हिन्दुओं जागो बर्ना घर में से निकालकर मारे जाओगे यही इटली की सोनिया चाहती है
Swati Kurundwadkar
प्रस्तुतिः डॉ0 संतोष राय
बहुत दिनों से एक बात सुन रही हूँ और मेरा खुद का अनुभव भी ये ही कहता हैं की देश में मुस्लिम आबादी और ईसाईयों की संख्या बढती जा रही हैं. कुछ तो उनके संतानोत्पादन के कारण बढ़ रही हैं और कुछ धर्मान्तरण के कारण बढ़ रही हैं. हम जानते हैं की मुस्लिमों और ईसाईयों को धर्मांतरण के लिए बाहरी देश पैसे से मदद कर रहे हैं. ये वास्तव में एक चिंता का विषय हैं. किन्तु ये चिंता सिर्फ पादरियों और मौलवियों को गालिया देने से दूर नहीं होगी. इसे चिंता का नहीं चिंतन का विषय बनाना होगा.
धर्मांतरण के लिए जो आर्थिक सहायता दी जाती हैं , अनाथ बच्चों को गोद लिया जाता हैं जैसा की मदर थेरेसा ने किया था. उन्हें उज्जवल भविष्य के सपने दिखाए जाते हैं. रोजगार और शिक्षा की सुविधाए उपलब्ध करवाई जाती हैं इन सबमे एक बहुत बड़ी राशि का खेल चलता हैं. इन सबमे बहुत पैसा लगता हैं.
क्या हमारे मंदिरों में चढ़ाई जाने वाली दानराशि जो करोड़ों में होती हैं, सोने-चाँदी, हीरे-मोती के रूप में होती हैं. रेशमी महँगी साड़ियों और धोतियों के रूप में होती हैं, बहुमूल्य रत्नों के रूप में होती हैं. हाथियों, गौ माता के रूप में होती हैं, उससे भी ज्यादा पैसा इन मदरसों और कॉन्वेंट वालों के पास हैं?
१) क्या चढ़ावे की इस राशि का उपयोग अनाथ गरीब हिन्दू बच्चों को गोद लेकर उनके रहन-सहन, शिक्षा, कुटीर उद्योग, रोजगार के लिए इस्तेमाल किया जाता हैं?
२) क्या चढ़ावे में प्राप्त इन आभूषण, रत्नों और महंगे वस्त्रों का उपयोग गरीब परिवार की पुत्री के विवाह में किया जाता हैं?
३) तिरुपति बालाजी, सिद्धिविनायक, जेजुरी के खंडोबा, कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर, शिर्डी के साईं मंदिर, शेगांव के गजानन महाराज, दक्षिणी मंदिरों और धर्म संस्थाओं, वैष्णो देवी के मंदिर , कामख्या शक्तिपीठ, इंदौर के खजराना गणेश इत्यादि इन संपन्न देवस्थानो का हिन्दू धर्म की रक्षा में क्या आर्थिक योगदान हैं?
४ ) जैसा की हम जानते हैं की धर्मांतरण का सारा खेल मदरसों और कॉन्वेंट स्कूलों जैसी शिक्षण संस्थाओं के द्वारा प्रायोजित किया जाता हैं. ऐसे में ये हिन्दू देवस्थान देवस्थान कौनसी ऐसी संस्थाए चलाते हैं जिनमे वैदिक और सनातन पद्धति से शिक्षा दी जाती हो वो भी निशुल्क ? संस्कृत, हिंदी और अन्य प्रादेशिक भाषाओं की शिक्षा बिनामुल्य दी जाती हो ?
५ ) धर्म के प्रसार के लिए जैसे मदरसे और चर्च आगे बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं उसी प्रकार धर्म की हानि को रोकने के लिए ये सर्व सुविधा संपन्न हिन्दू देवस्थान क्या भूमिका निभा रहे हैं ?
६ ) क्या अरबो-खरबों की इस दानराशि का उपयोग गरीब हिन्दुओं के लिए किया जा रहा हैं? हिन्दू समाज में खुशहाली और उन्नति लाने के लिए किया जाता हैं ?
ऐसे बहुत से प्रश्न हैं जिनकेउत्तर बहुत आसान हैं लेकिन कोई इनपर विचार सिर्फ इसलिए नहीं करना चाहता क्योकि ये धर्म का विषय हैं. किन्तु क्या आपको नहीं लगता की उस दानराशि का उपयोग समाज कल्याण, हिन्दू हित में किया जाना अत्यंत आवश्यक हैं ? क्या इससे धर्मांतरण पर रोक नहीं लगेगी ? क्योकि धर्मांतरण हमेशा ही पैसो के लिए किया जाता हैं. ( जो स्वेच्छा से किया गया हो.)
क्या धर्म की रक्षा के लिए इन धर्म स्थानों को आगे नहीं आना चाहिए ?? क्या इन्हें ऐसा कोई इनाम घोषित नहीं करना चाहिए की जो धर्म में वापस आयेगा उसको सत्कार राशि और सहायता राशि दी जायेगी ?? आप लोगों के विचार सादर आमंत्रित हैं.
