Saturday, July 30, 2011

क्या चीन भारत पर हमला करेगा?

शैलेन्‍द्र सिंह
प्रस्‍तुति-डॉ0 संतोष राय
1. आप दुनिया के नक्शे पर भारत की स्थिति देखिए तो पता चलेगा कि हम (भारत) बहुत ही खतरनाक जगह पर पहुँच चुके हैं। हालांकि हम तो अपनी जगह से नहीं हिले हैं लेकिन दुश्मनों ने हमको धीरे-धीरे चारों ओर से घेर लिया है। इतना ही नहीं, वह हमारे घर के अंदर भी पहुँच चुका है। बानगी देखिए...
चीन ने 50 साल पहले शांत और धीर-गंभीर तिब्बत को अचानक हड़प लिया और दुनिया देखती ही रह गई और कुछ नहीं कर पाई। तिब्बत चीन और भारत के बीच रक्षा दीवार था। लेकिन उसको हड़पने के बाद वह सीधे हमारे सिर के ऊपर आ गया। इसके बाद 1962 के भारत-चीन सीमा विवाद (इसे युद्ध समझें) में उसने हमारी 90 हजार वर्ग किमी भूमि हड़प ली। यह युद्ध उसने दो मोर्चों पर लड़ा
404; एक तो जम्मू कश्मीर, हिमाचल और उत्तरांचल से जुड़ा हिस्सा और दूसरी अरुणाचल वाला हिस्सा। उस युद्ध में हम हारे और चीन ने हमारा एक बड़ा हिस्सा हड़प लिया। कैलाश मानसरोवर जैसा तीर्थ हमारे हाथ से निकल गया और उस दिन के बाद से चीन तवांग और अरुणाचल प्रदेश को भी अपना हिस्सा बताने से नहीं चूकता।
चीन ने इतना करने पर अगला कदम कूटनितिक उठाया। उसने पाकिस्तान को हर संभव मदद मुहैया कराई। उसे भारत के खिलाफ ताकतवर बनाया और इस काम में अपने दूसरे सहयोगी उत्तर कोरिया को भी लगा दिया। पाकिस्तान के पास जितनी भी मिसाइलें और परमाणु हथियार हैं वो सब मेड इन चाइना और मेन इन ईस्ट कोरिया ही हैं। चीन ने पाकिस्तान को साधने के बाद नेपाल में माओवादियों के मार्फत अपनी पकड़ बनाई और संसार के एकमात्र घोषित हिन्दू राष्ट्र को माओवादियों का अड्डा बना दिया। इसके बाद उसने बांग्लादेश की ओर रुख किया और वहाँ खूब संसाधन जवाए। आतंकियों को भारत के खिलाफ मदद पहुँचाई। और उसे भारत विरोधी कर दिया जबकि बांग्लादेश को भारत ने ही पाकिस्तान के चंगुल से आजाद करवाया था।
चीन ने मालद्वीप को भी साध रखा है और वहाँ की इस्लामिक सरकार को भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर रहा है। वहाँ उसका सैन्य अड्डा भी है और हवाई तथा नौसेना तैनाती भी है।
बर्मा की जुंटा सैन्य सरकार भी चीन की मित्र है क्योंकि दोनों ही राष्ट्र अपने को कम्युनिस्ट कहते हैं। हम सिर्फ अंडमान में इसलिए ही कोई विकास नहीं कर पाते क्योंकि भारत सरकार को पता है कि चीन किसी भी दिन अंडमान को हड़प सकता है।
चीन ने हाल ही में श्रीलंका में भी भारी मात्रा में निवेश किया है और लिट्टे के सफाए के बाद चीन श्रीलंका को पाकिस्तान के करीब लाकर भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है।
