सोनिया गांधी का सच part-1
एस0 गुरूमूर्ति
जब श्वेजर इलस्ट्रेटे ने यह आरोप लगाया कि सोनिया गांधी ने राजीव गांधी द्वारा घूस में लिए गए पैसे को राहुल गांधी के खाते में रखा है तो मां-बेटे में से किसी ने न तो विरोध किया और न ही इस पत्रिका के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई की।
राजनीति में राजीव गांधी ने सबसे खतरनाक गलती क्या की थी? यह बताने में दिमाग पर ज्यादा जोर नहीं पड़ना चाहिए कि उनकी सबसे बड़ी गलती खुद ईमानदार होने का दावा करते हुए अपने को मिस्टर क्लीन के तौर पर पेश करना थी। यह उनके लिए घातक साबित हुआ। इंदिरा गांधी उनसे अलग थीं। जब उनसे उनकी सरकार के भ्रष्टाचार के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि यह तो पूरी दुनिया में चल रहा है। यह बात 1983 की है। दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने इसके बाद यह कहा था कि जब इतने उच्च पद पर बैठने वाला इसे तर्कसंगत बता रहा है तो ऐसे में आखिर भ्रष्टाचार पर काबू कैसे पाया जाएगा।
इन बातों का नतीजा यह हुआ कि इंदिरा गांधी पर कभी किसी ने भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगाया। क्योंकि उन्होंने कभी यह दावा नहीं किया कि वह ईमानदार हैं। पर इसके उलट राजीव गांधी ने अपनी ईमानदारी के दावे कर खुद को कड़ी निगरानी में ला दिया। राजीव गांधी की ईमानदारी की पोल 1989 में बोफोर्स मामले पर खुल गई और जनता ने इसकी सजा देते हुए उन्हें और कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया। सियासी लोगों के लिए इस घटना ने यह सीख दी कि अगर आप ईमानदार नहीं हैं तो कभी ईमानदारी के दावे मत कीजिए। पर यह सीख खुद गांधी परिवार को याद नहीं है। इस मामले में सोनिया गांधी ने इंदिरा गांधी के सुरक्षित रास्ते को न चुनकर राजीव गांधी के घातक रास्ते पर चलने का फैसला किया है। इसके नतीजे भी उनके लिए दुखदायी होने की ही उम्मीद है। तो क्या 1987 से 1989 के बीच की राजनीति का एक बार फिर दुहराव होने वाला है?
इंदिरा को भूलकर राजीव की राह चलने वाली सोनिया गांधी ने 2010 के नवंबर में इलाहाबाद में हुई पार्टी की एक रैली में भ्रष्टाचार को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करने यानि जीरो टालरेंस की बात कही थी। इसके कुछ दिनों बाद ही जब दिल्ली में कांग्रेस अधिवेशन हुआ तो सोनिया गांधी ने फिर यही बात दोहराई। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी ने कभी भी भ्रष्ट लोगों को नहीं बख्शा है क्योंकि भ्रष्टाचार से विकास बाधित होता है। इसी तरह का भाषण राजीव गांधी ने 25 साल पहले मुंबई अधिवेशन में दिया था। इस मसले पर राजीव दो मामलों में सोनिया से अलग थे। जब राजीव गांधी ने खुद को मिस्टर क्लीन कहा था उस वक्त ऐसा कोई घोटाला नहीं था जिसकी वजह से उन्हें रक्षात्मक होना पड़े। पर सोनिया ने तो राष्ट्रमंडल, आदर्श और 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के बीच ईमानदार होने का दावा किया है। दूसरी बात यह कि राजीव ने बिल्कुल शून्य से शुरुआत की थी और उनकी मिस्टर क्लीन की छवि को खत्म करने का काम तो बोफोर्स घोटले ने किया था।
इसके विपरीत सोनिया गांधी के खिलाफ घूसखोरी के तौर पर अरबों डालर लेकर स्विस बैंक खातों में जमा करने की बात पहले ही सामने आ चुकी है। इसमें बोफोर्स सौदे में क्वात्रोचि से मिले लाखों डॉलर शामिल नहीं हैं। स्विट्जरलैंड की एक प्रतिष्ठित पत्रिका और रूस के एक खोजी पत्रकार ने सोनिया गांधी के परिवार पर घूसखोरी में लिप्त होने के कई सबूत जुटाकर सबके सामने रखा है। इस बात के दो दशक बीत जाने के बाद भी सोनिया ने आरोपों का न तो खंडन किया है और न ही खुलासा करने वालों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की है। इसकी पृष्ठभूमि में सोनिया गांधी की वह बात ढकोसला मालूम पड़ती है जिसमें उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने की बात कही है। दरअसल, कहानी कुछ इस प्रकार है। आगे पढ़ें : २.२ अरब डॉलर से ११ अरब डॉलर, केजीबी दस्तावेज एवं भारतीय मीडिया : सोनिया गांधी का सच
