Wednesday, February 29, 2012

पाकिस्तान से आये हिन्दुओं के संबंध में सरकार का प्रत्युत्तर अभी तैयार नहीं



आज दिनांक 29 फरवरी 2012 को अखिल भारत हिन्दू महासभा की जनहित याचिका पर सुनवाई थी। विगत 15 दिसंबर, 2011 को माननीय उच्च न्यायालय दिल्ली के समक्ष आवेदित जनहित याचिका की अधिसूचना भारत सरकार द्वारा विदेश मंत्रालय, गृह सचिव, गृह मंत्रालय एवं आयुक्त, दिल्ली पुलिस को दी गयी थी। परन्तु भारत सरकार का प्रत्युत्तर याचिकाकर्ता डॉ0 राकेश रंजन, महासचिव, स्वागत समिति, अखिल भारत हिन्दू महासभा अथवा उनके अधिवक्तावृन्द प्रो0 भीम सिंह, पवन कुमार बंसल को नही दिया गया था।

माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत भारत सरकार के अधिवक्ता नें प्रत्युत्तर के निमित्त और अधिक समय की मांग की जिसे प्रधान न्यायधीश नें छः सप्ताह का समय प्रदान किया। सुनवायी की अगली तिथि 25 अप्रैल, 2012 को निर्धारित की गई है, तथा यह अपेक्षित है कि हिन्दू मानवाधिकार से सम्बद्ध इस महत्वपूर्ण विषय पर भारत सरकार का प्रत्युत्तर याचिकाकर्ता एवं उनके अधिवक्ता को समुचित समय पर प्रदान किया जायेगा।
द्रष्टव्य हो कि 21 दिसंबर, 2011 के न्यायादेश में न्यायमूर्ति नें भारत सरकार से इस विषय के समेकित अवलोकन एवं समाधान कि अपेक्षा की थी। न्यायादेश स्पष्टतया यह निर्देश देता है कि पाकिस्तान से आये इन हिन्दूजनों को सरकार वापस नही भेज सकती है।

भगवान बुद्ध और औरतें भी अल्लाह के नबी !!


सत्‍यवादी             प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय


भारत के लगभग सभी धर्मों की यह मान्यता है ,कि जब जब धरती के किसी भी हिस्से में लोग अमानवीय और अनैतिक कामों में लिप्त होकर पाप या अधर्म के काम करने लगते हैं ,तो उनको सही रास्ता दिखाने और अधर्म को समाप्त करने के लिए समय समय पर अनेकों महापुरुष आते रहते हैं . जिनको अवतार कहा जाता है ,लेकिन यहूदी , इसाई और इस्लाम धर्म इसके विपरीत मानते हैं ,वह अल्लाह द्वारा भेजे गए यानि नियुक्त किये गए ऐसे महापुरुषों को "नबी " कहते हैं .नबी भी लोगों को अल्लाह द्वारा दिखाए रस्ते पर चलने को कहते हैं .
इस विषय को और स्पष्ट करने के लिए पहले हमें यह स्वीकार करना होगा कि , यहूदी ,ईसाई और मुसलमानों का अल्लाह एक ही है .मुझे विश्ववास है कि इस बात से किसी को कोई आपात्ति नहीं होना चाहिए .दूसरी बात यह है कि यह तीनों धर्म मानते हैं कि मनुष्यों को सही रस्ते से भटकाने और पाप कर्म करने प्रेरणा शैतान ही देता है .
इसीलिए अपने बन्दों को शैतान के फंदे से बचाने और सीधे मार्ग पर लेजाने के लिए अल्लाह अपने नबियों को उठाता है , देखिये .
1-अल्लाह और शैतान का झगडा 
कुरान के अनुसार आदम के बनने बाद से ही अल्लाह को चुनौती दी थी कि वह उसके बन्दों को गुमराह करेगा ,यही बात बाइबिल में भी है ,यहाँ कुरान में इस प्रकार कहा गया है -
"शैतान ने अल्लाह से कहा ,जैसा तूने मुझे गुमराह किया है मैं तेरे लोगों के रस्ते में घात लगा कर बैठूँगा ,और उनके आगे और पीछे से आक्रमण करूँगा ,और तू अधिकांश को कृतज्ञ नहीं पायेगा "सूरा-अल आराफ 7 :14 -17 
"अल्लाह ने कहा निस्संदेह मेरे बन्दों पर तेरा कोई बस नहीं चलेगा ,सिवाय को बहके हुए लोग है "सूरा-अल हिज्र 15 :42
2-नबियों की संख्या 
अल्लाह ने आदम से लेकर कई भेजे भेजेइस्लामी मान्यता के अनुसार हैं जो अल्लाह का सन्देश लोगों को देते थे , यह कुरान और हदीस में है ,
"कितने रसूल हैं ,जिनका विवरण हम बयान कर चुके हैं और कितने ऐसे हैं जिनका वृतांत हमने नहीं दिया है "सूरा -अन निसा 4 :164 
( नोट - कुरान में सिर्फ 27 नबियों का विवरण मिलता है )
 "और हरेक जाति के लिए एक मार्ग दिखाने वाला ( हादी ) हुआ है "सूरा -रअद 13 :7 
रसूल ने कहा कि आदम से लेकर मुझ तक एक लाख चौबीस हजार (124000 )नबी आये है ,जिनमे तीन सौ पंद्रह ( 315 ) रसूल थे ,जिनके सन्दर्भ मिलते हैं .
"قال النبي (صلي الله عليه وسلم): "من آدم لي، بعث الله من مائة وأربعة وعشرون ألف الأنبياء، من بينهم 315 كانوا رسل
كما يشير التقرير.
Prophet(peace be upon him) said:"From Adam to me, Allah sent a hundred and twenty-four thousand Prophets ,of whom three hundred and fifteen were messengers 
Reference is given .
Musnad Ahmed  Hanbal-Hadith No-21257

3-सभी नबी समान हैं 
इसके बाद कुरान में यह भी कहा गया है कि,
"हम अल्लाह की किताबों और उसके भेजे नबियों के बीच में कोई अंतर नहीं करते हैं "सूरा -बकरा 2 :285 
जो दूसरे सभी नबियों को और जो उनके रब की ओर से मिली (नबूवत ) उनमे किसी के बीच में अंतर (distinction ) नहीं करते और हम उसी के आज्ञाकारी हैं . सूरा -बकरा 2 :136 और सूरा -आले इमरान -3 :84 
4-तफ़सीर में वर्णित नबी 
यह ऐसे नबी है जिनका नाम दिए बिना इनकी कथाएं कुरान में दी गयी हैं .(और कुरान की तफसीर अल मीजान बाब 15 में हैं) 
There are some prophets whose stories are given in the Qur'an without mentioning their names. These are:
No. Arabic Name Transliteration English Version
1. خضر Khidhr (a.s.) —खिज्र 
2. يوشع بن نون Yusha bin Nun (a.s.) Joshua-जोशुआ बिन नून 
3. شموئيل Shamuel (a.s.) Samuel-समूएल (इस्माइल )
4. حزقيل Hizqueel(a.s.) Ezekiel-हिजकिएल 
5. ذو القرنين Dhul-Quarnain[2]-जुलकरनैन (सिकंदर )
6. رسول اصحاب الاخدود An Ethiopean Prophet [3]-रसूल असहाब अल्खुद ( हब्शी)
7. شمعون الصفا Shamun Simon (Peter)-शिमॉन पीटर ( ईसा का शिष्य और प्रथम पोप )
8- 9. حواريان آخران لعيسى Two other disciples of Jesus Christ -हवारियान ( ईसा के दो शिष्य )
5-अल मीजान में वर्णित नबी
यह ऐसे नबियों के नाम है ,जिनका उल्लेख इस्लामी इतिहास की किताबों जी अल मीजान और परंपरा में मिलते है .इनमे भगवान बुद्ध का नाम भी है जिसे अरबी में बुजास्फ़ कहा गया है .(न .9 )
Now we may mention some of the prophets whose names are found in the traditions:
No. Arabic Name Transliteration English Version

1. شيت Sheth Seth-सैस
2. سام Saam Shem-साम 
3. ارميا Armia Jeremiah-यिर्मियाह 
4. دانيال Danial Daniel-दानिएल 
5. عموس Amus Amos-आमोस 
6. عبيدة Obaidiah Obaidiah-ओबैदयाह 
7. حبقوق Habakkuk Habakkuk-हबक्कूक 
8. جرجيس Jirjis —जिरजिस 
( इन आठ नबियों के नाम तौरेत यानि बाइबिल में मौजूद हैं )
9. بوذاسف Budhastav Budhastav-बुजास्फ़ ( बोधिसत्व यानि गौतम बुद्ध )(Gotam Bodh)
10. خالد بن سنان Khalid bin Sanan -खालिद बिन सनान 
6-महिला नबीया 
आजकल के कठमुल्ले भले इस बात को स्वीकार नहीं करें कि ,उन्हीं के अल्लाह ने औरतों और क्वांरी लड़कियों को भी अपना नबी बना दिया था .तौरेत के समय तो अल्लाह को औरतों को नबी बनाने में कोई आपति नहीं थी ,लेकिन मुहमद के अमे अल्लाह को मुस्लिम औरतों से इतनी नफ़रत हो गयी कि उसने एक भी अरबी औरत को नबी बनने के लायक नहीं समझा ,और माहवारी का बहाना बना कर उनको नबी नहीं बनाया .
तौरेत अर्थात बाइबिल के पुराने नियम ( Old Testament ) में इन महिला नबियों (prophetesses. )के नाम सन्दर्भ दिए गए हैं इन्हें हिब्रू और अरबी में नबीया कहा गया है .-हिब्रू में ( נביאה)अरबी में ( نبية)
http://bibleq.info/answer/4201/
नोट - दी गयी लिंक को देखें )
Several women are described as prophetesses. In the Old Testament we have the following five:
Miriam (Exodus 15:20-21) -मरियम (हारून की बहिन )
Deborah (Judges 4:4) -देबोरा -लप्पीदोत की स्त्री 
Huldah (2 Kings 22:14) -हुलदा-शल्लूम की पत्नी 
Noadiah (Nehemiah 6:14) -नोअद्याह 
Isaiah’s wife (Isaiah 8:3) -यशायाह की पत्नी 
तौरेत में दी गयी इन महिला नबीया के आलावा यहूदी धर्मग्रंथ तलमूद में इन महिला नबीया के नाम मिलते हैं 1 .सारह ,हन्नाह ( नबी समूएल की पत्नी ) 2 .अबीगेल ( नबी दाऊद की पत्नी ) 3 .एस्तेर(पुस्तक एस्तेर )इनको भी नबीया माना गया है .
The Jewish Talmud counts some additional women as prophets including Sarah, Hannah (mother of Samuel), Abigail (wife of David) and Esther. However, these are not called prophets or prophetesses in the Bible.
नए नियम में इन नबीया के नाम दिए हैं 
In the New Testament, there are another five:
-अन्ना -फ़नूएल की बेटी -Anna (Luke 2:36) 
राजा फिलिप की चारों पुत्रियाँ -Philip’s four daughters (Acts 21:8-9) -
इसा मसीह की माता मरियम और यूहन्ना बपतिस्ती की माता एलियाबेथ भी नबूवत करती थीं लेकिन उनको नबीया नहीं कहा गया है .
Although not called prophetesses, both Mary mother of Jesus (Luke 2:46-55) and Elizabeth mother of John Baptist (Luke 2:41-45) both made prophecies.

मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे इस लेख को पढ़कर हिन्दू और मुस्लिम बहिने जरुर खुश होंगी कि यदि जहन्नम जैसे कोई जगह है तो उस से डरने की कोई जरुरत नहीं है ,क्योंकि वहां पर हिन्दुओं मदद के लिए अल्लाह के नबी बुध भगवान होगे ,और मुस्लिम बहिनों को मुस्लिम मर्दों के अत्याचार से बचाने के लिए अल्लाह की कई नबीया मिल जाएँगी .यातो यह कुतर्की मुल्ले अल्लाह के इन नबियों को झूठ काह दें ,या फिर कह दें कि यहूदी ,इसी ,हिन्दू और मुसलमानों का अल्लाह अलग या कोई दूसरा है .याद रखिये इन सभी नबियों के नाम अल्लाह कि किताबों में लिखे हैं 
.
हमें इस बात को स्वीकार कर लेना चाहिए कि अल्लाह के सभी नबी समान हैं .

http://www.imamreza.net/eng/imamreza.php?id=9455

धर्मपरिवर्तन और इस्लाम की नीति !

 

सत्‍यवादी     प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय


जकारिया नायक जैसे लोग हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन कराने के लिए इस्लाम का सिर्फ एक ही पक्ष पेश करते है .और दूसरे पक्ष को छुपा लेते हैं .और भोलेभाले लोग इस्लाम को ठीक से जाने बिना अपना धर्म छोड़कर मुसलमान बन जाते हैं ,और पछताते हैं ,क्योंकि इन लोगों को इस्लाम की दोहरी नीति के बारे में पता नहीं होता है .यह लोग कहते हैं कि इस्लाम में जबरदस्ती नहीं है ,और हरेक को अपनी पसंद का धर्म बदलने का अधिकार है .यह बातें सिर्फ हिन्दुओं और गैर मुस्लिमों को रिझाने के लिए कही जाती हैं ,ताकि वह इस्लाम के जाल में फंस जाएँ .
हम भाग्यशाली है कि हमारा जन्म भारत में हुआ है ,जहां इस्लामी हुकूमत नहीं है .और वह लोग सौभाग्यशाली है ,जो अभी तक सेकुलरवाद और इस्लाम के प्रभाव से बचे हुए हैं .और वह लोग तारीफ़ करने के योग्य हैं ,जो निडर होकर इस्लामी विचारों विरोध करते हैं .और जिनकी किस्मत फूट जाती है वह जाने अनजाने इस्लाम की खाई में गिर जाते है .जहाँ से निकलना संभव नहीं है .क्योकि इस्लाम में गिर तो सकते हैं ,लेकिन बहार नहीं निकल सकते .इस्लाम दुसरे धर्म के लोगों को अपना धर्म छोड़ने की अनुमति तो देता है ,लेकिन फिर से अपने धर्म में आने ,या अपनी पसंद के किसी और धर्म में जाने की .इजाजत नहीं देता है.
इस्लाम छोड़कर वापस अपने धर्म में आने को इस्लाम में "इरतदादارتداد" Apostasy या धर्म भ्रष्टता कहा जाता है .और ऐसा करने वाले को "मुरतदمُرتد" कहा जाता है .कुरान में ऐसे व्यक्ति के लिए कठोर सजा का प्रावधान है .जैसे -
"अगर तुमने ईमान लाने के बाद इरतदाद किया तो हम तुम्हें कठोर यातनाएं देंगे "सूरा -तौबा 9 :66 
"लोग चाहते हैं कि तुम फिर से उन्ही की तरह वैसे ही काफ़िर हो जाओ जैसे वह खुद है ,तो ऐसे लोग जहाँ मिलें उन्हें पकड़ो और उनका वध कर दो .और कोई उनकी सहायता नहीं करे "सूरा -निसा 4 :89 
"क्योंकि जिसने रसूल का आदेश माना .समझ लो उसने अल्लाह का आदेश मान लिया "सूरा -निसा 4 :80 


वैसे तो मुसलमानों के कई फिरके हैं लेकिन सबके विचार एक जैसे ही है ,.सभी जहरीले और घातक है .ऊनके बारे में फिर कभी दिया जायेगा .इस लेख में शिया लोगों के विचार दिए जा रहे है .शिया लोगों की मुख्य हदीस "अल काफी الكافي"है जिसका संकलन "अबू जाफर मुहम्मद बिन याकूब कुल्यानी अल राजी "ने किया था .इसकी मौत सन 939 में हुई थी .इसकी हदीस के संकलन की किताब का नाम "मिरातुल उकूल"مراة اكعقول कहा जाता है .
इसी किताब में इस्लाम छोड़कर वापस अपने धर्म में आने ,जैसे अपराधों के लिए जो सजाएँ बताई है उनका कुछ नमूना दिया जा रहा है .इस से आपको इस्लाम की उदारता का पता चल जायेगा .


1-मर्दों के लिए इस्लाम त्यागने की सजा 
"मुहम्मद बिन मुस्लिम ने कहा की मैंने अबू जाफर से "मुर्तद" ( इस्लाम त्यागने वाला ) के बारे में पूछा तो ,उन्होंने कहा जो भी इस्लाम से हट जाये ,और उस बात पर अविश्वास करे जो अल्लाह ने रसूल पर नाजिल की है ,तो ऐसे व्यक्ति के लिए पश्चाताप के लिए कोई रास्ता नहीं है .उसे क़त्ल करना अनिवार्य है .और उसकी पत्नी की किसी मुसलमान से शादी करा देना चाहिए .और उसकी विरासत की संपत्ति और बच्चे मुसलमानों में बाँट देना चाहिए "
Punishment for a Male Apostate 
عَلِيُّ بْنُ إِبْرَاهِيمَ عَنْ أَبِيهِ وَ عِدَّةٌ مِنْ أَصْحَابِنَا عَنْ سَهْلِ بْنِ زِيَادٍ جَمِيعاً عَنِ ابْنِ مَحْبُوبٍ عَنِ الْعَلَاءِ بْنِ رَزِينٍ عَنْ مُحَمَّدِ بْنِ مُسْلِمٍ قَالَ سَأَلْتُ أَبَا جَعْفَرٍ ع عَنِ الْمُرْتَدِّ فَقَالَ مَنْ رَغِبَ عَنِ الْإِسْلَامِ وَ كَفَرَ بِمَا أَنْزَلَ اللَّهُ عَلَى مُحَمَّدٍ ص بَعْدَ إِسْلَامِهِ فَلَا تَوْبَةَ لَهُ وَ قَدْ وَجَبَ قَتْلُهُ وَ بَانَتْ مِنْهُ امْرَأَتُهُ وَ يُقْسَمُ مَا تَرَكَ عَلَى وُلْدِهِ "




From Muhammad bin Muslim said: That I said Abu  Ja`far  about the apostate (murtad). So he  said: “Whoever turns away from Islaam, and disbelieves in what Allaah has revealed to the Prophet  after being a Muslim, there is no repentance for him, and it is waajib (obligatory) to kill him, and his wife becomes a wife of  a believer  muslim  and his legacy and children should be sold and  divided among the muslims  "
Al-Kulayni, Al-Kaafi, vol. 7, pg. 256, hadeeth # 1
Mir’aat Al-`Uqool, vol. 23, pg. 396 


2-ईसाई धर्म अपनाने की सजा 
"अली बिन जाफर से उसके भाई अबी अल हसन कहा कि एक मुसलमान ईसाई बन गया है .तो हसन ने कहा उसे क़त्ल कर देना चाहिए .फिर अली ने पूछा कि अगर कोई इसाई मुसलमान हो जाये और फिर से ईसाई हो जाये तो काया करना चाहिए .हसन ने कहा पहले तो उस से तौबा करने को कहो ,अगर नहीं माने तो उसे क़त्ल कर दो .और उसकी पत्नी और संपत्ति मुसलमानों में बाँट दो "
Mir’aat Al-`Uqool, vol. 23, pg. 396 
مُحَمَّدُ بْنُ يَحْيَى عَنِ الْعَمْرَكِيِّ بْنِ عَلِيٍّ النَّيْسَابُورِيِّ عَنْ عَلِيِّ بْنِ جَعْفَرٍ عَنْ أَخِيهِ أَبِي الْحَسَنِ ع قَالَ سَأَلْتُهُ عَنْ مُسْلِمٍ تَنَصَّرَ قَالَ يُقْتَلُ وَ لَا يُسْتَتَابُ قُلْتُ فَنَصْرَانِيٌّ أَسْلَمَ ثُمَّ ارْتَدَّ عَنِ الْإِسْلَامِ قَالَ يُسْتَتَابُ فَإِنْ رَجَعَ وَ إِلَّا قُتِلَ




From `Alee bin Ja`far from his brother Abee Al-Hasan  said: I asked him  about a Muslim who becomes a Christian. He  said: “He (should be) killed, and no repentance from him” I said: “What about a Christian who becomes Muslim then Apostates from Islaam?” He said: “He is asked to repent. And if he returns (to Islaam that is okay), or otherwise he is killed and his wife and property should be given to muslims ”
Mir’aat Al-`Uqool, vol. 23, pg. 400 


3-औरतों के लिए इस्लाम त्यागने की सजा 
"गियास बिन इब्राहीम कहा कि जाफर बिन मुहम्मद ने अपने पिता अली से पूछा कि अगर कोई औरत इस्लाम त्याग दे तो , उसका क्या करना चाहिए .अली ने कहा उसे क़त्ल नहीं करो .बल्कि कैद करो फिर मुसलमानों के हाथ बेच डालो ."
Punishment for a Female Apostate: 


وَ فِي رِوَايَةِ غِيَاثِ بْنِ إِبْرَاهِيمَ عَنْ جَعْفَرِ بْنِ مُحَمَّدٍ عَنْ أَبِيهِ ع أَنَّ عَلِيّاً ع قَالَ إِذَا ارْتَدَّتِ الْمَرْأَةُ عَنِ الْإِسْلَامِ لَمْ تُقْتَلْ وَ لَكِنْ تُحْبَسُ أَبَداً "