Swati Kurundwadkar
प्रस्तुतिः डॉ0 संतोष राय
बहुत दिनों से एक बात सुन रही हूँ और मेरा खुद का अनुभव भी ये ही कहता हैं की देश में मुस्लिम आबादी और ईसाईयों की संख्या बढती जा रही हैं. कुछ तो उनके संतानोत्पादन के कारण बढ़ रही हैं और कुछ धर्मान्तरण के कारण बढ़ रही हैं. हम जानते हैं की मुस्लिमों और ईसाईयों को धर्मांतरण के लिए बाहरी देश पैसे से मदद कर रहे हैं. ये वास्तव में एक चिंता का विषय हैं. किन्तु ये चिंता सिर्फ पादरियों और मौलवियों को गालिया देने से दूर नहीं होगी. इसे चिंता का नहीं चिंतन का विषय बनाना होगा.
धर्मांतरण के लिए जो आर्थिक सहायता दी जाती हैं , अनाथ बच्चों को गोद लिया जाता हैं जैसा की मदर थेरेसा ने किया था. उन्हें उज्जवल भविष्य के सपने दिखाए जाते हैं. रोजगार और शिक्षा की सुविधाए उपलब्ध करवाई जाती हैं इन सबमे एक बहुत बड़ी राशि का खेल चलता हैं. इन सबमे बहुत पैसा लगता हैं.
क्या हमारे मंदिरों में चढ़ाई जाने वाली दानराशि जो करोड़ों में होती हैं, सोने-चाँदी, हीरे-मोती के रूप में होती हैं. रेशमी महँगी साड़ियों और धोतियों के रूप में होती हैं, बहुमूल्य रत्नों के रूप में होती हैं. हाथियों, गौ माता के रूप में होती हैं, उससे भी ज्यादा पैसा इन मदरसों और कॉन्वेंट वालों के पास हैं?
१) क्या चढ़ावे की इस राशि का उपयोग अनाथ गरीब हिन्दू बच्चों को गोद लेकर उनके रहन-सहन, शिक्षा, कुटीर उद्योग, रोजगार के लिए इस्तेमाल किया जाता हैं?
२) क्या चढ़ावे में प्राप्त इन आभूषण, रत्नों और महंगे वस्त्रों का उपयोग गरीब परिवार की पुत्री के विवाह में किया जाता हैं?
३) तिरुपति बालाजी, सिद्धिविनायक, जेजुरी के खंडोबा, कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर, शिर्डी के साईं मंदिर, शेगांव के गजानन महाराज, दक्षिणी मंदिरों और धर्म संस्थाओं, वैष्णो देवी के मंदिर , कामख्या शक्तिपीठ, इंदौर के खजराना गणेश इत्यादि इन संपन्न देवस्थानो का हिन्दू धर्म की रक्षा में क्या आर्थिक योगदान हैं?
४ ) जैसा की हम जानते हैं की धर्मांतरण का सारा खेल मदरसों और कॉन्वेंट स्कूलों जैसी शिक्षण संस्थाओं के द्वारा प्रायोजित किया जाता हैं. ऐसे में ये हिन्दू देवस्थान देवस्थान कौनसी ऐसी संस्थाए चलाते हैं जिनमे वैदिक और सनातन पद्धति से शिक्षा दी जाती हो वो भी निशुल्क ? संस्कृत, हिंदी और अन्य प्रादेशिक भाषाओं की शिक्षा बिनामुल्य दी जाती हो ?
५ ) धर्म के प्रसार के लिए जैसे मदरसे और चर्च आगे बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं उसी प्रकार धर्म की हानि को रोकने के लिए ये सर्व सुविधा संपन्न हिन्दू देवस्थान क्या भूमिका निभा रहे हैं ?
६ ) क्या अरबो-खरबों की इस दानराशि का उपयोग गरीब हिन्दुओं के लिए किया जा रहा हैं? हिन्दू समाज में खुशहाली और उन्नति लाने के लिए किया जाता हैं ?
ऐसे बहुत से प्रश्न हैं जिनकेउत्तर बहुत आसान हैं लेकिन कोई इनपर विचार सिर्फ इसलिए नहीं करना चाहता क्योकि ये धर्म का विषय हैं. किन्तु क्या आपको नहीं लगता की उस दानराशि का उपयोग समाज कल्याण, हिन्दू हित में किया जाना अत्यंत आवश्यक हैं ? क्या इससे धर्मांतरण पर रोक नहीं लगेगी ? क्योकि धर्मांतरण हमेशा ही पैसो के लिए किया जाता हैं. ( जो स्वेच्छा से किया गया हो.)
क्या धर्म की रक्षा के लिए इन धर्म स्थानों को आगे नहीं आना चाहिए ?? क्या इन्हें ऐसा कोई इनाम घोषित नहीं करना चाहिए की जो धर्म में वापस आयेगा उसको सत्कार राशि और सहायता राशि दी जायेगी ?? आप लोगों के विचार सादर आमंत्रित हैं.
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