात के आईपीएस अधिकारियों को फंसाने में मजा आता है और गुजरात में उसके नाम का आतंक है। डीएसपी ने जोर देकर कहा था कि वह तो (पपेट) है, उसे तो ऊपर वालों के आदेश मानने हैं और ऊपर वालों के कहे अनुसार ही कर रहा है। होली से एक दिन पहले 26 मार्च को डीएसपी ने सीआरपीसी की धारा 160 के अंतर्गत 11 बजे नोटिस सर्व करवाकर डॉ0 संतोष राय को 12 बजे सीबीआई कार्यालय में उपस्थित होने का आदेश दिया, इसके साथ ही सीबीआई की एक टीम डॉ0 राय के घर पहुंच गई। डॉ0 राय ने पैंथर पार्टी के चेयरमैन और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्‍ठ वकील प्रोफेसर भीम सिंह से संपर्क किया। उनके हस्‍तक्षेप के बाद सीबीआई ने डॉ0 राय को एक दिन की मोहलत दी और होली के बाद 28 मार्च को सीबीआई कार्यालय में उपस्थित होने को कहा। सीबीआई ने डॉ0 राय की कुछ जांचे भी करवाई हैं और उनकी आवाज के नमूने भी लिये हैं जिनसे उन्‍हें कुछ लाभ नही हुआ है। सीबीआई के नोटिस के मुताबिक उसे लगता है कि डॉ0 राय इस मामले से अवगत थे जबकि डॉ0 राय का कहना है कि किशोर समरीते ने उनसे फोन पर बात कर उनसे अदालती लड़ाई में मदद मांगी थी।

उन्‍होंने समरीते की अपने संगठन के अन्‍य अधिकारियों से मुलाकात करा दी थी जिन्‍होंने यह कहते हुये किसी मदद से इंकार कर दिया था कि समरीते का उनकी विचारधारा में विश्‍वास नही है। डॉ0 राय के अनुसार इसी आधार पर सीबीआई उन्‍हें एक बिलकुल ही झूठे मामले में फंसाने और उनके माध्‍यम से प्रखर हिन्‍दूवादी संगठनों को बदनाम करने की साजिश रच रही है। स्‍पष्ट है मुलायम सिंह, उनके पुत्र उ0 प्र0 के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सीबीआर्इ के रडार पर हैं। वह इन तीनों के खिलाफ विशेष रूचि दिखा रही है, अन्यथा सीबीआर्इ का एक अदना सा डीएसपी देश के तमाम दूसरे नेताओं को छोड़कर सिर्फ इन तीनों के ही नाम नही लेता। यह स्पष्ट भी है कि सीबीआर्इ का डीएसपी अपने स्तर पर इतने बड़े नेताओं के नाम झूठे मामले में शामिल करवाने का निर्णय नही ले सकता, जैसा कि वह खुद स्वीकार करता है कि वह ''पपेट'' है और उपर वालों के आदेशों का पालन कर रहा है। सीबीआर्इ के उच्च अधिकारी और उनके राजनीतिक आकाओं की पूरे मामले में संलिप्तता साफ नजर आती है। डा0 संतोष राय ने अपनी बातों की सत्यता जांचने के लिये अपना और डीएसपी का नार्को टेस्ट कराने का आग्रह सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस से किया है।

