Friday, June 3, 2011

भ्रष्टाचार के खिलाफ



 तरुण विजय

प्रस्‍तुति-डॉ0 संतोष राय


बाबा रामदेव के योग, तप और जनकल्याण की भावना से सृजित औषधियों ने भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा के प्रति सारी दुनिया को आकृष्ट किया है। उन्होंने भ्रष्टाचार के विरुद्ध 4 जून से अनिश्चितकालीन उपवास की घोषणा की और कहा कि जब तक सरकार विदेशी बैंकों मे जमा काला धन वापस नहीं लाती, वह उपवास नहीं तोड़ेंगे। देश के इतिहास में यह पहला मौका था कि एक संन्यासी भारतमाता की व्यथा के समाधान के लिए सत्ता बल को अपने उपवास के नैतिक बल से चुनौती दे रहा है। 31 मई को बाबा रामदेव से मिलने तथा उनकी अगवानी करने भारत सरकार के तीन वरिष्ठ मत्री दिल्ली हवाई अड्डे पर पहुंचे तो समाचार जगत में सनसनी फैल गई। जो सन्यासी सरकार के भ्रष्टाचार के विरुद्ध खुलकर बोल रहा है, जिसके सामने कोई निजी राजनीतिक स्वार्थ नहीं है, जो अब तक देश की भूख, गरीबी और भ्रष्टाचार के विरुद्ध धर्म-शक्ति का उपयोग कर गैर राजनीतिक क्षेत्र में अप्रतिम प्रतिष्ठा और विश्वास अर्जित करता आ रहा है, उसके उपवास के सकल्प के आगे पहली बार सरकार हिलती नजर आ रही है। यही वजह रही कि वरिष्ठ केंद्रीय मत्री प्रणब मुखर्जी सहित अन्य तीन मत्री उस साधु का स्वागत करने हवाई अड्डे पहुंचे ताकि उनका उपवास टाला जा सके, लेकिन बाबा रामदेव ने उपवास का सकल्प टाला नहीं और इस प्रकार देश के उन करोड़ों नागरिकों की लाज रख ली जो भ्रष्ट राजनीति एव प्रशासन के विरुद्ध आवाज उठाने को बेताब हैं।

केवल स्विटजरलैंड के बैंकों में भारत के भ्रष्ट कालाबाजारियों तथा नेताओं का एक लाख छत्तीस हजार करोड़ रुपये से ज्यादा धन जमा है। गत वर्ष मैं ज्यूरिख में स्विट्जरलैंड की ससदीय वित्त समिति की अध्यक्ष और वहा की शक्तिशाली राजनेता क्रिस्टा मार्कवाल्डर से मिला था। उन्होंने आश्चर्य जताया था कि स्विस सरकार की ओर से हर प्रकार के सहयोग के बावजूद भारत सरकार ज्यूरिख के बैंकों में जमा भारतीय काला धन वापस लेने के लिए कतई उत्सुक नहीं दिखती। उन्होंने कहा कि लोग मानते हैं कि हमारी अर्थव्यवस्था दुनिया के बेईमान राजनेताओं, उद्योगपतियों तथा अफसरों की काली कमाई से चलती है। हम अपने देश को बेईमानी की जन्नत नहीं बनाना चाहते। जर्मनी, अमेरिका जैसे देशों ने न केवल हमसे उनके देशों के लोगों के काले-खातों की जानकारी प्राप्त करने के लिए संधि की है बल्कि ऐसे लोगों के विरुद्ध कार्यवाही भी शुरू कर दी है। फिर भारत सरकार खामोश क्यों है?

