प्रस्तुतिः डॉ0 संतोष राय
धर्मनिर्पेक्षता की आड़ में सच को चर गई सच्चर समिति तथा सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहे रंगनाथ मिश्र ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की ही धज्जियां उड़ा दीं
राजेन्द्र सच्चर समिति ने अल्पसंख्यकों के पिछड़ेपन पर अपनी रिपोर्ट ४०४ पृष्ठों में भारत सरकार को प्रस्तुत की है। वास्तविकता यह है कि भारतीय सविधान में और कानून में अल्पसंख्यक शब्द की परिभाषा ही नहीं हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी मुसलमानों को अल्पसंख्यक नहीं माना यद्यपि इस आदेश पर खण्डपीठ का स्थगनादेश है। अनुच्छेद २९ व ३० में अल्पसंख्यक हितों के लिए विशेष भाषा व संस्कृति वाले नागरिकों को अपनी भाषा, संस्कृति या लिपि बनाए रखने के लिए अपनी शिक्षा संस्थाएं चालाने ओर प्रशासन करने के भी अधिकार दिए गये है। परन्तु अल्पसंख्यक कौन हैं इसे परिभाषित नहीं किया गया।
२००१ की जनगणना के अनुसार भारत में मुस्लिम जनंसख्या १३-४२ प्रतिशत है जबकि उत्तर प्रदेश में यह प्रतिशत १८-५ है। १९५१ से २००१ तक हिन्दू जनसंख्या ९ प्रतिशत घटी जबकि मुस्लिम जनसंख्या ३ प्रतिशत बढ़ी। १९५१ में हिन्दू ८७-२४ प्रतिशत व मुस्लिम १०-४३ प्रतिशत थे। २००१ में हिन्दू ८४-१२ प्रतिशत ओर मुस्लिम १३-४२ प्रतिशत हो गए।
संविधान सभा के ऐतिहासिक निर्णयः
संविधान सभा द्वारा सरदार पटेल की अध्यक्षता में अल्पसंख्यक अधिकार संबंधी समिति बनाई गई थी। पी०सी० देशमुख ने २७ अगस्त १९४७ को इस समिति के सामने कहा अल्पसंख्यक से अधिक क्रूरतापूर्ण और कोई शब्द नहीं है। अल्पसंख्यक रूपी शैतान के कारण ही भारत देश बँट गया। एस. नागप्पा ने कहा अल्पसंख्यक बहुत समय से हमारी स्वतन्त्रता का मार्ग रोके थे। मुस्लिम सदस्य वी. पोकर ने मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र की माँग की थी और कहा कि मुसलमान सुसंगठित व शक्तिशाली हैं, यदि उन्हें लगा कि उनकी सुनवाई नहीं होगी तो वे उद्दण्ड हो जायेंगे।
संविधान सभा (२४.२६ मई १९४९) ने अल्पसंख्यक आरक्षण को गलत ठहराया मौ० इस्माइल ने मुस्लिम आरक्षण पर पुनर्चिचार की माँग की। संविधान सभा उपाध्यक्ष एच०सी० मुखर्जी न कहा यदि हम एक राष्ट्र चाहते हैं तो हम मजहब के आधार पर अल्पसंख्यक को मान्यता नहीं दे सकते। तजम्मुल हुसैन ने कहा हम अल्पसंख्यक नहीं हैं, यह शब्द अंग्रेजों की देन है, इसे शब्दकोश से हटा देना चाहिए। संविधान सभा में तजम्मुल हुसैन, मौलाना हरसत मोहाना और बेगम एजाज रसूल ने गैर साम्प्रदायिक राष्ट्रराज्य की पैरवी की। कुछ मुस्लिम सदस्यों ने मुस्लिमों के लिए विशेष रक्षा कवच की मांग की। अपत्तियों का उत्तर देते हुए सरदार पटेल ने कहा जो अल्मपत देश विभाजन करा सकता है वह कभी अल्पमत नहीं हो सकता। आप अतीत को भूल जाइए, यदि ऐसा संभव नहीं है तो आप अपनी पसंद के सर्वोत्तम स्थान (पाकिस्तान) चले जाइए। पं० नेहरू ने कहा मजहब आधारित अल्पसंख्यक बहुसंख्यक वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है।
