Monday, October 31, 2011

अन्ना आंदोलन का टूटता तिलिस्म

पंकज चर्तुवेदी

प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय

यह एक पुरानी कहावत है कि जो जितना तेजी से ऊपर जाता है वो उतना ही तेजी से नीचे भी आता है। ऊँचाइयों पर पहुचना आसान है किन्तु ऊंचाईयों पर टिके रहना कठिन है। अन्ना आंदोलन के बाद वर्तमान परिदृश्यों को देखते हुए ऐसा लगता है कि यह सब अन्ना और उनके सहयोगियों के साथ भी घटित हो रहा है। जिस तरह से टीम अन्ना के अगुआ अपनी टीम को बचाये रखने और कोर कमेटी को भंग न करने का ऐलान कर रहे हैं उससे लग रहा है कि अंदर भितरघात का अंतहीन दौर चल पड़ा है जिसका नकारात्मक असर पूरे अन्ना के आंदोलन पर पड़ सकता है।
इंडिया अगेन्स्ट करप्शन के नाम से चला आन्दोलन रातो-रात देश भर में छा गया। लोगों को लगने लगा कि बस अन्ना का नाम लो और भ्रष्टाचार का भूत भाग जायेगा। देश की हर तकलीफ की जड़ में भ्रष्टाचार है और अन्ना की जद में आने से सब तकलीफे दूर हो जायेंगी लेकिन समय के साथ यथार्थ के धरातल पर  ऐसा कुछ भी नहीं हो पा रहा है। आंदोलन के दूसरे चरण की समाप्ति के इतने दिनों बाद ऐसा लगता है कि टीम अन्ना आज एक ऐसे चौरहे पर खडी है, जहाँ यह तय कर पाना मुश्किल दिख रहा है कि मंजिल के लिए कौन सा मार्ग निर्धारित किया जाए।
पूर्णत: आराजनीतिक इस मंच को सबसे बड़ा आघात हिसार लोकसभा उपचुनाव से लगा है। यहाँ कांग्रेस तो चुनाव हार गयी पर अन्ना की कांग्रेस को चुनाव हारने की अपील के चलते अन्ना  भी लोगो के जीते हुए मन हारने लगे है ,इसमें अन्ना के अपने नजदीकी और आम लोग सभी शामिल है। आंदोलन के इस राजनीतिकरण के चलते टीम अन्ना के दो प्रमुख सदस्य राजेंद्र सिंह और गांधीवादी पी.वी. राजगोपाल ने अन्ना की कोर कमेटी से त्यागपत्र दे दिया। ऐसा लगता है कि हिसार में कांग्रेस से हिसाब करने की जल्दी में केजरीवाल ही थे। राजेंद्र सिंह ने केजरीवाल और किरण बेदी पर खुला आरोप लगाया है कि यह दोनों बहुत घमंडी है एवं इन में अफसरशाही की ठसक अभी भी भरी है। विशेषकर अन्ना के मौन धारण करने के बाद केजरीवाल कुछ ज्यदा ही मुखर होते प्रतीत हो रहें है। केजरीवाल के चलते अन्ना को बहुत तकलीफे आ रही है। आंदोलन के समय भी केजरीवाल और किरण पर अन्ना को अपनी मनमर्जी से चलाने के आरोप लगते रहें है।
अन्ना के पुराने साथी अग्निवेश ने तो पहले ही साथ छोड़ दिया है। अग्निवेश की पीड़ा भी केजरीवाल है। ईमानदार छबि वाले जस्टिस संतोष हेगडे भी एक लंबे समय से मुख्य धारा से दूर है, जब कि अपेक्षा यह थी कि कर्णाटक के लोकायुक्त पद से मुक्त होने के बाद उनकी सक्रियता और बढ़ेगी। हेगड़े भी स्पष्ट कर चुके है कि जन-लोकपाल के अतिरिक्त अन्ना और साथी कुछ भी करें वह उस से दूर है। वास्तव में महंगाई से भयभीत जनता ने अन्ना को अपना संबल मन उनके आंदोलन को बल प्रदान किया। यदि आज महँगाई नियंत्रित होती तो शायद अन्ना को इतना समर्थन नहीं मिलता। लेकिन आपर जनसमर्थन से टीम अन्ना सातवे आसमान पर पहुँच गयी और अफसरों एवं राज-नेताओं सा सोचना शुरू कर दिया कि हमसे श्रेष्ठ कोई नहीं है। श्रेष्ठता का यही भाव पतन का पहला कदम है। आज आम जनता यह जानना चाह रही है कि अन्ना क्या चाहते है, जन-लोकपाल, न्याय सुधार या फिर चुनाव सुधार।
अन्ना के कथित सेनापति केजरीवाल पर आरोप है कि उन्होंने आन्दोलन के लिए मिले चंदे का पैसा अपनी निजी संस्था के खाते में जमा किया है। केजरीवाल कि पहली सफाई यह थी कि चंदे के एक –एक पैसे का हिसाब दिया जायेगा। अब केजरीवाल यह कह रहें है कि इंडिया अगेन्स्ट करप्शन एक आंदोलन है संगठन नहीं इसलिए उसका कोई बैंक खाता नहीं है। इस सब के बीच एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या पैसा नकद आया है क्योकि इंडिया अगेन्स्ट करप्शन के नाम से बैंक खाता नहीं है तब इस नाम से चेक तो बने नहीं होंगे। नकद का हिसाब गडबड करना बहुत आसान है। भ्रष्टाचार का विरोध करने वालों के दमन पर यदि कीचड उछाल रहा हो तो फिर उनकी भूमिका संधिग्ध हो जाती है।
बेदी मैडम भी माना चुकी है कि उन्होंने वीरता पदक का दुरूपयोग कर हवाई यात्राओ की राशि में भरी हेर –फेर किया है। अब सब कुछ सार्वजिनिक हो जाने के बाद वह कह रही है कि गलत ढंग से लिया पैसा वापिस कर देंगी। उनकी बेटी को गलत कोटे से मिला प्रवेश भी लोग याद रखते है। यानि कि बेदी मैडम भी भ्रष्टाचार के दल-दल में है। प्रशांत भूषण भी कश्मीर को देश से अलग करने वालों की हिमायत करते नजर आये और सार्वजनिक दुर्वयवहार के बाद से लगभग गायब से है। कुमार विश्वास को अब अपनी कोर कमेटी पर ही विश्वास नहीं और वह भी अब कविता छोड़ चिट्ठियां लिख रहे है।
अन्ना स्वयं भ्रष्टाचार से परे है पर गांधीवाद से सामंजस्य नहीं बिठा सके है, इस लिए कई बार आलोचन पर उत्तेजित हो जाते है। मौन व्रत के बाद भी ब्लॉग पर वाणी का असंयम आम है जबकि गाँधी जी ने वाणी संयम को सबसे ज्यादा महत्त्व दिया था। अन्ना को महात्मा बनने की शीघ्रता है लेकिन यह पथ आसान नहीं। यदि अन्ना ने जल्दी ही अपनी टीम का कायाकल्प नहीं किया तो टीम तो टूटेगी ही तिलिस्म भी शेष नहीं बचेगा।

