Wednesday, November 30, 2011

हिन्‍दू महासभा का राष्‍ट्रपति के नाम खुला पत्र

महामहिम,
श्रीमती प्रतिभा सिंह देवी पाटिल,
भारत सरकार
राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली
विषय : पाकिस्तानी हिन्दुओं के मानवाधिकार हनन, उत्पीड़न, यौन शोषण, धर्मान्तरण के सन्दर्भ में
महोदय,
सविनय निवेदन है कि १५ अगस्त १९४७ को हिन्दुस्थान का विभाजन कांग्रेस, मुस्लिम लीग और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कारण हुआl हिन्दू महासभा ने उस समय भी विभाजन का मुखर विरोध किया था, कांग्रेस कार्य समिति में कांग्रेस ने भी स्वीकार किया था कि विभाजन अल्पकाल के लिए हो रहा है और पुनः भारत अखंड होगा l
१९४६ में भी कांग्रेस ने अखंड हिन्दुस्थान के लिए वोट माँगा था, फिर भी राष्ट्र के विभाजन का पाप किया
हिन्दुस्थान के विभाजन का उस समय हिन्दू महासभा द्वारा जो विरोध किया गया और जो अनुमान लगाये गए वो आज पुर्णतः सत्यापित हो रहे हैं, विभाजन के समय जो जघन्यता और क्रूरता इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा हिन्दुओं के प्रति दिखाई गयी दिखाई गयी थी वो आज भी निरंतर गतिशील है l
डाक्टर बाबा साहेब भीमराव रामजी अम्बेडकर द्वारा सुझाए गये मार्ग को उस समय कि सरकार ने अपने स्वार्थों को सिद्ध करने और सत्ता-लोलुभता के चलते त्याग दिया था, मैं विस्तृत विवरण में नहीं जानता चाहता क्योंकि आप विदूषी आदरणीय महिला हैं और भारत कि प्रथम नागरिक हैं.... अतः सम्पूर्ण विषय आपके संज्ञान में है l १५ अगस्त १९४७ के पहले ये सभी भारतीय थे l हमारी कूटनीतिक विफलता के कारण आज ये भारतीय नही हैं l कांग्रेस ने अपनी कार्य-समिति में निर्णय लिया था, उस निर्णय के तहत इन हिन्दुओं के मानवाधिकारों का रक्षण करने का दायित्व आपका है l
आसिन्धु-सिन्धु पर्यन्ता यस्य भारत भूमिका। पितृ भू: पुन्यभूशचैव स वै हिन्दुरिति स्मृत:।।
अर्थात सिन्धु के उदगम स्थान से समुद्र पर्यन्त जो भारत भूमि है उसे जो पितृ-भूमि तथा पुण्य-भूमि मानता है, वह हिन्दू कहलाता है।इस प्रकार कि समस्या युगांडा के तानाशाह ईदी अमीन द्वारा उपस्थित कर दी गयी थी, और हिन्दुओं को राष्ट्र से निष्कासित कर दिया गया था l
उस समय हिन्दुस्थान कि प्रधान मंत्री माननीय श्रीमती इंदिरा गाँधी थीं, हमारे तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य बालाराव सावरकर जी थे, उन्होंने श्रीमती गांधी को तार एवं पत्र के माध्यम से आग्रह किया कि इनकी मात्रभूमि नहीं है किन्तु इनकी पितृभूमि है अतः माननीय दृष्टिकोण के तहत इनको हिन्दुस्थान कि नागरिकता दी जाए, जिसको श्रीमती गांधी ने अपने तत्काल प्रभाव से ५०००० युगांडा के हिन्दुओं को हिन्दुस्थान कि नागरिकता दी, जो भारत के इतिहास में एक एतिहासिक तथ्य है l
श्रीमती गांधी का यह एतिहासिक निर्णय वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत को स्वीकार करता है यही भारतीय सिद्धांत है l जिस प्रकार भेड़िये के द्वारा अपने शिकार को घेर कर मारा जाता है उसी प्रकार से इस्लामिक साम्राज्यवादी जिहादी मुसलमानों के द्वारा हिन्दुओं पर बर्बर अत्याचार हो रहा है जो कि आपके संज्ञान में है l
वसुधैव कुटुम्बकम और अतिथि देवो भव: ये हमारे प्राचीन भारतीय सिद्धांत हैं और इसकी आप मूर्तिमान स्वरूप हैं l ८ सितम्बर २०११ को पकिस्तान से ११९ हिन्दुओं ने तीर्थयात्रा वीजा के बहाने प्राण रक्षा हेतु पुण्यभूमि - पित्रभूमि भारत में आगमन किया l इनमे से अधिकतर हिन्दुओं को धर्मांतरण हेतु भयंकर रूप से प्रताड़ित किया गया है, ये आजीवन उपेक्षा एवं उत्पीड़न के शिकार रहे हैं l पाकिस्तान में सम्पूर्ण हिन्दू समाज को शिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा तथा मानवाधिकारों से वंचित रखा गया है l हिन्दू बच्चों को शिक्षा के समय धर्मांतरण के लिए भयंकर प्रताड़ित किया जाता है और अमानवीय शारीरिक यातनाएं दी जाती हैं l
कुछ बच्चों के मोलवीयों द्वारा हुई पिटाई के कारण कान के पर्दे तक फट चुके हैं l
कुछ स्त्रियों के स्तन आदि कटे हुए हैं l इनमे से कई लोगों को जबरदस्ती हैपेटाईटिस - बी का इंजेक्शन लगा कर आजीवन रोगग्रस्त बना दिया गया है, इसके पीछे का उद्देश्य हिन्दुओं का वंश नाश है l विगत दिनों चार हिन्दू चिकित्सकों कि जघन्य हत्या इस्लामी कट्टरपंथियों ने सिंध प्रांत में की गई l कराची के चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने गत दिनों एक जन समारोह में यह स्वीकार किया है कि कराची महानगर के अन्दर प्रति दिन 100 से अधिक बलात्कार हिन्दू नारियों के किये जाते हैं, और अधिकतर को धर्मान्तरित कर दिया जाता है तथा प्रशासन द्वारा कोई कार्यवाही नहीं कि जाती l
माननीय आप एक मातृ शक्ति हैं, पुर्णतः आशा एवं विश्वास के साथ नम्र प्रार्थना एवं अनुरोध है कि पाकिस्तान से आये हुए असहाय, उत्पीड़ित और प्रताड़ित हिन्दू नागरिकों को केवल एकमात्र आपके द्वारा न्याय एवं सहयोग कि आशा में यह प्रार्थना पत्र आपको बहुत पीड़ा के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ, कि इनके वीजा कि अवधी को को विस्तार देकर इनको पित्रभूमि भारत में रहने हेतु नागरिकता प्रदान करने कि प्रक्रिया आरम्भ कि जाए l साथ ही आपसे नम्र अनुरोध करता हूँ कि पाकिस्तान में रह रहे 38 लाख हिन्दुओं कि शिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा एवं मानवाधिकारों के लिए पकिस्तान सरकार पर दबाव बनाया जाये l
यह सभी विषय विभिन्न समाचार पत्रों एवं इलेक्ट्रोनिक माध्यमो द्वारा ज्ञात हुआ है l
पंडित बाबा नंद किशोर मिश्र
(वरिष्‍ठ नेता
, अखिल भारत हिन्‍दू महासभा)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (24)

