Tuesday, July 12, 2011

हिन्दू मन्दिरों को “सेकुलर लूट” से बचाने हेतु सुप्रीम कोर्ट को कुछ सुझाव…

 सुरेश चिपलुनकर की कलम से


प्रस्‍तुतिः डॉ0 संतोष राय

लेखक का ब्‍लॉग है- http://www.blog.sureshchiplunkar.com/

 

Hindu Temples in India, Swami Padmanabh Temple


यदि आप सोचते हैं कि मन्दिरों में दान किया हुआ, भगवान को अर्पित किया हुआ पैसा, सनातन धर्म की बेहतरी के लिए, हिन्दू धर्म के उत्थान के लिए काम आ रहा है तो आप निश्चित ही बड़े भोले हैं। मन्दिरों की सम्पत्ति एवं चढ़ावे का क्या और कैसा उपयोग किया जाता है पहले इसका एक उदाहरण देख लीजिये, फ़िर आगे बढ़ेंगे-

कर्नाटक सरकार के मन्दिर एवं पर्यटन विभाग (राजस्व) द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार 1997 से 2002 तक पाँच साल में कर्नाटक सरकार को राज्य में स्थित मन्दिरों से “सिर्फ़ चढ़ावे में” 391 करोड़ की रकम प्राप्त हुई, जिसे निम्न मदों में खर्च किया गया-

1) मन्दिर खर्च एवं रखरखाव – 84 करोड़ (यानी 21.4%)
2) मदरसा उत्थान एवं हज – 180 करोड़ (यानी 46%)
3) चर्च भूमि को अनुदान – 44 करोड़ (यानी 11.2%)
4) अन्य - 83 करोड़ (यानी 21.2%)
कुल 391 करोड़

जैसा कि इस हिसाब-किताब में दर्शाया गया है उसको देखते हुए “सेकुलरों” की नीयत बिलकुल साफ़ हो जाती है कि मन्दिर की आय से प्राप्त धन का (46+11) 57% हिस्सा हज एवं चर्च को अनुदान दिया जाता है (ताकि वे हमारे ही पैसों से जेहाद, धार्मिक सफ़ाए एवं धर्मान्तरण कर सकें)। जबकि मन्दिर खर्च के नाम पर जो 21% खर्च हो रहा है, वह ट्रस्ट में कुंडली जमाए बैठे नेताओं व अधिकारियों की लग्जरी कारों, मन्दिर दफ़्तरों में AC लगवाने तथा उनके रिश्तेदारों की खातिरदारी के भेंट चढ़ाया जाता है। उल्लेखनीय है कि यह आँकड़े सिर्फ़ एक राज्य (कर्नाटक) के हैं, जहाँ 1997 से 2002 तक कांग्रेस सरकार ही थी…

अब सोचिए कि 60-65 साल के शासन के दौरान कितने राज्यों में कांग्रेस-वामपंथ की सरकारें रहीं, वहाँ कितने प्रसिद्ध मन्दिर हैं, कितने देवस्थान बोर्ड एवं ट्रस्ट हैं तथा उन बोर्डों एवं ट्रस्टों में कितने कांग्रेसियों, गैर-हिन्दुओं, “सो कॉल्ड” नास्तिकों की घुसपैठ हुई होगी और उन्होंने हिन्दुओं के धन व मन्दिर की कितनी लूट मचाई होगी। लेकिन चूंकि हिन्दू आबादी का एक हिस्सा इन बातों से अनभिज्ञ है…, एक हिस्सा मूर्ख है…, एक हिस्सा “हमें क्या लेना-देना यार, हम तो श्रद्धा से मन्दिर में चढ़ावा देते हैं और फ़िर पलटकर नहीं देखते, कि उन पैसों का क्या हो रहा है…” किस्म के आलसी हैं, जबकि “हिन्दू सेकुलरों” का एक बड़ा हिस्सा तो है ही, जिसे आप विभीषण, जयचन्द, मीर जाफ़र चाहे जिस नाम से पुकार लीजिए। यानी गोरी-गजनवी-क्लाइव तो चले गए, लेकिन अपनी “मानस संतानें” यहीं छोड़े गए, कि बेटा लूटो… हिन्दू मन्दिर होते ही हैं लूटने के लिए…। पद्मनाभ मन्दिर (Padmanabh Swamy Temple) की सम्पत्ति की गणना, देखरेख एवं कब्जा चूंकि सुप्रीम कोर्ट के अधीन एवं उसके निर्देशों के मुताबिक चल रहा है इसलिए अभी सब लोग साँस रोके देख रहे हैं।


सुप्रीम कोर्ट ने इस खजाने की रक्षा एवं इसके उपयोग के बारे में सुझाव माँगे हैं। सेकुलरों एवं वामपंथियों के बेहूदा सुझाव एवं उसे “काला धन” बताकर सरकारी जमाखाने में देने सम्बन्धी सुझाव तो आ ही चुके हैं, अब कुछ सुझाव इस प्रकार भी हैं –

1) सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक “हिन्दू मन्दिर धार्मिक सम्पत्ति काउंसिल” का गठन किया जाए। इस काउंसिल में सुप्रीम कोर्ट के एक वर्तमान, दो निवृत्त न्यायाधीश, एवं सभी प्रमुख हिन्दू धर्मगुरु शामिल हों। इस काउंसिल में पद ग्रहण करने की शर्त यह होगी कि सम्बन्धित व्यक्ति न पहले कभी चुनाव लड़ा हो और न काउंसिल में शामिल होने के बाद लड़ेगा (यानी राजनीति से बाहर)। इस काउंसिल में अध्यक्ष एवं कोषाध्यक्ष का पद त्रावणकोर के राजपरिवार के पास रहे, क्योंकि 250 वर्ष में उन्होंने साबित किया है कि खजाने को खा-पीकर “साफ़” करने की, उनकी बुरी नीयत नहीं है।

2) इस काउंसिल के पास सभी प्रमुख हिन्दू मन्दिरों, उनके शिल्प, उनके इतिहास, उनकी संस्कृति के रखरखाव, प्रचार एवं प्रबन्धन का अधिकार हो।

3) इस काउंसिल के पास जो अतुलनीय और अविश्वसनीय धन एकत्रित होगा वह वैसा ही रहेगा, परन्तु उसके ब्याज से सभी प्रमुख मन्दिरों की साज-सज्जा, साफ़-सफ़ाई एवं प्रबन्धन किया जाएगा।

4) इस विशाल रकम से प्रतिवर्ष 2 लाख हिन्दुओं को (रजिस्ट्रेशन करवाने पर) अमरनाथ, वैष्णो देवी, गंगासागर, सबरीमाला, मानसरोवर (किसी एक स्थान) अथवा किसी अन्य स्थल की धार्मिक यात्रा मुफ़्त करवाई जाएगी। एक परिवार को पाँच साल में एक बार ही इस प्रकार की सुविधा मिलेगी। देश के सभी प्रमुख धार्मिक स्थलों पर काउंसिल की तरफ़ से सर्वसुविधायुक्त धर्मशालाएं बनवाई जाएं, जहाँ गरीब से गरीब व्यक्ति भी अपनी धार्मिक यात्रा में तीन दिन तक मुफ़्त रह-खा सके।

5) इसी प्रकार पुरातात्विक महत्व के किलों, प्राचीन स्मारकों के आसपास भी “सिर्फ़ हिन्दुओं के लिए” इसी प्रकार की धर्मशालाएं बनवाई जाएं जिनका प्रबन्धन काउंसिल करेगी।

6) नालन्दा एवं तक्षशिला जैसे 50 विश्वविद्यालय खोले जाएं, जिसमें भारतीय संस्कृति, भारतीय वेदों, भारत की महान हिन्दू सभ्यता इत्यादि के बारे में विस्तार से शोध, पठन, लेखन इत्यादि किया जाए। यहाँ पढ़ने वाले सभी छात्रों की शिक्षा एवं आवास मुफ़्त हो।

ज़ाहिर है कि ऐसे कई सुझाव माननीय सुप्रीम कोर्ट को दिये जा सकते हैं, जिससे हिन्दुओं द्वारा संचित धन का उपयोग हिन्दुओं के लिए ही हो, सनातन धर्म की उन्नति के लिए ही हो, न कि कोई सेकुलर या नास्तिक इसमें “मुँह मारने” चला आए। हाल के कुछ वर्षों में अचानक हिन्दू प्रतीकों, साधुओं, मन्दिरों, संस्कृति इत्यादि पर “सरकारी” तथा “चमचात्मक” हमले होने लगे हैं। ताजा खबर यह है कि उड़ीसा की “सेकुलर” सरकार, पुरी जगन्नाथ मन्दिर के अधीन विभिन्न स्थानों पर जमा कुल 70,000 एकड़ जमीन “फ़ालतू” होने की वजह से उसका अधिग्रहण करने पर विचार कर रही है। स्वाभाविक है कि इस जमीन का “सदुपयोग”(?) फ़र्जी नेताओं के पुतले लगाने, बिल्डरों से कमाई करने, दो कमरों में चलने वाले “डीम्ड” विश्वविद्यालयों को बाँटने अथवा नास्तिकों, गैर-हिन्दुओं एवं सेकुलरों की समाधियों में किया जाएगा…। भारत में “ज़मीन” का सबसे बड़ा कब्जाधारी “चर्च” है, जिसके पास सभी प्रमुख शहरों की प्रमुख जगहों पर लाखों वर्गमीटर जमीन है, परन्तु सरकार की नज़र उधर कभी भी नहीं पड़ेगी, क्योंकि कांग्रेस के अनुसार “सफ़ेद” और “हरा” रंग पवित्रता और मासूमियत का प्रतीक है, जबकि “भगवा” रंग आतंकवाद का…।

