Saturday, October 27, 2012

जम्‍मू-कश्‍मीर के विलय के 65 वर्ष बाद एक सवाल



प्रो0 भीम सिंह

प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय


                                                                       महाराजा हरि सिंह


     27, अक्‍टूबर, 1947 को महाराजा हरिसिंह के हस्‍ताक्षर के बाद, जम्‍मू-कश्‍मीर  का विलय भारत के साथ संपूर्ण हो गया था। राष्‍ट्रीय और अंर्तराष्‍ट्रीय नियमों के अनुसार जम्‍मू-कश्‍मीर 27 अक्‍टूबर, 1947 को भारत का अभिन्‍न अंग बन चुका था, जैसे बाकी रियासतें भारत से  मिल गयी थीं। महाराजा ने विशेषकर, अपने विलय पत्र पर रक्षा, विदेशी मामले, संचार व मुद्रा को बिना किसी शर्त के भारत सरकार को सौंप दिया था। इस बात का उल्‍लेख संविधान सभा की बहस में भी बड़े जोरदार शब्‍दों में दर्ज है। परंतु 26 जनवरी, 1950 को भारत के एक संविधान में  एक अस्‍थायी धारा-370 जो दस-पंद्रह साल में समाप्‍त कर दी जायेगी। मगर आज जम्‍मू-कश्‍मीर विलय के 65 वर्ष पूरे हो चुके हैं यानि आधी सदी से भी ज्‍यादा समय हो चुका है और भारत के शत्रु जो इस देश को कमजोर करना चाहते हैं वे तथाकथित कश्‍मीर के मुद्दे को उठाकर देश की एकता को कमजोर करने के लिये धारा-370 को तलवार के रूप में इस्‍तेमाल करके अस्थिरता पैदा करना चाहते हैं।

    सवाल यह है कि जब भारत का विलय 65 वर्ष पहले हुआ तो धारा-370 में संसद पर रोक क्‍यों लगायी गयी कि वह जम्‍मू-कश्‍मीर के बारे में कोई भी विधान या कानून बनाने में असमर्थ है। आज संसद का जो भी कानून बनता है उसके आगे लिखा जाता है कि यह कानून जम्‍मू-कश्‍मीर में लागू नहीं होगा, जबकि जम्‍मू-कश्‍मीर के विलय पर कोई भी प्रश्‍न नहीं उठता, यहां तक कि  अंर्तराष्‍ट्रीय न्‍यायालय में पाकिस्‍तान के जज ने स्‍वयं  इस बात को स्‍वीकार किया था कि महाराजा हरि सिंह को विलय करने का पूरा अधिकार  था।
     धारा-370 को रखा जाय या हटाया जाय, प्रश्‍न देश के सामने यह नही है, प्रश्‍न यह है कि जब जम्‍मू-कश्‍मीर भारत का अभिन्‍न अंग बन चुका है तो क्‍या बात है कि देश की संसद अपने  ही देश के लोगों के लिये क्‍यों कानून नही बनाती। यह रोक किसने लगायी है। इस रोक को 65 वर्ष तक क्‍यों नही हटाया गया। सवाल यह भी है कि जो राजनीतिक दल धारा-370 हटाने की बात करते रहे, उसके लिये सड़कों पर आंदोलन भी हुये, जब वे केन्‍द्र में सत्‍ता में आये, तो उन्‍होंने धारा-370 के बारे में खामोशी अख्त्यिार क्‍यों कर ली। हटाने की बात तो दूर रही उन्‍होंने धारा-370 में संशोधन की बात भी नहीं की।

    मुझे याद है कि जब मैं देश के उस समय के प्रधानमंत्री माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी से उनके निवास पर मैंने दिसंबर, 2003 में जोरदार तर्क देकर उनसे धारा-370 में संशोधन करने का सुझाव दिया था। मेरा इतना मानना है कि यदि संसद को जम्‍मू कश्‍मीर पर कानून बनाने का  अधिकार दिया जाये, जिसे संसद ने खुद ही अपने ऊपर अंकुश लगा  रखा है, तो जम्‍मू कश्‍मीर के लोगों को ही नहीं, बल्कि पूरे विश्‍व के लोगों को एक संदेश जायेगा कि जम्‍मू-कश्‍मीर भारत का अभिन्‍न अंग है और रहेगा। मैंने वाजपेयी जी से यह अनुरोध किया था कि कम से कम उन तीन मुद्दों पर संसद को कानून बनाने का अधिकार तुरंत दे देना चाहिये, जिनमें रक्षा, विदेशी मामले, संचार एवं मुद्रा आदि मुद्दे शामिल हैं।