अश्‍वनी कुमार

प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय

साम्‍प्रदायिकता तथा लक्षित हिंसा विधेयक के प्रस्तावित प्रारूप का अध्ययन करने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि इस विधेयक के इरादे यही हैं कि अपना देश एक न रहे, समाज में सद्भाव समाप्त हो जाए, संविधान की भावना के उलट सभी कार्य हों। इस प्रारूप को राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने तैयार किया है, इस परिषद के संवैधानिक अधिकार क्‍या हैं? इस पर भी बहुत से सवाल उठ खड़े हुए हैं। देश में लोकतंत्र है, संसद है, तो फिर हम तथाकथित सलाहकारों के जाल में क्‍यों फंस रहे हैं?
न्याय, संविधान आदि की अवहेलना करने वाला यह विधेयक क्‍या विचार करने योग्य है? इस विधेयक को तो रद्दी की टोकरी में डाल देना ही बेहतर है क्‍योंकि इस विधेयक के पीछे की राष्ट्र विरोधी, घृणित, षड्यंत्रकारी मानसिकता इस पहले प्रारूप में ही साफ हो गई है।
इस विधेयक को लेकर कुछ और बिन्दू स्पष्ट करना चाहूंगा :विधेयक में प्रदेश में साम्‍प्रदायिक हिंसा होने पर कानून व्यवस्था के नाम पर केन्द्र सरकार को ''हस्तक्षेप का अधिकार'' दिया गया है। यह भारतीय संविधान में ''संघीय चरित्र'' के विरुद्ध है। राज्यों में साम्‍प्रदायिक हिंसा के नाम पर केन्द्रीय हस्तक्षेप असंवैधानिक है।
विधेयक देश के सार्वभौम नागरिकों को अल्पसंख्‍यक (मुस्लिम) और बहुसंख्‍यक (हिन्दू) में बांटकर देखता है।
देश की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार मुस्लिम 13.5 प्रतिशत, हिन्दू, सिख, इसाई 86.5 प्रतिशत हैं।
केन्द्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार पिछले तीन वर्षों में साम्‍प्रदायिक दंगों की संख्‍या में भारी गिरावट आई है।
यह विधेयक बहुसंख्‍यक हिन्दुओं के लिए उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, असम, पुड्डुचेरी आदि में गले का फंदा बना है।
पंजाब में सिख, कश्मीर में मुस्लिम और उत्तर-पूर्व के राज्यों में इसाई बहुसंख्‍यक हैं।
विश्व के किसी भी देश में धर्म के नाम पर कोई साम्‍प्रदायिक हिंसा विधेयक नहीं है।
कांग्रेस का कहना है कि साम्‍प्रदायिक दंगों के समय स्थानीय प्रशासन और पुलिस उनके साथ सही बर्ताव नहीं करती है। प्रशासन एवं पुलिस मुस्लिमों को संदेह की नजर से देखती है, यह गलत है।
साम्‍प्रदायिक दंगों के लिए स्थानीय जिला प्रशासन और पुलिस को जवाबदेह बनाने का कोई प्रावधान नहीं है। भारतीय जनता पार्टी, वाम मोर्चा, तीसरी शक्ति साम्‍प्रदायिक हिंसा को राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक समस्या मानती है।
विश्व के अधिकांश टीवी समाचार चैनलों पर धार्मिक समारोह रपट विरले ही प्रसारित की जाती है।
विपक्ष का आरोप है कि साम्‍प्रदायिक हिंसा विधेयक में बहुसंख्‍यक हिन्दुओं को ''खलनायक की भांति चित्रित किया गया है।''
कांग्रेस का आरोप है कि मीडिया शांति और सौहार्द स्थापना में रचनात्मक भूमिका अदा नहीं कर रहा है। प्रधानमंत्री डा. सिंह ने मीडिया को सौहार्द, शांति के लिए रचनात्मक कार्य करने की सलाह दी।
विपक्ष के अनुसार विधेयक के प्रावधान नागरिक स्वतंत्रता के संविधान प्रदत्त प्रावधानों का अतिक्रमण करते हैं। विधेयक नागरिकों को धर्म और जाति के नाम पर विभाजित करता है।
विधेयक के अनुसार हिन्दू, मुस्लिमों के लिए अलग-अलग आपराधिक दण्ड संहिता (फौजदारी कानून) होंगे। परिणामस्वरूप साम्‍प्रदायिक हिंसा विधेयक हिन्दू बहुसंख्‍यकों के लिए भस्मासुर बनेगा। उसका दुरुपयोग होने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
विधेयक से हिन्दू-मुस्लिमों में ''परस्पर अविश्वास'' और अधिक गहराएगा। अत: यह संविधान विरोधी साम्‍प्रदायिक हिंसा विधेयक मसौदा खारिज किया जाए। वर्तमान में साम्‍प्रदायिक हिंसा से निपटने के अनेक सख्‍त कानून हैं उनका उपयोग क्‍यों नहीं किया जा रहा है? (क्रमश:)

Courtsey:अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)
दिनांक- 24-11-2011

Tuesday, November 29, 2011

सीबीआई, एटीएस और एनआईए की दरिंदगी का हुआ पर्दाफाश


 दैनिक भास्‍कर की विशेष रिपोर्ट


प्रस्‍तुति: डॉ0  संतोष राय


अम्बाला. पंचकूला .ब्लैक बोर्ड पर सीबीआई, एटीएस और नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी (एनआईए) के अधिकारी अपनी कहानी लिखते थे और मुझे उस कहानी को याद कर कोर्ट में यही सब बोलने के लिए कहा जाता था। 

 
साथ ही धमकी दी जाती थी कि अगर ऐसा नहीं किया, तो जान से मार देंगे। मेरे परिवार को भी मारने की बात कही जाती थी। इतना ही नहीं, मुझे यह भी कहा गया कि अगर बयान हमारे मुताबिक नहीं दिए, तो मेरी मां के सामने मेरे कपड़े उतारे जाएंगे।
 

सुरक्षा एजेंसियों की इस प्रताड़ना की वजह से ही मैंने बयान दिए। यह सब बातें समझौता व अन्य ब्लॉस्ट में आरोपी स्वामी असीमानंद ने अपने पत्र में लिखी हैं और यह पत्र भारत की राष्ट्रपति, गृह मंत्री, ह्यूमन राइट्स, केबिनेट सेक्रेटरी, सुप्रीम कोर्ट, पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट, जयपुर हाई कोर्ट, हैदराबाद हाईकोर्ट, मुंबई हाई कोर्ट, दिल्ली हाईकोर्ट व मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को भेजा है।
असीमानंद ने पत्र में आगे लिखा है कि अधिकारियों की इन हरकतों की वजह से मुझे अपने हिन्दू होने पर शर्म आ रही है। मुझे जमानत नहीं दी गई, जबकि मालेगांव ब्लॉस्ट के सात आरोपियों को जमानत दे दी गई। क्योंकि वे मुस्लिम हैं और मैं हिन्दू और मेरे कोई मानवाधिकार नहीं हैं। स्वामी असीमानंद ने यह पत्र उस बात से परेशान होकर लिखा है कि मालेगांव ब्लॉस्ट के सात आरोपियों को जमानत दे दी गई, जबकि वे अपना जुर्म कबूल कर चुके हैं, जबकि उन्हें जमानत नहीं दी जा रही। असीमानंद फिलहाल अम्बाला सेंट्रल जेल में बंद हैं। 