भारतीय मुसलमानों की दशा व दिशा पर सच्चर समिति की रिपोर्टः
जस्टिम राजेन्द्र सच्चर समिति की रिपोर्ट कुल ४०४ (चार सौ चार) पृष्ठों में है। सच्चर समिति ने अपनी आख्या (रिपोर्ट) में मुसलमानों के विषय में जो संस्तुति की हैं उनमें कुछ प्रमुख आख्याएं यहाँ दी जा रही हैं:-
उसके अनुसार मुस्लिम समाज को कुल तीन वर्गो में बाँटा गया है-
अशरफः ये विदेशी मूल के मुसलमान हैं जिनके पूर्वज वास्तव में आक्रमणकारी मुस्लिम सेना के साथ आए थे और जो बाद में पीढ़ी दर पीढ़ी भारत में ही बसे हुए हैं।
अरजालः अरजाल मुसलमान वे हैं जिनके पूर्वज उच्च वर्ग के हिन्दू (ब्राह्मण, राजपूत आदि) थे और जिन्हें इस्लाम धर्म में बलात् सम्मिलित कराया गया था।
अजलाफः अजलाफ मुसलमान वे हैं जो दलित और पिछड़े वर्ग से है।
सच्चर समिति के अनुसार मुसलमानों का नेतृत्व केवल उच्च वर्ग के मुसलमानों के हाथों में चला आ रहा है, जिसे दलित व पिछड़े मुस्लिमों के हाथों में परिवर्तित कराया जाना बहुत आवश्यक है।
सच्चर समिति के प्रमुख प्रस्तावः
१ समता मूलक आयोग गठित किया जाये।
२ एक नया विविधता सूचकांक बनाया जाये जिसके आधार पर शिक्षा व रोजगार के अवसर सबको समान रूप से उपलब्ध करवाये जायें।
३ मुस्लिम मदरसों की डिग्रियों को विश्वविद्यालयों द्वारा दी गई डिग्रियों के समान माना जाए।
४ देश में अधिक से अधिक उर्दू माध्यम वाले स्कूल खोले जाँए।
५ एक राष्ट्रीय डाटा बैंक बनाया जाये।
६ मुसलमानों के विकास के कामों पर निगरानी के लिए एक स्वायत्त आकलन एवं निगरानी प्राधिकारण बनाया जाये।
७ दलित ओर पिछड़े वर्ग के मुसलमानों को आरक्षण दिया जाए।
८ आन्ध्र प्रदेश के समान स्थानीय निकायों में अल्पसंख्यकों को समुचित प्रतिनिधत्व देने के लिए प्रत्येक राज्य में ऐसा कानून बनाया जाए।
९ अल्पसंख्यकों को स्वरोजगार की व्यवस्था के लिए वित्तीय सहायता देने वाली वित्तीय संस्थाएं स्थापित की जाएं।
१० मदरसों को उच्च मायमिक शिक्षा से जोड़ा जाए जिससे कि मदरसा छात्रों को मुख्य शिक्षा धारा का लाभ उठाने में कठिनाई न हों।
११ दलित मुसलमानों को अनुसूचित जातियों में सम्मिलित किया जाए और उन्ही के समान आरक्षण इन मुसलमानों को भी दिया जाये।
१२ पिछड़ी मुस्लिम जातियों को हिन्दुओं की पिछड़ी जातियों के समान आरक्षण की व्यवस्था की जाए।
१३ मुसलमानों की उनकी जनसंख्या के अनुपात से शिक्षण संस्थाओं सरकारी नौकरियों, सेना व पुलिस में भर्ती की जाये।
१४ मुसलमानों को संसद व विधान सभाओं में भी आरक्षण दिया जाये। (सच्चर समिति के सन्दर्भ में मौलाना मदनी, देवबन्दी)।
सच्चर समिति पर पक्ष-विपक्ष में नेताओं व बुद्धिजीवियों के विचारः
श्री योगेन्द्र मकवाना (पूर्व ग्रहराज्य मंत्री एवं गुजारात कांग्रेस के वरिष्ठ नेता) का कहना है कि जब मुस्लिम समाज में वर्ण-व्यवस्था व छुआछूत ही नहीं है तो फिर मुसलमानों को दलितों के आरक्षण में भागीदार बनाना सरासर गलत है। (पंजाब केसरी, ११ दिसम्बर २००६)
