अखिल भारत
हिन्दू महासभा
49वां अधिवेशन पाटलिपुत्र-भाग:19
(दिनांक 24 अप्रैल,1965)
अध्यक्ष बैरिस्टर श्री नित्यनारायण
बनर्जी का अध्यक्षीय भाषण
प्रस्तुति: बाबा पं0 नंद किशोर मिश्र
कई लोग यह प्रश्न करते हैं कि हिंदुओं के विभिन्न संप्रदायों में एकता का समान आधार क्या है और
शाक्त, शैव, गाणपत्य, लिंगायत, बुद्ध मत, जैन मत तथा सिख मत इनमें से कौन सा मत हिंदुस्थान का राज्य धर्म बनेगा? भारत में जितने भी धर्मों का उद्भव हुआ है उन सभी में मृत्यु के अनंतर जीवन, पुर्नजन्म
एवं कर्मवाद तथा गौ माता और वेदों का आदर
ये सामान आधार हैं। शुचिता, धैर्य एवं अक्रोध और इन सब से भी उपर प्रेम ये चार ही
भारत में उद्भूत हुये सभी धर्मों के समान
और आवश्यक सिद्धांत हैं। परम पिता परमात्मा को सर्वव्यापक मानना तथा जगत की
रचना को उसी की कलाकृति समझना एवं अपनी आत्मा में भी परमात्मा की अनुभूति कर, दुखों और सभी बंधनों से मुक्त्िा
प्राप्त करना ही हिंदू धर्म का लक्ष्य रहा है। सभी को परमपिता परमात्मा
का अंश मानकर उनसे प्रेम करना ही हिंदू धर्म सिखाता है।
हिंदू धर्म के अंर्तगत आने वाला प्रत्येक मत ही अपनी
भावनाओं पर नियंत्रण तथा भौतिक सुखों से विरक्ति का ही पाठ पढ़ाता है। हिंदू धर्म
में द्वैत से लेकर अद्वैत तक को स्थान प्राप्त हुआ है तथा उपरोक्त लक्ष्य की
प्राप्ति हेतु किसी भी मार्ग का अवलंबन करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। हिन्दू
धर्म विभिन्न पूजा-पद्धतियों का एक सुंदर पुष्पकुंज है। वस्तुत: हिंदू नाम का
तो कोई धर्म ही नहीं है। अपितु वे सभी धार्मिक विश्वास और पद्धतियां तथा प्रणालियां
हिंदुत्व के अंर्तगत आ जाती हैं जिन्होंने अपने आपको इस देश के राष्ट्र जीवन के
साथ आत्मसात कर देने के पथ का अनुगमन किया है।
वे सभी व्यक्ति जो एक परमात्मा अथवा उसके अनेक रूपोंमें
विश्वास ही नहीं करते अपितु जो उसके अस्तित्व को भी नही मानते किंतु यदि वे इस
देश के प्राचीन हिंदू गौरव से अपने आपको पृथक नही करते तो इस हिंदू नाम के अंर्तगत
आ जाते हैं। उन्हीं के द्वारा हिंदू राष्ट्र निर्मित होता है। हिंदू धर्म संसार
का सबसे महान लोकतांत्रिक धर्म है। यह प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पूजा-पद्धति का
चयन करने की अनुमति देता है। इतना ही नहीं यह दूसरों के मत का दमन ही नहीं विरोध करने से भी रोकता है।
हमारा
किसी विदेशी धर्म के साथ कोई वैर अथवा विरोध-भावना नहीं है जब तक कि वह हमारे
धार्मिक विश्वास पर चोट नहीं करते फिर चाहे वह इस्लाम हो अथवा ईसाई मत। जिस
भांति विज्ञान भौतिक जगत के सत्यों से संबद्ध है, उसी भांति हिंदू धर्म का आध्यात्मिक जगत
के सत्यों से संबद्ध है, उसी भांति हिंदू धर्म का आध्यात्मिक
जगत से संबंध है। गीता के दर्शन को सामान्यत: सभी हिंदू जन स्वीकार करते हैं।
अत: वही राज्य धर्म का आधार हो सकता है।
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