वाजपेयी जी ने मुझे इस विषय पर एक संक्षिप्‍त लिखित सुझाव देने को कहा, मैंने उसी दिन शाम को वाजपेयी जी को अपना सुझाव पत्र एक अध्‍यादेश के शक्‍ल में बनाकर पेश किया। मैंने वाजपेयी जी से यह अनुरोध किया था कि जम्‍मू-कश्‍मीर विधानसभा को समवर्ती सूची में शामिल सभी मुद्दों पर कानून बनाने का अधिकार दिया जा सकता है, परन्‍तु भारत की सार्वभौमिकता को खंडित नही किया जा सकता। मेरा सुझाव था कि धारा-370 में यह संशोधन राष्‍ट्रपति द्वारा एक अध्‍यादेश से लागू किया जा सकता था और उसके बाद इसी मुद्दे पर संसद का चुनाव होना  चाहिये कि देश के लोग जम्‍मू-कश्‍मीर की तथाकथित समस्‍या का हमेंशा-हमेंशा के लिये समाधान निकाल सके- काश कि वाजपेयी जी इस संशोधन को  कर पाते।

     इसमें कोई संदेह नहीं कि धारा-370 को संविधान के पन्‍नों से पूरी तरह हटाना, शायद अभी मुमकिन  नही होगा, परन्‍तु धारा-370 की तलवार से संसद की विधायी संसद को जम्‍मू-कश्‍मीर से अलग रखना भी देश की एकता और अखण्‍डता के लिये लाभदायक नही होगा। धारा-370 में संशोधन पूरे देश की रक्षा, अखण्‍डता और एकता के लिये अत्‍यंत आवश्‍यक है। तथाकथित स्‍वायत्‍तता के नारे देश को तोड़ने वालों के नारों से कम नहीं है, जम्‍मू-कश्‍मीर के लोग पाकिस्‍तान के वर्तमान विगड़ते हुये राजनीतिक व सामाजिक हालत से बाखबर है।

 उन्‍होंने पाकिस्‍तान की ओर से 1947, 1965 और 1999 के आक्रमण को नहीं भूला है ना ही जम्‍मू-कश्‍मीर के लोग पाकिस्‍तान की फौजी शासन को बर्दाश्‍त  नहीं कर सकते हैं, वे धर्म-निरपेक्ष, भाईचारा और सद्भभावना के माहौल में पले हैं, बढ़े हैं। जम्‍मू-कश्‍मीर के लोग उस भेद-भाव से बाहर आना चाहते हैं, जिसे संविधान ने अपने दायरे में बंद कर रखा है। क्‍या संसद का अपने ऊपर जम्‍मू-कश्‍मीर में कानून न बनाने का अंकुश लगाना, जम्‍मू-कश्‍मीर के लोगों के  साथ भेद-भाव नही है। यह है विलय दिवस पर जम्‍मू-कश्‍मीर के अवाम का सवाल, जिस दिन संसद अपने उपर लगाये इस अंकुश को खत्‍म कर देगी, जम्‍मू-कश्‍मीर में फिर से सर्द हवाएं चलना आरंभ हो जायेंगी, जम्‍मू-कश्‍मीर में ना उग्रवाद रहेगा और ना ही आतंकवाद।

     भारत का ध्‍वज हर घर पर लहरायेगा और प्‍यार, मोहब्‍बत और अमन चैन की फिज़ा फिर लौटकर आयेगी। यही था पैगाम विलय दिवस का, क्‍योंकि विलय दिवस का महत्‍व जम्‍मू-कश्‍मीर के लोगों के लिये वही है, जो 26 जनवरी पूरे राष्‍ट्र के लिये है। विलय के बावजूद  जम्‍मू-कश्‍मीर का ध्‍वज अलग, संविधान अलग और जम्‍मू-कश्‍मीर के संविधान से मौलिक व मानव अधिकार गुम। 27 अक्‍टूबर को जम्‍मू-कश्‍मीर के लोग, उन वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि देते हैं, जिन्‍होंने जम्‍मू-कश्‍मीर की रक्षा के लिये पाकिस्‍तान की ओर से आने वाले हमलावरों को अपने प्राणों की आहूति देकर उड़ी-बारामूला मार्ग पर रोके रखा, उनमें से लामसाल कुर्बानी है ब्रि0 राजेन्‍द्र सिंह और उनके साथ 150 उन डोगरा वीर सिपाहियों की जिन्‍होंने पाकिस्‍तान की ओर से हजारों हमलावरों को बारामूला में नहीं घुसने दिया और 26-27 अक्‍टूबर की रात वे शहीद हो गये।