From Ghiyaath bin Ibraaheem from Ja`far bin Muhammad  from his father  That `Alee  said: “When a woman apostates from Islaam, she is not killed, but she is imprisoned and sold  to muslims"
Al-Sadooq, Man Laa YaHDuruh Al-Faqeeh, vol. 3, Baab Al-Irtidaad, pg. 150, hadeeth # 3549 




4 -रसूल के विरुद्ध बोलने की सजा 
" अम्मार बिन अल शबाती ने कहा कि मैंने अबा अब्दुल्लाह से सुना है कि तुम में से जो भी मुस्लिम इस्लाम का त्याग करे और मुहम्मद कि नबूवत से इंकार करेऔर झूठ बताये , तो उसका खून बहाना और क़त्ल करना जायज है .और जिस दिन तुम यह बात सुनो उस दिन से उसकी पत्नी उस से अलग कर दो .और तुम्हारे नेता को चाहिए कि अगर वह औरत तौबा नहीं करे तो उसे गुलाम बनाकर अपने लिए रख ले .और बाकी सम्पति बाँट दे "
Punishment for Talking Against the Prophet (صلى الله عليه وآله وسلم)


عِدَّةٌ مِنْ أَصْحَابِنَا عَنْ سَهْلِ بْنِ زِيَادٍ وَ عَلِيُّ بْنُ إِبْرَاهِيمَ عَنْ أَبِيهِ وَ مُحَمَّدُ بْنُ يَحْيَى عَنْ أَحْمَدَ بْنِ مُحَمَّدٍ جَمِيعاً عَنِ ابْنِ مَحْبُوبٍ عَنْ هِشَامِ بْنِ سَالِمٍ عَنْ عَمَّارٍ السَّابَاطِيِّ قَالَ سَمِعْتُ أَبَا عَبْدِ اللَّهِ ع يَقُولُ كُلُّ مُسْلِمٍ بَيْنَ مُسْلِمَيْنِ ارْتَدَّ عَنِ الْإِسْلَامِ وَ جَحَدَ مُحَمَّداً ص نُبُوَّتَهُ وَ كَذَّبَهُ فَإِنَّ دَمَهُ مُبَاحٌ لِكُلِّ مَنْ سَمِعَ ذَلِكَ مِنْهُ وَ امْرَأَتَهُ بَائِنَةٌ مِنْهُ يَوْمَ ارْتَدَّ فَلَا تَقْرَبْهُ وَ يُقْسَمُ مَالُهُ عَلَى وَرَثَتِهِ وَ تَعْتَدُّ امْرَأَتُهُ [بَعْدُ] عِدَّةَ الْمُتَوَفَّى عَنْهَا زَوْجُهَا وَ عَلَى الْإِمَامِ أَنْ يَقْتُلَهُ وَ لَا يَسْتَتِيبَهُ




From `Ammaar Al-SaabaaTee said: I hear Abaa `Abd Allaah  he  said: “Every Muslim amongst the Muslimeen who apostates from Islaam, and denies Muhammad  prophecy and (call) him  a liar. His blood is allowed (to kill) whoever hears that from him. And his wife baa’inah (?) from the day of apostasy, and she should not go near him. And his wealth is divided amongst his muslims and his wife invokes upon herself `iddah of the death of her husband. And it is upon Imaam (leader) that he kills him, and if she does not ask for repentance then  enslave her  for   himself ”
Al-Kulayni, Al-Kaafi, vol. 7, pg. 257-258, hadeeth # 11


عَلِيُّ بْنُ إِبْرَاهِيمَ عَنْ أَبِيهِ عَنِ ابْنِ أَبِي عُمَيْرٍ عَنْ هِشَامِ بْنِ سَالِمٍ عَنْ أَبِي عَبْدِ اللَّهِ ع أَنَّهُ سَأَلَ عَمَّنْ شَتَمَ رَسُولَ اللَّهِ ص فَقَالَ يَقْتُلُهُ الْأَدْنَى فَالْأَدْنَى قَبْلَ أَنْ يَرْفَعَهُ إِلَى الْإِمَامِ "




From Hishaam bin Saalim from Abee `Abd Allaah  That he was asked about one who abuses the Messenger of Allaah,So he  said: “He is to be killed, for the lowest of the low (rebuke) before he is taken to the Imaam(leader)” 
हिश्शाम बिन सालिम ने अबी अब्दुल्लाह से रसूल का अनादर करने की सजा के बारे में पूछा ,तो वह बोले ऐसा करने वाले को अपने सरदार के सामने पेश करके फटकारो और फिर उसे क़त्ल कर दो .यही उसकी न्यूनतम सजा है.


Mir’aat Al-`Uqool, vol. 23, pg. 400 


5 -इमाम की दिव्यता से इंकार की सजा 
"हिशाम बिन सलीम ने कहा कि मैंने अबा अब्दुलाह से सुना कि उन्होंने अपने साथियों से कहा कि जोभी अमीरुल मोमनीन अली बिन अबी तालिब की खिलाफत और उनकी दिव्यता से इंकार करे तो उसे पहले तौबा करने को कहो .और अगर वह तौबा नहीं करे तो उसे जिन्दा जला दिया जाये "
Punishment for  Refusing Divinity of the Imaams (عليهم السلام) 
Here is a SaHeeH hadeeth taken from Rijaal Al-Kashee, about the infamous `Abd Allaah bin Saba’.


حدثني محمد بن قولويه، قال حدثني سعد بن عبد الله، قال حدثنا يعقوب بن يزيد و محمد بن عيسى، عن ابن أبي عمير، عن هشام بن سالم، قال : سمعت أبا عبد الله (عليه السلام) يقول و هو يحدث أصحابه بحديث عبد الله بن سبإ و ما ادعى من الربوبية في أمير المؤمنين علي بن أبي طالب، فقال إنه لما ادعى ذلك فيه استتابه أمير المؤمنين (عليه السلام) فأبى أن يتوب فأحرقه بالنار. "
From Hishaam bin Saalim said: I heard from Abaa `Abd Allaah  and he said: “And he narrated from his companions the narration of `Abd Allaah bin Sabaa’ and he called (to people) the lordship/divinity of Ameer Al-Mumineen `Alee bin Abee Taalib . So he  said: That Ameer Al-Mu’mineen ordered him to repent, but he refused. Then Ali let him burn in fire."
Al-Kashee, Rijaal Al-Kashee, pg. 107, hadeeth # 17
6-दूसरे नबियों का आदर करने की सजा 




"इब्न अबी याफूर ने कहा मैंने अबी अब्दुलाह को बताया कि" बजी " नामक व्यक्ति दावा करता है कि सभी नबी बराबर हैं .अब्दुल्लाह ने कहा अग्गर तुम यह बात खुद उस से सुनो तो उसे क़त्ल कर देना .यह हदीस कहने वाला कहता है कि मैंने ऐसी ही किया .और उस व्यक्ति के घर में आग लगा दी .जिस से वह मकान सहित जल कर मर गया "
Punishment for Respecting  other  Prophets


مُحَمَّدُ بْنُ يَحْيَى عَنْ أَحْمَدَ بْنِ مُحَمَّدٍ عَنِ ابْنِ فَضَّالٍ عَنْ حَمَّادِ بْنِ عُثْمَانَ عَنِ ابْنِ أَبِي يَعْفُورٍ قَالَ قُلْتُ لِأَبِي عَبْدِ اللَّهِ ع إِنَّ بَزِيعاً يَزْعُمُ أَنَّهُ نَبِيٌّ فَقَالَ إِنْ سَمِعْتَهُ يَقُولُ ذَلِكَ فَاقْتُلْهُ قَالَ فَجَلَسْتُ لَهُ غَيْرَ مَرَّةٍ فَلَمْ يُمْكِنِّي ذَلِكَ  "




From Ibn Abee Ya`foor said: I said to Abee `Abd Allaah  that Bazee` calims that all  Prophets  are  equal .. So he  said: “If you hear him saying that you (must) kill him”. He (the narrator) said: “I sat fire on his house and butnt him  alive " 
Al-Kulayni, Al-Kaafi, vol. 7, pg. 259, hadeeth # 22


मेरा उन इस्लाम के वकीलों ,हिमायतियों , ब्लोगरों और दलालों से सवाल है ,जो दावा करते हैं कि इस्लाम में कोई जबरदस्ती नहीं है .और इस्लाम एक उदार और शांतिप्रिय धर्म है .लेकिन वह इसका जवाब दें कि इस्लाम में वन वे ट्रेफिक क्यों है .लोग इस्लाम में आ तो सकते है लेकिन अपने धर्म में वापस क्यों नहीं जा सकते ?
हिन्दू लड़कियों मुस्लिम लड़कों से कभी मित्रता नहीं करना चाहिए .वर्ना वाही हालत होगी जो रीना राय और उमर अब्दुल्लाह की पत्नी पायल की हुई है .मुसलमानों की दोस्ती हमेशा घातक होती है . मेरा विशेषकर उन लड़कियों से अनुरोध है ,जो किसी झूठे प्रेम में फंस कर अपना धर्म छोड़ने का इरादा रखती हैं ,और इस्लाम कबूल करना चाहती हैं ,वह ऐसा करने पहले एक करोड़ बार सोच लें कि उनको सिवाय पछताने के कुछ नहीं मिलेगा .लोगों को पता होना चाहिए कि धर्म परिवर्तन के बारे में मुसलंमान दोहरी नीति अपनाते हैं .अगर कोई मुसलमान इस्लाम के अलावा कोई धर्म अपनाता है ,तो उसे क़त्ल कर देते हैं .यही कश्मीर ,में हुआ है .


इस विषय पर एक मुल्ले का भाषण सुनिए !


http://www.youtube.com/watch?v=DuRNk9eBNa0


धर्मपरिवर्तन अर्थात सर्वनाश .

Tuesday, February 28, 2012

तकफीर मुल्लों का हथियार !