देश के तमाम नेताओं को छोड़कर सिर्फ तीन नेताओं को सीबीआर्इ द्वारा अपने ही हिट लिस्ट में लेने की वजह भी साफ है। संप्रग सरकार के संकट के समय 'स्टेंड बार्इ सपोर्टके रूप में हरदम तत्पर रहने वाले मुलायम सिंह अगले आम चुनाव के बाद केन्द्र में तीसरे मोर्चे की सरकार की संभावना को देखकर कांग्रेस से अलग और कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकने वाले रास्ते पर चल रहे हैं। वह संप्रग सरकार को समर्थन देते हुये भी कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर कांग्रेस का विरोध करने लगे हैं। उन्होंने अपने लिये उ0 प्र0 की कुल 80 लोकसभा सीटों में से 60 जीतने का लक्ष्य बना रखा है। इतनी सीटें यदि वह जीत गये तो केन्द्र की गद्दी पर उनके बैठने की संभावना काफी बढ़ सकती है। इसके परिणामस्वरूप कांग्रेस की सीटें कम होंगी। वह मुलायम को पीएम पद पर नही देखना चाहेगी। इसलिये कांग्रेस से कुछ अलग राह पर चलने की मुलायम की कसमकस के साथ ही वह और उनके पुत्र अखिलेश यादव सीबीआर्इ के हिट लिस्ट में आ गये हैं। मुलायम की वजह से ही राहुल के यूपी का मिशन-2012 फेल हुआ था और मुलायम का मौजूदा रवैया कायम रहा तो उनका मिशन-2014 भी फेल हो सकता है। कांग्रेस की बेचैनी बढ़ रही है और इसी के साथ मुलायम सिंह का डर भी। डीएमके के समर्थन वापस लेने क लगभग तुरंत बाद स्टालिन के घर पर सीबीआर्इ के छापे ने उनके डर को और बढ़ा दिया है।

जहां तक मोदी का सवाल है, वह हमेंशा से ही सीबीआर्इ के निशाने पर रहे हैं। फर्जी इनकाउण्टर के जांच के नाम पर मोदी को फंसाने की खूब कोशिशें हुयीं। उनके गृहराज्य मंत्री अमित शाह और कर्इ पुलिस अधिकारियों को जेल जाना पड़ा। लेकिन मोदी की संलिप्तता साबित नही की जा सकी। अब, जब मोदी भाजपा की तरफ प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में हैं और कांग्रेस नेतृत्व के लिये एक बड़े चुनौती बनते जा रहे हैं, तो सीबीआर्इ की उनमें नये सिरे से दिलचस्पी जगी है। उल्लेखनीय है कि डा0 संतोष राय पर अमेठी के कथित सामूहिक बलात्कार काण्ड में राहुल गांधी को बदनाम करने की साजिश में मोदी के शामिल होने का बयान दिलवाने का दबाव डालने वाला डीएसपी भी डींग मार रहा है कि गुजरात में उसके नाम का आतंक है और उसने वहां के कर्इ आर्इपीएस अधिकारियों को जेल की हवा खिला दी है। इस अधिकारी का यह भी दावा था कि वह अपने उच्च अधिकारियों को खुश करने के कारण 14 साल से सीबीआर्इ में डंटा हुआ है। स्पष्ट है कि ''कांग्रेस इन्वेस्टीगेशन एजेंसी’’ के रूप में बदनाम हो चुकी यह केन्द्रीय एजेंसी अब भी मोदी के खिलाफ कुछ न कुछ मामला बनाने की उधेड़-बुन में लगी है।

दिलचस्प यह है कि जिस समय सीबीआर्इ डा0 राय पर झूठा दबाव बयान देने का दबाव बना रही थी, लगभग उसी समय मोदी भाजपा की अंदरूनी बाधाओं को पार कर फिर से राष्ट्रीय क्षितिज पर अवतरित हो रहे थे। राजनाथ सिंह ने उन्हें भाजपा की सर्वोच्च डिसीजन मेंकिंग बाडी संसदीय बोर्ड में शामिल किया था। भाजपा संसदीय बोर्ड में मोदी को शामिल करने का सीधा अर्थ यह था कि वह पार्टी के शीर्ष स्तर पर होने वाले विचार-विमर्श और निर्णय लेने की प्रक्रिया में सीधे तौर पर भाग लेंगे। संसदीय बोर्ड में उनके समर्थकों की भरमार है, इसलिये यह निष्कर्ष भी निकाला जा सकता है कि पार्टी की राष्ट्रीय नीतियों पर मोदी की छाप देखने को मिलेगी, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उभरने के कारण उनकी और पार्टी की दुश्वारियां भी बढ़ने की आशंका है। सीबीआर्इ के अलावा कांग्रेस नेताओं की मोदी के खिलाफ घृणित भाषा में बयानबाजियां और उनकी उपलबिधयों को झुठलाने के अजीब-अजीब तर्क तो बस शुरूआत है। जैसे-जैसे राष्ट्रीय स्तर पर मोदी की सक्रियता बढ़ेगी, वैसे-वैसे उनका विरोध भी तीखा और तीव्रतर होता जायेगा। इसलिये केन्द्रीय स्तर पर उनकी सक्रियता का भाजपा और उनके नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के बृहत्तर हितों पर पड़ने वाले प्रभावों-दुष्प्रभावों का फूंक-फूंक कर आकलन किया जा रहा है।