दोस्तों, इस पूरी स्टोरी में एक दूसरा पहलू भी है। चीन ने भारत को अंदर से भी कमजोर करना शुरू कर दिया है। भारत के आधे राज्यों में नक्सली समस्या है। इनसे उलझने में हमारे काफी सारे अर्धसैनिक बल लगे रहते हैं। इनमें सीआरपीएफ प्रमुख है जो दशकों से जंगलों में इनके खिलाफ कैंप लगाए पड़ी हुई है। ये नक्सली भी चीन द्वारा प्रायोजित हैं और हम इनका कुछ नहीं बिगाड़ पा रहे हैं। इनका खौफ इतना अधिक है कि ये पुलिस के जवानों और कभी-कभी उसके बड़े अधिकारियों को तो चूहे-बिल्ली की तरह मार देते हैं। आंध्रप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पर यह जानलेवा हमला कर चुके हैं, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के पुत्र को जान से मार चुके हैं और देश के पहाड़ी इलाकों में अपनी अलग सत्ता चलाते हैं। देश के 27 में से 7 प्रोजेक्ट टाइगर रिजर्व पर इनका कब्जा है और वहाँ सिर्फ इसी कारण प्रतिवर्ष होने वाली वन्यजीवों की गणना नहीं हो पाती।
इस बात से एक बात का और लिंक है जिसका मैं यहाँ उल्लेख कर देना उचित समझता हूँ। भारत के पास अग्नि, पृथ्वी जैसी मिसाइलें हैं। ये परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम हैं और चीन अग्नि की रेंज में आता है। ये मिसाइलें बहुत महंगी होती हैं और कम संख्या में बनाई जाती हैं। आसमानी पहरे या कहें सेटेलाइट की नजर से बचाने के लिए इन्हें हमेशा मोबाइल रखा जाता है। यानी रेलवे के माध्यम से या हैवी आर्मी व्हीकल के माध्यम से यह हमेशा चलती रहती हैं, एक जगह से दूसरी जगह। अगर इन्हें इस तरह से नहीं घुमाया जाए तो ये बड़े पहाड़ी क्षेत्रों में छुपाकर रखी जा सकती हैं। इसका एकमात्र कारण है कि युद्ध के समय सेटेलाइट से ट्रेक होकर चीन या अन्य कोई भी शक्तिशाली देश इनके जखीरे पर हमला कर इन्हें समूल नष्ट कर सकता है। लेकिन यहाँ दिक्कत यह है कि देश के पहाड़ी इलाके धीरे-धीरे नक्सलियों के कब्जे में आते जा रहे हैं। ऐसे में यकीन करना मुश्किल है कि हम पहाड़ों के बीच अपनी बेशकीमती मिसाइलों को सुरक्षित तरीके से छुपा पाएँगे।
2. क्या आपको नास्त्रेदमस की वो भविष्यवाणी याद है जिसमें उन्होंने कहा था कि तीसरा विश्वयुद्ध चीन और इस्लामिक देश मिलकर भड़काएँगे। दक्षिण एशिया से शुरुआत होगी और ओरियेंट (उन्होंने भारत का इसी नाम से उल्लेख किया है) सबसे पहले गुलाम बना लिया जाएगा। बाद में अमेरिका, जापान, ब्रिटेन और फ्रांस मिलकर भारत का साथ देंगे और अंत में विजयी होंगे। भारत भी विजेता बनेगा और बाद में महाशक्ति के तौर पर स्थापित होगा लेकिन सभी मित्र राष्ट्रों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।
मैंने आज ही वो खबर भी पढ़ी है जिसमें लिखा है कि भारत पर निशाना साधने के लिए पाकिस्तान ने अमेरिका से मिली हारपून मिसाइलों में कुछ परिवर्तन किए हैं और इसमें चीन ने निश्चित तौर से मदद की है। अमेरिका ने मिसाइलों की मूल डिजाइन के साथ छेड़खानी करने के लिए पाकिस्तान को चेताया भी है। दरअसल चीन के साथ पाकिस्तान भी भारत को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता है। चीन पाकिस्तानी मानस को समझते हुए यह भी मानता है कि इस क्षेत्र में एकमात्र महाशक्ति बने रहने के लिए उसे भारत को हराना ही होगा क्योंकि रूस के टूटने के बाद भारत से ही उसे खतरा है। दूसरा वह यह भी मानता है कि अगर वो पाकिस्तान या बांग्लादेश के मार्फत भारत के खिलाफ बड़ा