सत्यवादी प्रस्तुति: डॉ0 संतोष राय
जकारिया नायक जैसे लोग हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन कराने के लिए इस्लाम का सिर्फ एक ही पक्ष पेश करते है .और दूसरे पक्ष को छुपा लेते हैं .और भोलेभाले लोग इस्लाम को ठीक से जाने बिना अपना धर्म छोड़कर मुसलमान बन जाते हैं ,और पछताते हैं ,क्योंकि इन लोगों को इस्लाम की दोहरी नीति के बारे में पता नहीं होता है .यह लोग कहते हैं कि इस्लाम में जबरदस्ती नहीं है ,और हरेक को अपनी पसंद का धर्म बदलने का अधिकार है .यह बातें सिर्फ हिन्दुओं और गैर मुस्लिमों को रिझाने के लिए कही जाती हैं ,ताकि वह इस्लाम के जाल में फंस जाएँ .
हम भाग्यशाली है कि हमारा जन्म भारत में हुआ है ,जहां इस्लामी हुकूमत नहीं है .और वह लोग सौभाग्यशाली है ,जो अभी तक सेकुलरवाद और इस्लाम के प्रभाव से बचे हुए हैं .और वह लोग तारीफ़ करने के योग्य हैं ,जो निडर होकर इस्लामी विचारों विरोध करते हैं .और जिनकी किस्मत फूट जाती है वह जाने अनजाने इस्लाम की खाई में गिर जाते है .जहाँ से निकलना संभव नहीं है .क्योकि इस्लाम में गिर तो सकते हैं ,लेकिन बहार नहीं निकल सकते .इस्लाम दुसरे धर्म के लोगों को अपना धर्म छोड़ने की अनुमति तो देता है ,लेकिन फिर से अपने धर्म में आने ,या अपनी पसंद के किसी और धर्म में जाने की .इजाजत नहीं देता है.
इस्लाम छोड़कर वापस अपने धर्म में आने को इस्लाम में "इरतदादارتداد" Apostasy या धर्म भ्रष्टता कहा जाता है .और ऐसा करने वाले को "मुरतदمُرتد" कहा जाता है .कुरान में ऐसे व्यक्ति के लिए कठोर सजा का प्रावधान है .जैसे -
"अगर तुमने ईमान लाने के बाद इरतदाद किया तो हम तुम्हें कठोर यातनाएं देंगे "सूरा -तौबा 9 :66
"लोग चाहते हैं कि तुम फिर से उन्ही की तरह वैसे ही काफ़िर हो जाओ जैसे वह खुद है ,तो ऐसे लोग जहाँ मिलें उन्हें पकड़ो और उनका वध कर दो .और कोई उनकी सहायता नहीं करे "सूरा -निसा 4 :89
"क्योंकि जिसने रसूल का आदेश माना .समझ लो उसने अल्लाह का आदेश मान लिया "सूरा -निसा 4 :80
वैसे तो मुसलमानों के कई फिरके हैं लेकिन सबके विचार एक जैसे ही है ,.सभी जहरीले और घातक है .ऊनके बारे में फिर कभी दिया जायेगा .इस लेख में शिया लोगों के विचार दिए जा रहे है .शिया लोगों की मुख्य हदीस "अल काफी الكافي"है जिसका संकलन "अबू जाफर मुहम्मद बिन याकूब कुल्यानी अल राजी "ने किया था .इसकी मौत सन 939 में हुई थी .इसकी हदीस के संकलन की किताब का नाम "मिरातुल उकूल"مراة اكعقول कहा जाता है .
इसी किताब में इस्लाम छोड़कर वापस अपने धर्म में आने ,जैसे अपराधों के लिए जो सजाएँ बताई है उनका कुछ नमूना दिया जा रहा है .इस से आपको इस्लाम की उदारता का पता चल जायेगा .