     जम्‍मू-कश्‍मीर के विलय दिवस पर भव्‍य समारोह होने चाहिये, घर-घर तिरंगा का संदेश पहुंचना  चाहिये ताकि हर व्‍यक्ति  को विलय का संदेश पहुंच पाये और उसे भारतीय होने का स्‍वाभिमान  प्राप्‍त हो सके।
    







Monday, October 22, 2012

हिन्‍दू समाज किन्‍नरों के खिलाफ दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय में मानहानि का दावा करेगी-द्विवेदी

डॉ0 संतोष राय


किन्‍नर समाज को अपनी सीमा में रहने की चेतावनी देते हुये अखिल भारत हिन्‍दू महासभा उत्‍तर भारत के प्रभारी  रविन्‍द्र द्विवेदी ने डबुआ पुलिस चौकी  के इंचार्ज याकूब खान को बर्खास्‍त करने की मांग की। उन्‍होने चौकी इंचार्ज पर हिन्‍दू महासभा से निष्‍कासित लक्ष्‍मण सिंह वर्मा उर्फ लच्‍छू भईया से मिलकर रविन्‍द्र भाटी को झूठे मुकदमें में फसाने की साजिश करने का आरोप डाल दिया। रविन्‍द्र द्विवेदी आज फरीदाबाद के दावत रेस्‍टोरेंट  में हिन्‍दू महासभा के राष्‍ट्रीय  महामंत्री पंडित बाबा नंद किशोर मिश्र और राष्‍ट्रीय कार्यालय मंत्री  आचार्य मदन के साथ  संवाददाता सम्‍मेलन को संबोधित कर रहे थे। 


 

     रविन्‍द्र द्विवेदी ने रविन्‍द्र भाटी से किन्‍नर विवाद का खुलासा करते हुये कहा कि दो साल पहले सुनीता किन्नर और उसके साथ किन्‍नरों ने हिन्‍दू महासभा के समक्ष किन्‍नरों के गुरू खलील उर्फ सीमा अबरार पर जबरन इस्‍लाम में दीक्षित  करने और इस्‍लाम ग्रहण न करने पर इलाका छीनने की शिकायत दर्ज करायी। रविन्‍द्र भाटी ने धर्म परिवर्तन के मामले को  प्रशासन के सामने रखा तो किन्‍नर समाज बौखला गया और रविन्‍द्र भाटी पर मारपीट करने का झूठा  मुकदमा बनाकर जेल भेज दिया गया। रविन्‍द्र भाटी को जेल भेजने के बाद किन्‍नर समाज ने मीडिया में धर्म-परिवर्तन  के खिलाफ हिन्‍दू महासभा के अभियान को असली-नकली किन्‍नर के विवाद में बदल गया। 


रविन्‍द्र द्विवेदी ने संवाददाता सम्‍मेलन में कहा कि एक सितंबर 2012 को जिला न्‍यायालय के न्‍यायधीश अभिषेक फुटेला की अदालत ने रविन्‍द्र भाटी को बाइज्‍जत बरी कर दिया। इस फैसले का स्‍पष्‍ट अर्थ है कि  रविन्‍द्र भाटी निर्दोष था और उसे फर्जी मामले में फंसाया गया था।  रविन्‍द्र भाटी के बाइज्‍जत बरी होने से  किन्‍नर समाज बौखला गया है। अब वो अपराधिक प्रवृत्ति के लक्ष्‍मण सिंह वर्मा उर्फ लच्‍छू भैया की आड़ में रविन्‍द्र भाटी को पुन: फर्जी मामले में फंसाने की कोशिश  कर रहा है। उन्‍होंने लच्‍छू भैया पर फरीदाबाद और दिल्‍ली में उन लोगों को अपनी ठगी का शिकार बनाने का आरोप लगाया और इसकी निष्‍पक्ष जांच कराने और दोषी पाये जाने पर गिरफ्तार करने की मांग की।
     द्विवेदी ने कहा कि किन्‍नर समाज लगातार हिन्‍दू महासभा की छवि धूमिल कर रहा है। हिन्‍दू महासभा शीघ्र ही नई दिल्‍ली  उच्‍च न्‍यायालय में किन्‍नर समाज के खिलाफ मानहानि का दावा करेगी। 