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक यदि पार्टी के सामने यह विकल्प उपस्थित हुआ कि मोदी के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में एक बार फिर विपक्ष में बैठे या मोदी के बिना राजग के साथ सरकार बनाएं तो वह दूसरा विकल्प चुनेगी। मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने से सबसे बड़ा खतरा राजग के घटक दलों के विखरने का था, पार्टी का एक बड़ा तबका कह रहा था कि यदि राजग विखरता है, तो भी मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया जाना चाहिये और यह हुआ भी।


मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित कर चुनाव में उतारने वाले नेताओं का कहना है कि पूरे देश में इस समय स्पष्ट सत्ता विरोधी रूझान है। आम आदमी कांग्रेस से त्रस्त है। ऐसे में यदि एक स्पष्ट, सशक्त और सक्षम विकल्प प्रस्तुत नही किया गया तो सत्ता विरोधी वोट बंट जायेगा, जिससे न तो भाजपा को लाभ होगा न ही उसके सहयोगी दलों को। इन नेताओं के अनुसार मोदी तेजी से आम आदमी की पसंद बनते जा रहे हैं। संप्रग सरकार के कुशासन और ढेरों घपलों-घोटालों की तुलना में मोदी का सुशासन और भ्रष्टाचार से मुक्त छवि उन्हें मजबूत विकल्प बनाते हैं। इन नेताओं के मुताबिक मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने पर भाजपा अपने चुनावी इतिहास के सर्वश्रेष्ट प्रदर्शन 182 सीटों का आंकड़ा भी पार कर सकती है। उनके नेतृत्व के कारण यदि जदयू जैसे कुछ दल भाजपा का साथ छोड़ते भी हैं तो उनके जाने से जितनी सीटों का नुकसान होगा उससे कहीं ज्यादा सीटें भाजपा जीत लेगी। यदि समर्थक नेताओं के अनुसार 1998 और 1999 में सीटों को सबसे ज्यादा 182 सीटों पर जीत मिली थी। 1998 में इनको मिले वोटों का प्रतिशत सबसे ज्यादा 25.6 प्रतिशत था, जो क्रमश: घटते-घटते 2009 में 18.8 प्रतिशत रह गया। अनुकूल परिसिथतियों में भी पिछले चुनावों में भी भाजपा का प्रदर्शन चिंताजनक था।
भाजपा के खराब प्रदर्शन के कर्इ कारणों में से एक कारण लाल कृष्ण आडवाणी का नेतृत्व भी था जो मतदाताओं में मजबूत विकल्प के रूप में उत्साह का संचार नही कर सका था। आडवाणी की अपनी छवि निर्माण की कोशिशों और जिन्ना की मजार पर मत्था टेकने को भाजपा के कोर मतदाताओं ने पसंद नही किया था। मोदी को भाजपा के कोर मतदाताओं वृहत्तर भगवा परिवार का समर्थन तो मिल ही रहा है, मंहगार्इ और भ्रष्टाचार से त्रस्त आम जनता भी उन्हें पसंद कर रही है। मोदी समर्थकों का कहना है कि इतिहास के नाजुक मोड़ पर यदि भाजपा नेतृत्व ने दृढ़ता से ही सही निर्णय नहीं लिया होता तो वह फिर ''रिवर्स गियर’’ में चल सकती थी।


