अश्वनी कुमार, सम्पादक (पंजाब केसरी)
दिनांक- 04-11-2011
प्रस्तुति: डॉ0 संतोष राय
मैंने एक बार नहीं अनेक बार लिखा है कि उन्माद की हिन्दुत्व में कोई जगह नहीं। उन्माद की भाषा मत बोलो, लाखों वर्ष की कालजयी विरासत पर कलंक मत लगाओ। मैंने बार-बार इस बात को दोहराया कि चाहे हिन्दू का जुनून हो चाहे मुस्लिम का जुनून हो, जब भी मारे जाते हैं निर्दोष ही मारे जाते हैं, जो गलत है। इस्लामी आतंकवाद पर भी मेरा यही कहना है कि प्रेम और करुणा के मार्ग पर चलने वाले इस्लाम के अनुयायियों को यह शोभा नहीं देता। किसी भी लेखक ने 'जहरीला इस्लाम' कभी नहीं लिखा, ऐसे में कुछ उन्मादियों को जहरीला हिन्दुत्व कहने की अनुमति कैसे दी जा सकती है। वह अपने भीतर झांकें और खुद का विश्लेषण करें।
मैं छद्म बुद्धिजीवियों से कहना चाहूंगा कि हिन्दुत्व को समझना है तो वेद की ऋचाओं से समझें, उपनिषदों के मंत्रों में झांक कर देखें, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के पावन चरित्र से जानें, श्रीकृष्ण की गीता में इस दर्शन को पहचानें, शिवाजी और बंदा बहादुर का चरित्र पढ़ें, लेकिन अफसोस इस राष्ट्र में भगवान राम को भी अपमानित किया गया। भारत और श्रीलंका को जोडऩे वाले पुल श्रीराम सेतु को तोडऩे का प्रयास किया गया और हद तो तब हो गई जब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में भगवान राम के अस्तित्व को ही नकारने जैसी जघन्य राजनीति शुरू कर दी। जब प्रबल विरोध हुआ तो सरकार को हलफनामा वापस लेना पड़ा। दिल्ली विश्वविद्यालय की पाठ्य पुस्तकों में भी भगवान राम के बारे में अनर्गल टिप्पणियां की गईं जो हिन्दू समाज के लिए असहनीय हैं।
शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति ने देश के उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दाखिल की थी जिसमें यह निवेदन किया गया था कि बी.ए. (आनर्स) इतिहास के द्वितीय वर्ष में एक निबंध पढ़ाया जा रहा है जिसका शीर्षक है 'थ्री हण्ड्रेड रामायणा वीथ फाइव एक्जाम्पल'। निबंध के लेखक हैं ए.के. रामानुजन। इस निबंध में रामायण के सम्मानित चरित्रों जैसे राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, अहिल्या आदि के विषय में अत्यंत आपत्तिजनक टिप्पणी की गई है। इसी निबंध में अन्य सामग्री के अतिरिक्त निम्रलिखित बातें पढ़ाई जा रही थीं-
· रावण और मंदोदरी की कोई संतान नहीं थी। दोनों ने शिवजी की पूजा की। शिवजी ने उन्हें आम खाने को दिया। गलती से सारा आम रावण ने खा लिया और उसे गर्भ ठहर गया। दु:ख से बेचैन रावण ने छींक मारी और सीता का जन्म हुआ। सीता रावण की पुत्री थी। उसने उसे जनकपुरी के खेत में त्याग दिया।
· हनुमान छुटभैया एक छोटा सा बंदर था एवं कामुक व्यक्ति था। वह लंका के शयनकक्षों में स्त्रियों और पुरुषों को आमोद-प्रमोद करते बेशर्मी से देखता फिरता था।
· रावण का वध राम से नहीं लक्ष्मण से हुआ।
· रावण और लक्ष्मण ने सीता के साथ व्यभिचार किया।
· माता अहिल्या को यौन की एक मूर्ति बताया गया है, जिसका इन्द्र के साथ लज्जापूर्ण ढंग से यौन व्यभिचार दर्शाया गया है।
ए.के. रामानुजन द्वारा लिखित निबंध 'थ्री हण्ड्रेड रामायणा' एक पुस्तक में सम्मिलित था जिसका नाम था 'मैनी रामायण।' यह पुस्तक पौला रिचमेन (आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी) द्वारा सम्पादित की गई थी। सम्पादक ने अपनी पुस्तक में पुस्तक के उद्देश्य स्पष्ट किए थे। उनका कहना था कि यह पुस्तक रामानंद सागर द्वारा प्रदर्शित 'रामायण' टी.वी. सीरियल के अत्यधिक सकारात्मक प्रभाव को निरस्त करने के लिए लिखी गई है।
शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति ने सन् २००८ में पुस्तक के प्रकाशक आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रैस, लंदन से सम्पर्क किया तथा निबंध के विषय में अपनी आपत्तिा बताई और कहा कि पुस्तक में हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान किया गया है। आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने खेद प्रकट किया, माफी मांगी तथा आश्वासन दिया कि उनका उद्देश्य हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। उन्होंने पुस्तक को वापस लेना स्वीकार किया। इसकी सूचना उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग तथा दिल्ली विश्वविद्यालय को भी दी किन्तु इतिहास विभाग ने इसका संज्ञान नहीं लिया तथा अनधिकृत रूप से निबंध को अपने पाठ्यक्रम में पढ़ाना जारी रखा।
समिति ने न्यायालय से प्रार्थना की थी कि इस निबंध को पाठ्यक्रम से हटा दिया जाए। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि इस संबंध में कुछ विद्वानों की राय ली जाए। विद्वानों की राय विश्वविद्यालय की एकेडेमिक कौंसिल के सामने प्रस्तुत की जाए। कौंसिल के निर्णय के अनुसार उपकुलपति अग्रिम कार्यवाही करें। दिल्ली विश्वविद्यालय के उपकुलपति ने न्यायालय के आदेश के अनुसार कार्यवाही करके पूरे तथ्य एकेडेमिक कौंसिल की बैठक में प्रस्तुत किए। सदस्यों ने भी अपने-अपने विचार व्यक्त किए। कौंसिल ने इन विचारों का गम्भीरता से अध्ययन किया। कौंसिल के समक्ष यह तथ्य भी लाया गया कि उक्त निबंध केवल 2001 तक के लिए पाठ्यक्रम के लिए स्वीकृत था और सन् 2009 के पश्चात् उसे अनधिकृत रूप से पढ़ाया जाता रहा है। विषय के सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद एकेडेमिक कौंसिल ने विवादित निबंध को पाठ्यक्रम से हटाने का निर्णय लिया।
प्रख्यात विद्वान हृदय नारायण दीक्षित लिखते हैं कि जीवंत इतिहास बोध में ही राष्ट्र का अमरत्व है और विकृत इतिहास में राष्ट्र की मृत्यु। श्रीराम भारत के मन का रस और छंद हैं। रामानुजन के विवादित निबंध को दिल्ली विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग हिन्दू धर्म के खिलाफ कुत्सित षड्यंत्र है।
इतने वर्षों से बच्चों को इतिहास की कक्षा में अश्लील कथा पढ़ाई जाती रही और भगवान राम का अपमान किया जाता रहा, हिन्दुओं की सहनशीलता को दाद तो देनी ही पड़ेगी। (क्रमश:)
दिनांक- 04-11-2011
प्रस्तुति: डॉ0 संतोष राय
मैंने एक बार नहीं अनेक बार लिखा है कि उन्माद की हिन्दुत्व में कोई जगह नहीं। उन्माद की भाषा मत बोलो, लाखों वर्ष की कालजयी विरासत पर कलंक मत लगाओ। मैंने बार-बार इस बात को दोहराया कि चाहे हिन्दू का जुनून हो चाहे मुस्लिम का जुनून हो, जब भी मारे जाते हैं निर्दोष ही मारे जाते हैं, जो गलत है। इस्लामी आतंकवाद पर भी मेरा यही कहना है कि प्रेम और करुणा के मार्ग पर चलने वाले इस्लाम के अनुयायियों को यह शोभा नहीं देता। किसी भी लेखक ने 'जहरीला इस्लाम' कभी नहीं लिखा, ऐसे में कुछ उन्मादियों को जहरीला हिन्दुत्व कहने की अनुमति कैसे दी जा सकती है। वह अपने भीतर झांकें और खुद का विश्लेषण करें।
मैं छद्म बुद्धिजीवियों से कहना चाहूंगा कि हिन्दुत्व को समझना है तो वेद की ऋचाओं से समझें, उपनिषदों के मंत्रों में झांक कर देखें, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के पावन चरित्र से जानें, श्रीकृष्ण की गीता में इस दर्शन को पहचानें, शिवाजी और बंदा बहादुर का चरित्र पढ़ें, लेकिन अफसोस इस राष्ट्र में भगवान राम को भी अपमानित किया गया। भारत और श्रीलंका को जोडऩे वाले पुल श्रीराम सेतु को तोडऩे का प्रयास किया गया और हद तो तब हो गई जब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में भगवान राम के अस्तित्व को ही नकारने जैसी जघन्य राजनीति शुरू कर दी। जब प्रबल विरोध हुआ तो सरकार को हलफनामा वापस लेना पड़ा। दिल्ली विश्वविद्यालय की पाठ्य पुस्तकों में भी भगवान राम के बारे में अनर्गल टिप्पणियां की गईं जो हिन्दू समाज के लिए असहनीय हैं।
शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति ने देश के उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दाखिल की थी जिसमें यह निवेदन किया गया था कि बी.ए. (आनर्स) इतिहास के द्वितीय वर्ष में एक निबंध पढ़ाया जा रहा है जिसका शीर्षक है 'थ्री हण्ड्रेड रामायणा वीथ फाइव एक्जाम्पल'। निबंध के लेखक हैं ए.के. रामानुजन। इस निबंध में रामायण के सम्मानित चरित्रों जैसे राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, अहिल्या आदि के विषय में अत्यंत आपत्तिजनक टिप्पणी की गई है। इसी निबंध में अन्य सामग्री के अतिरिक्त निम्रलिखित बातें पढ़ाई जा रही थीं-
