तिरमिजी हदीस न० १७१ के अनुसार खुदा के पैगम्बर (सल्ल.) ने फरमाया कि मेरी उम्मत (इसलाम के मानने वाले) ७३ फिरकों (सम्प्रदायों) में बँट जाएगी ! उनमे से सिवाय एक के हर फिरका (संप्रदाय) जहन्नम में जायेगा ! तो मुस्लमान भी तथानूसर बहुत से संप्रदाय और जातियों में बंटे हुए हैं और सभी में बहुत खींच तान और उंच, नींच का भेद है ! मगर हिन्दू कर्मानुसार सिर्फ चार वर्णों में वर्गीकृत किये गए थे और किसी भी वर्ण से कोई ऊंचा या नीचा नहीं था सभी एकदूसरे के सहयोगी और परिपूरक थे तथा किसी भी वर्ण में पैदा हुआ आदमी अपने कर्मानुसार किसी भी वर्ण में जाने का अधिकारी था, मगर दुर्भाग्य से कुछ स्वार्थी तत्वों के कारण हिन्दू वर्ण स्थाई हो गए और अनेकों जातियों तथा उप जातियों में विभाजित हो कर एक दूसरे से भेद भाव करने लगे ! इसी प्रकार अब समय की पुकार है कि सभी हिन्दू फिर से कर्मानुसार वर्ण व्यवस्था अपना लें और सभी आपस में एक दूसरे वर्ण के पूरक बनें तो ही विधर्मियों की चालावाजियों से अपने अस्तित्व की रक्षा की जा सकती है ! आओ हम सब एक बने और नेक बने !
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