Saturday, May 7, 2011

पाकिस्‍तान के दामन पर दाग

 इब्राहीम कुंभर           प्रस्‍तुतिःडॉ0 संतोष राय

पाकिस्तान में हिंदू बनकर रहना इतना आसान नहीं। यह पाकिस्तान के एक बड़े अखबार में छपे लेख की पहली पंक्ति है। इसकी लेखक हैं पाकिस्तान की राष्ट्रीय असेंबली की सदस्य मारवी मेमन। देश के सियासी और सामूहिक मुद्दों पर मारवी मेमन की पैनी नजर है। इसी लेख में उन्होंने लिखा है कि पाकिस्तान में फिरौती के लिए हिंदुओं के अपहरण की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। सरकार ने संविधान में संशोधन करके सीनेट यानी ऊपरी सदन में अल्पसंख्यकों के लिए चार सदस्यों का कोटा रखा है। इसी तरह सरकारी नौकरियों में पांच प्रतिशत आरक्षण है। इसके अलावा पाकिस्तान में पहली बार अल्पसंख्यक मंत्रालय बनाया गया है। बाहर से देखने में तो ये बातें बड़ी लुभावनी हैं, लेकिन असलियत यह है कि देश में अल्पसंख्यकों की हालत अच्छी नहीं है। पाकिस्तान में लोगों का अपहरण तो आम है, लेकिन काफी समय से देश के उन हिस्सों में ये घटनाएं अधिक हो रही हैं जहां अल्पसंख्यक खासकर हिंदू अधिक बसते हैं। सिख, ईसाई, हिंदू और पारसी सब पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की श्रेणी में आते हैं। देश में बसने वाले हिंदुओं में से 90 प्रतिशत सिंध प्रांत में रहते हैं। राज्य की ओर से बार-बार सुरक्षा का यकीन दिलाने के बावजूद पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यक अपनी सुरक्षा को लेकर भयाक्रांत हैं। बार-बार खुद को देश का हिस्सा होने का यकीन दिलाने के बावजूद 60 सालों से इन लोगों पर एक खौफ पीछा नहीं छोड़ता। पाकिस्तान में बसने वाले अल्पसंख्यक समूहों-हिंदुओं, ईसाइयों, सिखों और पारसियों की अलग-अलग समस्याएं हैं। ईसाई धर्म से जुडे़ लोगों का मानना है कि उन्हें पंथिक स्वतंत्रता तो है, लेकिन किसी मुसलमान की शिकायत पर उनके खिलाफ ईश-निंदा कानून की तलवार हमेशा लटकी रहती है, जैसाकि आसिया बीबी केमामले में हुआ है। वे भयाक्रांत रहते हैं कि इस कानून में मुकदमा दर्ज हो गया तो मौत तय है। सबसे ज्यादा परेशानी पाकिस्तान के प्रांत सिंध और बलूचिस्तान में बसने वाले हिंदुओं को है, क्योंकि इन दिनों उनका अपहरण आम बात बन चुकी है। सिंध प्रांत के जि़ला कशमोर कंधकोट में इस समय भी ये ही हालत हैं। हिंदू खुद को अरक्षित महसूस करते हैं। रोज़ाना लोगों को उठा लिया जाता है और उनमें ज्यादातर हिंदू ही कोते हैं। देश में बच्चों की सुरक्षा के लिए काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन ने एक अध्ययन के अनुसार बताया है कि ज्यादा अपहरण का धंधा वहां होता है जहां हिंदू रहते हैं। कशमोर कंधकोट में बच्चों के हवाले से किए गए अध्ययन में बताया गया है कि खाली इस एक इलाके में 2008 से 2010 तक 23 बच्चों का अपहरण हुआ है, जिनमें 9 बच्चे हिंदू थे और उनमें भी चार लड़कियां थीं। ये ऐसे केस हैं जो रिपोर्ट