 
लश्कर ए तैयबा का हाथ था तो मुझे क्यों फंसाया
 

स्वामी असीमानंद के पत्र में लिखा है कि समझौता ब्लॉस्ट की जिम्मेदारी सबसे पहले लश्कर ए तैयबा ने ली थी। जिसके तीन आतंकवादी पकड़े भी गए थे और उन्होंने कबूल किया था कि समझौता ब्लॉस्ट उन्हीं की देन है और पैसा दाउद इब्राहिम ने दिया था। इन तीनों आरोपियों का नाकरे टेस्ट भी हो चुका है। जब ये बात कबूल चुके थे, तो उन्हें क्यों इस मामले में फंसाया गया।
याचिका पर एनआईए को नोटिस
मेरे मानवाधिकार नहीं : असीमानंद ने लिखा है मुझे जमानत नहीं दी गई, जबकि मालेगांव ब्लॉस्ट के सात आरोपियों को जमानत दे दी गई। क्योंकि वे मुस्लिम हैं और मैं हिन्दू और मेरे कोई मानवाधिकार नहीं हैं।
चंडीगढ़. समझौता एक्सप्रैस ब्लास्ट मामले के आरोपी स्वामी असीमानंद की याचिका पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने नेशनल इंवेस्टीगेटिंग एजेंसी (एनआइर्ए) को नोटिस जारी किया है। असीमानंद ने याचिका में पंचकूला की स्पेशल कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें स्पेशल कोर्ट ने समझौता एक्सप्रैस ब्लास्ट साइट से मिले नमूनों को अजमेर, हैदराबाद,मालेगांव व भोडासा ब्लास्ट साइट से मिले नमूनों को हैदराबाद की सीएफएसएल की लैब में मिलाने की अनुमति दी है।
स्वामी असीमानंद ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि एनआईए जानबूझ कर नमूनों के मिलान के बहाने उसे फंसाना चाहती है। अदालत ने मामले पर एक दिसंबर के लिए सुनवाई तय की है। समझौता एक्सप्रेस में धमाका 18 सितंबर की देर रात व 19 सितंबर 2007 की सुबह किया गया था।
इसमें 68 लोग मरे थे जबकि 12 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। एनएआई ने विस्फोटकों की सील खोल इनकी जांच करने की मांग की थी जिसे पंचकूला की स्पेशल कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था। कोर्ट के फैसले के खिलाफ स्वामी ने हाईकोर्ट में दस्तक देकर इसे खारिज करने की मांग की। कहा गया कि जांच का आदेश दिया गया तो उनके खिलाफ झूठे मामले दर्ज कर उन्हें प्रताड़ित किया जाएगा।

Source Link:http://www.bhaskar.com/article/HAR-HAR-AMB-hindu-is-going-to-be-shy-asimanand-2600664.html?HT5=

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (23)

अश्‍वनी कुमार

प्रस्‍तुति:डॉ0 संतोष राय

दुनिया के किसी देश में धर्म के नाम पर कोई साम्‍प्रदायिक हिंसा विधेयक नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने साम्‍प्रदायिक हिंसा विधेयक का मसौदा तैयार कर डाला। इसके अधिकांश सदस्य 'सैकुलर ब्रिगेड' के हैं, जिनमें भाजपा और हिन्दुत्व विरोधी अभियानकर्ता हर्षमंदर, अरुणा राय का नाम लिया जा सकता है।
इस सम्‍पादकीय को आगे बढ़ाने से पहले मैं कुछ बिन्दु स्पष्ट करना चाहता हूं :प्रोफेसर के.सी. पाण्डे के भिवंडी, महाराष्ट्र, अहमदाबाद के साम्‍प्रदायिक दंगों के अध्ययन के अनुसार हिन्दू-मुस्लिम फसाद ''विकास के असमान ढांचे'' के कारण हुए। उनका धर्म से कोई लेना-देना नहीं था। देशभर में प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर अमृतसर में है। भगवान कृष्ण को लेकर रहीमजी, रसखान ने जनप्रिय रचनाएं लिखीं। मलिक मोहम्‍मद जायसी ने पदमावत की रचना की। दादूवाणी को लिपिबद्ध करने वाले रज्जबदास (पठान रज्जब खान) थे। अमीर खुसरो की प्रसिद्ध भक्ति रचना ''छाप तिलक सब छोड़ी है।'' बादशाह अकबर ने हिन्दू-इस्लाम का मिला-जुला धर्म चलाया। अकबर के दरबार में अग्नि की पूजा होती थी। शाहजहां के बड़े शहजादे दारा शिकोह ने उपनिषदों का अनुवाद किया। परनामी सम्‍प्रदाय के संस्थापक महामति प्राणनाथ ने कुरान का अनुवाद किया। आजाद हिन्द फौज में जनरल शाहनवाज खान थे। पठान बादशाह खान सीमांत गांधी कहलाए।
कांग्रेस राजनीतिक रूप से लोकसभा की 185 सीटों में प्रभावी मुस्लिम वोट बैंक पर मोहिनी काम बाण छोडऩा चाहती है। सन् 1984 के लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस का प्रतिबद्ध वोट बैंक अनुसूचित जाति (दलित), अनुसूचित जनजाति (वनवासी) और मुस्लिम (कुल 120 लोकसभा सुरक्षित सीट) था। कांग्रेस में ब्राह्मण नेतृत्व के कारण देश के ब्राह्मण पार्टी से जुड़े थे। अयोध्या में राम मंदिर शिलान्यास (नवम्‍बर 1989), मंडल आरक्षण आंदोलन (1990), अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस (दिसम्‍बर 1992), बहुजन समाज पार्टी उदय से ओबीसी, दलित, मुस्लिम स्थायी रूप से कांग्रेस छोड़ गए।
कांग्रेस के सैकुलर वृंदगान-मुस्लिम प्रेम के कारण लोकसभा में मुस्लिम सांसदों की संख्‍या 25 वर्षों में घटकर आधी रह गई।
प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह का कहना है कि देश के संसाधनों पर ''मुस्लिमों-अल्पसंख्‍यकों का प्रथम अधिकार है।'' प्रधानमंत्री ने फरमाया कि साम्‍प्रदायिक दंगों, आतंकी विस्फोटों की जांच करने वाली एजैंसी को पूर्वाग्रह मुक्‍त, स्वतंत्र और निष्पक्ष छानबीन करनी चाहिए।
न्यायाधीश राजेन्द्र सच्चर रपट के अनुसार सन् 1947 से सन् 2007 के 60 वर्षों में मुस्लिमों की आर्थिक, सामाजिक दशा दयनीय रही अर्थात सत्तारूढ़ कांग्रेस ने मुस्लिम प्रेम के पाखण्ड में उन्हें मुख्‍यधारा से नहीं जोड़ा। मुस्लिमों के युवजन उच्च शिक्षा, विशेषज्ञता शिक्षा में पिछड़ गए।
देश में प्रधान न्यायाधीश हिदायतुल्ला रहे। राष्ट्रपति पद पर डा. जाकिर हुसैन, फखरुद्दीन अली अहमद, डा. एपीजे अब्‍दुल कलाम रहे। विश्व के किसी भी लोकतांत्रिक देश अमरीका, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, रूस, कनाडा, अफ्रीका आदि में अल्पसंख्‍यक मुस्लिम को राष्ट्रपति पद नहीं मिला।
सन् 2004 लोकसभा चुनाव में मुस्लिम बहुल लोकसभा क्षेत्रों में पीएम सईद, बेगम नूरबानो रामपुर, सीके जाफर शरीफ आदि क्‍यों हारे?
विश्व के महाकोषों में समाज से सम्‍प्रदाय शब्‍द बना है। अधिकांश विकसित देश साम्‍प्रदायिकता (कम्‍युनलिज्म), धर्म निरपेक्षता (सैकुलरिज्म) शब्‍दों का प्रयोग करना ही नहीं चाहते। दूसरे देशों में हिंसा करने वाले समाजकंटक अपराधी हैं। उन्हें धार्मिक चश्मे से नहीं देखा जाता है। अधिकांश शासनाध्यक्षों-राष्ट्राध्यक्षों के धार्मिक स्थल (गिरजाघर, मस्जिद, बौद्ध विहार, यहूदी मंदिर आदि) में पूजा करते चित्र नहीं प्रकाशित होते हैं।
देश में 10 वर्षों में आतंक से लड़ते 1851 नागरिकों और 6728 पुलिस जवानों ने शहादत दी। उनमें अधिकांश हिन्दू थे। (क्रमश:)
Courtsey:अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)
दिनांक- 23-11-2011