भाजपा के अंदर और पूरे भगवा परिवार में मोदी समर्थकों की संख्या दिन-पर-दिन बढ़ती जा रही है लेकिन उनका विरोध करने वालों की संख्या भी कम नही है। मोदी विरोधी विभिन्न राजनीतिक दलों व राजग के घटक दलों के बीच उनकी स्वीकार्यता को लेकर सबसे ज्यादा सशंकित हैं। इसी आधार पर वे मोदी का सबसे ज्यादा मोदी का विरोध भी करते हैं। इस खेमें के नेताओं का कहना है यदि मोदी के बगैर राजग की सरकार बनती है तो भाजपा को यह विकल्प चुनना चाहिये। इन नेताओं का यह भी कहना है कि आज गठबंधन का युग है, इसमें सबको साथ लेकर चलने की जरूरत है। दूसरे दलों से सामंजस्य बनाये बिना चुनाव जीतना या सरकार चलाना मुशिकल है इसलिये भाजपा को हर हाल में राजग की एकता को बनाये रखने का प्रयास करना चाहिये। यदि राजग की एकता कायम रही तो कांग्रेस से नाराज होकर संप्रग से बाहर निकालने वाले दल तथा अभी किसी भी गठबंधन में शामिल नही छोटे-छोटे दल राजग के साथ आ सकते हैं। अभी जहां भाजपा मजबूत नही है या जहां उनका व्यापक आधार नही है, वहां ये दल महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। बोर्ड में शामिल किये जाने से मोदी का कद बढ़ा है। संसदीय बोर्ड में अब जब भी कोयी चर्चा होगी तो उसमें खुद मोदी शरीक होते हैं और चर्चा खुद उनके बारे में हो तो स्वाभिक रूप से अन्य नेता खुलकर अपने विचार रखने में हिचक महसूस करेंगे। संसदीय बोर्ड की जिन बैठकों में यह मौजूद नही रहेंगे, उनमें भी उनका विरोध करने का साहस शायद ही किसी अन्य नेता में हो। लेकिन अब भी उनके लिये दिल्ली का रास्ता पूरी तरह निष्कंटक नही हुआ है।


चिकित्सक से बने हिन्दूवादी नेता
डा0 संतोष राय कटटर हिन्दूवादी नेता हैं। वैसे वह 'एपिडेमिक डिजीजेज एण्ड पबिलक हेल्थ के डाक्टर हैं, एमबीबीएस करने के बाद एम्स से एमडी किया है। लेकिन हिन्दूवादी विचारों से प्रभावित होकर वह नाथूराम गोडसे के छोटे भार्इ गोपाल गोडसे के कहने पर 1996 में हिन्दू महासभा में शामिल हो गये थे। एक कटटर हिन्दूवादी होने के नाते वह भार्इ परमानंद, डा0 बीएस मुंजे, वीर सावरकर के सिद्धांतों में विश्वास करते हैं और संवैधानिक माध्यम से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना को अपना उददेश्य बताते हैं। डा0 राय की लेखन, गायन, अभिनय आदि में रूचि है। गोडसे पर एक फिल्म भी शीघ्र ही प्रदर्शित करने की उनकी एक योजना है। वह हिन्दूमहासभा के वरिष्ठ नेता हैं तथा सुप्रीमकोर्ट में राम जन्मभूमि मामले में वादी हैं।