    अखिल भारत हिन्‍दू महासभा के राष्‍ट्रीय महामंत्री पंडित बाबा नंद किशोर मिश्र ने हिन्‍दू महासभा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष के विवाद पर बोलते हुये कहा कि दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय ने अपने फैसले में दिनांक 16 मार्च, 2012 और आदेश संख्‍या एल0पी0ए0 नंबर 522/2011 में चक्रपाणि का नाम राष्‍ट्रीय निर्वाचन आयोग के रिकॉर्ड में दर्ज करने के दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय के ही एक पूर्व फैसले को निरस्‍त कर दिया है। ज्ञात रहे कि स्‍वामी चक्रपाणी उर्फ राजेश श्रीवास्‍तव कभी भी हिन्‍दू महासभा के सदस्‍य तक नही थे। ऐसी परिस्थिति में केन्‍द्रीय उच्‍चाधिकार समिति सर्वशक्तिमान होती है। बाबा मिश्र ने कहा कि राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष का संवैधानिक चुनाव शीघ्र ही भारतीय निर्वाचन आयोग के मार्गदर्शन में कराया जायेगा। 


     राष्‍ट्रीय कार्यालय मंत्री आचार्य मदन ने संवाददाता सम्‍मेलन में हिन्‍दू युवक सभा के जिलाध्‍यक्ष अशोक सिंह कुशवाहा को हिन्‍दू महासभा, फरीदाबाद  का  नया जिलाध्‍यक्ष घोषित किया। 


    संवाददाता सम्‍मेलन में उपस्थित हिन्‍दू युवक सभा उत्‍तर भारत के प्रभारी रविन्‍द्र भाटी ने फरीदाबाद नगर निगम द्वारा किन्‍नर समाज को अनुदान में दी जाने वाली  1700 वर्ग गज जमीन का विरोध के लिये आंदोलन तेज करने का ऐलान किया। उन्‍होने किन्‍नर समाज पर अकूत धन संपत्ति अर्जित करने  और अर्जित संपत्ति को आयकर विभाग से जांच करने की मांग की। रविन्‍द्र भाटी ने किन्‍नर गुरू खलील उर्फ सीमा पर सउदी अरब जाने पर राष्‍ट्रीय विरोधी और इस्‍लामिक तत्‍वों जैसे अंडरवर्ल्‍ड  डॉन दाउद इब्राहिम से ताल्‍लुकात होने की संभावना है, जिसकी जांच होने पर सच्‍चाई सामने आयेगी।


संवाददाता सम्‍मेलन में हिन्‍दू युवक सभा के जिला उपाध्‍यक्ष सुरेन्‍द्र गुप्‍ता, कमल गुप्‍ता, बृजश्‍याम तिवारी, सुंदर लाल यादव, मनीष थापा, डॉ0 मोहनचंद्र जोशी, मुकुंद, अजित राय तोमर आदि कार्य  उपस्थित थे।
    

पहले प्रायोजित गरीबी फिर धर्म परिवर्तन : कांग्रेस की अभाव-नीति – हिंदुत्व विनाश की एक लंबी योजना


भारत में एक चीज जो सच्ची है वह यह की दंगो में, बम विस्फोट में , नक्सल हमलों, मओवादियो के हमलों में सिर्फ हिंदू ही मरते हैं, इसका दूर गामी परिणाम यह है भारत में हिन्दुओ की संख्या कम होती जा रही है.
भारत में गरीबी है नहीं इसे जबरदस्ती प्रायोजित तरीके से लाया गया है और कायम किया गया है, भारत में कोई भी व्यक्ति हराम की नहीं खाना चाहता है परन्तु गली गली में शराब की दूकान बनाकर विवेक हरण की योजना बनाकर परिवारों को जलील कराकर उन्हें अपनी गरीबी का एक ही हल ईसाई बननेमें दिखाई देने के लिए बाध्य कर दिया है.


 यह ईसाई वर्ग एक स्थाई वोट बैंक भी बन जा रहा है जो कभी हिंदू संगठनो वोट नहीं देगा. इसी कारन इस काम में यूरोपीय देशो से सहायता प्राप्त ईसाई मिशनरिया भी अपना खूब सहयोग दे रही है. इस पूरी चाल के पीछे सोनिया का प्रायोजित भारत का ईसाईकरनकी दूरगामी साजिस है जिसमें भारत के बिके हुए हिंदू भी अज्ञानता से शामिल हैं और चर्च नियंत्रित मिडिया इस पर पर्दा डालने का काम कर रहा है. 


१)      आंकड़ा मिला है कोयला खदानों से निकालने वाले कोयले  का ६०% कोयला बिना किसी हिसाब के बाहर जा रहा है और वहा पर चौकीदारी करने वाला पुलिस भी करोड़पति बन जा रहे हैं. एक ट्रक में ३०-३५  टन से ज्यादा कोयला जाता है और उसका रेट ४०००-५००० प्रतिटन होता है (यूपी में कोयला १००००/- रुपये टन है) यानी एक ट्रक कम से कम १,२०,०००/- का माल चोरी कर रहा है. 


