Saturday, October 27, 2012

जम्‍मू-कश्‍मीर के विलय के 65 वर्ष बाद एक सवाल



प्रो0 भीम सिंह

प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय


                                                                       महाराजा हरि सिंह


     27, अक्‍टूबर, 1947 को महाराजा हरिसिंह के हस्‍ताक्षर के बाद, जम्‍मू-कश्‍मीर  का विलय भारत के साथ संपूर्ण हो गया था। राष्‍ट्रीय और अंर्तराष्‍ट्रीय नियमों के अनुसार जम्‍मू-कश्‍मीर 27 अक्‍टूबर, 1947 को भारत का अभिन्‍न अंग बन चुका था, जैसे बाकी रियासतें भारत से  मिल गयी थीं। महाराजा ने विशेषकर, अपने विलय पत्र पर रक्षा, विदेशी मामले, संचार व मुद्रा को बिना किसी शर्त के भारत सरकार को सौंप दिया था। इस बात का उल्‍लेख संविधान सभा की बहस में भी बड़े जोरदार शब्‍दों में दर्ज है। परंतु 26 जनवरी, 1950 को भारत के एक संविधान में  एक अस्‍थायी धारा-370 जो दस-पंद्रह साल में समाप्‍त कर दी जायेगी। मगर आज जम्‍मू-कश्‍मीर विलय के 65 वर्ष पूरे हो चुके हैं यानि आधी सदी से भी ज्‍यादा समय हो चुका है और भारत के शत्रु जो इस देश को कमजोर करना चाहते हैं वे तथाकथित कश्‍मीर के मुद्दे को उठाकर देश की एकता को कमजोर करने के लिये धारा-370 को तलवार के रूप में इस्‍तेमाल करके अस्थिरता पैदा करना चाहते हैं।

    सवाल यह है कि जब भारत का विलय 65 वर्ष पहले हुआ तो धारा-370 में संसद पर रोक क्‍यों लगायी गयी कि वह जम्‍मू-कश्‍मीर के बारे में कोई भी विधान या कानून बनाने में असमर्थ है। आज संसद का जो भी कानून बनता है उसके आगे लिखा जाता है कि यह कानून जम्‍मू-कश्‍मीर में लागू नहीं होगा, जबकि जम्‍मू-कश्‍मीर के विलय पर कोई भी प्रश्‍न नहीं उठता, यहां तक कि  अंर्तराष्‍ट्रीय न्‍यायालय में पाकिस्‍तान के जज ने स्‍वयं  इस बात को स्‍वीकार किया था कि महाराजा हरि सिंह को विलय करने का पूरा अधिकार  था।
     धारा-370 को रखा जाय या हटाया जाय, प्रश्‍न देश के सामने यह नही है, प्रश्‍न यह है कि जब जम्‍मू-कश्‍मीर भारत का अभिन्‍न अंग बन चुका है तो क्‍या बात है कि देश की संसद अपने  ही देश के लोगों के लिये क्‍यों कानून नही बनाती। यह रोक किसने लगायी है। इस रोक को 65 वर्ष तक क्‍यों नही हटाया गया। सवाल यह भी है कि जो राजनीतिक दल धारा-370 हटाने की बात करते रहे, उसके लिये सड़कों पर आंदोलन भी हुये, जब वे केन्‍द्र में सत्‍ता में आये, तो उन्‍होंने धारा-370 के बारे में खामोशी अख्त्यिार क्‍यों कर ली। हटाने की बात तो दूर रही उन्‍होंने धारा-370 में संशोधन की बात भी नहीं की।

    मुझे याद है कि जब मैं देश के उस समय के प्रधानमंत्री माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी से उनके निवास पर मैंने दिसंबर, 2003 में जोरदार तर्क देकर उनसे धारा-370 में संशोधन करने का सुझाव दिया था। मेरा इतना मानना है कि यदि संसद को जम्‍मू कश्‍मीर पर कानून बनाने का  अधिकार दिया जाये, जिसे संसद ने खुद ही अपने ऊपर अंकुश लगा  रखा है, तो जम्‍मू कश्‍मीर के लोगों को ही नहीं, बल्कि पूरे विश्‍व के लोगों को एक संदेश जायेगा कि जम्‍मू-कश्‍मीर भारत का अभिन्‍न अंग है और रहेगा। मैंने वाजपेयी जी से यह अनुरोध किया था कि कम से कम उन तीन मुद्दों पर संसद को कानून बनाने का अधिकार तुरंत दे देना चाहिये, जिनमें रक्षा, विदेशी मामले, संचार एवं मुद्रा आदि मुद्दे शामिल हैं।