साभार- लोकस्‍वामी, हिन्‍दी मैगजीन, पाक्षिक

Friday, November 15, 2013

देशभक्‍तों को गद्दार मत कहो

डॉ0 संतोष राय 

भारत माता के गगनांचल रूपी आंचल में ऐसे-ऐसे नक्षत्र उद्दीप्‍त हुये हैं, जो न केवल भारत भूमि को बल्कि संपूर्ण विश्‍व भू मंडल को अपने प्रकाश पुंजों से आलोकित किया है। ऐसे ही एक महान नक्षत्र का उदय भारत की पावन भूमि पर हुआ जो संपूर्ण जगत  में नाथूराम  गोडसे के नाम से विख्‍यात हुआ। वीर हुतात्‍मा नाथूराम गोडसे का जन्म १९ मई १९१० को भारत के महाराष्ट्र राज्य में पुणे के निकट बारामती नमक स्थल  पर चित्तपावन मराठी ब्रह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता विनायक वामनराव गोडसे पोस्ट आफिस में काम करते थे और माता लक्ष्मी गोडसे सिर्फ एक गृहणी थीं।नाथूराम गोडसे के बचपन का नाम रामचन्द्र था। ना
थूराम के जन्म से पूर्व  इनके माता-पिता की सन्तानों में तीन पुत्रों की बहुत कम समय में ही मृत्यु हो गयी थी केवल एक पुत्री ही जीवित बची थी, नाथूराम के माता-पिता बहुत दु:खी थे। इनके माता-पिता ने ईश्वर से विनती की यदि अब कोई पुत्र हुआ तो उसका पालन-पोषण लड़की की तरह करेंगे।  इसी के चलते  इनकी नाक बचपन में ही छेद दी और नाम भी बदल दिया।

वीर हुतात्‍मा नाथूराम एक ख्‍यातिलब्‍ध  पत्रकार थे जिनके अखबार का नाम दैनिक अग्रणी था। ये सत्‍य-सनातनी,राष्ट्रवादी और भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे। इनका सबसे अधिक चर्चित कार्य मोहनदास करमचन्द गान्धी उपाख्य महात्मा गान्धी का वध था क्योंकि भारत के विभाजन और उस समय हुई साम्प्रदायिक हिंसा में लाखों हिन्दुओं की हत्या के लिये लोगबाग गान्धी को ही उत्तरदायी मानते थे। यद्यपि उन्होंने इससे पूर्व भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष भी किया था और कुछ समय तक अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी जुड़े रहे, परन्तु बाद में वे अखिल भारतीय हिन्दू महासभा में चले गये।
गोडसे का ब्राहमण परिवार में जन्म होने के कारण इनकी बचपण से ही धार्मिक कार्यों में गहरी रुचि थी। इनके छोटे भाई गोपाल गोडसे के अनुसार ये बचपन में ध्यानावस्था में ऐसे-ऐसे विचित्र श्लोक बोलते थे जो इन्होने कभी भी पढ़े ही नहीं थे। ध्यानावस्था में ये अपने परिवारवालों और उनकी कुलदेवी के मध्य एक सूत्र का कार्य किया करते थे परन्तु यह सब १६ वर्ष तक की आयु तक आते-आते स्वत: समाप्त हो गया।

यद्यपि इनकी प्रारम्भिक शिक्षा पुणे में हुई थी परन्तु भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के आन्दोलन से प्रभावित होकर हाईस्कूल के बीच में ही अपनी पढाई-लिखाई छोड़ दी तथा उसके बाद कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली। धार्मिक पुस्तकों में गहरी रुचि होने के कारण रामायण, महाभारत, गीता, पुराणों के अतिरिक्त स्वामी विवेकानन्द,स्वामी दयानन्द , बाल गंगाधर तिलक तथा महात्मा गान्धी के साहित्य का इन्होंने गहरा अध्ययन किया था।
नाथूराम अपने राजनैतिक जीवन के प्रारम्भिक दिनों में नाथूराम अखिल भारतीय कांग्रेस से जुड़े रहे थे परन्तु बाद में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हो गये। अन्त में १९३० में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी छोड़ दिया और अखिल भारतीय हिन्दू महासभा में चले गये। उन्होंने दैनिक अग्रणी तथा हिन्दू राष्ट्र नामक दो समाचार-पत्रों का सम्पादन भी किया था। वे मुहम्मद अली जिन्ना की अलगाववादी विचार-धारा का हमेंशा विरोध करते थे। प्रारम्भ में तो उन्होंने मोहनदास करमचंद गांधी के कार्यक्रमों का समर्थन किया परन्तु बाद में गान्धी के द्वारा लगातार और बार-बार हिन्दुओं के विरुद्ध भेदभाव पूर्ण नीति अपनाये जाने तथा मुस्लिम तुष्टीकरण किये जाने के कारण वे गान्धी के प्रचंड  विरोधी हो गये, बाद में गांधी द्वारा हिन्‍दू विरोधी नीतियों के कारण नाथूराम  जी को गांधी वध को विवश होना पड़ा।

