नई दिल्ली [अंशुमान तिवारी]। रिजर्व बैंक के खातों से हर साल करीब 23 हजार करोड़ रुपये गुमनाम ढंग से विदेश चले जाते हैं। इतनी बड़ी रकम के जाने का मकसद रिजर्व बैंक के खातों में दर्ज नहीं है। काले धन के विदेश जाने की रोशनी में यह तथ्य सनसनीखेज और हैरतअंगेज है, क्योंकि रिजर्व बैंक एक-एक डॉलर गिन कर लेता-देता है।
विदेशी मुद्रा खाते में इतनी बड़ी अनधिकृत और लगातार निकासी अभूतपूर्व है। यह भारी मात्रा में धन के अवैध रूप से विदेश जाने के शक को पुख्ता करता है। विदेशी मुद्रा खाता आमतौर पर साफ-सुथरा माना जाता है, लेकिन अनिवासी भारतीयों पर टैक्स को लेकर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक [कैग] की पड़ताल के बाद रिजर्व बैंक का विदेशी मुद्रा प्रबंधन गंभीर सवालों में घिर गया है। दैनिक जागरण के पास उपलब्ध दस्तावेज बताते हैं कि 2005 से 2007 के बीच दो साल में करीब 46 हजार करोड़ रुपये रिजर्व बैंक के खातों से रहस्यमय ढंग से विदेश चले गए। इतनी बड़ी रकम किन आयातों या भुगतानों के बदले दी गई, इसका रिजर्व बैंक के पास कोई प्रमाण नहीं है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि यह तथ्य साबित करता है कि अनजान और अप्रामाणिक वजहों से विदेशी मुद्रा देश से बाहर जा रही है।
विदेशी मुद्रा की आवक और निकासी की गणित आसान है। भारत में वाणिज्यिक आयात का हिसाब-किताब विदेश व्यापार महानिदेशालय [डीजीएफटी] रखता है जबकि आयात के बदले विदेशी मुद्रा देने की जिम्मेदारी रिजर्व बैंक की है। इसके अलावा कुछ आयात रक्षा जरूरतों के लिए किए जाते हैं। आमतौर पर कुल [वाणिज्यिक व रक्षा] आयात के मूल्य के बराबर ही विदेशी मुद्रा रिजर्व बैंक के खातों से जारी होनी चाहिए ताकि विदेशी मुद्रा का खाता बराबर रहे, लेकिन दस्तावेज बताते हैं कि 2005-07 के बीच जो विदेशी मुद्रा रिजर्व बैंक से जारी हुई, वह कुल आयात मूल्य से 46 हजार 736 करोड़ रुपये ज्यादा थी।
रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक दशक के दौरान भारत से धन का विदेश जाना बहुत तेजी से बढ़ा है। यह बढ़ोतरी सेवाओं और निजी हस्तांतरण यानी फंड ट्रांसफर के मद में सबसे ज्यादा है। 2001-02 में विभिन्न सेवाओं के आयात के बदले केवल 65 हजार 850 करोड़ रुपये विदेश जाते थे, जो पिछले दशक के अंत में करीब चार गुना बढ़कर दो लाख 10 हजार करोड़ रुपये से ऊपर निकल गए हैं। निजी फंड भी पिछले दशक के अंत में तकरीबन छह गुना बढ़कर 9290 करोड़ रुपये पर पहुंच गए हैं। इन्हीं भुगतानों और ट्रांसफर की ओट में काला धन विदेश भेजे जाने का शक है। यही वजह है कि दुनिया के अमीर देशों [जी-20] ने टैक्स हैवेन देशों के खिलाफ 2009 से मुहिम चला रखी है।
मॉरीशस ने पहली बार दी कर चोरों की जानकारी
नई दिल्ली। बढ़ते दबाव के बीच मॉरीशस ने भारत को पहली बार कर चोरी की जानकारी दी है। यह जानकारी उस व्यक्ति के बारे में है, जिसकी आयकर विभाग कर चोरी और मनी लांड्रिंग [धन के अवैध लेनदेन] के मामले में जांच कर रहा है। एक अधिकारी ने बताया कि इस व्यक्ति ने देश से बाहर बड़े पैमाने पर रकम भेजी थी। उसने इस व्यक्ति का नाम उजागर नहीं किया।
इस अधिकारी ने कहा कि यह टैक्स हैवेन में जमा बेहिसाब दौलत का पता लगाने और उसे वापस लाने की सरकार की कोशिशों को मिली बड़ी कामयाबी है। भारत सरकार कर चोरी और मनी लांड्रिंग संबंधी जानकारी देने के लिए मॉरीशस पर भारी दबाव डाल रही थी। मॉरीशस के रास्ते देश में बड़े पैमाने पर आ रहे वेंचर कैपिटल फंड को देखकर भारतीय एजेंसियों ने अपनी सतर्कता बढ़ा दी है। इस देश से भारत में अप्रैल, 2000 के बाद से अब तक 54.2 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआई] आ चुका है। यह अब तक देश में आए 130 अरब डॉलर के कुल एफडीआइ का 42 फीसदी है। मॉरीशस से आने वाले इस निवेश के बड़े हिस्से को भारतीयों की ही काली कमाई की वापसी माना जाता है। सरकार दोनों देशों के बीच जानकारी के आदान-प्रदान के लिए मॉरीशस के साथ दोहरा कराधान रोकने वाली संधि में संशोधन के लिए पर बातचीत कर रही है।
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