युद्ध छेड़ता है तो भारत के अंदर रह रहे 20 करोड़ मुसलमान भी उसका साथ देंगे और फिर नक्सली तो हैं ही। ऐसे में समझना मुश्किल नहीं है कि स्थिति विकट है और हम उस तरह से तैयार नहीं हैं। हम सिर्फ अपने घर में बैठकर अपने को सुरक्षित नहीं मान सकते। चीन का रक्षा बजट हमारे बजट से तीन गुणा ज्यादा है। इस वर्ष भारत जहाँ अपने डिफेंस बजट पर 27 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च कर रहा है, वहीं चीन इस साल 70 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च कर रहा है। हमारे पास कई शो-पीस हैं जैसे एयरक्राफ्ट कैरियर विराट, जो हमारे पास इकलौता है और ठीक से काम भी नहीं करता। प्रस्तावित कैरियर एडमिरल गोर्शकोव को रूस ने कई सालों से अटका रखा है, जबकि चीन के पास 12-13 एयरक्राफ्ट कैरियर हैं। टैंकों में भी वो सुविधा और संख्या के मामले में भारत से कहीं आगे है। ऐसे में हमारी शक्तिशाली और साथ ही बदमाश चीन के खिलाफ क्या स्ट्रेटेजी होगी इसपर कोई सोच नहीं रहा। हालांकि भारत ने हाल ही में कुछ कदम उठाए हैं लेकिन वो अपर्याप्त हैं।
जैसा कि आप जानते हैं कि सामरिक विशेषज्ञ किसी भी बात को बस यूँ ही नहीं कह देते। बल्कि कहें कि कोई भी विशेषज्ञ या शास्त्री (मसलन अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, मानवशास्त्री) भी झूठ क्यों बोलेगा। उसका अध्ययन जो इजाजत देगा वही वो भी बोलेगा। तो भरत कपूर के दावे को बस यूँ ही खारिज नहीं किया जा सकता। दूसरी बात, आपने मुंबई हमले के बाद ग्लोबल इंटेलीजेंस एजेंसी स्ट्रेटफोर की वो रिपोर्ट भी पढ़ी होगी जिसमें उसने कहा था कि इस हमले के बाद भारत को अपनी शक्ति दिखानी ही होगी और अपने को साबित करने के लिए भारत पाकिस्तान में कुछ चुनिंदा ठिकानों पर सैन्य कार्रवाई कर सकता है। हालांकि एजेंसी का यह दावा खाली गया क्योंकि हमने कुछ नहीं किया, चुप बैठे रहे और पाकिस्तान को डोजिएर (सुबूतों से भरे सूटकेस) देते रहे जिन्हें वह रद्दी की टोकरी में फैंकता रहा। बाद में सामरिक विशेषज्ञों ने कहा कि पाकिस्तान के पास परमाणु बम था इसलिए भारत चुप बैठा रहा क्योंकि क्षेत्र में परमाणु युद्ध छिड़ सकता था इसलिए शक्तिशाली देशों ने भारत पर हमला ना करने का जबरदस्त दबाव बनाया था। यह बात भारत के एक पूर्व थल सेना प्रमुख ने भी कही थी।
रूस के एक नामचीन प्रोफेसर ने कहा है कि 2020 तक अमेरिका भी ढह जाएगा। रूस के प्रसिद्ध शिक्षाविद प्रोफेसर आईगोर पानारिन ने यह बात काफी शोध के बात कही है। उन्होंने इसके पीछे का कारण अमेरिका की फिलहाल खस्ताहाल अर्थव्यवस्था और बराक प्रशासन के फेल्योर को बताया है। वैसे इस बात के लिए हर अमेरिकी उन्हें झक्की ही कहेगा लेकिन इतिहास गवाह है कि रूस के टूटने से पहले भी कोई वो सब नहीं सोचता था।
