प्रस्तुतिः डॉ0 संतोष राय
जब हम वेद, उपनिषद्, ब्राह्मण,आरण्यक, पुराण,महाभारत, रामायण आदि भारत के प्राचीन साहित्य पढ़ते हैं, तो उसमें वर्णित कुछ घटनाएं वैज्ञानिक विकास का आभास देती हैं ! जैसे:-
१. उपनिषद् में वर्णित घटना कि उपमन्यु कि नेत्र ज्योति चली जाती है तो अश्विनी कुमार उसे पुनः नेत्र ज्योति देते हैं !
२. शाण्डिली के पति कि मृत्यु पर अनुसूया उसे पुनः जीवित करती है !
३. च्यवन ऋषि का वार्धक्य (वृद्धा अवस्था) अश्विनी कुमार दूर करते हैं !
४. रावण द्वारा विभिन्न भौतिक शक्तियों पर नियंत्रण !
५. त्रिपुरासुर के तीन नगर जमीन , आसमान और जल में गतिमान होते थे !
६. पौलुमी आकाशस्थ नगरवासी असुरों से अर्जुन का युद्ध !
७. विभिन्न देवताओं के अंतरिक्ष यान !
८. दिव्यास्त्रों का वर्णन !
९. रामायण में इच्क्षानुसार चलने वाला पुष्पक विमान !
इन सब बातों को पढ़ाने से प्रतीत होता है हमारा यह भारत एक अत्यंत ही विकसित सभ्यता से संपन्न राष्ट्र था ! तो फिर प्रश्न उठता है, कि क्या ये बातें मात्र कथा, कहानी या कवि की कपोल कल्पना मात्र थी ? क्योंकि यदि ऐसा हुआ था तो उसकी तकनीक क्या थी ? इस तकनीक को बताने वाले ग्रन्थ कौन से थे ? यह जानने का प्रयत्न करने में सबसे बड़ी बाधा है भाषा की ! जो भी जानकारी उपलब्ध है वह संस्कृत में है ! आज भी हजारों, लाखों पांडुलिपियाँ यत्र-तत्र बिखरी पड़ी हैं ! फिर भी प्रायोगिक विज्ञान के कुछ क्षेत्रों में हुई प्रगति के प्रमाण और कुछ ग्रन्थ हैं, जिनसे हम इसे जान सकते हैं !
नानाविधानाम वस्तुनाम यंत्रनाम कल्पसम्पदा
धतुनाम सधानानाम च वास्तुनाम शिल्पसंग्यितम !
कृषिर्जलम खनिश्चेती धातुखंडम त्रिधाभिधम !!
नौका-रथाग्नियानानाम, क्रितिसाधनमुच्यते !
वेश्म, प्राकार, नगररचना वास्तु संग्यितम !! - भृगु संहिता -१/३
भृगु दस शास्त्रों का उल्लेख करते हैं:-
१. कृषि शास्त्र
२. जल शास्त्र
३. खानी शास्त्र
४. नौका शास्त्र
५. रथ शास्त्र
६. अग्नियान शास्त्र
७. वेश्म शास्त्र
८. प्राकार शास्त्र
९. नगर शास्त्र
१०. यन्त्र शास्त्र !
इसके अतिरिक्त ३२ प्रकार की विद्याएं तथा ६४ प्रकार की कलाओं का उल्लेख आता है ! इनमें धातु विज्ञान, वस्त्र विज्ञान, स्वास्थ्य, कृषि, बांध बनाना, वन रोपनी, युद्ध, शस्त्र, पुल बनाना, मुद्रा शस्त्र, नौका, रथ, विमान, नगर रचना, गृह निर्माण, स्वास्थ्य, जीव शास्त्र, वनस्पति शास्त्र, भोजन बनाना, बाल संगोपन, राज्य सञ्चालन, आमोद-प्रमोद आदि सब आते थे ! इस विषय सूचि को देखकर लगाता है कि इनकी परिधि सम्पूर्ण जीवन को व्याप्त करने वाली थी ! इन विद्यायों के अनेक ग्रन्थ थे, कितने ही लुप्त हो गए ! कई विद्याएं, जानने वालों के साथ ही लुप्त हो गयी क्योंकि हमारे पास यहाँ एक मान्यता रही कि अनाधिकारी के हाथ में विद्या नहीं जानी चाहिए ! यद्यपि यह सत्य है कि बहुत सा ज्ञान लुप्त हो गया, परन्तु आज भी लाखों पांडुलिपियाँ बिखरी पड़ी हैं ! आवश्यकता है उनके अध्ययन, विश्लेषण और प्रयोग की ! इस प्रक्रिया से शायद ज्ञान के कई नए क्षेत्र उदघाटित हो सकते हैं ! इस समस्त ज्ञान पुंज को हम हिंदी भाषा में भाषांतरित करके हिंदी, हिन्दू और हिन्दुस्थान तीनो को समृद्ध कर सकते हैं ! .