सत्‍यवादी          प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय


मुसलमान मौलवी जब किसी दुसरे गिरोह के लोग पर काफ़िर ,या मुशरिक होने का झूठा आरोप लगाते हैं ,तो इसे तकफीर(تكفير  ) कहा जाता है . मेरे एक मुस्लिम दोस्त ने इस विषय पर कुछ प्रकाश डालने को कहा था ,क्योंकि अक्सर देखा गया है कि जोभी व्यक्ति इन मुल्लों के विचारों से रत्ती भर भी असहमति प्रकट करता है ,यह मुल्ले उसे काफ़िर(كافر     ) ,मुशरिक( مُشرك) ,और बिदअती( بِدعتي) घोषित करके उसके खिलाफ फ़तवा दे देते हैं .इस लिए बिना किसी द्वेषभाव के यह लेख दिया जा रहा है .
यद्यपि मुस्लिम विद्वान दावा करते हैं कि इस्लाम में बादशाही , और तानाशाही के लिए कोई स्थान नहीं है .औरमुस्लिमों को सिर्फ अल्लाह के द्वारा बताये गए मार्ग पर चलना चाहिए ..लेकिन इतिहास गवाह है कि , जैसे जैसे इस्लाम का विस्तार होता गया उसमे मुल्लों, मुफ्तियों का वर्चस्व होने लगा .पहले जब यजीद नामके अत्याचारी शासक ने इस्लाम के नाम पर अपनी मर्जी लोगों पर थोपना चाही थी ,जिसका परिणाम कर्बला के युद्ध के रूप में सामने आया था .और मुहम्मद साहिब के नवासे इमाम हुसैन ने खुद अपने और अपने परिवार के 72 लोगों की क़ुरबानी देकर इस्लाम को सही रस्ते पर लाना चाहा था .लेकिन कुछ समय के बाद फिर से इस्लाम में कई फिरके हो गए , और हरेक गिरोह मुसलमानों की नकेल अपने हाथों में रखना चाहता है .सब जानते हैं कि कुरान की 114 सूरतें करीब 23 साल में जमा की गयीं थी . और कालक्रम के अनुसार संकलित नहीं की गयी हैं .इसलिए ही उसका सही अर्थ और भाव , तात्पर्य समझने में कठिनता होती है .कुरान की किसी सूरा या आयत का सही भाव समझने के लिए उसका समय (Time), स्थान (Place),परिस्थिति (Circumstances)और जिसको संबोधित कर के कहा गया है , उसके बारे जानना जरुरी है ,और ऐसा न करने से वैचारिक मतभेद होजाने से फिरके बन जाते हैं .जो एक दूसरे के शत्रु बन जाते हैं .शिया और सुन्नियों में अक्सर खून खराबा होता रहता है , लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि सुन्नियों में भी कई मज़हब (Sects ) है जो एक दुसरे को काफ़िर ,या मुशरिक कहते रहते हैं .इनमे ,हनफी , मलिकी ,शाफयी,और हम्बली ,मुख्य है , भारत में देवबंदी और बरेलवी अक्सर लड़ते रहते हैं .यहाँ पर कुरान और प्रमाणिक हदीसों के आधार इसका खुलासा दिया जा रहा है -
1-तकफीर के कुछ नमूने 
एक दूसरे के इमामों के अनुयायिओं को काफर या मुशरिक बताना कोई नयी बात नहीं है ,पहले भी ऐसा होता था ,देखिये
A.शाफयी कहते हैं कि इस्लाम में अबू हनीफा जैसा बुरा आदमी नहीं हुआ .
"ولدت لا أحد في الإسلام أكثر شرا من "أبو حنيفة"
Imam Dhahabi records in Syar alam al-Nubala, Volume 10 page 95:
B.इमाम अब्दुल हयी काजी बिन मूसा अल हनफी ( मृत्यु 506 हि) ने शाफियों के बारे में कहा ,अगर मेरे पास हुकूमत होती तो ,मैं शाफियों पर जजिया लगवा देता .
لو كان لى أمر لاخذت الجزية من الشافعية


Meezan al Etidal, Volume 4 page 52

C.शाफयी विद्वान् मुहम्मद बिन मुहम्मद अबू मंसूर ने कहा ,अगर मेरे हाथोंमे सत्ता होती तो ,मैं हम्बलियों पर जजिया लगाने का आदेश जारी कर देता .
وقيل أن البروي قال لو كان لي أمر لوضعت على الحنابلة الجزية
Shazarat al-Dahab, Volume 4 page 271:
D.शेख अबू हातिम हम्बली ने अपने फिरके के बारे में कहा है 
जो भी हम्बली नहीं है ,वह मुस्लिम नहीं है 
فكل من لم يكن حنبليا فليس بمسلم
जो भी व्यक्ति इमाम हम्बल के निर्णय नहीं मानता उस पर इतनी लानत है ,जितनी जमीन पर धूल के कण है .
فلعنة ربنا أعداد رمل على من رد قول أبي حفيفة 
Al-Dur al-Mukhtar Sharah Tanveer al-Absar, page 14

E..इमाम याफी ने अपनी किताब"अल जनान " में लिखा है ,कि जब में दमिश्क में था तो उसके आसपास के शहरों में घोषणा कि गयी थी ,कि जोभी इब्ने तय्यमा कि किताब " मिन्हाज अस सुन्नाह " पर विश्वास करेगा तो उसे क़त्ल किया जाये और उसकी संपत्ति जब्त की जाएगी 
ثم نودي بدمشق وغيرها من كان على عقيدة ابن تيمية حل ماله ودمه 
Mirat al-Janan, Volume 2 page 248:

2-तकफीर का कारण
देखा गया है कि ,जब कोई खुद को बहुत बड़ा विद्वान समझने लगता है ,तो उसमे घमंड आ जाता है ,और वह दूसरों का मजाक उड़ाने लगता है ,यही बात कुरान ने इन आयतों में बताई है,मुसलमानों को इसे जरुर समझना चाहिए .
"क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो , खुद को बड़ा पवित्र होने का दम भरते हैं ,लेकिन अल्लाह जिसे चाहे पवित्रता प्रदान करता है " 
सूरा -निसा 4 :49 
 यह लोग समझते हैं कि यही बुनियाद पर हैं ,सुन लो यह बिलकुल झूठे है इनपर शैतान छा गया है "सूरा- मुजादिला 58 :18 -19 
"हे ईमान वालो कोई गिरोह दूसरे गिरोह का मजाक नहीं उडाये ,हो सकता है वह उन से भी अच्छे हों "सूरा -हुजुरात 49 :11 
3-मौलवियों कि चालाकी 
जादातर मुसलमान अरबी भाषा में निष्णात नहीं होते हैं . और मौलवी कुरान कि आयतों का जो भी अर्थ करदेते हैं मुसलमां उसी पर यकीं कर लेते हैं . इसी तरकीब से मौलवी मुसलमानों को जहाँ चाहे भिड़ा देते हैं .,जैसा इस हदीस में है
अब्दुल्लाह इब्न उमर ने कहा कि हजरत उमर खारजियों को दुनिया कि सबसे ख़राब मखलूक कहते थे , और कहते थे यह लोग पहले जो आयतें काफिरों के लिए कही गयी थीं ,उनको ईमान वालों के लिए लागु कर देते हैं ."
باب ‏ ‏قتل ‏ ‏الخوارج ‏ ‏والملحدين ‏ ‏بعد إقامة الحجة عليهم ‏ ‏وقول الله تعالى ‏
وما كان الله ليضل قوما بعد إذ هداهم حتى يبين لهم ما يتقون ‏‏وكان ‏ ‏ابن عمر ‏ ‏يراهم شرار خلق الله ‏ ‏وقال إنهم انطلقوا إلى آيات نزلت في الكفار فجعلوها على المؤمنين
Sahih Bukhari, Chapter of Killing the Khawarjites and Mulhideen, Volume No. 6, Page No. 2539]

और इसीलिए यह आयत नाजिल हुई थी .
ऐसा नहीं हो सकता कि अल्लाह लोगों को मार्ग दिखाने के बाद फिर से पथभ्रष्ट कर दे ,जबकि उनको पता हो कि उनको किस से बचना चाहिए .सूरा -तौबा 9 :115 
4-रसूल की भविष्यवाणी 


रसूल को मुसलमानों के इस स्वभाव का पता था ,कि यह लोग आगे चल कर फालतू बातों पर एक दुसरे का खून बहायेंगे .इसी लिए हदीस के कहा है
उकबा बिन आमिर ने कहा ,एक बार जब रसूल उहद के शहीदों के जनाजे की नमाज पढ़ चुके तो बोले मैंने तुम्हें कौसर का झरना और दुनिया के खजानों की चाभियाँ अता कर दी हैं .मुझे इस बात का डर नहीं है की तुम मेरे बाद अल्लाह के साथ किसी को शरीक करोगे ,लेकिन मुझे यह डर है की तुम नाहक की बात पर एक दुसरे का खून बहाओगे "


أن النبي ‏ ‏صلى الله عليه وسلم ‏ ‏خرج يوما فصلى على أهل ‏ ‏أحد ‏ ‏صلاته على الميت ثم انصرف إلى المنبر فقال ‏ ‏إني ‏ ‏فرط ‏ ‏لكم وأنا شهيد عليكم وإني والله لأنظر إلى حوضي الآن وإني أعطيت مفاتيح خزائن الأرض ‏ ‏أو مفاتيح الأرض ‏ ‏وإني والله ما أخاف عليكم أن تشركوا بعدي ولكن أخاف عليكم أن تنافسوا فيها 
Sahih Bukhari-Volume 2, Book 23, Number 428: 
5-रसूल की नसीहत 


जो मौलवी किसी को काफ़िर या मुशरिक कहकर झूठा आरोप लगाते हैं उनके बारे में यह हदीस में यह कहा है
"अनस बिन मलिक ने कहा कि रसूल ने इन तीन बातों से बचने को कहा है ,किसी ऐसे व्यक्ति का क़त्ल करना जो कलमा पढ़ता हो ,चाहे वह कैसा भी गुनाहगार हो ,किसी को काफ़िर कहना और किसी को इस्लाम से खारिज बताना .रसूल ने कहा कि यही इमान की बुनियाद है .


