एकजुट होकर लड़ो..... वरना मिटा दिए जाओगे................ !!
लड़कियों और इश्क-मुश्क का चक्कर छोड़ कर ये बातें जानिए ... क्योंकि ये बातें हर हिन्दू को जाननी बेहद जरुरी है....... तभी आप अपने अस्तित्व की रक्षा कर पाओगे ....!!
1985 में अलकायदा की स्थापना के बाद भारत समेत सारे भारत में मुस्लिम जिहाद के एक नये दौर की शुरूआत हुई ।
1986 में कश्मीर में जिहादियों द्वारा हिन्दुओं पर एक तरफा हमले शुरू किए गए । जिहादियों ने "एक को मारो, एक का बलात्कार करो और सैंकड़ों को भगाओ" की नीति अपनाई । मुस्लिमों ने "मस्जिदों से लाउडस्पीकरों द्वारा" जिहाद का प्रचार प्रसार किया । "उर्दू प्रेस के द्वारा भी" जिहाद का प्रचार प्रसार किया गया । जिहाद शुरू होते ही हिन्दुओं के पड़ोसी मुसलमान ही उनके शत्रु बन गए । मुसलमानों ने संगठित होकर हिन्दुओं को निशाना बनाना शुरू किया ।
जिहादियों की भीड़ इकट्ठी होकर हिन्दुओं के घर में जाती., उन पर हर तरह के जुल्म करने के बाद उनको दूध पीते बच्चों सहित हलाल कर देती जबकि समाचार दिया जाता पाकिस्तानी आतंकवादियों ने ये सब कर दिया । लेकिन सच्चाई यह थी कि हिन्दुओं को हलाल करने वाले उनके पड़ोसी मुसलमान ही होते थे। जो हिन्दुओं को कत्ल करने के बाद अपने-अपने घरों में रहते थे ।
कश्मीर के अधिकतर पुलिसकर्मी व महबूबामुक्ती जैसे नेता इस्लाम के नाम पर इन जिहादियों का हर तरह से सहयोग करते थे अभी भी कर रहे हैं । कई बार तो बाप व भाईयों के हाथ-पैर बांध कर उनके परिवार की "औरतों की इज्जत लूटकर" उसके फोटो खींच कर बाप और भाईयों को ये सब करते हुए दिखाया जाता था । बाद में ये तसवीरें हिन्दुओं के घरों के सामने चिपका दी जाती थी । परिणाम जो भी हिन्दू इन तस्वीरों को देखता वही अपने परिवार की औरतों की इज्जत की रक्षा की खातिर भाग खड़ा होता क्योंकि उसके पास रास्ता भी क्या था सिवाय हथियार उठाने या भागने के । हिन्दुओं ने हथियार उठाने के बजाए भागना बेहतर समझा । क्योंकि अगर वो हथियार उठाते तो ये सेकुलर नेता उन्हें अल्पसंख्यकों या मुसलमानों का शत्रु बताकर जेल में डाल देते अथवा फांसी पर लटका देते ।
मुझे बहुत कोफ़्त होती है कि ... इन धर्मनिर्पेक्षता की बात करने वालों पर.... जो हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों के बारे में देश-दुनिया को जागरूक करने वालों को "आतंकवादी कहते हैं", "साम्प्रदायिक कहते हैं" और इन सब जुल्मों-सितम को राजनीति बताते है । ये सब दुष्प्रचार सिर्फ जिहादी ही नहीं बल्कि जिहादियों के साथ-साथ इनके ठेकेदार धर्म निरपेक्षता के पर्दे में छुपे ये राक्षस भी करते हैं जो अपनों का खून बहता देखकर भी अपनी आत्मा की आवाज नहीं सुनते । न केवल इन जिहादी आतंकवादियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ते हैं अपितु सरकार भी बनाते हैं और सत्ता में आने के बाद जिहादियों के परिवारों का जिम्मा उठाते हैं । उनको हर तरह की मदद की जिम्मेवारी लेते हैं जिहादी आतंकवादियों के परिवारों को आर्थिक सहायता देते हैं । हिन्दुओं को अपने घरों से भागने पर मजबूर करते हैं । जिहादियों के विरूद्ध "सेना द्वारा कार्यवाही" शुरू होने पर जिहादियों के "मानवाधिकारों का रोना" रोते हैं मतलब हर हाल में जिहादियों का साथ देते हैं ।
जरा आप खुद ही सोचो कि जो गुलाम नबी आजाद माननीय न्यायालय से ""फांसी की सजा प्राप्त अफजल"" को निर्दोष कहता है क्या वो हिन्दुओं द्वारा मार गिराए गए जिहादी को आतंकवादी मान सकता है ??????????जागो हिन्दू......................... जागो.............................. !एकजुट होकर लड़ो..... वरना मिटा दिए जाओगे................ !!