जब हम वेद, उपनिषद्, ब्राह्मण,आरण्यक, पुराण,महाभारत, रामायण आदि भारत के प्राचीन साहित्य पढ़ते हैं, तो उसमें वर्णित कुछ घटनाएं वैज्ञानिक विकास का आभास देती हैं ! जैसे:-
१. उपनिषद् में वर्णित घटना कि उपमन्यु कि नेत्र ज्योति चली जाती है तो अश्विनी कुमार उसे पुनः नेत्र ज्योति देते हैं !
२. शाण्डिली के पति कि मृत्यु पर अनुसूया उसे पुनः जीवित करती है !
३. च्यवन ऋषि का वार्धक्य (वृद्धा अवस्था) अश्विनी कुमार दूर करते हैं !
४. रावण द्वारा विभिन्न भौतिक शक्तियों पर नियंत्रण !
५. त्रिपुरासुर के तीन नगर जमीन , आसमान और जल में गतिमान होते थे !
६. पौलुमी आकाशस्थ नगरवासी असुरों से अर्जुन का युद्ध !
७. विभिन्न देवताओं के अंतरिक्ष यान !
८. दिव्यास्त्रों का वर्णन !
९. रामायण में इच्क्षानुसार चलने वाला पुष्पक विमान !
इन सब बातों को पढ़ाने से प्रतीत होता है हमारा यह भारत एक अत्यंत ही विकसित सभ्यता से संपन्न राष्ट्र था ! तो फिर प्रश्न उठता है, कि क्या ये बातें मात्र कथा, कहानी या कवि की कपोल कल्पना मात्र थी ? क्योंकि यदि ऐसा हुआ था तो उसकी तकनीक क्या थी ? इस तकनीक को बताने वाले ग्रन्थ कौन से थे ? यह जानने का प्रयत्न करने में सबसे बड़ी बाधा है भाषा की ! जो भी जानकारी उपलब्ध है वह संस्कृत में है ! आज भी हजारों, लाखों पांडुलिपियाँ यत्र-तत्र बिखरी पड़ी हैं ! फिर भी प्रायोगिक विज्ञान के कुछ क्षेत्रों में हुई प्रगति के प्रमाण और कुछ ग्रन्थ हैं, जिनसे हम इसे जान सकते हैं !
नानाविधानाम वस्तुनाम यंत्रनाम कल्पसम्पदा
धतुनाम सधानानाम च वास्तुनाम शिल्पसंग्यितम !
कृषिर्जलम खनिश्चेती धातुखंडम त्रिधाभिधम !!
नौका-रथाग्नियानानाम, क्रितिसाधनमुच्यते !
वेश्म, प्राकार, नगररचना वास्तु संग्यितम !! - भृगु संहिता -१/३
भृगु दस शास्त्रों का उल्लेख करते हैं:-
१. कृषि शास्त्र
२. जल शास्त्र
३. खानी शास्त्र
४. नौका शास्त्र
५. रथ शास्त्र
६. अग्नियान शास्त्र
७. वेश्म शास्त्र
८. प्राकार शास्त्र
९. नगर शास्त्र
१०. यन्त्र शास्त्र !
इसके अतिरिक्त ३२ प्रकार की विद्याएं तथा ६४ प्रकार की कलाओं का उल्लेख आता है ! इनमें धातु विज्ञान, वस्त्र विज्ञान, स्वास्थ्य, कृषि, बांध बनाना, वन रोपनी, युद्ध, शस्त्र, पुल बनाना, मुद्रा शस्त्र, नौका, रथ, विमान, नगर रचना, गृह निर्माण, स्वास्थ्य, जीव शास्त्र, वनस्पति शास्त्र, भोजन बनाना, बाल संगोपन, राज्य सञ्चालन, आमोद-प्रमोद आदि सब आते थे ! इस विषय सूचि को देखकर लगाता है कि इनकी परिधि सम्पूर्ण जीवन को व्याप्त करने वाली थी ! इन विद्यायों के अनेक ग्रन्थ थे, कितने ही लुप्त हो गए ! कई विद्याएं, जानने वालों के साथ ही लुप्त हो गयी क्योंकि हमारे पास यहाँ एक मान्यता रही कि अनाधिकारी के हाथ में विद्या नहीं जानी चाहिए ! यद्यपि यह सत्य है कि बहुत सा ज्ञान लुप्त हो गया, परन्तु आज भी लाखों पांडुलिपियाँ बिखरी पड़ी हैं ! आवश्यकता है उनके अध्ययन, विश्लेषण और प्रयोग की ! इस प्रक्रिया से शायद ज्ञान के कई नए क्षेत्र उदघाटित हो सकते हैं ! इस समस्त ज्ञान पुंज को हम हिंदी भाषा में भाषांतरित करके हिंदी, हिन्दू और हिन्दुस्थान तीनो को समृद्ध कर सकते हैं ! .
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