दीनानाथ मिश्र
प्रस्तुति: डॉ0 संतोष राय
जब जब चुनाव आते हैं कांग्रेस को मुस्लिम वोटों का संकट सताता रहता है। यह तो अभी पांच साल पहले की बात है। जब आंध्र प्रदेश में चुनाव हुए थे, तो कांग्रेस ने पांच प्रतिशत आरक्षण का वायदा किया था। राज्य सरकार सर्वोच्च न्यायालय तक मुकदमा लड़ती रही। अंत में पिछड़े मुसलमानों के नाम पर आरक्षण का मामला निपटा। जो था उससे कम पर। समस्या यह है कि जब से बांग्लादेश बना है मुस्लिम समाज कुपित हो गया। कांग्रेस वोटों में घाटे में पड़ गई। कम से कम पिछले चार-पांच बार मुसलमानों को प्रलुब्ध करने के लिए या मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए मुसलमानों को आरक्षण का लालच दिया गया। आंध्र प्रदेश में यह मामला बाकायदा कानून पास करके किया गया। आंध्र प्रदेश में तो जबदरस्त मुंहकी खानी पड़ी कांग्रेस को। सर्वोच्च न्यायालय ने उसे असंवैधानिक करार दिया। अलबत्ता पिछड़े मुसलमानोे के नाम पर ही आरक्षण हो सका।
अभी इन दिनों पांच राज्यों के चुनावी घोषणा के ठीक दो दिन पहले 27 प्रतिशत ओबीसी कोटे में से साढ़े चार प्रतिशत अल्पसंख्यक आरक्षण, का फैसला केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने लिया था। यह तो सरासर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति है। जिसके कारण अंततः भारत विभाजन हुआ था। करोड़ों लोग शरणार्थी बने हैं। आज भी लाखों परिवारों की आपबीती विदग्ध करने का कारण बनती है। इसलिए उमा भारती ने भारत के दूसरे विभाजन का जो खतरा बताया है, वो सकारण है। बल्कि इसका ठोस कारण है। बांग्लादेश से आसाम, बिहार, और अन्य राज्यों में घुसपैठ का संगठित प्रयास चलता है। असम में तो इस घुसपैठ पर गम्भीर आंदोलन भी होते रहे। इसे सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के खिलाफ जनसांख्यिकी हमला कहा है। इधर आसाम और नेपाल के रास्ते तराई क्षेत्र में घुसपैठ की हद हो गई। यह सब जनसांख्यिकी हमला नहीं तो क्या है? भारत भर में यह हमला फैला है। दिल्ली, मुम्बई, और बैंग्लोर आदि इससे कोई नहीं बचा है।
असल में यह वोटों का संकट है। मुसलमानों के वोट से कांग्रेस लाभांवित होना चाहती है। इसी संदर्भ में समाजवादी पार्टीे दो कदम आगे बढ़-चढ़ कर इसे आठ प्रतिशत करने का वादा कर रही है। इधर कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने इसे और बढ़ा कर बताया है। ताकि मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति में कांग्रेस समाजवादी पार्टी से आगे निकल सके। मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति कांग्रेस की मेहरबानी से कदम-कदम आगे बढ़ रही है। स्वयं प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह ने अपनी मलेशिया यात्रा के दौरान जो कुछ कहा वह हैरतअंगेज है। एक तरह से भारत में इस्लामिक बैंक की नीति को मुस्लिम तुष्टीकरण में शामिल कर लिया गया है। केरल में तो इसके कदम भी उठा लिए गए। लेकिन डॉ. सुब्रामण्यम स्वामी की याचिका पर यह रूक सा गया। लेकिन मुस्लिम तुष्टीकरण और इस्लामीकरण का सिलसिला अभी अंत तक नहीं पहुंचा है। बहरहाल तुष्टीकरण का यह मामला बैंकिंग की मझधार में फंस तो ही गया है कब उभरेगा, कहना कठिन है।
क्या देखते हैं आप उमा भारती के वक्तव्य में? क्या यह कि यह निरा झूठ, मनगढंत या कोई बिलकुल कपोल कल्पित कहानी है। यह ऐतिहासिक सत्य है और आज भी भारत उस हमले का शिकार है। अभी मुम्बई में जो हमले हुए थे उसके पहले रेल गाड़ियों में जो विस्फोट हुए थे, ताजा मिसालें हैं। डायरेक्ट एक्शन के दिन कलकत्ता में जो रक्तपात हुआ, वह भी खून खराबे का इतिहास है। इसके अलावा भारत और पाकिस्तान के बीच जो पांच-छह बार युद्ध की विभीषिका हुई है 1949 में, 1965 में, और हाल फिलहाल के साल में कारगिल में जो युद्ध हुआ, वह भी ताजा खून था। यूं तो भारत पाकिस्तान के बीच जम्मू-कश्मीर के मुकाम पर लगातार हमले होते रहे और खून-खराबा होता रहा है। त्योहारों के दिन रक्तपात का लम्बा इतिहास रहा है। बाजार तो हमेशा निशाना बनते रहे। अब हम भूल जाएं तो बात अलग है वरना भारत विभाजन के बाद भी रक्तपात का भीषण उत्ताप रहा है। भारत विभाजन तो एक ऐतिहसिक घटना है। प्रसिद्ध इतिहसकार विल ड्यूरेंट ने लिखा है कि ‘‘भारत भूमि में जितना रक्तरंजित इतिहास रचा गया है वैसा किसी दूसरे देश में नहीं हुआ।’’ इतिहास के दुर्भाग्य के दिनों को जो लोग याद नहीं रखते हैं, वे लोग पश्चाताप करते हैं।