भारत की संपदा की लूट का जो सिलसिला संप्रग सरकार में 2-जी, राष्ट्रमंडल खेल, रक्षा मत्रालय की योजनाओं, सड़क निर्माण तथा हसन अली जैसे शातिर सफेदपोश अपराधियों के मामले से सामने आया वह इस विराट भ्रष्टाचार-पर्वत के कंकड़-पत्थर भी नहीं है। प्राय: राजनेताओं के पास सैकड़ों करोड़ रुपये चुनाव के लिए जमा रहते है। देश की सत्ता के शीर्ष पर बैठे प्रमुख सचालक घोटालों की इस भयावह श्रृंखला की सिर्फ साधारण कड़िया कही जा सकती है। सवाल उठता है कि राजनीति से प्रशासन और न्यायपालिका से लेकर मीडिया घरानों तक में व्याप्त लाखों करोड़ रुपयों के भ्रष्टाचार के खिलाफ कौन आवाज उठाए? जहा अन्ना हजारे के लोकपाल बिल के लिए किए गए अनशन का लाभ हुआ और सामान्य जनता में हिम्मत जगी कि कोई तो ऐसी ताकत है जो सत्ता बल के सामने हिम्मत से खड़ी हो सकती है, वहीं अग्निवेश जैसे वामपथी किस्म के नेता द्वारा पवित्र अमरनाथ यात्रा को पाखंड बताना तथा अन्ना द्वारा उस पर खामोश रहना आम भारतीय के मन को आहत कर गया। साखहीन और आधारहीन शब्द विलासी नेताओं से घिरे अन्ना ने नरेंद्र मोदी की अपमानजनक आलोचना कर देश के सबसे ईमानदार नेता और प्रांतीय प्रशासन माने जाने जाने वाले गुजरात को ही नहीं, सारे देश को चकित किया तो लोकपाल के अंतर्गत प्रधानमत्री तथा मुख्य न्यायाधीश को लाने के सवाल पर गहरे आधारभूत मतभेद सामने आए।

बाबा रामदेव भारतीय धर्म, परंपरा, सस्कृति और माटी के परम आराध्य शात मानस वाले दृढ़ निश्चयी संन्यासी हैं, जो किसी प्रलोभन या सत्ता के दबाव में न झुकने वाले हैं और न ही उनके अग्निवेश जैसे साथी हैं, जो भारत की माटी से द्रोह कर सत्ता से वार्ता कर सकते हैं। एक सवाल यह भी उठता है कि क्या उन काले बाजारिए नेताओं का पैसा अभी तक स्विस या अन्य विदेशी बैंकों में जमा होगा, जो गत वर्ष से भारतीय राजनीति में विदेशी बैंकों से काला धन वापस लाने की जुंबिश से सतर्क हो गए होंगे? इसका उत्तर है-भले ही उन लोगों ने सावधानी बरतते हुए अपना काला धन वापस निकाल कर कहीं और 'पार्क' कर दिया हो, परन्तु स्विस सरकार से गत दस वषरें में उनके जारी या बद खातों में डाली गई और निकाली गई रकमों की पूरी जानकारी का पथ प्राप्त हो सकता है। उस स्थिति में ऐसे भारत-द्रोही काले बाजारियों के विरुद्ध पिछली जानकारी के आधार पर कार्रवाई हो सकती है।

दुर्भाग्य से संप्रग सरकार न केवल इस मामले में ढील बरतती रही है, जिस वजह से एक संन्यासी को आमरण अनशन पर बैठने के लिए मजबूर होना पड़ा, बल्कि प्रणब मुखर्जी ऐसा विधेयक ससद में ला रहे हैं जिसके अंतर्गत एक वर्ष पहले तक जिस व्यक्ति के खाते विदेशी बैंकों में थे, उसके विरुद्ध कार्रवाई ही नहीं की जा सकेगी। सरकार के इस पाखंड पर देशभक्त ईमानदार जनता की जोरदार चोट होनी चाहिए। यह समय आपसी मतभेद एव वैचारिक भिन्नताओं के रंग भुलाकर बाबा रामदेव की भारत-रक्षक मुहिम को सफल बनाने का है। सन्यासी के तप के सामने सत्ता को झुकना ही होगा।

[तरुण विजय: लेखक राज्यसभा के सदस्य है]

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