पत्रकार तनवीर जाफरी के विचारः
राजेन्द्र सच्चर समिति का काम था कि वह भारतीय मुसलमानों की दशा व दिशा की सही जानकारी सरकार को दे सके। इस समिति का मुख्य कार्य भारतीय मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति का पता लगाना था। समिति के सात सदस्यों ने भारत के दूर-सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले मुसलमानों से व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क स्थापित किया। ८४ वर्षीय राजेन्द्र सच्चर ने समिति की रिपोर्ट में मुसलमानों के विकास व उनके सुदृढ़ीकरण हेतु क्या उपाय किए जा सकते है। उनका विस्तारपूर्वक हेतु क्या उपाय किए जा सकते हैं उनका विस्तारपूर्वक उल्लेख किया तथा ४०४ पृष्ठों की रिपोर्ट प्रस्तुत की। (वीर अर्जुन, १३ दिसम्बर २००६)।
प्रधानमंत्री डॉ० मनमोहन सिहं:
सच्चर समिति की रिपोर्ट आने के बाद राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में प्रधनमंत्री ने कहा कि समाज के सभी पिछड़े और अल्पंसख्यक वर्गो विशेषकर मुसलमानों को विकास के लाभ के बराबर की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए उनका सशक्तिकरण किये जाने की आवश्यकता है। प्रधनमंत्री ने कहा कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। (केन्द्र सरकार ने बजट की १५ प्रतिशत इसके लिए स्वीकृत भी कर दिया है।)
श्री के० नरेन्द्र (वीर अर्जुन)-
भारत के सभी संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का बताने वाले प्रधानमंत्री से यह प्रश्न पूछना होगा कि क्या हिन्दुओं में कोई गरीबों का वर्ग नहीं है, जिनकी आर्थिक स्थिति सुधारने की आवश्यकता है। इन दिनों देहाती किसानों ने जो आतमहत्याएं की हैं उनकी संख्या ४० हजार के लगभग है जिसमें मुसलमान नगण्य हैं हमारी सरकार ने यह क्यों नहीं देखा कि ५ लाख हिन्दू पिछले १८ वर्षो में जम्मू-कश्मीर (विशेषकर श्रीनगर घाटी) से निष्कासित कर दिये गये ओर वे अपने ही देश में शरणार्थी जीवन जी रहे है।
श्री मनमोहन शर्मा (वरिष्ठ पत्रकार, पंजाब केसरी)
राजेन्द्र सच्चर कम्युनिस्ट पार्टी और छात्र संघ से जुड़े रहे हैं तथा भारत के पूर्व प्रधानमंत्री इन्द्र कुमार गुजराल के विशेष कृपापात्र हैं। देश विभाजन के समय इन्द्र कुमार गुजराल के पिता अवतार नारायण गुजराल व राजेन्द्र सच्चर के पिता भीमसेन सच्चर कांगे्रस से जुड़े थे। देश विभाजन के समय इन दोनों ने भारत के स्थान पर पाकिस्तान का दामन थामा और दोनों ने लाहौर से कराची जाकर जिन्ना से सम्पर्क साधा और पाकिस्तान संविधान सभा की शपथ ग्रहण की परन्तु कुछ मुस्लिम लीगी नेशनल गार्डो ने इन दोनों के घरों पर हमला किया और घर लूट लिए। भयभीत अवतार नारायण गुजराल और भीमसेन सच्चर इसके बाद लुट-पिटकर भारत आ गये। पकिस्तान के पक्ष में अनेक बार लेख लिखने वाले प्रसिद्व पत्रकार कुलदीप नैयर राजेन्द्र सच्चर के बहनोई हैं। मुसलमानों की स्थिति पर सच्चर समिति ने जो रिपोर्ट भारत सरकार को प्रस्तुत की उससे पहले उसे इंडियन एक्सप्रेस दैनिक में लीक कर दिया गया। जिस महिला संवाददाता के नाम पर रिपोर्ट लीक कराई गई वह महिला मार्क्सवादी नेता सीताराम येचुरी की पत्नी है।
