अखिल भारत
हिन्दू महासभा
49वां अधिवेशन पाटलिपुत्र-भाग:11
(दिनांक 24 अप्रैल,1965)
अध्यक्ष बैरिस्टर श्री नित्यनारायण
बनर्जी का अध्यक्षीय भाषण
प्रस्तुति: बाबा पं0 नंद किशोर मिश्र
आइये, अब हम नितांत महत्वपूर्ण भौतिक
विषय अर्थात खाद्य समस्या पर विचार-विमर्श करें। जिस वर्ष की घटनाओं का विश्लेषण
किया गया है। उसमें संपूर्ण भारत में ही खाद्यान्नों का भारी अभाव तथा उसके फलस्वरूप
मुनाफाखोरी का दौर-दौरा रहा। हमने इस बात पर बल दिया है और आज भी देते हैं कि
खाद्यान्न की इस कमी का सृजन सत्तारूढ़
दल द्वारा ही जनता का मस्तिष्क अन्य
महत्वपूर्ण राजनीतिक समस्याओं से हटाने के लिये तथा आगामी महानिर्वाचन के लिये धन संग्रह के दृष्टि से किया गया गया था।
क्षेत्रीय नियंत्रणों और नियंत्रण प्रणाली द्वारा देश में खाद्यान्नों की कृत्रिम
कमी निर्माण की गई और इस भांति चोरबाजारी करने वाले लाभान्वित हुये।
बाजारों में वस्तुओं के भावों में होने वाली इस
घटा-बढ़ी एवं कृत्रिम कमीं का सत्तारूढ़
दल के चाटुकारों ने लाभ उठाया। कांग्रेस के लिये इन चाटुकारों से कोष में भारी
धनराशि भी एकत्रित की गई। अब यह एक खुला रहस्य है कि कांग्रेस के लगे वंधे और
चाटुकार सट्टे के व्यवशाय में प्रचुर सम्पदा एकत्रित करने में उन लोगों के माध्यम
से ही सफलता अर्जित कर रहे हैं उन्हें नियंत्रण आदेशों के संबंध में सूचित करते
रहते हैं। इसके साथ ही साथ इस कृत्रिम खाद्यान्नाभव के फलस्वरूप अमेरिका और उसके
मित्र राष्ट्रों पर लोगों को निर्भर रहना
पड़ता है और दूसरों पर आश्रित रहने की इस प्रक्रिया का एक परिणाम यह हो रहा है कि
जनता में यह भावना बल पकड़ती जा रही है कि भारत विदेशी सहायता के बिना नही टिक
सकता।
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी तथा उसकी बोली बोलने वाले अन्य व्यक्ति और
संगठन भी खाद्य समस्या को दोहरे उद्देश्य
भड़का रहे हैं। इसका प्रथम कारण तो यह है
कि वे जनता में सरकार के प्रति घृणा का निर्माण कर अपने विदेशी स्वामियों को
सहायता प्रदान करते हैं तथा उनका दूसरा उद्देश्य जनता का ध्यान विदेशी
आक्रमणों के गंभीर और तात्कालिक संकट से
अलग हटाना है। यह तर्क कई लोगों के नितांत ही विचित्र लग सकता है, क्योंकि आज देश के अनेक ख्यातनामा अर्थशास्त्री इस ''विकराल खाद्य समस्या'' के समाधान पर अपना मस्तिष्क
खपा रहे हैं। किंतु मुझे आपको यह बताने में प्रसन्नता हो रही है कि एक प्रमुख
कांग्रेसजन, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री वी0पी0 नायक इस ''विगत
कुछ वर्षों में इस देश में खाद्यान्नों
का उत्पादन पर्याप्त बढ़ा है, और उससे प्रचण्ड जनसंख्या वृद्धि के परिणामों का सामना करने की दृष्टि से भी सफलता मिल सकती
है। क्योंकि जनसंख्या वृद्धि बावजूद प्रति व्यक्ति खाद्यान्नों की उपलब्धि भी
कम से कम एक औंस बढ़ी है।(ब्लिट्ज 6 फरवरी, 1965)।
खाद्यान्न की कमी से अत्यधिक प्रभावित राज्य पश्चिमी
बंगाल के मुख्यमंत्री श्री पी0सी0 सेन ने भी राज्य विधान सभा में 3 मार्च 1965
को कहा था कि ''खाद्यान्न, तिलहन, सब्जियां, गन्ना और
जूट पश्चिमी बंगाल में निर्धारित लक्ष्य
के अनुसार ही उत्पन्न हुये हैं। चावल का उत्पादन तो पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ देने में सफल रहा है।''
