Tuesday, May 31, 2011

सोनिया मुस्लिम वोट के लिए हर हाल में अफजल को बचाना चाहती है

 मिहिर लोचन शरन

प्रस्‍तुतिः डॉ0 संतोष राय

कांग्रेस मुस्लिम वोट के लिए कितना नीचे गिर सकती है उसका खुलासा मै राष्ट्रपति भवन से एक RTI से

कांग्रेस मुस्लिम वोट के लिए कितना नीचे गिर सकती है उसका खुलासा मै राष्ट्रपति भवन से एक RTI से कर रहा हूँ .. शर्म आती है कांग्रेस पर !! !! एक पत्रकार ने RTI से राष्ट्रपति भवन से पूछा की कसब और अफजल गुरु की फाइल की statas क्या है ?? जबाब बहुत ही शर्मनाक आया .. दरअसल अफजल और कसब की फाइल आज तक गृह मंत्रालय में ही है ..राष्ट्रपति भवन भेजी ही नहीं गयी है ..
विकिलिस ने भी खुलासा किया है की सोनिया गाँधी मुस्लिम वोट के लिए हर हाल में अफजल को बचाना चाहती है ..
अब जरा इस डाटा पर भी नज़र डालिए :

नाम ...... धर्म ..... फाइल पर फासी की मुहर लगाने में लगा समय

नाथू राम गोडसे ------ हिन्दू ....... 125 दिन

धनञ्जय कुमार : हिन्दू -- 34 दिन

रंगा और बिल्ला हिन्दू 28 दिन

जिन्दा और सुच्चा सिख 76 दिन

बेअंत सिंह सिख 87 दिन

केहर सिंह सिख 87 दिन

अफजल गुरु मुस्लिम 5967 दिन से बिरयानी खा रहा है

वाह रे कांग्रेस वोट के लिए आतंकवादियो को अपना दामाद बना कर रखती है

.......एक भी देश ऐसा नहीं बना जो हिन्दू राष्ट्र हो !

प्रताप सिंह की कलम से
प्रस्‍तुति- डॉ0 संतोष राय
क्या हिन्दू राष्ट्र वाद के लिए लड़ना गुनाह है ? जो मुस्लिम भारत मे भविष्य का मुगलिस्तान देखते है और उस स्वप्न के अनुसार काम कर रहे है उन्हे साध्वी उतनी बुरी नहीं दिखती जितनी बुरी वह यहाँ के अनाड़ी हिन्दू सेकुलरों को दिखती है  क्योंकि भारत को इस्लामिक राष्ट्र के स्वप्न देखने वालों की नजर वह उसका राष्ट्र बचा रही है !


डॉक्टर चंद्रप्रकाश सिंह ठाकुर की देशभक्त बेटी, राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ कार्यकर्ता और हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा मे विश्वास रखने वाली वीरांगना ! वह उन गद्दारो और सेकुलरों द्वारा यातनाए सह रही है जो मुल्लों की दाढ़ी पर मक्खन लगाया करते है और समय समय पर अफजलों कसाब के बालों मे महंगे मोश्चुराइजर लगाया करते है, वीरांगना प्रज्ञा सिंह ठाकुर के पिता अनुसार प्रज्ञा बचपन मे एक सख्त विचारो वाली बेटी थी आज भी उसका विचार डगमगाया नहीं है...प्रज्ञा एक विचार है जो हर राष्ट्रियवादी के अंदर पनपता है, आश्चर्य होता है की आज के टीवी की नग्नता मे आकंठ दुबे और घर मे घुसते ही दरवाजे बंद करने वाले भारतीय समाज मे ऐसी विरंगनाए और ऐसी सोच रखने वाली नारी मिल सकती है, पिता चंद्रपाल सिंह के अनुसार शिक्षा के दिनों मे वह हमेशा अन्याय और असामाजिक तत्वों के खिलाफ लड़ती रही ! एक बार उसने अपनी बहन के साथ मिलकर कुछ मवाली तत्वों से भरे एक समुंह को बहुत बुरी तरह पीटा था , उसके बाद वे दोनों के पास दया की भीख मांग रहे थे । बचपन से ही प्रज्ञा सिंह लड़कों की तरह छोटे बाल रखती थी और मजबूत इरादों वाली लड़की थी । उसे मोटरसाइकल चलाना पसंद था कहा जाता है की मालेगाव केस मे जिस मोटरसाइकल का प्रयोग हुआ था वह उसके नाम से पंजीकृत थी

राजनीतिक सफर :
प्रज्ञा ने लाहर महाविध्यालय, भिंड मे पढ़ाई की जहां 1993 मे वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ी और भारतीय जनता पार्टी (प्रज्ञा सिंह को अपने से अलग बताने वाली भगवा कॉंग्रेस) की युवा इकाई से जुड़ी, उसके बाद वह राष्ट्रवादी सेना और हिन्दू जागरण मंच से जुड़ी
वह आरएसएस की महिला इकाई दुर्गा वाहिनी से भी जुड़ी, उसने एक संस्था की नींव रखी थी जिसका नाम वंदे मातरम जन कल्याण समिति था जो राष्ट्रिय स्वयं सेवक और संघ परिवार से संबन्धित थी !

कॉंग्रेस के इशारेन पर एटीएस ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को मालेगांव केस मे मुख्य अभियुक्त बनाया क्योंकि वह पाकिस्तानी आतंकियों पर हमले करवाने के दबाव से जुज़ रही थी ! एटीएस के अनुसार साध्वी के मन मे मुंबई बम ब्लास्ट के पीड़ितों के प्रति भारी संवेदना थी और ब्लास्ट आरोपियों से प्रतिशोध लेने के लिए एक ग्रुप की स्थापना की थी ! साध्वी को अभियुक्त बनाने मे उसकी मोटर साइकल ही सबसे बड़ा सबूत थी !

आतंकवाद से निपटने के लिए विख्यात और सिर्फ हिन्दू को आरोपी बनाने क एलिए प्रसिद्ध महाराष्ट्र की पुलिस ने मालेगांव के ब्लास्ट पर 4000 पन्नों की एक चार्जशीट फाइल की है

लोगो की प्रतिक्रीया : 
  1. परम पूज्य स्वामी रामदेवजी ने साध्वी प्रज्ञा को निर्दोष बताया था और कहाँ वे प्रज्ञा बेटी साथ है 
  2. आरएसएस नेता राम माधव ने कहा की साध्वी के खिलाफ आरोप बेबुनियाद है और वे साध्वी का समर्थन कराते है 
  3. विश्व हिन्दू परिषद ने एक अभियान छेड़ा है साध्वी और उसके सहयोगी राष्ट्रवादियों की रिहाई के लिए
  4. उमा भारती भारतीय जन शक्ति पार्टी की नेता ने साध्वी का बचाव किया है और कहा की साध्वी आक्रोशित है लेकिन हिंसक स्वभाव की नहीं है वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सदस्य थी उमा भारती ने उसे अपनी पार्टी की और से टिकट देने का ऐलान किया है
  5. असली राष्ट्रवादी संगठन अभिनव भारत और हिन्दू महासभा ने ऐलान किया है की साध्वी और उसके सहयोगियों को कानूनी मदद दी जाएगी !
  6. श्री राम सेने के नेता श्री प्रमोद मुतालिक ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को क्रांति का चिन्ह घोषित कर दिया है ! औरकहा है की वह एक क्रांति कारी है और साध्वी की तुलना किट्टुर चनम्मा, झाँसी की रानी से की है और यह निवेदन किया है की लोगो को उसे आतंकी कह कर संबोधित नहीं करना चाहिए कम से कम हिन्दुओ को तो कत्तई नहीं, आखिर वह उनकी हक की लड़ाई लड़ रही है !  
  7. बाल ठाकरे ने साध्वी को भारत की महान बेटी बताया और कहा है की अगर वो आतंकवादी है तो हर हिन्दू को ऐसा ही आतंकवादी बनाना चाहिए तभी भारत की सारी समस्याएँ सुलझेगी अन्यथा चुड़ियाँ भी खूब बिकती है बाजार मे ! 

