अखिल भारत हिन्दू महासभा
49वां अधिवेशन पाटलिपुत्र-भाग:1
(दिनांक 24 अप्रैल,1965)
प्रस्तुति: बाबा पं0 नंद किशोर मिश्र
स्वागताध्यक्ष महोदय, प्रतिनिधि बन्धुओं,मातृ शक्तियों एवं मित्रों।
आपने मुझे इस महान् संगठन का अध्यक्ष-पद पुन: प्रदान कर जो सम्मान दिया है, उसके लिये मैं आपका आभार व्यक्त करता हूं। पाटलिपुत्र की यह प्राचीन महानगरी अतीत में हिन्दू धर्म एवं संस्कृति का केन्द्र रही है। बिहार प्रांत में ही भगवान् महावीर तथा अन्य कई तीर्थंकर एवं भगवान बुद्ध सरीखे महान् धार्मिक नेताओं का आर्विभाव हुआ था। अशोक एवं पुराणों में विख्यात गयासूर सरीखे महान् सम्राटों ने भी इस प्रांत की पावन धरती को गौरवान्वित किया था। महान् संत सिपाही गुरू गोविंद सिंह जी की पवित्र जन्मभूमि भी है। पावन तथा प्राचीन महानगरी पाटलिपुत्रके नागरिकों एवं हिन्दुस्थान के एक छोर से दूसरे छोर तक के आये हुए प्रतिनिधि बंधुओं को सम्बोधित करने का सुयोग प्राप्त कर भी मुझे गौरव की अनुभूति हो रही है।
पिछला वर्ष, एक बुरा वर्ष था
गत वर्ष भारत के राजनीतिक इतिहास में अनेक उल्लेखनीय घटनाओं से परिपूरित वर्ष था। प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का सहसा ही जून मास में देहावसान हो गया और उनके उपरांत एक नवीन मंत्रिमंडल का गठन हुआ। संपूर्ण देश के समक्ष खाद्यान्न की कमीं की समस्या मुख फैलाकर उपस्थित हुयी जीवनोपयोगी पदार्थों के भावों में वृद्धि भी अबाध-गति से होती रही। इन सब समस्याओं के अतिरिक्त स्वदेश की सुरक्षा, पाकिस्तान के आक्रमण, कश्मीर तथा नागालैण्ड आदि की पहले से ही विद्यमान समस्याओं का भी समाधान न खोजा जा सका।
भाषा की समस्या तथा स्वदेश में ही सक्रिय चीन और पाकिस्तान के क्रीतदासों(दलालों) की गतिविधियों ने भी राष्ट्र की सुरक्षा को चुनौती दी। भारत के बाहर अन्य देशों में निवास करने वाले हिन्दू बंधुओं पर आपदाओं के घन गहरा उठे और उन्हें जन एवं धन दोनों की हानि उठानी पड़ी। उन्हें लाखोंकी संख्या में शरणार्थी बनकर पाकिस्तान, ब्रह्मदेश, श्रीलंका, अफ्रीका एवं अन्य देशों से शरणार्थी के रूप में भारत आना पड़ा और वहां कई पीढि़यों से बनाये गये अपने निवास तथा आवास स्थानों को भी अंतिम प्रणाम कर विदा लेने पर विवश होना पड़ा। 1964 में केवल पाकिस्तान से ही 9 लाख से भी अधिक हिंदू निष्कासित कर दिये गये।
ऐसा क्यों
आज जब भारत एक स्वतंत्र देश है और ''लोकप्रिय'' सरकार का शासन है तो इस राष्ट्रीय अपमान और दुर्दशा का कारण क्या है? राह में चलता एक सामान्य व्यक्ति भी इस प्रश्न का यही उत्तर देगा कि वर्तमान सरकार की नीति ही हमारे राष्ट्र के समक्ष विद्यमान कष्टों एवं दुखों के लिये उत्तरदायी है। वर्तमान सरकार की नीति के विदेश, आर्थिक अथवा गृह नीति संबंधी किसी विशेष पक्ष की आलोचना करना निरूपयोगी ही है क्योंकि इसकी नीति का मूल आधार ही त्रुटिपूर्ण है और इसका अधिष्ठान ही दुर्बल सिद्धांतों पर आधारित है। वस्तुत: वर्तमान सत्ताधीशों ने सतोगुण के नाम पर निकृष्टतम ''तमोगुणी'' व्यवस्थाओं की पद-वंदना की है।
क्रमश:
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