अश्वनी कुमार
प्रस्तुति- डॉ0 संतोष राय
कांग्रेस का जनाधार जब भी खिसकता है या उसे भ्रष्टाचार और घोटालों के कारण झटके पर झटका लगता है तो वह ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाने की फिराक में रहती है कि देश के 18 करोड़ मुस्लिम मतदाता किसी न किसी तरह पट जाएं। नरसिम्हा राव शासन में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद मुस्लिम मतदाता उससे अलग हो गए थे जो आज तक पूरी तरह उसके साथ जुड़ नहीं सके। कभी वह हिन्दू संतों को निशाना बनाती है, कभी हिन्दुत्व पर प्रहार करती है तो कभी हिन्दुओं की आस्था से खिलवाड़ करती है।
सोनिया गांधी की बनाई नैशनल एडवाइजरी काउंसिल के कुछ मुस्लिम व वामपंथी सदस्यों द्वारा बहुसंख्यक हिन्दुओं के खिलाफ कड़ा कानून बनाने को तैयार किए गए मसौदे को ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कानून बनाने की जी-जान से कोशिश कर रहे हैं। यह मसौदा यदि विधेयक के रूप में संसद में आया और पास हो गया तो देश में एक और बंटवारे का रास्ता तैयार हो जाएगा क्योंकि इसमें ईसाई और मुसलमानों को संरक्षण देने के लिए ऐसे प्रावधान रखे गए हैं जिससे हिन्दुओं की हालत गुलाम जैसी हो जाएगी। सोनिया गांधी खुद ईसाई हैं। वह आगे चुनावों में कांग्रेस की जीत की रणनीति के तहत मुसलमानों को खुश करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं। इसी योजना के तहत साम्प्रदायिकता विरोधी विधेयक लाने की जोर-शोर से तैयारी चल रही है लेकिन इसकी पहली बैठक में ही 6 राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने नहीं आकर विरोध जता दिया। उड़ीसा के मुख्यमंत्री ने कह दिया कि यह बिल तो ऐसा है कि यदि कहीं पर किसी अल्पसंख्यक ने कुछ किया और दंगा हुआ तो बहुसंख्यक समुदाय के खिलाफ कार्रवाई होगी। इसके अलावा इस मुद्दे पर केन्द्र सरकार राज्य सरकार को बर्खास्त भी कर सकती है। इससे तो इस देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं की हालत गुलामों की हो जाएगी। सोनिया गांधी अमरीका व ईसाई जमात के अलावा मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए अपनी देखरेख में बनवाए साम्प्रदायिकता विरोधी बिल को अपने यसमैन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मार्फत लाने की तैयारी कर रही हैं। पहली बैठक में तो सब कुछ उल्टा पड़ गया, लेकिन उस मसौदे में कुछ इधर-उधर करके फिर उस पर बहुमत बनाने की कोशिश होगी। किसी भी तरह इसे फरवरी 2012 तक संसद में पास कराकर मुसलमानों को खुश करने की योजना है लेकिन पहली बैठक में तो झटका लग गया।
यूपीए सरकार में जयचंदों और मीर जाफरों की कोई कमी नहीं है जिनका एकमात्र लक्ष्य सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ कर अपना उल्लू सीधा करना है। साम्प्रदायिक हिंसा रोकने को विधेयक 2006 में संसद में पेश कर दिया गया था, लेकिन इसमें पारित नहीं किया जा सका था। भाजपा ने जब इसका विरोध किया था तो कांग्रेस ने उसे साम्प्रदायिक करार दिया था। इस विधेयक में देश के नागरिकों को अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक, दलित-पिछड़े, जातियों के मध्य विभाजित किया गया है। संविधान विशेषज्ञ भी यह मानते हैं कि धारा 15 में यह साफ-साफ कहा गया है कि जाति या धर्म के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। यह संविधान की मूल भावना है तथा सामान्य संशोधन से भी इसे अपवाद के तौर पर भी नहीं छोड़ा जा सकता। यह विधेयक इसी आधार पर भेदभाव मूलक है। वैसे भी संविधान में अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक की कोई व्याख्या ही नहीं की गई। देश में कहीं पर कोई भाषा के आधार पर अल्पसंख्यक है तो कहीं धर्म के आधार पर बहुसंख्यक इसलिए इस विधेयक को कांग्रेस की तुष्टीकरण नीति के रूप में देखा जा रहा है। बाकी चर्चा मैं कल के लेख में करूंगा। (क्रमश:)
