सत्ता के नशे में पागल हुए कांग्रेसी दरिन्दे
रामलीला मैदान में रात के अँधेरे में साधुओं , बालकों, बुजुर्गों ,महिलाओं
व अन्य देशभक्त नागरिकों पर किये गए भयानक बर्बर अत्याचारों पर शर्मिन्दा होने की बजाय
- दिग्विजय , जनार्दन ,मनीष तिवारी जैसे अपने गद्दार व हिजड़े भांडों के माध्यम से
अनर्गल प्रलाप करने में लगे हुए हैं .
रावण ,हिरन्यकश्यप , और कंस शिशुपाल का इतिहास ज्यादा पुराना हो गया हो तो
इन कमीने कांग्रेस्सियो को इनका ही इतिहास याद दिलाना चाहिए
सत्ता के नशे में चूर इंदिरा गांधी ने सन १९६६ में
गोरक्षा के लिए प्रदर्शन करते हुए हजारों साधुओं पर गोलियां चलवा कर
सैकड़ों साधुओं को मरवा डाला था .उस दिन गोपाष्टमी थी .लेकिन इन बेकसूरों की हाय से ही
उसको उसके पापों की सजा के रूप में दर्दनाक मौत भुगतनी पड़ी साधुओं पर चली हर गोली का स्वाद उसे चखना ही पड़ा .
उस दिन भी अष्टमी थी
१९८४ में ५००० बेक़सूर सिक्खों को इन दरिन्दे कांग्रेस्सियों ने ज़िंदा जला डाला था .
लेकिन सत्ता के नशे में चूर राजीव गाँधी ने वोट क्लब पर अनर्गल प्रलाप करते हुए कहा -
जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती तो हिलती ही है . लेकिन इन बेक़सूर सिक्खों की हाय ही थी की
की राजीव गाँधी को भी दर्दनाक मौत नसीब हुई .शरीर के टुकड़े बटोरने पड़े
उस दिन भी अष्टमी थी
देश के लिए भ्रष्ट सत्ता से टकराने वाले हर देशभक्त को रामलीला मैदान में हुए दमन से घबराने की आवश्यकता नहीं है
परमात्मा हर जनरल डायर के लिए कोई ऊधम सिंह पैदा करता ही है ,
इन कांग्रेस्सियों की लंका इनके पापों से ही जलेगी और अवश्य जलेगी
हाँ लंका तक पहुँचने से पहले हर हनुमान को समुद्र पार करते समय कुछ परिक्षाए देनी ही पड़ती हैं .
और वो हम अवश्य देंगे
रामलीला मैदान में रात के अँधेरे में साधुओं , बालकों, बुजुर्गों ,महिलाओं
व अन्य देशभक्त नागरिकों पर किये गए भयानक बर्बर अत्याचारों पर शर्मिन्दा होने की बजाय
- दिग्विजय , जनार्दन ,मनीष तिवारी जैसे अपने गद्दार व हिजड़े भांडों के माध्यम से
अनर्गल प्रलाप करने में लगे हुए हैं .
रावण ,हिरन्यकश्यप , और कंस शिशुपाल का इतिहास ज्यादा पुराना हो गया हो तो
इन कमीने कांग्रेस्सियो को इनका ही इतिहास याद दिलाना चाहिए
सत्ता के नशे में चूर इंदिरा गांधी ने सन १९६६ में
गोरक्षा के लिए प्रदर्शन करते हुए हजारों साधुओं पर गोलियां चलवा कर
सैकड़ों साधुओं को मरवा डाला था .उस दिन गोपाष्टमी थी .लेकिन इन बेकसूरों की हाय से ही
उसको उसके पापों की सजा के रूप में दर्दनाक मौत भुगतनी पड़ी साधुओं पर चली हर गोली का स्वाद उसे चखना ही पड़ा .
उस दिन भी अष्टमी थी
१९८४ में ५००० बेक़सूर सिक्खों को इन दरिन्दे कांग्रेस्सियों ने ज़िंदा जला डाला था .
लेकिन सत्ता के नशे में चूर राजीव गाँधी ने वोट क्लब पर अनर्गल प्रलाप करते हुए कहा -
जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती तो हिलती ही है . लेकिन इन बेक़सूर सिक्खों की हाय ही थी की
की राजीव गाँधी को भी दर्दनाक मौत नसीब हुई .शरीर के टुकड़े बटोरने पड़े
उस दिन भी अष्टमी थी
देश के लिए भ्रष्ट सत्ता से टकराने वाले हर देशभक्त को रामलीला मैदान में हुए दमन से घबराने की आवश्यकता नहीं है
परमात्मा हर जनरल डायर के लिए कोई ऊधम सिंह पैदा करता ही है ,
इन कांग्रेस्सियों की लंका इनके पापों से ही जलेगी और अवश्य जलेगी
हाँ लंका तक पहुँचने से पहले हर हनुमान को समुद्र पार करते समय कुछ परिक्षाए देनी ही पड़ती हैं .
और वो हम अवश्य देंगे
No comments:
Post a Comment