वैश्विक सद्भाव को असहिष्णुता से सबसे बड़ा खतरा

तनवीर जाफरी
प्रस्‍तुति: डॉ0  संतोष  राय
                        वैश्विक स्तर पर कथित रूप से आतंकवाद के िखलाफ युद्ध लड़ रहे अमेरिका ने अब वैश्विक आतंकवाद के अतिरिक्त इस्लामी देशों में फैली असहिष्णुता की भावना को विश्व के लिए एक बड़ा संकट बताया है। अमेरिकी विदेशमंत्री हिलेरी क्लिंटन ने कई इस्लामी देशों में अल्पसंख्यकों के प्रति बढ़ती हुई असहिष्णुता पर चिंता ज़ाहिर की है। अमेरिकी कांग्रेस की पिछले दिनों हुई बैठक में क्लिंटन ने कहा कि इस प्रकार भावना रखना विश्व की बड़ी समस्याओं में से एक है। धार्मिक सहिष्णुता की स्वीकार्यता की ज़रूरत महसूस करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे कई देशों में असहिष्णुशील मुस्लिम केवल गैर मुस्लिमों को ही नहीं बल्कि मुस्लिम जगत से जुड़े अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को भी नहीं बख्शते। गोया उन्होंने साफतौर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व धार्मिक स्वतंत्रता के मध्य समीकरण एवं सामंजस्य स्थापित करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। हिलेरी क्लिंटन द्वारा व्यक्त की गई उक्त चिंता को दुनिया के समझने के दो पहलू हो सकते हैं। एक तो यह कि यह उसी अमेरिका के विदेश मंत्री का वक्तव्य है जोकि आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध के बहाने सभ्यता के संघर्ष का स्वयंभू सिपहसालार बना हुआ है। और दूसरे यह कि आखिर हिलेरी क्लिंटन द्वारा लगाए गए आरोपों में वास्तविकता कितनी है। असहिष्णुता की ऐसी मिसालों की यदि विस्तार से बात की जाए तो निश्चित रूप से इन पर कई बड़े से बड़े ग्रंथ लिखे जा सकते हैं। परंतु पाकिस्तान व अफगानिस्तान जैसे दो पड़ोसी देशों में घटने वाली कुछ ताज़ातरीन घटनाएं ही अपने-आप में यह समझ पाने के लिए काफी हैं कि हिलेरी क्लिंटन द्वारा लगाए जाने वाले आरोप केवल आरोप ही नहीं बल्कि यह एक हकीकत भी हैं।
                    पिछले दिनों पाकिस्तान से यह खबर आई कि कुछ कट्टरपंथी आतंकी संगठनों द्वारा वहां के रहने वाले सिख समुदाय के लोगों को जजि़या कर अदा किए जाने की धमकी दी गई। कई सिख परिवार के सदस्यों से जजि़या के नाम पर जबरन पैसे वसूले भी गए। धर्म के नाम पर अल्पसंख्यक पाक नागरिकों से इस प्रकार का सौतेला व्यवहार आखिर  धार्मिक असहिष्णुता नहीं तो और क्या है? इसी प्रकार भारतीय समाचार पत्रों तथा टी वी चैनल्स के माध्यम से प्राय:ऐसी खबरें  सुनाई देती हैं जिनसे यह पता चलता है कि पाकिस्तान से भारत घूमने-फिरने आए हिंदू समुदाय के सदस्य यहां से वापस पाकिस्तान नहीं जाना चाहते। इसका जो कारण वे लोग बताते हैं उन्हें सुनकर यह साफतौर पर मालूम होता है कि पाकिस्तान अपने देश में रहने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के हितों की पूरी तरह रक्षा नहीं कर पा रहा है। वहां के मुस्लिम समाज के अल्पसंख्यक वर्ग शिया तथा ईसाईयों के साथ भी भेदभाव बरते जाने, उनपर ज़ुल्म किए जाने तथा उन्हें आत्मघाती हमलों का शिकार बनाए जाने की खबरें तो अक्सर आती रहती हैं। इस प्रकार की घटनाओं पर नियंत्रण न कर पाना पाकिस्तान सरकार की नाकामी को साफतौर पर दर्शाता है। ज़ाहिर है असहिष्णुशीलता की इसी प्रकार की घटनाएं दुनिया को यह सोचने के लिए मजबूर कर देती हैं कि सहिष्णुता की कमी वास्तव में कहीं इस्लामी धार्मिक शिक्षाओं की वजह से तो नहीं है?
                        इसी वर्ष जनवरी माह में पाकिस्तान में पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या के विभिन्न पहलू पाकिस्तान में व्याप्त असहिष्णुता की भावना के जीवंत उदाहरण हैं। पाकिस्तान में ईश निंदा कानून की समीक्षा किए जाने की सलमान तासीर की सलाह को सहन न करते हुए उनके ही अंगरक्षक मुमताज़ कादरी द्वारा उनकी हत्या किया जाना असहिष्णुता का यह कितना बड़ा उदाहरण है। क्या इस्लामी शिक्षाएं इस बात की इजाज़त देती हैं कि जिसकी रक्षा के लिए किसी को तैनात किया गया हो वह उसी की हत्या कर डाले? दूसरा पहलू-हत्यारा मुमताज़ कादरी जब अदालत पहुंचता है तो उस इस्लाम व मानवता के दुश्मन अपराधी पर वकीलों द्वारा फूलों की बारिश की जाती है। गोया सहिष्णुता की धज्जियां उड़ाने वाले का कितना बड़ा सम्मान और वह भी अपने-आप को पढ़े-लिखे व बुद्धिजीवी बताने वाले वर्ग के द्वारा? तीसरा पहलू-हत्यारा अपना जुर्म कुबूल करता है और जज परवेज़ अली शाह न्याय करते हुए उसे सज़ा-ए-मौत देने की घोषणा करते हैं। परंतु उस सज़ा देने वाले जस्टिस शाह को जान से मारे जाने की धमकियां इसी असहिष्णुशील वर्ग द्वारा दी जाती हैं। और मजबूर होकर जस्टिस शाह को देश छोडक़र सऊदी अरब में जाकर पनाह लेनी पड़ती है। गोया इस एक घटना में और वह भी किसी आम आदमी की नहीं बल्कि एक गवर्नर जैसे अति विशिष्ट व्यक्ति की हत्या से जुड़े मामले में असहिष्णुता का ऐसा नंगा नाच जोकि पाकिस्तान में बिल्कुल जंगलराज की तरह चल रहा हो, क्या यह घटना पूरे विश्व का ध्यान घोर असहिष्णुता का केंद्र बनते जा रहे पाकिस्तान की ओर खींचने के लिए काफी नहीं है?
                        उधर दूसरे पड़ोसी देश अफगानिस्तान की भी तालिबानों ने यही हालत बना रखी है। खबरों के अनुसार तालिबानों ने पूरे अफगानिस्तान में गत् दस वर्षों के अंदर जितने भी ईसाई गिरजाघर थे लगभग सभी नष्ट कर डाले। वहां भी अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता के साथ रहने नहीं दिया जाता। इन तालिबानी ताकतों ने भी अपनी धार्मिक असहिष्णुता का प्रमाण देते हुए पूरी दुनिया का ध्यान उस समय अपनी ओर आकर्षित किया था जबकि इन्होंने बामियान प्रांत में पत्थरों की विशाल चट्टानों में गढ़ी गई बुद्धा की विशालकाय ऐतिहासिक मूर्तियों को तोपें चलाकर ध्वस्त कर दिया था। उनका कहना था कि अफगास्तिान में मूर्तियों का कोई स्थान नहीं है। इन तालिबानी ताकतों ने केवल शांतिदूत गौतम बुद्ध की मूर्तियों को ही ध्वस्त नहीं किया बल्कि इसके बाद उन्होंने सैकड़ों गायों की हत्या कर सैकड़ों वर्षों तक अफगानिस्तान में बुद्ध की मूर्तियां मौजूद रहने के लिए पश्चाताप किए जाने जैसा पाखंड भी किया। स्कूल,संगीत, महिलाओं का बाज़ार में निकलना,खेल-कूद, टी वी तथा िफल्म आदि देखने का यह तालिबानी ताकतें किस कद्र विरोध करती हैं यह खबरें तो दुनिया समय-समय पर सुनती ही रहती है।
                        उपरोक्त घटनाएं निश्चित रूप से न केवल वैश्विक मुस्लिम समाज के लिए चिंता का विषय हैं बल्कि मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले मानवतावादियों के लिए भी चिंता की बात हैं। इन घटनाओं से एक बात और ज़ाहिर होती है कि असहिष्णुता की यह भावना अब केवल अनपढ़ कहे जाने वाले वर्ग तक ही शायद सीमित नहीं रह गई है बल्कि संभवत:अब स्वयं को पढ़ा-लिखा व बुद्धिजीवी कहने वाला एक बड़ा वर्ग भी असहिष्णुता की राह पर चलने लगा है। इस प्रकार की सीमित सोच सीमित क्षेत्रों अथवा सीमित समुदाय तक तो किसी हद तक सहन की जा सकती है परंतु किसी भी देश के लिए राष्ट्रीय या वैश्विक स्तर पर इस प्रकार की असहिष्णुशील सोच को आगे लेकर चलना अथवा थोपना कतई संभव नहीं है। आज पूरा विश्व किसी न किसी बहाने से किसी न किसी मजबूरी के चलते, ज़रूरतवश, परिस्थितिवश अथवा वक्त के तकाज़े के तहत एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। यह परिस्थितियां मानवीय रिश्तों पर आधारित हो सकती हैं, भौगोलिक, प्राकृतिक, साहित्यिक,सांस्कृतिक,व्यापारिक,वैज्ञानिक,खेल-कूद संबंधी,खान-पान से जुड़ी आदि कुछ भी हो सकती हैं। परंतु विश्व स्तर पर इस प्रकार के मज़बूत एवं दूरगामी रिश्ते निश्चित रूप से धार्मिक व सांप्रदायिक सहिष्णुता की बुनियाद पर ही खड़े हो सकते हैं। इन रिश्तों को आगे बढ़ाने के लिए प्रत्येक धर्म व समुदाय के लोगों को एक-दूसरे की भावनाओं व उसके धार्मिक विश्वासों का आदर करना नितांत आवश्यक है। जबकि असहिष्णुशीलता की भावना चाहे वह किसी भी धर्म अथवा समुदाय के लोगों में क्यों न हो, ऐसे लोगों को दुनिया,समाज यहां तक कि अपने ही समुदाय के उदारवादी व सहिष्णुशील सोच रखने वाले लोगों से अलग-थलग कर देती है। और ऐसे लोग कुंए के मेंढक की तरह अपनी ही गढ़ी हुई छोटी सी दुनिया में जीने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
                        और जब किसी धर्म अथवा संप्रदाय की ऐसी असहिष्णुशील भावनाएं दुनिया को नुकसान पहुंचाने लगती हैं तथा ऐसे विचारों को दुनिया अपने लिए खतरा महसूस करने लगती है तो ज़ाहिर है अमेरिका ही नहीं किसी भी देश का ध्यान इस ओर आकर्षित हो सकता है। लिहाज़ा इस विषय पर चिंतन करने के लिए यह सोचने की आवश्यकता नहीं कि मुस्लिम देशों में सहिष्णुता की बढ़ती कमी का प्रश्र किसने खड़ा किया। बजाए इसके यह सोचना चाहिए कि ऐसा प्रश्न उठाने की नौबत क्यों आई और यह मौका किसने और क्यों दिया।
साभार-
                                                                                   

Saturday, October 29, 2011

बांग्‍लादेश व पाक से हिन्‍दुओं को शरणार्थी व मुसलमान को घुसपैठिया मानना चाहिये

 इसके उत्तर के लिए आपको स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व स्मरण करना उचित होगा । उस समय मुसलमानों ने भारत का विभाजन कराया । गांधी जी ने कहा था कि देश का बंटवारा मेरी लाश पर होगा । तब जिन्ना ने १४ अगस्त १९४६ को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस मनाया जिसमें पूरे देश में लाखों हिन्दुऒ को काट डाला गया । हिन्दुऒ पर होने वाले अत्याचारों से डरकर भारत के नेताऒ ने देश का बंटवारा स्वीकार कर लिया । तब पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दुऒ पर अत्याचारों का अंतहीन दौर शुरू हुआ जो अब तक जारी है । तब वहां से हिन्दू् भाग भाग कर भारत आने लगे तब सरदार पटेल ने उन्हें रोकते हुए आश्वासन दिया कि आप जहां है वही रहें यदि कोई समस्या आती है तो भारत में आपको पूर्ण शरण दी जाएगी । वे हिन्दू भारत को ही अपनी मातृ भूमि मानते थे पर मुसलमानों की हठधर्मिता के कारण उन्हें अपने देश से अलग कर दिया गया वे पाकिस्तान अपनी इच्छा से नही रह गए थे वरन मजबूरी में वहां रहना पड़ा । अब जब वहां हिन्दू के रूप में रहने का पाकिस्तान व बांग्लादेश में कोई प्रश्न ही नहीं रह गया है तो उन्हें अपने देश में शरण देना हमारा नैतिक कर्तव्य है । वही दूसरी ऒर मुसलमान जिन्होने अपने गुण्डागर्दी के आधार पर भारत का बंटवारा कराया लड़ कर अपने लिए नया देश बनाया उन्हें इस देश में आने कोई हक नही है । अतः स्पष्ट है कि यदि पाकिस्तान या बांगलादेश से कोई मुसलमान आता है घुसपैठिया है व यदि हिन्दू आता है तो शरणार्थी है । 

Friday, October 28, 2011

अल्लाह ने मुहम्मद को धोखा दिया !

