अखिल भारत हिन्दू महासभा
49वां अधिवेशन पाटलिपुत्र-भाग:6
(दिनांक 24 अप्रैल,1965)
अध्यक्ष बैरिस्टर श्री नित्यनारायण बनर्जी का अध्यक्षीय भाषण
प्रस्तुति: बाबा पं0 नंद किशोर मिश्र
दूसरी ओर कम्युनिस्ट पार्टी और उसके कठपुतले क्यूबा, इण्डोनेशिया, वियतनाम, चीन अथवा इजरायल और कांगो से संबद्ध प्रश्नों पर तो धरती और आकाश के कुलावे मिला देने को तत्पर रहते हैं किंतु जब पड़ोसी राज्यों से लाखों हिन्दू निष्कासित कर दिये जाते हैं, उनकी हत्याएं होती हैं और उनके नरमेध का दौर-दौरा चलता है अथवा चीनी भारतीय सीमाओं में बलात् प्रवेश करते हैं या अमरीका द्वारा समर्थित पाकिस्तान से भी भारत की पवित्र भूमि पर अवैध नियंत्रण बनाए रहने के लिये समझौता करते हैं तो इन्हीं कम्युनिस्टों के मुख पर ताले पड़ जाते हैं। वे राष्ट्र हित के सुरक्षा के स्थान पर अपने कम्युनिस्ट स्वामियों के हितों की सुरक्षार्थ ही अधिक सचेत और सजग रहते हैं।
हिन्दू महासभा के संबंध में मैंने जान बूझकर ही ''साम्प्रदायिक'' शब्द का प्रयोग किया है। क्योंकि आज हिन्दू महासभा के संबंध में यह शब्दावली ही अधिक प्रचलित है और कांग्रेसी शासक हिन्दू महासभा के संबंध में प्राय: यही कुप्रचार भी करते रहते हैं। वस्तुत: हिन्दू महासभा का ही विशुद्ध राष्ट्रवादी संस्था का नाम दिया जाना चाहिये क्योंकि यह संपूर्ण हिंदू राष्ट्र का संगठन है। जिन्ना के दो राष्ट्रवाद के सिद्धांत के आधार पर भारत का जो दु:खद विभाजन हुआ कांग्रेस तथा भारत की कम्युनिस्ट पार्टी दोनों ने ही उसका समर्थन किया था। इन दोनेां ही दलों ने भारत में हिंदू और मुसलमानों को दो पृथक राष्ट्रों के रूप में स्वीकार कर भारत का विभाजन करा उनके लिये दो पृथक-पृथक मातृभूमियों की सीमाएं भी निर्धारित कराई। जहां कांग्रेस तथा अन्य दलों ने नि:संकोच भाव से पाकिस्तान को मुस्लिम राज्य के रूप में मान्यता प्रदान की वहां वे भारत को हिंदू राज्य घोषित करने से भयभीत हैं। या तो वे राष्ट्र विरोधी और वास्तविकता को स्वीकारन करने वाले हैं अथवा वे राष्ट्रीयता और वास्तविकता दोनों से ही किनारा करना चाहते हैं।
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