हैदराबाद  का ऐतिहासिक आन्दोलन

१९४० में हैदराबाद के तत्कालीन शासक निजाम ने उसके राज्य में रहने वाले हिन्दुओं पर बलात जजिया कर लगाने का निर्णय लिया जिसका हिन्दू महासभा ने विरोध करने का निर्णय लिया। हिन्दू महासभा के तत्कालीन अध्यक्ष विनायक दामोदर सावरकर के आदेश पर हिन्दू महासभा के कार्यकर्ताओं का पहला जत्था नाथूराम गोडसे के नेतृत्व में हैदराबाद गया। हैदराबाद के निजाम ने इन सभी को बन्दी बना लिया और कारावास में कठोर दण्ड दिये परन्तु बाद में हारकर उसने अपना निर्णय वापस ले लिया।


भारत-विभाजन मन को उद्वेलित किया


१९४७ में भारत का विभाजन और विभाजन के समय हुई साम्प्रदायिक हिंसा ने नाथूराम को अत्यन्त उद्वेलित कर दिया। तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए बीसवीं सदी की उस सबसे बडी त्रासदी के लिये मोहनदास करमचन्द गान्धी ही सर्वाधिक उत्तरदायी समझ में आये।


गान्धी-वध को विवश क्‍यों हुये


विभाजन के समय हुए निर्णय के अनुसार भारत द्वारा पकिस्तान को ७५ करोड़ रुपये देने थे, जिसमें से २० करोड़ दिए जा चुके थे। उसी समय पकिस्तान ने भारत के कश्मीर प्रान्त पर आक्रमण कर दिया जिसके कारण भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्रीपंडित जवाहर लाल नेहरू और गृहमन्त्री सरदार बल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में भारत सरकार ने पकिस्तान को ५५ करोड़ रुपये न देने का निर्णय किया, परन्तु भारत सरकार के इस निर्णय के विरुद्ध गान्धी अनशन पर बैठ गये। गान्धी के इस निर्णय से क्षुब्ध नाथूराम गोडसे और उनके कुछ साथियों ने गान्धी का वध करने का निर्णय लिया।


बम फेंकने का प्रयास विफल


गांधी की हिन्‍दू विरोधी अनशन ने इन राष्‍ट्रवादियों को पूरी तरह विचलित कर दिया था। विभाजन के समय लाखों हिन्‍दुओं का कत्‍ल, पाकिस्‍तान से आये हुये रेलों में हिन्‍दुओं की लाशें, लाखों हिन्‍दू महिलाओं के साथ बलात्‍कार  इनके मन-मष्तिष्‍क को पूरी तरह झकझोर दिया था। गान्धी के अनशन से दुखी गोडसे तथा उनके कुछ मित्रों द्वारा गान्धी-वध की योजनानुसार नई दिल्ली के बिरला हाउस पहुँचकर २० जनवरी १९४८ को मदनलाल पाहवा ने गान्धी की प्रार्थना-सभा में बम फेका। योजना के अनुसार बम विस्फोट से उत्पन्न अफरा-तफरी के समय ही गान्धी को मारना था परन्तु उस समय उनकी पिस्तौल ही जाम हो गयी वह एकदम न चल सकी। इस कारण नाथूराम गोडसे और उनके बाकी साथी वहाँ से भागकर पुणे वापस चले गये जबकि मदनलाल पाहवा को भीड़ ने पकड़ कर पुलिस को सुपुर्द कर दिया।


नाथूराम गोडसे गान्धी को मारने के लिये पुणे से दिल्ली वापस आये और वहाँ पर पकिस्तान से आये हुए हिन्दू तथा सिख शरणार्थियों के शिविरों में घूम रहे थे। उसी दौरान उनको एक शरणार्थी मिला, जिससे उन्होंने एक इतालवी कम्पनी की बैराटा पिस्तौल खरीदी। नाथूराम गोडसे ने अवैध शास्त्र रखने का अपराध न्यायालय में स्वीकार भी किया था। उसी शरणार्थी शिविर में उन्होंने अपना एक छाया-चित्र (फोटो) खिंचवाया और उस चित्र को दो पत्रों के साथ अपने सहयोगी नारायण आप्टे को पुणे भेज दिया।