Monday, November 28, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (22)

अश्‍वनी कुमार
प्रस्‍तुति- डॉ0 संतोष राय
कांग्रेस का जनाधार जब भी खिसकता है या उसे भ्रष्टाचार और घोटालों के कारण झटके पर झटका लगता है तो वह ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाने की फिराक में रहती है कि देश के 18 करोड़ मुस्लिम मतदाता किसी न किसी तरह पट जाएं। नरसिम्‍हा राव शासन में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद मुस्लिम मतदाता उससे अलग हो गए थे जो आज तक पूरी तरह उसके साथ जुड़ नहीं सके। कभी वह हिन्दू संतों को निशाना बनाती है, कभी हिन्दुत्व पर प्रहार करती है तो कभी हिन्दुओं की आस्था से खिलवाड़ करती है।
सोनिया गांधी की बनाई नैशनल एडवाइजरी काउंसिल के कुछ मुस्लिम व वामपंथी सदस्यों द्वारा बहुसंख्‍यक हिन्दुओं के खिलाफ कड़ा कानून बनाने को तैयार किए गए मसौदे को ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कानून बनाने की जी-जान से कोशिश कर रहे हैं। यह मसौदा यदि विधेयक के रूप में संसद में आया और पास हो गया तो देश में एक और बंटवारे का रास्ता तैयार हो जाएगा क्‍योंकि इसमें ईसाई और मुसलमानों को संरक्षण देने के लिए ऐसे प्रावधान रखे गए हैं जिससे हिन्दुओं की हालत गुलाम जैसी हो जाएगी। सोनिया गांधी खुद ईसाई हैं। वह आगे चुनावों में कांग्रेस की जीत की रणनीति के तहत मुसलमानों को खुश करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं। इसी योजना के तहत साम्‍प्रदायिकता विरोधी विधेयक लाने की जोर-शोर से तैयारी चल रही है लेकिन इसकी पहली बैठक में ही 6 राज्यों के मुख्‍यमंत्रियों ने नहीं आकर विरोध जता दिया। उड़ीसा के मुख्‍यमंत्री ने कह दिया कि यह बिल तो ऐसा है कि यदि कहीं पर किसी अल्पसंख्‍यक ने कुछ किया और दंगा हुआ तो बहुसंख्‍यक समुदाय के खिलाफ कार्रवाई होगी। इसके अलावा इस मुद्दे पर केन्द्र सरकार राज्य सरकार को बर्खास्त भी कर सकती है। इससे तो इस देश के बहुसंख्‍यक हिन्दुओं की हालत गुलामों की हो जाएगी। सोनिया गांधी अमरीका व ईसाई जमात के अलावा मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए अपनी देखरेख में बनवाए साम्‍प्रदायिकता विरोधी बिल को अपने यसमैन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मार्फत लाने की तैयारी कर रही हैं। पहली बैठक में तो सब कुछ उल्टा पड़ गया, लेकिन उस मसौदे में कुछ इधर-उधर करके फिर उस पर बहुमत बनाने की कोशिश होगी। किसी भी तरह इसे फरवरी 2012 तक संसद में पास कराकर मुसलमानों को खुश करने की योजना है लेकिन पहली बैठक में तो झटका लग गया।
यूपीए सरकार में जयचंदों और मीर जाफरों की कोई कमी नहीं है जिनका एकमात्र लक्ष्य सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ कर अपना उल्लू सीधा करना है। साम्‍प्रदायिक हिंसा रोकने को विधेयक 2006 में संसद में पेश कर दिया गया था, लेकिन इसमें पारित नहीं किया जा सका था। भाजपा ने जब इसका विरोध किया था तो कांग्रेस ने उसे साम्‍प्रदायिक करार दिया था। इस विधेयक में देश के नागरिकों को अल्पसंख्‍यक, बहुसंख्‍यक, दलित-पिछड़े, जातियों के मध्य विभाजित किया गया है। संविधान विशेषज्ञ भी यह मानते हैं कि धारा 15 में यह साफ-साफ कहा गया है कि जाति या धर्म के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। यह संविधान की मूल भावना है तथा सामान्य संशोधन से भी इसे अपवाद के तौर पर भी नहीं छोड़ा जा सकता। यह विधेयक इसी आधार पर भेदभाव मूलक है। वैसे भी संविधान में अल्पसंख्‍यक-बहुसंख्‍यक की कोई व्याख्‍या ही नहीं की गई। देश में कहीं पर कोई भाषा के आधार पर अल्पसंख्‍यक है तो कहीं धर्म के आधार पर बहुसंख्‍यक इसलिए इस विधेयक को कांग्रेस की तुष्टीकरण नीति के रूप में देखा जा रहा है। बाकी चर्चा मैं कल के लेख में करूंगा। (क्रमश:)
Courtsey:अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)
दिनांक- 22-11-2011

Saturday, November 26, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (21)