जय महाकाल...!!!
1985 में अलकायदा की स्थापना के बाद भारत समेत सारे भारत में मुस्लिम जिहाद के एक नये दौर की शुरूआत हुई ।
1986 में कश्मीर में जिहादियों द्वारा हिन्दुओं पर एक तरफा हमले शुरू किए गए । जिहादियों ने "एक को मारो, एक का बलात्कार करो और सैंकड़ों को भगाओ" की नीति अपनाई । मुस्लिमों ने "मस्जिदों से लाउडस्पीकरों द्वारा" जिहाद का प्रचार प्रसार किया । "उर्दू प्रेस के द्वारा भी" जिहाद का प्रचार प्रसार किया गया । जिहाद शुरू होते ही हिन्दुओं के पड़ोसी मुसलमान ही उनके शत्रु बन गए । मुसलमानों ने संगठित होकर हिन्दुओं को निशाना बनाना शुरू किया ।
जिहादियों की भीड़ इकट्ठी होकर हिन्दुओं के घर में जाती., उन पर हर तरह के जुल्म करने के बाद उनको दूध पीते बच्चों सहित हलाल कर देती जबकि समाचार दिया जाता पाकिस्तानी आतंकवादियों ने ये सब कर दिया । लेकिन सच्चाई यह थी कि हिन्दुओं को हलाल करने वाले उनके पड़ोसी मुसलमान ही होते थे। जो हिन्दुओं को कत्ल करने के बाद अपने-अपने घरों में रहते थे ।
कश्मीर के अधिकतर पुलिसकर्मी व महबूबामुक्ती जैसे नेता इस्लाम के नाम पर इन जिहादियों का हर तरह से सहयोग करते थे अभी भी कर रहे हैं । कई बार तो बाप व भाईयों के हाथ-पैर बांध कर उनके परिवार की "औरतों की इज्जत लूटकर" उसके फोटो खींच कर बाप और भाईयों को ये सब करते हुए दिखाया जाता था । बाद में ये तसवीरें हिन्दुओं के घरों के सामने चिपका दी जाती थी । परिणाम जो भी हिन्दू इन तस्वीरों को देखता वही अपने परिवार की औरतों की इज्जत की रक्षा की खातिर भाग खड़ा होता क्योंकि उसके पास रास्ता भी क्या था सिवाय हथियार उठाने या भागने के । हिन्दुओं ने हथियार उठाने के बजाए भागना बेहतर समझा । क्योंकि अगर वो हथियार उठाते तो ये सेकुलर नेता उन्हें अल्पसंख्यकों या मुसलमानों का शत्रु बताकर जेल में डाल देते अथवा फांसी पर लटका देते ।
मुझे बहुत कोफ़्त होती है कि ... इन धर्मनिर्पेक्षता की बात करने वालों पर.... जो हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों के बारे में देश-दुनिया को जागरूक करने वालों को "आतंकवादी कहते हैं", "साम्प्रदायिक कहते हैं" और इन सब जुल्मों-सितम को राजनीति बताते है । ये सब दुष्प्रचार सिर्फ जिहादी ही नहीं बल्कि जिहादियों के साथ-साथ इनके ठेकेदार धर्म निरपेक्षता के पर्दे में छुपे ये राक्षस भी करते हैं जो अपनों का खून बहता देखकर भी अपनी आत्मा की आवाज नहीं सुनते । न केवल इन जिहादी आतंकवादियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ते हैं अपितु सरकार भी बनाते हैं और सत्ता में आने के बाद जिहादियों के परिवारों का जिम्मा उठाते हैं । उनको हर तरह की मदद की जिम्मेवारी लेते हैं जिहादी आतंकवादियों के परिवारों को आर्थिक सहायता देते हैं । हिन्दुओं को अपने घरों से भागने पर मजबूर करते हैं । जिहादियों के विरूद्ध "सेना द्वारा कार्यवाही" शुरू होने पर जिहादियों के "मानवाधिकारों का रोना" रोते हैं मतलब हर हाल में जिहादियों का साथ देते हैं ।
जरा आप खुद ही सोचो कि जो गुलाम नबी आजाद माननीय न्यायालय से ""फांसी की सजा प्राप्त अफजल"" को निर्दोष कहता है क्या वो हिन्दुओं द्वारा मार गिराए गए जिहादी को आतंकवादी मान सकता है ??????????जागो हिन्दू......................... जागो.............................. !एकजुट होकर लड़ो..... वरना मिटा दिए जाओगे................ !!
जय महाकाल...!!!
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