२)      यदि एक आदिवासी परिवार को साल भर में २ ट्रक कोयले का ही कीमत मिल जाए तो वह सुखी हो जाये, वह भी मेहनत करने के बाद, लेकिन उसे जानबूझ कर गरीब रखा जाता है जिससे वह माओवादियों  के चंगुल से बाहर न निकल  सके,  यही से असली खेल शुरू होता है. इन गरीब शोषितों की सहायता के लिए कांग्रेस ने विदेशी ईसाई मिशनरियों को लगा रखा है और माओवादी जबरन इन मिशानियो से पैसा लेकर इनका धर्म परिवर्तन कराने के बाद सुविधा देते है, यह काम दुर्र दराज के गावो में शुरू किया गया था जो अब सबके सामने आ चुका है. ईसाई मिशानियो का कांग्रेस का नाता किसी से छुपा नहीं है और जो कोई हिंदू नेता विरोध करता है, माओवादी उसे उड़ा देते है जिसमे मिशनारियों का नाम तक नहीं आता है.


३)      एक गरीब को रोटी चाहिए, वह मिशनरी उसे उपलब्ध करवा देती है, माओवादी उसे धर्म बदलने के बाद ज्यादा सुविधा दे देते है, उसे देखकर हर कोई ईसाई बनने के सोचने लगता है जिससे उसकी जिंदगी चलने लगे. माओवादी कोयले की लूट से भी हिस्सा लेते है और अधिकतर माओवादी संगठनो पर इस्साई माओवादियों का कब्ज़ा हो चुका है. यही कांग्रेस की दूरगामी परिणाम दायक  चाल है..


४)      कांग्रेस में हिंदू नामो वाले सोनिया मंडली के अधिकतर नेता, अधिकारी , एन जी ओ ईसाई ही है जो अपने काम को हिन्दुओ की आँख में धूल झोंककर अंजाम दे रहे हैं जो हिंदू समर्थक नेता है भी वे पैसे की लालच में चुप है, बहुत सारे कालाधन और औरत के साथ वीडियो के चक्कर में ब्लैकमेल हो रहे हैं. कोई कट्टर बनने की कोशिश् करता है तो उसे किसी क़ानूनी जाल में जेल में डाल दिया जाता है, बहुत कट्टर होने पर मौत के मुह में......

 
भारत जैसे सनातनी इतिहास वाले प्राकृतिक संपदा से भरपुर देश से हिन्दुओ की संख्या घटते जाना हिन्दुओ के लिए चिंता का विषय है क्योकि भारत ही एक मात्र हिंदू बाहुल्य देश है, इससे इनकी सुरक्षा जुडी हुई है और  हिन्दुओ के लिए दूसरे नंबर का खतरा इस्लामभी अपने तालिबानी संस्करण में भारत में एक बड़ी योजना के साथ क्रियाशील है परन्तु भारत की मिडिया सिर्फ हिंदू संगठनों को सबसे बड़ा खतरा बताने में व्यस्त है जिसकी वजह से सेकुलरशब्द हिन्दुओ के लिए विनाश का हथियार बनता जा रहा है.


हिन्दुओ के कोई भी देवी देवता बिना अश्त्र-शश्त्र के नही है क्योकि चाणक्य ने भी कहा है अपने खतरे को टालो नहीं, उसे पहचानते ही खतम कर दो, लेकिन एक और गहरी साजिस के तहत कांग्रेस सरकार हिन्दुओ को बौद्ध साबित करने में लगी है जिससे की काहिलो की एक कायर कौम तैयार की जा सके जो बिना किसी प्रतिरोध  के लिए सिर्फ मर जाने के लिए बनी हो. अंततः भारत की  इस सुख के धरती पर पुरे विश्व के म्लेक्ष काबिज हो जाये.


सनातन में दुष्टों और दुश्मनों को अनिवार्य दंड का विधान है इसीलिये सिर्फ सनातनी ही बने रहिये और हाँ, भारत के भविष्य की आशा बाबा - मोदी - स्वामी को अपना समर्थन देते रहिये.