उमा भारती ने एक पंक्ति में तुष्टीकरण के इतिहास का एक नमूना दिखाया है। वह तुष्टीकरण जो सौ साल पुराने इतिहास की याद तो दिला दी जाए। आज तो 2012 में जो तुष्टीकरण हो रहा है, वह एक कथा सातत्य है। कांग्रेस का भी एक लम्बा इतिहास है। तुष्टीकरण का भी और मोपला दंगों का भी। मोपला दंगों के गर्भ से इस्लामिक बैंक का तानाबना निकला है। इस बीच चुनाव आयोग ने आरक्षण पर जो विराम लगाया था उससे समाजवादी पार्टी और कांग्रेस आदि में बेचैनी फैल गई है। जैसे ध्रुवीकरण का मौका ही हाथ से निकल रहा हो। मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति पर दिग्विजय सिंह प्रायः हमेशा से सक्रिय रहे हैं। उनमें और केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम में बटला हाउस एनकाउंटर को लेकर खीचतान बढ़ गई है। वैसे बटला हाउस एनकाउंटर के सवाल पर समाजवादी पार्टी भी अपने तेवर तान रही है।
चुनाव का मामला ही ऐसा होता है। कांग्रेस 2004 के आमचुनाव के बाद से ही सच्चर कमेटी का तानाबाना बुनने लगी थी। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में सर्वेक्षण आदि में तथ्य तो सामान्य थेे, अलबत्ता कुछ आईएएस और आईएफएस अधिकारियों के बारे में विशेष उल्लेखनीय बातें कही गई। जैसे कि रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में महज 3 प्रतिशत आईएएस मुसलमान हैं। विदेश सेवा में भी मुसलमानों की तादात केवल 1.8 प्रतिशत है। 6 से 14 साल की उम्र के 25 प्रतिशत बच्चे या तो स्कूल नहीं जा पाते या बीच में पढ़ाई छोड़ देते हैं। जस्टिस रंगनाथ मिश्रा की रिपोर्ट में तो और बढ़ा-चढ़ा कर 15 प्रतिशत आरक्षण देने तक की बात कही गई है।
लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि जस्टिस रंगनाथ मिश्रा की रिपोर्ट के बाद कांग्रेस ने उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। क्योंकि रंगनाथ मिश्र ने 15 प्रतिशत आरक्षण की बात रिपोर्ट में कही थी। यही बात कांग्रेस के गले में हड्डी की तरह फंस गई। समाजवादी पार्टी के लोकलुभावन 8 प्रतिशत नारे के पीछे भी यही तथ्य झलकता है। संविधान सभा कीे कई नामी-गिरामी हस्तियों ने भी धर्म के नाम पर आरक्षण का खुलकर विरोध किया है। पार्टियों की लाख कोशिशों के बावजूद संविधान का खुलकर विरोध करना मुश्किल है। यही कारण है कि पिछड़ों के कोटे में से कोटा निकालने की बात कही जा रही है। उमा भारती ने जो भयावह तस्वीर भारत के विभाजन की निकाली है, उसमें सत्य है।
मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति का दुष्परिणाम पिछली शताब्दी में विभाजन के रूप में देखने को मिला है। लेकिन कांग्रेस को यह गम खाए जा रहा है कि विभाजन के बाद की पृष्ठभूमि में मुसलमानों को एक छाता मिल गया। और कांग्रेस उस छाते का इस्तेमाल कर बहुतांश वोटों को अपने खेमे में पहुंचाती ही है। लेकिन लम्बे समय तक यह नहीं चला। कांग्रेस की कलई झूठे वायदे करते करते खुल गई और मुसलमान कांग्रेस के छलावे से ऊब गए। दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे छाते मैदान में उतर गए और मुस्लिम समर्थन की प्रतिस्पर्धा करने लगे। कांग्रेस के लिए 2004 में बहुत सोच-समझ कर मुस्लिम वोट बैंक को फिर से फांसने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था।
जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2007 में कहा कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। यह तुष्टीकरण की नीति पर लिए गए फैसले का सुचिंतित नीति निर्णय था। वरना कांग्रेस का खेल खत्म होने को था। कांग्रेस मुसलमानों, हरिजनों के बल पर राज करती रही। यह आधार छूट गए, तो मुसलमानों का पहला हक भारत पर बन गया। तब उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार गरीबों का है, गरीब मुसलमान, हिन्दू या ईसाई भी हो सकता है। ऐसे में उमा भारती अगर भारत के हित में सोचती हैं तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है? जब मजहबी आधार पर पाकिस्तान ने भारतीयों को मार-मार कर खदेड़ दिया, और आज बांग्लादेश में भी खदेड़ने की करीब करीब वही स्थिति है। ऐसे में अगर उमा भारती को तुष्टीकरण की महाविनाशक काल की याद नहीं आती तो कब आती। अभी अभी सलमान रुश्दी की प्रस्तावित यात्रा पर जो बावेला मचाया गया है, वह इस्लामिक कानून के बोलबाले का द्योतक है।
यह अलग बात है कि चुनाव आयोग ने फिलहाल तो पांच राज्यों के चुनाव में सरकारी मंसा को निरस्त कर दिया है। कानून और न्याय मंत्री सलमान खुर्शीद के नौ प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण के मुद्दे पर कारण बताओ नोटिस जारी कर के गहरा क्षोभ व्यक्त किया और प्रधानमंत्री तक से शिकायत की। ये हैं हमारे कनून मंत्री।
साभार: प्रभासाक्षी
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