रूस बिखर जाएगा यह सिर्फ कोई अर्थशास्त्री ही सोच सकता था क्योंकि अर्थव्यवस्था चरमराने के कारण ही रूस ने अलग हुए मुस्लिम राष्ट्रों पर से अपना नियंत्रण ढीला किया और उन्हें रूसी संघ में साथ रखने से मना कर दिया। आज उसी बात को लेकर हाफिज सईद जैसे आतंकी संगठनों के सरगना यह कहते फिरते हैं कि भारत को भी रूस की तरह से तोड़ना उनका एकमात्र मकसद है और यह पूरा हो जाएगा क्योंकि रूस के लिए भी लोग असंभव शब्द का इस्तेमाल करते थे लेकिन हमने वो कर दिखाया।
आप लोग सोच रहे होंगे कि इतनी देर की बात में भी अभी तक चीन का जिक्र क्यों नहीं आया, तो मैं आपको याद दिलाना चाहूँगा कि यह सब बातें एक दूसरे से इंटरलिंक हैं। इस बात को पुख्ता करते हुए चीन के एक सामरिक विशेषज्ञ ने हाल ही में कह दिया था कि भारत को 20-30 टुकड़ों में तोड़ देना चाहिए। तो क्या इस्लामिक आतंकी संगठन, हाफिज सईद जैसे आतंकी सरगना और चीन की टोन (बातचीत का ढंग) एक जैसा नहीं है। दूसरा यह कि अमेरिका के लिए कहा जाता है कि जब भी उसकी अर्थव्यवस्था लड़खड़ाती है वह युद्ध करता है। क्या ऐसा चीन नहीं कर सकता जबकि उसके प्रोडक्ट (जिनकी क्वालिटी बेहद ही खराब होती है) को पूरी दुनिया में बैन किया जा रहा है। चीन और पाकिस्तान की मंशा एक जैसी है। दोनों रूस को अपना दुश्मन मानते थे और उसके टूटने पर दोनों ही खुशियाँ मनाते हैं और उसी उदाहरण को भारत जैसे देश के साथ दोहराने का ख्वाब देखते हैं।
चीन बहुत तेज है। वो अरुणाचल प्रदेश पर इसलिए नजर गड़ाए रहता है क्योंकि वहाँ से भारत के उस हिस्से तक आसानी से पहुँचा जा सकता है जहाँ से नॉर्थ-ईस्ट के सेवन सिस्टर्स कहे जाने वाले राज्य अलग होते हैं। उस हिस्से को चिकन नेक या बॉटल नेक (चूजे या बॉटल की गर्दन) कहा जाता है। वहाँ से वो सातों राज्य शेष भारत से अलग होते हैं। वहाँ से हमला कर वो भारत के सात राज्यों को तो एक ही झटके में अलग कर सकता है जैसे भारत ने पाकिस्तान से अलग बने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) को 1971 में एक ही झटके से अलग कर दिया था। भारत ने हाल ही में अरुणाचल प्रदेश और तेजपुर (असम) में सुखोई और अपनी टैंक स्क्वेड्रन की तैनाती की है। वो इसी संभावित हमले से निपटने के लिए है। चीन उत्तर पूर्व में हमारी गर्दन दबोचने के प्रयास में है और नक्सलवाद से जूझ रहे उन इलाकों में उसकी मंशा पूरी करने में बांग्लादेश भी उसका साथ दे सकता है। (वो बीएसएफ जवान की डंडे पर लटकी हुई लाश वाली तस्वीर तो याद है ना आपको जो टाइम्स आफ इंडिया में प्रथम पेज पर छपी थी और जिसने हमारे साथ-साथ भारत सरकार की भी नींद उड़ाकर रख दी थी, टुच्चे बांग्लादेशियों के दुस्साहस पर)



अमेरिका जब भी अर्थ संकट में फँसता है तो वह युद्ध करता है। ये इस तरह से समझा जा सकता है कि अमेरिका दुनिया को एक तो यह याद दिलाता रहता है कि तुम लोग भी युद्ध में फँस सकते हो इसलिए तैयार रहो। सनद रहे कि अमेरिका की जीडीपी का सबसे बड़ा हिस्सा उसके हथियार बेचने से आता है। आईटी-वाईटी सब गईं किनारे...। जिस अमेरिकी हारपून मिसाइल की पाकिस्तान को लेकर आजकल चर्चा चल रही है वो एक जरा सी मिसाइल 70 लाख अमेरिकी डॉलर में आती है। ऐसी 165 मिसाइलों की खेप पाकिस्तान ने अमेरिका से खरीदी थीं। ऐसे लाखों उपकरण वो हर वर्ष विकासशील और