अखिल भारत हिन्दू महासभा
49वां अधिवेशन पाटलिपुत्र-भाग:7
(दिनांक 24 अप्रैल,1965)
अध्यक्ष बैरिस्टर श्री नित्यनारायण बनर्जी का अध्यक्षीय भाषण
प्रस्तुति: बाबा पं0 नंद किशोर मिश्र
विधि की विडम्बना तो देखिये, कि इस देश के 40 करोड़ निवासी जिनका एक धर्म, एक इतिहास, एक संस्कृति तथा एक भाषा(संस्कृति) है वे तो सम्प्रदाय कहे जाते हैं किंतु इन्हें सम्प्रदाय की संज्ञा देने वालों की दृष्टि में ही 7 करोड़ मुसलमान पाकिस्तान में एक राष्ट्र हैं। इतने ही अथवा इनसे कम संख्या में इंग्लैण्ड, स्वीडेन, डेनमार्क, स्विटजरलैण्ड इत्यादि में रहने वाले लोग राजनीति के इन प्रकाण्ड पंडितों की दृष्टि में राष्ट्र हैं किंतु भारत में 40 करोड़ हिंदु एक राष्ट्र नहीं कहे जा सकते? ऐसा क्यों?
संभवत: केवल इसीलिये कि भारत में रहने वाले 20 करोड़ के लगभग मुसलमान ऐसा किया जाना पसंद नहीं करते। अत: हिन्दू और मुसलमान दोनों को ही इस देश में संप्रदायों की संज्ञा दी जाती है। इन वोटों की प्राप्ति के उतावले लोगों की दृष्टि में जब दोनों संप्रदाय संगठित हो जाएं तभी राष्ट्र का सृजन हो पाता है। अब तनिक विचार कीजिये कि राष्ट्र की परिभाषा क्या है? आधुनिक राजनीतिक विचारकों की दृष्टि में 'राष्ट्र एक जीवित आत्मा है और है आध्यात्मिक सिद्धांत''(रेनन)। वर्गिस का कथन है कि '' एक निश्चित भूखण्ड पर निवास करने वाले वे लोग ही राष्ट्र का निर्माण करते हैं, जिनकी समान भाषा, समान साहित्य तथा उचित और अनुचित के प्रति समान चिंतन प्रणाली है।'' इजारेल जंगबैल ने लिखा है कि ''धार्मिक एकता, भाषा की एकता और समान परंपराएं तथा सुख-दुखों के प्रति समान अनुभूति ही वे तत्व हैं जो किसी राष्ट्र के नियामक हैं।''
यहां तक की कम्युनिस्ट नेता स्टालिन ने भी राष्ट्र की परिभाषा करते हुये लिखा है कि ''राष्ट्र भाषा, भूखण्ड, आर्थिक, जीवन और सुसंस्कृत समुदाय में उद्भूत मनोवैज्ञानिक स्थिति से ही ऐतिहासिक रूप में प्रकट होता है।'' उन्होने यह भी कहा कि ''यह बात दुनिया की दृष्टि में रहनी चाहिये कि यदि उपरोक्त विशेषताओं में से किसी एक का भी अभाव हो तो कोई राष्ट्र, राष्ट्र के रूप में खड़ा नहीं रह सकता। उपरोक्त सब विशेषताओं की उपस्थिति में ही कोई राष्ट्र-राष्ट्र का स्वरूप ग्रहण कर पाता है।''
तो क्या तथाकथित भारतीय राष्ट्र उपरोक्त परिभाषाओं में से किसी एक की कसौटी पर भी खरा उतरता है। क्या इसे समान धर्म, संस्कृति भावना, परंपराओं, साहित्य अथवा भाषा का आधार प्राप्त है? क्या ये तथाकथित राष्ट्र समान धर्मों और ऐतिहासिक महापुरूषों को अपना मानता है? क्या यह एक राष्ट्रीय इतिहास पर गौरव का अनुभव करता है? नहीं। हिंदू और मुसलमानों का धर्म, संस्कृतियां, भावनाएं और परंपराएं सभी एक दूसरे के पूर्ण विपरीत हैं। एक की विजय का इतिहास दूसरे की पराजय की गाथा है। एक का धर्म काफिरों की हत्या का खुला समर्थन करता है। किंतु इस बात में कोई संदेह नहीं है कि उपरोक्त परिभाषाओं के अनुसार भी भारत में 40 करोड़ हिंदुओं का ही एक राष्ट्र के रूप में अस्तित्व है।