और कुछ सेकुलर हिन्दुओ की प्रतिक्रियाएँ फेसबुक पर और कुछ खबरों मे  
  1. जो भी हो उसने एक आतंकी गतिविधि को अंजाम दिया है और हमारी नजारो मे वह एक आतंकी ही है 
  2. जियो और जीने दो लेकिन साध्वी को फांसी दो  
  3. अफजल, कसाब साध्वी सव एक जेसी मानसिकता के लोग है  
  4. आखिर हिन्दू राष्ट्र से हम क्या हासिल कर लेंगे ? 
  5. जरूर साध्वी और उसके सहयोगियों ने ही करकरे को मारा होगा 
  6. हमें नहीं चाहिए हिन्दू राष्ट्र हमारा देश धर्म निरपेक्ष देश है और हमें सभी को हिल मिलकर रहना है
  7. अगर साध्वी प्रज्ञा दोशी है तो उसे सजा दो, हमारा उससे कोई संबंध नहीं है: जिन्ना का जिन्न "आडवाणी"   

समझ मे नहीं आता इस देश मे लोग इतिहास मे क्यों रुचि नहीं रखते है ? न जाने कितने देश इस भारत से अलग हुए और इस्लामिक देश बनाए लेकिन एक भी देश ऐसा नहीं बना जो हिन्दू राष्ट्र हो !
  1. ईरान भारत से अलग हुआ - इस्लामिक देश 
  2. 1761 मे अफगानिस्तान भारत से अलग हुआ - इस्लामिक देश 
  3. 1947 मे पोर्किस्तान भारत से अलग हुआ - इस्लामिक देश 
  4. 1962 मे आजाद कश्मीर बना और भारत से अलग हुआ - इस्लामिक देश 
  5. 1971 मे बांग्लादेश भारत से अलग हुआ - इस्लामिक देश

भड़वे सेकुलरों को क्या लगता है की भारत मे ऐसी और कोई षड्यंत्रकारी गतिविधिया नहीं चलती रही है जो एक और इस्लामिक देश बनाने पर तुली है तो कर्नाटक के हुबली, केरल, मुंबई के मिरा रोड, नागपाड़ा, कश्मीर, हेदरबाद, बेलगाम, आजमगड जैसे मुस्लिम इलाकों मे जाकर के कुछ दिन रहें कभी कभार कुछ पर्चे हाथ लग जाएँगे मुगलिस्तान से संबन्धित ! फिर भी समझ मे न आए तो उनके साथ मुस्लिम धर्म ग्रहण कर ले ताकि भविष्य मे उनसे मार खाने की आवश्यकता न पड़े !

अमरनाथ के बारें मे अग्निवेश ने बयान इसलिए दिया क्योंकि अमरनाथ यात्रा ही ऐसा एक जरिया है जो देश को कश्मीर से जोड़ता है हिन्दू इसलिए ही वहाँ अधिकतर जाते है और अमरनाथ यात्रा से हिन्दुओ को अलग रखना गिलानीयों जैसे भड़वों की चाले है और इन गिलानियों की दाढ़ी मे रेंगते कीड़े है ये अग्निवेश गद्दार जिनहे सिर्फ प्रसिद्धि चाहिए मोहम्मद अग्निवेश हो या अग्निवेश क्या फर्क पड़ता है इसके लिए ! इसे प्रसिद्धि की बड़ी लालसा है जो इसका स्वप्न पूरा होगा एक दिन

जय हिन्द !
प्रताप सिंह 


 

ऐसा देश है मेरा

प्रस्‍तुतिः डॉ0 संतोष राय
जब हम वेद, उपनिषद्, ब्राह्मण,आरण्यक, पुराण,महाभारत, रामायण आदि भारत के प्राचीन साहित्य पढ़ते हैं, तो उसमें वर्णित कुछ घटनाएं वैज्ञानिक विकास का आभास देती हैं ! जैसे:-

१. उपनिषद् में वर्णित घटना कि उपमन्यु कि नेत्र ज्योति चली जाती है तो अश्विनी कुमार उसे पुनः नेत्र ज्योति देते हैं !
२. शाण्डिली के पति कि मृत्यु पर अनुसूया उसे पुनः जीवित करती है !
३. च्यवन ऋषि का वार्धक्य (वृद्धा अवस्था) अश्विनी कुमार दूर करते हैं !
४. रावण द्वारा विभिन्न भौतिक शक्तियों पर नियंत्रण !
५. त्रिपुरासुर के तीन नगर जमीन , आसमान और जल में गतिमान होते थे !
६. पौलुमी आकाशस्थ नगरवासी असुरों से अर्जुन का युद्ध !
७. विभिन्न देवताओं के अंतरिक्ष यान !
८. दिव्यास्त्रों का वर्णन !
९. रामायण में इच्क्षानुसार चलने वाला पुष्पक विमान !

इन सब बातों को पढ़ाने से प्रतीत होता है हमारा यह भारत एक अत्यंत ही विकसित सभ्यता से संपन्न राष्ट्र था ! तो फिर प्रश्न उठता है, कि क्या ये बातें मात्र कथा, कहानी या कवि की कपोल कल्पना मात्र थी ? क्योंकि यदि ऐसा हुआ था तो उसकी तकनीक क्या थी ? इस तकनीक को बताने वाले ग्रन्थ कौन से थे ? यह जानने का प्रयत्न करने में सबसे बड़ी बाधा है भाषा की ! जो भी जानकारी उपलब्ध है वह संस्कृत में है ! आज भी हजारों, लाखों पांडुलिपियाँ यत्र-तत्र बिखरी पड़ी हैं ! फिर भी प्रायोगिक विज्ञान के कुछ क्षेत्रों में हुई प्रगति के प्रमाण और कुछ ग्रन्थ हैं, जिनसे हम इसे जान सकते हैं !

नानाविधानाम वस्तुनाम यंत्रनाम कल्पसम्पदा
धतुनाम सधानानाम च वास्तुनाम शिल्पसंग्यितम !
कृषिर्जलम खनिश्चेती धातुखंडम त्रिधाभिधम !!
नौका-रथाग्नियानानाम, क्रितिसाधनमुच्यते !
वेश्म, प्राकार, नगररचना वास्तु संग्यितम !! - भृगु संहिता -१/३

भृगु दस शास्त्रों का उल्लेख करते हैं:-
१. कृषि शास्त्र
२. जल शास्त्र
३. खानी शास्त्र
४. नौका शास्त्र
५. रथ शास्त्र
६. अग्नियान शास्त्र
७. वेश्म शास्त्र
८. प्राकार शास्त्र
९. नगर शास्त्र
१०. यन्त्र शास्त्र !

इसके अतिरिक्त ३२ प्रकार की विद्याएं तथा ६४ प्रकार की कलाओं का उल्लेख आता है ! इनमें धातु विज्ञान, वस्त्र विज्ञान, स्वास्थ्य, कृषि, बांध बनाना, वन रोपनी, युद्ध, शस्त्र, पुल बनाना, मुद्रा शस्त्र, नौका, रथ, विमान, नगर रचना, गृह निर्माण, स्वास्थ्य, जीव शास्त्र, वनस्पति शास्त्र, भोजन बनाना, बाल संगोपन, राज्य सञ्चालन, आमोद-प्रमोद आदि सब आते थे ! इस विषय सूचि को देखकर लगाता है कि इनकी परिधि सम्पूर्ण जीवन को व्याप्त करने वाली थी ! इन विद्यायों के अनेक ग्रन्थ थे, कितने ही लुप्त हो गए ! कई विद्याएं, जानने वालों के साथ ही लुप्त हो गयी क्योंकि हमारे पास यहाँ एक मान्यता रही कि अनाधिकारी के हाथ में विद्या नहीं जानी चाहिए ! यद्यपि यह सत्य है कि बहुत सा ज्ञान लुप्त हो गया, परन्तु आज भी लाखों पांडुलिपियाँ बिखरी पड़ी हैं ! आवश्यकता है उनके अध्ययन, विश्लेषण और प्रयोग की ! इस प्रक्रिया से शायद ज्ञान के कई नए क्षेत्र उदघाटित हो सकते हैं ! इस समस्त ज्ञान पुंज को हम हिंदी भाषा में भाषांतरित करके हिंदी, हिन्दू और हिन्दुस्थान तीनो को समृद्ध कर सकते हैं ! .

