अश्वनी कुमार
प्रस्तुति: डॉ0 संतोष राय
अब साम्प्रदायिक और लक्षित हिंसा विधेयक लाकर यूपीए सरकार साम्प्रदायिक हिंसा को रोकना चाहती है। इस विधेयक के प्रस्तावित प्रारूप पर मेरी विभिन्न लोगों से चर्चा हुई। राज्यसभा में विपक्ष के नेता और मेरे मित्र अरुण जेतली से भी इस विधेयक पर गहन चर्चा हुई, जिसे मैं पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं।
जेतली जी का मानना है कि प्रकट रूप से विधेयक का प्रारूप देश में साम्प्रदायिक हिंसा को रोकने और इस संबंध में दंड दिये जाने के प्रयास के तौर पर नजर आता है। यद्यपि स्पष्ट रूप से प्रस्तावित कानून का यह मंतव्य है, तथापि इसका असल मंतव्य इसके विपरीत है। यह एक ऐसा विधेयक है कि यदि यह कभी पारित हो जाता है तो यह भारत के संघीय ढांचे को नष्ट कर देगा और भारत में अंतर-सामुदायिक संबंधों में असंतुलन पैदा कर देगा।
विधेयक का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है 'समूह की परिभाषा'। समूह से तात्पर्य पंथक या भाषायी अल्पसंख्यकों से है, जिसमें आज की स्थितियों के अनुरूप अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को भी शामिल किया जा सकता है। विधेयक के दूसरे चैप्टर में नये अपराधों का एक पूरा सैट दिया गया है। खंड 6 में यह स्पष्ट किया गया है कि इस विधेयक के अन्तर्गत अपराध उन अपराधों के अलावा है जो अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के अधीन आते हैं। क्या किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार दंडित किया जा सकता है? खंड 7 में निर्धारित किया गया है कि किसी व्यक्ति को उन हालात में यौन संबंधी अपराध के लिए दोषी माना जायेगा यदि वह किसी 'समूह' से संबंध रखने वाले व्यक्ति के, जो उस समूह का सदस्य है, विरुद्ध कोई यौन अपराध करता है। खंड 8 में यह निर्धारित किया गया है कि 'घृणा संबंधी प्रचार' उन हालात में अपराध माना जायेगा जब कोई व्यक्ति मौखिक तौर पर या लिखित तौर पर या स्पष्टतया अभ्यावेदन करके किसी 'समूह' अथवा किसी 'समूह' से संबंध रखने वाले व्यक्ति के विरुद्ध घृणा फैलाता है। खंड 9 में साम्प्रदायिक तथा लक्षित हिंसा संबंधी अपराधों का वर्णन है। कोई भी व्यक्ति अकेले या मिलकर या किसी संगठन के कहने पर किसी 'समूह' के विरुद्ध कोई गैर-कानूनी कार्य करता है तो वह उसे संगठित साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा के लिए दोषी माना जाएगा। खंड 10 में उस व्यक्ति को दंड दिए जाने का प्रावधान है, जो किसी 'समूह' के खिलाफ किसी अपराध को करने अथवा उसका समर्थन करने हेतु पैसा खर्च करता है या पैसा उपलब्ध कराता है। यातना दिये जाने संबंधी अपराध का वर्णन खंड 12 में किया गया है, जिसमें कोई सरकारी कर्मचारी किसी 'समूह' से संबंध रखने वाले व्यक्ति को पीड़ा पहुंचाता है या मानसिक अथवा शारीरिक चोट पहुंचाता है। खंड 13 में किसी सरकारी व्यक्ति को इस विधेयक में उल्लिखित अपराधों के संबंध में अपनी ड्यूटी निभाने में ढिलाई बरतने के लिये दंडित किये जाने का प्रावधान है। खंड 14 में उन सरकारी व्यक्तियों को दंड देने का प्रावधान है जो सशस्त्र सेनाओं अथवा सुरक्षा बलों पर नियंत्रण रखते हैं और अपनी कमान के लोगों पर कारगर ढंग से अपनी ड्यूटी निभाने हेतु नियंत्रण रखने में असफल रहते हैं। खंड 15 में प्रत्यायोजित दायित्व का सिद्धांत दिया गया है। किसी संगठन का कोई वरिष्ठ व्यक्ति अथवा पदाधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर नियंत्रण रखने में नाकामयाब रहता है, तो यह उस द्वारा किया गया एक अपराध माना जाएगा। वह उस अपराध के लिए प्रत्यायोजित रूप से उत्तरदायी होगा जो कुछ अन्य लोगों द्वारा किया गया है। खंड 16 के मुताबिक वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों को इस धारा के अंतर्गत किये गए किसी अपराध के बचाव के रूप में नहीं माना जाएगा।(क्रमश:)