यदि वस्तुत: देश
के समक्ष गंभीर खाद्यान्न संकट विद्यमान है अथ्वा सरकार गंभीरता सहित इस अभाव का सामना करना चाहती है तो उसने 1964-65 के प्रथम 9 मास
की अवधि में खाद्यान्नों पर 49.98 लाख रूपये डैमरेज के रूप में क्यों चुकाया है जबकि संपूर्ण 1963-64 के वर्ष में 8.68 लाख रूपये डैमरेज चुकाया गया था? इतने पर भी वितरण की प्रणाली
दोषपूर्ण होने के कारण खाद्यान्न का कुछ प्रभाव है यह भी नि:संकोच कहा जा सकता
है।
खाद्य समस्या का समाधान
सरकार ने गत वर्ष भी खाद्यान्नों के आयात पर लगभग 500
करोड़ रूपये व्यय किये। किंतु हिन्दू महासभा ने खाद्य समस्या को समाधान भी
जनसंख्या विनिमय के रूप में प्रस्तुत किया गया था। यदि इस सुझाव को राजकीय स्तर
पर क्रियान्वित किया जाये और समुचित व्यवस्था सहित राजकीय स्तर पर ही प्रभावित
होने वाले लोगों की क्षतिपूर्ति भी किया जाये तब भी राष्ट्रीय कोष से कम ही व्यय
होता। जब भारत का विभाजन हुआ था उस समय भारत में मुसलमानों का प्रतिशत 24.3
प्रतिशत था। किंतु उन्हें जो भूमि खण्ड पाकिस्तान के रूप में दिया गया
वह हिंदुस्तान के संपूर्ण क्षेत्रफल का 8,55,446 वर्ग मील में से पाकिस्तान को 3,65,907 वर्ग मील का क्षेत्र दिया गया था यानी कुल 30 प्रतिशत भूमि मुसलमानों
को पाकिस्तान के रूप में दी गयी।
विभाजन के पश्चात भी कांग्रेसी शासकों की अनुनय-विनय पर 3.5
करोड़ मुसलमान भारत में ही रह गये। आज भारत के 20 करोड़ मुसलमान संपूर्ण
भारत की जनसंख्या का 44 प्रतिशत हैं, जिनके भाग का भूखण्ड
पहले ही पारस्परिक सहमति से पाकिस्तान को दिया गया है वे आज भारत पर दावा किस
भांति से जता सकते हैं। भारत सरकार पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों के
पुर्नवास पर भी 1964-65 तक 424 करोड़ रूपये खर्च कर चुकी है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 5 प्रतिशत खाद्यान्न
उत्पादन की कमी है। किंतु यदि इन 11 प्रतिशत का
पाकिस्तान के अवशिष्ट हिंदुओं के साथ विनिमय कर दिया जाये तो भारत के पास
कम से कम 5 प्रतिशत खाद्यान्न अतिरिक्त हो जायेगा। इस समय पाकिस्तान के
पास जो भूखण्ड है वह संपूर्ण भारतीय
उपमहाद्वीप (भूतपूर्व देशी राज्यों के क्षेत्र सहित) का 25 प्रतिशत है, किंतु उसकी जनसंख्या संपूर्ण
उपमहाद्वीप का 17.5
प्रतिशत है और शेष 75 प्रतिशत
भूखण्ड में अवशिष्ट 82.5 प्रतिशत व्यक्ति निवास करते
हैं।
इसलिये खाद्य की कमी का कारण सूर्य के प्रकाश की भांति सुस्पष्ट
है। 1951 की जनगणना के अनुसार पाकिस्तान की जनसंख्या 7, 56, 87, 000 है तथा क्षेत्रफल 3, 65,
907 वर्गमील है, जबकि भारत की जनसंख्या 43, 25, 66, 934 है और संपूर्ण
क्षेत्रफल 11, 38, 814 वर्गमील है।
यदि कांग्रेस तथा अन्य प्रतिपक्षी दल खाद्य समस्या के
समाधान की दृष्टि से गंभीरता अपनाते और
विशुद्ध राष्ट्रीय दृष्टिकोण से चिंतन करते तो उन्होंने इस समस्या के मूलभूत कारण पर अवश्य ही दृष्टिपात किया होता तथा इसका तर्क सम्मत
उपचार खोजा होता और फिर वे देश की धनाराशि का अपव्यय न करते तथा दूसरों के समक्ष
भिक्षाम् देहि की टेक लगाते दिखाई न पड़ते और न ही जनता को बुद्धू बनाने के लिये
खाद्य मोर्चों और प्रदर्शनों का ही सहारा लेते।
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