अश्वनी कुमार
प्रस्तुति: डॉ0 संतोष राय
धर्मनिरपेक्ष शब्द की धारणा के कारण हमारे देश को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र (Secular Nation) कहा जाने लगा। राष्ट्र का धर्म से कुछ लेना-देना नहीं इसलिए यह धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। यदि संविधान में शुरू से सैकुलर का अनुवाद धर्मनिरपेक्ष न करके सम्प्रदाय निरपेक्ष या पंथ निरपेक्ष कर दिया जाता तो भ्रांत धारणाएं पैदा नहीं होतीं। धर्मनिरपेक्षता को अस्त्र बनाकर हिन्दुत्व पर आघात किया जाता रहा। कांग्रेस, कम्युनिस्ट और अन्य दलों ने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मुसलमान, ईसाइयों को विशेषाधिकार दिए जाने की मांग शुरू कर दी। वोटों के लालच में इस शब्द का खुला दुरुपयोग किया जाने लगा। जब कभी हिन्दू हितों की बात हो तो उन्हें धर्मनिरपेक्षता विरोधी बताकर विरोध किया जाने लगा। इस प्रकार धर्मनिरपेक्ष शब्द को हिन्दू विरोध का पर्यायवाची मान लिया गया। केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने हिन्दू मठों और मंदिरों की सम्पत्ति का दुरुपयोग रोकने के लिए एक आयोग बनाया था। तब अटल बिहारी वाजपेयी ने इस पर आपत्ति करते हुए संसद में कहा था कि क्या केवल मठों और मंदिरों की सम्पत्ति का ही दुरुपयोग होता है? क्या मस्जिदों और गिरजाघरों की सम्पत्ति का दुरुपयोग नहीं होता? क्या सैकुलर स्टेट में सबके लिए एक सा कानून नहीं होना चाहिए?
हमारे देश में रिश्वत देना और लेना दोनों ही कानूनी अपराध हैं और इसके लिए दंड का प्रावधान भी है। आजकल 'सुविधा शुल्क' के नाम से जाने जाने वाली रिश्वत को हमारी सरकार संविधान के अनुच्छेदों में संशोधन करके जनता तक पहुंचाती है तथा इस प्रकार यह वैध और प्रासंगिक बन जाता है। आजादी के समय से ही आरक्षण का हमारे देश के विकास के लिए कुछ खास जातियों और जनजातियों के लिए प्रावधान किया गया था लेकिन वोट बैंक पर अपना कब्जा बनाए रखने के लिए और अपनी झूठी भावना के साथ जनभावना जोडऩे के लिए इसकी अवधि आज तक बढ़ाई जा रही है। सरकारें बदलीं, लेकिन न ही वोट बैंक की राजनीति खत्म हुई और न ही आरक्षण की अवधि बढ़ाने का सिलसिला थमा। अलबत्ता आरक्षण का दायरा बढ़ा दिया गया और इसमें कोटा भी शामिल हो गया। वोटों की राजनीति ने मंडल कमीशन को जन्म दिया और गुर्जरों ने आंदोलन कर खुद के लिए कोटा हासिल किया या यूं कहें कि सरकार से कोटा छीना। यूपीए सरकार ने तो प्राइवेट सैक्टर में भी आरक्षण की बात कह डाली लेकिन चूंकि प्राइवेट सैक्टर पर सरकार का कोई प्रत्यक्ष अधिकार नहीं है इसलिए सरकार को इसमें असफलता ही हाथ लगी। सरकार ने प्राइवेट सैक्टर के लिए दूसरी चाल चली और घोषणा की कि सरकार सरकारी खरीद का 4 प्रतिशत उन कम्पनियों से करेगी जिनका स्वामित्व दलित और अनुसूचित जातियों के पास है।