३० जनवरी १९४८ को नाथूराम गोडसे दिल्ली के बिड़ला भवन में प्रार्थना-सभा के समय से ४० मिनट पहले पहुँच गये। जैसे ही गान्धी प्रार्थना-सभा के लिये परिसर में दाखिल हुए, नाथूराम ने पहले उन्हें हाथ जोडकर प्रणाम किया उसके बाद बिना कोई बिलम्ब किये अपनी पिस्तौल से तीन गोलियाँ मार कर गान्धी का अन्त कर दिया। गोडसे ने उसके बाद भागने का कोई प्रयास नहीं किया।


नाथूराम गोडसे पर मोहनदास करमचन्द गान्धी की हत्या के लिये अभियोग पंजाब उच्च न्यायालय में चलाया गया था। इसके अतिरिक्त उन पर १७ अन्य अभियोग भी चलाये गये। किन्तु इतिहासकारों के मतानुसार सत्ता में बैठे लोग भी गान्धी जी की हत्या के लिये उतने ही जिम्मेवार थे जितने कि नाथूराम गोडसे या उनके अन्य साथी। इस दृष्टि से यदि विचार किया जाये तो मदनलाल पाहवा को इस बात के लिये पुरस्कृत किया जाना चाहिये था ना कि दण्डित क्योंकि उसने तो हत्या-काण्ड से दस दिन पूर्व उसी स्थान पर बम फोडकर सरकार को सचेत किया था कि गान्धी, जिन्हें बडी शृद्धा से नेहरू जी बापू कहते थे, अब सुरक्षित नहीं; उन्हें कोई भी प्रार्थना सभा में जाकर शूट कर सकता है।


नेहरू व पटेल भी बराबर के दोषी थे। क्‍योंकि वे गांधी को पूरी तरह सुरक्षा नही दिये। गांधी की नीतियों से सरदार पटेल भी बहुत दु:खी थे। क्या यह दायित्व जवाहर लाल नेहरू जो देश के प्रधान मन्त्री थे, अथवा सरदार पटेल जो गृह मन्त्री थे, उनका नहीं था? आखिर २० जनवरी १९४८ की पाहवा द्वारा महात्मा गाँधी की प्रार्थना-सभा में बम-विस्फोट के ठीक १० दिन बाद उसी प्रार्थना सभा में उसी समूह के एक सदस्य नाथूराम गोडसे ने गान्धी के सीने में ३ गोलियाँ उतार कर उन्हें सदा के लिये समाप्त कर दिया। यह सवाल बहुत पहले इन्दिरा गान्धी की मृत्यु के पश्चात सन १९८४ में ही उठाया था जो आज तक अनुत्तरित है।


गोडसे के वक्‍तव्‍य को भारत सरकार ने प्रतिबंधित  क्‍यों किया


गान्धी-वध के मुकद्दमें के दौरान न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर सुनाने की अनुमति माँगी थी और उसे यह अनुमति मिली थी। नाथूराम गोडसे का यह न्यायालयीन वक्तव्य भारत सरकार द्वारा प्रतिबन्धित कर दिया गया था। इस प्रतिबन्ध के विरुद्ध नाथूराम गोडसे के भाई तथा गान्धी-वध के सह-अभियुक्त गोपाल गोडसे ने ६० वर्षों तक वैधानिक लडाई लड़ी और उसके फलस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रतिबन्ध को हटा लिया तथा उस वक्तव्य के प्रकाशन की अनुमति दी।

नाथूराम गोडसे ने न्यायालय के समक्ष गान्धी-वध के जो १५० कारण बताये थे उनमें से प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं: -


ये क्रमांकित सूची इस प्रकार हैं:


1. जब २२ अक्तूबर १९४७ को पाकिस्तान ने कश्मीर पर बिना सोचे आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउण्टबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को ५५ करोड़ रुपये की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।