Saturday, October 20, 2012

पराजय का इतिहास --चीनी हमले की 50वीं वर्षगांठ

 क्या नेहरू की तरह मनमोहन सिंह भी दुहराएंगे  पराजय का इतिहास


नरेन्द्र सहगल




पचास वर्ष पूर्व तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने चीन की दोस्ती खरीदने के लिए भारी कीमत के रूप में देश की सुरक्षा को ही दांव पर लगाने की जो भूल की थी, आज फिर वर्तमान प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह उसी विनाशकारी भूल को दुहराने की गलती कर रहे दिखाई देते हैं। चीन के संबंध में सेनाधिकारियों और रक्षा विशेषज्ञों की सुरक्षात्मक चेतावनियों की अनदेखी करके जिस विदेश नीति को भारत की वर्तमान सरकार आगे बढ़ा रही है उससे चीन की ही भारत विरोधी कुचालों को बल मिल रहा है।


प्रधानमंत्री की गलतफहमी 


एक ओर चीन ने भारत की थल और समुद्री सीमाओं को चारों ओर से घेरने की खतरनाक रणनीति अख्तियार की है और दूसरी ओर भारत के कथित रूप से भोले भाले प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि चीन की ओर से कोई खतरा नहीं है। संसद के पिछले सत्र में डा.मनमोहन सिंह ने यह कहकर सबको निÏश्चत करते हुए चौंकाने वाली जानकारी दी कि चीन भारत पर हमला नहीं करेगा। देश के दुर्भाग्य से यही गलतफहमी पंडित जवाहरलाल नेहरू को भी थी।


पंडित जी ने तो अपनी इस भूल को अपने जीवन के अंतिम दिनों में स्वीकार कर लिया था, परंतु नेहरू-गांधी खानदान की बहू, चर्च प्रेरित सोनिया गांधी के निर्देशन में चल रही वर्तमान सरकार के प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह भी क्या अपनी भूल को उसी समय स्वीकार करेंगे जब बहुत देर हो चुकी होगी? सभी जानते हैं कि 1962 में चीन ने भारत के साथ हुए सभी प्रकार के सीमा समझौतों, वार्ताओं और आश्वासनों को ठुकरा कर भारत पर आक्रमण करके लद्दाख की हजारों वर्गमील भारतीय जमीन पर कब्जा जमा लिया था। आज तक चीन ने हमारी एक इंच धरती भी वापस नहीं की। उलटा वह आगे बढ़ रहा है।


चीन की चालों में फंसे नेहरू


1962 में भारत पर आक्रमण करने के पहले चीन ने प्रचार करना शुरू किया था कि उसे भारत से खतरा है। हमले के तुरंत पश्चात चीन के प्रधानमंत्री ने सफाई दी थी कि यह सैनिक कार्रवाई सुरक्षा की दृष्टि से की गई है। अर्थात आक्रमणकारी भारत है, चीन नहीं। जबकि सच्चाई यह थी कि चीन-भारत भाई-भाई के नशे में मस्त भारत सरकार को तब होश आया था जब चीनी सैनिकों की तोपों के गोले छूटने प्रारंभ हो चुके थे। भारत की सेना तो युद्ध का उत्तर देने के लिए तैयार ही नहीं थी। 32 दिन के इस युद्ध में भारत की 35000 किलोमीटर जमीन भी गई और बिग्रेडियर होशियार सिंह समेत तीन हजार से ज्यादा सैनिक शहीद भी हो गए थे।
उल्लेखनीय है कि 1954 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने चीन सरकार के साथ पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। विश्व में शांति स्थापना करने के उद्देश्य पर आधारित पंचशील के पांच सिद्धांतों में एक-दूसरे की सीमा का उल्लंघन न करने जैसा सैन्य समझौता भी शामिल था। इस समझौते को स्वीकार करते समय हमारी सरकार यह भूल गई कि शक्ति के बिना शांति अर्जित नहीं होती। हम चीन की चाल में फंस गए। 1960 में भी चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने भारत सरकार को अपने शब्दजाल में उलझाकर इस भ्रमजाल में फंसा दिया कि दोनों देश भाई-भाई हैं और सभी सीमा विवाद वार्ता की मेज पर सुलझा लिए जाएंगे।


