अश्वनी कुमार
प्रस्तुति: डॉ0 संतोष राय
राजनीति की क्या परिभाषा होनी चाहिए, आज की परिस्थितियों को देखकर समझना मुश्किल नहीं। राजनीति मानवता से अलग ऐसे लोगों की भीड़ की बकवास है, जिन्हें अपने गिरेबां में झांकने में कोई दिलचस्पी नहीं परन्तु दूसरों के सद्गुण भी उन्हें 'जहर' लगते हैं, अत: यह शाश्वत दुष्टता का ही पर्याय है जबकि धर्म का मतलब है- धारण करने योग्य। क्षमा, करुणा, दया, परहित, ये सब धारण करने योग्य हैं। अत: जो इन्हें धारण करता है वह धार्मिक है। ऐसे में राजनीति क्या धर्म के साथ रह सकती है?
· राजनीति सड़े हुए लोगों की दुर्गंध है?
· धर्म स्थित प्रज्ञ महापुरुषों की सुगंध है।अत: राजनीति और धर्म का क्या मेल? लेकिन एक तीसरी श्रेणी भी है, बाहरी वेशभूषा में एक धार्मिक व्यक्ति लग रहा है, परन्तु भीतर ही भीतर जिसके हृदय में राजनीति ही अठखेलियां करती है, मैं ऐसे लोगों को धार्मिक श्रेणी में नहीं रखता। वे निकृष्टतम हैं, ये रंगे सियार हैं। विश्व के सर्वश्रेष्ठ नीति मर्मज्ञ कौटिल्य ने जब राष्ट्र की कल्पना की तो उसमें राजनीति शब्द कहीं नहीं था। आप सारा अर्थशास्त्र देख लें। आप को राजधर्म शब्द मिल जाएगा, आपको दंड नीति मिल जाएगी, राजनीति नहीं मिलेगी।
भगवान श्रीकृष्ण जैसे अवतारी पुरुष ने भी यह कभी नहीं कहा- मैं हर युग में 'राजनीति' की स्थापना करने आता हूं। वह कहते हैं- मैं धर्म की स्थापना और दुष्टों का नाश करने के लिए आता हूं। जिस दिन राष्ट्र ने भगवान कृष्ण के वचनों का मर्म समझ लिया, धर्म की स्थापना हो जाएगी और स्वत: ही हो जाएगा दुष्टों का नाश भी।
भगवान के वचन हैं, 'विनाशाय च दुष्कृताम' इसलिए आज का नेता धर्म से घबराया हुआ है। खास तो हैं ये कांग्रेस के नेता और उनके दुमछल्ले। उन्हें पता है जिस दिन राष्ट्र 'धर्म प्राण' हुआ, राजनेता समाप्त हो जाएगा और उसे ऐसी जगह दफना दिया जाएगा, जहां से वह कभी निकल कर नहीं आ सके। इसी डर से उसने एक शब्द गढ़ लिया- धर्मनिरपेक्षता। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ आप स्वयं जान लें- जो सारे मानवीय गुणों से विमुख हो, उसी को धर्मनिरपेक्ष कहा जाता है। उसके पास मानवीय गुणों को धारण करने की शक्ति नहीं लेकिन उसने अपना एक नया धर्म बना लिया है जो धर्मनिरपेक्ष है, उसकी नजर में धर्म क्या है, उसे देखें तो आप चमत्कृत हो जाएंगे।
पुराणों के अनुसार ऐसे लोग साधारण नहीं होते। या तो ये ब्रह्मज्ञानी होते हैं या परले दर्जे के मक्कार। आम जनता के लिए राजनेता एक-दूसरे पर कीचड़ उछालते हैं, अपशब्द बोलते हैं, निंदा करते हैं और स्वयं को सर्वश्रेष्ठ घोषित करते हैं। कारण एक ही है- उस हमाम की सदस्यता प्राप्त करना जहां प्रवेश करने पर राष्ट्रद्रोह भी क्षम्य है। आप अपराधी हों, तस्कर हों, घोटालेबाज हों, बदमाश हों, उससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। पिछले 64 वर्षों से यही तमाशा जारी है। सारे देश के संवेदनशील लोग घबरा गए हैं। जरा इन आवाजों को सुनिये-
तस्कर, बिल्डर माफिया, लूट, अपहरण, क्लेशहाय! दलालों में बिका गांधी तेरा देश।सर्कस में लंगूर ने गजब दिखलाया खेलरेल घोटालों की चला, ब्रेक कर दिया फेल।मंत्री पद की शपथ ले, वो बोल मुस्कायसाईं इतना दीजिए, जा में कुटुम्ब समाय।आप जिसे चाहें वोट दें, जिसका चाहे साथ दें, चरित्र यही है। ऐसे में श्रीराम का नाम भी दिल में ही लें तो अच्छा है। न जाने कौन साम्प्रदायिकता का आरोप लगाकर आपको दूर भगा दे। (क्रमश:)
राजनीति की क्या परिभाषा होनी चाहिए, आज की परिस्थितियों को देखकर समझना मुश्किल नहीं। राजनीति मानवता से अलग ऐसे लोगों की भीड़ की बकवास है, जिन्हें अपने गिरेबां में झांकने में कोई दिलचस्पी नहीं परन्तु दूसरों के सद्गुण भी उन्हें 'जहर' लगते हैं, अत: यह शाश्वत दुष्टता का ही पर्याय है जबकि धर्म का मतलब है- धारण करने योग्य। क्षमा, करुणा, दया, परहित, ये सब धारण करने योग्य हैं। अत: जो इन्हें धारण करता है वह धार्मिक है। ऐसे में राजनीति क्या धर्म के साथ रह सकती है?