अविभाजित भारत के 10 करोड़ मुसलमानों में साढ़े 3 करोड़ मुसलमानों ने पाकिस्तान के इस्लामी गणराज्य में जाने की अपेक्षा काफिरों के साथ हिंदुस्थान में रहना ही श्रेयस्कर समझा। विश्व में हिंदुओं की एक मात्र निवास स्थली हिन्दुस्थान के दोनों ओर एक सुदृढ़ मुस्लिम राज्य स्थित है और मुसलमान आज अफ्रीका से इण्डोनेशिया तक एक अखिल इस्लामी राज्य की स्थापना करने की दृष्टि से अधिक अच्छी स्थिति में है। वास्तविक राजनीतिज्ञों के समान ही वे इस दिशा में सक्रिय भी हैं।
आज पाकिस्तान, टर्की, सीरिया और इण्डोनेशिया में संधि सम्पन्न भी हो चुकी है। अब एक मुस्लिम राष्ट्र मण्डल अथवा विश्व मुस्लिम संघ के गठन की चर्चा भी जोरों पर है। मार्च 1965 में बाण्डुंग (इण्डोनेशिया) एक अफ्रेशियाई इस्लामी सम्मेलन संपन्न हो चुका है। जिसमें विश्व के 50 करोड़ मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाले 33 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। यह भी बताया जाता है कि मुस्लिम शक्तियां पूंजीवादी ईसाइयों और नास्तिक साम्यवादियों के मुकाबले में विश्व में एक तृतीय शक्ति के रूप में संगठित होने का प्रयास कर रही हैं।
पाकिस्तान और इण्डोनेशिया तो भारत के प्रति खुले रूप से अपने शत्रु भाव का प्रदर्शन भी कर रहे हैं। अंर्तराष्ट्रीय घटना चक्र संयुक्त अरब गणराज्य, ईरान, अफगानिस्तान तथा अन्य मुस्लिम राज्यों को किसी भी दिन भारत के विरूद्ध खड़ा कर सकता है। अत: हमें इस संभावित संकट के संबंध में अभी से जागरूक रहना चाहिये।
भारत में पाक दलालों की घुसपैठ, भारत में ही पाकिस्तान के पंच मांगियों का अस्तित्व, भारतीय मुसलमानों का अवैध शस्त्रास्त्रों की उपलब्धि तथा शत्रु के क्रीतदासों(एजेंटों) द्वारा रेलवे लाइनों, बांधों और बंदरगाहों आदि को क्षति पहुंचाने का उपक्रम आये दिन की बात बन कर रह गये हैं। पाकिस्तान भारत की सीमाओं का उल्लंघन कर रहा है, भारत के सैनिकों और नागरिकों पर गोलियां बरसा रहा है है और भारतीय क्षेत्र से भारत के नर-नारियों और संपत्ति का भी अपहरण कर रहा है। क्यों और कैसे।
पाकिस्तान और उससे सहानुभूति रखने वाले आज भी भारत में निम्नतम स्तर से लेकर उच्चतम स्तर तक सैनिक और असैनिक प्रशासनों में महत्वपूर्ण पदों पर विराजमान हैं। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर दुर्बल कांग्रेस शासन इन सब दृश्यों पर मूक बना विवशता की दृष्टि मात्र डाल रहा है। शासकों को भी इन पर संदेह तो होता ही है किंतु वे उनके विरूद्ध कार्रवाईकरने से कतराते हैं। क्योंकि वे समझते हैं कि उनके विरूद्ध कोई भी कार्रवाई किये जाने से वे 20 करोड़ मुसलमान नाराज हो जायेंगे जिनके बल पर इनका सिंहासन अडिग बना हुआ है। आज कांग्रेसियों के लिये अपने व्यक्तिगत और दलिय हित ही राष्ट्र की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण हो गये हैं।
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