षड्यंत्रकारी चीनी युद्ध नीति


1962 में चीन द्वारा भारत पर किया गया सीधा आक्रमण उसकी चिर पुरातन षड्यंत्रकारी युद्ध नीति पर आधारित था। अर्थात पहले मित्र बनाओ और फिर पीठ में छुरा घोंपकर अपने राष्ट्रीय हित साधो। सामरिक मामलों के विशेषज्ञ एवं सुप्रसिद्ध भारतीय स्तंभकार ब्रह्म चेलानी के अनुसार "धोखे से अचानक हमला करने का सिद्धांत चीन में ढाई हजार वर्ष पहले की एक पुस्तक "युद्ध कला" में वर्णित है। चीनी लेखक सुनत्सू की इस पुस्तक में स्पष्ट लिखा है कि अपने विरोधी देश को काबू करने के लिए उसके पड़ोसियों को उसका दुश्मन बना दो।" चीन आज भी इसी मार्ग पर चल रहा है।
भारत के पड़ोस में स्थित सभी छोटे-बड़े देशों को आर्थिक एवं सैन्य सहायता देकर अपने पक्ष में एक प्रबल सैन्य शक्ति खड़ी करने में चीन ने सफलता प्राप्त की है। इसी रणनीति के अंतर्गत चीन पाकिस्तान को परमाणु ताकत बनने में मदद कर रहा है और उसकी मिसाइल क्षमता को मजबूत करने में जुटा है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चीन का सैनिक हस्तक्षेप और इस सारे क्षेत्र को चीन की सीमा तक जोड़ने के लिए सड़कों का जाल बिछाकर चीन की पहुंच सीधे इस्लामाबाद तक हो गई है। इसी साजिश के तहत चीन ने बंगलादेश, म्यांमार, श्रीलंका इत्यादि छोटे देशों के बंदरगाहों पर अपने युद्धपोत खड़े किए हैं।


सीधे युद्ध की तैयारियां


चीन ने तो अब भारत के भीतरी इलाकों पर भी अपनी गिद्ध दृष्टि जमाकर हमारी सैन्य एवं आर्थिक शक्ति को कमजोर करने के प्रयास प्रारंभ कर दिए हैं। भारत-पाकिस्तान को अस्थायी रूप से बांटने वाली कथित नियंत्रण रेखा के पार वाले पाक अधिकृत कश्मीर में जहां पाकिस्तान की सेना का भारी जमावड़ा है, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के 11 हजार सैनिक जमे हुए हैं। भारतीय जम्मू-कश्मीर के अभिन्न भाग गिलगित और बाल्टीस्तान में चीन की सैनिक टुकड़ियों की मौजूदगी 1962 की तरह के किसी हमले का स्पष्ट संकेत है।
भारत के एक प्रांत अरुणाचल प्रदेश को तो चीन ने अपना (दक्षिण तिब्बत) एक अभिन्न भाग घोषित किया हुआ है। वास्तव में तो 1962 में भारत पर चीनी आक्रमण के समय से ही साम्यवादी चीन की कुदृष्टि नेपाल, सिक्किम, भूटान, लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश पर जमी हुई है। उस समय चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने कहा था कि तिब्बत तो चीन के दाएं हाथ की हथेली है और नेपाल, भूटान, सिक्किम, लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश इस हथेली की पांच उंगुलियां हैं। इस पूरे क्षेत्र को हड़पने के लिए चीन के सैन्य प्रयास चल रहे हैं जो कभी भी सीधे युद्ध में बदल सकते हैं।


चीन की विस्तारवादी रणनीति


अरुणाचल प्रदेश में आर्थिक निवेश के साथ चीन वहां पर भारतीय सेना का भी विरोध करता है। पिछले दिनों चीन ने अपने भारत विरोधी षड्यंत्रों के तहत एक आनलाइन मानचित्र सेवा प्रारंभ करके अरुणाचल प्रदेश को चीन का प्रांत बताने का सिलसिला भी शुरू कर दिया है। इसी नीति के तहत अरुणाचल प्रदेश के नागरिकों को चीन द्वारा नत्थी वीजा देने का मामला सामने आया है। चीन की यह नीति इस हद तक जा पहुंची है कि वह भारत के प्रधानमंत्री एवं भारत में शरण लिए हुए तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के अरुणाचल प्रदेश में दौरे पर आपत्ति जताने से भी बाज नहीं आता। अरुणाचल प्रदेश को (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की तरह) भारत से काटने की फिराक में है साम्यवादी चीन। इस कुटिल चाल को समझना जरूरी है।