‏ ‏عن ‏ ‏أنس بن مالك ‏ ‏قال ‏
قال رسول الله ‏ ‏صلى الله عليه وسلم ‏ ‏ثلاث من ‏ ‏أصل ‏ ‏الإيمان ‏ ‏الكف ‏ ‏عمن قال لا إله إلا الله ولا نكفره بذنب ولا نخرجه من الإسلام بعمل والجهاد ماض منذ بعثني الله إلى أن يقاتل آخر أمتي ‏ ‏الدجال ‏ ‏لا يبطله ‏ ‏جور ‏ ‏جائر ‏ ‏ولا عدل عادل والإيمان بالأقدار 
Sunnan Abu Dawud, Volume No. 2, Hadith # 2170]
कुरान में भी कहा गया है ,
हे ईमान वालो जब तुम बाहर निकलो तो ध्यान से देख लो , और जो कोई तुम्हें सलाम करे तो ,उस से यह नहीं कहो ,कि तू मोमिन नहीं है " 
सूरा - निसा 4 :94 
6-झूठा आरोप लगाने का नतीजा 
यदि कोई किसी पर काफ़िर या मुशरिक होने का मिथ्या आरोप लगता है तो उसकी सारी इबादत का फल छिन जाता है ,
अबू हुजैफा इब्न यमामा ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति कुरान कि इतनी तिलावत करे कि उसका चेहरा ऐसा नूरानी हो जाये कि वह दूर से ही पहचान लिया जाये ,लेकिन उसकी यह सारी विशेषता उसी समय छिन जाएगी जब वह पडौसी के पीठ पीछे उसकी निंदा करेगा ,या उसपर हथियार उठाएगा , या मोमिन को मुशरिक बताएगा "


أن حذيفة يعني ابن اليمان رضي الله عنه حدثه قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلّم «إن مما أتخوف عليكم رجل قرأ القرآن حتى إذا رؤيت بهجته عليه وكان رداؤه الإسلام اعتراه إلى ما شاء الله انسلخ منه ونبذه وراء ظهره وسعى على جاره بالسيف ورماه بالشرك» قال قلت يانبي الله أيهما أولى بالشرك المرمي أو الرامي ؟ قال «بل الرامي»
إسناد جيد


Sahih, Tahqiq Nasir Albani, Volume 001, Page No. 200, Hadith Number 81
Silsilat al-ahadith al-sahihah - Albani Volume 007-A, Page No. 605, Hadith Number 3201
7-शांतिपूर्ण समाधान 
यदि कोई मुल्ला मौलवी किसी पर काफ़िर और मुशरिक होने का आरोप लगाता है ,और आपस में विवाद पैदा करता है ,तो इस हदीस में एकही शांति पूर्ण उपाय बताया गया है , के वह किसी के बहकाने में न आयें .
उबैदुल्लाह इब्न उमर ने कहा कि मेरा एक पडौसी कहता है कि मैं शिर्क करता हूँ , उमर ने कहा तुम कलमा पढो ,पडौस का शक दूर हो जायेगा .
عن عبيد الله بن عمر عن نافع أن رجلا قال لإبن عمر أن لي جارا يشهد علي بالشرك فقال قل لا إله إلا الله تكذبه
Imam Ibn Asakir in Tibyan al Kadhib al Muftari, Page No. 373] 
जकारिया नायक किस तरह के कुतर्कों से लोगों में विवाद करता है उसका प्रमाण देने के लिए यह विडियो देखिये
http://www.youtube.com/watch?v=CS2lB07Ve9s
बड़े दुर्भाग्य की बात है कि आज भी इमाम बुखारी जैसे लोग मुसलमानों के ठेकेदार बने हुए हैं , और अपने निजी स्वार्थों के लिए मुसलमानों को किसी न किसी पार्टी को वोट देने का फतवा देते रहते हैं .इसी तरह सलमान खुर्शीद मुसलमानों का हमदर्द होने का ढोंग करके ,उनके वोटों से राहुल विंची उर्फ़ "गंदी " को जीवन भर के किये प्रधानमंत्री बनाना चाहता है .और मुसलमानों को हमेशा के लिए उसका मुहताज बनाना चाहता है .
मेरा सभी मुस्लिम युवा पीढ़ी के लोगों को सलाह है कि , वह ऐसे स्वार्थी मुल्लों और नेताओं के चक्कर में न फसें और खुले दिमाग से देश की मुख्यधारा में शामिल हों .और किसी की कठपुतली नहीं बनें .

http://www.ahlus-sunna.com/index.php?option=com_content&view=article&id=82&Itemid=14

बाइबिल कुरआन एक सामान !

सत्‍यवादी   प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय


ईश्वर और अल्लाह एक सामान हैं , इसका कोई प्रमाण नहीं है .लेकिन बाइबिल और कुरान की शिक्षा की तुलना करने पर यह बात पूरी तरह से सिद्ध हो जाती है कि बाइबिल का खुदा (God ) और कुरान का अल्लाह एक ही है .
मुस्लिम विद्वान् कहते हैं कि कुरान अल्लाह की किताब है ,जो अल्लाह ने अपने रसूल मुहम्मद के ऊपर नाजिल कि थी .लेकिन यदि हम कुरान और बाइबिल की शिक्षा और कहानियों को ध्यान से पढ़ें तो उनमे काफी समानता मिलती है .इस बात को सभी मानते हैं कि बाइबिल कुरान से काफी पुरानी है .बाइबिल के दो भाग हैं , पुराना नियम और नया नियम .पुराने नियम को यहूदी "तनख תנך" कहते हैं ,इसमे 39 किताबें शामिल हैं .पुराना नियम करीब 535 ई .पू में सकलित हो चूका था .और नए नियम में 27 किताबें शामिल हैं ,जो सन 66 संकलित हो चुकी थी .और यूरोप के अलावा अरब में भी प्रचलित थीं .इस्लाम के अनुसार पुराने नियम में तौरेत और जबूर आती हैं ,और नए नियम को इंजील कहा जाता है .अरब के लोग इन किताबों से अच्छी तरह परिचित थे .कुरान की पहली आयत सन 610 में उतरी थी ,और मुहम्मद की मौत सन 632 तक कुरान की आयतें उतरती ( बनती )रहीं .जिनका सन 644 में खलीफा उस्मान बिन अफ्फान ने संकलन किया था .
आज की कुरान में कोई मौलिकता (Originality ) नहीं दिखाई देती है ,सब बाइबिल से ली गयी हैं .यद्यपि किसी भाषा के टेक्स्ट को दूसरी भाषा में ज्यों का त्यों अनुवाद करना असंभव होता है ,लेकिन उनके भावार्थ में समानता दिखाई मिल जाती है . यही बात कुरान और बाइबिल के बारे में लागु होती है .दौनों के विचारों में असाधारण समानता से सिद्ध होता है ,कि मुहम्मद ने कुरान की रचना बाइबिल से प्रेरणा लेकर की थी .सिफ कुछ थोड़ी सी बातें ऐसी थी ,जो मुहम्मद ,और अरब लोगों से सम्बंधित है .यहाँ पर कुछ उदहारण दिए जा रहे हैं ,जिन से पता चलता है कुरान ऊपर से नहीं उतरी ,बल्कि नीचे ही बैठकर बाइबिल से मसाला लेकर बनायी होगी .और हमें कहना ही पड़ेगा "God और अल्लाह एक ही काम " क्यों ,आप ही  .देखिये 
 1-औरतों का हिस्सा पुरुषों से आधा होगा 
कुरान -"एक पुरुष का हिस्सा दो औरतों के हिस्से के बराबर होगा "सूरा -निसा 4 :11 
बाइबिल -यदि उनकी आयु 20 साल से अधि हो तो ,पुरुषों के लिए 20 शेकेल और औरतों के लिए 10 शेकेल ठहराए जाएँ " लैव्य व्यवस्था .27 :5 
2-माहवारी के समय औरतों से दूर रहो 
कुरान -"वह औरतों की माहवारी के बारे में पूछते हैं ,तो कह दो यह तो नापाकी है ,तो औरतों की माहवारी के समय उनसे अलग रहो "
सूरा -बकरा 2 :222 
बाइबिल -"जब कोई स्त्री ऋतुमती हो ,तो वह सात दिनों तक अशुद्ध मानी जाये .और जो कोई भी उसे छुए वह भी अशुद्ध माना जाये "
लैव्य व्यवस्था -15 :19 
3-औरतें खुद को छुपा कर रखें 
कुरान -"हे नबी ईमान वाली औरतों से कहदो कि जब वह घर से बहार निकलें तो ,अपने ऊपर चादर के पल्लू लटका लिया करें "
सूरा -अहजाब 33 :59 
बाइबिल -स्त्री के लिए उचित है कि वह आधीनता का चिन्ह ओढ़नी अपने सर पर रख कर बाहर निकलें " 1 कुरिन्थियों 11 :11 
4-अल्लाह गुमराह करता है 
कुरान -शैतान ने कहा ,हे रब जैसा तूने मुझे बहकाया है ,उसी तरह में छल करके लोगों को बहकाऊँगा " सूरा -अल हिज्र 15 :39 
"उन लोगों के दिलों में बीमारी थी ,अल्लाह ने उनकी बीमारी और बढा दी "सूरा -बकरा 2 :10 
बाइबिल -फिर खुदा ने उनकी आँखें अंधी और दिल कठोर बना दिए ,जिस से वह न तो आँखों से देख सकें और न मन से कुछ समझ सकें "
यूहन्ना -12 :40 
"यदि हमारी बुद्धि पर परदा पड़ा हुआ है ,तो यह खुदा के कारण ही है .और संसार के ईश्वर ने लोगों की बुद्धि को अँधा कर दिया है "
2 कुरिन्थियों 4 : 3 -4 
5 -विधर्मियों को क़त्ल कर दो 
कुरान -"और उनको जहाँ पाओ क़त्ल कर दो और घरों से निकाल दो "सूरा -बकरा 2 :191 
"काफिरों को जहाँ पाओ ,पकड़ो और उनका वध कर दो "सूरा -निसा 4 :89 
"मुशरिकों को जहाँ पाओ क़त्ल कर दो ,उन्हें पकड़ो ,उन्हें घेरो ,उनकी जगह में घात लगा कर बैठे रहो "सूरा -तौबा 9 :5 
बाइबिल -"अगर पृथ्वी के एक छोर से दूरारे छोर तक दूसरे देवताओं के मानने वाले हो ,तो भी उनकी बात नहीं मानो,और न उनपर तरस खाना .न उन पर दया दिखाना .औं न उनको शरण देना .बल्कि उनकी खोज करके उनकी घात अवश्य करना .और उनका पता करके उनका तलवार से वध कर देना "व्यवस्था विवरण -13 :6 से 13 
"जोभी यहोवा की शरण को स्वीकार नहीं करें ,उनको क़त्ल कर दो ,चाहे उनकी संख्या कम हो ,या अधिक .और चाहे वह पुरुष हों अथवा स्त्रियाँ हों " 2 इतिहास 15 :13 
6-विधर्मी नरक में जलेंगे 
कुरान -मुनाफिकों का ठिकाना जहन्नम है ,और वह बुरा ठिकाना है "सूरा -तौबा 9 :73 
"काफिरों और मुनाफिकों ठिकाना जहन्नम है ,जहाँ वह पहुँच जायेंगे " सूरा -अत तहरीम 66 :9 
बाइबिल -जो पुत्र को नहीं मानता,उस पर परमेश्वर का क्रोध बना रहेगा " यूहन्ना 3 :37 
"फिर उन लोगों से कहा जायेगा ,हे श्रापित लोगो हमारे सामने से निकलो ,और इस अनंत आग में प्रवेश करो ,जो शैतान और उसके साथियों के लिए तय्यार की गयी है " मत्ती -25 :41 
7-विधर्मियों से दोस्ती नहीं करो 
कुरान -ईमान वालों को चाहिए कि वे काफिरों को अपना संरक्षक और मित्र न बनायें ,और जो ऐसा करता है उसका अल्लाह से कोई नाता नहीं रहेगा "
 सूरा -आले इमरान 3 :28 
बाइबिल -अविश्वासियों के साथ बराबर का व्यवहार नहीं करो ,इसलिए यातो तुम उनके बीच से निकलो ,या उनको अपने बीच से निकाल डालो .अन्धकार और ज्योति का क्या सम्बन्ध है ." 2 कुरिन्थियों 6 :14 से 17 
8-कलमा की प्रेरणा भी बाइबिल से 
मुसलमानों का मूलमंत्र या कलमा दो भागों से बना हुआ है जो इस प्रकार है" لَآ اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ مُحَمَّدٌ رَّسُوْلُ اللّٰهِؕ "
 "ला इलाह इल्लल्लाह -मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह "अर्थात नहीं हैं कोई इलाह मगर अल्लाह ,और मुहम्मद अल्लाह का रसूल है .कलामे दूसरा भाग मुहम्मद ने खुद जोड़ लिया था .जबकि पहला भाग बाइबिल में काफी पहले से मौजूद था .यहाँ पर मूल हिब्रू के साथ अरबी और अंगरेजी भी दिए जा रहे हैं .
Hear, O Israel,  the LORD our God— the LORD is ONE  -Deuteronium 6:4
"اسمع يا إسرائيل ، الرب إلهنا، رب واحد "
""शेमा इस्रायेल यहोवा इलोहेनु अदोनाय इहद "
"שְׁמַע, יִשְׂרָאֵל: יְהוָה אֱלֹהֵינוּ, יְהוָה אֶחָד "