कांग्रेस का जनाधार जब भी खिसकता है या उसे भ्रष्टाचार और घोटालों के कारण झटके पर झटका लगता है तो वह ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाने की फिराक में रहती है कि देश के 18 करोड़ मुस्लिम मतदाता किसी न किसी तरह पट जाएं। नरसिम्हा राव शासन में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद मुस्लिम मतदाता उससे अलग हो गए थे जो आज तक पूरी तरह उसके साथ जुड़ नहीं सके। कभी वह हिन्दू संतों को निशाना बनाती है, कभी हिन्दुत्व पर प्रहार करती है तो कभी हिन्दुओं की आस्था से खिलवाड़ करती है।
सोनिया गांधी की बनाई नैशनल एडवाइजरी काउंसिल के कुछ मुस्लिम व वामपंथी सदस्यों द्वारा बहुसंख्यक हिन्दुओं के खिलाफ कड़ा कानून बनाने को तैयार किए गए मसौदे को ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कानून बनाने की जी-जान से कोशिश कर रहे हैं। यह मसौदा यदि विधेयक के रूप में संसद में आया और पास हो गया तो देश में एक और बंटवारे का रास्ता तैयार हो जाएगा क्योंकि इसमें ईसाई और मुसलमानों को संरक्षण देने के लिए ऐसे प्रावधान रखे गए हैं जिससे हिन्दुओं की हालत गुलाम जैसी हो जाएगी। सोनिया गांधी खुद ईसाई हैं। वह आगे चुनावों में कांग्रेस की जीत की रणनीति के तहत मुसलमानों को खुश करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं। इसी योजना के तहत साम्प्रदायिकता विरोधी विधेयक लाने की जोर-शोर से तैयारी चल रही है लेकिन इसकी पहली बैठक में ही 6 राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने नहीं आकर विरोध जता दिया। उड़ीसा के मुख्यमंत्री ने कह दिया कि यह बिल तो ऐसा है कि यदि कहीं पर किसी अल्पसंख्यक ने कुछ किया और दंगा हुआ तो बहुसंख्यक समुदाय के खिलाफ कार्रवाई होगी। इसके अलावा इस मुद्दे पर केन्द्र सरकार राज्य सरकार को बर्खास्त भी कर सकती है। इससे तो इस देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं की हालत गुलामों की हो जाएगी। सोनिया गांधी अमरीका व ईसाई जमात के अलावा मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए अपनी देखरेख में बनवाए साम्प्रदायिकता विरोधी बिल को अपने यसमैन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मार्फत लाने की तैयारी कर रही हैं। पहली बैठक में तो सब कुछ उल्टा पड़ गया, लेकिन उस मसौदे में कुछ इधर-उधर करके फिर उस पर बहुमत बनाने की कोशिश होगी। किसी भी तरह इसे फरवरी 2012 तक संसद में पास कराकर मुसलमानों को खुश करने की योजना है लेकिन पहली बैठक में तो झटका लग गया।
यूपीए सरकार में जयचंदों और मीर जाफरों की कोई कमी नहीं है जिनका एकमात्र लक्ष्य सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ कर अपना उल्लू सीधा करना है। साम्प्रदायिक हिंसा रोकने को विधेयक 2006 में संसद में पेश कर दिया गया था, लेकिन इसमें पारित नहीं किया जा सका था। भाजपा ने जब इसका विरोध किया था तो कांग्रेस ने उसे साम्प्रदायिक करार दिया था। इस विधेयक में देश के नागरिकों को अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक, दलित-पिछड़े, जातियों के मध्य विभाजित किया गया है। संविधान विशेषज्ञ भी यह मानते हैं कि धारा 15 में यह साफ-साफ कहा गया है कि जाति या धर्म के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। यह संविधान की मूल भावना है तथा सामान्य संशोधन से भी इसे अपवाद के तौर पर भी नहीं छोड़ा जा सकता। यह विधेयक इसी आधार पर भेदभाव मूलक है। वैसे भी संविधान में अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक की कोई व्याख्या ही नहीं की गई। देश में कहीं पर कोई भाषा के आधार पर अल्पसंख्यक है तो कहीं धर्म के आधार पर बहुसंख्यक इसलिए इस विधेयक को कांग्रेस की तुष्टीकरण नीति के रूप में देखा जा रहा है। बाकी चर्चा मैं कल के लेख में करूंगा। (क्रमश:)
Courtsey:अश्वनी कुमार, सम्पादक (पंजाब केसरी)
दिनांक- 22-11-2011
दिनांक- 22-11-2011
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