1-मर्दों के लिए इस्लाम त्यागने की सजा
"मुहम्मद बिन मुस्लिम ने कहा की मैंने अबू जाफर से "मुर्तद" ( इस्लाम त्यागने वाला ) के बारे में पूछा तो ,उन्होंने कहा जो भी इस्लाम से हट जाये ,और उस बात पर अविश्वास करे जो अल्लाह ने रसूल पर नाजिल की है ,तो ऐसे व्यक्ति के लिए पश्चाताप के लिए कोई रास्ता नहीं है .उसे क़त्ल करना अनिवार्य है .और उसकी पत्नी की किसी मुसलमान से शादी करा देना चाहिए .और उसकी विरासत की संपत्ति और बच्चे मुसलमानों में बाँट देना चाहिए "
Punishment for a Male Apostate
عَلِيُّ بْنُ إِبْرَاهِيمَ عَنْ أَبِيهِ وَ عِدَّةٌ مِنْ أَصْحَابِنَا عَنْ سَهْلِ بْنِ زِيَادٍ جَمِيعاً عَنِ ابْنِ مَحْبُوبٍ عَنِ الْعَلَاءِ بْنِ رَزِينٍ عَنْ مُحَمَّدِ بْنِ مُسْلِمٍ قَالَ سَأَلْتُ أَبَا جَعْفَرٍ ع عَنِ الْمُرْتَدِّ فَقَالَ مَنْ رَغِبَ عَنِ الْإِسْلَامِ وَ كَفَرَ بِمَا أَنْزَلَ اللَّهُ عَلَى مُحَمَّدٍ ص بَعْدَ إِسْلَامِهِ فَلَا تَوْبَةَ لَهُ وَ قَدْ وَجَبَ قَتْلُهُ وَ بَانَتْ مِنْهُ امْرَأَتُهُ وَ يُقْسَمُ مَا تَرَكَ عَلَى وُلْدِهِ "
From Muhammad bin Muslim said: That I said Abu Ja`far about the apostate (murtad). So he said: “Whoever turns away from Islaam, and disbelieves in what Allaah has revealed to the Prophet after being a Muslim, there is no repentance for him, and it is waajib (obligatory) to kill him, and his wife becomes a wife of a believer muslim and his legacy and children should be sold and divided among the muslims "
Al-Kulayni, Al-Kaafi, vol. 7, pg. 256, hadeeth # 1
Mir’aat Al-`Uqool, vol. 23, pg. 396
2-ईसाई धर्म अपनाने की सजा
"अली बिन जाफर से उसके भाई अबी अल हसन कहा कि एक मुसलमान ईसाई बन गया है .तो हसन ने कहा उसे क़त्ल कर देना चाहिए .फिर अली ने पूछा कि अगर कोई इसाई मुसलमान हो जाये और फिर से ईसाई हो जाये तो काया करना चाहिए .हसन ने कहा पहले तो उस से तौबा करने को कहो ,अगर नहीं माने तो उसे क़त्ल कर दो .और उसकी पत्नी और संपत्ति मुसलमानों में बाँट दो "
Mir’aat Al-`Uqool, vol. 23, pg. 396
مُحَمَّدُ بْنُ يَحْيَى عَنِ الْعَمْرَكِيِّ بْنِ عَلِيٍّ النَّيْسَابُورِيِّ عَنْ عَلِيِّ بْنِ جَعْفَرٍ عَنْ أَخِيهِ أَبِي الْحَسَنِ ع قَالَ سَأَلْتُهُ عَنْ مُسْلِمٍ تَنَصَّرَ قَالَ يُقْتَلُ وَ لَا يُسْتَتَابُ قُلْتُ فَنَصْرَانِيٌّ أَسْلَمَ ثُمَّ ارْتَدَّ عَنِ الْإِسْلَامِ قَالَ يُسْتَتَابُ فَإِنْ رَجَعَ وَ إِلَّا قُتِلَ
From `Alee bin Ja`far from his brother Abee Al-Hasan said: I asked him about a Muslim who becomes a Christian. He said: “He (should be) killed, and no repentance from him” I said: “What about a Christian who becomes Muslim then Apostates from Islaam?” He said: “He is asked to repent. And if he returns (to Islaam that is okay), or otherwise he is killed and his wife and property should be given to muslims ”
Mir’aat Al-`Uqool, vol. 23, pg. 400
3-औरतों के लिए इस्लाम त्यागने की सजा
"गियास बिन इब्राहीम कहा कि जाफर बिन मुहम्मद ने अपने पिता अली से पूछा कि अगर कोई औरत इस्लाम त्याग दे तो , उसका क्या करना चाहिए .अली ने कहा उसे क़त्ल नहीं करो .बल्कि कैद करो फिर मुसलमानों के हाथ बेच डालो ."
