अश्विनी कुमार
प्रस्तुति: डॉ0 संतोष राय
उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल (एसआईटी) के प्रमुख आर. के राघवन ने गोधरा कांड के बाद गुजरात में उपजे सांप्रदायिक दंगों में मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी की भूमिका को नकारते हुए अपनी रिपोर्ट में अहमदाबाद के कुख्यात गुलबर्ग सोसायटी हत्याकांड में उन्हें क्लीन चिट दे दी है। इस हत्याकांड में पूर्व सांसद एहसान जाफरी समेत कई लोगों की निर्मम तरीके से हत्या की गई थी। सांप्रदायिक उन्माद में भरे लोगों ने जिस प्रकार यह कांड किया था वह रौंगटे खड़े करने वाला था। श्री जाफरी की बेवा जाकिया जाफरी ने इस मामले में श्री मोदी समेत लगभग ५८ लोगों के खिलाफ याचिका दायर की थी। श्री मोदी को क्लीन चिट मिलने काअर्थ उनकी पार्टी यह निकाल रही है कि गुजरात दंगों में उनकी कोई भूमिका नहीं थी अब यह जांच से सिद्ध हो गया है।
बेशक श्री राघवन सीबीआई के पूर्व निदेशक रह चुके हैं और सबूतों के आधार पर उन्होंने जो अपनी रिपोर्ट पेश की है उस पर सन्देह करना उचित नहीं है। इस बारे में केवल अदालत ही कोई रुख अख्तियार कर सकती है और कानूनी दांवपेंचों के तहत पूरे मामले का जायजा ले सकती है।
मगर यह भी हकीकत है कि फरवरी २००२ में जब गुजरात जलना शुरू हुआ था तो मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी ही थे और केन्द्र में बैठे उन्हीं की पार्टी के प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनसे कहा था ·कि मोदी ·को राजधर्म का पालन करना चाहिए। इसके बावजूद मार्च के महीने में गुजरात जलता रहा और गुलबर्ग सोसायटी जैसे कांड होते रहे। इसलिए भाजपा यदि यह सोच रही है कि गुजरात विधानसभा के चुनाव दंगों के बाद दो बार जीतने वाले मोदी की कोई भूमिका राष्ट्रीय राजनीति में हो सकती है तो वह अपने बनाये संसार में ही जी रही है।
इस देश की जनता मोदी जैसे राजनीतिज्ञों की भूमिका को बखूबी जानती और समझती है। यह 1या बेवजह है कि जनसंघ को लोकसभा में १८२ सीटें पाने के लिए लालकृष्ण अडवानी को इन्तजार करना पड़ा? क्या यह सब भारतीय जनमानस की मानसिकता को नहीं बताता है? अगर केवल साप्प्रदायिक बंटवारे के आधार पर ही इस देश की राजनीति चलती तो आज हिन्दू महासभा का नामलेवा भी कोई क्यों नहीं है? अगर केवल साधु-सन्तों के नितान्त आदर्शों पर ही राजनीतिक धारा चलती तो फिर स्वामी करपात्री जी महाराज की राम राज्य परिषद कहां गायब हो गई है? पूरे भारत से मुस्लिम लीग क्यों उड़ गई? क्यों उत्तर प्रदेश के लोगों ने कांग्रेस को मुसलमानों के आरक्षण का राग अलापने की सजा दी? क्यों मोदी आज खुद को गुजरात में विकास पुरुष कहलाना पसन्द करते हैं? इसका मतलब साफ है कि राजनीति को भारत में धर्म के झंडे से बांध कर नहीं चलाया जा सकता है।
हमारी राष्ट्रीय राजनीति में सोमनाथ मन्दिर का जीर्णोद्धार कराने वाले स्व. सरदार पटेल का सम्मान इसलिए होता है कि उनमें भारत के गौरव की अन्तरात्मा निवास करती है। श्रीराम मन्दिर निर्माण को राष्ट्रीय आन्दोलन बनाने लिए भारत के लोग अडवानी को इसीलिए जनता का सच्चा प्रतिनिधि मानते हैं क्योंकि इसके उद्घोष में भी भारत की आत्मा पुकारती-सी लगती है, मगर मोदी के गुजरात के दंगों से भारत की त्रासदी की पीड़ा पुकारती है। सोमनाथ मन्दिर और राम मन्दिर सृजन के प्रतीक हैं जबकि गुजरात दंगे विध्वंस का प्रमाण हैं।
विध्वंस के बूते पर कभी कोई राजनीतिक नेता राष्ट्रीय चेतना को नहीं जगा सकता। यही वजह है कि मोदी कि नाम से भाजपा के सहयोगी दल दूर भागते हैं। मोदी के राष्ट्रीय राजनीति में आने का सीधा अर्थ होगा भाजपा का हिन्दू महासभा बन जाना और राजनीतिक परिदृश्य पर पुन: अछूत घोषित हो जाना।
अत: जो भाजपा नेता यह विचार करते हैं कि मोदी उसकी राजनीति को चमका सकते हैं वे स्वयं अंधेरे में बैठकर कोयला घिस रहे हैं। इस कोयले से कभी कोई दीवार सफेद नहीं हो सकती। वह जिस किसी के पास भी बैठेगा उसी पर कालिख पुतने का खतरा मंडराता रहेगा, मगर इसमें कांग्रेस को ज्यादा शेखी बघारने की जरूरत नहीं है क्योंकि मोदी ने गुजरात में वही किया है जो १९८४ में कांग्रेस ने पूरे देश में किया था। इन कांग्रेसियों के घर इतने कच्चे शीशों से बने हैं कि अगर वे हाथ में ईंट उठाने की जुर्रत करेंगे तो सीधा पत्थर उनके आशियाने को तहस-नहस कर देगा।
मेरी राय में गुजरात में जो भाजपा है वह तमिलनाडु के क्षेत्रीय दलों द्रमुक या अन्नाद्रमुक की तरह ही इसका क्षेत्रीय गुजराती संस्करण है। भाजपा के राष्ट्रीय दल होने की सबसे बड़ी शर्त यही है कि इसका गुजरात संस्करण दूसरे राज्यों पर अपनी छाया न डाल सके, क्योंकि हिन्दोस्तान के गांवों में एक बहुत पुरानी कहावत न जाने कब से प्रचलित है कि ‘उजड़े (गांव) तो बस जां मगर उजड़े (नाम) ना बसा करते’ इसलिए थोड़े लिखे को ज्यादा समझना। बाकी सब ठीक-ठाक है। इसलिए भाजपा वालो ‘यहां कुशल सब भांति सुहाई-वहां कुशल राखें रघुराई।’
साभार: पंजाब केशरी
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