विदेशी मुद्रा खाते में 23 हजार करोड़ का छेद


नई दिल्ली [अंशुमान तिवारी]। रिजर्व बैंक के खातों से हर साल करीब 23 हजार करोड़ रुपये गुमनाम ढंग से विदेश चले जाते हैं। इतनी बड़ी रकम के जाने का मकसद रिजर्व बैंक के खातों में दर्ज नहीं है। काले धन के विदेश जाने की रोशनी में यह तथ्य सनसनीखेज और हैरतअंगेज है, क्योंकि रिजर्व बैंक एक-एक डॉलर गिन कर लेता-देता है।
विदेशी मुद्रा खाते में इतनी बड़ी अनधिकृत और लगातार निकासी अभूतपूर्व है। यह भारी मात्रा में धन के अवैध रूप से विदेश जाने के शक को पुख्ता करता है। विदेशी मुद्रा खाता आमतौर पर साफ-सुथरा माना जाता है, लेकिन अनिवासी भारतीयों पर टैक्स को लेकर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक [कैग] की पड़ताल के बाद रिजर्व बैंक का विदेशी मुद्रा प्रबंधन गंभीर सवालों में घिर गया है। दैनिक जागरण के पास उपलब्ध दस्तावेज बताते हैं कि 2005 से 2007 के बीच दो साल में करीब 46 हजार करोड़ रुपये रिजर्व बैंक के खातों से रहस्यमय ढंग से विदेश चले गए। इतनी बड़ी रकम किन आयातों या भुगतानों के बदले दी गई, इसका रिजर्व बैंक के पास कोई प्रमाण नहीं है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि यह तथ्य साबित करता है कि अनजान और अप्रामाणिक वजहों से विदेशी मुद्रा देश से बाहर जा रही है।
विदेशी मुद्रा की आवक और निकासी की गणित आसान है। भारत में वाणिज्यिक आयात का हिसाब-किताब विदेश व्यापार महानिदेशालय [डीजीएफटी] रखता है जबकि आयात के बदले विदेशी मुद्रा देने की जिम्मेदारी रिजर्व बैंक की है। इसके अलावा कुछ आयात रक्षा जरूरतों के लिए किए जाते हैं। आमतौर पर कुल [वाणिज्यिक व रक्षा] आयात के मूल्य के बराबर ही विदेशी मुद्रा रिजर्व बैंक के खातों से जारी होनी चाहिए ताकि विदेशी मुद्रा का खाता बराबर रहे, लेकिन दस्तावेज बताते हैं कि 2005-07 के बीच जो विदेशी मुद्रा रिजर्व बैंक से जारी हुई, वह कुल आयात मूल्य से 46 हजार 736 करोड़ रुपये ज्यादा थी।
रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक दशक के दौरान भारत से धन का विदेश जाना बहुत तेजी से बढ़ा है। यह बढ़ोतरी सेवाओं और निजी हस्तांतरण यानी फंड ट्रांसफर के मद में सबसे ज्यादा है। 2001-02 में विभिन्न सेवाओं के आयात के बदले केवल 65 हजार 850 करोड़ रुपये विदेश जाते थे, जो पिछले दशक के अंत में करीब चार गुना बढ़कर दो लाख 10 हजार करोड़ रुपये से ऊपर निकल गए हैं। निजी फंड भी पिछले दशक के अंत में तकरीबन छह गुना बढ़कर 9290 करोड़ रुपये पर पहुंच गए हैं। इन्हीं भुगतानों और ट्रांसफर की ओट में काला धन विदेश भेजे जाने का शक है। यही वजह है कि दुनिया के अमीर देशों [जी-20] ने टैक्स हैवेन देशों के खिलाफ 2009 से मुहिम चला रखी है।
मॉरीशस ने पहली बार दी कर चोरों की जानकारी
नई दिल्ली। बढ़ते दबाव के बीच मॉरीशस ने भारत को पहली बार कर चोरी की जानकारी दी है। यह जानकारी उस व्यक्ति के बारे में है, जिसकी आयकर विभाग कर चोरी और मनी लांड्रिंग [धन के अवैध लेनदेन] के मामले में जांच कर रहा है। एक अधिकारी ने बताया कि इस व्यक्ति ने देश से बाहर बड़े पैमाने पर रकम भेजी थी। उसने इस व्यक्ति का नाम उजागर नहीं किया।
इस अधिकारी ने कहा कि यह टैक्स हैवेन में जमा बेहिसाब दौलत का पता लगाने और उसे वापस लाने की सरकार की कोशिशों को मिली बड़ी कामयाबी है। भारत सरकार कर चोरी और मनी लांड्रिंग संबंधी जानकारी देने के लिए मॉरीशस पर भारी दबाव डाल रही थी। मॉरीशस के रास्ते देश में बड़े पैमाने पर आ रहे वेंचर कैपिटल फंड को देखकर भारतीय एजेंसियों ने अपनी सतर्कता बढ़ा दी है। इस देश से भारत में अप्रैल, 2000 के बाद से अब तक 54.2 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआई] आ चुका है। यह अब तक देश में आए 130 अरब डॉलर के कुल एफडीआइ का 42 फीसदी है। मॉरीशस से आने वाले इस निवेश के बड़े हिस्से को भारतीयों की ही काली कमाई की वापसी माना जाता है। सरकार दोनों देशों के बीच जानकारी के आदान-प्रदान के लिए मॉरीशस के साथ दोहरा कराधान रोकने वाली संधि में संशोधन के लिए पर बातचीत कर रही है।

Monday, May 30, 2011

These Anti Hindus drafted Communal & Sectarian Violence Bill



Following are the members handpicked  by Sonia in NAC to draft Communal & Sectarian Violence Bill, 2010 Advisory Group. Known Anti Hindus are highlighted and their speciality is to justify Minority violence and put complete blame on Hindus for any sort of violence, no matter what the reason for it.



Constituted by National Advisory Council Working Group
Time Frame: August 1, 2010 – January 31, 2011

Advisory Group Members


Abusaleh Shariff
Asgar Ali Engineer
Gagan Sethi
H.S Phoolka
John Dayal
Justice Hosbet Suresh
Kamal Faruqui
Manzoor Alam
Maulana Niaz Farooqui
Ram Puniyani
Rooprekha Verma
Samar Singh
Saumya Uma
Shabnam Hashmi
Sister Mary Scaria
Sukhdeo Thorat
Syed Shahabuddin
Uma Chakravarty
Upendra Baxi
Aruna Roy, NAC Working Group Member
Professor Jadhav, NAC Working Group Member
Anu Aga, NAC Working Group Member
Joint Conveners of Advisory Group

Farah Naqvi, Convener, NAC Working Group
Harsh Mander, Member, NAC Working Group

Communal & Sectarian Violence Bill, 2010 Drafting Committee

Constituted by National Advisory Council Working Group
Time Frame: August 1, 2010 – February 28, 2011

Drafting Committee Members

Gopal Subramanium
Maja Daruwala
Najmi Waziri
P.I.Jose
Prasad Sirivella
Teesta Setalvad
Usha Ramanathan (upto 20 Feb 2011)
Vrinda Grover (upto 20 Feb 2011)
Conveners of Drafting Committee

Farah Naqvi, Convener, NAC Working Group
Harsh Mander,Member, NAC Working Group


The National Advisory Council on Friday placed in the public domain for comments the draft 'Prevention of Communal and Targeted Violence (Access to Justice and Reparations) Bill, 2011'.