He is the God , and there is no other god beside him.
"" हू एलोहीम व् लो इलोही लिदो "
"انه هو الله ، وليس هناك إله غيره بجانبه."
הוא האלוהים של כל בשר, ואין אלוהים לידו 
http://www.nabion.org/html/the_shema
इन सभी प्रमाणों से साफ सिद्ध हो जाता है कि मुहम्मद को कुरान बनाने कि प्रेरणा बाइबिल से मिली थी .बाकि बातें उसने अपनी तरफ से जोड़ दी थीं .क्योंकि दौनों में एक जैसी बातें दी गयी हैं .केवल इतना अंतर है कि यहूदी ऐसी अमानवीय बातों पर न तो अमल करते हैं और न दूसरों को मानने पर मजबूर करते हैं .इन थोड़े से यहूदियों ने हजारों अविष्कार किये है ,जिन से विश्व के सभी लोगों को लाभ हो रहा है .लेकिन दूसरी तरफ इतने मुसलमान हैं ,जो कुरान की इसी शिक्षा का पालन करते हुए विश्व का नाश करने पर तुले हुए है .इसी तरह मुट्ठी बार पारसियों ने देश की उन्नति के लिए जो किया है उसे सब जानते हैं .
अगर  बाइबिल की बुरी बातें छोड़ कर अच्छी बातें कुरान में लिख देता तो विश्व में सचमुच .शान्ति हो गयी होती 
नक़ल के साथ अकल होना भी जरुरी  है 


http://dwindlinginunbelief.blogspot.com/2008/07/things-on-which-bible-and-quran-agree.html

इस्लाम में फतवाशाही !


सत्‍यवादी   प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय


इस्लाम का शाब्दिक अर्थ शान्ति ,विनम्रता और इश्वर के प्रति समर्पण होता है .और लगभग सभी लोग यह बात जानते हैं .लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस्लाम का उद्देश्य लोगों का बोझ हलका करना और उन पर पड़े हुए अनावश्यक फंदों से आजाद करना भी है .जो कुरान की इन आयतों से साबित होता है .
1-इस्लाम का उद्देश्य 
"मुसलमान तो सिर्फ उस रसूल के पीछे चलते हैं ,जो उत्तम चीजों को वैध और निकृष्ट चीजों को अवैध ठहरता है .और दूर करता है उनसे उनका बोझ और गैर जरुरी फंदे जो उन पर पड़े हुए हैं " सूरा -अल आराफ 7 :157 
कुरान के इस स्पष्ट निर्देश के बावजूद अनेकों बार कुछ ऐसे ऐसे लोग पैदा हो जाते हैं जो ,इस्लाम के नाम पर अपनी मर्जी लोगों पर थोपते रहते है .जैसे कि यजीद ने अपनी निरंकुश हुकूमत को ही इस्लाम का असली रूप साबित करना चाहा था .और जिसका विरोध इमाम हुसैन ने अपनी शहादत से किया था .इसी तरह कुछ मुल्ले मौलवियों ने इस्लाम के नाम पर ऐसे ऐसे फतवे दिए हैं ,जिनका नैतिकता ,सदाचार और खुद इस्लाम की मूल भावना से दूर दूर का कोई सम्बन्ध नहीं है .दुर्भाग्य से आज भी ऐसी मानसिकता के लोग मौजूद हैं ,जो इस्लाम के ठेकदार बने हुए हैं .और अपनी गन्दी मानसिकता के चलते बेतुके फतवे देते रहते हैं .यह सिलसिला काफी पुराना है .यहाँ पर नए और पुराने फतवे दिए जा रहे हैं .
2-अजीब और बेतुका फतवा 


केले ,ककड़ी जैसे फलों से दूर रहें मुस्लिम महिलाएं !
यूरोप के एक मौलवी ने फतवा जारी कर मुस्लिम महिलाओं को ऐसे फलों और सब्जियों को छूने से मना किया है जो पुरुषों के जननांग का आभास देते हैं. मौलवी ने महिलाओं को यौन विचारों से दूर रहने के तहत यह फतवा जारी किया है .इजिप्ट की एक न्यूज वेव साईट ने बुधवार को उक्त मौलवी के फतवे का हवाला देते हुए यह जानकारी दी है . मौलवी ने किसी धार्मिक प्रकाशन में लिखे ल्र्ख में ऐसी बातें कही हैं ..उक्त मौलवी का नाम नहीं बताया गया है .उसके अनुसार महिलाओं को केले और ककड़ी के पास भी नहीं जाना चाहिए .यदि महिलायें इन खाद्य पदार्थों को खाना चाहें तो ,कोई तीसरा व्यक्ति ,जो उनका सम्बन्धी पुरुष जैसे उसका पति ,या पिता हो ,इन वस्तुओं को छोटे छोटे टुकड़ों में काट कर उन्हें दे .ऐसा फतवे में कहा है .उक्त मौलवी के अनुसार केला और ककड़ी पुरुष जननांग की तरह दिखते हैं .और इसलिए महिलायें उत्तेजित हो सकती हैं ..या उनके मन में सेक्स का विचार आ सकता है ..उक्त मौलवी ने यह भी कहा है कि,महिलाओं को गाजर ,तुरई जैसी सब्जियों से भी बचना चाहिए . 
( दैनिक जागरण -8 दिसंबर 2011 पेज 9 )
यह फतवा दिनांक 30 नवम्बर 2011 को जिस मौलवी ने जारी था ,उसका नाम "शेख यहरम अली " है .और यह फतवा मिस्र के जिस अखबार में छपा है .उसका अरबी में पूरा पेज दिया जा रहा है .ताकि मौलवियों की मानसिकता का अंदाजा लग सके .
3-अरबी में मूल फतवा 


شيخ يحرم على المرأة اكل الموز والخيار منعا للاستثارة الجنسية 
في فتوى شرعية غير مسبوقة، حرم شيخ دين يقيم في أوروبا على النساء ان يتناولن الخيار او الموز حتى لا تستثير المرأة جنسيا. 
وقال الشيخ ان المرأة إذا أرادت ان تأكل موزه فيجب ان يتم تقطيعها من قبل محرم كي لا تمسكها المرأة بحجمها الطبيعي. 
وتأتي فتوي الشيخ لأن الموز والخيار يشبهن العضو الذكري للرجل، وحرم أيضا الجزر والكوسا، واعتبرها ان هذه الخضراوات تقود المرأة إلى إطلاق العنان لمخيلتها وهي تأكل الموز، وترغب بممارسة الجنس مع رجل، معتبراً ان المرأة في هذه الحالة قد تسترسل في تخيلاتها وتشعر بالنشوة.
تاريخ اخر تحديث : 20:27 30/11/2011="


http://www.assawsana.com/portal/newsshow.aspx?id=58893


अभी आपने एक ऐसे मौलवी का बेतुका फतवा पढ़ा है ,जो अधिक विख्यात नहीं है .अब एक विश्वविख्यात मुस्लिम इमाम का फतवा देखिये जो बिलकुल ही विपरीत बात कहता है .फिर बताइए कौनसा फतवा सही है .यहाँ पर इसी विषय के बारे में सुन्नी इमाम इब्न कय्यीम के दो प्रमाणिक फतवे अंगरेजी में दिए जा रहे हैं .और हिंदी में उनका अनुवाद दिया गया है .असली अरबी फतवा भी अलग दिया है जो जे पी जी (J p g ) में है .


4- आदर्श चरित्र का नमूना 
रसूल से साथी जिहाद के दौरान कृत्रिम संभोग करते थे फतवे में कहा है "यदि कोई व्यक्ति लगातार वासनासे ग्रस्त हो ,और उसे अपनी पत्नी या कोई गुलाम औरत न मिले .या किसी कारण से शादी न कर सके और वासना से भर जाये ,या उसे कोई डर हो ,जैसे कैद हो जाना ,या वह यात्रा में हो या वह इतना कंगाल हो कि शादी न कर सके तो ,ऐसी दशा में उसे हस्त मैथुन की इजाजत है .इमाम ने कहा है कि जिहाद और यात्रा के समय रसूल के सहाबी यही करते थे "
Examples of morality
Companions of Muhammad masturbated during Jihad
"If a man is torn between continued desire or releasing it, and if this man does not have a wife or he has a slave-girl but he does not marry, then if a man is overwhelmed by desire, and he fears that he will suffer because of this (someone like a prisoner, or a traveller, or a pauper), then it is permissible for him to masturbate, and Ahmad (ibn Hanbal) on this. Furthermore, it is narrated that the Companions of the Prophet (s) used to masturbate while they were on military expeditions or travelling".
Bada'i al-Fuwa'id of Ibn Qayyim (Islamic scholar), page 129


a-तरबूज और ककड़ी 
Watermelons and Cucumbers
"यदि कोई पुरुष तरबूज में छेद करके ,या गुंधे हुए आटे में ,या चमड़े की खाल या किसी पुतले के साथ सम्भोग करता है तो ,वह भी उसी तरह हलाल है .और उसे भी हस्त मैथुन माना जायेगा ,जैसे जिहाद के समय हस्त मैथुन जायज और हलाल है ."
a-"If a man makes a hole in a watermelon, or a piece of dough, or a leather skin, or a statue, and has sex with it, then this is the same as what we have said about other types of masturbation [i.e., that it is halaal in the same circumstances given before, such as being on a journey]. In fact, it is easier than masturbating with one's hand".
"इसी तरह अगर किसी औरत के पास पति नहीं हो .और उसमे वासना की प्रबलता हो जाये .तो विद्वानों ने उसे अनुमति दी है ,कि वह औरत एक नर्म चमड़े के तुकडे को इस तरह से लपेटे जिसका आकार एक लिंग की तरह हो जाये .फिर उसे अन्दर घुसवा ले .वह औरत चाहे तो ककड़ी का भी प्रयोग कर सकती है .और वासना शांत कर सकती है "
b-"If a woman does not have a husband, and her lust becomes strong, then some of our scholars say: It is permissible for the woman to take an akranbij, which is a piece of leather worked until it becomes shaped like a penis, and insert it in herself. She may also use a cucumber".
Bada'i al-Fuwa'id of Ibn Qayyim (Islamic scholar), page 129
प्रमाण के लिए "बिदा अल फवाईद بداءع الفواءد" की मूल हदीस देखिये .
http://www.answering-ansar.org/answers/mutah/bida_alfawaid_p129.jpg


