Friday, June 3, 2011

आतंक का मजबूत गढ़ कराची


राजीव शर्मा

प्रस्‍तुतिः डॉ0 संतोष राय

कराची एयरपोर्ट से लगभग दस किलोमीटर दूर पाकिस्तानी वायुसेना के फैसल बेस पर पिछले दिनों आतंकियों ने जो दुस्साहसिक हमला किया वह यह बताने के लिए पर्याप्त है कि इस देश में खतरा कितना बढ़ चुका है। इस हमले ने यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि क्या आतंकवादी अपने अंतिम मोर्चे अर्थात पाकिस्तानी सेना के उन ठिकानों पर हमला करने के करीब आ गए हैं जहां नाभिकीय हथियार रखे हुए हैं? कराची के फैसल एयर बेस पर हुए हमले ने यह दिखा दिया है कि तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान, जिसे पाकिस्तानी तालिबान के रूप में ज्यादा कुप्रतिष्ठा हासिल है, में न केवल ऐसा करने की ताकत, बल्कि दुस्साहस भी है और कोई भी लक्ष्य उसकी पहुंच से दूर नहीं है। कराची जल रहा है और पाकिस्तान लड़खड़ा रहा है। यह सब रातों रात नहीं हुआ है। आज जो कुछ हो रहा है उसका आधार धीरे-धीरे तैयार हुआ है। इस खतरे की चेतावनी के संकेत हमेशा नजर आते रहे, लेकिन पाकिस्तान के राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व ने या तो इनकी अनदेखी की या फिर अपनी निगाह दूसरी तरफ कर ली। ऐसा अंतिम संकेत 11 नवंबर 2010 को तब मिला था जब कराची के सीआइडी पुलिस मुख्यालय पर आतंकियों ने हमला किया था। पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर और वित्तीय राजधानी माने जाने वाले कराची में हुआ हमला यह बताता है कि जिहादियों का दुस्साहस बढ़ता जा रहा है और वे अब कहीं अधिक आसानी से इस तरह के हमले करने में समर्थ हैं। हिंसा का यह चक्र यह भी संकेत दे रहा है कि प्राय: सैन्य तंत्र द्वारा शासित यह नाभिकीय क्षमता वाला देश धीरे-धीरे, किंतु निरंतर गति से दरक रहा है। जहां तक कराची की बात है तो इसने अब एक ऐसे ठिकाने का रूप ले लिया है जहां आतंक, अपराध और राजनीतिक नेतृत्व का भ्रष्टाचार उबल रहा है। यहां हिंसा के जो रूप दिखाई दे रहे हैं वे वस्तुत: पूरे देश में असंतोष, अराजकता की एक बानगी हैं।
कराची में जातीय, वर्गीय हिंसा के साथ-साथ अपराधी गिरोहों के बीच हिंसा का लंबा इतिहास रहा है। सबसे पहले यहां उर्दू भाषी मुहाजिर और सिंधी भाषा के नाम पर एक-दूसरे के खून के प्यासे हुए, लेकिन यह बचे रहने और शहर में वर्चस्व स्थापित करने का संघर्ष अधिक था। इसके बाद जिया उल हक के शासनकाल में कराची शिया समुदाय के खिलाफ अभूतपूर्व हिंसा का गवाह बना। जिया उल हक पाकिस्तान को पूरी तरह से एक इस्लामिक देश बनाने के लिए व्याकुल थे। अपने अधिकार को चुनौती दे रहे शियाओं को सबक सिखाने के लिए जिया और पाकिस्तानी सेना ने सक्रिय रूप से सुन्नियों के समूहों को शियाओं के खिलाफ हिंसा के लिए उकसाया, जिन्होंने बिना कोई क्षण गंवाए शिया समुदाय को निशाना बनाना शुरू कर दिया। कराची दाऊद इब्राहीम और उसके साथियों द्वारा नियंत्रित अंतरराष्ट्रीय अपराध सिंडिकेट का भी गढ़ है। माफिया तत्व न केवल ड्रग्स के काले धंधे में लिप्त हैं, बल्कि मानव तस्करी से लेकर रियल इस्टेट का धंधा कर रहे हैं।
