Monday, October 31, 2011

अन्ना आंदोलन का टूटता तिलिस्म

पंकज चर्तुवेदी

प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय

यह एक पुरानी कहावत है कि जो जितना तेजी से ऊपर जाता है वो उतना ही तेजी से नीचे भी आता है। ऊँचाइयों पर पहुचना आसान है किन्तु ऊंचाईयों पर टिके रहना कठिन है। अन्ना आंदोलन के बाद वर्तमान परिदृश्यों को देखते हुए ऐसा लगता है कि यह सब अन्ना और उनके सहयोगियों के साथ भी घटित हो रहा है। जिस तरह से टीम अन्ना के अगुआ अपनी टीम को बचाये रखने और कोर कमेटी को भंग न करने का ऐलान कर रहे हैं उससे लग रहा है कि अंदर भितरघात का अंतहीन दौर चल पड़ा है जिसका नकारात्मक असर पूरे अन्ना के आंदोलन पर पड़ सकता है।
इंडिया अगेन्स्ट करप्शन के नाम से चला आन्दोलन रातो-रात देश भर में छा गया। लोगों को लगने लगा कि बस अन्ना का नाम लो और भ्रष्टाचार का भूत भाग जायेगा। देश की हर तकलीफ की जड़ में भ्रष्टाचार है और अन्ना की जद में आने से सब तकलीफे दूर हो जायेंगी लेकिन समय के साथ यथार्थ के धरातल पर  ऐसा कुछ भी नहीं हो पा रहा है। आंदोलन के दूसरे चरण की समाप्ति के इतने दिनों बाद ऐसा लगता है कि टीम अन्ना आज एक ऐसे चौरहे पर खडी है, जहाँ यह तय कर पाना मुश्किल दिख रहा है कि मंजिल के लिए कौन सा मार्ग निर्धारित किया जाए।
पूर्णत: आराजनीतिक इस मंच को सबसे बड़ा आघात हिसार लोकसभा उपचुनाव से लगा है। यहाँ कांग्रेस तो चुनाव हार गयी पर अन्ना की कांग्रेस को चुनाव हारने की अपील के चलते अन्ना  भी लोगो के जीते हुए मन हारने लगे है ,इसमें अन्ना के अपने नजदीकी और आम लोग सभी शामिल है। आंदोलन के इस राजनीतिकरण के चलते टीम अन्ना के दो प्रमुख सदस्य राजेंद्र सिंह और गांधीवादी पी.वी. राजगोपाल ने अन्ना की कोर कमेटी से त्यागपत्र दे दिया। ऐसा लगता है कि हिसार में कांग्रेस से हिसाब करने की जल्दी में केजरीवाल ही थे। राजेंद्र सिंह ने केजरीवाल और किरण बेदी पर खुला आरोप लगाया है कि यह दोनों बहुत घमंडी है एवं इन में अफसरशाही की ठसक अभी भी भरी है। विशेषकर अन्ना के मौन धारण करने के बाद केजरीवाल कुछ ज्यदा ही मुखर होते प्रतीत हो रहें है। केजरीवाल के चलते अन्ना को बहुत तकलीफे आ रही है। आंदोलन के समय भी केजरीवाल और किरण पर अन्ना को अपनी मनमर्जी से चलाने के आरोप लगते रहें है।
अन्ना के पुराने साथी अग्निवेश ने तो पहले ही साथ छोड़ दिया है। अग्निवेश की पीड़ा भी केजरीवाल है। ईमानदार छबि वाले जस्टिस संतोष हेगडे भी एक लंबे समय से मुख्य धारा से दूर है, जब कि अपेक्षा यह थी कि कर्णाटक के लोकायुक्त पद से मुक्त होने के बाद उनकी सक्रियता और बढ़ेगी। हेगड़े भी स्पष्ट कर चुके है कि जन-लोकपाल के अतिरिक्त अन्ना और साथी कुछ भी करें वह उस से दूर है। वास्तव में महंगाई से भयभीत जनता ने अन्ना को अपना संबल मन उनके आंदोलन को बल प्रदान किया। यदि आज महँगाई नियंत्रित होती तो शायद अन्ना को इतना समर्थन नहीं मिलता। लेकिन आपर जनसमर्थन से टीम अन्ना सातवे आसमान पर पहुँच गयी और अफसरों एवं राज-नेताओं सा सोचना शुरू कर दिया कि हमसे श्रेष्ठ कोई नहीं है। श्रेष्ठता का यही भाव पतन का पहला कदम है। आज आम जनता यह जानना चाह रही है कि अन्ना क्या चाहते है, जन-लोकपाल, न्याय सुधार या फिर चुनाव सुधार।
अन्ना के कथित सेनापति केजरीवाल पर आरोप है कि उन्होंने आन्दोलन के लिए मिले चंदे का पैसा अपनी निजी संस्था के खाते में जमा किया है। केजरीवाल कि पहली सफाई यह थी कि चंदे के एक –एक पैसे का हिसाब दिया जायेगा। अब केजरीवाल यह कह रहें है कि इंडिया अगेन्स्ट करप्शन एक आंदोलन है संगठन नहीं इसलिए उसका कोई बैंक खाता नहीं है। इस सब के बीच एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या पैसा नकद आया है क्योकि इंडिया अगेन्स्ट करप्शन के नाम से बैंक खाता नहीं है तब इस नाम से चेक तो बने नहीं होंगे। नकद का हिसाब गडबड करना बहुत आसान है। भ्रष्टाचार का विरोध करने वालों के दमन पर यदि कीचड उछाल रहा हो तो फिर उनकी भूमिका संधिग्ध हो जाती है।
बेदी मैडम भी माना चुकी है कि उन्होंने वीरता पदक का दुरूपयोग कर हवाई यात्राओ की राशि में भरी हेर –फेर किया है। अब सब कुछ सार्वजिनिक हो जाने के बाद वह कह रही है कि गलत ढंग से लिया पैसा वापिस कर देंगी। उनकी बेटी को गलत कोटे से मिला प्रवेश भी लोग याद रखते है। यानि कि बेदी मैडम भी भ्रष्टाचार के दल-दल में है। प्रशांत भूषण भी कश्मीर को देश से अलग करने वालों की हिमायत करते नजर आये और सार्वजनिक दुर्वयवहार के बाद से लगभग गायब से है। कुमार विश्वास को अब अपनी कोर कमेटी पर ही विश्वास नहीं और वह भी अब कविता छोड़ चिट्ठियां लिख रहे है।
अन्ना स्वयं भ्रष्टाचार से परे है पर गांधीवाद से सामंजस्य नहीं बिठा सके है, इस लिए कई बार आलोचन पर उत्तेजित हो जाते है। मौन व्रत के बाद भी ब्लॉग पर वाणी का असंयम आम है जबकि गाँधी जी ने वाणी संयम को सबसे ज्यादा महत्त्व दिया था। अन्ना को महात्मा बनने की शीघ्रता है लेकिन यह पथ आसान नहीं। यदि अन्ना ने जल्दी ही अपनी टीम का कायाकल्प नहीं किया तो टीम तो टूटेगी ही तिलिस्म भी शेष नहीं बचेगा।

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