बी0एन0 शर्मा

प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय

मुसलमानों का दावा है कि मुहम्मद अल्लाह के सबसे प्यारे रसूल हैं .और हरेक मुसलमान को मुहम्मद पर ईमान रखना और उनका अनुसरण करना अनिवार्य है .अल्लाह की तरह मुहम्मद से प्रेम करना ही ईमान की निशानी है.इसके लिए कुरान में स्पष्ट आदेश है ,
"यदि तुम अल्लाह से प्रेम करते हो ,तो मुहम्मद का अनुसरण करो "सूरा -आले इमरान 3 :31 
पहले तो अल्लाह लोगों से राजीखुशी से मुहम्मद पर ईमान रखने का आग्रह करता रहा ,और कहता रहा ,
"हे लोगो यदि तुम रसूल पर ईमान रखोगे ,तो यह तुम्हारे लिए अच्छा ही होगा "सूरा -निसा 4 :170 
लेकिन फिर अल्लाह ने लोगों को धमकी देना ,और डराना शुरू कर दिया ,और कहने लगा ,
"जो अल्लाह और उसके रसूल मुहम्मद पर ईमान नहीं लाया ,तो ऐसे काफिरों के लिए हमने जहन्नम में दहकती हुई आग तैयार कर रखी है "
सूरा -अल फतह 8 :13 
इन आयतों से पता चलता है की अल्लाह के बाद मुहम्मद का दूसरा स्थान है .मुसलमान यह भी दवा कराते हैं की अल्लाह ने मुहम्मद पर विशेष अनुग्रह या मेहरबानी कर रखी थी .जो दूसरे नबियों पर नहीं की थी .इसके आलावा अल्लाह ने मुहम्मद से कुछ वादे भी कर रखे थे ,जैसे ,
"हे रसूल अल्लाह का तुम पर सदा बड़ा अनुग्रह बना रहेगा "सूरा -निसा 4 :113 
फिर अल्लाह ने मुहम्मद को यह भरोसा भी दिलाया ,और लालच भी दिलाया कि, 
"तुम्हारा रब न तो कभी तम्हें छोड़ेगा ,और न कभी तुम से विमुख होगा .और रब तुम्हें इतना सब देगा कि जिस से तुम पूरी तरह से राजी हो जाओगे "
सूरा -अज जुहा 93 :3 से 5 
इसके बाद अल्लाह ने रसूल बनाने के कारखाने को बंद कर दिया ,और कारखाने के दरवाजे पर ताला लगा कर सील लगा दी ,और कहा ,
"मुहम्मद अल्लाह के रसूल और सारे नबियों के समापक है ( seal of prophets ) सूरा -अहजाब 33 :40 
ल्लाह ने आदम से लेकर मुहम्मद तक कई रसूल और नबी भेजे है ,हम कुरान के आधार पर देखते हैं कि अल्लाह ने दुसरे नबियों पर कैसी कैसी मेहरबानियाँ कि थी ,और कौन कौन सी शक्तियां दी थी .फिर देखते है कि अल्लाह ने मुहम्मद पर मेहरबानी कि थी ,या मुहम्मद के साथ बेईमानी की थी .और अल्लाह ने अपना वादा निभाया था ,या धोखा दिया था .ध्यान से पढ़िए 
1 -मुहम्मद को छोटे कद का बनाया 
अल्लाह ने अपना पहला नबी आदम को बनाया था ,जिसके कद की उंचाई 90 फुट थी ,जो इन हदीसो से साबित होती है ,
बुखारी -जिल्द 4 किताब 35 हदीस 543 और 544 ,बुखारी -जिल्द 8 किताब 74 हदीस 246 ,मुस्लिम -किताब 40 हदीस 6809 .
(नोट -अरबी में आदम की लम्बाई 60 "जिराअذراع " बताई गयी है ,इसे "Cubits "भी कहते हैं .एक जिराअ 68 cm होता है )
लेकिन अल्लाह ने मुहम्मद कद आम आदमियों से भी कम बनाया था .मुहम्मद की ऊंचाई सिर्फ 5 फुट 2 इंच थी .हदीस देखिये 
बुखारी -जिल्द 4 किताब 56 हदीस 750 .और मुस्लिम -किताब 30 हदीस 5770 
2-मुहम्मद को कम आयु दी 
अल्लाह ने अपने एक नबी नूह को 950 साल की आयु दी थी .यह कुरान से साबित होता है ,
"और  नूह को उन लोगों के पास भेजा ,और नूह एक हजार में पचास साल कम जिन्दा रहा "सूरा -अल अनकबूत 9 :14 और 15 .
लेकिन अल्लाह ने अपने प्यारे रसूल को सिर्फ 63 साल की आयु दी थी ( सन 570 से 632 तक )
यही नहीं अल्लाह ने मदीना के निवासी मुहम्मद के दुश्मन यहूदी कवि अबू आफाक को 120 साल की आयु दी थी .अगर मुहम्मद अप्रेल 623 में अबू आफाक का क़त्ल नहीं करता तो वह कई साल और जिन्दा रहता (तारीख इब्न इशाक पेज 465 )
3-संतानों का सुख नहीं दिया 
इब्राहीम और दाऊद भी अल्लाह के नबी थे ,और अल्लाह ने उनकी संतानों को लम्बी आयु प्रदान की ,और राजपाट का वरदान दिया था . 
"हमने इब्राहीम की संतान को बड़ा राज्य प्रदान किया .और लम्बी आयु दी "सूरा -निसा 4 :54 
"फिर हमने सुलेमान को दाऊद के राज्य का वारिस बनाया ,और उस पर विशेष अनुग्रह किया "सूरा -अन नम्ल 27 :15 -16 
मुहम्मद को इन नबियों का इतिहास ज्ञात था .इसलिए उसने मुसलमानों को यह दुआ रटने को कहा था ,इसे दरूदे इब्राहीम कहा जाता है , 
"अल्लाहुम्म बारिक अला मुहम्मदिन व् अला आले मुहम्मदिन ,कमा बारिकता अला इब्राहीम व् अला आले इब्राहिम ,इन्नकअन्तल  हमीदुन मजीद" 
अर्थात अल्लाह तू मुहम्मद और उसकी संतानों पर उसी तरह बरकत कर ,जैसे तुने इब्राहीम और उसकी संतानों पर की थी . 
लेकिन मुहम्मद और उसके साथियों की यह दुआ अल्लाह ने ख़ारिज कर दी .और मुहम्मद के सात बच्चो में से छः मुहम्मद के सामने ही मर गए .
इनमे तीन पुत्र थे ,1 .अल कासिम 2 ताहिर उर्फ़ अब्दुल्लाह 3 .इब्राहीम (यह एक दासी मारिया किब्तिया के पेट से हुआ था ,और बीमार होकर मर गया ) चार पुत्रियों के नाम इस प्रकार है ,1 .जैनब 2 .रुकैय्या 3 .उम्मे कुलसुम 4 फातिमा .इनमे सिर्फ फातिमा ही मुहम्मद की मौत के बाद मरी थी .बाकी को मुहम्मद ने ही दफ़न किया था . अर्थात यहाँ भी अल्लाह ने मुहम्मद के साथ धोखा किया था .
4-मुहम्मद को संजीवनी शक्ति नहीं दी 
ईसा मसीह भी अल्लाह के रसूल थे ,बाइबिल में उनके चमत्कारों की कहानियां भरी पड़ी है ,इसी लिए ईसाई उनको मानते है .कुरान में भी कहा गया है कि अल्लाह ने इसा मसीह को ऐसी शक्ति प्रदान की थी ,कि जिस से ईसा मसीह बीमारों को ठीक कर देते थे .यही नहीं वह मरे हुए आदमी को जिन्दा कर सकते थे .औ मुर्दे उठकर चलने लगते थे .कुरान कहता है , 
"अल्लाह ने ईसा मसीह को मुर्दों को जिन्दा करने की शक्ति प्रदान की थी ,और ईसा मुर्दों को फिरता कर देते थे "सूरा -मायदा 5 :110 
लेकिन जब मुहम्मद का एक साल से कम आयु का बेटा बुखार से जलता रहा ,और मुहम्मद की किसी भी दुआ का अल्लाह पर कोई असर नहीं हुआ .और आखिर में इब्राहीम छटपटाता कर मर गया . दुर्भाग्य से उस दिन सूर्यग्रहण भी था .मुहम्मद को तब भी समझ में नहीं आया कि अल्लाह धोखेबाज है.
 (इब्ने साद जिल्द 1 पेज 131 और 132 )
5-मुहम्मद को लुटेरा बना दिया 
