Monday, April 30, 2012

हिन्‍दू महासभा नेतृत्‍व ग्रहण कर सकती है


अखिल भारत  हिन्‍दू महासभा

49वां अधिवेशन पा‍टलिपुत्र-भाग:16  

(दिनांक 24 अप्रैल,1965)

अध्‍यक्ष बैरिस्‍टर श्री नित्‍यनारायण बनर्जी  का अध्‍यक्षीय भाषण 


प्रस्‍तुति: बाबा पं0 नंद किशोर मिश्र 


क्‍या हिंदू महासभा कांग्रेस का स्‍थान ग्रहण कर सकती है अथवा क्‍या वह निर्वाचनों में कम्‍युनिस्‍ट पार्टी को पराजित करने में समर्थ है, इन दोनों संस्‍थाओं के पास ही प्रचण्‍ड धनराशि उपलब्‍ध है, जो निर्वाचन में विजय-लाभ के लिये आवश्‍यक है। मेरा उत्‍तर  है कि ''हां'' हम यदि गंभीरता सहित और निस्‍वार्थ भावना से कार्य करें तो हमें सफलता  प्राप्‍त हो सकती  है। हमें केवल सत्‍ता प्राप्ति की भूख ही अपने मन में नहीं जगानी चाहिए क्‍योंकि कोरी सत्‍ता की ही भूख अपेक्षा करने वाले को भ्रष्‍ट कर देती है। हमें एक सुदृढ़ और सच्‍चे अर्थों में राष्‍ट्रीय सरकार के गठन की दृष्टि से कर्मक्षेत्र में उतरना चाहिए। यह अनिवार्य नहीं है कि वह हमारे ही दल की सरकार हो किंतु वह सरकार निश्चित रूप से यह सुझाव प्रस्‍तुत करता हूं कि हमें निम्‍नलिखित  कार्य-प्रणाली  के आधार पर कार्य करना चाहिए। 

(अ) हमें जनता के समक्ष अपने स्‍वप्‍नों के भारत का सुस्‍पष्‍ट चित्र तथा एक सुनिश्चित योजना एवं कार्यक्रम प्रस्‍तुत करना होगा।

(आ) हमें अपने व्‍यक्तिगत लाभ की भावना को छोड़कर नि:स्‍वार्थ भावना से कर्मक्षेत्र में कूदना होगा। जनता को इस सत्‍य की अनुभूति करानी होगी कि हम जो कुछ भी कहते अथवा करते हैं वह केवल अपने दलीय लाभ की दृष्टि से नहीं अपितु जनता के हित की दृष्टि करते हैं। हमारे द्वारा नि:स्‍वार्थ भावना से किये जाने वाले कार्यों से ही हम जनता से जन-धन का समर्थन प्राप्‍त करने में सफल हो सकते हैं।

(इ) हमें धैर्य सहित कार्य करना होगा और परिणामों की प्र‍तीक्षा करनी होगी। सद्विचारों एवं कार्यों का परिणाम भी शुभ ही होता है। किंतु इसमें कुछ समय तो अवश्‍य लगता है। इतिहास हमें बताता है कि जन-शक्ति के साथ ही धन-शक्ति  भी स्‍वत: जुट जाती है, किंतु उसके लिये आवश्‍यक होता है कि ध्‍येय-निष्‍ठ और कर्तव्‍य-परायण  कार्यकर्तागण कर्म-क्षेत्र में आकर खड़े हों। महाराणा प्रताप जिन्‍होंने अपने महान आदर्शों के लिये सर्वस्‍व समर्पित कर दिया था वे भी जनता का समर्थन  प्राप्‍त कर अकबर सरीखे महान शक्तिशाली  प्रतिद्वंद्वी से अपना राज्‍य वापस लेने  में सफल हो गये। महाराष्‍ट्र के रणबांकुरे वीर शिवाजी- जिन्‍हें शत्रुओं ने पहाड़ी चूहा कहा था, एक दिन अपने चरित्र बल, ध्‍येय-निष्‍ठ  और आदर्शवाद के फलस्‍वरूप छत्रपति शिवाजी महाराज के रूप में समाज में प्रतिष्‍ठित हुये। 


बंधुओं। अपने महान आदर्शों पर आस्‍था रखो। हिंदू महासभा को केवल एक निर्वाचन लड़ने वाला अथवा धार्मिक और सामाजिक संगठन मात्र न समझो। वस्‍तुत: यह तो हिंदुत्‍व और हिंदू राष्‍ट्रवाद में  विश्‍वास रखने वाले सभी लोगों का समान मंच है। स्‍वामी विवेकानंद की इस महान घोषणा पर विश्‍वास रखो ''अब इसके (भारत माता के) उत्‍थान को कोई नहीं रोक सकता। अब यह जाग्रत हो रही है और अधिक समय तक निद्रित नही रह सकती। कोई भी वाह्य शक्ति इसे पराभूत नही कर सकेगी। क्‍योंकि यह महान  राष्‍ट्रपुरूष अब आत्‍म विश्‍वास के साथ खड़ा हो रहा है।''

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