जब से केरल के स्वामी पद्मनाभ मन्दिर के खजाने के दर्शन हुए हैं, तमाम सेकुलरों एवं वामपंथियों की नींद उड़ी हुई है, दिमाग पर बेचैनी तारी है, दिल में हूक सी उठ रही है और छाती पर साँप लोट रहे हैं। पिछले 60 साल से लगातार हिन्दुओं के विरुद्ध “विष-वमन” करने एवं लगातार हिन्दू धर्म व भारतीय संस्कृति को गरियाने-धकियाने-दबाने के बावजूद सनातन धर्म की पताका विश्व के कई देशों में फ़हरा रही है, बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में मन्दिर से निकले इस खजाने ने मानो सेकुलर-वामपंथी सोच के जले पर नमक छिड़क दिया है।

हिन्दू तो पहले से ही जानते हैं कि मन्दिरों में श्रद्धापूर्वक भगवान को अर्पित किया हुआ टनों से सोना-जवाहरात मौजूद है, इसलिए हिन्दुओं को पद्मनाभ स्वामी मन्दिर की यह सम्पत्ति देखकर खास आश्चर्य नहीं हुआ, परन्तु “कु-धर्मियों” के पेट में दर्द शुरु हो गया। हिन्दुओं द्वारा अर्पित, हिन्दू राजाओं एवं पुजारियों-मठों द्वारा संचित और संरक्षित इस सम्पत्ति को सेकुलर तरीके से “ठिकाने लगाने” के सुझाव भी आने लगे हैं, साथ ही इस सम्पत्ति को “काला धन” (Black Money in India) बताने के कुत्सित प्रयास भी जारी हैं। एक हास्यास्पद एवं मूर्खतापूर्ण बयान में केरल के एक वामपंथी नेता ने, इस धन को मुस्लिम और ईसाई राजाओं से लूटा गया धन भी बता डाला…

अतः इस लेख के माध्यम से मैं सुप्रीम कोर्ट से अपील करता हूँ कि वह “स्वयं संज्ञान” लेते हुए ताजमहल के नीचे स्थित 22 सीलबन्द कमरों को खोलने का आदेश दे, जिसकी निगरानी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो ताकि पता चले कि कहीं शाहजहाँ और मुमताज सोने की खदान पर तो आराम नहीं फ़रमा रहे? इन सीलबन्द कमरों को खोलने से यह भी साफ़ हो जाएगा कि क्या वाकई ताजमहल एक हिन्दू मन्दिर था? इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करके यह माँग भी की जाना चाहिए कि ज्ञानवापी मस्जिद के नीचे, अजमेर दरगाह के नीचे एवं गोआ के विशाल चर्चों तथा केरल के आर्चबिशपों के भव्य मकानों की भी गहन जाँच और खुदाई की जाए ताकि जो सेकुलर-वामपंथी हिन्दू मन्दिरों के खजाने पर जीभ लपलपा रहे हैं, वे भी जानें कि “उधर” कितना “माल” भरा है। हिन्दुओं एवं उनके भगवान के धन पर बुरी नज़र रखने वालों को संवैधानिक एवं कानूनी रूप से सबक सिखाया जाना अति-आवश्यक है… वरना आज पद्मनाभ मन्दिर का नम्बर आया है, कल भारत के सभी मन्दिर इस “सेकुलर-वामपंथी” गोलाबारी की रेंज में आ जाएंगे…

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चलते-चलते :-

पद्मनाभ मन्दिर की सम्पत्ति को लेकर कई तरह के "विद्वत्तापूर्ण सुझाव" आ रहे हैं कि इस धन से भारत के गरीबों की भलाई होना चाहिए, इस धन से जनकल्याण के कार्यक्रम चलाए जाएं, बेरोजगारी दूर करें, सड़कें-अस्पताल बनवाएं… इत्यादि। यानी यह कुछ इस तरह से हुआ कि परिवार के परदादा द्वारा गाड़ी गई तिजोरी खोलने पर अचानक पैसा मिला, तो उसमें से कुछ "दारुकुट्टे बेटे" को दे दो, थोड़ा सा "जुआरी पोते" को दे दो, एक हिस्सा "लुटेरे पड़पोते" को दे दो… बाकी का बैंक में जमा कर दो, जब मौका लगेगा तब तीनों मिल-बाँटकर "जनकल्याण"(?) हेतु खर्च करेंगे … :) :)। जबकि "कुछ सेकुलर विद्वान" तो पद्मनाभ मन्दिर की सम्पत्ति को सीधे "काला धन" बताने में ही जुट गए हैं ताकि उनके 60 वर्षीय शासनकाल के "पाप" कम करके दिखाए जा सकें…। ये वही लोग हैं जिन्हें "ए. राजा" और "त्रावणकोर के राजा" के बीच अन्तर करने की तमीज नहीं है…

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