Monday, November 11, 2013

ऐसे थे मौलाना अबुल कलाम आजाद

11 नवंबर पर विशेष

कभी-कभी कुछ लोग स्‍वार्थ के वशीभूत होकर इतिहास को गलत तरीके से अपने स्‍वार्थ के लिये उपयोग करते हैं। मगर सच-सच होता है उसे ज्‍यादा दिन तक छिपाया नही जा सकता। 11 नवंबर के दिन मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्‍म दिवस है। इनके जीवन पर डॉ0 संतोष राय के विचार: 



मौलाना अब्दुल कलाम के  पूर्वज लूटेरे बाबर के साथ आये थे जिन्‍होंने भारत को खूब लूटा था।
आजाद देवबंदी इस्‍लामिक संप्रदाय से आते थे। और, देवबंदी इस्‍लाम उग्र इस्‍लाम को बढ़ावा देता है। जगह-जगह जेहाद कराना उसका काम है। देवबंद इस्‍लाम पूरे दुनिया को दारूल हरब से दारूल इस्‍लाम बनाने का सपना देखता है, जिसके लिये पूरी तरह प्रयासरत है।
मोलाना आजाद खुद तो हिन्‍दू- मुस्लिम  एकता की वकालत करते हैं। मगर इस देश पर उर्दू और अरबी जबरन थोपना चाहते थे।
मौलाना आजाद खिलाफत आंदोलन के माध्यम से मुस्लिम समुदाय को और कट्टर बनाया। खिलाफत आंदोलन का मुख्‍य उद्देश्‍य तुर्की के खलीफा को फिर से उसके स्‍थान पर बिठाना था जिसे ब्रिटिशों ने कब्‍जा कर लिया था। यदि सही रूप में देखा जाये तो खलीफा आंदोलन के बाद मुसलमान और उग्र हो गये और गैर मुसलमानों की हत्‍या करने लगे।
आजाद हिन्‍दू-मुस्लिम एकता के नाम पर हमेशा कट्टरपंथी मुसलमानों से ही मेल मिलाते रहे, और उनके साथ मिलकर पूरे भारत को इस्‍लामीकरण का सपना देखते रहते थे।
   सही मायने में देखा जाये तो आजाद पूरे भारत को मुगलिस्‍तान के रूप में देखना चाहते थे। वे  भारत के इस्लामीकरण की वकालत करते हुए कहा था कि  'भारत जैसे देश को जो एक बार मुसलमानों के शासन में रहा चुका है, कभी भी त्यागा नहीं जा सकता और प्रत्येक मुसलमान का कर्तव्य है कि उस खोई हुई मुस्लिम सत्ता को फिर प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करे' (बी.आर.नन्दा, गांधी पैन इस्लामिज्म, इम्पीरियालज्म एण्ड नेशनलिज्म, पृ. ११७)
और तो और इनके द्वारा मुस्लिम कट्टरता को देखकर  लौह पुरूष  सरदार पटेल ने इन्‍हें कभी राष्‍ट्रवादी नही माना था। क्‍योंकि ये घोर इस्‍लाम परस्‍त थे। जबकि कांग्रेस अबुल कलाम आजाद को हिन्‍दु बहुल क्षेत्र से चुनकर सांसद बनवाती थी।
इनका यदि व्‍यापक प्रभाव देखा जाये तो नगण्‍य था। इनके प्रभाव से 1945-46 के चुनाव  में केवल 5 से 6 प्रतिशत मुसलमानों ने कांग्रेस को वोट दिया।
जिन्‍ना का आबादी का अदला-बदली प्रस्‍ताव को इन्‍होंने ही गांधी व नेहरू के द्वारा ठुकरवा दिया था। जिससे भारत को फिर इस्‍लामिक चंगुल में फंसाया जा सके।
चुनाव के समय 63 लाख मुस्लिमों ने केवल कांग्रेस को वोट दिया। इनके हिस्‍से की जमीन केवल 23000 वर्गमील बनती थी। जब इन्‍हें भारत में ही रहना था तो मौलाना आजाद को सीमा निर्धारण आयोग से कहना चाहिये था कि 7 प्रतिशत मुस्लिमों के हिस्‍सों की 23000 वर्गमील जमीन पाकिस्‍तान को न दी जाये।
    मगर आजाद ने ऐसा कुछ नही किया। यदि ये ढंग से अपने कर्तवय का निर्वहन करते तो लाहौर, स्‍यालकोट, थारपारकर और उमरकोट जिले भारत में ही रहते। अंदर ही अंदर इस्‍लामपरस्‍ती होने के कारण चाहते थे कि कितनी से कितनी ज्‍यादा जमीन पाकिस्‍तान को दे दिया जाये और ज्‍यादा से ज्‍यादा मुसलमान इस देश में रह जायें। आगे फिर इस्‍लाममिक जेहाद के द्वारा भारत को फिर एक इस्‍लामिक राष्‍ट्र बनाया जा सके।
   उनके प्रयास से खंडित भारत की नीतियां मुस्लिम समर्थक बनीं। इनके प्रयासों से ही नेहरू ने मुस्लिम तुष्‍टीकरण को बढ़ावा दिया। लोकसभा ने सर्वसम्‍मति से प्रस्‍ताव पारित कर हैदराबाद में मौलाना आजाद नेशनल विश्‍वविद्यालय बनवा दी। इनका जन्‍म दिन राष्‍ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

इसके साथ  इस्लामी शासन कालों में समस्त 16 संस्कारों पर TAX
लगाया जाता था,  प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद 
के दबाव से अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहासकारों ने 
भारतीय शिक्षा पद्धति की इतिहास की पुस्तकों में जगह नहीं दी l

कलाम आजाद ने की थी बहुत बड़ी ऐतिहासिक भूल, जिसकी सजा आज की पीढि़यां भुगत रही हैं


कांग्रेस के अध्यक्ष रहे मौलाना अबुल कलाम आजाद ने  माना था कि पटेल पर नेहरू को चुनने का गांधी का फैसला गलत था। उन्होंने अपनी आत्मकथा में इस बारे में लिखा था। अबुल कलाम  के निधन के बाद 1959 में प्रकाशित उनकी आत्मकथा में उन्होंने लिखा, 'यह मेरी गलती थी कि मैंने सरदार पटेल का समर्थन नहीं किया। हम कई मुद्दों पर अलग राय रखते थे। लेकिन मुझे लगता है कि अगर मेरे बाद पटेल कांग्रेस के अध्यक्ष बनते तो शायद कैबिनेट मिशन प्लान कामयाबी से लागू किया जाता। वे नेहरू की तरह जिन्ना को पूरे प्लान को बर्बाद करने का मौका देने जैसी गलती नहीं करते। मैं अपने को कभी माफ नहीं कर सकता। जब मैं सोचता हूं मैंने ये गलतियां नहीं की होतीं तो शायद बीते दस साल का इतिहास कुछ और होता।'




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