A press release issued by the NAC said comments may be sent to it by June 4, 2011 by email at wgcvb@nac.nic.in or by post to Secretary, National Advisory Council, 2 Motilal Nehru Place, Akbar Road, New Delhi, 110011

The Draft Bill can be downloaded from here
http://nac.nic.in/communal/com_bill.htm

सोर्स-http://www.haindavakeralam.com/HKPage.aspx?PageID=13883&SKIN=B

सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक २०११ : हिंदुओंको खतरा !

जागो हिन्‍दुओं! सोनिया ने लाया हिन्‍दुओं के लिये खतरा
 
अरूण जेटली
 
 
सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक 2011 के मसौदे को सार्वजनिक कर दिया गया है। प्रस्तावित कानून का परिणाम यह होगा कि किसी भी तरह के सांप्रदायिक संघर्ष में बहुसंख्यक समुदाय को ही दोषी के रूप में देखा जाएगा।
और ज्यादा जानकारी पाये के लिये इस मार्गिका पर जाए : http://www.hindujagruti.org/news/12031.html 
सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक 2011 के मसौदे को सार्वजनिक कर दिया गया है। प्रकट रूप में बिल का प्रारूप देश में सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के प्रयास के तौर पर नजर आता है, किंतु इसका असल मंतव्य इसके उलट है। अगर यह बिल पारित होकर कानून बन जाता है तो यह भारत के संघीय ढांचे को नष्ट कर देगा और भारत में अंतर-सामुदायिक संबंधों में असंतुलन पैदा कर देगा। बिल का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है 'समूह' की परिभाषा। समूह से तात्पर्य पंथिक या भाषायी अल्पसंख्यकों से है, जिसमें आज की स्थितियों के अनुरूप अनुसूचित जाति व जनजाति को भी शामिल किया जा सकता है। मसौदे के तहत दूसरे चैप्टर में नए अपराधों का एक पूरा सेट दिया गया है। सांप्रदायिक हिंसा के दौरान किए गए अपराध कानून एवं व्यवस्था की समस्या होते हैं। यह राज्यों के कार्यक्षेत्र में आता है। केंद्र को कानून एवं व्यवस्था के सवाल पर राज्य सरकार के कामकाज में दखलंदाजी का कोई अधिकार नहीं है। केंद्र सरकार का न्यायाधिकरण इसे सलाह, निर्देश देने और धारा 356 के तहत यह राय प्रकट करने तक सीमित करता है कि राज्य सरकार संविधान के अनुसार काम रही है या नहीं। यदि प्रस्तावित बिल कानून बन जाता है तो केंद्र सरकार राज्य सरकारों के अधिकारों को हड़प लेगी।
नि:संदेह, सांप्रदायिक तनाव या हिंसा भड़काने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, किंतु इस मसौदे में यह मान लिया गया है कि सांप्रदायिक समस्या केवल बहुसंख्यक समुदाय के सदस्य ही पैदा करते है। अल्पसंख्यक समुदाय का कोई व्यक्ति इसके लिए जिम्मेदार नहीं है। इस प्रकार बहुसंख्यक समुदाय के सदस्यों द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों के खिलाफ किए गए सांप्रदायिक अपराध तो दंडनीय है, किंतु अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों द्वारा बहुसंख्यकों के खिलाफ किए गए सांप्रदायिक अपराध दंडनीय नहीं है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि समूह की परिभाषा में बहुसंख्यक समुदाय के व्यक्तियों को शामिल नहीं किया गया है। इसके अनुसार बहुसंख्यक समुदाय का कोई व्यक्ति सांप्रदायिक हिंसा का शिकार नहीं हो सकता है। विधेयक का यह प्रारूप अपराधों को मनमाने ढंग से पुनर्परिभाषित करता है। इस प्रस्तावित विधेयक के तहत बहुसंख्यक समुदाय के खिलाफ सांप्रदायिक अपराध करने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य दोषी नहीं ठहराए जा सकते।
विधेयक के अनुसार सांप्रदायिक सौहार्द, न्याय और क्षतिपूर्ति के लिए एक सात सदस्यीय राष्ट्रीय प्राधिकरण होगा। सात सदस्यों में से चार समूह अर्थात अल्पसंख्यक समुदाय से होंगे। इसी तरह का प्राधिकरण राज्यों के स्तर पर भी गठित होगा। स्पष्ट है कि इस प्राधिकरण की सदस्यता धार्मिक और जातीय पहचान पर आधारित होगी। इस कानून के तहत अभियुक्त बहुसंख्यक समुदाय के ही होंगे। अधिनियम का अनुपालन एक ऐसी संस्था द्वारा किया जाएगा जिसमें निश्चित ही बहुसंख्यक समुदाय के सदस्य अल्पमत में होंगे। सरकारों को इस प्राधिकरण को पुलिस और दूसरी जांच एजेंसियां उपलब्ध करानी होंगी। इस प्राधिकरण को किसी शिकायत पर जांच करने, किसी इमारत में घुसने, छापा मारने और खोजबीन करने का अधिकार होगा और वह कार्रवाई की शुरुआत करने, अभियोजन के लिए कार्यवाही रिकार्ड करने के साथ-साथ सरकारों से सिफारिशें करने में भी सक्षम होगा। उसके पास सक्षस्त्र बलों से निपटने की शक्ति होगी। वह केंद्र और राज्य सरकारों को परामर्श जारी कर सकेगा। इस प्राधिकरण के सदस्यों की नियुक्ति केंद्रीय स्तर पर एक कोलेजियम के जरिए होगी, जिसमें प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और दोनों सदनों में विपक्ष के नेता और प्रत्येक राजनीतिक दल का एक नेता शामिल होगा। राज्यों के स्तर पर भी ऐसी ही व्यवस्था होगी।
इस अधिनियम के तहत जांच के लिए जो प्रक्रिया अपनाई जानी है वह असाधारण है। सीआरपीसी की धारा 161 के तहत कोई बयान दर्ज नहीं किया जाएगा। पीड़ित के बयान केवल धारा 164 के तहत होंगे अर्थात अदालतों के सामने। सरकार को इसके तहत संदेशों और टेली कम्युनिकेशन को बाधित करने तथा रोकने का अधिकार होगा। अधिनियम के उपबंध 74 के तहत यदि किसी व्यक्ति के ऊपर घृणा संबंधी प्रचार का आरोप लगता है तो उसे तब तक एक पूर्वधारणा के अनुसार दोषी माना जाएगा जब तक वह निर्दोष नहीं सिद्ध हो जाता। साफ है कि आरोप सबूत के समान होगा। उपबंध 67 के तहत किसी लोकसेवक के खिलाफ मामला चलाने के लिए सरकार के अनुमति चलाने की जरूरत नहीं होगी। इस अधिनियम के तहत मुकदमे की कार्यवाही चलवाने वाले विशेष लोक अभियोजक सत्य की सहायता के लिए नहीं, बल्कि पीड़ित के हित में काम करेंगे। शिकायतकर्ता पीडि़त का नाम और पहचान गुप्त रखी जाएगी। केस की प्रगति की रपट पुलिस शिकायतकर्ता को बताएगी। संगठित सांप्रदायिक और किसी समुदाय को लक्ष्य बनाकर की जाने वाली हिंसा इस कानून के तहत राज्य के भीतर आंतरिक उपद्रव के रूप में देखी जाएगी। इसका अर्थ है कि केंद्र सरकार ऐसी दशा में अनुच्छेद 355 का इस्तेमाल कर संबंधित राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने में सक्षम होगी।
इस मसौदे को जिस तरह अंतिम रूप दिया गया है उससे साफ है कि यह कुछ उन कथित सामाजिक कार्यकर्ताओं का काम है जिन्होंने गुजरात के अनुभव से यह सीखा है कि वरिष्ठ नेताओं को किसी ऐसे अपराध के लिए कैसे घेरा जाना चाहिए जो उन्होंने नहीं किया। कानून के तहत जो अपराध बताए गए हैं वे कुछ सवाल खड़े करते हैं। सांप्रदायिक और किसी वर्ग को लक्ष्य बनाकर की जाने वाली हिंसा का तात्पर्य है राष्ट्र के पंथनिरपेक्ष ताने-बाने को नष्ट करना। इस मसले पर कुछ उचित राजनीतिक मतभेद हो सकते हैं कि पंथनिरपेक्षता आखिर क्या है? यह एक ऐसा जुमला है जिसका अर्थ अलग-अलग लोगों द्वारा अलग-अलग बताया जाता है। आखिर किस परिभाषा के आधार पर अपराध का निर्धारण किया जाएगा? इसी तरह सवाल यह भी है कि शत्रुतापूर्ण माहौल बनाने से क्या आशय है? प्रस्तावित कानून का परिणाम यह होगा कि किसी भी तरह के सांप्रदायिक संघर्ष में बहुसंख्यक समुदाय को ही दोषी के रूप में देखा जाएगा। मुझे कोई संदेह नहीं कि जो कानून तैयार किया गया है उसे लागू करते ही भारत में संप्रदायों के बीच आपसी रिश्तों में कटुता-वैमनस्यता फैल जाएगी। यह एक ऐसा कानून है जिसके खतरनाक दुष्परिणाम होंगे। यह तय है कि इसका दुरुपयोग किया जाएगा और शायद इस कानून का ऐसा मसौदा तैयार करने के पीछे यही उद्देश्य भी है।
[अरुण जेटली: लेखक पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं]
सौजन्य : दैनिक जागरण