उधर नेपाल को भारत से जोड़ने वाली हिन्दुत्वनिष्ठ शक्तियों को जड़मूल से समाप्त करने के लिए चीन वहां पर सक्रिय माओवादियों को प्रत्येक प्रकार की सहायता दे रहा है। धीरे-धीरे भारत का यह पड़ोसी देश साम्यवादी चीन के प्रभाव में आ रहा है। भारत समेत सभी हिमालयी क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए नेपाल को विस्तारवादी चीन से बचाकर रखना जरूरी है। भारत की चीन के संदर्भ में अपनी विदेश नीति को इसी एक बिन्दु पर केन्द्रित करना चाहिए था। यही चूक भविष्य में खतरनाक साबित होगी।
पड़ोसी देशों में सैन्य हस्तक्षेप
इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि 1962 में चीन के हाथों बुरी तरह से पराजित होने के पश्चात भी हमारी सरकार ने इस पड़ोसी देश की विस्तारवादी रणनीति को नहीं समझा। चीन जब भी किसी पड़ोसी देश पर हमला करता है तो "चीन की सुरक्षा खतरे में" का वातावरण बनाता है। अपनी इस युद्ध नीति को आधार बनाकर चीन की सेना सीमाओं का अतिक्रमण करके अचानक युद्ध थोप देती हे। सो रहे लोगों पर बिना चेतावनी के हमला बोलना और उनके जागने तक अपना काम पूरा करके शांति का झंडा फहरा देना इसी रणनीति का साक्षात नमूना था 1962 का युद्ध।
इससे पूर्व चीन ने 1950 में कुटिलता से तिब्बत पर यह कहकर अपना सैन्य आधिपत्य जमा लिया कि चीन एवं तिब्बत दोनों की सुरक्षा के लिए यह जरूरी था। इसी युद्ध नीति के तहत चीन ने कोरिया में सैन्य हस्तक्षेप करके मानवता का गला घोंट डाला। चीन ने लगभग इसी समय (1962 के बाद) अपने साम्यवादी आका रूस के साथ भी सीमांत टकराव की नीति अपनाई। इसी तरह 1974 में चीन ने वियतनाम के एक द्वीप पारासेल को कब्जाने के लिए सैन्य हस्तक्षेप किया और 1979 में वियतनाम के विरुद्ध सीधी सैनिक कार्रवाई कर दी।


1962 से ज्यादा खतरनाक हालात


आज चीन अपनी इसी एक परंपरागत युद्ध नीति का विस्तार भारत के चारों ओर करने में सफल हो रहा है। भारत की सीमा के साथ लगते सभी पड़ोसी देशों को अपने साथ जोड़कर चीन ने अपनी भारत विरोधी युद्धक क्षमता को 1962 की अपेक्षा कई गुना ज्यादा बढ़ा लिया है। वायु युद्ध अर्थात आसमान से दुश्मन देश पर तबाही के गोले बरसाने वाली एंटीसेटेलाइट मिसाइलें बनाकर चीन ने अद्भुत सफलता प्राप्त कर ली है। इन भयानक मिसाइलों के निशाने पर पाकिस्तान समेत भारत के पड़ोसी देश नहीं होंगे, क्योंकि यह देश चीन के सैन्य कब्जे में जा रहे हैं। चीनी मिसाइलों के निशाने पर भारत के सैनिक ठिकाने और शहर होंगे।
अत: 1962 से कहीं ज्यादा खतरनाक इतिहास दुहराने के निशान पर पहुंच चुके चीन के लिए प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह का यह कहना कि चीन हम पर हमला नहीं करेगा बहुत ही बचकाना बयान लगता है। यह कथन देश, जनता और सेना को उसी तरह से अंधेरे में रखने जैसा है जैसे प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने चीन को अपना भाई बताकर वस्तुस्थिति की अनदेखी कर दी थी। क्या वह अपमानजनक इतिहास फिर दोहराया जाएगा?


देश के समक्ष गंभीर चुनौती


चीन की युद्धक तैयारियों के मद्देनजर भारत की सरकार, सेना और समस्त जनता को खम्म ठोककर खड़े होना चाहिए। चीन के संबंध में किसी कल्पना लोक में अठखेलियां कर रही सोनिया निर्देशित डा.मनमोहन सिंह की सरकार को वास्तविकता के धरातल पर उतर कर जनता का मनोबल मजबूत करना चाहिए। चीन की प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष युद्ध नीतियों का फिर से मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। चीन की परंपरागत युद्धनीति में अंतरराष्ट्रीय नियमों, सद्भावनाओं, वार्ताओं और सहअस्तित्व जैसे मानवीय मूल्यों के लिए कोई स्थान नहीं है। वहां धोखा है, फरेब है और कुछ नहीं।

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भारत के समक्ष एक गंभीर रक्षात्मक चुनौती है। यह चुनौती इसलिए भी भयानक है क्योंकि चीन और पाकिस्तान एकजुट हैं। दोनों के वैचारिक आधार हिंसक जिहाद और हिंसक साम्यवादी विस्तारवाद भारत के मानवतावादी तत्वज्ञान से मेल नहीं खाते। इसलिए समय रहते भारत को अपनी सामरिक क्षमता को एक विश्वव्यापी अजेय शक्ति के रूप में सम्पन्न करना होगा। यही एकमेव रास्ता है।