2. जब पाकिस्तानी मुसलमानों द्वारा हिन्‍दुओं को भारी मात्रा में काटा जाने लगा तो वहां से आये विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।


3. १४-१५ जून  १९४७ को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ पहुँच कर जबरन प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा। क्‍या यह गांधी के द्विपक्षीय घटिया राजनीति को प्रदर्शित नही करती।


4. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (१९१९) से समस्त देशवासियों में आक्रोश की ज्‍वाला  फूट रही थी, वे  चाहते थे कि इस नरसंहार के नायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाये। गान्धी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से स्पष्ठ मना कर दिया। क्‍या गांधी ने जलिया वाले बाग में हुये नरसंहार के लोगों की आत्‍मा के साथ अन्‍याय नही किया।


5. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश रो रहा था व गान्धी की ओर कातर भरी नजरों से देख रहा था, कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु के पंजें से बचायें, किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया।


6. ६ मई १९४६ को समाजवादी कार्यकर्ताओं को दिये गये अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।


7. मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए १९२१ में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग १५०० हिन्दू मारे गये व २००० से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।


8. १९२६ में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द की अब्दुल रशीद नामक मुस्लिम युवक ने हत्या कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिये अहितकारी घोषित किया।


9. गान्धी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोबिन्द सिंह को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।


10. गान्धी ने जहाँ एक ओर कश्मीर के हिन्दू राजा हरि सिंह को कश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दू बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।


11. यह गान्धी ही थे जिन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।


12. कांग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिये बनी समिति (१९३१) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गान्धी की जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।


13. कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टाभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पद त्याग दिया।


14. लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।


15. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे; ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और १३ जनवरी १९४८ को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।


गोडसे व आप्‍टे को फाँसी


नाथूराम गोडसे को सह-अभियुक्त नारायण आप्टे के साथ १५ नवम्बर १९४९ को पंजाब की अम्बाला जेल में फाँसी पर लटका कर बहुत ही क्रूरतम तरीके से मार दिया गया। नाथूराम फांसी से  पूर्व अपने अन्तिम आत्‍मोद्गार कुछ इस प्रकार व्‍यक्‍त किया था:


"यदि अपने देश के प्रति भक्तिभाव रखना कोई पाप है तो मैंने वह पाप किया है और यदि यह पुण्य है तो उसके द्वारा अर्जित पुण्य पद पर मैं अपना नम्र अधिकार व्यक्त करता हूँ"
नाथूराम विनायक गोडसे

मित्रों यदि 30 जनवरी को  गांधी वध रूक जाता तो 3 फरवरी 1948 को एक विभाजन गांधी द्वारा और सुनिश्चित हो जाता। जिन्‍ना की मांग थी कि पश्चिमी पाकिस्‍तान से पूर्वी पाकिस्‍तान जाने में बहुत समय लगता है, कोई सामान्‍य व्‍यक्ति को यदि जाना हो तो वो हवाई जहाज से जाने में समय के साथ-साथ खर्च भी बहुत लगता है। इसलिये जिन्‍ना की मांग थी कि हमें भारत के बिलकुल बीच से एक गलियारा बनाके दे दिया जाये- 1-जो लाहौर से ढाका जाता हो 2- दिल्‍ली के एकदम पास होकर जाता हो 3-जिसकी चौड़ायी कम से कम 10 मील यानी 16 किलो मीटर हो 4- 10 मील के दोनों ओर सिर्फ मुस्लिम बस्तियां बनेगी। सोचिये गलियारे के दोनों तरफ सिर्फ मुस्लिम बस्तियां क्‍या जिन्‍ना के स्‍वस्‍थ मा‍नसिकता का परिचायक था। सच तो यह है कि मोहनदास गांधी होते तो देश का एक और विभाजन सुनिश्चित था।

अब आप स्‍वयं निर्णय करें और बतायें कि नाथूराम ने मोहन दास गांधी को देश हित में मारा था या द्वेष में?
Courtsey:


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