कांग्रेस का मुगलिया अंदाज

 



कर्नाटक की पिछली कांग्रेस सरकार ने विधानसभा में एक विधेयक पारित करवाया था। जिसके अंतर्गत उन सभी लोगों को, जिनका व्यक्तिगत मन्दिर है और वे मन्दिर भी जो ट्रस्ट के आधीन चलाए जा रहे हैं, उन्हें प्रतिवर्ष सरकार को कर अदायगी करनी पड़ेगी। ऐसा नहीं करने पर सरकार उनके विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई करेगी। इस प्रकार का कानून केवल हिन्दू मन्दिरों पर ही लागू किया गया, मस्जिदों एवं चर्चों पर नहीं। संविधान की धारा 27 के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को अपने धार्मिककृत्य के लिए टैक्स नहीं देना पड़ेगा और यदि सरकार टैक्स लगाने का प्रावधान करती है तो यह सभी मजहबों पर लागू होगा। क्या यह संविधान की धारा 27 का खुला उल्लंघन नहीं था?
हिन्दुओं के मन्दिरों से प्राप्त होने वाली आय को मदरसों को अनुदान एवं हज यात्रा पर जाने के लिए प्रयोग किया जाता रहा है। कर्नाटक की पिछली कांग्रेस सरकार द्वारा मन्दिरों के धन को किस प्रकार मस्जिदों एवं चर्चों को दिया गया उसका एक उदाहरण :
वर्ष 1997 में कर्नाटक के दो लाख चौसठ हजार मन्दिरों से कुल प्राप्त होने वाली आय बावन करोड़ पैतीस लाख रुपए थी। इसमें से नौ करोड़ पच्चीस लाख रूपया मदरसों एवं तीन करोड़ रुपया चर्चों के लिए खर्च किया गया।
वर्ष 1998 में प्राप्त होने वाली राशि अट्ठावन करोड़ पैंतीस लाख रुपए थी। इसमें से चौदह करोड़ पच्चीस लाख रुपये मदरसों एवं पांच करोड़ रुपया चर्चों के लिए खर्च किया गया।
1999 में मन्दिरों से प्राप्त पैंसठ करोड़ पैंतीस लाख रुपयें में से सत्ताइस करोड़ रुपया मदरसों एवं आठ करोड़ रुपए चर्चों के लिए खर्च किया गया।
सन 2000 में कुल प्राप्त राशि उनहत्तर करोड़ छियान्वे लाख रुपए थी उनमें से पैतीस करोड़ रुपए अर्थात पचास प्रतित से भी ज्यादा राशि मदरसों एवं हज सब्सिडी पर एवं आठ करोड़ रुपए चर्चों पर खर्च किए गये। तेरह करोड़ इक्कीस लाख रुपया हज यात्रियों के लिए सुरिक्षत रखा गया।
वर्ष 2001 में कुल प्राप्त राशि इकहत्तर करोड़ रुपए में से पैतालीस करोड़ रुपए मदरसों एवं हज सब्सिडी पर (अर्थात साठ प्रतित से ज्यादा) और दस करोड़ चर्च के हेतु खर्च किया गया।
वर्ष 2002 में कुल बहत्तर करोड़ की धनराशि में से पचास करोड़ रुपए हज खर्च एवं मदरसों के लिए एवं दस करोड़ रुपए चर्च के पर व्यय किया गया।
हिन्दुओं के मन्दिरों की धनराशि  इनको देने का सीधा परिणाम यह निकला कि सौलह हजार मन्दिरों मंदिरों पर ताला पड़ गया, दूसरी और न जाने कितने हिन्दू ईसाई बनाये गये और अलगाववाद ओर उग्रवाद की फसल कितनी ब़ गई। कौन नहीं जानता कि मदरसें आतंकवादियों के निर्माण की फैक्ट्री ही हैं तथा चर्चों का एकमेव कार्य हिन्दुओं का धर्मपरिवर्तन करना और भारत में नागालैण्ड, मिजोरम जैसे अनेक छोटेबड़े ईसाई राज्यों का निमार्ण करना ही है।
मन्दिरों से प्राप्त धन राशि का मदरसों एवं चर्चो के पर खर्च किए जाने का मतलग क्या यह नहीं है कि मन्दिर की धनराशि  को मंदिरों के ही विरुद्ध प्रयोग किया जा रहा है? क्या इसका मतलग उन्हीं संस्थाओं को हिंदुओं के पैसे से पोशित करना नही जो हिन्दुओं को बुतपरस्त घोशित करके उनके विरुद्ध अभियान चलाकर धर्मपरिवर्तन कराने का उपक्रम रचते हैं?
भारत ही संभवतः विव का पहला गैर मुस्लिम दो है जिसके अंतर्राश्ट्रीय हवाई अड्डे पर हज यात्रियों के लिए अलग टर्मिनल की व्यवस्था की गई है और भारत ही संभवतः विव का अकेला दो है जहां हिन्दू भावनाओं को कुचलते हुए हज यात्रियों को सब्सिडी देती है। पिचम के उदारवादी दों की बात छोडिए अरब, पाकिस्तान अफ्रीका एवं एाशिया के मुस्लिम बहुल दो भी हज यात्रियों के लिए किसी भी प्रकार का अनुदान नहीं देते। परंतु भारत सरकार हज यात्रियों की सब्सिडी पर अरबों रुपये खर्च करती है, जो प्रायः हिन्दुओं से ही टैक्ट के द्वारा प्राप्त किया होता है।
भारत सरकार हज यात्रियों के जाने, मक्का में ठहरने तथा वहां उनके स्वाथ्य की देखभाल एवं वापसी का प्रबंध करती है। 199394 में प्रति हज यात्री हवाई यात्रा में सात हजार रुपए की रियात दी जाती थी, 2002-2003 में यह ब़कर बाइस से पच्चीस हजार रुपए के बीच हो गई थी अब तो यह और भी अधिक हो गई है। सोनिया गांधी के नेतृत्व में चलने वाली मनमोहन सरकार अनेक प्रकार से मुस्लिमों के लिए सरकारी खजाना लुटा रही है। जोकि संविधान की भावना के एकदम प्रतिकुल है।
सोर्स ः प्रवक्‍ता पोर्टल