सुलेमान भी अल्लाह का नबी था ,जिसे अल्लाह ने राजा बनाया था .उसके पास धन दौलत की कोई कमी नहीं थी .यही नहीं अल्लाह ने ऐसे जिन्नों और शैतानों को सुलेमान की सेवा में लगा दिया था ,जो समुद्र से मोती निकाल कर सुलेमान को देते थे ,जिस से सुलेमान को धन की कोई कमी नहीं होती थी .और उसका खजाना हमेशा भरा रहता था .इसके बारे में कुरान में इस प्रकार लिखा है ,
"हमने शैतानों को सुलेमान के अधीन बना रखा था .जो समुद्र में डुबकी मार कर मोती और कीमती खजाना निकाल देते थे "
सूरा -अल अम्बिया 21 :82 
लेकिन अल्लाह ने मुहम्मद और उसके परिवार के लोगों का खर्चा चलने के लिए कोई इंतजाम नहीं किया .अनपढ़ तो वह वैसे भी था .इसी लिए मुहम्मद दूसरों की हत्या करके और लूट से अपना परिवार पालने लगा .और लूट को जायज बताने लगा ,लूट के माल को कुरान में गनीमत भी कहा जाता है .इसके बारे में कुरान में लिखा है ,
"लूट के माल को गनीमत का माल समझो " सूरा -अनफाल 8 :5 
"आगे बहुत सी गनीमतें तुम्हारे हाथों में आएँगी ,और अल्लाह तुमसे और भी गनीमतों का वादा करता है ,जो भविष्य में तुम्हारे हाथों में आएँगी "
सूरा -अल फतह 48 :19 और 20 
अल्लाह का इशारा पाते ही मुहम्मद ने सिर्फ चार महीनों में चार बड़ी बड़ी लूट की वारदातें कर डालीं ,जिनमे लोग भी मारे गए थे .देखिये .
1 .जन 623 में नखल के 4 व्यापारियों को लूटा 
2 .17 मार्च 623 को बनू कुरैजा के 70 लोगों की हत्या की ,और उनका माल लूटा .
3 .623 में ही मदीने के अबू आफाक की हत्या करके उसके कबीले का धन लूट लिया .
4 .अप्रेल 623 को ही मदीना के बनू कैनूना के कबीले के 400 लोगों की हत्या करते उनका माल लूट लिया .
( इब्ने इशाक-पेज 465 से 475 )
अगर अल्लाह चाहता तो मुहम्मद के लिए जन्नत से सोने की वर्षा कर देता ,या जमीन से सोने ,हीरों की खदान निकाल देता .ताकि मुहम्मद को इतना पाप नहीं करना पड़ता .लेकिन जब अल्लाह ही हत्या और लूट की शिक्षा देता हो ,तो मुसलमान यह अपराध क्यों नहीं करेंगे .असल में अपराधों की जड़ अल्लाह ही है .और दूसरा नंबर मुहम्मद का है ,जिसका अनुसरण मुसलमान कर रहे हैं .
6-मुहम्मद को जिब्रईल ने भी धोखा दिया 
जिब्रईल एक ऐसा फ़रिश्ता था ,जो अल्लाह और मुहम्मद के बीच में खबरें भेजता रहता था .और कुरान की आयतें लाने के अतिरिक्त मुहम्मद को छोटी छोटी जानकारियाँ भी देता रहता .वह कभी छुप जाता था और कभी मनुष्य का रूप धारण कर लेता था .लेकिन मुहम्मद के साथ या आसपास ही रहता था .जैसा कि इन हदीसों से जाहिर होता है ,
"जिब्रईल मुहम्मद के सामने ही प्रकट होता था "बुखारी -जिल्द 4 किताब 54 हदीस 55 .
"जिब्रईल गुप्त रूप से मुहम्मद के साथ ही रहता था "बुखारी -जिल्द 1 किताब 8 हदीस 345 
जिब्रईल मुहम्मद को ऐसी ऐसी बातें समझता था कि ,जिसे पढ़कर किसी भी बेशर्म को लज्जा आएगी .इसका नमूना देखिये ,
"पेशाब करते समय अपना लिंग हमेशा दायें हाथ में पकडे रहें " बुखारी -जिल्द 1 किताब 4 हदीस 156 
" मलत्याग के बाद अपनी गुदा को पत्थर से असम संख्या ( odd number ) बार घिसें "बुखारी -जिल्द 1 किताब 4 हदीस 163 
आप लोग ही विचार करिए कि जब जिब्रईल मुहम्मद को हगनी मुतनी बातें भी समझाया करता था ,और मुहम्मद के साथ ही डोलता रहता था ,तो जब मुहम्मद को जहर दिया गया था ,तो जिब्रईल कहाँ मर गया था .अल्लाह ने किसी दुसरे फ़रिश्ते के द्वारा मुहम्मद को पहले से सचेत क्यों नहीं किया .अल्लाह ने अपने प्यारे रसूल को क्यों नहीं बचाया .हिन्दुओं के विष्णु तो एक हाथी को बचने के लिए जन्नत से जमीन पर पैदल दौड़कर आये थे .अल्लाह के मुहम्मद को ऐसी कष्टदायी मौत क्यों मरने दिया ,जैसा इन हदीसों में लिखा है .
"एक औरत ने मुहम्मद के खाने में जहर मिला दिया था ,जिसके कारण उनकी तबीयत बिगड़ती चली गयी .और उनको भारी पीड़ा होने लगी थी .जिस से राहत पाने के लिए रसूल अल्लाह से मदद माँगते रहते थे " 
बुखारी -जिल्द 3 किताब 47 हदीस 786 ,और मुस्लिम -किताब 26 हदीस 5430 .
जहर से मुहम्मद को कैसा कष्ट हुआ था ,और वह कैसे मरा था ,यह इस हदीस से पता चलता है , 
"रसूल को दिया गया जहर इतना तेज था कि,उसके असर से रसूल के गले की मुख्य धमनी ( Aorta ) कट गयी थी .जिस से रसूल को सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी ,और वह दर्द से बुरी तरह तड़प रहे थे .और आखिर वह इसी हालत में इस दुनिया से कूच कर गए " 
सुन्नन अबू दाऊद-किताब 39 हदीस 4498 
इस हदीस में गौर करने की बात यह है कि मुहम्मद अपने गले की मुख्य धमनी (Aorta ) कट जाने के कारण दर्द से तड़पते हुए मरा था .और मुसलमान  हलाल करते समय जानवरों के गले की मुख्य धमनी काट देते हैं .जिस से जानवर का खून बहता रहता है ,और वह मुहम्मद की तरह तड़प तड़प कर मर जाता है .
अब अगर कोई जकारिया नायक का समर्थक मुस्लिम ब्लोगर कोई ऐसी हदीस दिखा दे ,जिस से साबित हो सके कि मुहमद के गले की धमनी कट जाने पर उसे कोई कष्ट नहीं हुआ था ,बल्कि मजा आ रहा था .तो हम मान लेंगे कि हलाल करते समय जानवरों को कोई तकलीफ नहीं होती .
मुस्लिम ब्लोगर कितने भी कुतर्क करें ,लेकिन इन प्रमाणों से सिद्ध होता है ,कि अल्लाह और जिब्रईल ने मुहम्मद के साथ हर विषय में धोखा किया था .और अल्लाह अपने वादे से मुकर गया था .जो अल्लाह अपने ही बनाये हुए रसूल मुहम्मद के साथ विश्वासघात कर सकता है ,वह मुसलमानों के साथ क्या व्यवहार करेगा ? फिर ऐसे अल्लाह और उसके फ़रिश्ते पर ईमान रखने की क्या जरुरत है ?सेकुलर लोगों को गंभीरता से सोचना चाहिए कि जब मुसलमानों का अल्लाह और जिब्रईल ऐसे दगाबाज हैं ,तो मुसलमान कैसे होंगे ,हम इन मुसलमानों पर भरोसा कैसे कर सकते हैं ?हमारे सामने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई का ताजा उदहारण मौजूद है .जिसने भारत के उपकारों को भूलकर भारत से दगा किया और पाकिस्तान से मित्रता का हाथ बढ़ा लिया .अंत में हमें एक दिन इस बात को स्वीकार करना ही पड़ेगा कि, 
अल्लाह पर विश्वास ,और मुसलमानों पर भरोसा करने वाले हमेशा धोखा खायेंगे !


