प्रस्तुति: डॉ0 संतोष राय
सारे मुसलमान हिन्दुओं की औलाद हैं ,
अल्लाह नाम की चीज कोई नहीं है .सब गढ़ा हुआ है, इसे पढ़े -----
स्व0 मौलाना मुफ्ती अब्दुल कयूम जालंधरी संस्कृत ,हिंदी,उर्दू ,...
फारसी व अंग्रेजी के जाने-माने विद्वान् थे। अपनी पुस्तक
"गीता और कुरआन "में उन्होंने निशंकोच स्वीकार किया है कि,
"कुरआन" की सैकड़ों आयतें गीता व उपनिषदों पर आधारित हैं।
मोलाना ने मुसलमानों के पूर्वजों पर भी काफी कुछ लिखा है ।
उनका कहना है कि इरानी "कुरुष " ,"कौरुष "व
अरबी कुरैश मूलत : महाभारत के युद्ध के बाद भारत से लापता उन
२४१६५ कौरव सैनिकों के वंसज हैं, जो मरने से बच गए थे।
अरब में कुरैशों के अतिरिक्त "केदार" व "कुरुछेत्र" कबीलों का इतिहास
भी इसी तथ्य को प्रमाणित करता है। कुरैश वंशीय खलीफा मामुनुर्र्शीद (८१३-८३५)
के शाशनकाल में निर्मित खलीफा का हरे रंग का चंद्रांकित झंडा भी इसी बात को सिद्ध करता है।
कौरव चंद्रवंशी थे और कौरव अपने आदि पुरुष के रूप में चंद्रमा को मानते थे।
यहाँ यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि इस्लामी झंडे में चंद्रमां के ऊपर "अल्लुज़ा" अर्ताथ शुक्र तारे
का चिन्ह,अरबों के कुलगुरू "शुक्राचार्य "का प्रतीक ही है।
भारत के कौरवों का सम्बन्ध शुक्राचार्य से छुपा नहीं है।
इसी प्रकार कुरआन में "आद "जाती का वर्णन है,
वास्तव में द्वारिका के जलमग्न होने पर जो यादव वंशी अरब में बस गए थे,
वे ही कालान्तर में "आद" कोम हुई।
अरब इतिहास के विश्वविख्यात विद्वान् प्रो० फिलिप के अनुसार २४वी सदी ईसा पूर्व में
"हिजाज़" (मक्का-मदीना) पर जग्गिसा (जगदीश) का शासन था।
२३५० ईसा पूर्व में शर्स्किन ने जग्गीसा को हराकर अंगेद नाम से
राजधानी बनाई। शर्स्किन वास्तव में नारामसिन अर्थार्त नरसिंह का ही बिगड़ा रूप है।
१००० ईसा पूर्व अन्गेद पर गणेश नामक राजा का राज्य था।
६ वी शताब्दी ईसा पूर्व हिजाज पर हारिस अथवा हरीस का शासन था।
१४वी सदी के विख्यात अरब इतिहासकार "अब्दुर्रहमान इब्ने खलदून "
की ४० से अधिक भाषा में अनुवादित पुस्तक "खलदून का मुकदमा" में लिखा है
कि ६६० इ० से १२५८ इ० तक "दमिश्क" व "बग़दाद" की हजारों मस्जिदों के निर्माण
में मिश्री,यूनानी व भारतीय वातुविदों ने सहयोग किया था। परम्परागत सपाट छत
वाली मस्जिदों के स्थान पर शिव पिंडी कि आकृति के गुम्बदों व उस
पर अष्ट दल कमल कि उलट उत्कीर्ण शैली इस्लाम को भारतीय वास्तुविदों की देन है।
इन्ही भारतीय वास्तुविदों ने "बैतूल हिक्मा" जैसे ग्रन्थाकार का निर्माण भी किया था।
अत: यदि इस्लाम वास्तव में यदि अपनी पहचान कि खोंज करना चाहता है तो उसे
इसी धरा ,संस्कृति व प्रागैतिहासिक ग्रंथों में स्वं को खोजना पड़ेगा.
आर्यावर्त वीर
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