वाजपेयी जी ने मुझे इस विषय पर एक संक्षिप्‍त लिखित सुझाव देने को कहा, मैंने उसी दिन शाम को वाजपेयी जी को अपना सुझाव पत्र एक अध्‍यादेश के शक्‍ल में बनाकर पेश किया। मैंने वाजपेयी जी से यह अनुरोध किया था कि जम्‍मू-कश्‍मीर विधानसभा को समवर्ती सूची में शामिल सभी मुद्दों पर कानून बनाने का अधिकार दिया जा सकता है, परन्‍तु भारत की सार्वभौमिकता को खंडित नही किया जा सकता। मेरा सुझाव था कि धारा-370 में यह संशोधन राष्‍ट्रपति द्वारा एक अध्‍यादेश से लागू किया जा सकता था और उसके बाद इसी मुद्दे पर संसद का चुनाव होना  चाहिये कि देश के लोग जम्‍मू-कश्‍मीर की तथाकथित समस्‍या का हमेंशा-हमेंशा के लिये समाधान निकाल सके- काश कि वाजपेयी जी इस संशोधन को  कर पाते।

     इसमें कोई संदेह नहीं कि धारा-370 को संविधान के पन्‍नों से पूरी तरह हटाना, शायद अभी मुमकिन  नही होगा, परन्‍तु धारा-370 की तलवार से संसद की विधायी संसद को जम्‍मू-कश्‍मीर से अलग रखना भी देश की एकता और अखण्‍डता के लिये लाभदायक नही होगा। धारा-370 में संशोधन पूरे देश की रक्षा, अखण्‍डता और एकता के लिये अत्‍यंत आवश्‍यक है। तथाकथित स्‍वायत्‍तता के नारे देश को तोड़ने वालों के नारों से कम नहीं है, जम्‍मू-कश्‍मीर के लोग पाकिस्‍तान के वर्तमान विगड़ते हुये राजनीतिक व सामाजिक हालत से बाखबर है।

 उन्‍होंने पाकिस्‍तान की ओर से 1947, 1965 और 1999 के आक्रमण को नहीं भूला है ना ही जम्‍मू-कश्‍मीर के लोग पाकिस्‍तान की फौजी शासन को बर्दाश्‍त  नहीं कर सकते हैं, वे धर्म-निरपेक्ष, भाईचारा और सद्भभावना के माहौल में पले हैं, बढ़े हैं। जम्‍मू-कश्‍मीर के लोग उस भेद-भाव से बाहर आना चाहते हैं, जिसे संविधान ने अपने दायरे में बंद कर रखा है। क्‍या संसद का अपने ऊपर जम्‍मू-कश्‍मीर में कानून न बनाने का अंकुश लगाना, जम्‍मू-कश्‍मीर के लोगों के  साथ भेद-भाव नही है। यह है विलय दिवस पर जम्‍मू-कश्‍मीर के अवाम का सवाल, जिस दिन संसद अपने उपर लगाये इस अंकुश को खत्‍म कर देगी, जम्‍मू-कश्‍मीर में फिर से सर्द हवाएं चलना आरंभ हो जायेंगी, जम्‍मू-कश्‍मीर में ना उग्रवाद रहेगा और ना ही आतंकवाद।

     भारत का ध्‍वज हर घर पर लहरायेगा और प्‍यार, मोहब्‍बत और अमन चैन की फिज़ा फिर लौटकर आयेगी। यही था पैगाम विलय दिवस का, क्‍योंकि विलय दिवस का महत्‍व जम्‍मू-कश्‍मीर के लोगों के लिये वही है, जो 26 जनवरी पूरे राष्‍ट्र के लिये है। विलय के बावजूद  जम्‍मू-कश्‍मीर का ध्‍वज अलग, संविधान अलग और जम्‍मू-कश्‍मीर के संविधान से मौलिक व मानव अधिकार गुम। 27 अक्‍टूबर को जम्‍मू-कश्‍मीर के लोग, उन वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि देते हैं, जिन्‍होंने जम्‍मू-कश्‍मीर की रक्षा के लिये पाकिस्‍तान की ओर से आने वाले हमलावरों को अपने प्राणों की आहूति देकर उड़ी-बारामूला मार्ग पर रोके रखा, उनमें से लामसाल कुर्बानी है ब्रि0 राजेन्‍द्र सिंह और उनके साथ 150 उन डोगरा वीर सिपाहियों की जिन्‍होंने पाकिस्‍तान की ओर से हजारों हमलावरों को बारामूला में नहीं घुसने दिया और 26-27 अक्‍टूबर की रात वे शहीद हो गये।


     जम्‍मू-कश्‍मीर के विलय दिवस पर भव्‍य समारोह होने चाहिये, घर-घर तिरंगा का संदेश पहुंचना  चाहिये ताकि हर व्‍यक्ति  को विलय का संदेश पहुंच पाये और उसे भारतीय होने का स्‍वाभिमान  प्राप्‍त हो सके।
    







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