http://www.faithfreedom.org/Articles/AyeshaAhmed40115.htm
 

अल्लाह के नाम शिकायती ईमेल !

बी0एन0 शर्मा

प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय

अल्लाह मियाँ अस्सलामु अलैक , 


सबसे पहले तो हम आपसे इस बेअदबी के लिए माफ़ी मंगाते हैं ,कि हमने रिवाज के खिलाफ आपको "अस्सलामु अलैकुमالسلام عليكم " कि जगह "अस्सलामु अलैकالسلام عليك" कहा है .क्योंकि हमें आपके रसूल ने ही कहा था कि अल्लाह एक है .और अगर हम "अलैकुम عليكم" लफ्ज का इस्तेमाल करते तो आप एक कि जगह पूरी टीम माने जाते .आप तो अरबी की व्याकरण जानते ही होंगे .आपको पता ही होगा कि मुहम्मद इकबाल नामके एक आदमी ने भी आपसे इसी तरह शिकवा किया था .और उसी इकबाल ने पाकिस्तान की बुनियाद रखी थी .लेकिन आज मजबूर होकर एक काफ़िर मुल्क में रह रहे हैं .और इकबाल की तरह हम भी आपके दरबार में अपनी शिकायत पेश कर रहे है .और ईमेल कर रहे हैं .आप तो जानते हैं कि इकबाल के ज़माने में कंप्यूटर वगैरह नहीं थे .मुझे पूरा यकीन कि आपकी जन्नत में नेट का कनेक्शन जरुर लग गया होगा .
हमें इसलए फ़िक्र हो रही है कि इन काफिरों ने साइंस में इतनी तरक्की कर ली है कि कहीं यह लोग आपकी जन्नत पर कब्ज़ा न कर लें .वैसे इन काफिरों का यह भी कहना है कि उन्होंने सारे ब्रह्माण्ड में खोज की है लेकिन आपका ,आपके फरिश्तों ,और आपकी जन्नत का कोई साबुत नहीं मिला है .आप जल्दी से किसी फ़रिश्ते को भेजिए ताकि इन काफिरों का मुंह बंद हो जाये .हम आपसे वादा करते हैं कि हम हरेक दस कदम पर मस्जिदें बनवा देगे ,जिस से हमारा मुस्तकबिल महफूज रहे .और इस मुल्क के काफ़िर और मुशरिक हमेशा हमसे डरते रहें ,क्योंकि हम इन्ही मस्जिदों में हथियार छुपाते है .
लेकिन हमारी कुछ समस्याएं है जो हमारी जिंदगी से जुडी हुई है .आप इसे हमारी शिकायत भी समझ सकते है .आपने कुरान में कहा है ,
"सभी मुशरिक नापाक हैं "सूरा -तौबा 9 :28 
इसलिए हम इन मुशरिकों के स्कूलों में न तो अपने बच्चों को पढ़ाते और न उनके यहाँ काम करते हैं .हम अपना निजी धंदा करने पर मजबूर हैं ,जैसे नकली नोट छापना ,स्मगलिंग ,और नशे का व्यापर वगैरह ,हमारे बड़े बच्चे भी इधर उधर लूट ,और गाड़ियों की चोरी करके घर का पेट भर रहे है .इतना होने पर भी हमारा और हमारे दस बच्चों को खाना मुश्किल से मिलता है . आपने अपनी किताब कुरान में लिख दिया है ,
"जिस पर अल्लाह के आलावा किसी और का नाम लिया गया हो वह हराम है "सूरा -बकरा 2 :173 
इसलिए हम इन काफिरों और मुशरिकों द्वारा बनाई गयी किसी चीज को नहीं खाते है ,कि पता नहीं उस पर किस का नाम लिया हो .हम तो बस सिर्फ हलाल गोश्त ही खाते है .अबतक हमने 7 ऊंट ,32 गाय बैल .244 बकरे और हजारों मुर्गे मुर्गियां हजम कर ली हैं .इस से हमारे पूरे बदन से जानवरों की बदबू निकलती रहती है .और हमें इत्र लगाना पड़ता है .हमारी इन्हीं गन्दी आदतों और अपराधी चरित्र के कारण लोग हमसे नफ़रत करते हैं .
इसके बावजूद हम अपने आसपास के लोगों को गुमराह करने के लिए आपकी कुरान की यह आयत सुना देते हैं . 
"जो इस्लाम के अलावा कोई दूसरा धर्म पसंद करेगा ,तो उसे कबूल नहीं किया जायेगा ,और ऐसा व्यक्ति आखिरत में घाटा उठाने वाला होगा " 
सूरा -आले इमरान 3 :85 
कभी हमारी यह चाल सफल हो जाती है ,और कुछ अकल के अंधे इस आयत की बात को सच समझ बैठते हैं ,और हमारे जाल में फंस जाते हैं .फिर हम ऐसे लोगों को जिहाद के काम में लगा देते है अपना धर्म छोड़कर मुसलमान बनाने वाले लोग हमारे किये काफी उपयोगी होते हैं ,क्योंकि जब भी हम ऐसे लोगों से कहीं विस्फोट करवाते हैं ,तो यही लोग फंस जाते हैं .और हम साफ़ बच जाते है .
अल्लाह आप तो जानते हैं कि इन काफिरों के पास धन कि कोई कमी नहीं है ,और हमारे मुल्क में इन्ही काफिरों की सरकार है .जो हमारे वोटों की खातिर कुछ भी कर सकती है .लेकिन बिना दवाब के यह काफ़िर सरकार आसानी से कुछ नहीं देती .इसलिए हम कुरान की इस आयत का पालन करते हैं ,
"और कुछ ऐसे भी लोग हैं ,जिनके पास धन दौलत का ढेर है ,और अगर तुम उनसे मांग करोगे तो वह दे देंगे ,लेकिन जब तक तुम उनके सरों पर सवार नहीं हो जाओ "सूरा -आले इमरान 3 :75 
अल्लाह हम आपके इसी हुक्म का पालन करते हुए इस काफी सरकार से रोज कोई न कोई मांग करते रहते हैं .और सरकार को कंगाल करने में लगे रहते हैं .आपको यह जानकर ख़ुशी होगी कि सेकुलर नामके कुछ मुशरिक हमारा पूरा समर्थन करते हैं ,और हमारी हरेक नाजायज मांग को भी जायज साबित कर देते है ,यही नहीं जब भी हम कोई भी अपराध या बम विस्फोट कर देते हैं यह सेकुलर लोग दूसरे लोगों पर आरोप लगा देते है ,
हम तो इस मुल्क से सभी गैर मुस्लिमों का सफाया करना चाहते है .चाहे इसके लिए कितने भी गैर मुस्लिमों की क़ुरबानी क्यों न देना पड़े .हम इस्लाम के लिए कुछ भी कर सकते है ,अगर मौका मिलेगा तो इन सेकुलर लोगों को भी ठिकाने लगा देंगे ,यह कौन से हमारे वफादार हैं .यह भी सिर्फ सत्ता के लालची हैं .लेकिन आपने एक आयत ऐसी भेज दी है जो हमें समाझ में नहीं आ रही है ,कि हम क्या करें ,आपने कुरान में यह क्यों लिख दिया ,
"कोई जीव बिना अल्लाह की मर्जी के ईमान नहीं ला सकता ,और अल्लाह ही है जो लोगों पर कुफ्र और शिर्क की गन्दगी डाल देता है "
सूरा -यूनुस 10 :100 
इस आयत ने हमारे इरादों पर रोक लगा दी है .अब लोग आपकी कुरान पर भी शक करने लगे हैं .कुछ लोग तो यह भी कहते है कि,लोगों को आप ही काफिर और मुशरिक बनाते रहते हो .और जब हम लोगों को मुसलमान बनने को कहते हैं ,तो वह लोग कहते हैं ,
"हम तब तक कभी ईमान नहीं लायेंगे ,जब तक कि वैसी ही किताब हमें नहीं दी जाये ,जैसी अल्लाह ने दूसरों के रसूलों को दी थी "
सूरा -अल अनआम 6 :125 
अल्लाह ,अपने तो किताबोंका  प्रेस ही बंद कर दिया ,और न ही आपका कोई फ़रिश्ता ही नजर में आया ,हम लोगों को कैसे समझाएं . और अगर हम लोगों के सवालों का सही जवाब देते हैं तो हमें आपके इस्लाम की पोल खुलने का डर लगता है आजकल साइंस का जमाना है ,बच्चा बच्चा होशियार हो गया है जब कोई तर्कपूर्ण सवाल करता है ,तो हमारी हालत ऐसी हो जाती है ,
 ."तुम ऐसी बातें न पूछो जो यदि खोल दी जाएँ तो खुद तुम्हे ही बुरा लगेगा .इसलिए तुम्हें सावधान रहना होगा "सूरा -मायदा 5 :101 
इसीलिए जब भी कोई हम से इस्लाम के बारे में कोई सवाल करता है ,तो हम निरुतर हो जाते हैं ,और दूसरे मजहब की बुराइयाँ निकालने लगते है ,फिर जब इस से भी काम नहीं चलता तो हम गालियों पर उतर जाते है .क्योंकि हम अच्छी तरह से जानते हैं की अगर हम लोगों के सवालों का सही जवाब दे देंगे तो उसका उल्टा ही नतीजा होगा .आप चाहें तो अपने रसूल से पूछ कीजिये ,उन्हीं ने कहा है ,
"तुम से पहले भी एक गिरोह ने ऐसे ही सवाल किये थे ,और जब तुम उनके सवालों का जवाब न दे पाए ,तो वह इस्लाम से इंकार वाले हो गए "
सूरा -मायदा 5 :102 
इसीलिए हम इस्लाम के बारे में किसी प्रकार के सवाल जवाब से बचते हैं .इस से वक्त की बर्बादी है .वैसे भी हम अपनी कमजोर अकल पर जोर नहीं डालना चाहते .वाद विवाद और शाश्त्रार्थ तो यह काफ़िर हिन्दू किया करते हैं ,हमें तो अपने रसूल की यही नीति पसंद है ,जो कुरान में है ,
"और जब भी तुम्हारा कुफ्र वालों से किसी तरह का सामना हो जाये ,तो तुम उनकी गर्दनें मारना शुरू कर देना ,और इस तरह उनको कुचल देना "
सूरा -मुहम्मद 47 :4 
अल्लाह मियां हम आपको भरोसा दिलाते है ,और कसम खाते हैं कि इस दुनिया को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे ,आपको फरिश्तों ने खबर भेज दी होगी कि .पूरा अरब बर्बाद होने जा रहा है .मुसलमान आपस में ही लड़ रहे हैं .मुझे डर है कि यह झगडा आपकी जानत तक न पहुँच जाये .क्योंकि मुसलमान जहाँ भी हों लड़ाई जरुर करते हैं आपनी हूरों को छुपा दीजिये ,गदाफी आने वाला है और उसे जन्नत में महिला बोडी गार्ड की जरुरत पड़ेगी .
लिखना तो बहुत कुछ है लेकिन यहाँ समय की कीमत होती है ,
हमारा मेल मिलते ही जवाब जरुर भेजिए ताकि हम जिहाद की नयी जोजनाएं बना सकें . 
आपके खिदमतगार . 
( नोट - कुछ समय पहले यह मेल एक मुस्लिम ने अंगरेजी में अल्लाह को भेजा था .उस से प्रभावित होकर यह मेल हिंदी में अल्लाह को भेजा गया है .और स्थान ,परिस्थिति और समय को ध्यान में रखते हुए अंगरेजी मेल में कुछ परिवर्तन किया गया है ..ताकि भाषा का प्रवाह बना रहे .मूल मेल की लिंक नीचे दी गयी है )

http://www.faithfreedom.org/Articles/abulkazem/email_to_allah.htm
 

मुसलमानों की दूधमाता पत्नियां !