यह ध्यान मे रखना होगा कि सच्चर समिति की रिपोर्ट तैयार कराकर कांग्रेस के ६० वर्ष के शासन को शिकंजे में कसकर मुस्लिम वोट बैंक का अपने पक्ष में करने की यह राजनीतिक चाल वापपंथियों द्वारा विशेष रूप से चली गयी। अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू० बुश० के भारत दौरे के समय वामपंथियों ने मुसलमानों को आगे करके विरोध प्रदर्शन कराये थे। उत्तर भारत में अपनी राजनीति को प्रभावी बनाने के लिए वामपंथियों को मुस्लिम वोट बैंक बनाने की नई-नई चालें सूझ रही हैं। सच्चर समिति भी इस रणनीति का एक भाग है।
William Hunter Book - Indian Muslims
पहले बंगाल और उत्तरी राज्यों में अधिकतर सरकारी नौकरियों में मुसलमान होते थे परन्तु १८७० में बंगाल में १५६ तहसीलदारों में ४ए१५७ उपदंडाधिकारियों में ७ और ४६ जिला मुंसिफों की कुल छात्र संख्या ७ण्२ प्रतिशत है। शहरी क्षेत्रों में ४ण्६ प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र में १ण्५ प्रतिशत मुस्लिम छात्र स्नातकोत्तर कक्षा में पढ़ते हैं।
UNESCO-Education for Global Monitoring
पहले बंगाल और उत्तरी राज्यों में अधिकतर सरकारी नौकरियों में मुसलमान होते थे परन्तु १८७० में बंगाल में १५६ तहसीलदारों में ४१५७ उपदंडाधिकारियों में ७ और ४६ जिला मुंसिफों की कुल छात्र संख्या ७-२ प्रतिशत है। शहरी क्षेत्रों में ४-६ प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र में १-५ प्रतिशत मुस्लिम छात्र स्नातकोत्तर कक्षा में पढ़ते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार एवं पॉंचजन्य के पूर्व सम्पादक देवेन्द्र स्वरुप के विचार (पाचजन्य २४ दिसम्बर २००६) -
सच्चर कमेटी रिपोर्ट इस समय राष्ट्रीय बहस के केन्द्र में है। इस रपट में कहा गया है कि मुसलमान शिक्षा, राजनीति व आर्थिक क्षेत्र में बहुत पिछड़ गए हैं और इसका कारण उनके प्रति जानबूझकर अपनायी गई उपेक्षा व भेदभाव की नीति है। इस रपट को आधार बनाकर प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय विकास परिषद जैसे-संवैधानिक मंच पर खड़े होकर घोषणा कर दी कि राष्ट्रीय संसाधनों पर मुसलमानों को अधिकार पहले है शेष का बाद में। संभवतः उन्होंने जानबूझकर यह शब्दावली प्रयोग की जिससे राष्ट्रवादी विपक्ष-विशेषकर भाजपा भड़क उठे ओर उन पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाने को दौड़ पड़े। उनकी अपेक्षा पूरी हुई। विभाजन पूर्व तुष्टीकरण की नीति में से निकली मातृभूमि के विभाजन की विभीषिका को सीने में दबाए किसी भी राष्ट्रभक्त के अंतःकरण