Sunni Imam Abu Bakar al-Kashani (d. 587 H) records in his authority work 'Badaye al-Sanae' Volume 2 page 216:


5-इमाम इब्न कय्यीम का परिचय 


इनका पूरा नाम "इमाम शमशुद्दीन अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद इब्न अबी बकर इब्न साद अल दमिश्की था شمس الدين محمد بن أبي بكر بن أيوب ،ابن القيم الجوزية ابن القيم‎"यह हम्बली फिरके से सम्बंधित थे.इनका जन्म इस्लामी महीने सफ़र की 7 वीं तारीख को सन 691 हिजरी तदानुसार 4 फरवरी सन 1292 को दमिश्क के गाँव इजारा में हुआ था .और मृत्यु सन 1350 में हुई थी .इब्न कय्यीम एक प्रसिद्ध सुन्नी विद्वान् ,फकीह ,फिलोसफ़र ,और धर्म शाश्त्री भी थे . इसलिए इनके फतवों पर शक करने का कोई सवाल ही नहीं उठता .सभी प्रमाणिक और विश्वसनीय हैं .
6-कुतर्कियों से सावधान 


आज भी चालाक मुल्ले मौलवी अपने कुतर्कों और बेतुकी दलीलों के सहारे मुसलमानों को गुमराह करते रहते हैं .और लोग उन्हीं की बातों सही मान लेते हैं .कुरान में ऐसे लोगों से बचने को कहा है .कुरान में कहा है ,
"तुम ऐसे लोगों को छोडो यह अपनी दलीलबाजियों और कुतर्कों के खेल में लगे रहें ,यहांतक इनकी उस दिन से भेंट हो जाये ,जिसका इनसे वादा किया गया है ." 
सूरा- अज जुखुरुफ़ 43 :83 
जो लोग लोग द्वेषभावना से ग्रस्त होकर हमारे ऊपर इस्लाम को बदनाम करने का आरोप लगाते हैं . उनको चाहिए कि वह इन दोनों परस्पर विरोधी फतवों को ध्यान से पढ़ें .और बताएं कि इस्लाम को कौन बदनाम और बर्बाद कर रहा है ? क्या फतवे सिर्फ औरतों के लिए ही दिए जाते हैं .क्या मुस्लिम औरतें ककड़ी ,खीरा,गाजर .मुली .या केला नहीं खाएं और खरीदें ?क्या इन मौलवियों को मुस्लिम औरतों के चरित्र पर कोई शक है ?


किसी ने सही कहा है " नीम काजी खतरये ईमान "


http: //ajareresalat.forum5.info/t150-dirty-sunni-fatwas-explicit-content

Monday, February 27, 2012

क्या सच में "आजादी बिना खड़क बिना ढाल" के मिली ? ..

..
अभिषेक  पांडेय  प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय

कृपया निम्न तथ्यों को बहुत ही ध्यान से तथा मनन करते हुए पढ़िये:-
1. 1942
के भारत छोड़ोआन्दोलन को ब्रिटिश सरकार कुछ ही हफ्तों में कुचल कर रख देती है।
2. 1945
में ब्रिटेन विश्वयुद्ध में विजयीदेश के रुप में उभरता है।
3.
ब्रिटेन न केवल इम्फाल-कोहिमा सीमा पर आजाद हिन्द फौज को पराजित करता है, बल्कि जापानी सेना को बर्मा से भी निकाल बाहर करता है।
4.
इतना ही नहीं, ब्रिटेन और भी आगे बढ़कर सिंगापुर तक को वापस अपने कब्जे में लेता है।
5.
जाहिर है, इतना खून-पसीना ब्रिटेन भारत को आजाद करनेके लिए तो नहीं ही बहा रहा है। अर्थात् उसका भारत से लेकर सिंगापुर तक अभी जमे रहने का इरादा है।
6.
फिर 1945 से 1946 के बीच ऐसा कौन-सा चमत्कार होता है कि ब्रिटेन हड़बड़ी में भारत छोड़ने का निर्णय ले लेता है?
हमारे शिक्षण संस्थानों में आधुनिक भारत का जो इतिहास पढ़ाया जाता है, उसके पन्नों में सम्भवतः इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिलेगा। हम अपनी ओर से भी इसका उत्तर जानने की कोशिश नहीं करते - क्योंकि हम बचपन से ही सुनते आये हैं-े दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल। इससे आगे हम और कुछ जानना नहीं चाहते।
(
प्रसंगवश- 1922 में असहयोग आन्दोलन को जारी रखने पर जो आजादी मिलती, उसका पूरा श्रेय गाँधीजी को जाता। मगर चौरी-चौरामें हिंसाहोते ही उन्होंने अपना अहिंसात्मकआन्दोलन वापस ले लिया, जबकि उस वक्त अँग्रेज घुटने टेकने ही वाले थे! दरअसल गाँधीजी सिद्धान्तव्यवहारमें अन्तर नहीं रखने वाले महापुरूष हैं, इसलिए उन्होंने यह फैसला लिया। हालाँकि एक दूसरा रास्ता भी था- कि गाँधीजीस्वयं अपने आप कोइस आन्दोलन से अलग करते हुए इसकी कमान किसी और को सौंप देते। मगर यहाँ अहिंसा का सिद्धान्तभारी पड़ जाता है- देश की आजादीपर।)
यहाँ हम 1945-46 के घटनाक्रमों पर एक निगाह डालेंगे और उसचमत्कारका पता लगायेंगे, जिसके कारण और भी सैकड़ों वर्षों तक भारत में जमे रहने की ईच्छा रखने वाले अँग्रेजों को जल्दीबाजी में फैसला बदलकर भारत से जाना पड़ा।
(
प्रसंगवश- जरा अँग्रेजों द्वारा भारत में किये गयेनिर्माणोंपर नजर डालें- दिल्ली के संसद भवनसे लेकर अण्डमान केसेल्यूलर जेलतक- हर निर्माण 500 से 1000 वर्षों तक कायम रहने एवं इस्तेमाल में लाये जाने के काबिल है!)
***
लालकिले के कोर्ट-मार्शल के खिलाफ देश के नागरिकों ने जो उग्र प्रदर्शन किये, उससे साबित हो गया कि जनता की सहानुभूति आजाद हिन्द सैनिकों के साथ है।
इस पर भारतीय सेना के जवान दुविधा में पड़ जाते हैं।
फटी वर्दी पहने, आधा पेट भोजन किये, बुखार से तपते, बैलगाड़ियों में सामान ढोते और मामूली बन्दूक हाथों में लिये बहादूरी के साथ भारत माँ की आजादी के लिएलड़ने वाले आजाद हिन्द सैनिकों को हराकर एवं बन्दी बनाकर लाने वाले ये भारतीय जवान ही तो थे, जो महान ब्रिटिश सम्राज्यवाद की रक्षा के लिएलड़ रहे थे! अगर ये जवान सही थे, तो देश की जनता गलत है; और अगर देश की जनता सही है, तो फिर ये जवान गलत थे! दोनों ही सही नहीं हो सकते।
सेना के भारतीय जवानों की इस दुविधा ने आत्मग्लानि का रुप लिया, फिर अपराधबोध का और फिर यह सब कुछ बगावत के लावे के रुप में फूटकर बाहर आने लगा।
फरवरी 1946 में, जबकि लालकिले में मुकदमा चल ही रहा था, रॉयल इण्डियन नेवी की एक हड़ताल बगावत में रुपान्तरित हो जाती है।* कराची से मुम्बई तक और विशाखापत्तनम से कोलकाता तक जलजहाजों को आग के हवाले कर दिया जाता है। देश भर में भारतीय जवान ब्रिटिश अधिकारियों के आदेशों को मानने से इनकार कर देते हैं। मद्रास और पुणे में तो खुली बगावत होती है। इसके बाद जबलपुर में बगावत होती है, जिसे दो हफ्तों में दबाया जा सका। 45 का कोर्ट-मार्शल करना पड़ता है।
यानि लालकिले में चल रहा आजाद हिन्द सैनिकों का कोर्ट-मार्श देश के सभी नागरिकों को तो उद्वेलित करता ही है, सेना के भारतीय जवानों की प्रसिद्ध राजभक्तिकी नींव को भी हिला कर रख देता है।
जबकि भारत में ब्रिटिश राज की रीढ़ सेना की यह राजभक्तिही है!
***
बिल्कुल इसी चीज की कल्पना नेताजी ने की थी. जब (मार्च’44 में) वे आजाद हिन्द सेना लेकर इम्फाल-कोहिमा सीमा पर पहुँचे थे। उनका आव्हान था- जैसे ही भारत की मुक्ति सेना भारत की सीमा पर पहुँचे, देश के अन्दर भारतीय नागरिक आन्दोलित हो जायें और ब्रिटिश सेना के भारतीय जवान बगावत कर दें।
इतना तो नेताजी भी जानते होंगे कि-
1.
सिर्फ तीस-चालीस हजार सैनिकों की एक सेना के बल पर दिल्ली तक नहीं पहुँचा जा सकता, और
2.
जापानी सेना की पहलीमंशा है- अमेरिका द्वारा बनवायी जा रही (आसाम तथा बर्मा के जंगलों से होते हुए चीन तक जानेवाली) लीडो रोडको नष्ट करना; भारत की आजादी उसकी दूसरीमंशा है।
ऐसे में, नेताजी को अगर भरोसा था, तो भारत के अन्दर नागरिकों के आन्दोलनएवं सैनिकों की बगावतपर। ...मगर दुर्भाग्य, कि उस वक्त देश में न आन्दोलन हुआ और न ही बगावत।
इसके भी कारण हैं।
पहला कारण, सरकार ने प्रेस पर पाबन्दी लगा दी थी और यह प्रचार (प्रोपागण्डा) फैलाया था कि जापानियों ने भारत पर आक्रमण किया है। सो, सेना के ज्यादातर भारतीय जवानों की यही धारणा थी।
दूसरा कारण, फॉरवर्ड ब्लॉक के कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था, अतः आम जनता के बीच इस बात का प्रचार नहीं हो सका कि इम्फाल-कोहिमा सीमा पर जापानी सैनिक नेताजी के नेतृत्व में युद्ध कर रहे हैं।
तीसरा कारण, भारतीय जवानों का मनोबल बनाये रखने के लिए ब्रिटिश सरकार ने नामी-गिरामी भारतीयों को सेना में कमीशन देना शुरु कर दिया था। इस क्रम में महान हिन्दी लेखक सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्सयायन 'अज्ञेय' भी 1943 से 46 तक सेना में रहे और वे ब्रिटिश सेना की ओर से भारतीय जवानों का मनोबल बढ़ाने सीमा पर पहुँचे थे। (ऐसे और भी भारतीय रहे होंगे।)
चौथा कारण, भारत का प्रभावशाली राजनीतिक दल काँग्रेस पार्टी गाँधीजी की अहिंसाके रास्ते आजादी पाने का हिमायती था, उसने नेताजी के समर्थन में जनता को लेकर कोई आन्दोलन शुरु नहीं किया। (ब्रिटिश सेना में बगावत की तो खैर काँग्रेस पार्टी कल्पना ही नहीं कर सकती थी!- ऐसी कल्पना नेताजी-जैसे तेजस्वी नायक के बस की बात है। ...जबकि दुनिया जानती थी कि इन भारतीय जवानोंकी राजभक्तिके बल पर ही अँग्रेज न केवल भारत पर, बल्कि आधी दुनिया पर राज कर रहे हैं।)
पाँचवे कारण के रुप में प्रसंगवश यह भी जान लिया जाय कि भारत के दूसरे प्रभावशाली राजनीतिक दल भारत की कम्यूनिस्ट पार्टी ने ब्रिटिश सरकार का साथ देते हुए आजाद हिन्द फौज को जापान की 'कठपुतली सेना' (पपेट आर्मी) घोषित कर रखा था। नेताजी के लिए भी अशोभनीय शब्द तथा कार्टून का इस्तेमाल उन्होंने किया था।
***
खैर, जो आन्दोलन एवं बगावत 1944 में नहीं हुआ, वह डेढ़-दो साल बाद होता है और लन्दन में राजमुकुट यह महसूस करता है कि भारतीय सैनिकों की जिसराजभक्तिके बल पर वे आधी दुनिया पर राज कर रहे हैं, उस राजभक्तिका क्षरण शुरू हो गया है... और अब भारत से अँग्रेजों के निकल आने में ही भलाई है।
वर्ना जिस प्रकार शाही भारतीय नौसेना के सैनिकों ने बन्दरगाहों पर खड़े जहाजों में आग लगाई है, उससे तो अँग्रेजों का भारत से सकुशल निकल पाना ही एक दिन असम्भव हो जायेगा... और भारत में रह रहे सारे अँग्रेज एक दिन मौत के घाट उतार दिये जायेंगे।
लन्दन में सत्ता-हस्तांतरणकी योजना बनती है। भारत को तीन भौगोलिक तथा दो धार्मिक हिस्सों में बाँटकर इसे सदा के लिए शारीर-मानसिक रूप से अपाहिज बनाने की कुटिल चाल चली जाती है। और भी बहुत-सी शर्तें अँग्रेज जाते-जाते भारतीयों पर लादना चाहते हैं। (ऐसी ही एक शर्त के अनुसार रेलवे का एक कर्मचारी आज तक वेतन ले रहा है, जबकि उसका पोता पेन्शन पाता है!) इनके लिए जरूरी है कि सामने वाले पक्ष को भावनात्मक रूप से कमजोर बनाया जाय।