हालांकि यह बात अलग है कि आरक्षण और कोटा जैसी सुविधाओं का लाभ असली जरूरतमंदों तक पहुंच नहीं पाता, बल्कि क्रीमीलेयर इसका फायदा ज्यादा उठाते हैं। आज हालात यह हैं कि पढ़ाई, नौकरी, व्यापार हर क्षेत्र में आरक्षण को जगह मिली है। यहां तक कि चिकित्सा के क्षेत्र में भी आरक्षण लागू है। यह बात समझ से परे है कि मानव जीवन से जुड़े पेशे में आरक्षण देना वोट बैंक की राजनीति के अलावा क्या हो सकता है? इसे तो सीधे तौर पर 'राजनीतिक घूस' कहा जा सकता है।
अब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं तो कांग्रेस के लिए यह चुनाव जीवन-मरण का सवाल है। राहुल गांधी के भरसक प्रयासों से भी कांग्रेस के वहां पुनर्जीवित होने के आसार दिखाई नहीं देते। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बसपा की नजरें मुस्लिम वोट बैंक पर हैं और कांग्रेस मुस्लिम वोट बैंक के लिए ऐसा ब्रह्मास्त्र छोडऩा चाहती है, जिससे उसे चुनावी जीत हासिल हो। मुख्यमंत्री मायावती ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर मुस्लिम समाज के लिए आरक्षण की मांग की थी। बस फिर क्या था केन्द्रीय विधि मंत्री पहुंच गए लखनऊ और कर दिया ऐलान कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी इस मामले में काफी गम्भीर हैं और सरकारी नौकरियों में मुस्लिमों को आरक्षण की घोषणा जल्द कर दी जाएगी। उन्होंने यह भी ऐलान किया कि सरकार सच्चर कमेटी की सिफारिशों पर अमल करने के लिए तैयार है। चुनावों से पहले मुस्लिमों को आरक्षण एक सीधी रिश्वत है। सवर्ण हिन्दू गरीबी में भले ही एडिय़ां रगड़-रगड़ कर मर जाए कोई नहीं पूछता। न सरकार, न रिश्तेदार, न मित्र, कोई सहायता नहीं करता लेकिन मुस्लिमों को इस बात से सतर्क रहना होगा कि चुनाव से पहले सहानुभूति जताकर राजनीतिक दल उनसे धोखा तो नहीं कर रहे। (क्रमश:)
धर्मनिरपेक्ष शब्द की धारणा के कारण हमारे देश को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र (Secular Nation) कहा जाने लगा। राष्ट्र का धर्म से कुछ लेना-देना नहीं इसलिए यह धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। यदि संविधान में शुरू से सैकुलर का अनुवाद धर्मनिरपेक्ष न करके सम्प्रदाय निरपेक्ष या पंथ निरपेक्ष कर दिया जाता तो भ्रांत धारणाएं पैदा नहीं होतीं। धर्मनिरपेक्षता को अस्त्र बनाकर हिन्दुत्व पर आघात किया जाता रहा। कांग्रेस, कम्युनिस्ट और अन्य दलों ने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मुसलमान, ईसाइयों को विशेषाधिकार दिए जाने की मांग शुरू कर दी। वोटों के लालच में इस शब्द का खुला दुरुपयोग किया जाने लगा। जब कभी हिन्दू हितों की बात हो तो उन्हें धर्मनिरपेक्षता विरोधी बताकर विरोध किया जाने लगा। इस प्रकार धर्मनिरपेक्ष शब्द को हिन्दू विरोध का पर्यायवाची मान लिया गया। केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने हिन्दू मठों और मंदिरों की सम्पत्ति का दुरुपयोग रोकने के लिए एक आयोग बनाया था। तब अटल बिहारी वाजपेयी ने इस पर आपत्ति करते हुए संसद में कहा था कि क्या केवल मठों और मंदिरों की सम्पत्ति का ही दुरुपयोग होता है? क्या मस्जिदों और गिरजाघरों की सम्पत्ति का दुरुपयोग नहीं होता? क्या सैकुलर स्टेट में सबके लिए एक सा कानून नहीं होना चाहिए?