विकसित देशों को बेच देता है। उसके सबसे बड़े खरीदारों में सऊदी अरब भी शामिल है। कुल मिलाकर अमेरिका दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा सप्लायर है, उसके बाद रूस का और फिर चीन का नंबर आता है। लेकिन चीन बहुत जल्दी रूस को इसमें पीछे छोड़ देगा क्योंकि रूसी हथियारों की अब वो इज्जत नहीं रही जो शीत युद्ध के समय थी। इसलिए चीन अमेरिकी स्टाइल में चलते हुए सभी इस्लामिक देशों को हथियार सप्लाई करता है और युद्ध का महौल बनाए रखता है। जब भी भारत की ओर से चीन के व्यापार के खिलाफ कोई स्टेटमेंट जारी होता है चीन तुरंत सीमा विवाद को हवा देता है और कूटनीतिक सफलता पाते हुए भारत को पीछे हटने पर मजबूर कर देता है।
चीन हमेशा कुछ दूसरी ही बात समझता है। वो सोचता है कि अमेरिका उसे कुछ देशों के बीच कस रहा है जिन्हें वो कैंकड़े का पंजा कहता है। चीन का तर्क है कि जापान, भारत, ताइवान, दक्षिण कोरिया से वह घिरा हुआ है और आस्ट्रेलिया को भी अमेरिका उसके खिलाफ इस्तेमाल करता है। ऐसे में उसका सतर्क रहना जरूरी है जबकि चीन अगर थोड़ी समझदारी दिखाए तो सामरिक विशेषज्ञों के अनुसार अगर भारत, चीन और रूस मिल जाएँ तो अमेरिका का वर्चस्व दुनिया से खत्म कर सकते हैं। लेकिन हमारा स्वाभाविक शत्रु चीन यह बात कभी नहीं समझेगा और वही करेगा जिसे वह सही मानता है।
भारत के पास ज्यादातर हथियार रूस से खरीदे हुए हैं, अब वो अमेरिका और इसराइल के हथियार खरीद रहा है लेकिन चीन खुद ही हथियार बनाता है और उन्हें विकसित कर अन्य देशों को भी बेचता है। यहाँ सनद रहे कि चीन के पास दुनिया की सबसे बड़ी सेना है, हथियारों के मामले में चीन आत्मनिर्भर है और भारत पर भारी पड़ता है। अमेरिकी स्टाइल में वो अपने दुश्मन (फिलहाल नंबर एक पर अमेरिका और दूसरे नंबर पर भारत आता है) को शत्रुओं से घिरा रखना चाहता है लेकिन अमेरिका उससे काफी दूर है इसलिए फिलहाल उसका कांस्ट्रेशन भारत पर ही है। अमेरिका के लिए तो उसने आईसीबीएम (इंटर कॉन्टिनेंटल बैलियास्टिक मिसाइल) बना रखी हैं जो किसी भी महाद्वीप के किसी भी देश को अपना शिकार बना सकती हैं और वे परमाणु हथियार भी ले जा सकती हैं। ऐसी मिसाइलों की मारक क्षमता 5000 से 12000 किलोमीटर तक होती है। भारत भी अग्नि का अगला स्वरूप आईसीबीएम के रूप में ही बना रहा है।
दोस्तों, चाणक्य ने कहा था कि जिस देश की सीमा आपसे मिलती हो वो आपका स्वाभाविक शत्रु होता है। पूरे विश्व में अमेरिका-कनाडा को छोड़ दिया जाए तो सीमा मिले देशों की दोस्ती की कोई मिसाल नहीं मिलती। कोई ज्यादा तीव्र शत्रु है तो कोई कम तीव्र है। लेकिन शत्रु होना तय है। दुर्भाग्य से हम सभी ओर से शत्रुओं से घिरे हुए हैं। प्रकृति ने हमारी रक्षा के लिए हिंद महासागर और अरब सागर को तीन ओर रखा था और एक ओर हिमालय था लेकिन हमारा सबसे शक्तिशाली शत्रु चीन फिलहाल हमें हिमालय पर चढ़कर ही घूर रहा है।
साभार- www.kranti4people.com

1 comment:

Anonymous said...

aapne bilkul sahi kaha hum bharatwaasio ko hi milkar sochna hoga