अश्‍वनी कुमार
प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय
हिन्दुओं की सहिष्णुता की परीक्षा सैकड़ों वर्ष पहले ही शुरू हो गई थी। 1920 में गांधी जी ने कांग्रेस को खिलाफत आंदोलन में झोंक दिया और आजादी की लड़ाई दरकिनार हो गई। कारण था कि खिलाफत आंदोलन में बोलते हुए मौलाना अब्‍दुल बारी ने कहा था कि ''मुसलमानों का सम्‍मान खतरे में पड़ जाएगा, यदि हमने हिन्दुओं का सहयोग नहीं लिया। हमें गौ वध बंद कर देना चाहिए क्‍योंकि हम एक ही भूमि की संतान हैं' किन्तु सम्‍मान का खतरा भारत में नहीं था। यह तुर्की के मुसलमानों की समस्या थी, जिसे भारतीय मुसलमान ओढक़र चल पड़े थे। 1857 के बाद आजादी की लड़ाई में भारतीय मुसलमानों ने कब साथ दिया? वे 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना के बाद से ही अलग से मुस्लिम राष्ट्र की प्राप्ति के लिए आगे बढऩे लगे थे। 1946 का चुनाव इस केन्द्रीय प्रश्र पर ही लड़ा गया था कि भारत अखंड रहे या उसका विभाजन हो और उस चुनाव के परिणामों से स्पष्ट है कि 99 प्रतिशत हिन्दुओं ने कांग्रेस के 'अखंड भारत' के आह्वान के समर्थन में वोट दिए तो 97 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम समाज ने जिन्ना के 'पाकिस्तान' की मांग के समर्थन में वोट डाले और मौलाना आजाद जैसे राष्ट्रवादी नेता की पूर्ण उपेक्षा कर दी।
1947 में मिली विभाजित आजादी से लेकर आज तक हुए छोटे-बड़े एक हजार हिन्दू-मुस्लिम दंगे किसने किए? इसका विश्लेषण होना जरूरी है।
सब जानते हैं कि राष्ट्रीय एकता की स्थापना तब तक नहीं हो सकती जब तक सब के मन में स्वदेशी पूर्वजों के प्रति सम्‍मान, इस देश की पुरातन संस्कृति के प्रति अपनत्व और गौरव और मातृभूमि के प्रति भक्ति का भाव न हो। युगोस्लाविया, चीन, बुल्गारिया आदि ने जो मुस्लिम समस्या को हल करने के लिए लम्‍बे प्रयास किए, वह असफल क्‍यों हो गए? इंग्लैंड जैसे उदारवादी देश में बसे मुसलमानों की यह मांग उठती रही है कि एक धार्मिक सम्‍प्रदाय के नाते उनके लिए अलग संसद बनाई जाए?
क्‍यों मुस्लिम समस्या ही हमारे लम्‍बे स्वातंत्र्य संघर्ष के मार्ग में बाधा बनकर खड़ी रही और क्‍यों देश विभाजन के बाद भी 'स्वतंत्र भारत' की राजनीति भी आज तक इस 'समस्या' के चारों ओर घूम रही है? 'मुस्लिम पहचान की रक्षा' के पुराने प्रश्र, जिसके 'द्विराष्ट्रवाद' के सिद्धांत ने 'पाकिस्तान' के रूप में भारत के सिर पर 'स्थायी शत्रु' बनाकर खड़ा किया, पुन: विकराल रूप लेकर खड़ा हो गया है? कुछ गिने-चुने देशभक्त उदारवादी मुस्लिम नेता अवश्य चिंतित हैं किन्तु उनकी आवाज मुस्लिम समाज में 'नक्कारखाने में तूती' की आवाज जैसी ही है।
समय आ गया है कि यदि इस देश को फिर से एक और विभाजन से बचाना है तो खुले रूप से निर्णय लेना होगा कि इस देश के 'पुरखे श्रीराम और श्रीकृष्ण हैं' और कोई भी ताकत आतताई हमलावर बाबर को उनके समकक्ष खड़ा नहीं कर सकती। सबको यह बात विदित रहनी चाहिए कि 'सैलाब में सब कुछ अपने साथ बहा ले जाने की शक्ति होती है' और पीछे जमीन को फिर से उर्वरा बनाने की भी।
लौकिकता, सर्वधर्म समभाव तथा प्रजातंत्र वास्तव में देश में कभी नहीं चलाए गए। अल्पसंख्‍यकों के वोट बटोरकर अपनी गद्दी सुरक्षित करने के बाद हिन्दू बहुमत को गाली देना, उन्हें आतंकित करना, उन्हें साम्‍प्रदायिक तथा देश विरोधी बताना कांग्रेस नेतृत्व की पुरानी प्रवृत्ति है जबकि वह हिन्दू बहुमत के वोट और नोट से ही शासक बनते हैं। अगर हिन्दू साम्‍प्रदायिक होते तो राज्य हिन्दुत्वनिष्ठ संस्थाओं का होता, इन सेक्‍युलरवादियों का नहीं। देश का बंटवारा करने वाले मुसलमान तो राष्ट्रीय और कांग्रेस को खंडित भारत का शासक बनाने वाले हिन्दू साम्‍प्रदायिक कहे जाते हैं। क्‍या यह विडम्‍बना नहीं है कि मौ. आजाद ने अपने को अखंड भारत का समर्थक बताया और बंटवारे के लिए नेहरू और पटेल को उत्तरदायी बताया। आज राम मंदिर भूमि विवाद से सम्‍बन्धित हलचल और असंतोष के लिए सारे विश्व में हमारी ही सरकार हिन्दुओं को उत्तरदायी ठहराकर बदनाम कर रही है। बाहर बीजेपी या आरएसएस को कौन जानता है। विदेशियों की नजर में हिन्दुओं के अत्याचारों के शिकार मुसलमान हो रहे हैं, ऐसा ही प्रचार और प्रसार हो रहा है। प्रतिक्रिया में मंदिर और गुरुद्वारे 'अपमानित' किए जा रहे हैं और हमारी सरकारें जबानी जमा खर्च के अलावा कुछ नहीं कर रही हैं। वे तो अपनी गद्दी की सुरक्षा के लिए विरोधी राजनीतिक पक्ष को बदनाम करने में जुटी हैं। (क्रमश:)
Courtsey:अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)
दिनांक- 21-11-2011

Friday, November 25, 2011

हिन्‍दू महासभा पीएफआई के कार्यक्रम को किसी भी हालत में नही होने देगी

डॉ0 राकेश रंजन

प्रस्‍तुति- डॉ0 संतोष राय

अखिल भारत हिन्दू महासभा पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का 26, 27 नवंबर, 2011 को रामलीला मैदान में होने वाले कार्यक्रम का तीव्र विरोध करेगी और किसी भी हालत में उसके कार्यक्रम को नही होने देगी।
ज्ञात रहे कि कि यह यह वही संगठन है जिसने गत जुलाई में गिरिजाघर से घर लौटते समय केरल के एक प्रोफेसर का हाथ इसलिये काट डाला था क्योंकि उनक द्वारा तैयार किये गये प्रश्न इन्हें आपत्तिजनक लगे थे।
इस संगठन पर वाराणसी बम धमाकों में भी नाम आया है व इसका संबंध सिमी से जगजाहिर है। अतः संगठन की आतंकी गतिविधियों को देखते हुये अखिल भारत हिन्दू महासभा इस कार्यक्रम का पूर्ण विरोध करेगी।
इसके इस कार्यक्रम से दिल्ली में शांति प्रक्रिया में बाधा भी पड़ सकता है। पुलिस प्रशासन को इसकी अनुमति नही देनी चाहिये थी। अखिल भारत हिन्दू महासभा दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को ईमेल व फैक्स के द्वारा कार्यक्रम को रद्द करने की प्रार्थना की है।किसी भी दशा में हिन्दू महासभा इस कार्यक्रम को नही होने देगी।

बेरोजगारी, भ्रष्टाचार एवं मंहगाई पर नियंत्रण करना होगा


अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ नेता पंडित बाबा नंद किशोर मिश्रा ने आज अपने लिखित प्रेस वक्तव्य में कहा कि बढ़ती मंहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार पर समन्वित नीति का निर्धारण नही होता है तो राष्ट्र में हिंसा बढ़ेगा। अतः इस समस्या के समाधान के लिये व्यापार जगत एवं सरकार को मिलकर एक समन्वित नीति बनाकर बेरोजगारी, भ्रष्टाचार एवं मंहगाई पर नियंत्रण करना होगा।
मंहगाई के  लिये  दाम बांधो यानी मूल्य नियंत्रण के लिये एक समन्वित नीति बनाना पड़ेगा। आज के तथाकथित समाजवादी डॉ0 राम मनोहर लोहिया, समाजवादी चिंतक, नेता के दाम बांधो नीति को भूल चुके हैं जिसके कारण सरकार एवं व्यापार जगत आम आदमियों को लूट रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव  बुतरस घाली ने कहा था कि विभिन्न देशों की सरकारों व व्यापार जगत के लोगों को बेरोजगारी पर मिलकर नियंत्रण करना चाहिये अन्यथा संपूर्ण विश्व हिंसा के चपेट में आ जायेगा। आज उनका कथन पूर्णतः सत्य हो रहा है।
नेता एवं कॉरपोरेट जगत के लोग दिनों-दिन अमीरी के रेखा को पार कर रहे हैं एवं आम जनता गरीबी रेखा के नीचे जीने के लिये मजबूर हो गयी है, जिसके कारण किसानों, मजदूरों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। यह  राष्ट्र के लिये अत्यंत चिंतनीय विषय है। इस पर किसी पार्टी को राजनीति नही करनी चाहिये बल्कि समस्या का समाधान के लिये तुरंत आगे आना  चाहिये।


क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (20)

