अश्वनी कुमार
इस देश में हमेशा षड्यंत्र के तहत हिन्दुओं की आस्था पर करारी चोट की जाती रही है। हिन्दुओं के आस्था स्थलों की पहचान और हिन्दुओं के आराध्य देवों का अपमान किया जाता रहा है। पहले तो अंग्रेजों ने अपने शासनकाल में इतिहास से छेड़छाड़ की और हिन्दुओं को पिछड़े, भ्रष्ट, कायर और दकियानूसी, पाखंडी तथा जातिवादी सिद्ध करने का प्रयास किया। मुस्लिम आक्रांताओं के काले कारनामों पर पर्दा डाला गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी कांग्रेस के अनेक तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं और वामपंथियों ने इतिहास को विकृत करने का प्रयास किया।
श्रीमती इंदिरा गांधी ने वामपंथी विचारधारा के डा. नुरुल हसन को केन्द्रीय शिक्षा राज्य मंत्री का पद सौंपा। डा. हसन ने तुरन्त इतिहास तथा पाठ्य पुस्तकों के विकृतिकरण का काम शुरू किया। वामपंथी इतिहासकारों और लेखकों को एकत्रित कर इस काम को अंजाम देना शुरू किया।
भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद का गठन किया गया और पाठ्य पुस्तकों में हिन्दुओं के बारे में अनर्गल बातें लिखी गईं। गोरक्षा के लिए भारतीयों ने अनेक बलिदान दिए। इसके बावजूद छात्रों को यह पढ़ाया गया कि आर्य गोमांस का भक्षण करते थे। हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान देने वाले गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान को भ्रामक ढंग से वर्णित किया गया। प्रो. सतीश चन्द्र द्वारा लिखित एनसीईआरटी की कक्षा 11वीं की पुस्तक 'मध्यकालीन भारत' में लिखा गया-
''गुरु तेग बहादुर ने असम से लौटने के बाद शेख अहमद सरहिन्द के एक अनुयायी हाफिज आमिद से मिलकर पूरे पंजाब प्रदेश में लूटमार मचा रखी थी और सारे प्रांत को उजाड़ दिया था।''
''गुरु को फांसी उनके परिवार के कुछ लोगों की साजिश का नतीजा थी, जिसमें और लोग भी शामिल थे, जो गुरु के उत्तराधिकार के विरुद्ध थे। किन्तु यह भी कहा जाता है कि औरंगजेब गुरु तेग बहादुर से इसलिए नाराज था, क्योंकि उन्होंने कुछ मुसलमानों को सिख बना लिया था।''
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर गुरु तेग बहादुर जैसी दिव्य विभूति को लुटेरा बताना और औरंगजेब के अत्याचारों की घटना पर पर्दा डालने का प्रयास करना अक्षम्य अपराध ही है। छद्म धर्म निरपेक्षता के ठेकेदारों ने हिन्दू समाज की गलत तस्वीर पेश की। जब केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी तो केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी ने पाठ्य पुस्तकों से गुरु तेग बहादुर, भगवान महावीर और अन्य महापुरुषों पर आरोप लगाने वाले अंश हटवाने का प्रयास किया तो धर्मनिरपेक्ष नेताओं ने बवाल मचाना शुरू कर दिया और आरोप लगाया गया कि भाजपा सरकार शिक्षा का भगवाकरण कर रही है।
इस बवाल के बीच कट्टरपंथी कभी सरस्वती वंदना को इस्लाम विरोधी बताकर स्कूलों का बहिष्कार करते रहे तो कभी वे अपने बच्चों को 'ग' से गणेश पढ़ाने की बजाय 'ग' से गधा पढ़ाने की सीख देते रहे। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर शिवाजी, महाराणा प्रताप, गुरु गोविन्द सिंह जी और वीर सावरकर आदि के प्रेरक जीवन चरित्रों से छात्रों को वंचित किया जाता रहा। प्रफुल्ल बिदवई जैसे लेखकों ने अपने आलेख Fight Hindutva Head on में Poisonous Hindutva का इस्तेमाल किया था यानी जहरीला हिन्दुत्व। मैंने तब भी सवाल किया था-
उन्माद और नृशंसता की राजनीति की झीनी चादर देकर किसने ऐसा बना दिया कि भारत में हिन्दुत्व को जहरीला कहा जा रहा है?
