प्रस्तुति- डॉ0 संतोष राय
इंडिया एगेंस्ट करप्शन
आआआआआआआआआआआआआ
हो.... एक दिग्गी को देखा तो ऐसा लगा..
हो.... एक दिग्गी को देखा तो ऐसा लगा..
"इस दिग्गी को देखा तो ऐसा लगा
हो अण्डा सड़ा जैसे जयचंद की औलाद
जैसे गोबर की खाद
जैसे नाली मैं पड़ा....
जैसे मस्जिद के बाहर हो सूकर खड़ा
जैसे कुत्ते की पूछ ,
जैसे हिजड़े की मूंछ ,
जैसे धोबी का हो कोई भटका गधा
जैसे कसाब का वकील
जैसे कोंग्रेस के ताबूत की हो आख़िरी कील
जैसे भारत का बोझ
जैसे अविकसित सोच....
जैसे निशान-ए-पाक
जैसे जनम से नापाक...
जैसे हिन्दू कोई बन जाये मियां
-आआआआआआआआआआआआआ
हो.... एक दिग्गी को देखा तो ऐसा लगा..
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