अश्‍वनी कुमार
प्रस्‍तुति- डॉ0 संतोष राय

भारत पूरी दुनिया में श्रीराम और श्रीकृष्ण की भूमि के रूप में जाना जाता है, लेकिन अफसोस अयोध्या में आज तक भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण नहीं हो सका। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद मामला सर्वोच्च न्यायालय में है। श्रीराम मंदिर निर्माण को लेकर जितनी राजनीति इस देश में की गई, उतनी तो मस्जिदों के स्थानांतरण को लेकर मुस्लिम राष्ट्रों में भी नहीं हुई। अफसोस श्रीकृष्ण जन्मभूमि और हिन्दुओं के अन्य आस्था स्थल भी मुक्त नहीं हैं।
राष्ट्रीय अस्मिता और धर्मनिरपेक्षता के बारे में विभिन्न बुद्धिजीवी अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं। मुझे अध्ययन के समय पत्तों की तरह जर्द पड़ चुके कागज के कुछ पन्ने मिले, जो सूबेदार मेजर योगेन्द्र कृष्ण ने कभी मुझे भेजे थे। मैं पाठकों के समक्ष उनके विचार प्रस्तुत करना चाहूंगा-
'यह बात निर्विवाद रूप से सोलह आने सत्य है कि भारत वर्ष विश्व में राम और कृष्ण की भूमि के नाम से जाना जाता है और तमाम तथाकथित बुद्धिजीवियों, लेखकों द्वारा भ्रम निर्माण करते रहने के प्रयत्नों के बावजूद बाबर एक हमलावर के रूप में ही इतिहास में दर्ज है और रहेगा। इन लोगों को श्रीराम और बाबर में हिन्दू-मुसलमान का ही अन्तर दिखाई देता है। भारत व संसार भर के करोड़ों लोग प्रतिवर्ष श्रीराम जन्मभूमि और श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर विग्रह के दर्शन, पूजन हेतु हजारों वर्षों से आते रहे हैं। तो क्‍या वे एक कल्पना पर ही इतनी श्रद्धा और विश्वास लेकर आते हैं? इसे गम्‍भीरता और बुद्धिमतापूर्वक समझने से सब भ्रांतियां तिरोहित हो जाएंगी। हमारे नेता राष्ट्रीय एकता, धर्मनिरपेक्षता, साम्‍प्रदायिक सद्भाव, जाति विहीन समाज, सामाजिक न्याय आदि की लम्‍बी-चौड़ी बातें करते आ रहे हैं तो फिर हम उससे एकदम उल्टी दिशा में बढ़ते हुए क्‍यों दीख रहे हैं जो देश को पुन: विभाजन के निकट ला रही है? हम लम्‍बे समय से इस विनाशकारी राजनीतिक प्रणाली का सक्रिय अंग हो चुके हैं और इससे यह विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि हमारा राजनीतिक नेतृत्व अपनी चुनाव रणनीति और वादे गणित का पूरा गुलाम बन चुका है। उनकी धारणा पक्की बन चुकी है कि मुस्लिम समुदाय ही सबसे पक्का और सबसे बड़ा आधार है क्‍योंकि मुस्लिम मतदाता अपने वोट मजहबी आधार पर ही प्रयोग करते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि उनका धर्मनिरपेक्षता का अर्थ 'हिन्दू आक्रामकता' कहां है? इसी हिन्दू समाज ने 'अपने ही' भ्रांत नेताओं द्वारा 'छाती पर लगे विभाजन के ताजे घाव' को झेलकर भी मुसलमानों को स्वाधीन भारत के 'संविधान' में अपने से भी अधिक अधिकार प्रदान करने दिए। हमारे ऋषियों की देन 'एकं सद्विप्रा: बहुध वर्दांत' के घोष वाक्‍य की देन के कारण ही हिन्दू समाज ने बहुसंख्‍यक होते हुए भी यह असामान्य निर्णय लिया। इसमें किसी प्रकार की मजबूरी नहीं थी। इसी के साथ पाकिस्तान ने आजादी के बाद ही 'मुस्लिम राष्ट्र' की घोषणा कर दी जिसका परिणाम स्पष्ट दिख रहा है कि विभाजन के बाद हिन्दुओं की संख्‍या वहां करोड़ से घटकर लाख रह गई। बंगलादेश में भी हिन्दुओं की 'दुर्गति' ठीक वैसी ही हो रही है।
एक ही ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाले इस भूखंड के इन तीनों भागों के आचरण के इस भारी अंतर पर ध्यान दें तो अंतर साफ दिखाई देता है। उन लोगों ने इस्लामी प्रभुसत्ता स्वीकार की और अल्पसंख्‍यक लोगों को जीवित लाशें बना दिया और यहां आज भी 'धर्मनिरपेक्षता' जैसे शासन प्रबंध को स्वीकार ही नहीं किया, इसकी आवाज अधिकांश हिन्दू ही उठा रहे हैं। इसे हमारी कायरता समझा जा रहा है। देश के भीतर और बाहर सब तरह की उत्तेजनाओं के बावजूद भी भारत यदि अब तक धर्मनिरपेक्षवाद पर डटा है, तो उसका एकमात्र कारण हिन्दू परम्‍परा और हिन्दू मानस ही है, जिसे वे दिन-रात कोसते रहते हैं। (क्रमश:)
साभार: अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)
दिनांक- 20-11-2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (19)