लेडी एडविना माउण्टबेटन के चरित्र को देखते हुए बर्मा के गवर्नर लॉर्ड माउण्टबेटन को भारत का अन्तिम वायसराय बनाने का निर्णय लिया जाता है- लॉर्ड वावेल के स्थान पर। एटली की यह चाल काम कर जाती है। विधुर नेहरूजी को लेडी एडविना अपने प्रेमपाश में बाँधने में सफल रहती हैं और लॉर्ड माउण्टबेटन के लिए उनसे शर्तें मनवाना आसान हो जाता है!
(
लेखकद्वय लैरी कॉलिन्स और डोमेनिक लेपियरे द्वारा भारत की आजादी पर रचित प्रसिद्ध पुस्तक फ्रीडम एट मिडनाईटमें एटली की इस चाल को रेखांकित किया गया है।)
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बचपन से ही हमारे दिमाग में यह धारणा बैठा दी गयी है कि गाँधीजी की अहिंसात्मक नीतियों सेहमें आजादी मिली है। इस धारणा को पोंछकर दूसरी धारणा दिमाग में बैठाना कि नेताजी और आजाद हिन्द फौज की सैन्य गतिविधियों के कारणहमें आजादी मिली- जरा मुश्किल काम है। अतः नीचे खुद अँग्रेजों के ही नजरिये पर आधारित कुछ उदाहरण प्रस्तुत किये जा रहे हैं, जिन्हें याद रखने पर शायद नयी धारणा को दिमाग में बैठाने में मदद मिले-
***
सबसे पहले, माईकल एडवर्ड के शब्दों में ब्रिटिश राज के अन्तिम दिनों का आकलन:
भारत सरकार ने आजाद हिन्द सैनिकों पर मुकदमा चलाकर भारतीय सेना के मनोबल को मजबूत बनाने की आशा की थी। इसने उल्टे अशांति पैदा कर दी- जवानों के मन में कुछ-कुछ शर्मिन्दगी पैदा होने लगी कि उन्होंने ब्रिटिश का साथ दिया। अगर बोस और उनके आदमी सही थे- जैसाकि सारे देश ने माना कि वे सही थे भी- तो भारतीय सेना के भारतीय जरूर गलत थे। भारत सरकार को धीरे-धीरे यह दीखने लगा कि ब्रिटिश राज की रीढ़- भारतीय सेना- अब भरोसे के लायक नहीं रही। सुभाष बोस का भूत, हैमलेट के पिता की तरह, लालकिले (जहाँ आजाद हिन्द सैनिकों पर मुकदमा चला) के कंगूरों पर चलने-फिरने लगा, और उनकी अचानक विराट बन गयी छवि ने उन बैठकों को बुरी तरह भयाक्रान्त कर दिया, जिनसे आजादी का रास्ता प्रशस्त होना था।
***
अब देखें कि ब्रिटिश संसद में जब विपक्षी सदस्य प्रश्न पूछते हैं कि ब्रिटेन भारत को क्यों छोड़ रहा है, तब प्रधानमंत्री एटली क्या जवाब देते हैं।
प्रधानमंत्री एटली का जवाब दो विन्दुओं में आता है कि आखिर क्यों ब्रिटेन भारत को छोड़ रहा है-
1.
भारतीय मर्सिनरी (पैसों के बदले काम करने वाली- पेशेवर) सेना ब्रिटिश राजमुकुट के प्रति वफादार नहीं रही, और
2.
इंग्लैण्ड इस स्थिति में नहीं है कि वह अपनी(स्‍वयं की सेना को इतने बड़े पैमाने पर संगठित एवं सुसज्जित कर सके कि वह भारत पर नियंत्रण रख सके।
***
यही लॉर्ड एटली 1956 में जब भारत यात्रा पर आते हैं, तब वे पश्चिम बंगाल के राज्यपाल निवास में दो दिनों के लिए ठहरते हैं। कोलकाता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश चीफ जस्टिस पी.बी. चक्रवर्ती कार्यवाहक राज्यपाल हैं। वे लिखते हैं:
“...
उनसे मेरी उन वास्तविक विन्दुओं पर लम्बी बातचीत होती है, जिनके चलते अँग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा। मेरा उनसे सीधा प्रश्न था कि गाँधीजी का "भारत छोड़ोआन्दोलन कुछ समय पहले ही दबा दिया गया था और 1947 में ऐसी कोई मजबूर करने वाली स्थिति पैदा नहीं हुई थी, जो अँग्रेजों को जल्दीबाजी में भारत छोड़ने को विवश करे, फिर उन्हें क्यों (भारत) छोड़ना पड़ा? उत्तर में एटली कई कारण गिनाते हैं, जिनमें प्रमुख है नेताजी की सैन्य गतिविधियों के परिणामस्वरुप भारतीय थलसेना एवं जलसेना के सैनिकों में आया ब्रिटिश राजमुकुट के प्रति राजभक्ति में क्षरण। वार्तालाप के अन्त में मैंने एटली से पूछा कि अँग्रेजों के भारत छोड़ने के निर्णय के पीछे गाँधीजी का कहाँ तक प्रभाव रहा? यह प्रश्न सुनकर एटली के होंठ हिकारत भरी मुस्कान से संकुचित हो गये जब वे धीरे से इन शब्दों को चबाते हुए बोले, “न्यू---!” ”
(
श्री चक्रवर्ती ने इस बातचीत का जिक्र उस पत्र में किया है, जो उन्होंने आर.सी. मजूमदार की पुस्तकहिस्ट्री ऑव बेंगालके प्रकाशक को लिखा था।
***
निष्कर्ष के रुप में यह कहा जा सकता है कि:-
1.
अँग्रेजों के भारत छोड़ने के हालाँकि कई कारण थे, मगर प्रमुख कारण यह था कि भारतीय थलसेना एवं जलसेना के सैनिकों के मन में ब्रिटिश राजमुकुट के प्रति राजभक्ति में कमी आ गयी थी और- बिना राजभक्त भारतीय सैनिकों के- सिर्फ अँग्रेज सैनिकों के बल पर सारे भारत को नियंत्रित करना ब्रिटेन के लिए सम्भव नहीं था।
2.
सैनिकों के मन में राजभक्ति में जो कमी आयी थी, उसके कारण थे- नेताजी का सैन्य अभियान, लालकिले में चला आजाद हिन्द सैनिकों पर मुकदमा और इन सैनिकों के प्रति भारतीय जनता की सहानुभूति।
3.
अँग्रेजों के भारत छोड़कर जाने के पीछे गाँधीजी या काँग्रेस की अहिंसात्मक नीतियों का योगदान नहीं के बराबर रहा।

सो, अगली बार आप भी दे दी हमें आजादी ...वाला गीत गाने से पहले जरा पुनर्विचार कर लीजियेगा। -