· राजनीति सड़े हुए लोगों की दुर्गंध है?
· धर्म स्थित प्रज्ञ महापुरुषों की सुगंध है।अत: राजनीति और धर्म का क्या मेल? लेकिन एक तीसरी श्रेणी भी है, बाहरी वेशभूषा में एक धार्मिक व्यक्ति लग रहा है, परन्तु भीतर ही भीतर जिसके हृदय में राजनीति ही अठखेलियां करती है, मैं ऐसे लोगों को धार्मिक श्रेणी में नहीं रखता। वे निकृष्टतम हैं, ये रंगे सियार हैं। विश्व के सर्वश्रेष्ठ नीति मर्मज्ञ कौटिल्य ने जब राष्ट्र की कल्पना की तो उसमें राजनीति शब्द कहीं नहीं था। आप सारा अर्थशास्त्र देख लें। आप को राजधर्म शब्द मिल जाएगा, आपको दंड नीति मिल जाएगी, राजनीति नहीं मिलेगी।
भगवान श्रीकृष्ण जैसे अवतारी पुरुष ने भी यह कभी नहीं कहा- मैं हर युग में 'राजनीति' की स्थापना करने आता हूं। वह कहते हैं- मैं धर्म की स्थापना और दुष्टों का नाश करने के लिए आता हूं। जिस दिन राष्ट्र ने भगवान कृष्ण के वचनों का मर्म समझ लिया, धर्म की स्थापना हो जाएगी और स्वत: ही हो जाएगा दुष्टों का नाश भी।
भगवान के वचन हैं, 'विनाशाय च दुष्कृताम' इसलिए आज का नेता धर्म से घबराया हुआ है। खास तो हैं ये कांग्रेस के नेता और उनके दुमछल्ले। उन्हें पता है जिस दिन राष्ट्र 'धर्म प्राण' हुआ, राजनेता समाप्त हो जाएगा और उसे ऐसी जगह दफना दिया जाएगा, जहां से वह कभी निकल कर नहीं आ सके। इसी डर से उसने एक शब्द गढ़ लिया- धर्मनिरपेक्षता। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ आप स्वयं जान लें- जो सारे मानवीय गुणों से विमुख हो, उसी को धर्मनिरपेक्ष कहा जाता है। उसके पास मानवीय गुणों को धारण करने की शक्ति नहीं लेकिन उसने अपना एक नया धर्म बना लिया है जो धर्मनिरपेक्ष है, उसकी नजर में धर्म क्या है, उसे देखें तो आप चमत्कृत हो जाएंगे।
पुराणों के अनुसार ऐसे लोग साधारण नहीं होते। या तो ये ब्रह्मज्ञानी होते हैं या परले दर्जे के मक्कार। आम जनता के लिए राजनेता एक-दूसरे पर कीचड़ उछालते हैं, अपशब्द बोलते हैं, निंदा करते हैं और स्वयं को सर्वश्रेष्ठ घोषित करते हैं। कारण एक ही है- उस हमाम की सदस्यता प्राप्त करना जहां प्रवेश करने पर राष्ट्रद्रोह भी क्षम्य है। आप अपराधी हों, तस्कर हों, घोटालेबाज हों, बदमाश हों, उससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। पिछले 64 वर्षों से यही तमाशा जारी है। सारे देश के संवेदनशील लोग घबरा गए हैं। जरा इन आवाजों को सुनिये-
तस्कर, बिल्डर माफिया, लूट, अपहरण, क्लेशहाय! दलालों में बिका गांधी तेरा देश।सर्कस में लंगूर ने गजब दिखलाया खेलरेल घोटालों की चला, ब्रेक कर दिया फेल।मंत्री पद की शपथ ले, वो बोल मुस्कायसाईं इतना दीजिए, जा में कुटुम्ब समाय।आप जिसे चाहें वोट दें, जिसका चाहे साथ दें, चरित्र यही है। ऐसे में श्रीराम का नाम भी दिल में ही लें तो अच्छा है। न जाने कौन साम्प्रदायिकता का आरोप लगाकर आपको दूर भगा दे। (क्रमश:)
Courtsey: अश्वनी कुमार, सम्पादक (पंजाब केसरी)
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