अश्‍वनी कुमार
प्रस्‍तुति- डॉ0 संतोष राय

देश के विरुद्ध जंग छेडऩे सहित कई संगीन अपराधों में दोषी करार दिए गए पाक आतंकवादी अजमल कसाब को जस्टिस ताहिलियानी ने सजा-ए-मौत सुनाई थी। निश्चय ही अदालत के फैसले से मुम्‍बई के आतंकी हमलों में मारे गए निर्दोष लोगों के परिवारों को एक सुकून मिला होगा जिनके परिवार के सदस्य बिना किसी अपराध के ही काल कवलित हो गए थे। शुक्र है कि कसाब जिन्दा पकड़ा गया वरना ये तो पूरी तैयारी के साथ तिलक लगाकर आए थे। सारे के सारे मारे जाते तो तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोग इन्हें हिन्दू करार देते और भारत कभी भी इनका संबंध पाकिस्तान से साबित नहीं कर पाता। ये हिन्दू आतंकवादी नहीं, यह साबित करना भी हिन्दुओं के लिए मुश्किल हो जाता। यह कैसा देश है जहां हत्यारों के बचाव के लिए विधानसभाओं में प्रस्ताव पारित किए जाते हैं। देश में एक नई विचारधारा सृजित करने का प्रयास किया जा रहा है। कभी यहां राजीव गांधी के हत्यारों को आम माफी देने की बात की जाती है तो कभी कसाब की फांसी की सजा माफ करने की मांग की जाती है।
कसाब को सजा सुनाए जाते समय सत्र न्यायालय ने जो टिप्पणियां की थीं, वे काफी आंखें खोलने वाली थीं। न्यायालय ने कहा था कि ''कसाब जैसे आतंकवादी सुधर नहीं सकते। जेहाद के नाम पर धर्मांध लोग कुछ भी कर सकते हैं या इनसे कुछ भी कराया जा सकता है। बेशक ये देश और समाज के साथ मानवता के भी दुश्मन हैं और इन्हें छोड़ देना उपरोक्त तीनों को खतरे में डालना है।''
यह कितना दु:खद है कि इस देश में आतंकवादी को सजा दिए जाने का मामला अब राजनीति का विषय बन चुका है। सभ्‍य समाज में सजा के दो उद्देश्य होते हैं- व्यक्ति के भीतर पश्चाताप का बोध कराना और दूसरों में भय पैदा करना कि यदि उसने भी अपराध किया तो उन्हें भी ऐसी ही सजा मिलेगी।
मौत से हर व्यक्ति डरता है, इसलिए फांसी से अधिक भय पैदा करने वाली सजा कोई दूसरी नहीं हो सकती। अब मानवाधिकार के कुछ समर्थक पहले की ही तरह यह दलीलें दे रहे हैं कि मृत्युदंड की सजा प्रकृति के नियम के खिलाफ है और किसी को भी किसी का जीवन छीनने का अधिकार नहीं। बेशक वे यह बात कहते हुए बेशर्मी से इस बात को भूल जाएंगे कि जिन मासूम निर्दोषों को इन हैवान बन चुके इंसानों ने बेवजह गोलियों से भून डाला, जीने का अधिकार तो उनको भी था। कसाब के मुकद्दमे और उसकी कड़ी सुरक्षा पर सरकार ने केवल इसलिए करोड़ों रुपए खर्च कर दिए कि कोई यह न कहे कि भारत में आतंकवादी कसाब के साथ कोई नाइंसाफी हुई है।
अफजल के बाद कसाब की सजा पर अमल को लेकर जमकर राजनीति हो रही है। सवाल यह है कि अगर फांसी की सजा पर राजनीति की जा रही है तो देश पर आक्रमण करने वालों, सैकड़ों मासूमों का कत्ल कर देने वाले हैवानों को कौन सी सजा दी जाए? जब मौत की सजा का प्रावधान होते हुए भी इन आतंकवादियों को कानून का लेशमात्र भी डर नहीं रहा तो फिर हालात कैसे होंगे। कसाब की सजा को लटका कर वोटों की राजनीति का गणित बैठाया जा रहा है। बहुत से सवाल हैं जिनका उत्तर सरकार, प्रशासन, न्याय व्यवस्था और खुद समाज को ढूंढने होंगे। अगर सरकार कसाब को सजा नहीं देती और उसे जेल में बिरयानी ही खिलाती है तो इतनी महंगी न्यायिक प्रक्रिया चलाने की जरूरत ही क्‍या थी। इंदिरा गांधी ने राजनयिक रविन्द्र हरेश्वर म्‍हात्रे की हत्या होने दी लेकिन मकबूल बट्ट को रिहा नहीं किया था। मकबूल बट्ट को फांसी की सजा दी गई थी। केन्द्र सरकार को याद रखना चाहिए कि पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल अरुण कुमार वैद्य के हत्यारे को क्षमादान देने की याचिका पर तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण ने महज 13 घंटे के भीतर फैसला किया था। एक नहीं कई उदाहरण कांग्रेस के सामने मौजूद हैं। यह देश कैसे उदाहरण स्थापित करना चाहता है, इसके बारे में कांग्रेस को सोचना होगा। यदि भारत को बचाना है तो आतंकवाद और न्यायिक फैसले को राजनीति में घसीटा नहीं जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद किसी को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। कांग्रेस को देश के सम्‍मान की नहीं अपना सम्‍मान बचाने की चिंता है, इसलिए वह केवल वोटों को निहारती है।(क्रमश:)
sabhar:अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)
दिनांक- 19-11-2011

Thursday, November 24, 2011

वीरता की प्रतिमूर्ति थी झांसी की रानी



डॉ0 संतोष राय 

झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर, 1828 को काशी के पवित्र भूमि असीघाट, वाराणसी में हुआ था। इनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे और माता का नाम भागीरथी बाई था। इनका बचपन का नाम मणिकर्णिका' रखा गया परन्तु प्यार से मणिकर्णिका को 'मनु' कहकर बुलाया जाता था।  मनु की बाल्‍यावस्‍था में ही उसकी माँ का देहान्त हो गया। पिता मोरोपंत तांबे एक साधारण ब्राह्मण और अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के यहां काम करते  थे। माता भागीरथी बाई सुशील, चतुर और रूपवती गृहकार्य में दक्ष महिला थीं। अपनी माँ की मृत्यु हो जाने पर वह पिता के साथ बिठूर  आकर  उन्होंने मल्लविद्या, घुड़सवारी और शस्त्रविद्याएँ आदि सीखीं।
चूँकि घर में मनु की देखभाल के लिए कोई नहीं था इसलिए उनके पिता मोरोपंत मनु को अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले जाते थे जहाँ चंचल एवं सुन्दर मनु ने सबका मन मोह लिया था। बाजीराव मनु को प्यार से 'छबीली'  कहकर बुलाने थे।
समय गुजरता गया और मनु विवाह योग्य हो गयी। इनका विवाह सन 1842 में झाँसी के राजा गंगाधर राव निवालकर के साथ बड़े ही धूम-धाम से सम्पन्न हुआ। विवाह के बाद इनका नाम बदलकर लक्ष्मीबाई रखा गया। इस प्रकार काशी की कन्या मनु झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई बन गई। 1851 में उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। दुर्भाग्‍यवश 1853 तक उनके पुत्र एवं पति दोनों का देहावसान हो गया। रानी ने अब एक दत्तक पुत्र लेकर राजकाज देखने लगी, किन्तु कम्पनी शासन उनका राज्य छीन हडपना चाहती थी। रानी ने जितने दिन भी शासन किया वे ज्‍यादा से रानी बनकर लक्ष्मीबाई को पर्दे में रहना पड़ता था। स्वच्छन्द विचारों वाली रानी को यह रास नहीं आया। उन्होंने क़िले के अन्दर ही एक व्यायामशाला बनवाई और शस्रादि चलाने तथा घुड़सवारी हेतु आवश्यक प्रबन्ध किए। उन्होंने स्रियों की एक सेना भी तैयार की। राजा गंगाधर राव अपनी पत्नी की योग्यता से बहुत प्रसन्न थे।
महारानी अत्यन्त दयालु भी थीं  एक दिन जब कुलदेवी महालक्ष्मी की पूजा करके वापस आ रही थीं, कुछ निर्धन लोगों ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया। उन्हें देखकर महारानी का हृदय पसीज गया। उन्होंने नगर में घोषणा करवा दी कि एक निश्चित दिन ग़रीबों में वस्रादि का वितरण किया जायेगा।
उस समय भारत के बड़े भू-भाग पर अंग्रेज़ों का शासन था। वे झाँसी को अन्‍य राज्‍यों की तरह गुलाम बनाना चाहते थे।उन्हें यह एक अच्‍छा अवसर हाथ लगा।  उन्होंने रानी के दत्तक-पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी मानने से पूरी तरह इंकार कर दिया और रानी के पत्र लिख भेजा कि चूँकि राजा का कोई पुत्र नहीं है, इसीलिए झाँसी पर अब अंग्रेज़ों के कब्‍जे में होगा। रानी यह सुनकर क्रोध से भर उठीं एवं सिंहनाद की कि मैं अपनी झाँसी को अंग्रेजों को नहीं दूँगी अंग्रेज़ यह सुन पूरी तरह बौखा उठे। परिणाम स्वरूप अंग्रेज़ों ने झाँसी पर चौतरफा  आक्रमण कर दिया। रानी ने भी युद्ध की पूरी तैयारी कर रखी थी। क़िले की प्राचीर पर मजबूत तोपें रखवायीं। रानी ने अपने महल के सोने एवं  चाँदी के सामान तोप के गोले बनाने के लिए भेज दिया। रानी के कुशल एवं विश्वसनीय तोपची थे गौस खाँ तथा ख़ुदा बक्श जी। रानी ने पूरे क़िले की मज़बूत क़िलाबन्दी की जिससे परिंदा भी पर न मार सके। रानी के इस कौशल को देखकर अंग्रेज़ सेनापित सर ह्यूरोज भी भौचक्‍का हो  गया। अंग्रेज़ों ने क़िले को घेर कर चारों ओर से बुरी तरह आक्रमण किया।
अंग्रेज़ आठ दिनों तक क़िले पर गोले पर गोले बरसाते रहे परन्तु क़िला वे फतह न कर सके। रानी  ने यह कसम खाई कि  अन्तिम श्वाँस तक क़िले की हर तरह से रक्षा करेंगे। अंग्रेज़ सेनापति ह्यूराज ने यह महसूस  किया कि सैन्य-बल से क़िला जीतना मुमकिन नहीं है। अत: उसने कूटनीति व छल का सहारा लिया और झाँसी के ही एक विश्वासघाती सरदार दूल्हा सिंह को खरीद लिया लिया जिसने क़िले का दक्षिणी द्वार खोल दिया। फिरंगी सेना क़िले में प्रवेश कर  गई और लूटपाट तथा हिंसा का तांडव कर दिया।
घोड़े पर सवार, दाहिने हाथ में नंगी तलवार लिए, पीठ पर पुत्र को बाँधे हुए रानी ने रणचण्डी की तरह शत्रु दल का  संहार करने लगीं। झाँसी के वीर सैनिक भी शत्रुओं पर टूट पड़े। जय भवानी और हर-हर महादेव के उद्घोष से रणभूमि गुंजायमान हो उठा। किन्तु झाँसी की सेना अंग्रेज़ों की तुलना में बहुत छोटी थी। रानी अंग्रेजों से तो लड सकती थी मगर अपने देश के गद्दारों से कैसे लड़ती, रानी अंग्रेज़ों से घिर गयीं। कुछ विश्वासपात्रों की मदद और सलाह पर रानी कालपी की ओर कूच कर गयी। दुर्भाग्य से एक गोली रानी के पैर को छेद दिया और उनकी गति कुछ धीमी हो जाने के कारण,  अंग्रेज़ सैनिक उनके नजदीक आ गए।
जब कालपी छिन गई तो रानी लक्ष्मीबाई ने तात्या टोपे के मदद से शिन्दे की राजधानी ग्वालियर पर हमला बोला, जो अपनी फ़ौज के साथ कम्पनी के साथ वफ़ादारी निभा रहा था। लक्ष्मीबाई के हमला करने पर वह अपने जान की हिफाजत के लिये  आगरा भागा और वहाँ अंग्रेज़ों की मदद मांगी। लक्ष्मीबाई की वीरता देखकर शिन्दे की फ़ौज विद्रोहियों को अपनी ओर मिला लिया। रानी लक्ष्मीबाई तथा उसके सहयोगियों ने नाना साहब को पेशवा घोषित कर दिया और महाराष्ट्र की ओर धावा मारने का मन बनाया इससे मराठों में भी विद्रोहाग्नि की ज्‍वाल धधक जाए। इस संकटपूर्ण समय पर ह्यूरोज तथा उसकी सेना ने रानी लक्ष्मीबाई को और अधिक सफलताएँ प्राप्त करने से रोकने के लिए जी-जान लगा दिया। उसने ग्वालियर फिर से लिया और मुरार तथा कोटा की दो लड़ाइयों में रानी की सेना को हरा दिया।