संघर्ष नही अब रण होगा परिणाम बड़ा भीषण होगा

हि̩न्‍दुओं के विरोध में  इस प्रस्तावित विधेयक के अनुसार दंगा हमेशा "बहुसंख्यकों" द्वारा ही फ़ैलाया जाता है, जबकि "अल्पसंख्यक" हमेशा हिंसा का लक्ष्य होते हैं… हम इस कानून का विरोध करते हैं हि̩न्‍दुओं को आह्वान करते हैं कि अब बैठने का समय नही है बल्कि यूपीए सरकार को उखाड़ फेंकने का वक्‍त हैः


जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् |
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकार चण्ड्ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् || १||

सघन जटा-वन-प्रवहित गंग-सलिल प्रक्षालित.
पावन कंठ कराल काल नागों से रक्षित..
डम-डम, डिम-डिम, डम-डम, डमरू का निनादकर-
तांडवरत शिव वर दें, हों प्रसन्न, कर मम हित..१..
जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी- विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि |
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम || २||
सुर-सलिला की चंचल लहरें, हहर-हहरकर,
करें विलास जटा में शिव की भटक-घहरकर.
प्रलय-अग्नि सी ज्वाल प्रचंड धधक मस्तक में,
हो शिशु शशि-भूषित शशीश से प्रेम अनश्वर.. २
धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुरस्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे |
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्दिगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि || ३||
केशालिंगित सर्पफणों के मणि-प्रकाश की,
पीताभा केसरी सुशोभा दिग्वधु-मुख की.
लख मतवाले सिन्धु सदृश मदांध गज दानव-
चरम-विभूषित प्रभु पूजे, मन हो आनंदी..४..

ललाटचत्वरज्वलद्धनंजस्फुल्लिंगया, निपीतपंचसायकं नमन्निलिम्पनायकं |
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं, महाकलपालिसंपदे सरिज्जटालमस्तुनः ||५||
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः |
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ||६||
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्ध नञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके |
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक-प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचनेरतिर्मम || ७||
नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत् - कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः |
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः || ८||
प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् |
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकछिदं तमंतकच्छिदं भजे || ९||
अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदंबमञ्जरी रसप्रवाहमाधुरी विजृंभणामधुव्रतम् |
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे || १०||

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वसद्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् |
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः || ११||
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः |
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहत || १२||
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरस्थमञ्जलिं वहन् |
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् || १३||
निलिम्पनाथनागरी कदंबमौलिमल्लिका, निगुम्फ़ निर्भरक्षन्म धूष्णीका मनोहरः.
तनोतु नो मनोमुदं, विनोदिनीं महर्नीशं, परश्रियं परं पदं तदंगजत्विषां चय: || १४||
प्रचंडवाडवानल प्रभाशुभप्रचारिणी, महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूतजल्पना.
विमुक्तवामलोचनों विवाहकालिकध्वनि:, शिवेतिमन्त्रभूषणों जगज्जयाम जायतां|| १५||
इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् |
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् || १६||
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे |
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः || १७||

दंगों में यदि हिन्दू औरत का बलात्कार होता है तो वह अपराध नहीं माना जाएगा?

सुरेश चिपलुनकर की कलम से
 
प्रस्‍तुति- डॉ0 संतोष राय
 
 
सोनिया गाँधी के "निजी मनोरंजन क्लब" यानी नेशनल एडवायज़री काउंसिल (NAC) द्वारा सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक का मसौदा तैयार किया गया है जिसके प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं-

1) कानून-व्यवस्था का मामला राज्य सरकार का है, लेकिन इस बिल के अनुसार यदि केन्द्र को "महसूस" होता है तो वह साम्प्रदायिक दंगों की तीव्रता के अनुसार राज्य सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप कर सकता है और उसे बर्खास्त कर सकता है…
(इसका मोटा अर्थ यह है कि यदि 100-200 कांग्रेसी अथवा 100-50 जेहादी तत्व किसी राज्य में दंगा फ़ैला दें तो राज्य सरकार की बर्खास्तगी आसानी से की जा सकेगी)…

2) इस प्रस्तावित विधेयक के अनुसार दंगा हमेशा "बहुसंख्यकों" द्वारा ही फ़ैलाया जाता है, जबकि "अल्पसंख्यक" हमेशा हिंसा का लक्ष्य होते हैं…

3) यदि दंगों के दौरान किसी "अल्पसंख्यक" महिला से बलात्कार होता है तो इस बिल में कड़े प्रावधान हैं, जबकि "बहुसंख्यक" वर्ग की महिला का बलात्कार होने की दशा में इस कानून में कुछ नहीं है…

4) किसी विशेष समुदाय (यानी अल्पसंख्यकों) के खिलाफ़ "घृणा अभियान" चलाना भी दण्डनीय अपराध है (फ़ेसबुक, ट्वीट और ब्लॉग भी शामिल)…

5) "अल्पसंख्यक समुदाय" के किसी सदस्य को इस कानून के तहत सजा नहीं दी जा सकती यदि उसने बहुसंख्यक समुदाय के व्यक्ति के खिलाफ़ दंगा अपराध किया है (क्योंकि कानून में पहले ही मान लिया गया है कि सिर्फ़ "बहुसंख्यक समुदाय" ही हिंसक और आक्रामक होता है, जबकि अल्पसंख्यक तो अपनी आत्मरक्षा कर रहा है)…

इस विधेयक के तमाम बिन्दुओं का ड्राफ़्ट तैयार किया है, सोनिया गाँधी की "किचन कैबिनेट" के सुपर-सेकुलर सदस्यों एवं अण्णा को कठपुतली बनाकर नचाने वाले IAS व NGO गैंग के टट्टुओं ने… इस बिल की ड्राफ़्टिंग कमेटी के सदस्यों के नाम पढ़कर ही आप समझ जाएंगे कि यह बिल "क्यों", "किसलिये" और "किसको लक्ष्य बनाकर" तैयार किया गया है…। "माननीय"(?) सदस्यों के नाम इस प्रकार हैं - हर्ष मंदर, अरुणा रॉय, तीस्ता सीतलवाड, राम पुनियानी, जॉन दयाल, शबनम हाशमी, सैयद शहाबुद्दीन… यानी सब के सब एक नम्बर के "छँटे हुए" सेकुलर… । "वे" तो सिद्ध कर ही देंगे कि "बहुसंख्यक समुदाय" ही हमलावर होता है और बलात्कारी भी…

अब यह विधेयक संसद में रखा जाएगा, फ़िर स्थायी समिति के पास जाएगा, तथा अगले लोकसभा चुनाव के ठीक पहले इसे पास किया जाएगा, ताकि मुस्लिम वोटों की फ़सल काटी जा सके तथा भाजपा की राज्य सरकारों पर बर्खास्तगी की तलवार टांगी जा सके…। यह बिल लोकसभा में पास हो ही जाएगा, क्योंकि भाजपा(शायद) के अलावा कोई और पार्टी इसका विरोध नहीं करेगी…। जो बन पड़े उखाड़ लो…

फ़िलहाल अति-व्यस्तता एवं कम्प्यूटर की खराबी की वजह से विस्तृत ब्लॉग नहीं लिख पा रहा हूँ, परन्तु इस विधेयक के प्रमुख बिन्दु आपके सामने पेश कर दिये हैं… ताकि भविष्य में होने वाले दंगों के बाद की "तस्वीर" आपके सामने स्पष्ट हो सके…