होते हैं। कई अपहरण के केस वे हैं जिनका पता नहीं चलता। यह भी होता है कि अपराधी बच्चा लेकर उनके मित्रों को पैसे के लिए कहने के बाद ये भी धमकी देते हैं कि पुलिस को बताया तो बच्चे को मरा पाएंगे। कई केस ऐसे भी हैं जिसमें स्थानीय पुलिस को सब पता होता है, लेकिन वह कुछ नहीं बताती। देश की सरकार की कोशिश है कि देश में बसने वाले अल्पसंख्यक समुदाय का भी इस तरह ख्याल रखा जाए जिस तरह दूसरे नागरिक रहते हैं, लेकिन समाज पर कलंक का टीका वे लोग लगा रहे हैं जिनका न कोई धर्म है और न कोई भाषा। इस समय भी सिंध केबख्शापुर गांव में तीन साल से भी कम उम्र की रोशनी एक महीने से डाकूओं के पास है, जबकि तीन साल के तरनजीत की माता और पिता भी उसके लौटने की आस में हैं। सारा काम इसलिए होता हो कि अपराधी इन हिंदुओं को रोकड़ समझते हैं। ये हालात हैं सिंध प्रांत के। अब आएं ज़रा बलूचिस्तान में, जहां से पांच लोग उठा लिए गए हैं, और वे भी सब हिंदू हैं। एक हफ्ता पहले ही राष्ट्रीय असेंबली की स्थायी समिति की बैठक में यह मामला लाया गया था, जिसके बाद यह सिफारिश आई कि इन लोगों को जल्दी रिहा करवाया जाए। इन मुद्दों पर राष्ट्रीय असेंबली में हिंदू सांसदों की आवाज़ आती रहती हैं कि हमें सुरक्षा दी जाए या कोई रास्ता बताया जाए। हम भारत जा नहीं सकते, क्योंकि पाकिस्तान को ही अपना देश समझते हैं। इस देश के लिए हमने बलिदान दिया है, लेकिन कोई हमें बताए कि हमें सुरक्षा कौन देगा? बलूचिस्तान में ही किलात शहर में काली माता के मंदिर के पुजारी जिसे हिंदू अपना आध्यात्मिक नेता मानते हैं, को भी नहीं छोड़ा गया। लखीचंद गिरजी के अपहरण को करीब एक महीना होने वाला है। बलूचिस्तान के हिंदुओं का कहना है कि जनरल मुशर्रफ की तानाशाही में जबसे सैन्य आपरेशन शुरू हुआ तब से हिंदुओं के साथ ज़ुल्म भी शुरू हो गया। बंशी लाल का कहना है कि चार माह में यहां से 40 लोगों का अपहरण हुआ है और हम इस देश के रहने वाले हैं, लेकिन कोई हमसे पूछने वाला नहीं कि आप पर क्या बीत रही है, जबकि वहां के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री बसंत लाल का कहना है कि ऐसी दुर्घटनाओं कि पीछे कई कारण होते हैं। इनके पीछे आतंकवादियों का हाथ भी हो सकता है तो आम अपराधी भी हो सकते हैं। जब उनसे यह सवाल किया गया कि तालिबान की क्वेटा शुरा का हाथ भी हो सकता है क्या तो मंत्री ने कहा कि नहीं ऐसी बात नहीं, यहां से मुसलमानों का भी अपहरण होता है। सच यह है कि हर राज्य को मां की तरह होना चाहिए, क्योंकि मां कभी भी अपने बच्चों में फर्क नहीं रखती। पाकिस्तान में ऐसी सोच के लोग बहुत पाए जाते हैं जिनके सामने बहुसंख्यक, अल्पसंख्यक शब्द कोई मायने नहीं रखते, लेकिन ऐसे लोगों को भी एक खास सोच ने जकड़ कर रखा है कि वे अपनी आवाज बुलंद नहीं कर सकते।

(लेखक पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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