हमारे देश में रिश्वत देना और लेना दोनों ही कानूनी अपराध हैं और इसके लिए दंड का प्रावधान भी है। आजकल 'सुविधा शुल्क' के नाम से जाने जाने वाली रिश्वत को हमारी सरकार संविधान के अनुच्छेदों में संशोधन करके जनता तक पहुंचाती है तथा इस प्रकार यह वैध और प्रासंगिक बन जाता है। आजादी के समय से ही आरक्षण का हमारे देश के विकास के लिए कुछ खास जातियों और जनजातियों के लिए प्रावधान किया गया था लेकिन वोट बैंक पर अपना कब्जा बनाए रखने के लिए और अपनी झूठी भावना के साथ जनभावना जोडऩे के लिए इसकी अवधि आज तक बढ़ाई जा रही है। सरकारें बदलीं, लेकिन न ही वोट बैंक की राजनीति खत्म हुई और न ही आरक्षण की अवधि बढ़ाने का सिलसिला थमा। अलबत्ता आरक्षण का दायरा बढ़ा दिया गया और इसमें कोटा भी शामिल हो गया। वोटों की राजनीति ने मंडल कमीशन को जन्म दिया और गुर्जरों ने आंदोलन कर खुद के लिए कोटा हासिल किया या यूं कहें कि सरकार से कोटा छीना। यूपीए सरकार ने तो प्राइवेट सैक्टर में भी आरक्षण की बात कह डाली लेकिन चूंकि प्राइवेट सैक्टर पर सरकार का कोई प्रत्यक्ष अधिकार नहीं है इसलिए सरकार को इसमें असफलता ही हाथ लगी। सरकार ने प्राइवेट सैक्टर के लिए दूसरी चाल चली और घोषणा की कि सरकार सरकारी खरीद का 4 प्रतिशत उन कम्पनियों से करेगी जिनका स्वामित्व दलित और अनुसूचित जातियों के पास है।
हालांकि यह बात अलग है कि आरक्षण और कोटा जैसी सुविधाओं का लाभ असली जरूरतमंदों तक पहुंच नहीं पाता, बल्कि क्रीमीलेयर इसका फायदा ज्यादा उठाते हैं। आज हालात यह हैं कि पढ़ाई, नौकरी, व्यापार हर क्षेत्र में आरक्षण को जगह मिली है। यहां तक कि चिकित्सा के क्षेत्र में भी आरक्षण लागू है। यह बात समझ से परे है कि मानव जीवन से जुड़े पेशे में आरक्षण देना वोट बैंक की राजनीति के अलावा क्या हो सकता है? इसे तो सीधे तौर पर 'राजनीतिक घूस' कहा जा सकता है।
अब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं तो कांग्रेस के लिए यह चुनाव जीवन-मरण का सवाल है। राहुल गांधी के भरसक प्रयासों से भी कांग्रेस के वहां पुनर्जीवित होने के आसार दिखाई नहीं देते। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बसपा की नजरें मुस्लिम वोट बैंक पर हैं और कांग्रेस मुस्लिम वोट बैंक के लिए ऐसा ब्रह्मास्त्र छोडऩा चाहती है, जिससे उसे चुनावी जीत हासिल हो। मुख्यमंत्री मायावती ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर मुस्लिम समाज के लिए आरक्षण की मांग की थी। बस फिर क्या था केन्द्रीय विधि मंत्री पहुंच गए लखनऊ और कर दिया ऐलान कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी इस मामले में काफी गम्भीर हैं और सरकारी नौकरियों में मुस्लिमों को आरक्षण की घोषणा जल्द कर दी जाएगी। उन्होंने यह भी ऐलान किया कि सरकार सच्चर कमेटी की सिफारिशों पर अमल करने के लिए तैयार है। चुनावों से पहले मुस्लिमों को आरक्षण एक सीधी रिश्वत है। सवर्ण हिन्दू गरीबी में भले ही एडिय़ां रगड़-रगड़ कर मर जाए कोई नहीं पूछता। न सरकार, न रिश्तेदार, न मित्र, कोई सहायता नहीं करता लेकिन मुस्लिमों को इस बात से सतर्क रहना होगा कि चुनाव से पहले सहानुभूति जताकर राजनीतिक दल उनसे धोखा तो नहीं कर रहे। (क्रमश:)
Courtsey: अश्वनी कुमार, सम्पादक (पंजाब केसरी)
दिनांक- 11-11-2011
दिनांक- 11-11-2011
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