बी0एन0 शर्मा

प्रस्‍तुति-डॉ0 संतोष राय

माता हरेक रूप में पूज्यनीय होती है .चाहे वह जन्म देने वाली माता हो ,या बालक को अपना दूध पिलाकर उसका पालन पोषण करने वाली माता हो.भगवान कृष्ण को माता यशोदा ने अपना दूध पिलाकर बाधा किया था .इसलिए लोग माता देवकी से माता यशोदा अधिक जानते हैं .क्योंकि यशोदा ने अपना दूध पिलाकर कृष्ण को महापुरुष बना दिया .यही कारण की लोग माँ के दूध शपथ लेते हैं . 
इसी तरह मुहम्मद की माता "आमिना آمنه" ने मुहम्मद को एक बद्दू महिला दायी ( wet nurse ) हलीमा बिन्त जुयेब حليمه بنت ضُعيب"के पास दूध पिलाने के लिए दे दिया था .और हलीमा ने अपना दूध पिलाकर मुहम्मद को बड़ा किया था .मुहम्मद हलीमा को माँ के सामान आदर देता था .और जब हलीमा गुजर गयी तो उसे अपने खानदानी कब्रिस्तान "जन्नतुल बाकि جنت البقي" में आदर से दफना दिया था.इसका विवरण इन हदीसों में है -
सही बुखारी -जिल्द 2 किताब 13 हदीस 22 ,और सही मुस्लिम -किताब 1 हदीस 311 
1 -दूध के रिश्ते का महत्त्व 
इसलाम में दूध का रिश्ता ( milk kinship ) पवित्र मन जाता है .शरियत में इसे "रिजा رضاء" या " रिजायह رضاعه" कहा जाता . और दूध पीने वालों को "महरम محرم" कहा जाता है .और महरम के साथ शादी अथवा शारीरिक सम्बन्ध बनाना हराम और अपराध माना जाता है .कुरान में ऐसी स्त्री से सहवास करना मना किया  है ,जिसका दूध पिया हो .कुरान में लिखा है -


"حُرِّمَتْ عَلَيْكُمْ أُمَّهَاتُكُمْ -الرَّضَاعَةِ وَأُمَّهَاتُ نِسَائِكُمْ " 4:23
"तुम पर हराम की गयी हैं ,वह स्त्रियाँ जिन्होंने तुम्हें दूध पिलाया हो ,और सभी दूध शरीक बहिने " सूरा -निसा 4 :23 
इसके अलावा हदीसों में भी दूध के रिश्ते की मर्यादा रखने की हिदायत दी गयी है .उसके उदहारण दिए जा रहे हैं -
2-हदीसों में दूध के रिश्ते का लिहाज 
"आयशा ने कहा कि,जब अफालाह ने मुझ से मिलाने की इजाजत मांगी तो मैंने मना कर दिया ,तब अफलाह ने कहा क्या तुम अपने चाचा से भी परदा करोगी .मैंने पूछा तो उसने बताया कि तुमने मेरे भाई के साथ एकही स्त्री का दूध पिया है .जब मैंने रसूल से पूछा तो वह बोले अफलः ठीक कह रहा है .उसे बात करने दो "
Narrated Aisha: 
Aflah asked the permission to visit me but I did not allow him. He said, "Do you veil yourself before me although I am your uncle?" `Aisha said, "How is that?" Aflah replied, "You were suckled by my brother's wife with my brother's milk." I asked Allah's Apostle about it, and he said, "Aflah is right, so permit him to visit you." 
(Sahih-ul-Bukhari, Volume 3, Book 48, Number 812) 
"इब्ने अब्बास ने कहा कि रसूल ने हमजा कि बेटी के बारे में कहा कि मैं शरियत के मुताबिक उस से शादी नहीं कर सकता ,क्योंकि दूध का रिश्ता शादी के मामले में खून के रिश्ते के बराबर होता है .और वह लड़की मेरे दूध भाई की लड़की है "
Narrated Ibn `Abbas: 
The Prophet said about Hamza's daughter, "I am not legally permitted to marry her, as foster relations are treated like blood relations (in marital affairs). She is the daughter of my foster brother." 
(Sahih-ul-Bukhari, Volume 3, Book 48, Number 813)
यह तो कुरान और हदीस की सिर्फ लिखी हुई बातें हैं ,लेकिन जब मुसलमान वासना में अंधे हो जाते हैं ,तो कुरान और हदीस को एक तरफ पटक देते है .और केवल अपनी अय्याशी को ही कुरान हदीस मानते है . वैसे तो ऐसे कई उदहारण हैं ,लेकिन लेख को छोटा रखने के लिए मुख्य अंश दिए जा रहे है .सभी प्रमाणिक हदीसों ले लिए गए हैं -
3-अपनी पत्नी का दूध पीना जायज है 
"याह्या से मलिक ने कहा की एक आदमी अबू मूसा अल अशरी के पास गया ,और बोला मैंने अपनी पत्नी के स्तन से दूध पिया है जो मेरे पेट में चला गया ..अबुमुसा ने कहा मेरे विचार से यह हराम है .लेकिन अब्दुलाह बिन मसूद ने कहा ऐसा दूध का रिश्ता केवल पहले दो सालों के लिए जायज है .इस पर अबू मूसा ने कहा जब तुम खुद जानते हो तो मुझ से क्यों पूछते हो "
Yahya related to me from Malik from Yahya ibn Said that a man said to Abu Musa al-Ashari, "I drank some milk from my wife's breasts and it went into my stomach." Abu Musa said, "I can only but think that she is haram for you." Abdullah ibn Masud said, "Look at what opinion you are giving the man." Abu Musa said, "Then what do you say?" Abdullah ibn Masud said, "There is only kinship by suckling in the first two years." 
Abu Musa said, "Do not ask me about anything while this learned man is among you." 
   Imam Malik’s MuwattaBook   Book 30, Number 30.2.14: ,
4-मुसलमान औरतों का दूध पीते थे 
"यहया ने मलिक से रिवायत की है ,नफी ने कहा ,उम्मुल मोमिनीन हफ्शा ने अबुलाह बिन साद नामके किशोर को अपनी बहिन फातिमा बिन्त उमर बिन खत्ताब के पास भेजा ,और उसे दस बार अपना स्तनपान करने को कहा .ताकि वह बिना रोक के घर आ सके .बाद में फातिमा ने यही किया .और लड़का घर आने लगा "
Yahya related to me from Malik from Nafi that Safiyya bint Abi Ubayd told him that Hafsa, umm al-muminin, sent Asim ibn Abdullah ibn Sad to her sister Fatima bint Umar ibn al-Khattab for her to suckle him ten times so that he could come in to see her. She did it, so he used to come in to see her.
Imam Malik’s MuwattaBook 30, Number 30
5-युवकों को स्तनपान कराओ 
"आयशा ने कहा कि अबू हुजैफा ने एक गुलाम सलीम को आजाद किया था जो ,उसके घर के पास रहता था और अक्सर सुहैल कि लड़की के पास जाता रहता था .यह देख कर रसूल बोले सलीम अब जवान हो रहा ,और दूसरों कि तरह सब समझता है .इसलिए तुम अपनी लड़की को उसका दूध पिलाने को कहो .ताकि उसके दिल से खोट निकल जाये ,जब लड़की यही किया और कहा कि जैसे ही मैंने उस लडके को अपना दूध पिलाया उसके दिल से सभी खोट निकल गई ."
'A'isha ,reported that Salim, the freed slave of Abu Hadhaifa, lived with him and his family in their house. She (i. e. the daughter of Suhail came to Allah's Apostle (m and said: Salim has attained (puberty) as men attain, and he understands what they understand, and he enters our house freely, I, however, perceive that something (rankles) in the heart of Abu Hudhaifa, whereupon Allah's Apostle ,said to her: Suckle him and you would become unlawful for him, and (the rankling) which Abu Hudhaifa feels in his heart will disappear. She returned and said: So I suckled him, and what (was there) in the heart of Abu Hudhaifa disappeared.
Sahih Muslim-Book 008, Number 3425:
6-आयशा युवकों को स्तनपान कराती थी 
"उम्मे सलमा ने आयशा से कहा कि तुम्हारे पास एक किशोर आता है ,जो जवान हो रहा है ,क्या तुम नहीं चाहती कि वह मेरे पास भी आया करे .आयशा ने रसूल के आदर्श का उदहारण दिया ,जब अबू हुजैफा की पत्नी ने रसूल से कहा कि मेरे घर में सलीम नामक लड़का आता है ,जो जवान हो रहा है ,लगता है उसके दिल में खोट है .रसूल ने कहा तुम उस लडके को अपना स्तनपान कराओ .उसके दिल का खोट निकल जायेगा ."इसलिए तुम भी यही करो 
Umm Salama said to 'A'isha : A young boy who is at the threshold of puberty comes to you. I, however, do not like that he should come to me, whereupon 'A'isha said: Don't you see in Allah's Messenger .a model for you? She also said: The wife of Abu Hudhaifa said: Messenger of Allah, Salim comes to me and now he is a (grown-up) person, and there is something that (rankles) in the mind of Abu Hudhaifa about him, whereupon Allah's Messenger .said: Suckle him (so that he may become your foster-child), and thus he may be able to come to you (freely).
Sahih Muslim-Book 008, Number 3427:
7-दासी को दूध पिलाने की सजा 
"याहया ने मलिक से रिवायत की .,कि एक व्यक्ति अब्दुलाह इब्न दीनार उमर बिन खत्ताब की अदालत में गया ,और वयस्क व्यक्ति द्वारा स्त्री के स्तनपान के बारे में सवाल किया .उसने उमर को बताया कि मैं अपनी दासी के साथ सम्भोग करता हूँ .एक बार मेरी पत्नी ने देख लिया ,और उस लड़की को अपना दूध पिला दिया .इस बात पर उमर ने अब्दुल्लाह को अपनी पत्नी को पीटने का आदेश दिया .और वापिस उसी गुलाम लड़की के पास(सम्भोग के लिए ) भेज दिया "
Yahya related to me from Malik that Abdullah ibn Dinar said, "A man came to Abdullah ibn Umar when I was with him at the place where judgments were given and asked him about the suckling of an older person. Abdullah ibn Umar replied, ‘A man came to Umar ibn al-Khattab and said, 'I have a slave-girl and I used to have intercourse with her. My wife went to her and suckled her. When I went to the girl, my wife told me to watch out, because she had suckled her!' Umar told him TO BEAT HIS WIFE and to go to his slave-girl ."
    Imam Malik’s Muwatta-Book 30, Number 30.2.13:
8-औरतें मर्दों को स्तनपान कराएं 
सऊदी अरब में कुछ ऐसे विभाग हैं ,जिनमे औरतें भी काम करती है .जिसके लिए उन्हें मर्दों के संपर्क में आना पड़ता है .और इस्लाम में औरतों को अपने निकट सम्बन्धियों के अलावा किसी से भी मेलजोल रखने की पाबन्दी है .इसलिए वहां की सरकार के कानून मंत्री "अबी इशाकअल हुवैती "ने मुल्लों की सलाह से एक फतवा जारी कर दिया .जो गल्फ न्यूज और टी वी में 7 जून 2011 में प्रकाशित हुआ .इसमे कहा गया है कि औरतें अपने सहकर्मियों को सीधे अपने स्तन से नियमित रूप से अपना दूध पिलाया करें .ताकि उनके बीच में दूध का रिश्ता माना जाये ."अर्थात औरते और मर्द इस दूध के रिश्ते की आड़ में अय्याशी कर सकते है .( पूरी लिंक देखिये )
http://boingboing.net/2010/06/07/fatwa-encouraging-ad.html
मेरा उन मुस्लिम ब्लोगरों से सवाल है ,जो निरुत्तर होकर बौखला जाते हैं ,और कमेन्ट में माँ बहिन की गालियाँ देते हैं ,वह बताएं कि कुरान के अनुसार जब किसी स्त्री का दूध पीने से वह माँ बन जाती है .तो ऐसी दूध के रिश्ते की माँ के साथ सम्भोग करने वालों को क्या कहा जा सकता है ?हम गाली देने में नहीं ,बल्कि गाली को सिद्ध करने में विश्वास रखते हैं .और माँ की गाली देना महापाप समझते हैं .अब पाठक बताएं .
मुसलमानों को क्या कहना चाहिए ?
http://answering-islam.org/Shamoun/nursing_of_adults.htm
 