- एस. गुरुमूर्ति ( यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं )
राजनीति में राजीव गांधी ने सबसे खतरनाक गलती क्या की थी? यह बताने में दिमाग पर ज्यादा जोर नहीं पड़ना चाहिए कि उनकी सबसे बड़ी गलती खुद ईमानदार होने का दावा करते हुए अपने को मिस्टर क्लीन के तौर पर पेश करना थी। यह उनके लिए घातक साबित हुआ। इंदिरा गांधी उनसे अलग थीं। जब उनसे उनकी सरकार के भ्रष्टाचार के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि यह तो पूरी दुनिया में चल रहा है। यह बात 1983 की है। दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने इसके बाद यह कहा था कि जब इतने उच्च पद पर बैठने वाला इसे तर्कसंगत बता रहा है तो ऐसे में आखिर भ्रष्टाचार पर काबू कैसे पाया जाएगा।
इन बातों का नतीजा यह हुआ कि इंदिरा गांधी पर कभी किसी ने भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगाया। क्योंकि उन्होंने कभी यह दावा नहीं किया कि वह ईमानदार हैं। पर इसके उलट राजीव गांधी ने अपनी ईमानदारी के दावे कर खुद को कड़ी निगरानी में ला दिया। राजीव गांधी की ईमानदारी की पोल 1989 में बोफोर्स मामले पर खुल गई और जनता ने इसकी सजा देते हुए उन्हें और कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया। सियासी लोगों के लिए इस घटना ने यह सीख दी कि अगर आप ईमानदार नहीं हैं तो कभी ईमानदारी के दावे मत कीजिए। पर यह सीख खुद गांधी परिवार को याद नहीं है। इस मामले में सोनिया गांधी ने इंदिरा गांधी के सुरक्षित रास्ते को न चुनकर राजीव गांधी के घातक रास्ते पर चलने का फैसला किया है। इसके नतीजे भी उनके लिए दुखदायी होने की ही उम्मीद है। तो क्या 1987 से 1989 के बीच की राजनीति का एक बार फिर दुहराव होने वाला है?
इंदिरा को भूलकर राजीव की राह चलने वाली सोनिया गांधी ने 2010 के नवंबर में इलाहाबाद में हुई पार्टी की एक रैली में भ्रष्टाचार को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करने यानि जीरो टालरेंस की बात कही थी। इसके कुछ दिनों बाद ही जब दिल्ली में कांग्रेस अधिवेशन हुआ तो सोनिया गांधी ने फिर यही बात दोहराई। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी ने कभी भी भ्रष्ट लोगों को नहीं बख्शा है क्योंकि भ्रष्टाचार से विकास बाधित होता है। इसी तरह का भाषण राजीव गांधी ने 25 साल पहले मुंबई अधिवेशन में दिया था। इस मसले पर राजीव दो मामलों में सोनिया से अलग थे। जब राजीव गांधी ने खुद को मिस्टर क्लीन कहा था उस वक्त ऐसा कोई घोटाला नहीं था जिसकी वजह से उन्हें रक्षात्मक होना पड़े। पर सोनिया ने तो राष्ट्रमंडल, आदर्श और 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के बीच ईमानदार होने का दावा किया है। दूसरी बात यह कि राजीव ने बिल्कुल शून्य से शुरुआत की थी और उनकी मिस्टर क्लीन की छवि को खत्म करने का काम तो बोफोर्स घोटले ने किया था।
इसके विपरीत सोनिया गांधी के खिलाफ घूसखोरी के तौर पर अरबों डालर लेकर स्विस बैंक खातों में जमा करने की बात पहले ही सामने आ चुकी है। इसमें बोफोर्स सौदे में क्वात्रोचि से मिले लाखों डॉलर शामिल नहीं हैं। स्विट्जरलैंड की एक प्रतिष्ठित पत्रिका और रूस के एक खोजी पत्रकार ने सोनिया गांधी के परिवार पर घूसखोरी में लिप्त होने के कई सबूत जुटाकर सबके सामने रखा है। इस बात के दो दशक बीत जाने के बाद भी सोनिया ने आरोपों का न तो खंडन किया है और न ही खुलासा करने वालों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की है। इसकी पृष्ठभूमि में सोनिया गांधी की वह बात ढकोसला मालूम पड़ती है जिसमें उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने की बात कही है। दरअसल, कहानी कुछ इस प्रकार है। आगे पढ़ें : २.२ अरब डॉलर से ११ अरब डॉलर, केजीबी दस्तावेज एवं भारतीय मीडिया : सोनिया गांधी का सच
- एस. गुरुमूर्ति ( यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं )
स्रोत: hindi.ibtl.in/
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