का उद्वेलित होना स्वभाविक ही है। किन्तु उस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करने से पहले यह परीक्षा होनी चाहिए थी कि सच्चर कमेटी सत्य का पता लगाने के लिए बनाई गई है या पहले से तय किए हुए किसी निष्कर्ष को एक रपट का रूप देने के लिए। यह जमीनी सर्वेक्षण पर आधारित एक सत्यान्वेषी रपट है या मेज पर बैठकर तैयार किया गया झूठ का पुलिंदा अच्छा होता कि सभी राज्यों में कुछ नगरों, कस्बों और गाँवों में जमीनी सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण कराया जाता कि १९४७ के बाद वहाँ रहने वाले अन्य समाजों की तुलना में उनकी प्रगति का अनुपात क्या है? यदि अन्यों की तुलना में मुस्लिम समाज पीछे रह गया है । इसके स्थानीय कारण क्या है? मैं अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि यदि ऐसा कोई जमीनी सर्वेक्षण कराया जाए तो चौंकाने वाले आँकड़े सामने आयेंगे।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिस (काँठ नामक) कस्बे में मेरा जन्म हुआ वहाँ हिन्दू और मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात लगभग बराबर है। कस्बा सीधे-सीधे हिन्दू और मुस्लिम दो भांगों में बँटा हुआ है। १९४७ तक मुस्लिम बस्ती में मुश्किल से दो या तीन पक्के मकान थे अधिकांश मुस्लिम बंधु जुलाहें, बढ़ई या अन्य प्रकार के श्रम से जीविकार्जन करते थे। शिक्षा का अनुपात बहुत कम था। पर अब उस भाग में बहुमंजिले पक्के मकान खड़े हैं। कार, ट्रक और अन्य स्वचालित वाहनों की भरमान है, मदरसे की संख्या बहुत बढ़ी जो कारीगर थे वे अपने कारखाने चला रहे हैं। उसी से कुछ दूर (३० कि०मी०) मुरादाबाद शहर है। कल तक वहाँ जो पीतल के बर्तन बनाने वाले कारीगर थे वे अपने स्वतंत्र कारखाने चला रहे हैं, सीधे निर्यात कर है। डिप्टीगंज, लाजपत नगर जैसे कई हिन्दू मुहल्ले अब मुस्लिम मुहल्ले बन गए हैं। ऊँची कीमत देकर मुस्लिम बंधु हिन्दू सम्पत्ति खरीद रहे हैं। मेरे कस्बे के कई मुस्लित युवक, जो मामूली बढ़ई का काम करते थे, अब दिल्ली में ठेकेदार बन गए हैं। उन्होंने पक्की कोठियां बना ली हैं। कुछ अपनी फैक्ट्री चला रहे हैं। बड़ी संख्या में मुस्लिम युवक पूरे भारतवर्ष से खाड़ी देशों में जा रहे हैं। वहाँ से अपने परिवारों को पैसा भेज रहे हैं। तस्करी के व्यापार में भी मुस्लिम अनुपात अधिक है। पूर्वी और पश्चिमी समुद्र तटों पर मुस्लिम बस्तियों की समृद्वि की तुलना में गैर मुस्लिम बस्तियों पर उदासी और गरीबी छाई हुई है। शिक्षा के क्षेत्र में १९४७ से अब तक मदरसों की संख्या इतनी अधिक बढ़ी हे कि उसकी संख्या तय करना कठिन है। उनकी संख्या और उनके पढ़ने वाले छात्रों की संख्या के सही-सही आँकड़े सामने आने चाहिएँ। बालीवुड में करोड़ों-करोड़ों रुपयें कमाने वाले सितारों में सर्वाधिक संख्या मुसलमानों की है। बालीवुड पर खान छाए हुए हैं। यदि आप टेलीविजन के विभिन्न चैनल एंकरों, संवाददाताओं और अभिनेताओं के नामों पर गौर करेंगे तो पता चलेगा कि उनकी उपस्थ्ति बहुत तेजी से बढ़ रही हैं अंग्रेजी समाचार-पत्रों में भी मुस्लिम लेखकों की संख्या उनकी जनसंख्या के अनुपात से कई गुना अधिक है।