· रावण और मंदोदरी की कोई संतान नहीं थी। दोनों ने शिवजी की पूजा की। शिवजी ने उन्हें आम खाने को दिया। गलती से सारा आम रावण ने खा लिया और उसे गर्भ ठहर गया। दु:ख से बेचैन रावण ने छींक मारी और सीता का जन्म हुआ। सीता रावण की पुत्री थी। उसने उसे जनकपुरी के खेत में त्याग दिया।
· हनुमान छुटभैया एक छोटा सा बंदर था एवं कामुक व्यक्ति था। वह लंका के शयनकक्षों में स्त्रियों और पुरुषों को आमोद-प्रमोद करते बेशर्मी से देखता फिरता था।
· रावण का वध राम से नहीं लक्ष्मण से हुआ।
· रावण और लक्ष्मण ने सीता के साथ व्यभिचार किया।
· माता अहिल्या को यौन की एक मूर्ति बताया गया है, जिसका इन्द्र के साथ लज्जापूर्ण ढंग से यौन व्यभिचार दर्शाया गया है।
ए.के. रामानुजन द्वारा लिखित निबंध 'थ्री हण्ड्रेड रामायणा' एक पुस्तक में सम्मिलित था जिसका नाम था 'मैनी रामायण।' यह पुस्तक पौला रिचमेन (आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी) द्वारा सम्पादित की गई थी। सम्पादक ने अपनी पुस्तक में पुस्तक के उद्देश्य स्पष्ट किए थे। उनका कहना था कि यह पुस्तक रामानंद सागर द्वारा प्रदर्शित 'रामायण' टी.वी. सीरियल के अत्यधिक सकारात्मक प्रभाव को निरस्त करने के लिए लिखी गई है।
शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति ने सन् २००८ में पुस्तक के प्रकाशक आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रैस, लंदन से सम्पर्क किया तथा निबंध के विषय में अपनी आपत्तिा बताई और कहा कि पुस्तक में हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान किया गया है। आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने खेद प्रकट किया, माफी मांगी तथा आश्वासन दिया कि उनका उद्देश्य हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। उन्होंने पुस्तक को वापस लेना स्वीकार किया। इसकी सूचना उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग तथा दिल्ली विश्वविद्यालय को भी दी किन्तु इतिहास विभाग ने इसका संज्ञान नहीं लिया तथा अनधिकृत रूप से निबंध को अपने पाठ्यक्रम में पढ़ाना जारी रखा।
समिति ने न्यायालय से प्रार्थना की थी कि इस निबंध को पाठ्यक्रम से हटा दिया जाए। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि इस संबंध में कुछ विद्वानों की राय ली जाए। विद्वानों की राय विश्वविद्यालय की एकेडेमिक कौंसिल के सामने प्रस्तुत की जाए। कौंसिल के निर्णय के अनुसार उपकुलपति अग्रिम कार्यवाही करें। दिल्ली विश्वविद्यालय के उपकुलपति ने न्यायालय के आदेश के अनुसार कार्यवाही करके पूरे तथ्य एकेडेमिक कौंसिल की बैठक में प्रस्तुत किए। सदस्यों ने भी अपने-अपने विचार व्यक्त किए। कौंसिल ने इन विचारों का गम्भीरता से अध्ययन किया। कौंसिल के समक्ष यह तथ्य भी लाया गया कि उक्त निबंध केवल 2001 तक के लिए पाठ्यक्रम के लिए स्वीकृत था और सन् 2009 के पश्चात् उसे अनधिकृत रूप से पढ़ाया जाता रहा है। विषय के सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद एकेडेमिक कौंसिल ने विवादित निबंध को पाठ्यक्रम से हटाने का निर्णय लिया।
प्रख्यात विद्वान हृदय नारायण दीक्षित लिखते हैं कि जीवंत इतिहास बोध में ही राष्ट्र का अमरत्व है और विकृत इतिहास में राष्ट्र की मृत्यु। श्रीराम भारत के मन का रस और छंद हैं। रामानुजन के विवादित निबंध को दिल्ली विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग हिन्दू धर्म के खिलाफ कुत्सित षड्यंत्र है।
इतने वर्षों से बच्चों को इतिहास की कक्षा में अश्लील कथा पढ़ाई जाती रही और भगवान राम का अपमान किया जाता रहा, हिन्दुओं की सहनशीलता को दाद तो देनी ही पड़ेगी। (क्रमश:)
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