इन काले व्यवसायों में वर्चस्व को लेकर माफिया गिरोहों के बीच एक-दूसरे का खून बहाने की होड़ लगी रहती है। वर्गीय समूहों के लिए ये आपराधिक गिरोह अपने उद्देश्य पूरे करने के लिए हथियार की तरह हैं। कराची में जातीय हिंसा इसीलिए रुकने का नाम नहीं ले रही है, क्योंकि माफिया गिरोहों के जरिए अथाह पैसा जुटाया जा रहा है। कराची का यह रोग धीरे-धीरे पाकिस्तान के दूसरे शहरों तक पहुंचता जा रहा है। यह कहने में हर्ज नहीं कि कराची ने एक तरह से पूरे पाकिस्तान में जातियों और वर्गो की लड़ाई को आपराधिक स्वरूप प्रदान कर दिया है। सांप्रदायिक तत्वों और आपराधिक गिरोहों की इस साठगांठ ने भी अफगान जिहाद के दौरान आतंकवादी गुटों को फलने-फूलने का अवसर प्रदान किया। कराची की बिनोरी मस्जिद में आतंकियों के पहले जत्थे की नियुक्ति की गई, उन्हें जिहाद के लिए मानसिक रूप से तैयार किया गया और प्रशिक्षण दिया गया। अफगान जिहाद में भाग लेने के लिए पूरी दुनिया से कट्टर तत्वों ने कराची का रुख किया। कराची इसके साथ ही पाकिस्तान के अपने सामरिक औजारों का ठिकाना बन गया। ये औजार थे हरकत उल मुजाहिदीन और हरकत उल अंसार सरीखे आतंकी समूह।
आश्चर्य नहीं कि इस शहर का चयन ओसामा बिन लादेन ने अल कायदा के एक महत्वपूर्ण ठिकाने के रूप में किया। रम्जी यूसुफ ने यहां अल कायदा का एक सुरक्षित ठिकाना बनाया, जहां से अफगानिस्तान जाने वाले प्रशिक्षित आतंकियों की राह निकलती थी। यूसुफ ने ही न्यूयार्क पर पहला हमला तब किया था जब वह विस्फोटकों से भरा एक वाहन 1993 में व‌र्ल्ड ट्रेड सेंटर की पार्किग में ले जाने में सफल रहा। कराची ही वह शहर है जहां से आइएसआइ और पाकिस्तानी सेना ने अपनी अधिकांश भारत विरोधी गतिविधियां संचालित कीं। हरकत उल अंसार और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों ने आइएसआइ की कृपा से यहां मुक्त रूप से काम किया। लश्कर को आतंकी प्रशिक्षित करने के लिए सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं। डेविड हेडली ने भी यह खुलासा किया है कि वह मुंबई हमले को अंजाम देने के लिए कराची में आइएसआइ और पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर काम कर रहा था। पाकिस्तान के मीडिया ने यह भी खबर दी है कि कराची में तालिबान ने ऐसे स्कूल स्थापित किए हैं जहां छोटे बच्चों को बम बनाने और आत्मघाती हमले करने की ट्रेनिंग दी जाती है।
निश्चित रूप से कराची उस दुर्दशा की एक बानगी है जहां आज पाकिस्तान पहुंच चुका है। यहां का घटनाक्रम बता रहा है कि पाकिस्तान हिंसा और अस्थिरता के गंभीर खतरे के दायरे में आ चुका है। कराची जिस तरह जल रहा है उसे देखते हुए विश्व समुदाय को न केवल चेतना चाहिए, बल्कि पाकिस्तान की सेना और उसकी खुफिया एजेंसी पर लगाम लगाने के लिए एकजुट होना चाहिए।
[राजीव शर्मा: लेखक सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं]
साभारः दैनिक जागरण

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