अब साम्प्रदायिक और लक्षित हिंसा विधेयक लाकर यूपीए सरकार साम्प्रदायिक हिंसा को रोकना चाहती है। इस विधेयक के प्रस्तावित प्रारूप पर मेरी विभिन्न लोगों से चर्चा हुई। राज्यसभा में विपक्ष के नेता और मेरे मित्र अरुण जेतली से भी इस विधेयक पर गहन चर्चा हुई, जिसे मैं पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं।
जेतली जी का मानना है कि प्रकट रूप से विधेयक का प्रारूप देश में साम्प्रदायिक हिंसा को रोकने और इस संबंध में दंड दिये जाने के प्रयास के तौर पर नजर आता है। यद्यपि स्पष्ट रूप से प्रस्तावित कानून का यह मंतव्य है, तथापि इसका असल मंतव्य इसके विपरीत है। यह एक ऐसा विधेयक है कि यदि यह कभी पारित हो जाता है तो यह भारत के संघीय ढांचे को नष्ट कर देगा और भारत में अंतर-सामुदायिक संबंधों में असंतुलन पैदा कर देगा।
विधेयक का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है 'समूह की परिभाषा'। समूह से तात्पर्य पंथक या भाषायी अल्पसंख्यकों से है, जिसमें आज की स्थितियों के अनुरूप अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को भी शामिल किया जा सकता है। विधेयक के दूसरे चैप्टर में नये अपराधों का एक पूरा सैट दिया गया है। खंड 6 में यह स्पष्ट किया गया है कि इस विधेयक के अन्तर्गत अपराध उन अपराधों के अलावा है जो अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के अधीन आते हैं। क्या किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार दंडित किया जा सकता है? खंड 7 में निर्धारित किया गया है कि किसी व्यक्ति को उन हालात में यौन संबंधी अपराध के लिए दोषी माना जायेगा यदि वह किसी 'समूह' से संबंध रखने वाले व्यक्ति के, जो उस समूह का सदस्य है, विरुद्ध कोई यौन अपराध करता है। खंड 8 में यह निर्धारित किया गया है कि 'घृणा संबंधी प्रचार' उन हालात में अपराध माना जायेगा जब कोई व्यक्ति मौखिक तौर पर या लिखित तौर पर या स्पष्टतया अभ्यावेदन करके किसी 'समूह' अथवा किसी 'समूह' से संबंध रखने वाले व्यक्ति के विरुद्ध घृणा फैलाता है। खंड 9 में साम्प्रदायिक तथा लक्षित हिंसा संबंधी अपराधों का वर्णन है। कोई भी व्यक्ति अकेले या मिलकर या किसी संगठन के कहने पर किसी 'समूह' के विरुद्ध कोई गैर-कानूनी कार्य करता है तो वह उसे संगठित साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा के लिए दोषी माना जाएगा। खंड 10 में उस व्यक्ति को दंड दिए जाने का प्रावधान है, जो किसी 'समूह' के खिलाफ किसी अपराध को करने अथवा उसका समर्थन करने हेतु पैसा खर्च करता है या पैसा उपलब्ध कराता है। यातना दिये जाने संबंधी अपराध का वर्णन खंड 12 में किया गया है, जिसमें कोई सरकारी कर्मचारी किसी 'समूह' से संबंध रखने वाले व्यक्ति को पीड़ा पहुंचाता है या मानसिक अथवा शारीरिक चोट पहुंचाता है। खंड 13 में किसी सरकारी व्यक्ति को इस विधेयक में उल्लिखित अपराधों के संबंध में अपनी ड्यूटी निभाने में ढिलाई बरतने के लिये दंडित किये जाने का प्रावधान है। खंड 14 में उन सरकारी व्यक्तियों को दंड देने का प्रावधान है जो सशस्त्र सेनाओं अथवा सुरक्षा बलों पर नियंत्रण रखते हैं और अपनी कमान के लोगों पर कारगर ढंग से अपनी ड्यूटी निभाने हेतु नियंत्रण रखने में असफल रहते हैं। खंड 15 में प्रत्यायोजित दायित्व का सिद्धांत दिया गया है। किसी संगठन का कोई वरिष्ठ व्यक्ति अथवा पदाधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर नियंत्रण रखने में नाकामयाब रहता है, तो यह उस द्वारा किया गया एक अपराध माना जाएगा। वह उस अपराध के लिए प्रत्यायोजित रूप से उत्तरदायी होगा जो कुछ अन्य लोगों द्वारा किया गया है। खंड 16 के मुताबिक वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों को इस धारा के अंतर्गत किये गए किसी अपराध के बचाव के रूप में नहीं माना जाएगा।(क्रमश:)
Courtsey:अश्वनी कुमार, सम्पादक (पंजाब केसरी)
दिनांक- 27-11-2011
दिनांक- 27-11-2011
No comments:
Post a Comment