प्रस्तुतिः डॉ0 संतोष राय
भारत में गाय के गोबर से कागज बनाने के शोध् का श्रेय डॉ. अनुराधा नाम की एक युवती को जाता है। अनुराधा विशाखापट्टणम् की रहने वाली हैं। इन दिनों वह राजमुंद्री के एक महाविद्यालय में अध्यापन का काम कर रही है। आंध्र विश्वविद्यालय के प्रोपफेसर पुल्लाराव के मार्गदर्शन में अनुराध ने इकोनॉमिक्स ऑफ एजुकेशन में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की है। अनुराधा जी का कहना है कि जब विशाखापट्टणम् में उनकी भेंट डॉ. मदनमोहन बजाज से हुई, तो वे गाय के संबंध् में सोचने लगीं। डॉ. बजाज ने अपने शाकाहार संबंधी व्याख्यान में भारतीय गायों की दुर्दशा का अत्यंत ही भावुक शब्दों में वर्णन किया। उन्होंने कहा कि जब तक गाय के साथ अर्थव्यवस्था नहीं जुड़ती, गाय का देश में उद्धार नहीं हो सकता है।( ---- )छोड़ दिया गया भाग गाय के गोबर में फाइबर होने के कारण डॉ. अनुरोधा ने सोचा कि यह कागज का कच्चा माल हो सकता है। फ़िर क्या था, उन्होंने गाय के गोबर के साथ अन्य रसायन और कुछ दूसरी वस्तुओं का मिश्रण किया। लगातार प्रयोग करने के बाद वे कार्ड बोर्ड बनाने में सफल हो गईं, लेकिन उनका उद्देश्य तो लिखने का कागज बनाना था, इसलिए वह अपने प्रयोग करती रहीं।
पहले पहल कागज टूट जाता था, लेकिन उसे जोड़ने का मार्ग भी उन्होंने खोज लिया। अब बाजार में उपलब्ध् कागज जैसा उनका कागज बनकर तैयार हो गया। अब तक तो वे सारा काम हाथ से कर रही हैं। छोटी-बड़ी मशीनें जुटाकर उसका प्रयोग किया, लेकिन अब वे सोच रही हैं कि उसकी मशीनें मुझे मिल जाएँ, तो उसका उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जा सकता है। अनुराधा का कहना था कि पहला प्रयोग सपफल होते ही नमूना मैंने डॉ. बजाज को भिजवा दिया। डॉ. अनुराधा का कहना है कि यदि काम बड़े पैमाने पर हुआ, तो एक दिन गाय का गोबर सौ रुपये किलो बिकेगा। इस क्रांति के पश्चात् गऊ माता देश की अर्थव्यवस्था का मजबूत स्तंभ बन जाएगी। देश और दुनिया इस उपयोगी पशु को मरते दम तक अपने सीने से लगा कर रखेगी। कागज के लिए जब गोबर का उपयोग होने लगेगा, उस दिन सारा देश कहेगा यह गोबर नहीं वास्तव में गो वर है, जो हमें समृद्ध और संपन्न बनाएगा।
नई दिल्ली से प्रकाशित राजधर्म' के फरवरी 2009 ई. के अंक में प्रकाशित लेख से साभार
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