Punishment for a Female Apostate:
وَ فِي رِوَايَةِ غِيَاثِ بْنِ إِبْرَاهِيمَ عَنْ جَعْفَرِ بْنِ مُحَمَّدٍ عَنْ أَبِيهِ ع أَنَّ عَلِيّاً ع قَالَ إِذَا ارْتَدَّتِ الْمَرْأَةُ عَنِ الْإِسْلَامِ لَمْ تُقْتَلْ وَ لَكِنْ تُحْبَسُ أَبَداً "
From Ghiyaath bin Ibraaheem from Ja`far bin Muhammad from his father That `Alee said: “When a woman apostates from Islaam, she is not killed, but she is imprisoned and sold to muslims"
Al-Sadooq, Man Laa YaHDuruh Al-Faqeeh, vol. 3, Baab Al-Irtidaad, pg. 150, hadeeth # 3549
4 -रसूल के विरुद्ध बोलने की सजा
" अम्मार बिन अल शबाती ने कहा कि मैंने अबा अब्दुल्लाह से सुना है कि तुम में से जो भी मुस्लिम इस्लाम का त्याग करे और मुहम्मद कि नबूवत से इंकार करेऔर झूठ बताये , तो उसका खून बहाना और क़त्ल करना जायज है .और जिस दिन तुम यह बात सुनो उस दिन से उसकी पत्नी उस से अलग कर दो .और तुम्हारे नेता को चाहिए कि अगर वह औरत तौबा नहीं करे तो उसे गुलाम बनाकर अपने लिए रख ले .और बाकी सम्पति बाँट दे "
Punishment for Talking Against the Prophet (صلى الله عليه وآله وسلم)
عِدَّةٌ مِنْ أَصْحَابِنَا عَنْ سَهْلِ بْنِ زِيَادٍ وَ عَلِيُّ بْنُ إِبْرَاهِيمَ عَنْ أَبِيهِ وَ مُحَمَّدُ بْنُ يَحْيَى عَنْ أَحْمَدَ بْنِ مُحَمَّدٍ جَمِيعاً عَنِ ابْنِ مَحْبُوبٍ عَنْ هِشَامِ بْنِ سَالِمٍ عَنْ عَمَّارٍ السَّابَاطِيِّ قَالَ سَمِعْتُ أَبَا عَبْدِ اللَّهِ ع يَقُولُ كُلُّ مُسْلِمٍ بَيْنَ مُسْلِمَيْنِ ارْتَدَّ عَنِ الْإِسْلَامِ وَ جَحَدَ مُحَمَّداً ص نُبُوَّتَهُ وَ كَذَّبَهُ فَإِنَّ دَمَهُ مُبَاحٌ لِكُلِّ مَنْ سَمِعَ ذَلِكَ مِنْهُ وَ امْرَأَتَهُ بَائِنَةٌ مِنْهُ يَوْمَ ارْتَدَّ فَلَا تَقْرَبْهُ وَ يُقْسَمُ مَالُهُ عَلَى وَرَثَتِهِ وَ تَعْتَدُّ امْرَأَتُهُ [بَعْدُ] عِدَّةَ الْمُتَوَفَّى عَنْهَا زَوْجُهَا وَ عَلَى الْإِمَامِ أَنْ يَقْتُلَهُ وَ لَا يَسْتَتِيبَهُ
From `Ammaar Al-SaabaaTee said: I hear Abaa `Abd Allaah he said: “Every Muslim amongst the Muslimeen who apostates from Islaam, and denies Muhammad prophecy and (call) him a liar. His blood is allowed (to kill) whoever hears that from him. And his wife baa’inah (?) from the day of apostasy, and she should not go near him. And his wealth is divided amongst his muslims and his wife invokes upon herself `iddah of the death of her husband. And it is upon Imaam (leader) that he kills him, and if she does not ask for repentance then enslave her for himself ”
Al-Kulayni, Al-Kaafi, vol. 7, pg. 257-258, hadeeth # 11
عَلِيُّ بْنُ إِبْرَاهِيمَ عَنْ أَبِيهِ عَنِ ابْنِ أَبِي عُمَيْرٍ عَنْ هِشَامِ بْنِ سَالِمٍ عَنْ أَبِي عَبْدِ اللَّهِ ع أَنَّهُ سَأَلَ عَمَّنْ شَتَمَ رَسُولَ اللَّهِ ص فَقَالَ يَقْتُلُهُ الْأَدْنَى فَالْأَدْنَى قَبْلَ أَنْ يَرْفَعَهُ إِلَى الْإِمَامِ "
From Hishaam bin Saalim from Abee `Abd Allaah That he was asked about one who abuses the Messenger of Allaah,So he said: “He is to be killed, for the lowest of the low (rebuke) before he is taken to the Imaam(leader)”
हिश्शाम बिन सालिम ने अबी अब्दुल्लाह से रसूल का अनादर करने की सजा के बारे में पूछा ,तो वह बोले ऐसा करने वाले को अपने सरदार के सामने पेश करके फटकारो और फिर उसे क़त्ल कर दो .यही उसकी न्यूनतम सजा है.
Mir’aat Al-`Uqool, vol. 23, pg. 400
5 -इमाम की दिव्यता से इंकार की सजा
"हिशाम बिन सलीम ने कहा कि मैंने अबा अब्दुलाह से सुना कि उन्होंने अपने साथियों से कहा कि जोभी अमीरुल मोमनीन अली बिन अबी तालिब की खिलाफत और उनकी दिव्यता से इंकार करे तो उसे पहले तौबा करने को कहो .और अगर वह तौबा नहीं करे तो उसे जिन्दा जला दिया जाये "
Punishment for Refusing Divinity of the Imaams (عليهم السلام)
Here is a SaHeeH hadeeth taken from Rijaal Al-Kashee, about the infamous `Abd Allaah bin Saba’.