रानी ने अपना घोड़ा बहुत तेजी से दौड़ाया मगर भाग्‍य ने धोखा दे दिया रास्‍ते  में एक नाला आ गया। घोड़ा नाला पर तेजी से छलांग न लगा पाया।  तभी अंग्रेज़ घुड़सवार वहाँ पहुंच गया । एक ने पीछे से रानी के सिर पर हमला बोल  दिया, जिससे उनके सिर का दाहिना भाग कट गया और उनकी एक आँख भी बाहर चली आयी। उसी समय दूसरे गोरे सैनिक ने संगीन से उनके छाती पर वार पर वार किया। लेकिन अत्‍यंत घायल होने पर भी रानी अपनी तलवार चलाती रहीं और उन्होंने दोनों आक्रमणकारियों का वध कर डाला। फिर वे स्वयं भूमि पर गिर पड़ी। चारों तरफ लहू से धरती लाल हो गयी।
वफादार  पठान सरदार गौस ख़ाँ अब भी रानी के साथ था।  उसका दावानल रौद्र रूप देख कर गोरे भाग खड़े हुए। स्वामिभक्त रामराव देशमुख अन्त तक रानी के साथ ही था, अंत तक रानी के सेवा में कोई कमी नही रखा। उन्होंने रानी के रक्त रंजित शरीर को समीप ही बाबा गंगादास की कुटिया में पहुँचाया। रानी ने अत्‍यंत प्‍यास से  व्याकुल हो जल माँगा और बाबा गंगादास ने उन्हें अपने पवित्र हांथों से जल पिलाया।
झाँसी की रानी को मरवाने में किसने प्रमु‍ख भूमिका निभाया? (2)

बहुत कम लोगों को यह ज्ञात होगा कि  आज से डेढ़ सौ वर्ष पूर्व पहले उस वीरांगना झाँसी की रानी को मरवाने में ग्वालियर के उस सिंधिया परिवार ने प्रमुख भूमिका अदा की थी। मगर अफसोस कि  वही सिंधिया परिवार के  लोग विभिन्‍न पार्टियों में रहकर आज भी देश की सत्ता पर आए दिन आरूढ हो जाते हैं।
जब रानी लक्ष्मी बाई, नाना साहेब, तांत्‍या टोपे जैसे बहादुर युद्ध भूमि में अंग्रेजों से लड रहे थे तब तांत्‍या  टोपे ने इस बात को समझा कि युद्ध में सफल होने के लिए उन्हें ग्वालियर जैसे सुरक्षित किले में शरण लेने की आवश्‍यकता है। अंग्रेजों के गुलाम सिंधिया ने अपनी तोपों का मुँह रानी की सेना की ओर कर दिया, मगर फिर भी रानी झाँसी और उनकी  सेना ने किले पर बल पूर्वक अधिकार  कर लिया। सिंधिया गीदडों की तरह भागकर आगरा में अंग्रेजों की छावनी में शरण ली। युद्ध खिंचता चला गया।  अंत में १७ जून १८५८ को लक्ष्मीबाई को सिंधिया की सहायता से धोखे से मार दिया गया। रानी के बलिदान होने के बाद अंग्रेजों ने तात्या टोपे को हिरासत में ले  लिया और 1857 के आज़ादी के संघर्ष को पूरी तरह से कुचल दिया गया। और तात्या  को दो बार सूली पर चढाया गया। इसके बाद 1857 के कई स्वतन्त्रता सेनानी और उनके परिवार के लोग  बरसों तक अँगरेज़ों और सिंधिया के सिपाहियों से छिपकर अन्‍यत्र इधर-उधर  भागते फिर  रहे थे। 
झांसी की रानी को किसी ने सम्‍मान दिया हो या न दिया हो मगर हमारे वीर नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जब आजाद हिंद फौज में पहली महिला रेजिमेंट  बनाया  तो उसका नामकरण रानी लक्ष्मीबाई के सम्मान में रानी झाँसी रेजीमेंट रखा था।
कवयित्री सुभुद्रा  कुमारी चौहान ने अपनी कविता खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी ...से झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को हमेशा-हमेश के लिये अमर कर दिया बल्कि इस देश के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक और सुनहरा पन्‍ना जोड़ दिया है,  महान कवियित्री ने अपनी इस कालजयी कविता में रानी लक्ष्मीबाई के वीरता, अदम्‍य  साहस और बलिदान को जिस सुन्‍दरता से अभिव्यक्ति दी है, उसके मुकाबले में आज तक न तो झाँसी की रानी की वीरता के गौरव-गाथा लिखने वाला कोई कवि, लेखक नही हुआ।
प्रस्तुत है उनकी यह अमर कविता।
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कानपुर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी, वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़
महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में,
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक की कौन बिसात?
जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाल, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी रोयीं रनिवासों में, ‘बेगम’ ‘ग़मसे थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'
नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'
योंपरदेकी इज़्ज़त परदेशीके हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।