Saturday, May 28, 2011

वीर स्वातंत्र्य सावरकर जयंती 28 मई


अश्विनी कुमार

जो जाति अपने अतित को भूल जाती है, उसका विनाश निश्चित है। और वर्तमान परिवेश में हिन्‍दुओं की स्थिति देखकर यही प्रतीत होता है कि ये अपने अतीत को भूलकर विनाश की तरफ अग्रसर हो रही है। अपने अतीत के किसी भी प्रसंग पर गौरवान्वित होना तो दूर उल्‍टे ये उसे उपहास का विषय मानकर उसकी घोर निंदा और घृणा करने लगे हैं। इससे तो यही प्रतीत होता है कि अब ये हिन्‍दू और ये हिन्‍दुस्‍तान अपने नष्‍ट होने के कगार पर पहुंच रहा है। आज किसी नौजवान से पूछा तो उसका आदर्श कौन है तो वह सलमान, शाहरूख और सचिन को बताएगा कोई पूछे जरा इनसे की इन लोगों ने कौन सा महानता का कार्य किया जिससे हमारे देश का कुछ भला हुआ हो। खैर समय ही ऐसा आ गया है किसी को नसीहत भी नहीं दे सकते। क्‍योंकि किसीको इसकी जरूरत ही नहीं है सब आजकल बहुत समझदार हैं। निम्‍नलिखित पंजाब केसरी की संपादकी आज के समय में बहुत प्रासंगिक है आशा है आप लोगों को भी इसे पढ़कर कुछ प्रेरणा मिलेगी:-



''पूछेगा इतिहास] समझ लो दिल्ली वालोक्लीब बने, मुंह आज ढांप कर सोने वालोकर न सकेगी क्षमा, तुम्हें पीढ़ी आगामीमिट न सकेगा दाग, नपुंसकता अनुगामी।^^
आज वीर सावरकर की जयंती है। बर्गर और पिज्जा खाने वाली नई पीढ़ी शायद ही वीर सावरकर के बारे में जानती हो। दूरदर्शन या अन्य टीवी चौनल भूल कर भी उनके नाम या उनकी महत्ता का बखान नहीं करते। इसके लिए व्यवस्था जितनी दोषी है उतने ही हम भी हैं। हमने अपने बच्चों को वीर सावरकर के बारे में कभी बताने का प्रयास ही नहीं किया। आज कुछ लोग वीर सावरकर के चित्र पर माल्यार्पण कर इतिश्री कर लेंगे या हिन्दू महासभा में पदों के लिए एक-दूसरे से भिड़ रहे लोग उन्हें रस्मी तौर पर याद कर लें लेकिन यह इस राष्ट्र की विडम्बना है कि जिन लोगों ने सब सुविधाओं के साथ ‘ए’ विशेष श्रेणियों में जेल यात्राएं कीं वे विश्व प्रसिद्ध नेता बन गए। परन्तु जिन्होंने अंडमान जेल की काल कोठरियों में अमानुषिक अत्याचार सहे, बैलों की जगह जुत कर कोल्हू चलाए वे राष्ट्र विरोधी और साम्प्रदायिक कहलाए। वीर सावरकर ब्रिटिश की मांद में जा धमके, उससे निर्भीकता से जा भिड़े, जिनके आग्नेय प्रवाह से परिपूर्ण भाषणों से अंग्रेज भयभीत हुआ उस सावरकर को ब्रिटिश सत्ता भक्त साबित करने और चरित्र हनन करने में तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के अलम्बरदारों और बुद्धिजीवियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। इतिहास साक्षी है कि अंडमान की काल कोठरी में यम-यातनाएं झेलने वाले इस महामानव की काया भले ही जर्जर हो गई हो उनके दृढ़ संकल्प पर कोई आंच नहीं आई थी।देशभक्त क्रांतिकारियों द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध 1857 में जो सशस्त्र क्रांति की थी उसे अंग्रेजों ने गदर बताकर देशभक्त भारतीयों को भ्रमित करने की जो कुचेष्ठा की थी उसी भ्रम को तोडऩे के लिए वीर विनायक दामोदर सावरकर ने ब्रिटेन में बैठकर 1857 का स्वतंत्रता संग्राम नाम का क्रांतिग्रंथ लिखा जिससे डरे हुए अंग्रेज ने छपने से पहले ही उस पर प्रतिबंध लगा दिया था। वीर सावरकर ने यह ग्रंथ 1907 में लिखा था। प्रतिबंध के बाद भी इसका अंग्रेजी अनुवाद हालैंड में छपा वहां से फ्रांस और भारत में भेजा गया। क्रांतिकारियों ने इसे गीता की तरह पढ़ा। इसका दूसरा संस्करण भीकाजी कामा, लाला हरदयाल आदि क्रांति वीरों ने छपवाया। तीसरा संस्करण सरदार भगत सिंह ने गुप्त रूप में छपवाया। यह ग्रंथ इतना लोकप्रिय था कि इसकी एक-एक प्रति तीन-तीन सौ रुपए में बिकी।13 मार्च, 1910 को लंदन में विक्टोरिया स्टेशन पर वीर सावरकर को बंदी बना लिया गया। उनके बड़े भाई गणेश सावरकर को 1908 में देशभक्ति की कविता लिखने के कारण 9 जून, 1909 को आजीवन कारावास की सजा देकर काला पानी भेजा गया। छोटे भाई नारायण सावरकर को क्रांतिकारियों का साथी बताकर जेल में बंद कर दिया। जब इस घटना का जेल में बंद वीर सावरकर को पता लगा तब गर्व से बोले, ''इससे बड़ी गौरव की क्या बात होगी हम तीनों भाई भारत माता की आजादी के लिए तत्पर हैं।''1 जुलाई, 1910 को ब्रिटेन से भारत लाने के लिए वीर सावरकर को समुद्री जहाज से कठोर पहरे के बीच अंग्रेज पुलिस लेकर चल पड़ी। 8 जुलाई, 1910 को वीर सावरकर स्वतंत्र भारत की जय बोल कर समुद्र में कूद पड़े। अंग्रेजों ने खूब गोलियां चलाईं पर निर्भय सावरकर फ्रांस की सीमा में पहुंच गए। फ्रांस की भूमि से सावरकर को गिरफ्तार किया तो इसका विरोध हुआ तथा अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में केस चला पर फ्रांस और ब्रिटेन की मिलीभगत के कारण उनको न्याय नहीं मिला। 30 जनवरी, 1911 को वीर जी को दो आजन्म कारावास की सजा सुनाई तब वे हंस कर बोले चलो ईसाई सत्ता ने हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म सिद्धांत को मान लिया।उन्होंने भारत को हिन्द शब्द की परिभाषा दी। वीर सावरकर का सारा जीवन हिन्दुत्व को समर्पित था। अपनी पुस्तक हिन्दुत्व में हिन्दू कौन है? इसकी परिभाषा में यह श्लोक लिखा-''आसिन्धु सिन्धुपर्यन्तायस्य भारतभूमिका।पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः।।''
अर्थात् भारत भूमि के तीनों ओर के सिन्धुओं (समुद्रों) से लेकर हिमालय के शिखर से जहां से सिंधु नदी निकलती है वहां तक की भूमि जो पितृ (पूर्वजों) की भूमि है यानी जिनके पूर्वज भी इसी भूमि में पैदा हुए और जिसकी पुण्य भूमि यानी तीर्थ स्थान इसी भूमि में हैं वही हिन्दू होता है।आजादी के बाद भी पंडित जवाहर लाल नेहरू और कांग्रेस ने उनसे न्याय नहीं किया। पूर्वाग्रह से ग्रसित कांग्रेसी नेताओं ने उन्हें इतिहास में यथोचित स्थान ही नहीं दिया। स्वतंत्रता संग्राम में केवल गांधी और गांधीवादियों की ही भूमिका का विस्तृत उल्लेख किया। पंडित नेहरू तो इनसे इतने भयभीत थे कि देश का हिन्दू सावरकर को ही अपना नेता मान बैठेगा। गांधी जी की हत्या के मामले में नेहरू सरकार ने झूठे आरोप लगाकर उन्हें लालकिले में बंद कर दिया। बाद में न्यायालय ने उन्हें ससम्मान रिहा कर दिया था।वीर सावरकर के महाप्रयाण के बाद भी अटल सरकार के दौरान कांग्रेस ने संसद भवन में उनका चित्र लगाने पर विवाद खड़ा कर दिया था और 2001 में यूपीए सरकार के रहते मणिशंकर अय्यर ने अंडमान के कीर्ति स्तम्भ से वीर सावरकर के नाम का शिलालेख हटाकर महात्मा गांधी के नाम का पत्थर लगा दिया था, जबकि गांधी वहां कभी गए ही नहीं थे। मेरे इस सम्पादकीय का प्रयोजन गांधी-नेहरू की आलोचना करना नहीं। उन्होंने अपने प्रकार से देश सेवा का ही उपक्रम किया है, लेकिन मेरी कलम यही कह रही है कि आजादी केवल गांधीवादियों की देन नहीं, बल्कि क्रांतिकारियों के बलिदानों के चलते ही मिली है। राष्ट्र सभी को समान सम्मान दे। कांग्रेस ने बहुत से कुटिल खेल खेले हैं, आज राष्ट्र को वीर सावरकर जैसे नेता की जरूरत है। अगर आज हमने बच्चों को वीर सावरकर जैसे क्रांतिकारियों को इतिहास नहीं पढ़ाया तो भविष्य में कोई भी क्रांतिवीर नहीं होंगे।


