अश्वनी कुमार
प्रस्तुति-डॉ0 संतोष राय
इस राष्ट्र में तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़े कांग्रेसियों ने राष्ट्रवादियों को आतंकवादी करार देने की पूरी कोशिश की। यह सौ प्रतिशत सत्य है कि आतंकवाद का कोई रंग नहीं होता। यदि कोई भगवा, हरा, काला, नीला या अन्य किसी रंग को आतंक का प्रतीक बताता है तो वह गलत है। ये सब प्रकृति के उपहार हैं। भगवा शब्द भगवान या ईश्वर का प्रतीक है लेकिन इस देश में भगवा रंग पर काली सियासत की गई। अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए गृहमंत्री पी. चिदम्बरम, दिग्विजय सिंह या कुछ अन्य नेताओं ने भगवा आतंकवाद के जुमले का सहारा लिया। ये लोग भगवा आतंकवाद पर प्रहार करके मुस्लिम समुदाय के बीच नायक बनना चाहते हैं। यह प्रवृत्ति अनर्थकारी है। गृहमंत्री और उनके समर्थकों को इतिहास में झांक कर देखना चाहिए कि भगवा संस्कृति और उनके अनुयायी कितने उदार और अहिंसक रहे हैं।
जरा याद कीजिए कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी ने प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी की तुलना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से करके अपनी राजनीतिक अपरिपक्वता का प्रमाण दिया था। संघ निश्चित रूप से हिन्दू राष्ट्रवाद का प्रवर्तक है और हिन्दू संस्कृति को भारतीय संस्कृति के पर्याय के रूप में देखता है मगर इसकी राष्ट्रभक्ति पर संदेह करना रात को दिन बताने की तरह है। जरा सोचिये आजादी से पहले जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अपने वर्धा आश्रम के सामने ही लगे संघ के शिविर में गए थे तो अपने स्वयंसेवकों की अनुशासनप्रियता और जाति-पाति के बंधन से दूर देख कर कहना पड़ा था कि यदि कांग्रेस के पास ऐसे अनुशासित कार्यकर्ता हों तो आजादी का आंदोलन अंग्रेजों को देश छोडऩे के लिए बहुत जल्दी मजबूर कर देगा। इतना ही नहीं महान समाजवादी चिंतक और जन नेता डा. राम मनोहर लोहिया ने भी संघ के बारे में कहा था कि यदि मेरे पास संघ जैसा संगठन हो तो मैं पूरे देश में पांच साल के भीतर ही समाजवादी समाज की स्थापना कर सकता हूं। संघ ऐसा संगठन है जिसकी प्रशंसा स्वयं पं. जवाहर लाल नेहरू ने भी की थी।
1962 के भारत-चीन युद्ध के समय संघ के कार्यकर्ताओं ने जिस प्रकार भारत की सेनाओं का मनोबल बढ़ाने के लिए खुद पूरे देश में आगे बढक़र नागरिक क्षेत्रों में मोर्चा सम्भाला था उसे देखकर स्वयं पं. नेहरू को इस संगठन की राष्ट्रभक्ति की प्रशंसा करनी पड़ी थी और उसके बाद 26 जनवरी की परेड में संघ के गणवेशधारी स्वयंसेवकों को शामिल किया गया था। 1965 के भारत-पाक युद्ध के समय भी संघ के स्वयंसेवकों ने पूरे देश में आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने में पुलिस प्रशासन की पूरी मदद की थी और छोटे से लेकर बड़े शहरों तक में इसके गणवेशधारी कार्यकर्ता नागरिकों को पाकिस्तानी हमले के समय सुरक्षा का प्रशिक्षण दिया करते थे। इनकी जुबान पर हमेशा भारत माता की जय का उद्घोष रहता है।
भारत में हिन्दू संस्कृति की बात करना क्या गुनाह है? संघ पर महात्मा गांधी की हत्या के बाद प्रतिबंध जरूर लगाया गया था मगर बापू की हत्या में संघ के किसी कार्यकर्ता का हाथ नहीं पाया गया था। हिन्दू महासभा के नेता स्व. वीर विनायक दामोदर सावरकर को भी इस हत्याकांड में गिरफ्तार किया गया था मगर उनकी राष्ट्रभक्ति पर भी क्या कोई कांग्रेसी प्रश्र चिन्ह लगा सकता है? सावरकर के गुरु बंगाल के क्रांतिकारी श्याम जी कृष्ण वर्मा थे। संघ और हिन्दू महासभा की विचारधारा में भी मूलभूत अंतर शुरू से ही रहा है।
हिन्दू सभा राजनीति का हिन्दूकरण और हिन्दुओं के सैनिकीकरण के पक्ष में थी जबकि संघ के संस्थापक डा. बलिराम केशव हेडगेवार का लक्ष्य हिन्दुओं का मजबूत सांस्कृतिक संगठन स्थापित करना था। इस सच को कैसे झुठलाया जा सकता है कि 1947 में भारत का बंटवारा होने के समय संघ के कार्यकर्ताओं ने पश्चिमी पाकिस्तान (पंजाब) के मोर्चे पर हिन्दुओं की रक्षा की थी।
मैं फिलहाल राजनीतिक सोच की बात नहीं कर रहा हूं बल्कि संघ की व्यावहारिक कार्यप्रणाली की बात कर रहा हूं। संघ भारतीय संस्कृति का विश्वविद्यालय रहा है। यह जिस हिन्दू गौरव की बात करता है उसका मतलब मुस्लिम विरोधी नहीं है बल्कि मुस्लिम पहचान को भारत की जड़ों में खोजना है। (क्रमश:)
Courtsey:
-- अश्वनी कुमार, सम्पादक (पंजाब केसरी)
दिनांक- 17-11-2011
2 comments:
bahut hi sundar aur vaastvik lekh...
भंडाफोडू वापस आ चूका है
http//bhaandafodu.blogspot.com
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