Source:www.bhandafodu.blogspot.com

Wednesday, October 19, 2011

जनसांख्यिकी युद्ध का दबाव

  शंकर शरण
प्रस्‍तुति- डॉ0 संतोष राय

केरल का कैथोलिक चर्च आगामी चौदह नवंबर ऐसे 5,000 दंपतियों को सम्मानित करेगा, जिनके 5 से अधिक बच्चे हैं। परिवार बढ़ाओके नारे के साथ यह अभियान आगे और तेज किया जाएगा। वहाँ कैथोलिक नेता ईसाइयों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए विविध प्रोत्साहन और पुरस्कार दे रहे हैं। वायनाड जिले का सेंट विन्सेन्ट चर्च अपने क्षेत्र के हर कैथोलिक परिवार को पाँचवें बच्चे के जन्म पर 10 हजार रूपए नकद दे रहा है। इदुक्की डायोसीज ने दो से अधिक हर बच्चे पर अधिकाधिक पुरस्कार और सहायता देने की विस्तृत योजना घोषणा की है। जैसे किसी परिवार में चौथे बच्चे के जन्म पर उसके जन्म संबंधी अस्पताल का पूरा खर्च डायोसीज उठायगा। पाँचवें बच्चे के जन्म पर बच्चे के जीवन भर का खर्च उठायगा। ऑल इंडिया क्रिश्चियन काऊंसिल के नेता जॉन दयाल के अनुसार हर ईसाई परिवार में चौथा बच्चा होने पर उसकी शिक्षा के लिए विशेष व्यवस्था की जाएगी। ईसाई संगठनों के अस्पतालों में बड़े परिवार वाले ईसाइयों के लिए आकर्षक चिकित्सा पैकेज दिए जाएंगे, आदि। अधिकाधिक बच्चे पैदा करने का यह ईसाई अभियान वर्ष 2008 से ही चल रहा है।

यह सब इसलिए, क्योंकि केरल में ईसाई संख्या पिछले एक दशक में ¼ प्रतिशत घटी है, जबकि मुस्लिम जनसंख्या दो प्रतिशत बढ़ गई। इस से केरल के कैथोलिक नेता इतने चिंतित हैं कि उन्होंने हिन्दुओं को भी मामले को गंभीरता से लेने के लिए कहा। क्योंकि वहाँ हिन्दू संख्या डेढ़ प्रतिशत प्रति दशक के हिसाब से गिर रही है। जबकि मुस्लिम जनसंख्या पौने दो प्रतिशत के हिसाब से बढ़ रही है। केरल सबसे बड़ी ईसाई आबादी वाले राज्यों में एक है। वहाँ लगभग 20 % ईसाई हैं। वे सुशिक्षित भी हैं। इसलिए उन की चिंता और चेतावनी को गंभीरता से लेना चाहिए। आज के विश्व में जनसांख्यिकी भी एक युद्ध है, जिसकी उपेक्षा करना आत्मघाती होगा। विशेषकर हिन्दुओं के लिए, जिनका दुनिया में मुख्यतः एक ही देश है।

किन्तु दुःख की बात है कि जब इस पर कोई हिंदू चिंता दिखाता है तो उसे पिछड़ा’, ‘दकियानूसी’, ‘जनसंख्या विस्फोट से नासमझया घृणा का प्रचारकआदि बताकर हँसी उड़ाई जाती है। भारतीय जनसांख्यिकी की स्थिति पर ए.पी. जोशी, एम.डी. श्रीनिवास तथा जे. के. बजाज ने अपने विस्तृत अध्ययन रिलीजियस डेमोग्राफी ऑफ इंडिया’ (2003) से पाया है कि भारत के हर प्रदेश में मुस्लिम जनसंख्या दूसरे किसी भी समुदाय की तुलना में अधिक गति से बढ़ी है। सन् 1993 में भारत में मुस्लिम जनसंख्या 11 प्रतिशत थी, जो केवल पंद्रह वर्षों में बढ़कर 14 प्रतिशत हो गई। पड़ोसी पाकिस्तान और बंगलादेश में जन्म-दर और भी तीव्र है, जिससे भारतवर्ष के संपूर्ण भूखंड में अनुमान से भी कम समय में मुस्लिम जनसंख्या हिन्दुओं के बराबर हो जाएगी। दो फ्रांसीसी विद्वानों यूसुफ कोरबेज तथा इमानुएल टॉड ने अपनी पुस्तक ल रौंदेवू दे सिविलेजेशों’ (सभ्यताओं का मिलन) (2007) में भी ऐसा ही हिसाब दिया है। इस पर चिंता करने के बजाए हिंदू परिवारों में जन्मे सेक्यूलर-वामपंथी-उदारवादी पूरी बात को हँसी में उड़ाने की कोशिश करते हैं। क्या सुशिक्षित हिंदुओं में अपने समुदाय की सामूहिक आत्महत्या भावना का मनोरोग डेथ-विश फैल गया है? नहीं तो केरल के सुशिक्षित ईसाई समुदाय की चेतावनी पर वह ध्यान क्यों नहीं दे रहे?

जिस जनसांख्यिकी विंदु पर दुनिया का सबसे बड़ा आबादी समुदाय ईसाई इतना चिंतित है, ठीक उसी विषय पर उस से अधिक संकट झेलने वाले हिंदू समुदाय के बौद्धिक उलटा प्रयास कर रहे हैं! कृपया स्वयं जाँच करें। हमारे जो बौद्धिक और नेता दिन-रात परिवार-नियोजन और आबादी वृद्धि की चिंता करते रहते हैं क्या उन्होंने ईसाई नेताओं को फटकारा कि वे आबादी वृद्धि को प्रोत्साहन देकर समस्या बढ़ा रहे हैं? क्या उन्होंने कभी मुस्लिमों को जनसंख्या नियंत्रण करने को कहा ? मुस्लिमों में तेज जनसंख्या वृद्धि के लिए कभी उन की आलोचना करना तो दूर रहा!

कोई यह भ्रम न पालें कि भारत में ईसाई और मुस्लिम संख्या में हिंदुओं से कम हैं, इसलिए उन पर जनसंख्या नियंत्रण की बातें लागू नहीं की जातीं। जहाँ ईसाई और मुस्लिम बहुसंख्या या एकछत्र संख्या में हैं, वहाँ भी उन्हें परिवार नियोजन का उपदेश कोई नहीं देता। न भारत के कश्मीर, केरल या नागालैंड में, न यूरोप या अरब में। बस पूरी दुनिया में एक मात्र हिंदू देश भारत के हिंदुओं को दिन-रात पढ़ाया जा रहा है कि आबादी कम करो। जबकि इसी देश में मुस्लिम और ईसाई आबादी का प्रतिशत निरंतर बढ़ रहा है। यह शिक्षित हिंदुओं की मूर्खता या डेथ-विश नहीं तो और क्या है?