तथाकथित कुछ अंग्रेजीदां बुद्धिजीवियों ने इस राष्ट्र के हिन्दुत्व को घृणा, विद्वेष, क्रूरता का पर्याय न केवल स्वीकार किया बल्कि बार-बार ऐसा लिखा भी। (क्रमश:)
इस देश में हमेशा षड्यंत्र के तहत हिन्दुओं की आस्था पर करारी चोट की जाती रही है। हिन्दुओं के आस्था स्थलों की पहचान और हिन्दुओं के आराध्य देवों का अपमान किया जाता रहा है। पहले तो अंग्रेजों ने अपने शासनकाल में इतिहास से छेड़छाड़ की और हिन्दुओं को पिछड़े, भ्रष्ट, कायर और दकियानूसी, पाखंडी तथा जातिवादी सिद्ध करने का प्रयास किया। मुस्लिम आक्रांताओं के काले कारनामों पर पर्दा डाला गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी कांग्रेस के अनेक तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं और वामपंथियों ने इतिहास को विकृत करने का प्रयास किया।
श्रीमती इंदिरा गांधी ने वामपंथी विचारधारा के डा. नुरुल हसन को केन्द्रीय शिक्षा राज्य मंत्री का पद सौंपा। डा. हसन ने तुरन्त इतिहास तथा पाठ्य पुस्तकों के विकृतिकरण का काम शुरू किया। वामपंथी इतिहासकारों और लेखकों को एकत्रित कर इस काम को अंजाम देना शुरू किया।
भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद का गठन किया गया और पाठ्य पुस्तकों में हिन्दुओं के बारे में अनर्गल बातें लिखी गईं। गोरक्षा के लिए भारतीयों ने अनेक बलिदान दिए। इसके बावजूद छात्रों को यह पढ़ाया गया कि आर्य गोमांस का भक्षण करते थे। हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान देने वाले गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान को भ्रामक ढंग से वर्णित किया गया। प्रो. सतीश चन्द्र द्वारा लिखित एनसीईआरटी की कक्षा 11वीं की पुस्तक 'मध्यकालीन भारत' में लिखा गया-
''गुरु तेग बहादुर ने असम से लौटने के बाद शेख अहमद सरहिन्द के एक अनुयायी हाफिज आमिद से मिलकर पूरे पंजाब प्रदेश में लूटमार मचा रखी थी और सारे प्रांत को उजाड़ दिया था।''
''गुरु को फांसी उनके परिवार के कुछ लोगों की साजिश का नतीजा थी, जिसमें और लोग भी शामिल थे, जो गुरु के उत्तराधिकार के विरुद्ध थे। किन्तु यह भी कहा जाता है कि औरंगजेब गुरु तेग बहादुर से इसलिए नाराज था, क्योंकि उन्होंने कुछ मुसलमानों को सिख बना लिया था।''
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर गुरु तेग बहादुर जैसी दिव्य विभूति को लुटेरा बताना और औरंगजेब के अत्याचारों की घटना पर पर्दा डालने का प्रयास करना अक्षम्य अपराध ही है। छद्म धर्म निरपेक्षता के ठेकेदारों ने हिन्दू समाज की गलत तस्वीर पेश की। जब केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी तो केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी ने पाठ्य पुस्तकों से गुरु तेग बहादुर, भगवान महावीर और अन्य महापुरुषों पर आरोप लगाने वाले अंश हटवाने का प्रयास किया तो धर्मनिरपेक्ष नेताओं ने बवाल मचाना शुरू कर दिया और आरोप लगाया गया कि भाजपा सरकार शिक्षा का भगवाकरण कर रही है।
इस बवाल के बीच कट्टरपंथी कभी सरस्वती वंदना को इस्लाम विरोधी बताकर स्कूलों का बहिष्कार करते रहे तो कभी वे अपने बच्चों को 'ग' से गणेश पढ़ाने की बजाय 'ग' से गधा पढ़ाने की सीख देते रहे। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर शिवाजी, महाराणा प्रताप, गुरु गोविन्द सिंह जी और वीर सावरकर आदि के प्रेरक जीवन चरित्रों से छात्रों को वंचित किया जाता रहा। प्रफुल्ल बिदवई जैसे लेखकों ने अपने आलेख Fight Hindutva Head on में Poisonous Hindutva का इस्तेमाल किया था यानी जहरीला हिन्दुत्व। मैंने तब भी सवाल किया था-
उन्माद और नृशंसता की राजनीति की झीनी चादर देकर किसने ऐसा बना दिया कि भारत में हिन्दुत्व को जहरीला कहा जा रहा है?
तथाकथित कुछ अंग्रेजीदां बुद्धिजीवियों ने इस राष्ट्र के हिन्दुत्व को घृणा, विद्वेष, क्रूरता का पर्याय न केवल स्वीकार किया बल्कि बार-बार ऐसा लिखा भी। (क्रमश:)
लेखक पंजाब केशरी के सम्पादक
(पंजाब केसरी)दिनांक- 03.11.2011
Represent: Dr. Santosh Rai
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