इन सब तथ्यों की ओर ध्यान आकर्षित करने का अर्थ यह नहीं है कि हमें उनकी प्रगति से ईर्ष्या या द्वेष है बल्कि हमें प्रसन्नता है कि हमारे मुस्लिम भाई राष्ट्र जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति कर रहे हैं। हमें शिकायत तो बस इस बात की है कि वोट बैंक राजनीतिक के लिए सत्य पर झूठ का परदा डाला जा रहा है। अच्छा हो कि कुछ विश्वविद्यालयों के अर्थशास्त्र विभाग, समाजशास्त्र एवं राजनीति शास्त्र विभाग एम.ए० एम०फिल या पीएचडी के छात्रों से चुने हुए सीमित क्षेत्रों का सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण करायें। ऐसा सर्वेक्षण चुनावी राजनीति से अलग हटकर विशुद्ध अकादमिक होगा।
वस्तुतः इस झूठ का विरोध तो मुस्लिम समाज की ओर से ही होनाा चाहिए। मुझे स्मरण आता है कि बहुत वर्ष पहले भारतीय मुसलमान पिछड़े और गरीब क्यों? शीर्षक से एक पुस्तक के लोकार्पण कार्यक्रम में मौलाना वहीदुदीन साहब ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि यह किताब सच्ची तस्वीर पेश नहीं करती। फिर आजमगढ़ जिले में अपने गाँव के मुस्लिम परिवारों क आर्थिक एवं शैक्षणिक प्रगति का वर्णन किया। सच्चर कमेटी की रपट में जेल में बंद मुसलामानों की संख्या को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है कि मानों उन्हें मुसलमान होने के कारण ही जानबूझकर जेल में ठूँस दिया गया है। किन्तु एक बार मौलाना वहीदुदीन साहब ने बहुत खेद के साथ लिखा कि अपराध जगत में मुसलमानों की संख्या अनुपात से इतनी अधिक क्यों है? वस्तुंतः यह मुस्लिम नेतृत्व का काम है कि वे अपने समाज को प्रगति का सही चित्र प्रस्तुत करके उनके अन्दर स्वाभिमान एवं आत्मविश्वास का भाव जागृत करें। ऐसा करने पर उनके मन में अपने देश और अन्य देशवासियों के प्रति आत्मीयता का भव पैदा होगा। उनके पिछड़ेपन और गरीबी के झूठे आँकड़े प्रचारित करके हम न केवल उनके आत्मविश्वास को नष्ट कर रहे हैं बल्कि उनके मन मे अपने देश और देशवासियों के प्रति विद्वेष व कटुता के बीज भी बो रहे हैं।
सच्चर से आगे निकले रंगनाथ मिश्रः सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहे श्री रंगनाथ मिश्र की अध्यक्षता में भी केन्द्र सरकार ने एक आयोग बनाया था जिसकी रिपोर्ट देते हुए मिश्र जी ने कहा है कि भारत के मुस्लिम व ईसाईयों को हर प्रकार की वह सुविधा मिलनी चाहिए जो हिन्दुओं की अनुसूचित जाति व अनुसूचित जन जाति को मिलती है।
सर्वोच्च न्यायालय यद्यपि इसके विपरीत निर्णय दृढ़तापूर्व दे चुका है परन्तु रंगनाथ मिश्र को सच्चर की राह पर जाने में किसी को लज्जा का अनुभव नहीं हुआ।
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