حدثني محمد بن قولويه، قال حدثني سعد بن عبد الله، قال حدثنا يعقوب بن يزيد و محمد بن عيسى، عن ابن أبي عمير، عن هشام بن سالم، قال : سمعت أبا عبد الله (عليه السلام) يقول و هو يحدث أصحابه بحديث عبد الله بن سبإ و ما ادعى من الربوبية في أمير المؤمنين علي بن أبي طالب، فقال إنه لما ادعى ذلك فيه استتابه أمير المؤمنين (عليه السلام) فأبى أن يتوب فأحرقه بالنار. "
From Hishaam bin Saalim said: I heard from Abaa `Abd Allaah and he said: “And he narrated from his companions the narration of `Abd Allaah bin Sabaa’ and he called (to people) the lordship/divinity of Ameer Al-Mumineen `Alee bin Abee Taalib . So he said: That Ameer Al-Mu’mineen ordered him to repent, but he refused. Then Ali let him burn in fire."
Al-Kashee, Rijaal Al-Kashee, pg. 107, hadeeth # 17
6-दूसरे नबियों का आदर करने की सजा
"इब्न अबी याफूर ने कहा मैंने अबी अब्दुलाह को बताया कि" बजी " नामक व्यक्ति दावा करता है कि सभी नबी बराबर हैं .अब्दुल्लाह ने कहा अग्गर तुम यह बात खुद उस से सुनो तो उसे क़त्ल कर देना .यह हदीस कहने वाला कहता है कि मैंने ऐसी ही किया .और उस व्यक्ति के घर में आग लगा दी .जिस से वह मकान सहित जल कर मर गया "
Punishment for Respecting other Prophets
مُحَمَّدُ بْنُ يَحْيَى عَنْ أَحْمَدَ بْنِ مُحَمَّدٍ عَنِ ابْنِ فَضَّالٍ عَنْ حَمَّادِ بْنِ عُثْمَانَ عَنِ ابْنِ أَبِي يَعْفُورٍ قَالَ قُلْتُ لِأَبِي عَبْدِ اللَّهِ ع إِنَّ بَزِيعاً يَزْعُمُ أَنَّهُ نَبِيٌّ فَقَالَ إِنْ سَمِعْتَهُ يَقُولُ ذَلِكَ فَاقْتُلْهُ قَالَ فَجَلَسْتُ لَهُ غَيْرَ مَرَّةٍ فَلَمْ يُمْكِنِّي ذَلِكَ "
From Ibn Abee Ya`foor said: I said to Abee `Abd Allaah that Bazee` calims that all Prophets are equal .. So he said: “If you hear him saying that you (must) kill him”. He (the narrator) said: “I sat fire on his house and butnt him alive "
Al-Kulayni, Al-Kaafi, vol. 7, pg. 259, hadeeth # 22
मेरा उन इस्लाम के वकीलों ,हिमायतियों , ब्लोगरों और दलालों से सवाल है ,जो दावा करते हैं कि इस्लाम में कोई जबरदस्ती नहीं है .और इस्लाम एक उदार और शांतिप्रिय धर्म है .लेकिन वह इसका जवाब दें कि इस्लाम में वन वे ट्रेफिक क्यों है .लोग इस्लाम में आ तो सकते है लेकिन अपने धर्म में वापस क्यों नहीं जा सकते ?
हिन्दू लड़कियों मुस्लिम लड़कों से कभी मित्रता नहीं करना चाहिए .वर्ना वाही हालत होगी जो रीना राय और उमर अब्दुल्लाह की पत्नी पायल की हुई है .मुसलमानों की दोस्ती हमेशा घातक होती है . मेरा विशेषकर उन लड़कियों से अनुरोध है ,जो किसी झूठे प्रेम में फंस कर अपना धर्म छोड़ने का इरादा रखती हैं ,और इस्लाम कबूल करना चाहती हैं ,वह ऐसा करने पहले एक करोड़ बार सोच लें कि उनको सिवाय पछताने के कुछ नहीं मिलेगा .लोगों को पता होना चाहिए कि धर्म परिवर्तन के बारे में मुसलंमान दोहरी नीति अपनाते हैं .अगर कोई मुसलमान इस्लाम के अलावा कोई धर्म अपनाता है ,तो उसे क़त्ल कर देते हैं .यही कश्मीर ,में हुआ है .
इस विषय पर एक मुल्ले का भाषण सुनिए !
http://www.youtube.com/watch?v=DuRNk9eBNa0
धर्मपरिवर्तन अर्थात सर्वनाश .
http://www.revivingalislam.com/2011/01/punishment-for-apostate-in-islam.html
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