स्रोत:- संपादकीय पंजाब केसरी

बाबा रामदेव का कार्यक्रम 4 जून का रद्द नही हुआ है


डॉ0 संतोष राय
बाबा रामदेव का कार्यक्रम 4 जून से सुनिश्चित है कोई कार्यक्रम रद्द नही हुआ है. मेरा लोगों से अनुरोध है कि अफवाहों में न आयें.

Friday, May 27, 2011

नही पैदा हुआ है वीर सावरकर जैसा महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी

       
क्रांतिकारियों के पितामह, क्रान्तिकारियों के मुकुटमणि,  दार्शनिक, कवि, इतिहासकार, महान् विचारक एवं हिन्दू राष्ट्र के प्रवर्तक  महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर विनायक दामोदर सावरकर जी जन्म दिवस 28 मई, सन् 1883 ई. को नासिक जिले के भगूर ग्राम में एक चितपावन ब्राह्मण वंश परिवार में हुआ था। उनके पिताश्री  श्रीदामोदर सावरकर एवं माता राधा बाई दोनों ही महान्  धार्मिक तथा प्रखर हिन्दुत्वनिष्ठ विचारों से आप्‍लावित थे । विनायक सावरकर पर अपने माता-पिता के संस्कारों  का गहरा असर हुआ और वह प्रारम्भ में धार्मिकता से ओतप्रोत भरे थे.
 
नासिक में विद्याध्ययन के समय लोकमान्य तिलक के लेखों व अंग्रेजों के अत्याचारों के समाचारों ने छात्र सावरकर के हृदय में को बिदीर्णकर दिया  व उनके हृदय में विद्रोह के अंकुर पैदा कर दिये। उन्होंने अपनी कुलदेवी अष्टभुजी दुर्गा माता की प्रतिमा के सामने यह अखंड प्रतिज्ञा ली—‘‘देश की स्वाधीनता के लिए अन्तिम क्षण तक जब तक सांस है तब तक सशस्त्र क्रांति का झंडा लेकर लड़ता रहूँगा।’’
वीर सावरकर ने श्री लोकमान्य की अध्यक्षता में पूना में आयोजित एक सार्वजनिक समारोह के सबसे पहले विदेशी वस्त्रों की होली जलाकर विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का श्रीगणेश  किया कालेज से निष्कासित कर दिये जाने पर भी लोकमान्य तिलक की प्रेरणा से वह लन्दन के लिए कूच कर गये।
साम्राजयवादी गोरे  अंग्रेज़ों के गढ़ लंदन में सावरकर चैन से अपने आप को नही रखा । वीर दामोदर सावरकर  की प्ररेणा से ही श्री मदनलाल ढींगरा ने सर करजन वायली की हत्या करके बदला लिया। उन्होंने लन्दन से बम्ब व पिस्तौल,  छिपाकर भारत भिजवाये। लन्दन में ही ‘1857 का स्वातन्त्र्य समरकी रचना किया। अंग्रेज की साम्राज्‍यवादी गोरी सरकार सावरकर की गतिविधियों से दहल गया.

13
मार्च 1910 को सावरकरजी को लन्दन के रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया। वीर विनायक दामोदर सावरकर पर मुकदमा चलाकर मौत का ग्रास बनाने  के उद्देश्‍य से जहाज में भारत लाया जा रहा था कि तभी  8 जुलाई 1910 को मार्लेस बन्दरगाह के निकट वे जहाज से समुद्र में छलांग लगा दिये। गोलियों की बौछारों  के बीच काफी दूर तक तैरते हुए वे फ्रांस के किनारे जा निकले, किन्तु फिर भी पकड़ लिये गये। भारत लाकर मुकदमे का स्‍वांग  रचा गया और दो आजन्म कारावास का दण्ड देकर उनको अण्डमान के लिये रवाना कर दिया गया। अण्डमान में ही उनके बड़े भ्राताश्री भी बन्दी थे। उनके साथ देवतास्वरूप भाई परमानन्द, श्री आशुतोष लाहिड़ी, भाई हृदयरामसिंह तथा अनेक प्रमुख क्रांतिकारी देशभक्त भी बन्दी थे। उन्होंने अण्डमान में अंग्रेजों से भारी यातनाएँ सहन किया। अनवरत 10 वर्षों तक काला-पानी में यातनाएँ सहने के बाद वे 21 जनवरी 1921 को भारत में रतनागिरि में ले जाकर नज़रबन्द कर दिए गये। रतनागिरि में ही उन्होंने हिन्दुत्व’, ‘हिन्दू पद पादशाही’, ‘उशाःप’, ‘उत्तर क्रिया’ (प्रतिशोध), ‘संन्यस्त्र खड्ग’ (शस्त्र और शास्त्र) आदि राष्‍ट्रवादी ग्रन्थों की रचना की; साथ ही शुद्धि व हिन्दू संगठन के कार्य में वे तन, मन और धन से  लगे रहे। जिस समय सावरकर ने देखा कि गांधीजी हिन्दू-मुस्लिम एकता के नाम पर मुस्लिम तुष्‍टीकरण की  नीति अपनाकर हिन्दुत्व के साथ विश्वासघात कर रहे हैं तथा मुसलमान खुशफहमी पालकर  देश को इस्लामिस्तान बनाने के गंभीर साजिश  रच रहे हैं, उन्होंने हिंदू संगठन की आवश्यकता महसूस किया। 30  दिसम्बर 1937 को अहमदाबाद में हुए अखिल भारत हिन्दू महासभा के वे अधिवेशन के वे अध्यक्ष चुने गये। हिन्दू महासभा के प्रत्येक आन्दोलन का उन्होंने ओजस्विता के साथ नेतृत्व किया व उसे महान संबल प्रदान किया । भारत-विभाजन का उन्होंने डटकर पुरजोर विरोध किया।
सबसे प्रमुख बात यह कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने उन्हीं की प्रेरणा से आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना की थी। वीर सावरकर ने ‘‘राजनीति का हिन्दूकरण और हिन्दू का सैनिकीकरण’’ तथा ‘‘धर्मान्त याने राष्ट्रान्तरयह  दो उद्घोष को हिन्‍दुस्‍तान की जनता को  दिये. वीर सावरकर जी को  गांधीजी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया, उन पर मुकदमा चलाया गया, किन्तु वे ससम्मान बरी कर दिए गये।


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फरवरी 1966 को इस महान आत्‍मा ने 22 दिन का उपवास करके भारत की माटी से विदा लिया। हिन्दू राष्ट्र भारत, एक असाधारण योद्धा, महान् साहित्यकार, वक्ता, विद्वान, राजनीतिज्ञ, दार्शनिक, महान क्रांतिकारी,समाज-सुधारक, हिन्दू संगठक से वंचित हो गया. यह ऐसा क्षति था जिसे आज तक भरा नही जा सका.