मामला मात्र केरलीय ईसाइयों का नहीं। वेटिकन में बैठे पोप और उन के प्रवक्ता भी ईसाई आबादी बढ़ाने के खुले आवाहन कर रहे हैं। जबकि यूरोप में ईसाई वर्चस्व ही है। यही भावना यूरोपीय सरकारों में भी है। क्योंकि मामला वस्तुतः बहुत गंभीर है। दुनिया में अतिआबादी से अधिक बड़ी समस्या जनसांख्यिकी युद्ध है। कई मुस्लिम नीतिकार ईसाई आबादी को पीछे छोड़ने की सचेत रणनीति पर चल रहे हैं। कैथोलिक इसे अच्छी तरह समझते हुए अपनी विश्व रणनीति बना रहे हैं। इस बीच मूढ़ हिंदू क्या कर रहे हैं?

आज संपूर्ण ईसाई यूरोप अपने यहाँ इस्लामी देशों से बढ़ते आव्रजन और उस से संबंधित खतरों से मुकाबला करने की चुनौती झेल रहा है। यूरोपीय देशों में जन्म-दर प्रति दंपति 1.1 से 1.7 % के बीच रह गई है। जब कि जनसंख्या यथावत रहने के लिए भी जन्म-दर 2.2 % होना चाहिए। इस बीच अरब और उत्तरी अफ्रीकी देशों से हर वर्ष लाखों मुसलमान यूरोपीय समुद्र तटों पर अवैध रूप से घुसने की कोशिश करते हैं। एक बार सफल हो जाने पर स्थानीय लोकतांत्रिक कानून, मानवाधिकारवादी और इस्लामी कूटनीति के दबाव के सहारे उन्हें किसी न किसी तरह ठौर हो जाता है। यदि यही स्थिति रही तो अगले चालीस-पैंतालीस वर्ष में यूरोप इस्लामी महादेश हो जाएगा। इस खतरे को देख आज ब्रिटेन, जर्मनी, इटली में सरकारें लोगों को अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने की खुशामद कर रही है। जब कि आम यूरोपीय इस्लामी आव्रजन को हर कीमत पर रोकने की माँग कर रहे हैं।

यूरोप के मुस्लिमों में प्रजनन दर औसत 3.8 प्रति परिवार है, जबकि सामान्य यूरोपियनों में यह औसत 2.1 प्रति परिवार है। कई अवलोकनकर्ता यूरोप के लिए जिहादी आतंकवादी हमलों से अधिक भयावह इस जनसांख्यिकी टाइम बमको मान रहे हैं। इस के द्वारा इस्लामी शक्तियाँ कुछ दशकों में बिना किसी लड़ाई के यूरोप पर कब्जा कर सकती है। यह अनायास नहीं होने वाला। कई इस्लामी प्रतिनिधि सचेत रूप से इस रणनीति का उपयोग कर रहे हैं। वे यह कहने में भी नहीं हिचकिचाते (हमारी औरतों के गर्भ हमें जीत दिलाएंगे!” – संयुक्त राष्ट्र में अल्जीरिया के राष्ट्रपति हुआरी बोमेदियान)। लीबिया के गद्दाफी ने भी इस रणनीति से यूरोप पर कब्जे की बात की थी। सन् 1975 में लाहौर में इस्लामी देशों की एक बैठक में भी यूरोप में मुस्लिम आव्रजन बढ़ाकर जनसांख्यिकी प्रभुत्वबढ़ाने की योजना घोषित की गई थी।

यह सब कोई छिपी योजनाएं नहीं। न भारत इस रणनीति से बाहर है। वास्तव में, भारत तो ईसाई और मुस्लिम दोनों विश्व-समुदायों के रणनीतिकारों की जनसांख्यिकी नीति का एक महत्वपूर्ण निशाना है। हाल में एक भारतीय मुस्लिम नेता ने कहा कि 2020 ई. तक हम यहाँ हिंदुओं के बराबर हो जाएंगे। मुहम्मद समीउल्लाह की मुस्लिम्स इन एलियेन सोसाइटी’ (दिल्ली, 1992) तथा मुह्म्मद इमरान की आइडियल वीमेन इन इस्लाम’ (दिल्ली, 1994) जैसी पुस्तकों से भारत में इस्लाम वर्चस्व की जनसांख्यिकी योजनाओं की झलक पाई जा सकती है। उलेमा परिवार नियोजन के विरुद्ध फतवे देते हैं। यह सुचिंतित रणनीति है। संयोग नहीं कि हमारे मुस्लिम नेता बोस्निया, अफगानिस्तान, ईराक जैसे देशों के लिए बयान जारी करते हैं, जब कि कश्मीर पर मौन रहते हैं। क्योंकि उनके लिए केवल इस्लाम-राष्ट्र का सिद्धांत है, भारत-राष्ट्र का नहीं। अतः कहीं भी इस्लामी आबादी का एक सीमा पार करना हमारे लिए दूसरी, तीसरी कश्मीर समस्या खड़े होने का कारण बनेगा।

इस खतरे के प्रति भारत के उच्च, मध्यवर्गीय हिंदू गाफिल हैं। वे हमारे कर्णधारों की मुस्लिम फर्स्टनीति के उत्स के कारण नहीं समझ रहे। इसके पीछे यहाँ हिंदुओं के घटते और मुसलमानों के बढ़ते प्रतिशत का दबदबा है। पर इन बातों पर शिक्षित, संपन्न, पर धर्म-चेतना से रिक्त हो चुके हिन्दू उच्च-वर्ग की उदासीनता सनक की हद तक है। यह विश्व के जनसांख्यिकी घटनाक्रम और इस्लामी मानसिकता से निरे अनजान हैं। विश्व में हर जगह मुस्लिम दूसरों की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ रहे हैं। इस में मुस्लिमों के शिक्षित-अशिक्षित या धनी-गरीब होने से कोई अंतर नहीं देखा गया है। साथ ही, हाल का इतिहास साफ दिखाता है कि किसी देश या क्षेत्र में मुस्लिम जनसंख्या का एक सीमा पार करना और सामाजिक अशांति पैदा होने में सीधा संबंध है। लेबनान, बोस्निया, कोसोवो इस के ज्वलंत उदाहरण हैं। अब चीन के सिक्यांग से भी कई बार वही समाचार आ चुका है।

पर भारत के सेक्यूलरवादी हिंदू शासक और बुद्धिजीवी मानो राष्ट्रीय आत्महत्या पर उतारू हैं। एक बार विभाजन, और जिहादी संहार की विभीषिका झेलकर भी जनसांख्यिकी संकट से आँखे चुराई जा रही है। पिछली जनगणना के आंकड़ों पर खुली चर्चा के बदले उसे छिपाने की कोशिश की गई। कुछ ने तो उल्टे आंकड़ों का हिंदू संगठनों द्वारा दुरूपयोगकरने पर चिंता की! यही शुतुरमुर्गी भंगिमा पड़ोस से जनसांख्यिकी आक्रमण के बारे में भी अपनाई जाती है। जो बुद्धिजीवी अपने घर में किसी को एक दिन रहने देने तैयार न होंगे, वे देश के सीमा में बंगलादेशी, पाकिस्तानी मुसलमानों की नियमित घुस-पैठ को मानवीयदृष्टि से देखने की सलाह देते हैं! उन्हें परवाह नहीं कि यदि यही चलता रहा तो असम, प. बंग, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, आदि के लिए आगे क्या परिणाम होगा? वही होगा जो पश्चिमी पंजाब के सिखों, हिंदुओं, कश्मीर के पंडितों का हुआ और असम के हिंदुओं का जल्द होने वाला है।

ऐसा नहीं कि हमारे बुद्धिजीवी और नेता इस खतरे को बिलकुल नहीं समझते। वे समझते हैं, इसी लिए ध्यान बँटाने की कोशिश करते हैं! यह वही दुर्भाग्यपूर्ण पराजित मानसिकता है जो शतियों से उत्तर भारत के उच्च-वर्गीय हिंदुओं में पैठ गई है। वे अपनी तात्कालिक सुख-सुविधा और सुरक्षा से बढ़कर देश समाज की चिंता, रक्षा करने के प्रति अनिच्छुक से रहे हैं। आतताइयों, आक्रमणकारियों के साथ किसी न किसी तरह का समझौता करके, सेवा करके शांति खरीदने की नीति अपनाते रहे। नतीजे में स्थाई वैर-भाव से चालित आक्रमणकारियों को पैठने, बढ़ने का अवसर मिलता रहा और धीरे-धीरे भारतवर्ष छीजता, सिकुड़ता रहा। यह प्रक्रिया आज भी चल रही है। देश में अनेक ऐसे नेता हैं जो सत्ता की लालसा में कटिबद्ध इस्लामी रणनीति के हाथों खेल रहे हैं। ऐसे नेता आंभी, जयचंद, मान सिंह आदि का स्मरण कराते हैं। भारत के विरुद्ध देशी-विदेशी इस्लामी रणनीति के प्रति हमारी सरकारों की नीति चुपचाप समय काटने, बहाने गढ़ने के अतिरिक्त कुछ नहीं रही है।

वस्तुतः भारत की बढ़ती जनसंख्या उतनी बड़ी समस्या नहीं। भारत से कम उपजाऊ भू-भाग वाला चीन और सिंगापुर क्षेत्रफल के हिसाब से बहुत अधिक आबादी को अच्छी तरह संभाल रहे हैं। हमारी समस्या कुव्यवस्था, भ्रष्टाचार, विचारहीनता और नेतृत्वहीनता है। वैसे भी, यदि भारत में जनसंख्या-वृद्धि दर घटेगी तो बंगलादेश व पाकिस्तान से जनसांख्यिकी आक्रमण और बढ़ेगा। जब तक यह आक्रमण नहीं रुकता, तब तक यहाँ जनसंख्या-वृद्धि दर में कमी करना अपने घर को घुसपैठियों के लिए खाली करते जाने के समान ही है। अतः अच्छा हो, कि हम केरल के ईसाइयों की सलाह पर ध्यान दें।

लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं।